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अपश-चरितकाग्य
(३) प्राकार में यह महाकाव्य से वृहत् होता है। जन्म से लेकर हरिवंश के अन्त तक का सम्पूर्ण विवरण दर्शन, धर्मशास्त्र, विज्ञान प्रादि विभिन्न विषयों के समाहार दिया है । इससे भी बड़ा काव्य पुष्पदन्त का "महापुराण" से जहां अध्याय या सगं विस्तृत एव वृहत् मिलते हैं वहीं है जिसमें १०२ सन्धियां हैं। प्रन्थ लगभग बीस हजार परिमाण में बहुत बड़ा होता है। कहीं-कही तो वर्णनों की श्लोक प्रमाण है । इसमें चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, ही प्रमुखता दिखाई पड़ती है।
नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण और नौ बलदेव-सठ (४) पुराण में साहित्य के प्रायः सभी तस्वों की जलाका पुरुषों का कथानक वणित है। रामायण मौर समन्विति रहती है। नाटक की पच-सन्धियों, गीति. महाभारत दानों को इसमे संक्षिप्त कथाएं संकलिन हैं। मातिप्राकृतिक तथा अलौकिक घटनामों, सर्ग-विभाजन इसके अतिरिक्त कई प्रवान्तर कथायें और पूर्वभवों के इतिविभिन्न-रस, छन्द तथा अलंकारों का समावेश रहता है। वृत्त इस पौराणिक महाकाव्य में वर्णित हैं। अपभ्रश में
(५) कथा चमत्कार पूर्ण तथा प्रतिलोकिक तत्वो इस प्रकार के कई पौराणिक महाकाव्य मिलते हैं जिनमें से (सुपरनेचरल एलीमेन्ट्स) से अनुरजित रहती है। ऐसी कुछ निम्नलिखित हैअसम्भव से असम्भव बातो का पुराणों मे वर्णन मिलता (१) हरिवंशपुराण-धवल-११२ सन्धियांहै जिसका कि साधारण पाठक अनुमान भी नहीं कर कौरव पाण्डव एवं श्रीकृष्ण मादि महापुरुषों का जीवनसकता। और कहीं-कही ऐसी कल्पनामो का पाश्रय लिया चरित्र । जाता है कि पढ़ने वाले को वस्तु कपोल-कल्पित प्रतीत होन (२) पाण्डवपुराण-यशःकीति-३४ सन्धियालगती है।
पांच पाण्डवों की जीवन-गाथा । (६) कार्यान्विति की शिथिलता तथा घटनाग्रो के (३) हरिवंशपुराण-पं० रइयू-१४ सन्धियाँ -- संगुफन की प्रवृत्ति विशेष होती है। इसलिए कथा मे से ऋषभचरित, हरिवंशोत्पत्ति. वसुदेव, बलभद्र, नेमिनाय कथा निकलती जाती है और कथा-सूत्र इस ढग से मागे मोर पाण्डव प्रादि का वणन । बढना जाता है जिस प्रकार से मकड़ी के जाले का प्रसार ) हरिवशपुराण-यज्ञ कीर्ति-१३ सन्धियांहोता जाता है। और इसीलिए उसमे जटिलता अधिक हरिवश उत्पत्ति प्रादि वर्णन । होती है।
(५) हरिवंशपुराण-श्रुतकीति-४४ सन्धियां-- (७) सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित कौरवपाण्डव मादि का वणन । के साथ विभिन्न विषयों का समावेश रहता है। इतिहास (६) प्रादिपुराण-पं० रइधू-अनुपलब्ध-पादि तथा जीवन क्रम का पूर्ण विवरण इसमे रहता है। प्रतएव तीर्थकर तथा वंशानुक्रम युक्त । कालान्तर में लिखे जाने वाले महाकाव्यो की कथा पुराणों वस्तुतः संधियो की दृष्टि से पुराग और चरितकाव्य से ली गई है।
का अन्तर बिलकुल स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। क्यों उपर्युक्त विशेषताओं के अनुसार अपभ्रंश के महाकवि कि ग्यारह या तेरह संधियों से लेकर लगभग सवा सौस्वयम्भूद्वारा रचित "पउमचरिउ" एक पोगणिक महा- सन्धियो तक के पुराणकाव्य उपलब्ध होते हैं। फिर भी, काव्य है जिसमे विविध राजवशों का कीर्तन करते हुए साधारणतया चरितकाव्य में-चार सन्धियों से लेकर कवि ने ऐतिहासिक वंशावली का पूर्ण विवरण दिया है। बीस-बाईस सन्धियो तक की रचनाएं ही मिलती हैं। इस महाकाव्य में नब्बे सन्धिया तथा पांच काण्ड (विद्या- पुराणकाव्य प्राकार में निश्चय ही चरितकाव्य बहत् से धर, अयोध्या, सुन्दर, युद्ध और उत्तर काण्ड) हैं। इससे होते हैं। भौ बृहत्रचना महाकवि स्वयम्भू कृत "हरिवंश पुराण" चरितकाव्य में मुख्य रूप से किसी महापुरुष या सठ है । इसमें एक सौ बारह सन्धियां हैं जो चार काण्डों में शलाका के किसी पुरुष का जीवन-चरित वणित होता हैं। विभक्त हैं । इस विशालकाय ग्रन्थ में कवि ने श्रीकृष्ण के महापुराणों में स्पष्ट ही सठ शलाका के पुरुषों के संपूर्ण