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विदर्भ के हिन्दी काव्य
सम्बर ताकी मोपमा कीरत देसविरेस।
प्रतीत होती है । कन्नड़ कवि रत्नाकर ने अपने मरतेशभोजराजसौं भाषिये संघई भोज विशेष ॥५॥
वैभव में जिस प्रकार चक्रवर्ती भरत के चरित्र का उदासीतत्कालीन श्वेताम्बर साधु शीलविजय ने अपनी तीर्थ- करण किया है वैसा पामो ने नहीं किया। इस प्रकार माला मे भोज संधपति की प्रशंसा में पद्य लिखे हैं प्रपदंश कवि परकीति के पार्श्वपुराण में भगवान पार्वजिनका सारांश इस प्रकार है१-बघरवाल वश के भूषण- नाथ के यवनराज के साथ युद्ध का जो वर्णन है उससे भूत संघवी भोज उदार हैं, सम्यक्त्व धारण करते हैं, धनसागर अपरिचित प्रतीत होते हैं। फिर भी दोनों जिनदेव को नमस्कार करते हैं, अन्य धर्म में रुचि नहीं कवियों की रचनामों में अपने विशिष्ट गुण हैं। पामो रखते, उनके कुल में उत्तम पाचार है, रात्रिभोजन का की शैली अपेक्षाकृत सरल किन्तु प्रभावशाली है। चक्रत्याग है, सदा पूजामहोत्सव होते हैं, जिनेन्द्रदेव के प्रागे वर्ती भरत के अभिमान का उनका वर्णन दर्शनीय है। मोतियों से चौक पूरते हैं, उनका व्यापार कर्णाटक, कोंकण (पच ७०)गुजरात, मालवा, मेवाड़ तक चलता है, वे लोगों को नित्य पुनरपि बोले चकिवक मुझनचाले। मन्नदान देते हैं, सं० १७०७ में गिरनार की यात्रा में तेहने देऊरचंड कोहने नहि हाले । उन्होंने एक लक्ष मुद्राएं व्यय कर पुण्य उपार्जन किया। सूर्यतनो विमान जाण बोलतो तोड़। अर्जुन, पदारथ और शीतल ये उनके तीन पुत्र हैं। व्यंतरना विश्राम घाम तारानो मोडू॥
संघवी भोज द्वारा स्थापित कई जिनमूर्तियाँ कारजा इत्याविक मवि गणू तो बाहुबली किम पुरे। के काष्ठासंघ-मंदिर में और नागपुर के सेनगण मन्दिर में मुझसू सुन सेनापति वृषभसेनाविक कि करे। विद्यमान हैं । इनके लेखों से२ उनके वंश का परिचय इसी प्रकार भरत के वैभव के प्रति बाहुबली का इस प्रकार मिलता है
उपेक्षाभाव भी सुन्दर ढंग से अकित हुमा है (पद्य ११७)सं० बापू-यमुनाई
तुझ प्रभुना प्रचंड खर षट क्षेत्र समानह । मुझ पुरना छे जाण स्थान बलि देश बताणह॥
लहु वेग सम चाहु दाउ शुभ नव निषानह । पद्माई-सं० भोज
स० पदाजी-तानाई
लेखू शकटह तुल्य मूल्य वर रत्ननो तानह ।।
काचोपम मनमा गणू सुन्दर तेह कामिनी। सकाई प्रजुन पदाजी शीतल स. जमना हांसबाई'
छन्नति सहन मुझ नाटकशाला भामिनी ।।
धनसागर की रचना अधिक प्रालंकारिक है। प्रारम्भ तवना
सं० पूजा देवकु मे ही कवि और जार का उनका श्लिष्ट वर्णन उल्लेखइस समय कारजा मे तो इस घराने के कोई परिवार नीय है (पद्य ४)-- नही है किन्तु अंजनगाव (जिला अमरावती) में हैं। वृत्तभंग अपरीति रीतिमारग नवि देखे।
मनलंकार उद्योत होत प्रपशम्बन लेखे। ६.काव्यों की शैली-पामो और धनसागर दोनों के
अवगुण में उल्लसत नसत निज पर्यन पेले। काव्यों की कथा पुरातन और सुप्रसिद्ध है तथा प्रायः
तरल तरंग मभंग भंग नहि खेद विशेषे ॥ प्राचार्य जिनसेन-गुणभद्र के महापुराण पर प्राधारित
माड़ गृह रस मूढ़ मति गति कोय न उत्तम गहे। १. जैन साहित्य और इतिहास पृ० ४५५
कवि जार समान सुनो सजन बनसागर कविजन कहे। २. ये लेख जैन सिद्धान्त भास्कर वर्ष १३ कि०४ तथा भगवान के गर्भस्थ होते हुए माता को सवा करन
जनशिलालेख संग्रह भा० ४ पृ. ४०६-४१० पर वाली दिव्य कुमारी की बधाई को उन्होंने निरोग्ठय पछ प्रकाशित हुए हैं।
में प्रकित किया है (पच ५५)