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महासपिरासायचारिक
का परिचय कवि को दिया। इतना ही नहीं, वे स्वयं बहन नकधी तथा कापालिक की; द्वितीय परनी चना कुवराज को अपने साथ लेकर गये और उनके पूर्वजों तक ने सोमा एवं धूतं रुद्रदत्त को; तृतीय पत्नी विष्णुश्री ने का परिचय कवि को देकर उनसे कुशराज के निमित्त उन्ही सन्मतिमंत्री; चौथी पत्नी नागधी ने राजकुमारी मुण्डी; के माश्रय में "सावयचरित' के लिखने का प्राग्रह किया। पांचवीं पत्नी पद्मलता ने धूर्त बुडदास; छटवी पत्नी कवि भी उनके भाग्रह तथा कुशराज की विनम्र-प्रार्थना कनकलता ने समुद्रदत्त नामक व्यापारी तथा धूत राजा पर अन्य प्रणयन की तैयारी प्रारम्भ करता है।
मह, एवं सातवी पत्नी विद्युल्लता ने अशोक नामक एक __ "सावयचरित" का मूल स्रोत संस्कृत भाषा निबद्ध घोडों के व्यापारी, सेठ वृषभसेन पौर एक धूतं ब्रह्मचारी सम्यक्त्व-कौमुदी है। इसमें अन्तर केवल इतना ही है कि की सुन्दर कथाएँ सम्यक्त्व प्राप्ति के संस्मरण के रूप में उक्त सम्यक्त्व-कौमुदी के प्रारम्भ में राजा उदितोदय एवं प्रस्तुत की हैं । कथानकों के माध्यम से एक मोर जहाँ राजा सुयोधन की विस्तृत कथानों के बाद मूल कथानक के धम की मोट म लखक न माया-फरवा। रूप में सेठ प्रहंदास एवं उनकी माठ रानियों में से सात घूत्तों के चरित्रों का पर्दाफाश किया है तो दूसरी मोर रानिया की कथाएँ प्रारम्भ होती हैं। रइप ने राजा सुपात्रो के चरितो के माध्यम से जीवन की समृद्धि हेतु उदितोदय एवं सुयोधन की विस्तत कथाएं न देकर मात्र सुन्दर-सुन्दर प्रादर्शो को अथित किया है । लेखक ने कापा४-६ पंक्तियों में ही उनका सामान्य नामोल्लेख करके मूल लिक का प्रसंग उपस्थित कर वालिको एवं कौलिककथानक सम्यकक्त्व-कौमुदी के समान ही प्रारम्भ किया है, सम्प्रदाय तथा बुद्धदास के माध्यम से बौद्ध सम्प्रदाय के जो निम्न प्रकार है :
पाखण्डों का अच्छा भण्डाफोड़ किया है। ये कथानक ___उत्तर मथुरा के राजा उदितोदय ने कार्तिक शुक्ला
सांसारिक झंझटो के दुःखो को उभाड़कर मानव को पूर्णमासी के दिन "कौमुदी महोत्सव" का प्रायोजन कर
शाश्वत सुखप्राप्ति की और उन्मुग्म करते हैं, साथ ही नगरभेरी पिटवाई तथा सभी महिलामों को नगर के बाहर
भौतिक जगत में रमने वाले मानव-समाज को मानवउद्यान में जाकर क्रीड़ा विनोद एवं पुरुषो को अपने-अपने
मनोविज्ञान का पाठ पढाकर सहकमियो के ऊपर सहमा घरों में ही रहकर धर्मध्यान करने का कड़ा आदेश दिया।
विश्वास न कर उनके अन्तरात्मा को ध्यान से परखने की अष्टान्हिका-पर्व होने के कारण सेठ प्रहंदास एव उनकी
पोर पागाह भी करते है। प्रथम सात रानियों को इससे धर्मसाधन मे बड़ी बाधा प्रस्तुत कृति की छह सन्धियो में से प्रथम चार सन्धियो उत्पन्न हुई। सबसे छोटी रानी जो कि धर्म की अनुरागिणी में उक्त कथानक ही विस्तृत है । अन्तिम ५-६ सान्धया म न थी, के विरोध करने पर भी सेठ महहास ने राजा से लेखक ने श्रावक धर्म एवं ग्यारह प्रतिमानो का विशद् अनुनय-विनय कर अपने लिए तथा अपनी रानियो के लिए वर्णन किया है जिसका मूलाधार उमास्वाति वृत तत्त्वाथविशेष अवकाश ले लिया तथा अपने घर के चौत्यालय में मत्र है। ही भजन पूजनादि प्रारम्भ कर दिया। रात्रि-जागरण का व्रत सफल बनाने एवं समय व्यतीत करने के लिये इसी
'सावयचरिउ" मे एक प्रधान उल्लेख "कौमुदी महोअवसर पर सेठ प्रहंदास सर्वप्रथम अपने सम्यक्त्व-प्राप्ति
त्मव३ सम्बन्धी उपलब्ध है। अपभ्रश साहित्यमे इस महोके संस्मरणस्वरूप रूपखुर चोर की कहानी अपनी रानियों
त्सव का नामोल्लेख मुझे, अन्यत्र देखने को नहीं मिला। को सुनाता है, जिसे समीप ही छिपे हुए राजा मंत्री सस्कृत साहित्य को देखने में ऐमा प्रतीत होता है कि सुवणखुर चोर भी सुनते हैं। उसके बाद सबसे वही रानी भारतवर्ष मे वर्ष के दो प्रधान उत्मव थे, एक तो वमन्नमित्र श्री ने सेठ वृषभदास, उमकी पन्नी जिनदत्ता. अपनी
कालीन उत्सव जो कि वमन्त ऋतु में होने के कारण
"वसन्तोत्सव" के नाम से प्रसिद्ध है और दूमग था भर. १. सावय. १/४/१३-१६ २. सावय० १/५/१-८
३. सावय०१/१०