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बौद्ध-साहित्य में जनधर्म
अंगुतर निकाय१ गुणवतों और शिक्षाव्रतों से परि- तपस्यामों का वर्णन दीघनिकाय (१,१६६) में मिलता चित है। वहां विशाखाके प्रजान मे दिग्बत और देशवत का है। बुद्ध ने भी प्रथम छह वर्षों के तपोकाल मे इनका विवेचन है । दीर्घनिकाय मे कण्डक-मसुक के नाम से उद्ध- अभ्यास किया था११। आजीवकों के द्वारा भी इनका रित प्रतिज्ञाप्रोमे भी इन व्रतो को खोजा जा सकता है। अभ्यास किया जाना बताया है१२ । कुछ इनमें जैन मुनियों मज्झिम निकायमे ३ सामाजिक और अगुत्तर मे४ प्रोषधोप- के आहार-दोष है। कही उनकी पाहार-पद्धति की मालोवास का वर्णन देखा जा सकता है। इन्ही उद्धरणों में चना है और कहीं प्राहार-ग्रहण के पूर्व ग्रहीत प्रतिज्ञानों एकादश प्रतिमायो के विषय में भा कुछ विवेचन मिल का वर्णन है। निगण्ठ नातपुत्त के द्वारा ऋद्धि के प्रभाव से जाता है।
पाहार लेने के उपक्रम का भी उल्लेख है १३ । मुनि-प्राचार विषयक उद्धरण भी पर्याप्त मिलते है। जैन साधुग्रो की दैनन्दनी की भी यहां चर्चा है। उनके मंघी, गणी पौर गणग्यि होने के उल्लेख प्राप्त पञ्चमहाव्रतो के विषय में ऊपर हम लिख ही चुके हैं । हैं५ । वे गण, कुल, और गच्छो मे विभक्त थे । जैन मुनियो पञ्चसमितियो मे भाषासमिति १४ का पौर षडावश्यको मे के वर्षावास के अनुकरण पर ही बौद्ध साधुनो मे वर्षावास कायोत्सर्ग का भी उल्लेख है१५ । इसके अतिरिक्त केशलुका नियम निर्धारित किया गया। पालि साहित्य में ञ्चन,१६ अचेलकत्व,१७ पौर त्रिगुप्ति १८ के भी उल्लेख जैन मुनियो को 'निगण्ठा' कहकर पुकारा गया है जो प्राप्त है। दिगम्बरत्व का सूचक है । (अम्हाक गन्थानक्लेसो (४) अनेकान्त दर्शन पलिवज्झनक्लेसो नत्थि क्लेस गन्थियरहितामय ति एव अनेकान्त दर्शन के बीज वेदों१६, उपनिषदो२० मादि वादिताय लद्धिनामक्सेन निगण्ठा७ ।) यही बुद्धधीप ने मे अन्वेषणीय है। पालि साहित्य में भी इसके कुछ विकश्वेतवस्त्रधारी निगण्ठो को दिगम्बर निगण्ठो से अच्छा सिन रूप के दर्शन होते हैं२१ । बुद्धघोष ने निगण्ठ नातपुत्त बताया है। जो जैन सम्प्रदाय मे लगभग पञ्चम शताब्दी के सिद्धान्तो को उच्छेदवाद और शाश्वतवाद का समन्वय मे मस्थापित श्वेताम्बरो के विषय में उल्लेख जान पडता रूप समझा है२२ । त्रयात्मवाद और अर्थक्रियावाद के है । जैन साधुग्रो की नग्नता पर भी धम्मपद अट्टकथा विषय में दुर्वकामधन स्याद्वादकेशरी (अकलकदेव) के मे परिहास किया गया है। यहा एक अन्य कथा का सिद्धान्त का उपस्थापन किया और खण्डन किया है २३ । उल्लेख है जिसमे लिखा है कि जैन साधुनो की मर्वज्ञता का परीक्षण किया गया और उनके असफल होन पर उन्हे
११. मज्झिम १,७७ खूब ताडना दी गई ..
१२. वही १,२३८ अचेल कस्सप के नाम पर लगभग बीस प्रकार की
१३. Book of Discipline, vol. 5. P. 151
१४. मज्झिमनिकाय अभयराजकुमारसुत्त १. अगुत्तर १,२०६
१५. मज्झिम १,६३, २,३१, २१४ २. दीघ ३,६
१६. वही १,७७ ३. मज्झिम १,३७२
१७. वही ४. अगुत्तर १,२०६
१८. वही १,३७२ ५. दीघ १,४९
१६. ऋग्वेद १०,१२६ ६. विनय १.१३७
२०. मैत्रेय ११,७ छान्दोग्य ३,१६१ ७. मज्झिम निकाय अट्ठकथा १,४२३
२१. अगुत्तर २,४६ ८. धम्मपद अट्ठकथा ३,४८६
२२. दीघनिकाय अट्ठकथा २,९०६,७ ६. वही १,२,४००
मज्झिम अट्ठकथा २,८३१ १०. Budolthist Legend 29,74
२३. हेतुविन्दुटीका लोक पृ० ३७४