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अपभ्रंश-चरितकाव्य
पुराणों से अधिग्रहीत होती है। कथाकाव्य की वस्तु प्रणंगचरित (दिनकरसेन), महावीरचरिउ (अमरलोक-जीवन तथा लोक-कथाम्रो से अनुप्राणित देखी जाती कीर्ति), सातिणाहचरिउ (कवि देवदत्त), चदप्पहचरिउ हैं। इसलिए उनमे कथानक कहिया, लोक जीवन का (कवि श्रीधर), चदप्पहचरिउ [मुनि विष्णुसेन) मौर सजीव चित्रण और कथाभिप्रायो का अद्भुत सामजस्य
सातिणाहचरिउ (कवि श्रीधर) आदि । देखा जाता है। अपभ्रश के चरितकाव्य
लगभग इन सभी चरितकाव्यों का प्रारम्भ पौराणिक अपभ्रश के चरितकाव्यो मे पौराणिक महापुरुष या
शैली से हुआ है। कथानायक का जीवन बचपन से ही प्रेसठ इलाका पुरुषो का जीवन-चरित्र वर्णित है। जीवन
असाधारण वरिणत है। तीर्थकरों का जीवन-चरित्र प्रतिके विभिन्न चरितो का विस्तृत प्रकन है। पूर्व भवो तथा लौकिक तथा धार्मिक बातों से अनुरजित एवं अनुप्राणित अन्य प्रवान्तर कथानों से जहाँ काव्य रोचक तथा सौन्दर्य
है। पूर्व भवान्तरों की प्रवान्तर कथानों से सभी चरितगरिमा से मण्डित हैं वही कथानक कही-कही जटिल तथा
काव्यों का कलेवर वृद्धिंगत हुमा है। महत् तथा प्रादर्श दुहरे हो गये हैं। कथाकाव्यों में यह बात नही है।
चरित्रों से जहाँ काव्य में प्रतिलौकिक रंजना हुई है वही अपभ्रंश के प्रमुख चरितकाव्य निम्नलिखित हैं
कल्पना की प्रचुरता मे काव्य-कला की छटा भी विकीर्ण णेमिणाहचरिउ (भमरकीति गणि), पज्जण्णचरिउ हो गई है। कुल मिलाकर जन-जीवन से ऊँचे उठकर एक (सिंह),पासणाहचरिउ (देवदत्त), णेमिणाहचरिउ (लक्ष्मण) असाधारण भूमिका पर इन चरित-काव्यो का निर्माण णेमिणाहचरिउ, (दामोदर) बाहुबलि चरिउ (घनपाल), हुआ है जिन पर कवि तथा लेखकों की श्रद्धा एवं अवस्था चदपहचरिउ (भ. यश.कीर्ति), पासणाहचरिउ (श्रीधर),संभ- का छाप लगा मिलती है । तथा धर्म सम्बन्धी सिद्धान्तों
और नियमो का भी विशेष रूप से स्थान-स्थान पर प्रतिवणाहचरिउ, (तेजपाल), सुकमालचरिउ (मुनि पूर्णभद्र), सन्मतिजिनचरित्र (प० रइधू), सनत्कुमारचरित्र (हरि- पादन हुमा ह। भद्रसूरि), जम्बूस्वामीचरित्र (सागरदत्तसूरि), शान्ति
ऐतिहासिक दृष्टि से अपभ्रंश का यह काव्य-साहित्य नाथचरित्र (शुभकीति), पासणाहचरिउ (पद्मकीति), पासणाहचरिउ (असवाल), पासणाहचरिउ (देवचंद),
मध्यकालीन उस थारा को प्रतिष्ठित एवं प्रवाहित करने सातिणाहचरिउ महिन्द्र), श्रीपालचरिउ चंदप्पहचरिउ
वाला है जो हिन्दी-साहित्य में भक्तिकाल के नाम से (दामोदर), चदप्पहचरिउ (श्रीचन्द) और पासणाहचरिउ
विश्रुत है। क्योंकि इनमे रास या लीला प्रथवा चरित तथा वड्ढमाणचरिउ (कवि श्रीधर) इत्यादि । इनके
का कीर्तन न हो कर जीवन को समस्त भाव-भूमियो का अतिरिक्त हरिसेणचरिउ (कवि वीर), सांतिणाहचरिउ
आकलन किया गया है और अध्यात्म के उस सोपान पर (कवि शाहठाकुर) रचनाए भी उपलब्ध हुई है। कुछ
नायकों का जीवन चित्रित किया गया है जो, परमहस या अनुपलब्ध रचनाएं इस प्रकार है:
मुक्त दशा के निकट पहुँच चुके थे या पहुंचने वाले थे।
प्रतएव लौकिक अभ्युदय के साथ उनका अलौकिक अभ्युदय १. जन-ग्रन्थ-प्रशस्ति-संग्रह : द्वितीय भाग (पं० परमानन्द विशेष रूप से इनमे वर्णित है।* शास्त्री), पृ० १४४ ।
गुण-परीक्षा गुणी ही गुण की परीक्षा कर सकता है पर गुणहीन मानव कभी भी ऐसा नहीं कर सकता। कांच और रत्न की परख जोहरी ही कर सकता है। भील नहीं, क्षीर और नीर का विवेक हस हो कर सकता है, बगुला नहीं। वसन्त ऋतु का लाभ कोकिल ही पा सकती हैं, कौमा नहीं। सिंह के पराक्रम को हाथी ही पहिचान सकता है, अन्य नहीं। ज्ञान की कीमत विद्वान ही प्रांक सकते हैं, प्रजानी नहीं।