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वृषभदेव तथा शिव-सम्बन्धी प्राच्य मान्यताएँ
डा० राजकुमार जैन एम० ए० पी-एच० डी०
___ (वर्ष १८ कि० ६ से प्रागे)
रामायण में रुद्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप के जा सकता है। अनेक स्थानों पर प्रणु के लिये प्रयुक्त दर्शन होते हैं। यहां उन्हें मुख्यत. 'शिव' कहा जाता है। की गई योगेश्वर की उपाधि इस तथ्य की द्योतक है महादेव, महेश्वर, शंकर तथा व्यम्बक नामों का अधिक कि विष्णु की उपासना में भी योगाभ्यात का समावेश हो उल्लेख मिलता है । यहाँ उन्हे देवताओं में सर्वश्रेष्ठ देव- गया , और कोई भी मत इसके वर्धमान महत्व को देव कहा गया है ।१ और अमर लोक में भी उनकी उपा- उपेक्षा नहीं कर सकता था। मना विहित दिखलाई गई है ।२ एक अन्यस्थल पर उन्हे महाभारत मे शिव के एक अन्य नवीन रूप के दर्शन अमर, अक्षर और अव्यय भी माना गया है। एक स्थान होते हैं और वह है उनका 'कापालिक' स्वरूप। यह पर उन्हें हिमालय मे योगाभ्यास करते हुए दिखलाया स्वरूप मृत्यु देवता वैदिक रुद्र का विकसित रूप मालूम देता है।४ रामायण मे शिव के साथ देवी की उपासना भी है। यहाँ उनकी प्राकृति भक्तिकाल के प्राराध्य देव शिव भक्त-जन करते हैं। इन दोनों को लेकर जिस उपासना की सौम्य प्राकृति के सर्वथा विपरीत एव भयावह है। पद्धति का जन्म हुआ, वेदोत्तर काल में वही शैव धर्म का वह हाथ मे कपाल लिये है १० और लोक वजित श्मशान मर्वाधिक प्रचलित रूप बना। रामायण में शिव की 'हर'५ प्रदेश उनका प्रिय प्रावास है, जहाँ वह राक्षसो, वेतालों, तथा 'वृषभ वज'६ इन दो नवीन उपाधियो का भी पिशाचो और इसी प्रकार के अन्य जीवो के साथ विहार उल्लेख मिलता है।
करते है ।११ उनके गण को 'नक्तचर' तथा 'पिशिताशन' महाभारत मे शिव को परमब्रह्म, अमीम, अचिन्त्य,
कहा गया है१२ । एक स्थल पर स्वयं शिव को मास भक्षण विश्वस्रष्टा, महाभूनों का एक मात्र उद्गम, नित्य और करत हुए तथा रक्त एव मज
करते हुए तथा रक्त एवं मज्जा का पान करते हुए अव्यक्त प्रादि कहा गया है। एक स्थल पर उन्हे सांख्य
उल्लिखित किया गया है१३ ।। के नाम मे अभिहित कियागया है और अन्यत्र योगियों के
अश्वघोष के बुद्ध चरित में शिव का 'वृषध्वज' तथा
'भव' के रूप में उल्लेख हुअा है १४, भारतीय नाट्य शास्त्र परम पुरुष नाम से७ वह स्वय महायोगी हैं और ग्रात्मा
मे शिव को 'परमेश्वर' कहा गया है१५ । उनकी 'त्रिनेत्र' के योग तथा समस्त तपस्याओं के ज्ञाता है। एक स्थान
' 'वषांक' तथा 'नटराज' उपाधियो की चर्चा है१६ । वह पर लिखा है कि शिव को तप और भक्ति द्वारा ही पाया
नत्य-कला के महान् आचार्य है और उन्होने ही नाटय१. रामायण, बालकाण्ड : ४५, २२-२६, ६६, ११-१२, ८. वही अनुशासन १८,८, २२
६. अनुशासन वही : ६८, ७४ आदि २. वही १३, २१
१०. वनपर्व वही : १८८, ५० आदि ३. वही ४, २६
११. वनपर्व वही : ८३, ३० ४. वही ३६, २६
१२. द्रोणपर्व : ५०, ४६ ५. रामायण, बालकाण्ड ४३, ६ उत्तरकाण्ड : ४,३२, १३. वही अनुशासन पर्व : १५१, ७ १६, २७,८७, ११
१४. बुद्धचरित - १०, ३, १, ६३ ६. बही युद्धकाण्ड : ११७,३ उत्तरकाण्ड १६,३५,८७,१२ १५. नाटयशास्त्र : १,१ ७. महाभारत द्रोण '७४, ५६, ६१, १६६, २९ १६. वही १, ४५, २४, ५, १०