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समित जैन मूर्तियां मिली है। महोबा के पासपास के भग्न तोरण द्वार मिलता है। जिसे कुजदार भी कहते हैं। ग्रामों और नगरों में भी अनेक बस्त जैन मन्दिर और यह पर्वत की परिधि को बेढ़े हुए कोट का द्वार है। यह मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं। उन खण्डित मूर्तियों के पासनों द्वार प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। इसके बाद दो जीर्ण पर छोटे-छोटे से मिले हैं, उनमें से कुछ लेखो का सार कोटद्वार भोर भी मिलते हैं। वे दोनों कोट जैन मन्दिरों निम्न प्रकार है:
को घेरे हुए हैं। इनके अन्दर देवालय होने से इसे देवगढ़ १-संवत् ११६६ राजा जयवर्मा, २-सं० १२०३, कहा जाने लगा है। क्योंकि यह देवों का गढ़ था; परन्तु ३-श्रीमदनवर्मा देव राज्ये सं० १२११ प्राषाढ ०३ यह इसका प्राचीन नाम नहीं है। इसका प्राचीन नाम शनी देवी नेमिनाथ, रूपकार लक्ष्मण, ४-समतिनाथ 'लुमच्छगिरि' या 'लच्छगिरि' था, जैसाकि शान्तिनाथ स. १२१३ माष सु० दूज गुरो१।५-सं०१२२० जेठ मन्दिर के सामने वाले हाल के एक स्तम्भ पर शक सं. सुदी ८ रवी साधुदेव गण तस्य पुत्र रत्नपाल प्रणमति
७८४ (वि० सं० ११९) में उत्कीर्ण हुए गुर्जर प्रतिहार नित्यं । ६-..."तत्पुत्राः साधु श्री रत्नपाल तस्य
वत्सराज पाम के प्रपौत्र और नागभट्ट द्वितीय या नागाभार्या साध्वी पुत्र कीतिपाल, अजयपाल, वस्तुपाल तथा
वलोक के पौत्र महाराजाधिराज परमेश्वर राजा भोजदेव त्रिभुवनपाल अजित नाथाय प्रणमति नित्यं'२ एक लेख में
के शिलालेख से स्पष्ट है। उस समय यह स्थान भोजदेव जो, सं० १२२४ पासाङ सुदी २ रवी, काल पाराधियोति
के शासन में था। इस लेख में बतलाया है कि-शान्तिश्रीमत् परमदिदेव पाद नाम प्रवर्द्धमान कल्याण विजय
नाथ मन्दिर के समीप श्री कमलदेव नाम के प्राचार्य के राज्ये' नामका परमदिदेव के राज्य काल का है, उसमें
शिष्य श्रीदेव ने इस स्तम्भ को बनवाया था। यह वि. चंदेल पंश के राजामों के नाम दिये हुए हैं, और श्रावको
सं० ६१९ प्राश्विन सुदि १४ वृहस्पतिवार के दिन भाद्रके नाम पर दिये गये हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व
पद नक्षत्र के योग में बनाया गया था। पूर्ण हैं। इन सब उल्लेखों से महोबा जैन संस्कृति का
विक्रम की १२वीं शताब्दी के मध्य में इसका नाम कभी केन्द्र रहा था, इसका मामास सहज ही हो जाता है।
'कीर्तिगिरि' रक्खा गया था। पर्वत के दक्षिण की मोर
दो सीढ़ियाँ हैं । जिन्हें राजघाटी और नाहर घाटी के देवगढ़ का इतिहास
नाम से पुकारा जाता है। वर्षा का सब पानी इन्हीं में देवगढ़-दिल्ली से बम्बई जाने वाली रेलवे लाइन चला जाता है। ये घाटियाँ चट्टान से खोदी गई है, पर जाखलौन स्टेशन से १ मील की दूरी पर इस - नामका एक छोटा-सा उजड़ग्राम भी है। इस ग्राम मे १. १-(भों) परमभट्टारक, महाराजाधिराज परमेश्वर भाबादी बहुत थोड़ी-सी है । वह वेत्रवती (वेतवा) नदी
श्री भोके मुहाने पर नीची जगहमें बसा हुमा है। वहाँ से तीन सौ
२- देव महीप्रबर्द्धमान-कल्याण विजय राज्ये । फुट की ऊंचाई पर करनाली दुर्ग है। जिसके पश्चिम की
३-तत्प्रदत्त-पच महाशब्द-महासामन्त श्री पोर वेतवा नदी कलकल निनाद करती हुई वह रही है।
विष्णु । पर्वत की ऊँचाई साधारण और सीधी है, पहाड़ पर जाने
४ (र) म परिभुज्य या (के) लुमच्छगिरे श्री के लिए पश्चिम को मोर एक मार्ग बना हुमा है, प्राचीन
शान्त्यायत (न) सरोवर को पार करने के बाद पाषाण निर्मित एक चौड़ी
५ (सं) निषे श्री कमलदेवाचार्य शिष्येण श्रीदेवेन सड़क मिलती है जिसके दोनों भोर खदिर (खैर) और
कारा
६-पितं इदं स्तम्भं ॥ सं० ११९ मस्व (श्व) साल के सघन छायादार वृक्ष मिलते हैं। इसके बाद एक
बुज० शुक्ल । 1. A Cauningham, Reports XXI, P. 73 A.
७-पक्ष चतुर्दश्यां वृहस्पति दिने उत्तर भाद्रप२. देखो, कनिषम सर्वरिपोर्ट २१ पृ०७३, ७४.
८-दा नक्षत्र इदं स्तम्भ षटितमिति ॥०॥