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अनेकाम्स
होने लगा। इस गृह में कोई प्रतीक अथवा प्रतिमा मध्य के भित्तिचित्र केवल धार्मिक ही नहीं हैं. अपितु उनमें कला में रहती थी। इसके बीच में स्तूर रहता था तथा इस की रमणीयता और मसूणता पायी जाती है। कमल और स्तूप के चारों पोर प्रदक्षिणा भूमि रहती थी। जब श्रमण हस अनेक चित्रों में प्रतीक रूप में अंकित है। कमल संघ मे किसी विषय पर चर्चा होती थी, तब विचार- प्रात्मा की स्वच्छता, निर्मलता और उत्क्रान्ति का प्रतीक विनिमय के लिए विभिन्न स्थानों के मनि एकत्र होते थे।
है। जहां कमलनाल का प्रयोग प्राता है, वहां प्रात्मा के मतः इस परिस्थिति का परिणाम यह निकला कि मुनियों
विभाव राग-द्वेष भी चित्रित रहते हैं। कषाय और के प्रावास के लिए चैत्यगृह निर्मित होने लगे। इस योगवश प्रात्मा कर्मबन्धन से युक्त होती है और कमल युग-ई०पू० ३०० के लगभग जो चैत्यगृह निर्मित हुए तन्तु के समान जन्म-मरण की परम्परा चलती है। इस हैं, उनकी छत गुवजनुमा है, छत के नीचे स्तूप या कमलनाल द्वारा चित्रकारों ने प्रात्मा की बद्धावस्था और सामान्य वैदिका है। हैदराबाद के बाल्द्रुग जिले मे तेर केवल कमल-पदम के प्रकन से उसकी मुक्तावस्था चित्रित नामक स्थान में इस प्रकार का चैत्यगृह मिला है। यह की है। कमलनाल और कमल दोनों ही संसारी और ईट और पलस्तर का बना है, पूर्व की ओर द्वार है, उसके मुक्त प्रात्मानों के प्रतीक है। हस-सिद्धावस्था का प्रतीक ऊपर खिड़की है, जिससे सूर्य का प्रकाश पाता है। इसका है। जलचर जन्तुषों में तीन ही जन्तु विशेष ध्यान देने प्रांगण मण्डप के आकार का है। वर्तमान चैत्यालय का योग्य है-मत्स्य, जक और दादुर । विकास इसी चैत्य से हुमा है। प्राचीन कई जैन मन्दिर चैत्यगहोके समान उपलब्ध होते है। गुम्बज, वैदिका और
मत्स्य-सांसारिक तृष्णामों, वासनामों एवं लौकिक
- एपणामों का प्रतीक है। जैन चित्रकार सरोवर को संसार प्रदक्षिणा स्थान प्राजभी पुराने चैत्यगृहो के समान ही हैं।. ५
का प्रतीक मानते है और मत्स्य इस संसार की सतत अगले दिन रात्रि को पुनः चित्रकला पर चर्चा हुई। परम्परा को बनाये रखने के लिए तृष्णाओं का प्रतीक बाबूजी ने जैन चित्रकला की विशेषता पर प्रकाश डालते है। दार्शनिक दृष्टि से इसे मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का हुए बताया-"ई. ६००-६२५ के पल्लववशी राजा
प्रतीक कहा जा सकता है । कषायों की दृष्टि से इसे लोभ महेन्द्रवर्मन् के द्वारा निर्मित पदुकोटा स्थित सित्तन्न
कषाय का प्रतीक माना जायगा। बक को माया कषाय वासल्लीय गुहा चित्र जन कला के अद्भुत निदर्शन है। का प्रतीक माना गया है। संसार सरोवर में अनन्त लहरे यहा के चित्रों में भाव पाश्चर्य ढग से स्फुट हुए है और इस बक-माया के कारण ही उत्पन्न होती है । मायाचार प्राकृतिया बिल्कुल सजीव मालूम पड़ती है। समस्त गुफा मात्म परिणामों को कलुषित कर व्यक्ति को प्रवो गति कमलों से अलकृत है। सामने के खम्भों को आपस मे की भोर ले जाता है। दादुर-मेढक को-मान कपाय गुथी हुई कमलनाल की लतामों से सजाया गया है। छत का प्रतीक माना गया है । जैन चित्रकला में अनेक स्थानों पर तालाब का दृश्य अंकित है, उसमें हाथियो, जलविहं. पर सुन्दर प्रतीकों का प्रयोग हुमा है । प्रद्यावधि जैनकला गमो, मछलियों, कुमुदिनी और पदमों की शोभा निगली के प्रतीको का अध्ययन नहीं हो सका है। मूडविद्री के है । तालाब में स्नान करते हुए दो व्यक्ति-एक गौरवर्ण चन्द्रनाथ चैत्यालय में स्तम्भों पर जो जो प्राकृतिक चित्र और दूसग श्याम वर्ण के चित्रित किये गये है। इसी अकित किये गये हैं, उनमें भी कई प्रतीक है। इनमे गुफा के एक स्तम्भ पर एक नर्तकी का सुन्दर चित्र है, बाह्य माकर्षण, प्रकृति का सादृश्य रमणीयता, कम्पन और इस चित्र में चित्रित नर्तकी की भाव-भंगिमा देखकर नैसर्गिक प्रवाहके साथ प्रतीक-गत भावनाओं का वैशिष्टय लोगों को पाश्चर्यान्वित होना पड़ता है। नर्तकी के भी है। कला की जीवटपना रग, रेखाओं और प्राकृनिकमनीय अगों का सग्निवेश चित्रकार ने बड़ी खूबी के मंकनके साथ प्रतीकोमे पाया जाता है। स्वस्तिक का चिह्न साथ किया है। यह मडोदक चित्र है। सित्तनवासल की स्वयं एक प्रतीक है, चित्रकार जिन रेखामों की वक्राकृति चित्रकारी अजन्ता के समान सुन्दर और अपूर्व है। जैनों प्रस्तुत करता है, उनमे भी कई प्रतीक निहित रहते है।