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मध्य भारत का जैन पुरातत्व
परमानन्द जैन शास्त्री
श्रमण संस्कृति का प्रतीक जैनधर्म प्रागैतिहासिक जैसे कंकाली टीला मथुरा से मिले हैं। ये सभी प्रलंकरण काल से चला पा रहा है, वह बौद्ध धर्म से प्रत्यन्त प्राचीन भारतीय पुसतत्त्व की अमूल्य देन हैं। और एक स्वतंत्र धर्म है। वेदों और भागवत प्रादि हिन्दू
मध्यप्रदेश के पुरातत्त्व पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता धर्म-ग्रन्थों में उपलब्ध जैन धर्म सम्बन्धी विवरणों के
है कि वहां पधिक प्राचीन स्थापत्य तो नहीं मिलते; परन्तु सम्यक परिशीलन से विद्वानों ने उक्त कथन का समर्थन
कलचुरी और चंदेलकालीन सौन्दर्याभिव्यंजक मलकरण किया है। प्राचीन काल में भारत की दो संस्कृतियों के
प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। उससे पूर्व की सामग्री बिरल अस्तित्व का पता चलता है। श्रमण संस्कृति और वैदिक
रूप में पाई जाती है, उस काल की सामग्री प्रायः नष्ट संस्कृति । मोहनजोदारों में समुपलब्ध ध्यानस्थ योगियों की मतियो की प्राप्ति से जैनधर्म की प्राचीनता निर्विवाद
हो चकी है, और कुछ भूमिसात् हो गई है। बौद्धों के सिद्ध होती है। वैदिक युग में प्रात्यों और श्रमणों की
सांची स्तूप और तद्गत सामग्री पुरानी है। विदिशा की परम्परा का प्रतिनिधित्व जैनधर्म ने ही किया था। इस
उदयगिरि की २०वी गुफा में जैनियों के तेवीसवें तीर्थकर यग में जैन धर्म के पादि प्रवर्तक मादि ब्रह्मा, प्रजापति
पाश्र्वनाथ की प्रतिमा सछत्र अवस्थित थी; परन्तु वहां प्रादिनाथ थे, जो 'नाभिरायके पुत्र' के नाम से प्रसिद्ध हैं।
अब केवल फण ही भवशिष्ट है१, मूर्ति का कोई पता नहीं जिनकी स्तुति वेदों में की गई है। इन्हीं आदिनाथ के पुत्र
चलता कि कहां गई। परन्तु प्राचीन सामग्री के संकेत भरत चक्रवर्ती थे जिनके नामसे इस देश का नाम भारतवर्ष
अवश्य मिलते हैं, जिनसे जाना जाता है कि वहां मौर्य पड़ा है, जैनधर्म के दर्शन, साहित्य, कला, संस्कृति पौर
और गुप्त काल के अवशेष मिलने चाहिये। कितनी ही पुरातत्त्व प्रादि का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान
पुरातन सामग्री भूगर्भ में दबी पडी है और कुछ खण्डहरों रहा है। इतिहास में पुरातत्त्व का कितना महत्व है, यह
मे परिणित हुई सिसकियां ले रही है, किन्तु हमारा ध्यान पुरातत्त्वज्ञ भलीभाति जानते हैं। भारतीय इतिहास में
अभी तक उसके समुद्धरण को पोर नहीं गया। मध्यप्रदेश का जैन पुरातत्व भी कम महत्व का नहीं है। जबलपुर के हनुमान ताल के दिगम्बर जैन मन्दिर मे वहां पर अवस्थित जैन स्थापत्य, कलात्मक मलकरण, स्थित एक कलात्मक मूर्ति शिल्प की दृष्टि मे अत्यन्त मन्दिर, मूर्तियां, शिलालेख, ताम्रपत्र और प्रशस्तियों सुन्दर और मूल्यवान है। वैसी मूर्तियां महाकौशल में प्रादि में जैनियों की महत्त्वपूर्ण सामग्री का अंकन मिलता बहत ही कम उपलब्ध होंगी। उसमें कला की सूक्ष्मभावना, है। यद्यपि भारत में हिन्दुनों, बौद्धो और जैनो के पुरातत्त्व उदात्त एवं गम्भीर विचार और बारीक छैनी का पाभ स की प्रचुरता दृष्टिगोचर होती है और ये सभी प्रलंकरण उम के प्रत्येक प्रग से परिलक्षित होता है। इसी तरह अपनी-अपनी धामिकता के लिये प्रसिद्ध है। परन्तु उन देवगढ़ का विष्णु मन्दिर भी गुप्तकालीन कला का सुन्दर सब में कुछ ऐसे कलात्मक प्रलंकरण भी उपलब्ध होते हैं, प्रतीक है. और भी अनेक कलात्मक अलंकरणो का यत्रजो अपने अपने धर्म की खास मौलिकता को लिये हुए हैं। सकेत मिलता है। जो तत्कालीन कला की मौलिक जैनों और बौडों में स्तूप और प्रयागपट भी मिलते हैं। रेन है। इस तरह उक्त तीनों ही सम्प्रदायों की अनेक जैन स्तूप गल्ती से बौद्ध बतला दिये गये हैं। प्रयाग पट भी अपनी खास विशेषता को लिये हुए मिलते हैं, १. इंडियन एण्टीक्वेरी जि० ११ पृ. ३१०