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'जसहरचरित' की एक कलात्मक सवित्र पालिपि
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में कड़े पहिने हुए हैं। उनके बदन पर चोली तथा कमर रहे हैं। सिपाहियों के हाथों में ढाल तलवार है। में लहंगा है। माथे की चोटी काफी बड़ी है। उनके अभयरुचि के एक हाथ में कमण्डलु है लेकिन उसका ललाट पर बोरला हैं जो राजस्थानी वेश-भूषा का पकड़ने वाला भाग ही चित्रित किया गया है। प्रभयमति प्रधान मंग है! सिर पर रंगीन प्रोदनी है। हाथों में के हाथ में सम्भवतः पिच्छिका है। चूड़ियों के अतिरिक्त एक लटकता हुमा प्राभूषण भी है। चित्र न०४ (पत्र सं० २४ पर)-महागज यशोधर उनके पेट का निचला भाग खुला है। और वह दिखाई शयनकक्ष मे है। दो सन्तरी तलवार लिए पहरा दे रहे देता है। प्रत्येक की नाक लम्बी एवं नोकदार है तथा हैं। महाराज बारीक मंगरखी पहिने हुए हैं। शेष वही मांखें अपभ्रंश शैली की हैं। वस्त्र झीने न होकर कुछ वेश-भूषा है । पलंग के पास पहिगन रखा हुआ है। मोटे हैं, जिनसे उनका वदन नही दिखाई देता। गले में चित्र नं०५ (पत्र सं० २५ पर)-यह चित्र कृति बजर बट्टी पहिने हुए हैं और कानों में कुण्डल है। मे रोमाञ्चकारी चित्र है-जिसमें महाराज यशोधर की
पुरुषों की वेश-भूषा में ज्यादा विभिन्नता नहीं है। राणी एक कुष्ठी के पांव पड़ी हुई है। और वह कुष्ठी उनका प्रायः नंगा वदन एव उस पर रंगीन दुपट्टा दिखाई उसकी चोटी पकड़े हुए है। रानी अपने पूरे श्रृंगार में पड़ता है। गले में, हाथों में व बाहों में गहना पहिने हुए है। उसी के पीछे महाराज यशोधर तलवार लिए हुए खड़े हैं । कानों में कुण्डल लटके हुए हैं। वे तीन लांग की हैं। कोढ़ी का रंग नीला एवं डरावना है। एवं उसका धोती पहिने हुए हैं। चित्रों की कलम स्पष्ट एवं बारीक नग्न वदन है । वह एक चबूतरे पर बैठा हुमा है। है। किसी अच्छे कलाकार ने इनको बड़ी मेहनत से चित्र नं.६ (पत्र सं० २९ पर)-नृत्य मण्डली बनाया है। पाण्डुलिपि मे पाये हुए चित्रों में से पाठ राजकुमार के समक्ष नाचती हुई एक नतिका । एक नर्तक चित्रों का परिचय निम्न प्रकार है:
के हाथ में ढोलक एवं एक के हाथ में मंजीरे हैं। नतिका चित्र नं. १ (पत्र ६ पर)-राजा मारिदत्त का राज की वेणी इतनी लम्बी है कि वह मांगन तक पहुँच रही हैं। दरबार लगा हुमा है व नृत्य हो रहा है। इसमे नर्तिका चित्र न. ७ (पत्र सं० ३७ पर)-यज्ञ में पाटे के सहित सभी नर्तक झीने वस्त्र पहिने हुए हैं। सिर पर बने हुए पुरुष के पुतलों का होम करते हुए। जयपुरी पगडियां है। बाकी पाभूषण एवं वेशभूषा वही चित्र नं०८ (पत्र सं० ७२ पर)-मुनि के धर्मोपहै जो ऊपर लिखी हुई है। चित्र 81२॥" माकार देश के लिए जाते हुए राज सवारी। सबसे मागे एक
सनिक है उसके पश्चात् महावत सहित हाथी । मध्य में चित्र नं. २ (पत्र पर)-चंडमारि देवि का चार पौंजस में राजा-रानी बैठे हुए हैं। पीजस को दो पुरुष हाथों वाला चित्र है। नर-मुण्ड की माला चारों ओर कंधे पर लिए जा रहे हैं। पीछे एक हाथी और घोड़ा है। पड़ी हुई है। वह सिंहासन पर बैठी है। सिंह का वाहन चित्र अच्छा है। है। सामने दो भक्त पुरुष हाथ जोड़े खड़े हैं ।
इस प्रकार 'जसहर चरिउ की प्रस्तुत प्रति कला की चित्र नं. ३ (पत्र १० पर)-सिपाही क्षुल्लक- एक अनूठी कृति है, भारतीय चित्रकला की दृष्टि से क्षुल्लिका श्री अभयरुचि एवं अभयमति को लिए हुए जा उसके विस्तृत अध्ययन की प्रावश्यकता है।