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धर्म और संकृति के अनन्य प्रेमी
श्री पं० के० भुजबली शास्त्री
बाबू छोटेलालजी जैनधर्म धौर जैन संस्कृति के अनन्य प्रेमी थे, प्रमुख समाज सुधारक, पुरातत्व, इतिहास तथा साहित्य के विशेषज्ञ, वीरसेवामन्दिर, जैन सिद्धान्त भवन जैन बाला विश्राम, भारतीय ज्ञानपीठ और स्याद्वाद महाविद्यालय श्रादि प्रमुख संस्थानों के हितचितक एवं अनेक बहुमूल्य रचनाओं के रचयिता थे । आपकी कृतियों में खासकर 'विब्लियोग्राफी' सबसे महत्वपूर्ण कृति है । बाबू जी का एक व्यापारी कुल में जन्म होने पर भी वे सरस्वती के सच्चे आराधक रहे | आप पुरातत्त्व के मर्मज्ञ विद्वान मद्रास के श्री टी. एन. रामचन्द्रन से कोई महत्वपूर्ण ग्रन्थ तैयार करा रहे थे, उसका पता लगाना चाहिये ।
बा० छोटेलालजी से मेरा सम्बन्ध १९२४ से था, वह भी घनिष्ठ । प्राप मुझे बहुत मानते रहे, अपने पत्रों में मुझे सदा श्राप 'प्रिय वन्धु' शब्द से हो सम्बोधित करते रहे । बा०जी का विशेष सम्पर्क मुझे बारा मे हुप्रा । जैन सिद्धान्त भवन प्रारा के प्राप बड़े प्रेमी थे। साथ ही साथ स्वर्गीय बा० निर्मलकुमार जी का परिवार आपको बहुत
मानता था । वहाँ के शुभकार्य में भाप नियम से सम्मिलित होते थे। उन दिनों हम लोगों को दो-चार रोज एक साथ रहना हो जाता और वार्तालाप करने का शुभ अपसर मिल जाता था । जब कभी कलकत्ता जाना होता तब बा०जी से मिलना श्रवश्य होता था और भोजन भी उन्हीं के यहाँ होता था । श्रारा छोड़कर मेरे मूडबिद्री आने पर वे मूडबिद्री कई बार प्राए, कारकल वेणूर आदि के बाहुबली मस्तकाभिषेक पर। खासकर धवन आदि ग्रन्थो के ताड़पत्रीय फोटो लेने के लिए आये और उस कार्य को उन्होने बड़े परिश्रम से पूर्ण कराया। विद्वानों पर उनका बड़ा प्रेम था ।
• छोटेलाल जी से मैं बहुत समय से परिचित हूँ । धर्मात्मा साहित्य प्रेमी, पुरातत्व ममंश, गुणीजनों के भक्त और उदार पुरुष थे । श्राप मुझे 'गुरुभाई कहकर सम्बोधित करते थे । आप अच्छे लेखक थे । पुरातत्व की प्रोर उनका विशेष श्राकर्षण था । उन्होंने मेरे पुत्र चि० मोतीराम असिस्टेन्ट फोटू ग्राफीसर फोटू डिबीजन पब्लिकेशन डिवीजन देहली को प्रेरितकर, जयपुर, आमेर, सांगानेर, देवगढ़, खण्डगिरि उदयगिरि, और मूडबिद्री के सिद्धान्तवसदि मन्दिर से धवलादि ग्रन्थों के फोटो उतरवाए थे । उनका विचार एक सुन्दर एल्बम बनाने का
आपका अन्तिम दर्शन मुझे सन् १९६४ में आरा मे हुआ था, जब वे जैनसिद्धान्त भवन के स्वर्ण जयन्ती उत्सव पर पधारे थे । अन्त में मैं स्वर्गीय आत्मा के लिए अपनी श्रद्धाजलि अर्पण करता हूँ, परलोक मे सुखशान्ति की कामना करता हूँ ।
उनकी पूर्व सेवाएं
पन्नालाल जैन अग्रवाल
था, परन्तु वे शारीरिक अस्वस्थता वश उसे पूरा न कर सके। उन्होने वीरसेवामन्दिर की ओर से धवलादि ग्रन्थों का जीर्णोद्धार कराने मे सहयोग दिया था । मेरे पास उनके पत्र सुरक्षित है। वीरसेवामन्दिर चाहे तो उन्हे प्रकाशित कर सकता है। राजगृही श्रीर कलकत्ता मे वीरशासन जयन्ती मनाना उनके ही पुरुषार्थ का कार्य था । उनकी जैन ग्रन्थ सन्दर्भ सूची (जैन विब्लिोग्राफी) महावपूर्ण कृति है । आपकी सेवाएं अपूर्व हैं। मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पण करता हुद्रा परलोक में उनकी श्रात्मा को शान्ति की कामना करता हूँ ।