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तीन दिन का आतिथ्य
डा० नेमिचन्द्र शास्त्री
स्व. श्री बाबू बाबू छोटेलालजी अतिथि-सत्कार के उसका पुराना परिचय हो। हम लोग बाबूजी के प्राग्रह लिए प्रसिद्ध थे। लब्धप्रतिष्ठ और प्रकाण्ड विद्वान् ही से उनके अतिथि बन गये ! नलिन की उनसे विशेप पटने उनके यहाँ पाश्रय नही प्राप्त करते थे, बल्कि मुझ जैसे लगी, दोनों की गापे होने लगीं। उसकी बालसुलभ अल्पज्ञ नवयुवक पण्डित भी। कालेज का ग्रीष्मावकाश हो चेष्टानों ने बाबूजी के हृदय को जीत लिया। जाने पर मेरे परिवार के सदस्यों की इच्छा कलकत्ता मध्याह्नोत्तर भोजन के उपरान्त हम लोग बेलूर मठ परिभ्रमण की हुई। २ जून १९५६ की सन्ध्या को हम देखने गये। माथ में बाबजी भी थे। बाबूजी ने वहां के प्रस्थान कर तीन जून के प्रात:काल एशिया के इस बड़े विद्वान सन्यासी मे मेरा परिचय कराया, पुस्तकालय भी नगर में पहुँच गये । पूर्व व्यवस्था के अनुसार अलीपुर से दिखलाया तथा उनके पलभ्य ग्रन्थों की जानकारी भी दी। श्री साह शीतलप्रसाद जी के यहाँ से गाड़ी स्टेशन पर या मठ की स्थापत्य कला के सम्बन्ध में बाबूजी ने विस्तार गई थी और हम लोग उन्हीं के यहाँ ठहर गये थे। दो- से ज्ञातव्य बाते बतलाई। वापस लौट पाने पर उन्होंने तीन दिनो तक इधर-उधर के दर्शनीय स्थानो को देखने नलिन की प्रतिभा की परीक्षा ली और मुझसे बोलेके उपरान्त हम लोग वेलगछिया मे श्री पाश्वनाथ दि० 'इस बच्चे की शिक्षा की आप पूरी व्यवस्था कीजिए यह जैन मन्दिर के दर्शन करने गये । मन्दिर से बाहर निकलते .बहत होनहार है। उन्होंने उसे खिलौनों के साथ हिन्दी ही थी बा० छोटेलाल जी से भी साक्षात्कार हुमा । कुशल और अंग्रेजी की कई छोटी-छोटी पुस्तके भी दी। क्षेम के अनन्तर जब उन्हे यह मालूम हुमा कि मैं सपरि- रात्रि के पाठ बजे मेरी बाबूजी से चची होने लगी। वार पाया हूँ तो उन्होंने आदेश के स्वर में उलाहना देते मैंने देखा कि कुछ क्षण पहले वह खामी से परेशान थे, हर कहा-"पाप मुझे अपना नहीं समझते, इसीलिए तो किन्तु अत्र चर्चा प्रारम्भ होते ही उनकी खासी शान्त हो अलीपुर में इतनी दूर ठहरे हुए है। अब आप जा नही गई। पूरानव के सम्बन्ध में कई प्रावश्यक बातें बतलाते सकते है, यहीं ठहरना होगा । पाप तो कभी-कभी पा भी हुए उन्होंने कहा-पाप जानते हैं, चैत्यालय का विकास जाते है, पर ये लोग कब आयेंगे? मेग घर विद्वानो के कैमे हुआ ? मुनिये--त्य शब्द 'ची' धातु से निष्पन्न है, हरने के लिए सुनिश्चित अतिथिशाला है। आप लोगों जिसका अर्थ चयन करके गशि-ढेर करना, एक के को घूमने के लिए यही से मैं गाडी की व्यवस्था कर आर एक को लादना है। इसी धातु मे चित्य बना है, डेंगा। विश्वास कीजिए-प्रापको यहाँ तनिक भी कष्ट जिसका अर्थ वेदी है। गनैः शनै इसका सम्बन्ध प्राचार्यों, नही होगा। दर्शनीय स्थानो को दिखाने के लिए मैं पुण्य व्यक्तियो एव पुजनीय महान व्यक्तियो के स्मारक ग्रादमी भी आपको दूंगा। अभी आपको जितने दिन में जुड गया। प्रारम्भ मे चैत्य का सम्बन्ध शवसमाधि से रहना है, मेरे साथ रहिए । पाप से साहित्यिक चर्चा कर रहा है। जवो दुबइल द्वारा अन्वेषण की गई मालावार लेने में मुझे वडी प्रसन्नता होगी। मेरा और आपका की चट्टान में ग्वदी मृतक ममाधि इसी प्रकार का चैत्य मम्बन्ध पाज नया नही है । पुनः हंसकर कहा-आपके है। एशिया माइनर के दक्षिणी समुद्र तट पर लीडिया के प्रिय रसगुल्ले यहाँ भी मिल जायेंगे। इतना कह कर पिनारा और जैयस में जो चट्टानी शवसमाधिया निमित उन्होने मेरे बच्चे नलिनकुमार को गोद में उठा लिया है, वे भारतीय चंत्यों का प्रतिरूप हैं। अतः प्रारम्भ में और उसमे बातें करने लगे। नलिन कुछ ही क्षणो में चैत्य महापुरुपो के अस्थिसचायक समाधि का सूचक था। वेलगच्छिया की वाटिका में उनके साथ घूम पाया और धमणो के मम्पर्क से चत्य शब्द के अर्थ में परिवर्तन इतने ही अल्प समय में इतना घुल-मिल गया, जैसे हुमा और शनैः शनैः यह शब्द पूजागृह के अर्थ में प्रयुक्त