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जीवन सगिनी की समाधि पर संकल्प के सुमन
मेरे हृदय में यह विचार होता है कि इनकी सेवा कभी बीमारी हो जाय । माथे के कार बड़ा भार-सा मालूम नहीं की, अब समय पाया है जब इनको मेरी सेवा की होता है। (बाबूजी की यह प्राशंका निर्मूल नहीं थी। पावश्यकता होगी और मेरा कर्तव्य भी कहता है कि ये पंक्तियां लिखे जाने के थोड़े समय बाद ही दमा की माता का शेष जीवन ठीक से बीत जाय । यद्यपि अन्य बीमागे उन्हें हो गई थी और एग्जिमा तथा दमा की इस मेरे पांच भाई हैं, वे किसी भी प्रकार की कमी न रखेंगे, जोडी ने फिर अन्त समय तक उनका साथ नहीं छोड़ा। पर अपना कर्तव्य भी तो कुछ होता है।
-नीरज) २. दूसरा प्रश्न है व्यापारिक पोर प्राधिक दायित्व जीवन एक भयंकर बोझा मालूम हो रहा है। जिस जो मेरे समक्ष उपस्थित है।
किसी के पास जाने या रहने की इच्छा होती है, सामने ३. तीसरा प्रश्न है शारीरिक अस्वस्थता और शरीर आर्थिक प्रश्न पाता है। बिना मार्थिक व्यवस्था के कोई की प्रतिपालना का | प्रवशिष्ट जीवन निर्वाह किस प्रकार मेरी क्यों परवाह करेगा? लोक-व्यवहार के लिए कुछ होगा? कौन मेरी चिन्ता करेगा कि मुझे कष्ट न हो? करेगे भी तो वह अस्थायी होगी। यद्यपि सभी जगह ऐसे ग्वाना-पीना समय पर मिलता रहे । मैं बीमार हो जाऊं लोग नहीं हैं, तो भी विशेषता प्राजकल ऐसे ही लोगों की नो मुझे हर तरह सम्हाले ।
है । यह बताने की मावश्यकता इसलिए है कि हर काम ४. विवाह करने का तो मैं स्वप्न में भी विचार नहीं मे हर जगह प्रचुर धन की मावश्यकता है। कोई सज्जन कर रहा हूँ और पाज निश्चय करता हूँ कि मैं दूसरा स्वार्थ के लिए धन की अभिलाषा नहीं करेंगे उन्हें अपनी विवाह नहीं करूंगा।
जो झंझटे लगी है, प्राखिर उन झझटों का भी तो निर्वाह ५. अब सामने दो मार्ग है
करना है। (अ) घर में रहते हुए जीवन बिताना ।
____ मैं इतना ज्ञानी नहीं हूँ कि एकाकी जीवन को ज्ञान (ब) घर से बाहर सत्संग में जीवन बिताना। के पासरे सुखपूर्वक व्यतीत कर सकू। प्रारम्भ से जीवन
अभिलाषा यह है कि प्रग किस प्रकार जीवन सुधार ऐसा बीता है कि कभी भी, एक दो दिन के लिए भी, कर अपना कल्याण करूं ? बार बार भविष्य का विचार अकेले रहने का अवसर मुझे नही प्राप्त हुमा । पर इससे उपस्थित होता है । मुझे कौन सहायता करेगा? साथ ही क्या ? अब तो मैं एक दो दिन के लिए नहीं, सारे जीवन माथ अपनी पत्नी की स्मृति से मेरे परिणामों मे अधीरता के लिए एकाकी हो गया हूँ। एकदम एकाकी । नितान्त और हृदय मे पीड़ा का अनुभव होता है। मैं उसे भूलने अकेला। की चेष्टा करता हूँ पर न जाने कैसे वह बार बार याद पर इस एकाकीपन से मैं हारूँगा नहीं। इस रिक्तता पाती है । उसके जीवनकाल मे मुझे न उससे इतना मोह को मैं अपने ढम से भरूंगा। अब पुस्तके मेरा सहारा था और न ही मैं ऐसा समझना था कि उसका कभी होगी और व्यस्तता मेरी चिरसंगिनी । मैं क्या कर सकूँगा वियोग होगा तथा उसके प्रभाव की मुझे इतनी वेदनापूर्ण और क्या नहीं कर सकूँगा यह मैं नहीं जानता, पर सत्संग, अनुभूति होगी।
स्वाध्याय और शोध की दिशा में ही प्रब मन की समस्त अब प्रश्न यह है कि मैं क्या उपाय करू' जिससे सुख, वृत्तियों को बांधना है। शरीर को भी इसी साधना मे गाति, सन्तोष पौर निराकूलतापूर्वक मेरा शेप जीवन खपाना है । गहन व्यस्तता ही इस वेदना से उबार कर व्यतीत हो जाय।
मुझे जीवन-यापन का सहारा दे सकेगी। अभी तुरन्त रह-रहकर मेरा दम घुटने लगता है और इच्छा होती कुछ कार्यों के करने की प्रावश्यकता हैहै कि एकदम खुली जगह और प्रति प्रकाशयुक्त जगह मे १. जितना परिग्रह वह छोड़ गई है, तथा जो एकरहूं। अन्धकारयुक्त या छोटी जगह में, या कमरे में मेरा त्रित हो रहा है, कपड़ा तथा अन्य वस्तुएं, उन्हें हटाना दम घुटने लगता है। बहुत सम्भव है इससे मुझे दमा की और कम करना ।