________________
अनेका
उसके सामने और भी अनेक बाते चित्रपट की तरह स्पष्ट कर देने के बाद भी कभी-कभी केवल अपयशा ही हाथ होती जाएंगी।
लगता है। सामाजिक कार्यकर्ता में इतनी क्षमता होना दक्षिण भारत होकर बैन-धर्म किस तरह लंका तक
चाहिए कि वह यह सब बर्दाश्त कर सके। उन्होंने अपन पहुंचा, यह अनुसन्धान का एक स्वतन्त्र विषय है। बौद्ध
बीवन की एक लम्बी दास्तान सुनायी जिसका यहां लिखा साहित्य भी इस बात की साक्षी देता है कि लंका में बौद्ध
जाना बहुत पावश्यक नहीं लगता, इतनी छोटी सी जगह धर्म के पहुंचने के पूर्व ही वहाँ न-धर्म विद्यमान था।
में लिखा जाना सम्भव भी नहीं, किन्तु उनके उस सारे अशोक के पुत्र पौर पुत्री-महेन्द्र और संघमित्रा जब
कथन का तात्पर्य यही था कि सामाजिक क्षेत्र में कार्य नका में धर्म प्रचारार्थ गये तो वहां उन्होने अपने से पूर्व
करने के लिए व्यक्ति में एक महान मानसिक तैयारी स्थापित निर्ग्रन्थ-सघ को पाया।
होना जरूरी है। समाज के अनेक प्रकार के माक्षेपों को
झेलता हुमा भी व्यक्ति अपने काम में जुटा रहे, इतनी ऐसे ही और भी अनेक प्रसग हैं जिन पर प्रकाश
क्षमता उसमें जरूरी है। अन्यथा वह कार्य कर ही नहीं डाला जाना नितान्त आवश्यक है। यह काम तभी सम्भव
सकता । सामाजिक कार्यकर्ता का पहला संघर्ष समाज के है जब अनेक नई प्रतिभाएं अपनी सारी शक्ति लगाकर
मानस में कूट-कूट कर भरी हुई संकीणं भावना से होता इस कार्य में जुट जाएं।
है, जिससे ऊपर उठकर उसको काम करना है। यदि सामाजिक कार्य और मानसिक तैयारी
कार्यकर्ता यहीं फिसल गया तो समझना चाहिए कि वह सामाजिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन और व्यक्ति- सामाजिक कार्य के योग्य नहीं । नवयुवकों को सामाजिक गत जीवन से सामाजिक जीवन पर जब बात चली तो क्षेत्र में प्रवेश करने के पहले ही अपनी मानसिक स्थिति बाबू छोटेलाल जी ने अपने जीवन के अनेक मधुर और इतनी दृढ़ बना लेना चाहिए कि कितनी ही बड़ी कठिनाई कटु अनुभव सुनाये। वे कह रहे थे
उनके कार्य में क्यों न पाए वे उसका सामना करते हप समाज के लिए सारा जीवन, तन, मन, धन अर्पण काम में जुटे रहें ।
एक अकेला आदमी
मुनि कांतिसागर सारे समाज में जब तक पुरातत्व अन्वेषण को शुषा जैन को ही देखा जो न पुरातत्व विशेषतः खण्डगिरि जाप्रत नहीं होती तब तक मच्छे भविष्य की कल्पना कम उदयगिरि तथा राजगृही प्रावि जंन प्राचीन स्थानों की से कम मैं तो नहीं कर सकता। अतीत को जानने की सगाई और अन्वेषण के लिए तड़पते रहते हैं। वे स्वयं प्रबल माकांक्षा को ही मैं अनागत काल का उन्नत रूप भी न केवल पुरातत्व के प्रेमी है अपितु विद्वान भी हैं। मानता हूँ।
देवों से स्वप्न देखते पाये हैं कि कब जैन पुरातत्व का
संक्षिप्त इतिहास तयार हो। बौड़ते भी वे खूब है। पर कलकत्ता के बिहार में मैंने केवल बाबू छोटेलालबी एक अकेला मादमी कर ही क्या सकता है।