Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ ८.२. मतिज्ञानम् (९) १८५
मविज्ञानं चानेकविधम् , ईहादिभेदात् । उक्तञ्च भगवता"ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पन्ना, सव्वं आभिणिबोहियं " ॥ (नन्दी मति
ज्ञानगाथा २७) छाया-ईहा, अपोहः विमर्शः मार्गणा च गवेषणा।
संज्ञा स्मृतिः मतिः प्रज्ञा सर्वम् आभिनिबोधिकम् ॥ 'आभिणियोहियं' इत्यनेन त्रिकालविषयकं मतिज्ञानमुच्यते तथा-चोक्तं भगवता-"पंचविहं णाणं पण्णत्तं। तंजहा-(१) आभिणिवोहियणाणं, (२) सुयणाणं, (३) ओहिणाण (४) मणपज्जवणाणं (५) केवलणाणं । इति ( नन्दी, १)
(१) ईहाईहाऽपोहादयो मतिज्ञानप्रभेदाः। तत्र-ईहनम्-ईहा। नामजात्यादियहाँ मतिज्ञान का ही प्रसङ्ग है। मतिज्ञान, ईहा आदि के भेद से अनेक प्रकार का है। . भगवान्ने कहा है :
" ईहा, अपोह, विमर्श, मार्गणा, संज्ञा, स्मृति, मति और प्रज्ञा, यह सब आभिनिबोधिक ज्ञान ( मतिज्ञान) है" (नन्दीसूत्र मतिज्ञान गाथा २७)
आमिनिबोधिक ज्ञान का अर्थ है-त्रिकालविषयक मतिज्ञान । भगवान्ने कहा है:- "ज्ञान पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-(१) आभिनिबोधिकज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्ययज्ञान और (५) केवलज्ञान" (नन्दी-सू०१)
(१) ईहाइहा अपोह आदि मतिज्ञान के भेद हैं। नाम और जाति आदि की विशेष મતિજ્ઞાનને જ પ્રસંગ છે, મતિજ્ઞાન ઈહા આદિ ભેદથી અનેક પ્રકારનું છે. ભગવાને युछे :-डा, मपाड, विभश, भार्ग, गवेषा, संज्ञा, स्मृति, भति, मने પ્રજ્ઞા, એ સર્વ આભિનિબંધક જ્ઞાન–મતિજ્ઞાન છે (નંદીસૂત્ર મતિજ્ઞાનગાથા ૨૭) આભિનિધિક જ્ઞાનનો અર્થ છે-ત્રિકાલવિષયક મતિજ્ઞાન, ભગવાને કહ્યું છે કે – "ज्ञान पाय प्रा२नु छ, त मा प्रमाणे (१) मानिनिमाधिज्ञान (२) श्रुतज्ञान, (3) अवधिज्ञान (४) भन:पयज्ञान मने पसज्ञान (नन्ही सू०१)
(१) हाઈહિ તથા અપહ વગેરે મતિજ્ઞાનના ભેદ છે. નામ અને જાતિ આદિની વિશેષ प्र. आ.-२४