Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ सु.५, कर्मवादिभ०
एषु पञ्चसु कारणेसु कषायः प्रधानम् । स च क्रोधमानमायालोभभेदाचतुर्विधः । चतुर्विधोऽप्ययं कषायो रागद्वेषान्तर्गत एवास्ति । उक्तञ्च
__ "दोहिं ठाणेहिं पावकम्मा बंधति, तंजहा-रागेण य, दोसेण य । रागे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-माया य लोभे य । दोसे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-कोहे य माणे य" (स्था० स्थान २ उ०)
बन्धश्चतुर्विधः-प्रकृति-स्थित्य-नुभाव-प्रदेशभेदात् । उक्तश्च
"चउविहे बंधे पण्णत्ते, तंजहा-पगइबंधे१, ठिइबंधे२, अणुभावबंधे३, पएसबंधे४।" (समवायाङ्ग. समवाय४)
इन पांच कारणों में कषाय प्रधान है। क्रोध, मान, माया और लोभ के भेदसे वह चार प्रकार का है। कषाय के ये चारों भेद राग और द्वेष में ही अन्तर्गत हो जाते हैं। कहा भी है
" दो स्थानों से पाप कर्मों का बन्ध होता है। वह इस प्रकार--राग से और द्वेष से । राग दो प्रकार का है-माया और लोभ । द्वेष भी दो प्रकार का है-क्रोध और मान" । (स्था० स्थान २ उ. २)
बन्ध चार प्रकार का है-(१) प्रकृति-बन्ध, (२) स्थिति बन्ध, (३) अनुभाव-बन्ध; और (४) प्रदेश-बन्ध । कहा भी है
"बन्ध चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-(१) प्रकृतिबन्ध, (२) स्थितिबन्ध, (३) अनुभावबन्ध, (४) प्रदेशबन्ध" । ( सम. स. ४)
- આ પાંચ કારણેમાં કષાય પ્રધાન છે- મુખ્ય છે. ક્રોધ, માન, માયા અને લોભના ભેદથી તે ચાર પ્રકારના છે. કષાયના તે ચારે ય ભેદ રાગ–અને શ્રેષમાં સમાઈ જાય છે. કહ્યું છે કે –
બે સ્થાનેથી પાપકર્મોને બંધ થાય છે. તે આ પ્રમાણે છે-રાગથી અને દ્વેષથી, રાગ બે પ્રકાર છે-માયા અને લોભ. ઠેષ પણ બે પ્રકાર છે-ક્રોધ અને भान" (स्था स्थान २-5. २).
म या२ ॥२॥ छ-(१) प्रतिमा, (२) स्थितिमा, (3) मनुमा (४) प्रदेशमध. ४थु ५४ छ
___4°५ या२ ४२ना छे. (१) प्रकृतिमध, (२) स्थितिमाध, (3) अनुसाध, (४) प्रश५५,” (सभ० स. ४)