Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 724
________________ आचाराङ्गसूत्रे छायातत्र खलु भगवता परिज्ञा प्रवेदिता । अस्य चैव जीवितस्य परिवन्दनमाननपूजनाय जातिमरणमोचनाय दुःखप्रतिघातहेतुं, स स्वयमेव त्रसकायशस्त्रं समारभते, अन्यैर्वा त्रसकायशस्त्रं समारम्भयति, अन्यान् वा त्रसकायशस्त्रं समारभमाणान् समनुजानाति, तत्तस्याहिताय, तत्तस्यावोधये ॥ मू० ५॥ टीकातत्र त्रसकायसमारम्भे भगवता-श्रीमहावीरेण परिज्ञा-ज्ञ-प्रत्याख्यानभेदाद् द्विविधा, खलु निश्चयेन प्रवेदिता प्रतियोधिता। कर्मरजःपरिहरणार्थ जीवेन परिज्ञाऽवश्यं शरणीकरणीयेति भगवता प्रतिबोधितमिति भावः । उपभोगद्वारम्लोकः कस्मै प्रयोजनाय त्रसकायमुपमर्दयतीत्याह-'अस्य चैव जीवितस्य' इत्यादि । अस्यैव-अचिरस्थायिनः, जीवितस्य-जीवनस्य सुखार्थम्मांसचर्माद्यर्थम् , तथा-परिवन्दन-मानन-पूजनाय, परिवन्दनं प्रशंसा, तदर्थम् , यथाव्याधादिमृगयादौ, माननं जनसत्कारस्तदर्थम् , यथा-राज्ञः सकाशात् पदकादि टीकार्थ-वसकाय के समारंभ के संबंध में श्री महावीरने ज्ञपरिज्ञा और प्रत्याख्यानपरिज्ञा का उपदेश दिया है । अर्थात् भगवान्ने कहा है कि-कर्मरज को हटाने के लिए जीव को परिज्ञा अवश्य स्वीकार करनी चाहिए। उपभोगद्वारलोग किस प्रयोजन से त्रसकाय की हिंसा करते हैं ? सो कहते हैं-इसी अस्थायी जीवन के सुख के लिए, मांस और चमडी के लिए, तथा प्रशंसा के लिए, जैसे व्याघ्र आदि का शिकार करने में, मानन के लिए, जैसे राजा से पदवी पाने के उद्देश्य से ટીકાર્ય–ત્રસકાયના સમારંભના સંબંધમાં શ્રી મહાવીરે જ્ઞપરિણા અને પ્રત્યાખ્યાનપરિજ્ઞાને ઉપદેશ આપે છે. અર્થાત્ ભગવાને કહ્યું છે કે-કર્મ રજને દૂર કરવા માટે જીવે પરિજ્ઞા અવશ્ય સ્વીકારવી જોઈએ. पमा २લોક શું પ્રજનથી ત્રસકાયની હિંસા કરે છે? તે કહે છે–આ અસ્થિર જીવનના સુખ માટે, માંસ અને ચામડીના માટે, તથા પ્રશંસા માટે. જેમાં કે–વાઘ આદિના શિકાર કરવામાં. માન માટે, જેમ કે–રાજા પાસેથી પદવી મેળવવાના ઉદ્દેશ્યથી જીવતા

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