Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 755
________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य० १ उ. ७ सू. ३ वायुकायोपभोगः ६९५ जानाति अनुमोदयति । तद्-वायुकायसमारम्भणं, तस्य वायुकायसमारम्भणंकुर्वतः कारयितुः अनुमोदयितुश्च अहिताय भवति । तथा-तत् तस्य अबोधयेसम्यक्त्वालाभाय भवति ।। सू० ३॥ येन तु तीर्थङ्करादिसमीपे वायुकायस्वरूपं परिज्ञातं स एवं विभावयतीत्याह'से तं. ' इत्यादि। मूलम्से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय सोचा खलु भगवओ अणगाराणां वा अंतिए, इहमेगेसि णायं भवइ-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए । इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं, वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ ॥ मू० ४ ॥ करते हैं । वायुकाय का यह आरंभ करने बाले, कराने वाले और उसकी अनुमोदना करने वाले को अहितकर होता है तथा अबोधिजनक होता है ॥ सू० ३ ॥ तीर्थंकर आदि के निकट जिसने वायुकाय का स्वरूप समझ लिया है, वह इस प्रकार विचार करता है:-‘से तं.' इत्यादि । मूलार्थ--भगवान् से या उनके अनगारों से सुनकर-समझकर जिसने संयम धारण किया है वह जानता है कि-यह वायुकाय का समारंभ ही ग्रंथ है, यही मोह है, यही मार है, यही नरक है । इसी में लोग गद्ध हो रहे है, क्यों कि नाना प्रकार के शस्त्रों से वायुकाय के समारंभद्वारा वायुशस्त्र का आरंभ करते हुए अन्य अनेक प्रकार के प्राणियों की हिंसा करते हैं ॥ सू० ४ ॥ આરંભ, આરંભ કરવાવાળાને, કરાવનારને અને તેની અનુમોદના આપવાવાળાને मडित४२ थाय छ, तथा समाधिन थाय छे. ॥ सू० 3॥ તીર્થકર આદિના સમીપમાં જેણે વાયુકાયનું સ્વરૂપ સમજી લીધું છે, તે આ प्रमाणे विया२ ४२ छ:-'से तं.' त्याहि. મૂલાથ–ભગવાન પાસેથી અથવા તેમના અણગાર પાસેથી સાંભળી–સમજી ને જેણે સંયમ ધારણ કર્યું છે તે જાણે છે કે આ વાયુકાય સમારંભ જ ધંથ છે. એજ મેહ છે. એજ માર છે. એજ નરક છે, એમાં લકે ગૃદ્ધ થઈ રહ્યા છે, કેમકે નાના પ્રકારના શોથી વાયુકાયના સમારંભદ્વારા વાયુશાસ્ત્રને આરંભ કરતા થકા અન્ય અનેક પ્રકારનાં પ્રાણીઓની હિંસા કરે છે. સૂ૦ ૪.

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