Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 747
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. ७ सू. २ वायुकायाहिंसक हिंसकौ टीका ६८७ वायुकायसमारम्भे पराङ्मुखाः, केचन प्रत्यक्ष लज्जमानाः=परमकरुणयाऽऽर्द्रचित्तया वायुकायसमारम्भपरित्यागिनोऽनागाराः, पृथकू = विभिन्नाः, ज्ञानिनोऽवधिमनःपर्ययकेवलिनः केचित् परोक्षज्ञानिनो भावितात्मानः सन्तीति पश्य । यद्वा-पृथकू=द्रव्यलिङ्गिभ्यः पृथग्भावेन सन्तीति पश्य । इमे वायुकायसमारम्भकरणे भीतास्रस्ता उद्विग्ना त्रिकरण त्रियोगैर्वायुकायसमारम्भपरित्यागिनो विद्यन्ते इति विलोकयेत्यर्थः । एके पुनरन्येतु 'वयम नगाराः स्मः ' इति साभिमानं प्रवदमानाः 'वयमेव वायुकायरक्षणपरा: महाव्रतधारिण:' इति प्रलपन्ता द्रव्यलिङ्गिनः सन्ति, तान् पृथक् पश्य । टीकार्थ — परम करुणा से आई - चित्त होने के कारण वायुकाय के समारम्भ से विमुख, वायुकाय के समारम्भ का सर्वथा त्याग करने वाले अनगार भिन्न है - कोई अवधिज्ञानी कोई मन:पर्ययज्ञानी और कोई केवलज्ञानी हैं, और कोई मतिश्रुतज्ञान के धारक भावितात्मा साधु हैं, उन्हे देखो । अथवा उन्हें द्रव्यलिंगियों से भिन्न वायुकाय का समारम्भ करने में भीत हैं, त्रस्त हैं, उद्विग्न है तथा तीन वायुकाय का समारम्भ करने के त्यागी है । समझो | ये अनगार करण तीन योग से और कोई-कोई 'हम अनगार हैं' इस प्रकार अभिमानपूर्वक कहते हुए, 'हम ही वायुकाय की रक्षा करने वाले पंचमहाव्रतधारी हैं' ऐसा प्रलाप करने वाले द्रव्यलिंगी हैं, उन्हें अनगारों से अलग समझो । टीडार्थ—પરમ કરુણાથી આદ્ર-ચિત્ત હાવાના કારણે વાયુકાયના સમારંભથી વિમુખ, વાયુકાયના સમારંભના સથા ત્યાગ કરવાવાળા અણુગાર જૂદા છે—કોઈ અવધિજ્ઞાની, કાઈ મનઃપયજ્ઞાની અને કાઈ કેવલજ્ઞાની છે, અને ડૅાઈ પતિશ્રુત જ્ઞાનના ધારક ભાવિતાત્મા સાધુ છે, તેને જુએ. અથવા તેને દ્રવ્યલિંગિએથી જૂદા लोो, ते अणुगार वायुभयना समारंभ वामां लीत (जीवा वाजा ) छे, त्रस्त छे, ઉદ્વિગ્ન છે. તથા ત્રણ કરણ ત્રણ ચેગથી વાયુકાયના સમારંભ કરવાના ત્યાગી છે. અને કોઈ-કોઈ ૮ અમે અણુગાર છીએ' આ પ્રમાણે અભિમાનપૂર્વક કહે છે, કે 'અમેજ વાયુકાયની રક્ષા કરવાવાળા પંચમહાવ્રતધારી છીએ. ’ એવા અકવાદ કરનારા દ્રવ્યલિંગી છે. તેને અણુગારેથી જૂદા જાણે.

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