Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचारागसूत्र अलमधिकेन-एवमपि ते प्रलपन्ति-यदि जिनभक्त्युनेकेण साधुरपि नृत्येत्तदा नास्ति दोष इति ।। सू०२ ॥ अथ सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामिनं पाह-'तत्थ खलु.' इत्यादि ।
मूलम्तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिधायहेउं से सयमेव वाउसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वाउसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वाउसत्थं समारंमंते समणुजाणइ, तं से अहियाए, तं से अबोहीए ॥ सू० ३॥
छायातत्र खलु भगवता परिज्ञा प्रवेदिता । अस्य चैव जीवितस्य परि
ज्यादा क्या कहें ! वे यहाँ तक भी बकते है कि-जिनराज की भक्ति में मस्त होकर अगर साधु भी नाचने लगे तो भी कोई दोष नहीं है अर्थात् वह आराधक है ।। सू० २ ॥
सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से कहते है:-'तत्थ खलु.' इत्यादि ।
मूलार्थ-भगवान् ने वायुकाय के आरंभ के विषय में उपदेश दिया है। इसी जीवन के परिवन्दन, मानन, और पूजन के लिए, जन्म-मरण से छुटकारा पानेके लिए, दुःख का नाश करने के लिए लोग स्वयं वायुकायशस्त्र का आरंभ करता है, दूसरों से वायुकायशस्त्र का आरंभ कराता है और वायुकायशस्त्र का आरंभ करने वाले दूसरों की अनुमोदना करता है । यह उसके अहित के लिए और उसकी अबोधि के लिए है ॥ सू० ३॥
વિશેષ શું કહીએ, તે એટલે સુધી પણ કહે છે કે-જિનરાજની ભક્તિમાં મસ્ત થઈને અગર સાધુ પર્ણનાચ કરવા લાગે તો પણ કઈ દેષ નથી અર્થાત્ તે આરાધક છે. રા.
सुधास्वामी स्वाभान ४ छ:-" तत्थ खलु.' त्याहि.
મૂલાથ–ભગવાને વાયુકાયના આરંભના વિષયમાં ઉપદેશ આપ્યો છે. આ જીવનના પરિવંદન, મનન અને પૂજા માટે, જન્મ, મરણથી છુટવા માટે, દુઃખને નાશ કરવા માટે. લેક સ્વયં-પતે વાયુકાયશસ્ત્રને આરંભ કરે છે, બીજા પાસે વાયુકાયશસ્ત્રને આરંભ કરાવે છે. અને વાયુકાયશઅને આરંભ કરવાવાળા બીજાને અનુમોદન આપે छ. तसना (पोताना ) मलित भाटे मन तभनी ममाधिन भाटे छे. ॥३॥