Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचाराङ्गमुत्रे
मूलम् -
सेवेम - अप्पेगे अच्चाए हणंति, अपेगे अजिगाए वहति अप्पे मंसाए वहंति, अप्पे साणियाए वहंति, एवं हिययाए, पित्ताए, बसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, बालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, पहाए, हारूणीए, अट्टीय, अट्ठिमिंजाए, अाए, अण्डा, अपेगे 'हिंसिस मे' त्ति वा वहति अप्पेगे 'हिंसंति मे' त्ति वा वहंति, अप्पेगे 'हिंसिस्संति मे' त्ति वा वहति ॥ ०७ ॥
छाया
तद् ब्रवीमि - अप्येके अचयै घ्नन्ति, अप्येके अजिनाय नन्ति, अप्येके मांसाय घ्नन्ति, अप्येके शोणिताय घ्नन्ति एवं हृदयाय, पित्ताय, वसायै, पिच्छाय, पुच्छाय वालाय, शङ्गाय, विपाणाय, दन्ताय, दंष्ट्रायै, नखाय, स्नायवे, अस्थने, अस्थिमज्जायै, अर्थाय, अनर्थाय, अप्येके 'अवधीपुरस्मा-निति वा घ्नन्ति, अप्येके 'हिंसन्त्यस्मा' निति वा घ्नन्ति, अप्येके अप्येके 'हनिष्यन्त्यस्मा ' -निति वा
घ्नन्ति ॥ ०७ ॥
मूलार्थ - - मैं वह (प्रयोजन) कहता हूँ - कोई अर्चा शरीर के लिए सकाय का विराधना करते है, कोई चर्म - चमडे के लिए घात करते है, कोई मांस के लिए घात करते हैं, कोई रक्त के लिए घात करते है, कोई हृदय के लिए, पित के लिए, चर्बी के लिए पंख के लिए, पूँछ के लिए, बाल के लिए, सींग के लिए, विषाण (सुअर का दांत ) के लिए, दांत (हाथीदांत ) के लिए, दाढों के लिए, नख के लिए, स्नायु के लिए, हड्डी के लिए, मज्जा के लिए, अर्थ के लिए, अनर्थ के लिए - (निरर्थक) कोई 'हमें मारा था' इस भावना से, कोई 'हमें मारता है' इस भावना से, और कोई 'हमें मारेगा' इस भावना से त्रसकाय का घात करते है || सू० ७ ॥
भूदार्थ – हुं हुं छु:-अर्ध अर्था (शरीर) भाटे सायनो घात उरे छे. अर्ध ચામડી માટે ઘાત કરે છે. કેઈ માંસ માટે ઘાત કરે છે. કોઈ રક્ત-લેહી માટે धात ४रे छे. अर्ध हृदय भाटे, पित्त भाटे, थरणी भाटे, यांगो भाटे, पूंछडा भाटे, बाज भाटे, शींगडा भाटे, विषाणु (सूवरना हांत) भाटे, हाथी हांत भाटे, हाढो भाटे, नभ भाटे, स्नायु भाटे, हाडां भाटे, भन्न भाटे, अर्थ भाटे, अनर्थ -(निरर्थ3). अर्ध 'अभने भार्या हुता' में भावनाथी, अर्ध 'अमने मारे छे' थे लावनाथी, भने अर्थ 'अभने भारशे' मा लावनाथी सायनो धात ४रे छे. ॥ सू० ७ ॥