Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 738
________________ ૬૭૮ आचाराङ्गसूत्रे पश्यतीत्यातङ्कदर्शी भवति, स हिताहितविवेककुशलवाद् अहितम् = अशुभकरं वायुकायसमारम्भणमस्तीति ज्ञात्वा, एजस्य = एजतीत्येजः कम्पनशीलत्वाद् वायुः, तस्य, जुगुप्सायां = निन्दायां सेवनपरिवर्जने समारम्भनिवृतौ इति यावत्, प्रभुः=समर्थो भवति । जुगुप्सा, संयमना, अकरणा, वर्जना, व्यावर्तना, निवृत्तिरित्येकार्थाः । अयमाशयः-वायुकायसमारम्भकरणे शारीरं मानसं च सर्वमेव दुःखं मयि समापद्येत, तस्मादिदमातङ्क जनकत्वादहितमिति विज्ञाता, तत्सेवनलक्षणसमारम्भपरिहरणे समर्थो भवतीति । यः अध्यात्मम्=आत्मनीति अध्यात्मम् स्वात्मगतं सुखं दुःखं वेत्यर्थः, हित-अहित के विवेक में कुगल होने से वायुकाय से आरम्भ को अहितकर समझकर वायु के आरम्भ का त्याग करने में समर्थ होता है । मूल में आये हुए जुगुप्सा ( दुगुछा ) गन्द के कई अर्थ होते है । जैसे - संयमन, अकरण ( न करना), वर्जन ( त्यागना), व्यावर्त्तन ( हटना ) और निवृत्ति (त्याग) । आशय यह है- 'वायुकाय का आरम्भ करने से मुझे शारीरिक और मानसिक सभी दुःख प्राप्त होंगे अतः यह आरम्भ अतंकजनक होने के कारण अहितकर है' । ऐसा जानने वाला उसके सेवनरूप आरम्भ के त्याग में समर्थ होता है । जो अध्यात्म को अर्थात् अपने आत्मा में स्थित सुख-दुःख को जानता है થનારૂ દુઃખ આંતક કહેવાય છે, અને એને જોવાવાળા આત કદી છે. તે હિતઅહિતના વિવેકમાં કુશળ હોવાના કારણથી વાયુકાયના આર ંભને અહિતકર સમજીને वायुना आरंभने त्याग श्वामां समर्थ होय छे. भूसभां आवे 'दुर्गुछणा - जुगुप्सा' शब्दना ऐटसाय अर्थ थाय छे. नेम :- संयमन, अणु - ( नहि ४२ ) वन, (त्यागवु) व्यावर्त्तन, ( उठवु) भने निवृत्ति (त्याग). આશય એ છે કે વાયુકાયના આરંભ કરવાથી મને શારીરિક અને માનસિક સર્વ દુઃખ પ્રાપ્ત થશે; એ માટે એ આરભ આતંકજનક હોવાના કારણે અહિતકર છે.' એ પ્રમાણે જાણવાવાળા એના સેવનરૂપ આરંભના ત્યાગમાં સમ હોય છે. જે અધ્યાત્મને અર્થાત્ પેાતાના આત્મામા સ્થિત સુખ-દુઃખને જાણે છે, તે ખાત

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