Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचारचिन्तामणि-टीका अध्य०१ उ. ५ .५ वनस्पतिकायहिंसाकारणानि ६२७
अपरञ्च-उमास्वातिवाचककृतप्रकरणे- .. 'मध्याह्न कुसुमैः पूजा' इति । 'गन्धवासाक्षतैः स्रग्भिः ' इति । " 'प्रधानैश्च फलैः पूजा' इत्यादि । किञ्च" न शुष्कैः पूजयेदेवं, कुसुमैर्न महीगतैः।।
न विशीर्णदलैः स्पृष्टै, न शुभै विकासिभिः " ॥१॥ ‘न शुष्कैः पूजयेद्देवं कुसुमैर्न महीगतैः' इत्यनेन 'आर्दै स्रोटि तैश्च कुसुमैदैवं पूजयेत् '-इत्यर्थोऽवगम्यते । अहो ! कीदृशो महासावधोपदेशस्तेषाम् ।
एवं देवमन्दिरादौ कदलीस्तम्भादिरोपणेन, अशोकादिवृक्षपत्रैर्वन्दनपञ्चाशकवृत्ति उमास्वातिकृत प्रकरण में कहा है
"मध्याह्न में फूलों से पूजा की जाती है । " "गंध, वास और अक्षत से तथा मालाओं से पूजा होती है । " उत्तम फलों से पूजा की जाती है " इत्यादि । और भी कहा है--
"सूखे, जमीन पर गिरे हुए, टूटी पँखुडीवाले, छुए हुए, खराब और विना खिले फूलों से पूजा नहीं करनी चाहिए"।
'सूखे और जमीन पर गिरे हुए फूलों से पूजा नहीं करनी चाहिये ' इसका अभिप्राय यह हुआ कि ताजे और तोडे हुए फूलों से पूजा करनी चाहिये अरेरे ! उनका वह कैसा सावध उपदेश है।
इस प्रकार देवमंदिर आदि में कदलीस्तंभ खडा करके, अशोक वृक्ष के पत्तों से પંચાશકવૃત્તિ ઉમાસ્વાતિકૃત પ્રકરણમાં કહ્યું છે–
મધ્યાહૂનમાં ફૂલવડે પૂજા કરવામાં આવે છે.” “ગંધ, વાસ અને અક્ષતથી तथा भाणायाथी भूल थाय छे.' त्तम गाथी पूत ४२वामां भाव छ. 'छत्याल બીજું પણ કહ્યું છે કે –
"सूi, मीन ५२ भरी ५i, रेनी ५iमडी तुटरी गाय, २५श रामेसां, ખરાબ અને ખિલ્યા વિનાનાં ફૂલથી પૂજા નહિ કરવી જોઈએ. » સૂકાં અને જમીન પર ખરી પડેલાં ફૂલે વડે પૂજા ન કરવી જોઈએ. આને અભિપ્રાય એ થયો કે લીલાં અને તાજા ડેલાં ફૂલેથી પૂજા કરવી જોઈએ, અરેરે! તેઓને આ સાવદ્ય ઉપદેશ કે છે ?
આ પ્રમાણે દેવમંદિર આદિમાં કેળના સ્થંભ ઉભા કરીને અશોકવૃક્ષનાં પાંદડાંથી