Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचारचिन्तामणि-टीका अध्य. १ उ. ५ सू. १ वनस्पतिमरूपणा ५९७
गुच्छा अनेकविधाः-आढकी-वृन्ताकी-तुलसी-पिप्पलीप्रभृतयः । गुल्माःइस्वस्कन्धबहुकाण्डपत्रपुष्पफलोपेताः, तेऽनेकविधाः-सेरिका-नवमालिका-कोरण्टकबन्धुजीवकादयः । लता अनेकविधाः-पद्मलता-नागलताऽशोकलताचम्पकलतादयः । यस्य वनस्पतेस्तिर्यक् तथाविधाः शाखाः प्रशाखा वा न प्रसृताः सा लतोच्यते ।। ____वल्ल्योऽनेकविधाः-पुष्पफली-कूष्माण्डी-कालिङ्गी-तुम्बी- त्रपुपी-कोशातकी -पटोलादयः । पर्वगा अनेकविधाः-इक्षु-वंश-नलवंश-वेतसप्रभृतयः । तृणानिअनेकविधानि-कुशदूर्वादीनि । वलयानि-ताल-तमाल-केतकी-कदली-कन्दल्या
गुच्छ अनेक प्रकार के है । जैसे-अरहर वृन्ताकी, तुलसी, पिप्पली आदि । जिनका तना छोटा हो, कांड बहुत हो और जो पत्तो, फूलों और फलो से युक्त हों उन्हे गुल्म कहते है । वे भी कई प्रकार के हैं । यथा--सेरिका, नवमालिका, कोरण्टक, बन्धुजीवक वगैरह । लताएँ भी अनेक प्रकार की है। जैसे-पद्मलता, नागलता, अशोकलता, चम्पकलता आदि । जिस वनस्पति की तिरछी अथवा खास तरह की शाखाएँ-प्रशाखाएँ नहीं फैलतीं वह लता कहलाती है।
वल्ली के भी अनेक भेद है । जैसे-पुष्पकली, कूष्माण्डी, कालिंगी, तुम्बी, त्रपुषी, (ककडी) कोशातकी तथा पटोलादि । पर्वग भी अनेक प्रकार के है। जैसे-इक्षु, (सेलरी) वंश, (वास) नलवश, वेत आदि । कुश और दूब आदि तृण अनेक प्रकार के होते है। ताल, तमाल, केतकी, कदली, कन्दली आदि वलय
गु२७ मने ना छे. व डे-तुवेर, gralsी, तुलसी, पिसी, मा. જેના થડ નાના હેય, કાંડ બહુજ હાય અને જે પત્તાં-ફૂલ અને ફળેથી યુક્ત હોય तत शुद्धम ४९ . ते ५५ घर प्रा२ना छे. भ-से२ि४ा, नवभाति, आरट, બંધુજીવક વગેરે, લતાઓ પણ અનેક પ્રકારની છે. જેવી રીતે કે–પદ્મલતા, નાગલતા, અશકતતા, ચમ્પકલતા આદિ. જે વનસ્પતિની તિરછી અથવા ખાસ તરહની શાખાઓ-પ્રશાખાઓ ફેલાતી નથી તે લતા કહેવાય છે.
१दीन ५५] मने मे छ. रेवी शत पु५५सी, भांडी, अहिंसा, तुम्मा, धुषी, Audsी तथा पटोदाहि. प ५Y मने प्रारना 2. भ-शेरी, qांस, નલવંશ ત આદિ. કુશ-દાભડે અને દબ–ધ આદિ તૃણ અનેક પ્રકારનાં હોય છે. तास, तमासा, ती, ४६सी-3, ४.१ली माहिन सय उपाय छे. तसीय, (diaent)