Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
आचाराजसंत्रे तत्र सूक्ष्माः द्विविधाः-पर्याप्ता अपर्याप्ताश्च, ते कज्जलकूपिकावत् सर्वलोकव्यापिनः।
बादरा अपि द्विधा-पर्याप्तापर्याप्तभेदात् । तत्र वादराः पर्याप्ता अपर्यास्ताच लोकस्यैकदेशे पृथिव्यष्टकाधोऽधःपाताल-भवन-नकरप्रस्तरादौ सन्ति । ते विद्विधाः श्लक्ष्ण-खरभेदात् । तत्र श्लक्ष्णा वादरपृथिवी सप्तधाकृष्णनील-लोहित-पीत-शुक्ल-पण्डु-पनकभेदात् । खरवादरपृथिव्यास्तु चत्वारिंशद् (४०) भेदाः, तथाहि
____ (१)शुद्धपृथिवी, (२)शर्करापृथिवी, (३)वालुकापृथिवी, (४)उपलः, (५)शिला, (६)लवणः,(७)ऊषः (८)अयः, (९)ताम्रः, (१०)त्रपुः, (११)सीसकम्, (१२)रूप्यम्, (१३)सुवर्णम्, (१४)वज्रः, (१५)हरितालः (१६)हिङ्गलका, (१७)मनःशिला,
सूक्ष्म जीव भी दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । ये जीव काजल की कुप्पी के समान सम्पूर्ण लोक में भरे हुए हैं।
बादर भी पर्याप्त और अपर्याप्त-दो प्रकार के हैं। ये जीव लोक के एक देश में हैं । इन के दो भेद हैं-'लक्ष्ण और खर । श्लदणबादरपृथ्वी के सात भेद हैं-कृष्ण नील लोहित (लाल) पीत शुक्ल पाण्डु और पनक खरबादर पथ्वी के चालीस भेद हैं, वे इस प्रकार
___ (१) शुद्ध-पथिवी, (२) शर्करा-पथिवी, (३) बालका-पथिवी, (४) उपल, (५) शिला, (६) लवण-नमक, (७) ऊष-क्षार, (८) लोहा, (९) तांबा, (१०) रागा, (११) सीसा, (१२) चांदी, (१३) सोना, (१४) वज्र, (१५) हरिताल, (१६) हींगल,
સૂફમ જીવ પણ બે પ્રકારના છે. પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત-જીવ કાજળની કુખીના સમાન સંપૂર્ણ લેકમાં ભરેલા છે.
બાદર પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એમ બે પ્રકારના છે. એ જીવ લેકના એક દેશમાં છે. તેના બે ભેદ છે. સ્લણ અને ખર, શ્વણ બાદર પૃથ્વીના સાત से छे. gy, नीस, सहित (Ana) पीत, शुसी, पड भने यन. २-माहर પૃથ્વીના ચાલીસ ભેદ છે–તે આ પ્રમાણે છે –
(१) शुद्ध पृथिवी; (२) शई। पृथिवी, (3) वायु पृथिवी, (४) S५८, (५) शिक्षा, (6) aag-नम, (७) 6ष-क्षार, (८) , (6) ३iमा, (१०) रागा-Bene, (११) सीसा, (१२) यांडी, (१३) सोना, (१४) 400, (१५) उरतात, (१६) डीशुख,