Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आंचारागसत्रे (७) गोत्रकर्म द्विविधम्-उच्चनीचभेदात् । तत्रउच्चगोत्रं-देश-जाति-कुलस्थान-मान-सत्कारै-श्वर्याद्युत्कर्षजनकम् । तद्विपरीतं नीचगोत्रम्-अनार्यदेशचाण्डालादिजातिदास्य-निवर्तकम् ।
(८) अन्तरायकर्म-पञ्चविधम्-दान-लाभ-भोगो-पभोग-वीर्यान्तरायभेदात् ।
एवं च सर्वसंकलनेनाष्टविधकर्मणामुत्तरप्रकृतिसंख्या अष्टचत्वारिशदधिकशतं (१४८) भवन्ति ।
कर्मक्षयविचारःज्ञानक्रियाभ्यां कर्मक्षयो भवति । उक्तषड्जीवनिकायानां यथार्थ
(७) गोत्रकर्म दो प्रकार का है-उच्चगोत्र और नीचगोत्र । उच्चगोत्र से देश, जाति, कुल, स्थान, मान, सत्कार, ऐश्वर्य आदि का उत्कर्ष उत्पन्न होता है। नीचगोत्र इस से विपरीत है। इस से अनार्य देश, चाण्डाल आदि जाति और दासता उत्पन्न होती है।
(८) अन्तराय कर्म के पांच भेद है-दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, और वीर्यान्तराय ।
इस प्रकार सबका योग करने पर आठों कर्मों की उत्तरप्रकृतियाँ एक सौ अडतालीस (१४८) होती है।
कर्मक्षय का विचार ज्ञान और क्रिया से कर्मों का क्षय होता है । पूर्वोक्त षड्जीवनिकाय के वास्तविक
(७) गर्भ में प्रानुछ-उस्यगात्र मने नायगात्र. न्यगात्रथी देश, गति, કુલ, સ્થાન, માન, સત્કાર, અશ્વર્ય આદિને ઉત્કર્ષ ઉત્પન્ન થાય છે. નીચ ગોત્ર તેનાથી વિપરીત છે. તેનાથી અનાર્ય દેશ, ચાંડાલ આદિ જાતિ અને દાસપણું વગેરે ઉત્પન્ન થાય છે.
અંતરાયકર્મના પાંચ ભેદ છેલ્ટાનાન્તરાય, લાભાન્તરાય, ભેગાન્તરાય, ઉપભેગાન્તરાય અને વીર્યાન્તરાય.
આ પ્રમાણે સર્વને ચોગ કરતાં આઠ કર્મોની ઉત્તરપ્રકૃતિએ એકસે અડતાदीस (१४८) थाय छे.
भक्षयना विन्यारજ્ઞાન અને ક્રિયાથી કને ક્ષય થાય છે. પૂર્વોક્ત પરજીવકાચના વાસ્તવિક