Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ सू.५ आत्मवादिम०
आत्मनः स्वरूपम्आत्मनः स्वरूपं तावदुच्यते
आत्मा-(१)-जीवः (२)-नित्यः (३)-चेतनावान् , (४)-उपयोगवान् , (५)-परिणामी, (६)-प्रभुः, (७)-कर्ता, (८)-साक्षाभोक्ता, (९)-स्वशरीरपरिमाणः, (१०)-अमूर्तः, (११)-प्रतिशरीरं भिन्नः, (१२)-पौगलिककर्मसंयुक्तः, (१३)-ऊर्ध्वगतिशीलश्च ।
तत्राऽऽत्मनो जीवत्वादिस्वरूपं निरूप्यते
(१) जीवत्वनिरूपणम्अयमात्मा निश्चनयेन सत्ता-चैतन्य-ज्ञानादिरूपैः शुद्धपाणैः, तथा
आत्मा का स्वरूपअब आत्मा का स्वरूप कहते है:
आत्मा-(१)-जीव है, (२)-नित्य है, (३)-चेतनावान् है, (४)-उपयोगवान् है, (५)-परिणामी है, (६)-प्रभु है, (७)-कर्ता है, (८)-साक्षात् भोक्ता है, (९)-अपने शरीर के बराबर है, (१०)-अमूर्त है, (११)-प्रत्येक शरीर से भिन्न है, (१२)-पौगलिक कर्मों से युक्त है, और (१३)-ऊर्ध्वगमन स्वभाववाला है ।
उन में अब आत्मा के जीवत्वादि स्वरूप का निरूपण करते है- .
(१) जीवत्व का निरूपणआत्मा निश्चयनय से सत्ता चतन्य और ज्ञान आदिरूप शुद्ध प्राणों से, तथा
આત્માનું સ્વરૂપહવે આત્માનું સ્વરૂપ કહે છે–
मात्मा-(१) १ छ, (२) नित्य छ, (3) येतनात छे, (४) उपयोगात छे, (५) परिणामी छे, (6) प्रभु छ, (७) sी छे, (८) साक्षात् लोता छ, (6) પિતાના શરીર બરાબર છે, (૧૦) અમૂર્ત છે, (૧૧) પ્રત્યેક શરીરમાં ભિન્ન ભિન્ન छे, (१२) पौदामि थी युत छ, मने (23) मन स्वभाव! छे. તેમાં આત્માના જીવત્યાદિ સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે –
(१) १५नु निरूपशुઆત્મા નિશ્ચયનયથી સત્તા, ચિતન્ય અને જ્ઞાન આદિપ શુદ્ધ પ્રાણથી, તથા प्र. आ. ३०