Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों = ग्रन्थ-सूची = [ भाग ३] [ जयपुर के श्री दिगम्बर जैन मन्दिर दोशन यधीचन्दजी एवं दिगम्बर जैन मन्दिर ठोलियों के शास्त्र भण्डारों के ग्रन्थों की सूची ] सम्पादक:-- कस्तूरचन्द कासलीवाल एम. ए., शास्त्री अनूपचन्द न्यायतीर्थ माहित्यरत्न, प्रकाशक :-- बधीचन्द गंगवाल मन्त्री :प्रबन्धकारिणी कमेटी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी महावीर पार्क रोड़, जयपुर. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. प्रकाशकीय 2. ३. विषय प्रस्तावना सिद्धांत एवं चर्चा धर्म एवं आचार शास्त्र अध्यात्म एवं योग शास्त्र न्याय एवं दर्शन पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान पुराण काव्य एवं चरित्र कथा एवं रासा साहित्य व्याकरण शास्त्र कोश एवं छत्र शात्र नाटक लोक विज्ञान सुभाषित एवं नीति शास्त्र स्तोत्र ज्योतिष एवं निमित्तज्ञान शास्त्र युर्वेद गणित ★ विषय सूची रस एवं अलंकार स्कुट एवं अवशिष्ट रचनायें गुटके एवं संग्रह प्रन्थ ग्रन्थानुक्रमणिका ४. ५, ग्रन्थ प्रशस्त्रियों की सूची ६. लेखक प्रशस्तियों की सूची ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार ७. ८. शुद्धाशुद्धिपत्र दर्जी के मन्दिर के प्रन्थ पृष्ठ १---२२ २३–३८ ३८-४६ ४६४६ ४६- ६३ ६३-६७ ६७-६८० ८१. म ܒ ८६-६२ ६२-६४ ६४-१०० १००-१०६ १६८-१७४ ११०-१६७ 1 1 1 पृष्ठ संख्या श्र १ टोलियों के मन्दिर के ग्रन्थ पृष्ठ १७५ – १८२ १८२ - १६० १६१-१६५ १६६-१६७ १६७ २०६ २२२-२२४ २०६२२१ २२४२२६ ३३०–२३१ २३२–२३३ २३३-२३४ २३४ २३५—२३७ २३८–६४४ २४५ – २४६ २४६–२४७ २४८ २४८-२५२ २५२-२५८ २५८-३१४ ३१५ – ३४४ ३५० – ३५३ ३५४-३५५ ३५६ – ३७६ ३७ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन शाम्ब भए द्वारों के अन्धी के नीचे ऊपर लगाये जाने वाले कलात्मक पुट्ठों के चित्र CURIO GAVetel, Musipur .. A . . जयपुर के चौधरियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार का एक कलात्मक पुट्टा जिस पर चांदी के नागं से काम किया गया है। वंजाबम निस्वतनासम्म यो प्रनारिलकममनकोनको नानकाय गरिक मानएनयावास कोमिकामसेबलकारागारकावनिमोनायक निशि MOभित्रमा बनावकलको महानतयोमानुभवावजोग बमैं तो भने इसमपानिजगलकोतारजापतिस्तान जनजामालाई हानमारगरामधासमत्ररएकलनमोररूपरभातोयममा जयपुर के बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत महा पं० टोडरमलजी द्वारा लिखित 'मोक्षमार्ग प्रकाश' का चित्र । : : . 5 . .:.. ... ..." +M. NP R ....: 124tM .. R . .... .. NER ... . ..32 INESS COLOR womemaya .'. wiposts पररररररारमा सरसरमा a akh EARS जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार का एक पुट्ठा जिस पर मिले हर फूलों का जाल बिछा हुआ है । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय श्री महावीर प्रन्थमाला का यह सातवां पुष्प है तथा राजस्थान के जैन ग्रन्थारों की मन्थ सूची का तीसरा भाग है जिसे पाठकों के हाथों में देते हुये बड़ी प्रसन्नता होती है। प्रन्थ सूची का दूसरा भाग सन् १६५४ में प्रकाशित हुआ था। तीन वर्ष के इस लम्बे समय में किसी भी पुस्तक का प्रकाशन न होना अवश्य खटकने वाली बात है लेकिन जयपुर एवं अन्य स्थानों के शास्त्र भण्डारों की छान बीन तथा सूची बनाने आदि के कार्यों में व्यस्त रहने के कारण प्रकाशन का कार्यं न हो सका । सूची के इस भाग में जयपुर के दि० जैन मन्दिर बधीचन्दजी तथा ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भरडारों के ग्रन्थों की सूची दी गयी है। ये दोनों ही मन्दिर जयपुर के प्रमुख एवं प्रासेद्ध मन्दिरों में से है । दोनों भण्डारों में कितना महत्वपूर्ण साहित्य संग्रहीत है यह बताना तो विद्वानों का कार्य है किन्तु मुझे तो यहाँ इतना ही उल्लेख करना है कि बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार तो १८ वीं शताब्दी के सर्व प्रसिद्ध विद्वान् टोडरमलजी की साहित्यिक सेवाओं का केन्द्र रहा था और आज भी उनके पावन हाथों से लिखी हुई मोक्षमार्गप्रकाश एवं आत्मानुशासन की प्रतियां इस भण्डार में संग्रहीत हैं। टोलियों के मन्दिर के शास्त्र मण्डार में भी प्राचीन साहित्य का अच्छा संग्रह है तथा जयपुर के व्यवस्थित भण्डारों में से है । इस तीसरे भाग में निर्दिष्ट भण्डारों के अतिरिक्त जयपुर, भरतपुर, कामां, डीग, दौसा, मौजमाबाद, बसवा, करौली, बयाना आदि स्थानों के करीब ४० भण्डारों की सूचियां पूर्ण रूप से तैय्यार हैं जिन्हें चतुर्थ भाग में प्रकाशित करने की योजना है । ग्रन्थ सूचियों के अतिरिक्त हिन्दी एवं अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य भी चल रहा है तथा जिनमें से कवि सधारू कृत प्रय ुम्नचरित, प्राचीन हिन्दी पद संग्रह, हिन्दी भाषा की प्राचीन रचनायें, महाकवि नयनन्दि कृत सुदंसणचरिउ एवं राजस्थान के जैन मूर्त्तिलेख एवं शिलालेख आदि पुस्तकें प्रायः तैय्यार हैं तथा जिन्हें शीघ्र ही प्रकाशित करवाने की व्यवस्था की जा रही है। हमारे इस साहित्य प्रकाशन के छोटे से प्रयत्न से भारतीय साहित्य एवं विशेषतः जैन साहित्य को कितना लाभ पहुँचा है यह बताना तो कुछ कठिन है किन्तु समय समय पर जो रिसर्च स्कालर्स जयपुर के जैन भरडारों को देखने के लिये आने लगे हैं इससे पता चलता है कि सूचियों के प्रकाश में थाने से जैन शास्त्र भण्डारों के अवलोकन की ओर जैन एवं जैनेतर विद्वानों का ध्यान जाने लगा है तथा वे खोजपूर्ण पुस्तकों के लेखन में जैन भण्डारों के प्रन्थों का अबलोकन भी आवश्यक समझने लगे हैं । सूचियां बनाने का एक और लाभ यह होता है कि जो भण्डार वर्षों से बन्द पड़े रहते हैं वे भी खुल जाते हैं और उनको व्यवस्थित बना दिया जाता है जिससे उनसे फिर सभी लाभ उठा सकें । यहाँ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम समाज से एक निवेदन करना चाहते हैं कि यदि राजस्थान अथवा अन्य स्थानों में प्राचीन शास्त्र भण्डार हों तो वे हमें सूचित करने का कष्ट करें । जिससे हम यहां के भण्डारों की प्रन्थ सूची तैयार करवा सके । तथा उसे प्रकाश में ला सकें। क्षेत्र के सीमित साधनों को देखते हुये साहित्य प्रकाशन का भारी कार्य जल्दी से नहीं हो रहा है इसका हमें भी दुःख है लेकिन भविष्य में यही आशा की जाती है कि इस कार्य में और भी तेजी श्रावेगी और हम अधिक से अधिक ग्रन्थों को प्रकाशित कराने का प्रयत्न करेंगे। अन्त में हम बधीचन्दजी एवं ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र मण्डार के व्यवस्थापकों को धन्यवाद ढ़िये बिना नहीं रह सकते जिन्होंने हमें शास्त्रों की सूची बनाने एवं समय समय पर ग्रन्थ देखने की पूरी सुविधाएं प्रदान की है। जयपुर वधीचन्द गंगवाल ता०१५-६-१७ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना राजस्थान प्राचीन काल से ही साहित्य का केन्द्र रहा है। इस प्रदेश के शासकों से लेकर साधारण जनों तक इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया है। कितने ही राजा महाराजा स्वयं साहित्यिक थे तथा साहित्य निर्माण में रस लेते थे। उन्होंने अपने राज्यों में होने वाले कवियों एवं विद्वानों को आश्रय दिया तथा बड़ी बड़ी पदवियां देकर सम्मानित किया। अपनी अपनी राजधानियों में हस्तलिखित प्रथ संग्रहालय स्थापित किये तथा उनकी सुरक्षा करके प्राचीन साहित्य की महत्त्वपूर्ण निधि को नष्ट होने से बचाया। यही कारण है कि आज भी राजस्थान में कितने ही स्थानों पर विशेषतः जयपुर, अलवर, बीकानेर आदि स्थानों पर राज्य के पोथीखाने मिलते हैं जिनमें संस्कृत, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा का महत्वपूर्ण साहित्य संग्रहीत किया हुआ है। यह सब कार्य राज्य-स्तर पर किया गया । किन्तु इसके विपरीत राजस्थान के निवासियों ने भी पूरी लगन के साथ साहित्य एवं साहित्यिकों की उल्लेखनीय सेवायें की हैं और इस दिशा में ब्राह्मण परिवारों की सेवाओं से भी अधिक जैन यतियों एवं गृहस्थों की सेवा अधिक प्रशंसनीय रही है। उन्होंने विद्वानों एवं साधुओं से अनुरोध करके नवीन साहित्य का निर्माण करवाया। पूर्व निर्मित साहित्य के प्रचार के लिये ग्रंथों की प्रतिलिपियां करवायी गयी तथा उनको स्वाध्याय के लिये शास्त्र भरडारों में विराजमान की गयी। जन साधारण के लिये नये नये ग्रंथों की उपलब्धि की गयी, प्राचीन एवं अनुपलब्ध साहित्य का संग्रह किया गया तथा जीर्ण एवं शीर्ण प्रथों का जीर्णोद्धार करवा कर उन्हें नष्ट होने से बचाया। उधर साहित्यिकों ने भी अपना जीवन साहित्य सेवा में होम दिया। दिन रात वे इसी कार्य में जुटे रहे। उनको अपने खान-पान एवं रहन-सहन की कुछ भी चिन्ता न थी । महापंडित टोडरमलजी के सम्बन्ध में तो यह किम्वदन्ती है कि साहित्य - निर्माण में व्यस्त रहने के कारण ६ मास तक उनके भोजन में नमक नहीं डाला गया किन्तु इसका उनको पता भी न लगा । ऐसे विद्वानों के कारण ही त्रिशाल साहित्य का निर्माण हो सका जो हमारे लिये आज अमूल्य निधि है । इसके अतिरिक्त कुछ साहित्यसेवी जो अधिक विद्वान् नहीं थे वे प्राचीन ग्रंथों की प्रतिलिपियां करके ही साहित्य सेवा का महान पुण्य उपार्जन करते थे | राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में ऐसे साहित्य सेवियों के हजारों शास्त्र संग्रहीत है। विज्ञान के इस स्वर्णयुग में भी हम प्रकाशित ग्रंथों को शास्त्र भण्डारों में इसलिये संग्रह करना नहीं चाहते कि उनका स्वाध्याय करने वाला कोई नहीं है किन्तु हमारे पूर्वजों ने इन शास्त्र भरडारों में शास्त्रों का संग्रह केवल एक मात्र साहित्य सेवा के आधार पर किया था न कि स्वाध्याय करने वालों की संख्या को देख कर। क्योंकि यदि ऐसा होता तो आज इन शास्त्र भण्डारों में इतने वर्षों के पश्चात भी हमें हजारों की संख्या में हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहीत किये हुये नहीं मिलते। 1 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन संघ की इस अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय साहित्य सेवा के फलस्वरूप राजस्थान के गांवों, करबों एवं नगरों में प्रथ संग्रहालय स्थापित किये गये तथा उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण का सारा भार उन्हीं स्थानों पर रहने वाले जैन श्रावकों को दिया गया । कुछ स्थानों के भण्डार भट्टारकों, यतियों एवं पांड्यों के अधिकार में रहे ! ऐसे माहार वटाम्बर जैन समाज में अधिक है। राजस्थान में आज भी करीब ३. गांय, करबे तथा नगर प्रादि होंगे जहाँ जैन शास्त्र संग्रहालय मिलते हैं । यह तीन सौ की संख्या स्थानों की संख्या है भण्डारों की नहीं । भण्डार तो किसी एक स्थान में दो तीन से लेकर २५-३० तक पाये जाते है। जयपुर में ३० से अधिक भण्डार है, पाटन में बीस से अधिक भण्डार हैं तथा बीकानेर श्रादि स्थान में दस पन्द्रह के आस पास होंगे । सभी भण्डारों में शास्त्रों की संख्या भी एक सी नहीं है। यदि किसी किमी भण्डार में पन्द्रह हजार तक ग्रन्थ है तो किसी में दो सौ तीन सौ भी हैं। भण्डारों की प्राकार प्राकार के साथ साथ उनका महत्व भी अनेक दृष्टियों से भिन्न भिन्न है । यदि किसी भण्डार में प्राचीन प्रतियों का अधिक संग्रह है तो दूसरे भण्डार में किसी भाषा विशेष के अथों का अधिक संग्रह है। यदि किती भण्डार में सैद्धान्तिक एवं धार्मिक ग्रन्थों का अधिक संग्रह है तो किसी भएडार में काव्य, नाटक, रासा, व्याकरण, ज्योतिष आदि लौकिक साहित्य का अधिक संग्रह है। इनके अतिरिक्त किसी किसी भण्डार में जैनेतर साहित्य का भी पर्याप्त संग्रह मिलता है। ___ साहित्य संग्रह की इस दिशा में राजस्थान के अन्य स्थानों की अपेक्षा जयपुर, नागौर, जैसलमेर, बीकानेर, अजमेर आदि स्थानों के भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय-वैविध्य आदि मभीष्टियों से उल्लेखनीय है । राजस्थान के इन मण्डारों में, ताडपत्र, कपडा, और कागज इन तीनों पर ही प्रश्र मिलते हैं किन्तु ताइपत्र के ग्रंथ तो जैसलमेर के भण्डारों में ही मुख्यतया संग्रहीत है अन्य स्थानों में उनकी संख्या नाम मात्र की है । कपड़े पर लिखे हुये ग्रंथ भी बहुत कम संख्या में मिलते हैं। अभी जयपुर के पार्श्वनाथ प्रथ भण्डार में कपड़े पर लिखा हुआ संवत १५१६ का एक प्रथ मिला है । इसी तरह के ग्रंथ अन्य भण्डारों में भी मिलते है लेकिन उनकी संख्या भी बहुत कम है। सबसे अधिक संख्या कांगज पर लिखे हये प्रथों की है जो सभी भण्डारों में मिलते हैं तथा जो १३ वीं शताब्दी से मिलने लगते हैं । जयपुर के एक भण्डार मैं संवत १३१६ ( सन १२६२ ) का एक मथ कागज पर लिखा हुर सुरक्षित है। अद्यपि जयपुर नगर को बसे हुये करीब २५ वर्ष हुये है किन्तु यहाँ के शास्त्र-भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय चित्र्य आदि सभी दृष्पियों से उत्तम है। वैसे तो यहां के प्रायः प्रत्येक मन्दिर एवं चैत्यालय में शास्त्र संग्रह किया हुआ मिलता है किन्तु भामेर शास्त्र भण्डार, बड़े मन्दिर का शास्त्र भण्डार, बाधा दुलीचन्द का शास्त्र भण्डार, ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, अधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, पांडे लूणकरणजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, गोधों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, पार्श्वनाथ के मन्दिर का शास्त्र भएटार, पाटोदी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, लश्कर के मन्दिर Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का शास्त्र भण्डार, छोटे दीवान जी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, संघीजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, झाबड़ों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, जोबनेर के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, नया मन्दिर का शास्त्र भण्डार आदि कुछ ऐसे शास्त्र भण्डार हैं जिनमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, भाषाओं के महत्त्व पूर्ण साहित्य का संग्रह है। उक्त भण्डारों की प्रायः सभी की नथ सूचियां तैयार की जा चुकी है जिससे पता चलता है कि इन भण्डारों में कितना अपार साहित्य संकलित किया हुआ है। राजस्थान के प्रय भण्डारों के छोटे से अनुभव के आधार पर यह लिखा जा सकता है कि अपभ्रंश एवं हिन्दी की विभिन्न धाराओं का जितना अधिक साहित्य जयपुर के इन भण्डारों में संग्रहीत है उतना राजस्थान के अन्य भण्डारों में संभवतः नहीं है । इन ग्रन्थ भण्डारों की ग्रन्थ सूचियां प्रकाशित हो जाने के पश्चात विद्वानों को इस दिशा में अधिक जानकारी मिल सकेगी। प्रथ सूची का तृतीय भाग विद्वानों के समक्ष है । इसमें जयपुर के दो प्रसिद्ध भण्डार-बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार एवं ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार-के ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय उपस्थित किया गया है। ये दोनों भण्डार नगर के प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण भण्डारों में से है। बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार बधीचन्दजी का दि जैन मन्दिर जयपुर के जैन पञ्चायती मन्दिरों में से एक मन्दिर है। यह मन्दिर गुमानपन्थ के नाम्नाय का है । गुमानीरामजी महापंडित टोडरमलजी के सुपुत्र थे जिन्होंने अपना अलग ही गुमानपन्य चलाया थ । यह पन्थ दि जैनों के तेरहपन्थ से भी अधिक सुधारक है तथा भहारको द्वारा प्रचलित शिथिलाचार का कट्टर विरोधी है । यह विशाल एवं कलापूर्ण मन्दिर नगर के जौहरी बाजार के घी बालों के रास्ते में स्थित है। काफी समय तक यह मन्दिर पं० टोडरमलजी, गुमानीरामजी की साहित्यिक प्रवृत्तियों का केन्द्रस्थल रहा है । पं. टोडरमलजी ने यहां बैठकर गोमट्टसार, श्रात्मानुशासन जैसे महान प्रयों की हिन्दी भाषा एवं मोक्षमार्गप्रकाश जैसे महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक अन्य की रचना की थी । आज भी इस भण्डार में मोक्षमार्गप्रकाश, आत्मानुशासन एवं गोमसार भाषा की मूल प्रतियां जिनको पंडितजी ने अपने हाथों से लिखा था, संग्रहीत हैं। पञ्चायती मन्दिर होने के कारण तथा जयपुर के विद्वानों की साहित्यिक प्रगतियों का केन्द्र होने के कारण यहाँ का शास्त्र भण्डार अधिक महत्त्वपूर्ण है। यहाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश हिन्दी, राजस्थानी पधं ढूढारी भाषाओं के ग्रन्थों का उत्तम संग्रह किया हुआ मिलता है। इन हस्तलिम्वित ग्रन्थों की संख्या १२७८ है । इनमें १६२ गुटके तथा शेष १११६ मथ हैं । हस्तलिखित प्रथ सभी विषय के है जिनमें सिद्धान्त, धर्म एवं श्राचार शास्त्र, अध्यात्म, पूजा, स्तोत्र आदि विषयों के अतिरिक्त, कान्य, चरित, पुराण, कथा, नीतिशास्त्र, सुभाषित आदि विषयों पर भी अच्छा संग्रह है । लेखक प्रशस्ति संग्रह में ४० लेग्यक प्रशस्तियां इसी भण्डार के अन्यों पर से दी गयी हैं। इनसे पता चलता है कि भण्डार में Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ घों शादी से लेकर १६ वो शताब्दी तक की प्रतियों का अच्छा संग्रह है। ये प्रतियां सम्पादन कार्य में काफी सहायक सिद्ध हो सकती हैं । हेमराज कृत प्रवचनसार भाषा एवं गोमट्टसार कर्मकाण्ड भाषा, बनारसीदास का समयसार नाटक, भ० शुभचन्द्र का चारित्रशुद्धि विधान, पं० लावू का जिणदत्तचरित्र, पं. टोडरमलजी द्वारा रचित गोमट्टसार भाषर, आदि कितने ही प्रन्थों की तो ऐसी प्रतियां हैं जो अपने अस्तित्व के कुछ वर्षों पश्चात् की ही लिखी हुई हैं। इनके अतिरिक्त कुल्ल ग्रन्थों की ऐसी प्रतियां भी हैं जो प्रन्थ निर्माण के काफी समय के पश्चात् लिखी होने पर भी महत्त्वपूर्ण हैं । ऐसी प्रतियों में स्वयम्भू का हरिवंशपुराण, प्रभाचन्द्र की प्रात्मानुशासन टीका, महाकवि वीर कृत करन्यू र वामीचरित्र, कवि संधारू का प्रद्युम्नचरित, नन्द का यशोधर चरित्र, मल्लकवि कृत प्रबोधचन्द्रोदय नाटक, सुखदेव कृत वणिकप्रिया, वंशीधर की दस्तूरमालिका, पूज्यपाद कृत सर्वार्थसिद्धि आदि उल्लेखनीय है । भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति वड्माणकाव्य की वृत्ति की है जो संवन १४८१ की लिखी हुई है। यह प्रति अपूर्ण है । तथा सबसे नवीन प्रति सवत् १९८७ की अढाई द्वीप पूजा की है । इस प्रकार मत ५०० वर्षों में लिखा हुआ साहित्य का यहाँ उत्तम संग्रह है। भण्डार में मुख्य रूप में आमेर एवं सांगानेर इन दो नगरों से आये हुये ग्रन्थ है जो अपने २ समय में जैनों के केन्द्र थे । ठोलियों के दि. जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार टोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार भी ठोलियों के दि जैन मन्दिर में स्थित है। यह मन्दिर भी जयपुर के सुन्दर एवं विशाल मन्दिरों में से एक है । मन्दिर में विराजमान चिल्लोरी पापण की सुन्दर गृत्तियां दर्शनार्थियों के लिये विशेष आकर्षण की वस्तु है | जयपुर के किसी ठालिया परिवार द्वारा निर्मित होने के कारण यह मन्दिर ठोलियों के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है । मन्दिर पञ्चायती मन्दिर तो नहीं है किन्तु नगर के प्रमुख मन्दिरों में से एक है । यहाँ का शास्त्र भएडार एक नबीन एवं भव्य कमरे में विराजमान है । शास्त्र भण्डार के सभी ग्रन्थ वेष्टनों में बंधे हुये हैं एवं पूर्ण व्यवस्था के साथ रखे हुये हैं जिससे अावश्यकता पड़ने पर उन्हें सरलता से निकाला जा सकता है । पहिले गुटके की कोई व्यवस्था नहीं थी तथा न उनकी सूची ही बनी हुई थी किन्तु अब उनको भी व्यवस्थित रूप से रस्त्र दिया गया है। ग्रन्थ भण्डार में ५१५ ग्रन्थ तथा १४३ गुटके हैं । यहाँ पर प्राचीन एवं नवीन दोनों ही प्रकार की प्रतियों का संग्रह है जिससे पता चलता है कि भण्डार के व्यवस्थापकों का ध्यान सदैव ही हस्तलिखित ग्रन्थों के संग्रह की ओर रहा है । इस भण्डार में ऐसा अच्छा संग्रह मिल जायेगा ऐसी आशा सूची बनाने के प्रारम्भ में नहीं थी । किन्तु वास्तव में देखा जावे तो संग्रह अधिक न होने पर भी महत्वपूर्ण है और भाषा साहित्य के इतिहास की कितनी ही कडियां जोडने वाला है । यहाँ पर मुख्यतः संस्कृत और हिन्दी इन दो भाषाओं के ग्रन्थों का ही अधिक संग्रह है । भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति ब्रह्मदेव कृत द्रव्यसंग्रह टीका की है जो संवत् १५१६ ( सन १३५६ ) की लिम्बी हुई है। इसके अतिरिक्त ये गीन्द्रदेव Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का परमात्मप्रकाश सटीक, हेमचन्द्राचार्य का शब्दानुशासनवृत्ति एवं पुष्पदन का आदिपुराण आदि रचनाओं की भी प्राचीन प्रतियां उल्लेखनीय हैं । यहाँ पर पूजापाठ संग्रह का एक गुटका है जिसमें ४७ पूजाओं का संग्रह है । गुदका प्राचीन है । प्रत्येक पूजा का मण्डल चित्र दिया हुआ है। जो रंगीन एवं सुन्दर है। इस सचित्र प्रन्थ के अतिरिक्त वेष्टनों के २ पुढे ऐसे मिले हैं जिनमें से एक पर तो २४ तीर्थकरों के चित्र अंकित हैं तथा दूसरे पट्टे पर केवल बेल बूटे हैं । - भण्डार में संग्रहीत गुटके बहुत महत्त्व के हैं । हिन्दी की अधिकांश सामग्री इन्हीं गुटकों में प्राप्त हुई है । भ. शुभचन्द्र, मेघराज, रघुनाथ, ब्रह्म जिनदास आदि कवियों की कितनी ही नवीन रचनायें प्राप्त हुई हैं जिनको हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। इनके अतिरिक्त भण्डार में २ रासो मिते है जो ऐतिहासिक है तथा दिगम्बर भण्डारों में उपलब्ध होने वाले ऐसे साहित्य में सर्वप्रथम संसों हैं। इनमें एक पर्वत पाटणी का रासो है जो १६ वीं शताब्दी में होने वाले पर्वन पाटणी के जीवन पर प्रकाश डालता है । दूसरा कृष्णदास बघेरवाल का रासो है जो कृष्णदास के जीवन पर तथा उनके द्वारा किये गये चान्दखेडी में प्रतिष्ठा महोत्सव पर विस्तृत प्रकाश डालता है। इसी प्रकार संवत् १७३३ में लिखित एक भट्टारक पट्टावलि भी प्राप्त हुई है जो हिन्दी में इस प्रकार की प्रथम पट्टावलि है तथा भट्टारक परम्परा पर प्रकाश डालती है। भण्डारों में उपलब्ध नवीन साहित्य जैसा कि पहिले कहा जा चुका है दोनों शास्त्र भण्डार ही हिन्दी रचनाओं के संग्रह के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । १४ वी शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी तक जैन एवं जैनेतर विद्वानों द्वारा निर्मित हिन्दी साहित्य का यहां अच्छा संग्रह है । हिन्दी साहित्य की नवीन कृतियों में कवि सुधारु का पंच म्न चरित, (सं० १४११) कवि चीर कृत मणिहार गीत, आज्ञासुन्दर की विद्याविलास चौपई (१५९६), मुनि कनकामर की ग्यारहप्रतिमावर्णन, पद्मनाभ कृत इंगर की बावनी (१५४३), विनयसमुद्र कृत विक्रमप्रबन्ध रास (१५७३) छीहल का उदर गीत एवं पद, शाम जिनदास का आदिनाथस्तवन, व कामराज कृत सठ शलाकापुरुषवर्णन, कनकसोम की जइतपदबेलि (१६२५), कुमदचन्द्र एवं पूनो की पद एवं विनलियां आदि उल्लेखनीय हैं । ये १४ वों से लेकर १६ वीं शताब्दी के कुछ कवि हैं जिनकी रचनायें दोनों भण्डारों में प्राप्त हुई हैं । इसी प्रकार १४ वीं शताब्दी से १६ वीं शताब्दी के कवियों की रचनाओं में ब. गुलाल की विवेक चौपई, उपाध्याय जयसागर की जिनकुशलसूरि स्तुति, जिनरंगसूरि की प्रबोधवावनी एवं प्रस्ताविक दोहा, प्र. ज्ञानसागर का व्रतकथाकोश, टोउर कवि के पद, पद्मराज का राजुल का बारहमासा एवं पार्श्वनाथस्तवन, नन्द की यशोधर चौपई (१६५८), पोपटशाह कृत मदनमंजरी कथा प्रबन्ध, बनारसीदास कृत मांझा, मनोहर कवि की चिन्तामणि मनबाबनी, लघु बावनी एवं सुगुरुमीत्र, मझकवि कुन प्रबोधचन्द्रोदयनाटक मुनि मेघराज कृत संयम प्रवहणगीत (१६६८, रूपचन्द का अायात्म स्वैय्या, भ. शुभचन्द्र कृत तत्त्वसार Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) दोहा; समयसुन्दर का प्रात्मउपदेशगीत, समाबत्तीसी एवं दानशीलसंवाद; सुखदेव कृत वणिकप्रिया, (१७१७) हर्षकीति का नेमिनाथराजुलगीत, नमीश्वरगीत, एवं मोरडा; अजयराज कृत नेमिनाथचरित ( १७६३ ) एवं यशोधर चौपई (१७६२); कनककीति का मेघफुमारगीत, गोपालदास का प्रमाडीगीत एवं यदुरासो; थानसिंह का रत्नकरण्ड श्रावकाचार एवं सुबुद्धिप्रकाश (1) पादूदयाल के दोई, दूसर कवि का कविलाठाभरणः नगरीदास का इश्कचिमन; एवं वैनविलास, वंशीधर कृत दस्तूरमालिका; भगवानदास के पद; मनराम द्वारा रचित अक्षरमाला, मनरामविलास, एवं धर्मसहेली; मुनि महेस की अक्षरबत्तीसी, रघुनाथ का गणभेद, शानसार, नित्यविहार एवं प्रसंगसार, श्रुतसागर का षटमालवर्णन (१८२१ ); हेमराज कृत दोहाशतक; केशरीसिंह का बर्द्धमानपुराण (१८७३) चंपाराम का धर्मप्रश्नोत्तरश्रावकाचार, एवं भद्रबाटुचरित्र, पाषा दुलीचन्द कृत धर्मपरीक्षा भाषा आदि उल्लेखनीय है । ये रचनायें काव्य, पुराण, चरित, नाटक, रस एवं अलंकार अर्थशास्त्र, इतिहास आदि सभी विषयों से सम्बन्धित हैं । इनमें से यहुत सी तो ऐसी रचनायें हैं । जो सम्भवतः सर्व प्रथम विद्वानों के समक्ष आयी होंगी। मचित्र साहित्य दोनों भण्डारों में हिन्दी एवं अपभ्रंश का महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध होते हुये सचित्र साहित्य का न मिलना जैन श्रावकों एवं विद्वानों की इस ओर उदासीनता प्रगट करती है। किन्तु फिर भी ठोलियों के मन्दिर में एक पूजा संग्रह प्राप्त हुआ है जो सचित्र है। इसमें पूजा के विधानों के मंडल चित्रित किये हुये है। चित्र सभी रंगीन है एवं कला पूर्ण भी है । इसी प्रकार एक शस्त्र के पुट्टे पर चौबीस तीर्थकरों के चित्र दिये हुये हैं। सभी रंगीन एवं कला पूर्ण हैं । यह पुट्ठा १६ वीं शताब्दी का प्रतीत होता है। विद्वानों द्वारा लिखे हुये ग्रन्थ इस दृष्टि से वधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार उल्लेखनीय है। यहाँ पर महा पंडित टोडरमलजी द्वारा लिग्नित मोक्षमार्गप्रकाश एवं आत्मानुशासन भाषा एवं गोमटुसार भाषा की प्रतियां सुरक्षित हैं । ये प्रतियां साहित्यिक दृष्टि से नहीं किन्तु इतिहास एवं पुरातत्त्व की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। विशाल पद साहित्य-~ दोनों भण्डारों के गुटको में हिन्दी कवियों द्वारा रचित पदों का विशाल संग्रह है । इन कयियों की संख्या ६० है जिनमें कबीरदास, वृन्द, मुन्दर, सूरदास श्रादि कुछ कवियों के अतिरिक्त शेष सभी जैन कवि हैं। इनमें अजयराज, छीहल, जगजीवन, जगतराम, मनराम, रूपचन्द, हर्षकीत्ति आदि के नाम उल्लेखनीय है । इन कवियों द्वारा रचित हिन्दी पद भाषा एवं माय की दृष्टि से अच्छे हैं तथा जिनका प्रकाश में श्राना आवश्यक है। क्षेत्र के अनुसन्धान विभाग की ओर से ऐसे पद एवं भजनों का संग्रह Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया जा रहा है और शीघ्र ही करीम २५०० पदों का एक वृहद् संग्रह प्रकाशित करने का विचार है । जिससे रूम से कम यह तो पता चल सकेगा कि जैन विद्वानों ने इस दिशा में कितना महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। गुटकों का महत्त्व वास्तव में यदि देखा जाये तो जितना भी महत्त्वपूर्ण एवं अनुपलब्ध साहित्य मिलता है उसका अधिकांश भाग इन्हीं गुटकों में संग्रहीत किया हुआ है। जैन श्रावकों को गुटकों में छोटी छोटी रचनायें संग्रहीत करवाने का बड़ा चाव था। कभी कभी तो वे स्वयं ही संग्रह कर लिया करते थे और कभी अन्य लेखकों के द्वारा संग्रह करवाते थे। इन दोनों भएडारों में भी जितना हिन्दी का नयीन साहित्य मिला है उसका आधे से अधिक भाग इन्हीं गुटकों में संग्रह किया हुआ है । दोनों भण्डारों में गुटकों की संख्या ३०५ है । यद्यपि इन गुटकों में सर्वसाधारण के काम आने वाले स्तोत्र, पूजायें, कथायें आदि की ही अधिक संख्या है किन्तु महत्त्वपूर्ण साहित्य भी इन्हीं गुटकों में उपलब्ध होता है । गुट के सभी साइज के मिलते है। यदि किसी गुटके में - पन्नही मिली निको मुनाफे में ४ : ५.० पत्र तक हैं 1 ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में ६५४ पत्र है जिनमें ४७ पूजाओं का संग्रह किया हुआ है। कुछ गुटकों में तो लेखनकाल उसके अन्त में दिया हुया होता है किन्तु कुछ गुटकों में बीच बीच में भी लेखनकाल दे दिया जाता है अर्थात् जैसे जैसे पाठ समाप्त होते जाते हैं वैसे वैसे लेखनकाल भी दे दिया जाता है। इन गुटकों में साहित्यिक एवं धार्मिक रचनाओं के अतिरिक्त आयुर्वेद के नुसखे भी बहुत मिलते हैं। यदि इन्ही नुसखों के आधार पर कोई खोज की जावे तो यह आयुर्वेदिक साहित्य के लिये महत्त्वपूर्ण चीज प्रमाणित हो सकती है। ये नुसखे हिन्दी भाषा में अनुभव के आधार पर लिखे हुये हैं। आयुर्वेदिक साहित्य के अतिरिक्त किसी किसी गुटके में ऐतिहासिक सामग्री भी मिल जाती है। यह सामग्री मुख्यतः राजाओं अथवा बादशाहों की वंशावलि के रूप में होती है । कौन राजा कब राज्य सिंहासन पर बैठा तथा उसने कितने वर्ष, कितने महिने एवं कितने दिन तक शासन किया आदि विषरण दिया हुआ रहता है। अन्य सूची के सम्बन्ध में मस्तुत ग्रन्थ-सूची में जयपुर के केवल दो शास्त्र भण्डारों की सूची है। हमारा विचार तो एक भण्डार की और सूची देना था लेकिन ग्रन्थ सूची के अधिक पत्र हो जाने के डर से नहीं दिया गया । प्रस्तुत प्रन्थ सूची में जिन नधीन रचनाओं का उल्लेख पाया है उनके आदि अन्त भाग भी दे दिये गये हैं जिससे विद्वानों को ग्रन्थ को भाषा, रचनाकाल, एवं ग्रन्थकार के सम्बन्ध में कुछ परिचय मिल सके। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (=) इसके अतिरिक्त जो लेखक प्रशस्तियां अधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण थी उन्हें भी ग्रन्थ सूची में दे दिया गया है । इस प्रकार सूची में १०६ मन्थ प्रशास्तियां एवं ५५ लेखक प्रशस्तियां दी गयी हैं जो स्वयं एक पुस्तक के रूप में हैं। प्रस्तुत सूची में एक और नवीन ढंग अपनाया गया है वह यह है कि अधिकांश प्रन्थों की एक प्रति का ही सूची में परिचय दिया गया है। यदि उस मन्थ की एक से अधिक प्रतियाँ हैं तो विशेष में उनकी संख्या को ही लिख दिया गया है लेकिन यदि दूसरी प्रति भी महत्वपूर्ण अथवा विशेष प्राचीन है तो उस प्रति का भी परिचय सूची में दे दिया गया है। इस प्रकार करीब ५०० प्रतियों का परिचय ग्रन्थ-सूची में नहीं दिया गया जो विशेष महत्त्वपूर्ण प्रतियां नहीं थी । कुछ विद्वानों का यह मत है कि प्रत्येक भण्डार की मन्थ सूची न होकर एक सूची में १०-१५ भरडारों की सूची हो तथा एक ग्रन्थ किस किस भण्डार में मिलता है इतना मात्र उसमें दे दिया जावे जिससे प्रकाशन का कार्य भी जल्दी हो सके तथा भण्डारों की सूचियां भी आजावें । हमने इस शैली को अभी इसीलिये नहीं अपनाया कि इससे भण्डारों का जो भिन्न भिन्न महत्य है तथा उनमें जो महत्त्वपूर्ण प्रतियां हैं उनका परिचय ऐसी प्रन्थ सूची में नहीं आसकेगा। यह तो अवश्य है कि बहुत से ग्रन्थ तो प्रत्येक भण्डार में समान रूप से मिलते हैं तथा प्रन्थ सूचियों में बार बार में आते हैं जिससे कोई विशेष अर्थ प्राप्त नहीं होता । आशा है भविष्य में सूची प्रकाशन का यह कार्य किस दिशा में चलना चाहिये इस पर इस सम्बन्ध के विशेषज्ञ विद्वान् अपनी अमूल्य परामर्श से हमें सूचित करेंगे जिससे यदि अधिक लाभ हो सके तो उसी के अनुसार कार्य किया जा सके । प्रन्थ सूची बनाने का कार्य कितना जटिल है यह तो वे ही जान सकते हैं जिन्होंने इस दिशा में कार्य किया हो | इसलिये कमियां रहना आवश्यक हो जाता है। कौनसा ग्रन्थ पहिले प्रकाश में आ चुका है तथा कौनसा नवीन है इसका भी निर्णय इस सम्बन्ध की प्रकाशित पुस्तकें न मिलने के कारण जल्दी से नहीं किया जा सकता इससे यहू होता है कि कभी कभी प्रकाश में आये हुये प्रन्थ नवीन समझने की गल्ती हो जाया करती है । प्रस्तुत ग्रंथ सूची में यदि ऐसी कोई अशुद्धि हो गयी हो तो विद्वान् पाठक हमें सूचित करने का कष्ट करेंगे | दोनों भण्डारों में जो महत्त्वपूर्ण कृतियां प्राप्त हुई है उनके निर्माण करने वाले विद्वानों का परिचय भी यहां दिया जा रहा है। यद्यपि इनमें से बहुत से विद्वानों के सम्बन्ध में तो हम पहिले से हो जानते हैं किन्तु उनकी जो अभी नवीन रचनायें मिली हैं उन्हीं रचनाओं के आधार पर उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। आशा है इस परिचय से हिन्दी साहित्य के इतिहास निर्माण में कुछ सहायता मिल सकेगी। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (&) १. अचलकीर्त्ति अचलकीर्ति १८ वीं शताब्दी के हिन्दी कवि थे। विषापहार स्तोत्र भाषा इनकी प्रसिद्ध रचना है जिसका समाज में अच्छा प्रचार है। अभी जयपुर के बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में कर्म - बत्तीसी नाम की एक और रचना प्राप्त हुई है जो संवत् १७७७ में पूर्ण हुई थी। इन्होंने कर्मबत्तीसी में पाया नगरी एवं बीर संध का उल्लेख किया है। इनकी एक रचना रविव्रतकथा देहली के भण्डार में संग्रहीत है । २. अजयराज १८ शताब्दी के जैन साहित्य सेवियों में अजयराज पाटणी का नाम उल्लेखनीय है । ये खण्डेलवाल जाति में उत्पन्न हुये थे तथा पादणी इनका गोत्र था। पाटणीजी आमेर के रहने वाले तथा धार्मिक प्रकृति के प्राणी थे। ये हिन्दी एवं संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे । इन्होंने हिन्दी में कितनी ही रचनायें लिखी थी | अब तक छोटी और बडी २० रचनाओं का तो पता लग चुका है इनमें से आदि पुराण भाषा, नेमिनाथचरित्र, यशोधरचरित्र, चरखा चउपई, शिव रमरणी का विवाह, कात्तीसी दि प्रमुख हैं। इन्होंने कितनी ही पूजायें भी लिखी हैं। इनके द्वारा लिखे हुये हिन्दी पद भी पर्याप्त संख्या में मिलते हैं । कवि ने हिन्दी में एक जिनजी की रसोई लिखी है जिसमें पढ़ रस व्यंजन का अच्छा वर्णन किया गया है। अजयराज हिन्दी साहित्य के अच्छे विद्वान् थे । इनकी रचनाओं में काव्यत्व के दर्शन होते हैं । इन्होंने आदिपुराण को संवत् १७६७, में यशोधरचीपई को १७६२ में तथा नेमिनाथचरित्र को संवत् १७९३ समान किया था। ३. ब्रह्म अजित मा अजित संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान थे । हनुमचरित में इनकी साहित्य निर्माण की कला स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ये गोलटगार वंश में उत्पन्न हुये थे। माता का नाम पीथा तथा पिता का नाम वीरसिंह था । भृगुकच्छपुर में नेमिनाथ के जिन मन्दिर में इनका मुख्य रूप से निवास था । भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति के प्रशिष्य एवं विद्यानन्द के शिष्य थे । हिन्दी में इन्होंने हंसा भावना नामक एक छोटी सी आध्यात्मिक रचना लिखी थी। रचना में ३७ पद्य हैं जिनमें संसार का स्वरूप तथा मानव का वास्तविक कर्त्तव्य क्या है, उसे क्या करना चाहिये तथा किसे छोड़ना चाहिये आदि पर प्रकाश डाला है। हंसा भावना अच्छी रचना है, तथा भाषा एवं शैली दोनों ही दृष्टियों से पढने योग्य है । कवि ने इसे अपने गुरु विद्यानन्द के उपदेश से बनायी थी । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) ४. अमरपाल इन्होंने 'श्रादिनाथ के पंच मंगल' नामक रचना को संवत् १७७२ में समाप्त की थी। रचना में दिये हुये समय के आधार पर ये ५८ श्री शताब्दी के विद्वान् ठहरते हैं। ये खण्डेलवाल आति में उत्पन्न हुये थे तथा गंगवाल इनका गोत्र था 1 देहली के समीप स्थित जयसिंहपुरा इनका निवास स्थान था। आदिनाथ के पंचमंगल के अतिरिक्त इनकी अन्य रचना अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है। ५. आज्ञासुन्दर ये खरतरगच्छ के प्रधान जिनवर्द्धनसूरि के प्रशिष्य एवं प्रानन्दसूरि के शिष्य थे। इन्होंने संवत् १५१६ में विद्याविटाई की माता समाप्त होगी। इसमें १६ सच है । रचना अच्छी है। ६. उदैराम उदराम द्वारा लिखित हिन्दी की २ जखडी अभी उपलब्ध हुई हैं। दोनों ही जखड़ी ऐतिहासिक हैं तथा भट्टारक अनन्त कीति ने संवत् १७३५ में सांभर (राजस्थान) में जो चातुर्मास किया था उसका उन दोनों में वर्णन किया गया है । दिगम्बर साहित्य में इस प्रकार की रचनायें बहुत कम मिलती है इस : दृष्टि से इनका अधिक महत्व है । वैसे भाषा की दृष्टि से रचनायें साधारण है। ७. ऋषभदास निगोत्या ऋषभदास निगोत्या का जन्म संवत् १८४० के लगभग जयपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम शोभाचन्द था। इन्होंने संवत् १८८८ में मूलाचार की हिन्दी भाषा टीका सम्पूर्ण की थी । मन्थ की भाषा ढूंदारी है तथा जिस पर पं० टोडरमलजी की भाषा का प्रभाव है। ____८, कनककीर्चि कनककीर्ति १७ वीं शताब्दी के हिन्दी के विद्वान थे । इन्होंने तत्वार्थसूत्र श्रतसागरी टीका पर! एक विस्तृत हिन्दी गद्य टीका लिखी थी। इसके अतिरिक्त कर्म घटावलि, जिनराजस्तुति, मेघकुमारगीत, श्रीपालस्तुति आदि रचनायें भी अपकी मिल चुकी है । कनककीति हिन्दी के अच्छे विद्वान् थे। इनकी भाषा हूँढारी हैं जिसमें 'है' के स्थान पर है' का अधिक प्रयोग हुआ है । गुटकों में इनके कितने ही पद भी मिले है। ६. कनकसीम कमकसोम १६ वीं शताब्दी के कवि थे । 'जइतपदवेलि' इनकी इतिहास से सम्बन्धित कृति है. जो संवत १६२५ में रची गयी थी। वेलि में उसी संथन में मुनि वाचकदया ने आगरे में जो चातुर्मास किया था उसका वर्णन दिया हुआ है । यह खरतरगाछ की एक अच्छी पट्टाबलि है कषि ने इसमें साधुकीर्ति आदि कितने ही विद्वानों के नामों का उल्लेख किया है । रचना में ४६ पद्य है। भाषा हिन्दी है लेकिन Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 18 ) गुजराती का प्रभाव है । कवि की एक और रचना आषाढाभूतिस्वाध्याय पहिले हो मिल चुकी है। जो गुजराती में है । २६. छत्रि कमनामर footer द्वारा लिखित 'ग्यारह प्रतिमा वर्णन' अपभ्रंश भाषा का एक गीत है । कनकामर कौनसे शताब्दी के कवि थे यह तो इस रचना के आधार से निश्चित नहीं होता है। किन्तु इतना अवश्य है कि वे १६ वीं या इससे भी पूर्व की शताब्दी के थे । गीत में १२ मतिमाओंों का वर्णन है जिसका प्रथम पद्म निम्न प्रकार है । मुनिवर जंपर मृगनयणी, अंसु जल्लोलीइय गिरवयशी । नवनीलो पलको मल नयी पहु कणयंवर भाभि पई । किम्म शह सम्म सित्रपुर र+मशी, मुनिवर जंप मृगनयशी || १ || १२. कुलभद्र सारसमुच्चय प्रन्थ के रचयिता श्री कुजभद्र किस शताब्दी तथा किस प्रान्त के थे इसके विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता । किन्तु इतना अवश्य है कि वे १६ वीं शताब्दी के पूर्व के विद्वान थे। क्योंकि सारसमुच्चय की एक प्रति संवत् १५४५ में लिखी हुई बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के संग्रह में है। रचना छोटी ही है जिसमें ३३ : लोक हैं । प्रन्थ का दूसरा नाम बन्थसारसमुचय भी है। अन्थ की भाष सरल एवं ललित है। १३. किशन सिंह ये सवाईमाधोपुर प्रान्त के दामपुरा गांव के रहने वाले थे। खरडेलजाति में उत्पन्न हुये थे तथा पाटणी इनका गोत्र था। इनके पिता का नाम 'काना' था। ये दो भाई थे । इनसे बड़े भाई का नाम सुखदेव था। अपने गांव को छोड़कर ये सांगानेर आकर रहने लगे थे, जो बहुत समय तक जैन साहित्यिकों का केन्द्र रहा है। इन्होंने अपनी सभी रचनायें हिन्दी भाषा में लिखी है। जिनकी संख्या १५ से भी अधिक है । मुख्य रचनाओं में क्रियाकोशभाषा, (९०८४) पुण्याभवकथाकोश (१७७२) भद्रबाहुचरित भाषा (१७८०) एवं बावनी आदि हैं । १४. केशरीसिंह पं० केशरीसिंह भट्टारकों के पंडित थे । इनका मुख्य स्थान जयपुर नगर के लश्कर के जैन मन्दिर में था । ये बह रहा करते थे तथा श्रद्धालु श्रावकों को धर्मोपदेश दिया करते थे। दीवान बालचन्द सुपुत्र दीवान जयचन्द छाया की इन पर विशेष भक्ति थी और उन्हीं के अनुरोध से इन्होंने संस्कृत भाषा में भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा विरचित व मानपुरा की हिन्दी गद्य में भाषा टीका लिखी थी। पंडित जी ने इसे संवत् १८७३ में समाप्त की थी । पुराण की भाषा पर दूद्वारी ( जयपुरी) भाषा का प्रभाव है । मन्थ प्रशस्ति के अनुसार पुराण की भाषा का संशोधन वस्तुपाल छाबडा ने किया था। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *. ( १२ ) १४. ब्रह्म गुलाल ब्रह्मगुलाल हिन्दी भाषा के कवि थे यद्यपि कवि की अब तक छोटी २ रचनायें ही उपलब्ध हुई हैं किन्तु भा एवं भाषा की दृष्टि से ये साधारणतः अच्छी है । इनकी रचनाओं में त्रेपनक्रिया, समवसरणस्तोत्र, जलगालनक्रिया, विवेकचौपई आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। विवेकचौपई अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में प्राप्त हुई है । कवि १७ वीं शताब्दी के थे । १५. गोपालदास गोपालदास की दो छोटी रचनायें यादुरासो तथा प्रभादीगीत जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के ६७ वें गुटके में संग्रहीत हैं। गुटके के लेखनकाल के आधार पर कवि १७ वीं शताब्दीया इससे भी पूर्व के विद्वान् थे | यादुरासों में भगवान नेमिनाथ के वन चले जाने के पश्चात् राजुल की विरहावस्था का वन है जो उन्हें वापिस लाने के रूप में है। इसमें २४ पद्य है । प्रमादीगीत एक उपदेशात्मकगीत है जिसमें आलस्य व्याग कर आत्महित करने के लिये है। इनके भी मिलते हैं । १६. चंपाराम भांवसा ये खण्डेलवाल जैन जति में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम हीरालाल था जो माधोपुर ( जयपुर ) के रहने वाले थे। चंपाराम हिन्दी के अच्छे विद्वान थे। शास्त्रों की स्वाध्याय करना ही इनका प्रमुख कार्य था इसी ज्ञान वृद्धि के कारण इन्होंने भद्रबाहुचरित्र एवं धर्मप्रश्नोत्तर श्रावकाचार की हिन्दी भाषा टीका क्रमश: संवत् १८४४ तथा १६ में समाप्त की थी। भाषा एवं शैली की दृष्टि से रचनाएँ साधारण हैं । १७. डीहल १६ वीं शताब्दी में होनेवाले जैन कवियों में छील का नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय है । ये राजस्थानी कवि थे किन्तु राजस्थान के किस प्रदेश को सुशोभित करते थे इसका अभी तक कोई उल्लेख नहीं मिला | हिन्दी भाषा के आप अच्छे विद्वान् थे । इनकी अभी तक ३ रचनायें तथा ३ पद उपलब्ध हुये हैं । रचनाओं के नाम बावनी, पंचसहेली गीत, पंथीगीत हैं। सभी रचनायें हिन्दी की उत्तम रचनाओं में से है जो काव्यत्य से भरपूर हैं । कवि की वर्णन करने की शैली उत्तम है। बावनी में आपने कितने ही विषयों का अच्छा वर्णन किया है। पंचसहेली को इन्होंने संवत् १५७५ में समाप्त किया था । १८. पं जगन्नाथ पं० अगनाथ १७ वीं शताब्दी के विद्वान् थे । ये भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे तथा संस्कृत भाषा के पहुंचे हुए विद्वान् थे। ये खन्डेलवाल जाति में उत्पन्न हुये थे तथा इनके पिता का नाम पोमराज था। इनकी ६ रचनायें श्वेताम्बरपराजय, चतुर्विंशतिसंधान स्वोपज्ञदीका, सुखनिधान, नेमिनरेन्द्रस्तोत्र, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथा सुखेणचरित्र नो पहिले ही प्रकाश में आ चुकी है । इनके अतिरिक्त इनकी एक और कृति "कर्मस्वरूपवर्णन" अभी बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भंडार में मिली है | इस रचना में कर्मों के स्वरूप की विवेचना की गयी है | कवि ने इसे संवत् १७.७ ( सन् १६५० ) में समाप्त किया था। 'कर्मस्वरूप' के उल्लासों के अन्त में जो विशेषण लगाये गये हैं उनसे पता चलता है कि पंडित जी न्यायशास्त्र के पारंगत विद्वान थे तथा उन्होंने कितने ही शास्त्रार्थों में अपने विरोधियों को हराया था। कवि का दूसरा नाम धादिराज भी था। १६. जिनदत्त ___पं० जिनदत्त भट्टारक शुभचन्द्र के समकालीन विद्वान थे तथा उनके धनिष्ट शिष्यों में से थे। भधारक शुभचन्द्र ने अम्बिकाकल्प की जो रचना की थी उसमें मुख्य रूप से जिनदत्त का ही आग्रह था । ये स्वयं भी हिन्दी के अच्छे विद्वान थे तथा संस्कृत भाषा में भी अपना प्रवेश रखते थे । अभी हिन्दी में इनकी २ रचनायें उपलब्ध हुई है जिनके नाम धर्मतरुगीत तथा जिनदत्तविलास है। जिनदत्तविलास में में कवि द्वारा बनाये हुये पदों एवं स्फुट रचनाओं का संग्रह है तथा धर्मतरुगीत एक छोटा सा गीत है। २०, ब्रह्म जिनदास ये भट्टारक सकलकीर्ति के शिष्य थे। संस्कृत, प्राकृत, एयं गुजराती भाषाओं पर इनका पूरा अधिकार था। इसके अतिरिक्ष विदो भाषा में इसकी दो मनिधी । यि की अब तक संस्कृत एवं गुजराती का कितनी ही रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं इनमें आदिनाथ पुराए, धनपालरास, यशोधररास, श्रादि प्रमुख हैं । इनकी सभी रचनाओं की संख्या २० से भी अधिक है । अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में इनका एक छोटा सा आदिनाथ स्तवन हिन्दी में लिखा हुआ मिला है जो बहुत ही सुन्दर एवं भाव पूर्ण है तथा ग्रंथ सूची में पूरा दिया हुआ है। २१. ब्रह्म ज्ञानसागर ये भट्टारक श्रीभूषण के शिष्य थे । संस्कृत के साथ साथ ये हिन्दी के भी अच्छे विद्वान थे। इन्होंने हिन्दी में २६ से भी अधिक कथायें लिखी है जो पद्यात्मक है। भाषा की दृष्टि से ये सभी अच्छी हैं । भट्टारक श्रीभूषण ने पाण्डवपुराण ( संस्कृत ) को संवत् १६५७ में समाप्त किया था। क्योंकि ब्रह्म ज्ञानसागर भी इन्हीं भट्टारक जी के शिष्य थे अतः कवि के १८ वीं शताब्दी के होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता है | इन्होंने कथाओं के अतिरिक्त और भी रचनायें लिखी होंगी लेकिन अभी तक वे उपलब्ध नहीं हुई है। २२. ठक्कुरसी १६ वीं शताब्दी में होने वाले कवियों में ठक्कुरसी का नाम उल्लेखनीय है । ये हिन्दी के अच्छे विद्वान थे तथा हिन्दी में छोटी छोटी रचनायें स्तिस्यकर स्वाध्याय प्रेमियों का दिल बहलाया करते Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थे। इनके पिता का नाम घेल्द था जो स्वयं भी की थे ! हि बार रजि कि चेन्द्रिय नेलि तो पहिले ही प्रकाश में आ चुकी हैं लेकिन नेमिराजमतिमेखि पार्षशनसतावीसी और चिन्तामशिजयमान तथा सीमंधरस्तवन और उपलब्ध हुए हैं जो हिन्दी की असली रचनायें है। २३. थानसिंह थानसिंह सांगानेर (जयपुर) के रहने वाले थे । ये खण्डेलवाल जैन थे तथा ठोलिया इनका गोत्र था। सुबुद्धि प्रकाश की ग्रन्थ प्रशास्ति में इन्होंने आमेर, सांगानेर तथा जयपुर नगर का वर्णन लिखा है । जब इनके माता पिता नगर में अशान्ति के कारण करौली चले गये थे तब भी ये सांगानेर छोडकर नहीं जा सके और इन्होंने वही रहते हुये रचनायें लिखी थी। कधि की २ रचनायें प्राप्त होती है-रत्नकरदश्रावकाचार भाषा तथा सुद्धि प्रकाश । प्रथम रचना को इन्होंने सं. १८२१ में तथा दूसरी को सं. १८४७ में समाप्त किया था। सुबुद्धि प्रकास का दूसरा नाम थानविलास भी है इसमें कृषि की छोटी र रचनाओं का संग्रह है। दोनों ही रचनाओं की भाषा एवं वर्णन शैली साधारणतः अच्छी है । इनकी भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव है । २४. मुनि देवचन्द्र मुनि देवचन्द्र युगप्रधान जिनचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने आगमसार की हिन्दी गय टीका संवत् १४७६ में मारोठ गांव में समाप्त की थी | भागमसार ज्ञानामृत एवं धर्मामृत का सागर है तथा तात्त्विक चर्चामों से भरपूर है। रचना हिन्दी गद्य में है जिस पर मारवाड़ी मिश्रित जयपुरी भाषा का प्रभाव है। २५. देवास देवाब्रह्म हिन्दी के अच्छे कवि थे । इनके सैकडों पद मिलते हैं जो विभिन्न राग रागनियों में लिखे हुये हैं। सासबहू का झगडा श्रादि जो अन्य रचनाये है वे भी अधिकांशतः पद रूप में ही लिखी हुई है । इन्होंने हिन्दी साहित्य की ठोस सेवा की थी। कवि संभवतः जयपुर के ही थे तथा अनुमानतः १८ वीं शताब्दी के थे। २६. बाया दुलीचन्द जयपुर के २० वीं शताब्दी के साहित्य सेवियों में बाबा दुलीचन्द का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। ये मूलतः जयपुर निवासी नही थे किन्तु पूना (सितारा) से आकर यहां रहने लगे थे। इनके पिता का नाम मानकचन्दजी था । आते समय अपने साथ सैंकडों हसलिखित अन्य भी साथ लाये थे, जो आजकल जयपुर के बड़े मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत हैं तथा यह संग्रहालय भी बाश दुलीचन्द भण्डार के नाम से प्रसिद्ध है । इस भारद्वार में 5-10 हस्तलिखित ग्रन्थ है ! जो सभी बाबाजी द्वारा संग्रहीत है। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) बाबाजी बडे साहित्यिक थे। दिन रात साहित्य सेवा में व्यतीत करते थे । ग्रन्थों की प्रतिलिपियां करना, नवीन प्रन्थों का निर्माण तथा पुराने ग्रन्थों को व्यवस्थित रूप से रखना ही आपके प्रतिदिन के कार्य थे। बड़े मन्दिर के भण्डार में तथा स्वयं बाबाजी के भण्डार में इनके हाथ से लिखी हुई कितनी ही प्रतियां मिलती है । इन्होंने १५ से अधिक मन्थों की रचना की थी । जिनमें उपदेशरत्नमाला भाषा, जैनागारप्रक्रिया, ज्ञानप्रकाशविलास, जैनयात्रादर्पण, धर्मपरीक्षा भाषा आदि उल्लेखनीय हैं। इन्होंने भारत के सभी तर्थों की यात्रा की थी और उसी के अनुभव के आधार पर इन्होंने जैनयात्रादर्पण लिखा था | मन्दिर निर्माण विधि नामक रचना से पता चलता है कि ये शिल्पशास्त्र के भी ज्ञाता थे। इन सबके अतिरिक्त इन्होंने भारत के कितने ही स्थानों के शास्त्र भण्डारों को भी देखा था और उसीके आधार पर संस्कृत और हिन्दी भाषा के अन्थों के मन्थकार विवरण लिखा था जिसमें किस विद्वान ने कितने प्रन्थ लिखे थे तथा वे किस किस भण्डार में मिलते हैं दिया हुआ है। अपने ढंग की यह अनूठी पुस्तक है। इनकी मृत्यु ताः ४ अगस्त सन् १६२८ में आगरे में हुई थी । २६. नन्द वाल जाति में उत्पन्न हुये थे । गोयल इनका गोत्र था । पिता का नाम भैरू' तथा माता का नाम चंदा था। ये गोसना गांव के निवासी थे जो संभवतः आगरा के समीप ही था। कवि की अभी तक एक रचना यशोधर चरित्र चौपई की उपलब्ध हुई है जो ए में समाप्त हुई थी। इसमें ५६८ प हैं । रचना साधरणतः अच्छी है। तथा अभी तक अप्रकाशित है । २७. नागरीदास संभवतः ये नागरीदास के ही हैं जो कृष्णगढ़ नरेश महाराज सांवतसिंह जी के पुत्र थे । १७५० से १८१६ तक माना जाता है । चुकी हैं। वैनविलास एवं गुप्तरसप्रकाश मन्दिर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध इनका जन्म संवत् १७५६ में हुआ था। इनका कविता काल सं० इनकी छोटी बड़ी सथ रचना मिलाकर ७३ रचनायें प्रकाश में आ नामक अप्राप्य रचनाओं में से वैनविलास जयपुर के ठोलियों हुई हैं। इसमें ३० पत्र हैं, जिनमें कुंडलिया दोहे आदि हैं। २८. नाथूलाल दोशी नाथूलाल दोशी दुलीचन्द दोशी के पौत्र एवं शिवचन्द के पुत्र थे । इनके ६० सदासुखजी कालीवाल धर्म गुरू थे तथा दीवान अमरचन्द परम सहायक एवं कृपावान थे। दोशी जी विद्वान थे तथा ग्रंथ चर्चा में अधिक रस लिया करते थे । इन्होंने हरचन्द्र गंगवाल की प्ररेणा से संवत् १६१८ में सुकुमाल चरित्र की भाषा समाप्त की थी । रचना हिन्दी गद्य में में है जिस पर ढूंढारी भाषा का प्रभाव है । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) २६. नाथूराम लमेचू जाति में उत्पन्न होने वाले नाथूराम हिन्दी भाषा के अच्छे विद्वान थे। ये संभवतः १६ af शताब्दी के थे। इनके पिता का नाम दीपचंद था । इन्होंने जम्बूस्वामीचरित का हिन्दी गद्यानुवाद लिखा है | रचना साधारणतः अच्छी है । ३०. निरमलदास भावक निरमलदास में पंचायपान नामक अन्थ की रचना की थी । यह पंचतन्त्र का हिन्दी पद्यानुवाद है। संभवतः यह रचना १७ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में लिखी गयी थी क्योंकि इसकी एक प्रति संवत् १७५४ में लिखी हुई जयपुर के ढोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। रचना सरल हिन्दी में है तथा साधारण पाठकों के लिये अच्छी है । ३१. पद्मनाभ पद्मनाभ १५-१६ वीं शताब्दी के कवि थे । ये हिन्दी एवं संस्कृत के प्रतिमा सम्पन्न विद्वान् थे इसीलिये संघपति डूंगर ने इनसे बावनी लिखने का अनुरोध किया था और उसी अनुरोध से इन्होंने संवत् १५४३ में बावनी की रचना की थी। इसका दूसरा नाम डूगर की बावनी भी है। बावनी में ५४ है । भाषा राजस्थानी है । इसकी एक प्रति अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हुई है लेकिन लिखावट विकृत होने से सुपाय नहीं है। बावनी अभी तक अप्रकाशित है । ३२. पन्नालाल चौधरी जयपुर में होने वाले १६-२० वीं शताब्दी के साहित्यकारों में पन्नालाल चौधरी का नाम उल्लेखनीय है । ये संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी के अच्छे विद्वान थे। महाराजा रामसिंह के मन्त्री जीवनसिंह के ये गृह मन्त्री थे। इनके गुरु सदासुखजी काशलीवाल थे जो अपने समय के बहुत बड़े विद्वान थे। यही कारण है कि साहित्य सेवा इनके जीवन का प्रमुख उदेश्य हो गया था । इन्होंने अपने जीवन में ३० से भी अधिक ग्रन्थों की रचना की थी। इनमें से योगसार भाषा, सद्भाषितावली भाषा, पारढरपुरांश भाषा, जम्बूस्वामी चरित्र भाषा, उत्तरपुराण भाषा, भविष्यद संचरित्र भाषा उल्लेखनीय है । सद्भांपितावलि भाषा आपका सर्व प्रथम ग्रन्थ है जिसे चौधरीजी ने संवत् १६१० में समाप्त किया था । प्रथ निर्माण के अतिरिक्त इन्होंने बहुत से ग्रंथों की प्रतिलिपियां भी की थी जो आज भी जयपुर के बहुत से भण्डारों में उपलब्ध होती हैं । ३३. पुण्यकीसिं गच्छ एवं युगप्रधान जिनचंद्रसूरि के शिष्य थे । तथा ये सांगानेर ( जयपुर ) के रहने वाले थे । इन्होंने पुण्यसार कथा को संधत. १७६६ समाप्त किया था । रचना साधारणतः अच्छी है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DABANDHARTH ३४. बनारसीदास कविवर बनारसीदास का स्थान जैन हिन्दी साहित्य में सर्वोपरि है। इनके द्वारा रचे हुये समयसार नाटक, बनारसीविलास, अर्द्धकथानक एवं नाममाला तो पहिले ही प्रसिद्ध है । अभी इनकी एक और रचना 'माझा' जयपुर के यधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में मिली है। रचना प्राध्यात्मिक रस से ओत प्रोत है। इसमें १३ पध है।। ३५. चंशोवर इन्होंने संवत् १७६५ में 'दस्तुरमालिका' नामक हिन्दी ग्रंथ रचना लिखी थी। दस्तूरमालिका गणित शास्त्र से सम्बन्धित रचना है जिसमें वस्तुओं के स्वरीदने की रस्म रिवाज एवं उनके गुरू दिये हुये हैं । रचना खडी बोली में है तथा अपने दंग की अकेली ही रचना है । इसमें १४३ पद्य है। कवि संभवतः वे ही वंशीधर है जो अहमदाबाद के रहने वाले थे तथा जिन्होंने संवत १७८२ में उदयपुर के महाराणा जगतसिंह के नाम पर अलंकार रत्नाकर नथ बनाया था। ३६ मनराम वीं शताब्दी के जैन हिन्दी विद्यानों में मनराम एक अच्छे विद्वान हो गये हैं। यद्यपि खनाओं के आधार पर इन समय में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है फिर भी इनकी वर्णन शैली से ज्ञात होता है कि मनराम का हिन्दो भाषा पर अच्छा अधिकार था। अब तक अक्षरमाला, धर्मसहेली, मनरामविलास, बत्तीसी, गुणाक्षरमाला आदि इनकी मुख्य रचनायें हैं । साहित्यिक दृष्टि से ये सभी रचनायें उत्तम हैं। ३७, मन्नासाह मन्नासाह हिन्दी के अच्छी कवि थे। इनकी लिखी हुई मान बायनी एवं लघु बावनी ये दो रचनायें अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में मिली हैं । रचना के आधार पर यह सरलता से कहा जा सकता है कि मन्नासाह हिन्दी के अच्छे कवि थे । मान बावनी हिन्दी की उच्च रचना है जिसमें सुभाषिस रचना की तरह कितने ही विषयों पर थोडे थोड़े पद्य लिखे हैं। मन्ना साह संभवतः १७ धीं शताब्दी के विद्वान थे। ३८. मल्ल कवि प्रबोधचन्द्रोदय नाटक के रचयिता मल्लकवि १६ वीं शताब्दी के विद्वान थे। इन्होंने कृष्णमिश्र द्वारा रचित संस्कृत के प्रयोधचन्द्रोदय का हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद संघत १६.१ में किया था । रचना १. हिन्दी साहित्य का इतिहास-पृष्ट २८ ) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) सुल्लित भाषा में लिखी हुई है। तथा उत्तम संवादों ये भरपूर है। नाटक में काम, क्रोध मोह आदि की पराजय करवा कर विवेक आदि गुणों की विजय करवायी गयी है । ३६. मेघराज मुनि मेघराज द्वारा लिखित 'संयमप्रवण गीत' एक सुन्दर रचना है। मुनिजी ने इसे संवत् १६६१ में समाप्त की थी | इसमें मुख्यतः 'राजचंद सूरि' के साधु जीवन पर प्रकाश डाला गाया है किन्तु राजचन्दसूरि के पूर्वं आचार्यों - सोमरत्नसूरि, पासचन्द्रसूरि तथा समरचन्द सूरि के भी माता पिता का नामोल्लेख, आचार्य बनने का समय एवं अन्य प्रकार से उनका वर्णन किया गया है। रचना वास्तव में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर लिखी गयी है। वर्णन शैली काफी अच्छी है तथा कहीं कहीं अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। ४०. रघुनाथ इनकी अब तक ५ रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं। रघुनाथ हिन्दी के अच्छे विद्वान् थे तथा जिनकी छन्द शास्त्र, रल एवं अलंकार प्रयोग में अच्छी गति थी । इनका गणभेद छन्द शास्त्र की रचना है। नित्यविहार श्रृंगार रस पर आश्रित है जिसमें राधा कृष्ण का वर्णन है। प्रसंगसार एवं ज्ञानसार सुभाषित, रुपदेशात्मक एवं भक्तिरसात्मक हैं। ज्ञानसार को इन्होंने संवत् १७४३ में समाप्त किया था इससे पता चलता है कि कवि १७ वीं शताब्दी में पैदा हुये थे । कवि राजस्थानी विद्वान् थे लेकिन राजस्थान के किस प्रदेश को सुशोभित करते थे इसके सम्बन्ध में परिचय देने में इनकी रचनायें मौन है। इनकी सभी रचनायें शुद्ध हिन्दी में लिखी हुई हैं। ये जनेतर विद्वान् थे । ४१. रूपचन्द कविवर रूपचन्द १७ वीं शताब्दी के साहित्यिकों में उल्लेखनीय कवि हैं । ये आध्यात्मिक रस के कवि थे इसीलिये इनकी अधिकांश रचनायें आध्यात्मिक रस पर ही आधारित हैं। इनकी वर्णन शैली सजीव एवं आकर्षक है। पंच मंगल, परमार्थदोहाशतक, परमार्थ गीत, गीतपरमार्थी, नेमिनाथरासो आदि कितनी ही रचनायें तो इनकी पहिले ही उपलब्ध हो चुकी हैं तथा प्रकाश में आ चुकी हूँ किन्तु अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में अध्यात्म सर्वेच्या नामक एक रचना और प्राप्त हुई है। रचना आध्यात्मिक रस से ओतप्रोत है तथा बहुत ही सुन्दर रीति से लिखी हुई है। भाषा की दृष्टि से भी रचना उत्तम है। इन रचनाओं के अतिरिक्त कवि के कितने पद भी मिलते हैं वे भी सभी अच्छे हैं । ४२. लच्छीराम लच्छ्रीराम संवत् १८ वीं शताब्दी के हिन्दी कवि थे । इनका एक " करुणाभरणनाटक " अभी उलब्ध हुआ है । नाटक में 8 अंक हैं जिनमें राधा अवस्था वर्णन, ब्रजवासी अवस्था वर्णन सत्यभामा Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) ईर्षा वर्णन, बलदाऊ मिलाप वर्णन आदि दिये हुये है। नाटक की भाषा साधारणतः अच्छी है। नाटककार जैनेतर विद्वान थे। ४३. भट्टारक शुभचन्द्र भट्टारक शुभचन्द्र १६-१७ वीं शताब्दी के महान साहित्य सेवी थे 1 भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में गुरु सकलकीति के समान इन्होंने भी संस्कृत भाषा में कितने ही ग्रन्थों की रचना की थी जिनकी संख्या ४० से भी अधिक है । षटभाषाचक्रवत्ति, त्रिविविद्याधर आदि उपाधियों से भी आप विभूषित थे । ___ संस्कृत भाषा के अन्यों के अतिरिक्त आपने हिन्दी में भी कुछ रचनायें लिखी थी उनमें से २ रक्तायें तो अभी प्रकाश में आयी है। इनमें से एक चतुर्विंशतिस्तुति तथा दूसरा तत्त्वसारदोहा है। सत्त्वसार दोहा में तत्त्ववर्णन है । इसकी भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है । इसमें ११ पय हैं। ४४. सहजकीर्ति सहजकीति सांगानेर ( जयपुर ) के रहने वाले थे । ये १७ वीं शताब्दी के कवि थे । इनकी एक रचना प्राति छत्तीसी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भएद्वार में वेंगुटके में संग्रहीत है। यह संबत १६८८ में समाप्त हुई थी। रचना में ३६ पद्य है जिसमें प्रातःकाल सबसे पहले भगवान का स्मरण करने के लिये कहा गया है । रचना साधारण है। ४५. सुखदेव हिन्दी भाषा में अर्थशास्त्र से सम्बन्धित रचनायें बहुत कम है । अभी कुछ समय पूर्व जयपुर के बधीचन्दजी के मन्दिर में सुखदेव द्वारा निर्मित वणिकप्रिया की एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध हुई है। वणिकप्रिया का मुख्य विषय व्यापार से सम्बन्धित है। सुखदेव गोलापूरब जाति के थे । उनके पिता का नाम बिहारीदास था । रचना में ३२१ पद्य है जिनमें दोहा और चौपई प्रमुख हैं । कवि ने इसे संवत् १७१७ में लिखी थी । रचना की भाषा साधारणतः अच्छी है। ४६. सधार कवि अब तक उपलब्ध जैन हिन्दी साहित्य में १४ वीं शताब्दी में होने वाले कवियों में कवि सधारु का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इनकी यद्यपि एक ही रचना उपलब्ध हुई है लेकिन वही इनकी काव्य शक्ति को प्रकट करने में पर्याप्त है । ये अग्रवाल जाति में उत्पन्न हुये थे जो अग्रोह नगर के नाम से प्रसिद्ध हुई थी । इनके पिता का नाम शाह महाराज एवं माता का नाम गुणवती था। कवि ने इस रचना को परछ नगर में समाप्त की थी जो कानपुर झांसी रेल्वे लाइन पर है। 1. जैन सन्देश भाम २५ संख्या १२ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवि की रचना का नाम प्रद्युम्न चरित है जो संवत् १४११ में समाप्त हुई थी। इसमें ६८९ पय है किन्तु कामा उज्जैन आदि स्थानों में प्राप्त प्रति में ६८२ से अधिक पद्य है तथा जो भाव भाषा, अलंकार आदि सभी दृष्टियों से उत्तम है। कविने प्रद्युम्न का चरित्र बड़े ही सुन्दर ढंग से अंकित किया है । रचना अभी तक अप्रकाशित है तथा शीघ्र ही प्रकाश में आने वाली है। .. ४७. सुमतिकीर्सि सुमतिकीर्ति भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में होने वाले भट्टारक ज्ञानभूषण के शिष्य थे तथा उनके साथ रह कर साहित्य रचना किया करते थे। कर्मकाण्ड की संस्कृत टीका ज्ञानभूपण तथा सुमतिकीर्ति दोनों ने मिल कर बनायी थी । भट्टारक शानभूषण ने भी जिस तरह कितने ही मन्थों की रचना की थी उसी प्रकार इन्होंने भी किसने ही रचनायें की है। त्रिलोकसार चौपई को इन्होंने संवत् १६२७ में समाप्त किया था। इसमें तीनलोकों पर चर्चा की गयी है। इस रचना के अतिरिक्त इनकी कुछ स्तुतियां अथवा पद भी मिलते हैं। ४८, स्वरूपचन्द विलाला ___पं० स्यरुपचन्द जी जयपुर निवासी थे । ये खण्डेलवाल जाति में उत्पन्न हुये थे तथा विलाला इनका गोत्र था । पठन पाठन एवं स्वाध्याय ही इनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य था। विलाला जी ने कितनी ही पूजात्रों की रचना की थी जो आज भी बड़े चाव से नित्य मन्दिरों में पढी जाती है। पूजाओं के अतिरिक्त इन्होंने मदनपराजय की भाषा टीका भी लिखी थी जो संवत् १६१८ में समाप्त हुई थी। इनकी रचनाओं के नाम मदनपराजय भाषा, चौसठऋद्धिपूजा, जिनसहस्त्रनाम पूजा तथा निर्वाणक्षेत्र पूजा आदि हैं। ४६. हरिकृष्ण पांडे ये १८ वीं शताब्दी के कवि थे। इन्होंने अपने को विनयसागर का शिष्य लिखा है। जयपुर के बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में इनके द्वारा रचित चतुर्दशी-कथा प्राप्त हुई है, जो संवत १७६६ की रचना है । कथा में ३५ पद्य है। भाषा एवं दृष्टि से रचना साधारण है । १०. हर्षकीर्ति हर्षकीर्ति हिन्दी भाषा के अच्छे विद्वान थे। इन्होंने हिन्दी में छोटी छोटी रचनायें लिखी हैं जो सभी उत्तम हैं । भाव, भाषा एवं वर्णन शैली की दृष्टि से कवि की रचनायें प्रथम श्रेणी की है। चतुर्गति बेलि को इन्होंने संवत् १६८३ में समाप्त किया था जिससे पता चलता है कि कवि १७ वी शताब्दी के थे तथा कविवर बनारसीदासजी के समकालीन थे। चतुर्गति बेलि के अतिरिक्त नेमिनाथ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) राजुल गीत, नेमीश्वरगीत, मोरडा, कर्महिंडोलना पञ्चभगति बेलि आदि अन्य रचनायें भी मिलती हैं। सभी रचनायें आध्यात्मिक है। कवि द्वारा लिखे हुये कितने ही पद भी हैं। जो अभी तक प्रकाश में नहीं आये हैं । ५१. हीरा कवि ये बूंदी ( राजस्थान ) के रहने वाले थे । इन्होंने संवत् १८४८ में 'नेमिनाथ व्याहलो' नामक रचना को समाप्त किया था । व्याइलों में नेमिनाथ के विवाह के अवसर पर होने वाली घटनाओं का वर्णन किया गया है। रचना साधारणतः अच्छी है तथा इस पर हाडौती भाषा का प्रभाव झलकता है । ५२. पांडे हेमराज प्राचीन हिन्दी गद्य लेखकों में हेमराज का नाम उल्लेखनीय है। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी था तथा ये पांडे रूपचंद के शिष्य थे । इन्होंने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के ग्रन्थों का हिन्दी गद्य मैं अनुवाद करके हिन्दी के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योग दिया था । इनकी अब तक १२ रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं जिनमें नयचकभाषा, प्रवचनसारभाषा, कर्मकाण्डभाषा, पञ्चास्तिकायभाषा, परमात्मप्रकाश भाषा आदि प्रमुख हैं । प्रवचनसार को इन्होंने १७०६ में तथा नयचक्रभाषा को १७२४ में समाप्त किया 'था। अभी तीन रचनायें और मिली हैं जिनके नाम दोहाशतक, जखडी तथा गीत हैं। रचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कवि का हिन्दी गद्य एवं पद्य दोनों में ही एकता अधिकार था । भाव एवं भाषा की से इनकी सभी रचनायें अच्छी है । दोहा शतक जबडी एवं हिन्दी पद अभी तक अप्रकाशित हैं । उक्त विद्वानों में से २७, ३५, ४०, ४२ तथा ४५ संख्या वाले विद्वान् जैनैतर विद्वान हैं। इनके अतिरिक्त ५, ६, २४, ३०, ३३ एवं ३६ संख्या वाले श्वेताम्बर जैन एवं शेष सभी दिगम्बर जैन विद्वान् हैं । इनमें से बहुत से विद्वानों का परिचय तो अन्यत्र भी मिलता है इसलिये उनका अधिक परिचय नहीं दिया गया। किन्तु अजयराज, अमरपाल, उराम, केशरीसिंह, गोपालदास, चंपाराम भांवसा ब्रह्मज्ञानसागर, थानसिंह, बाबा दुलीचन्द, नन्द, नाथूलाल दोशी, पद्मनाभ, पन्नालाल चौधरी, मनराम, रघुनाथ आदि कुछ ऐसे विद्वान् है जिनका परिचय हमें अन्य किली पुस्तक में देखने को नहीं मिला। इन कवियों का परिचय भी अधिक न मिलने के कारण उसे हम विस्तृत रूप से नहीं दे सके । अन्य सूची के अन्त में ४ परिशिष्ट हैं। इनमें से ग्रन्थ प्रशस्ति एवं लेखक प्रशस्ति के सम्बन्ध मैं तो हम ऊपर कह चुके हैं । प्र'धानुक्रमणिका में ग्रन्थ सूची में आये हुये अकारादि क्रम से सभी प्रन्थों के नाम दे दिये गये हैं । इससे सूची में कौनसा ग्रन्थ किस पृष्ठ पर है यह ढूंढने में सुविधा रहेगी। इस परिशिष्ट के अनुसार प्रन्थ सूची में १७८५ प्रन्थों का विवरण दिया गया है। प्रन्थ एवं प्रन्धकार परिशिष्ट को भी हमने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी भाषाओं में विभक्त कर दिया है जिससे प्रभ्थ सूची में किसी एक विद्वान के एक भाषा के कितने ग्रन्थों का उल्लेख आया है सरलता से जाना जा Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकता है। प्रस्तुत ग्रन्थ सूची में संस्कृत भाषा के २७३, प्राकृत के १४, अपनश के १६ तथा हिन्दी के २०२ विद्वानों के ग्रन्थों का परिचय मिलता है तथा इससे भाषा सम्बन्धी इतिहास लेखन में अधिक सहायता मिल सकती है। ग्रन्थ सूची को उपयोगी बनाने का पूरा प्रयत्न किया गया है तथा यही प्रयास रहा है कि ग्रन्थ एवं ग्रन्ध कत्तो आदि के नामों में कोई अशुद्धि न रहे किन्तु फिर भी यदि कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो विद्वान पाठक हमें सूचित करने का फष्ट करें जिससे भागे प्रकाशित होने वाले संस्करणों में उसका परिमार्जन किया जा सके। धन्यवाद समर्पण ___ सर्व प्रथम हम क्षेत्र कमेटी के सदस्यों एवं विशेषतः मन्त्री महोदय को धन्यवाद देते हैं जो प्राचीन साहित्य के उद्धार जैसे पवित्र कार्य को क्षेत्र की ओर से करवा रहे हैं तथा भविष्य में इस कार्य में और भी अधिक व्यय किया जावेगा ऐसी इमें आशा है । इसके अतिरिक्त राजस्थान के प्रमुख जैन साहित्य सेवी श्री अगरचन्दजी नाहटा ए.वं वीर सेवा मन्दिर देहली के प्रमुख विद्वान् पं० परमानन्दजी शास्त्री के हम हदय से आभारी हैं जिन्होंने सूची के अधिकांश भाग को देखकर आवश्यक सुझाव देने का कष्ट किया है तथा समय समय पर अपनी शुभ सम्मतियों से सूचित करते रहते हैं। श्रद्धय गुरुवर्य पं० चैनसुखदासजी सा० न्यायतीर्थ के प्रति भी हम कृतज्ञांजलियां अर्पित करने हैं जो हमें इस पुनीत कार्य में समय समय पर प्रेरणा देते रहते हैं और जिनकी प्रेरणा मात्र से ही जयपुर में साहित्य प्रकाशन का थोड़ा बहुत कार्य हो रहा है । बधीचन्दजी के मन्दिर के प्रबन्धक बाबू सरदारमलजी आबूजी वाले तथा ठोलियों के मन्दिर के प्रबन्धक बाबू नरेन्द्र मोहनजी इंडिया तथा पं० सनत्कुमारजी बिलाला को भी हार्दिक धन्यवाद है जिन्होंने अपने यहाँ के शास्त्र भएडारों की प्रन्थ सूची बनाने की पूरी सुविधा प्रदान की है। अन्त में हमारे नवीन सहयोगी वायू सुगनचन्दजी को भी धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकते जिन्होंने इस प्रन्थ सूची के कार्य में हमारा पूरा हाथ बदाया है। कस्तूरचन्द कासलीवाल अनूपचन्द जैन Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ शताब्दी के हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान - महा पंत्र टोडरमलजी द्वारा रचित एवं लिखित हमहुबशह पहोवा के जो बहुकाधिक सम्पर्क सोच‌ले कान से मोजना हो । मामानीराम शा कावि जनतेस माना जाता था रिये मालि करते ही कुरिया की सत्ता का सद्भाव हो र सामिप वाकेनानुकीमा पनि हो । हजार कृति है से चरित्र में प्रति सिम्पालके में से सबै ताका समाधानकोधादिरूम परिणाम हो कि होतानाही सानु श्रीवारिक सम्पनी हो मानमर परमानुजम के धादिकारे से काहिक सम्प महोइमानि मत्तनैमिनिकंपनीवाईरहे। जैसे मपनी की घातक कैंडिस जातिमक्कतिकालीन हो पीएन पहले मैं नेता भीमाम् श्रीन्ामशतक मनोहरौ कमाने तो किंग करियाक ( इनकार कर केंद्रप्रकृति को नाकामा सम्पर्ककोधात कर्शन मोह। निकांशी याचार करने हो । प्रमं सम कोहकांकडे मानवि fara मोक्षमार्ग प्रकाश एवं क्षपामार की मूल प्रतियों के चित्र कपास हो मोगका Aanan इतरांश उपनिशम सार परेंस दिये कल्पान्मु वामपक माउस इस माम नि सक्का तकहितकार या स संगमन कारंहिकास र सीम हा काय ि होसीक हमा नमायते कुकर जरिवा गुरुम [ जयपुर के बीचन्द्रजी के मन्दिर के शास्त्र-भण्डार में संग्रहीत ] श्री मलसार गोमरसं की मानवकानामनपाको सामा कासरे Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीराय नमः राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थसूची : श्री दि० जैन मन्दिर बधीचन्दजी (जयपुर) के ग्रन्थ विषय - सिद्धान्त एवं चर्चा अन्तगढदशाओ वृत्ति (अन्तकृदशासूत्रवृत्ति ) - श्रभयदेवसूरि पत्र संख्या -७ | साइज - १ ०x४३ इञ्च । भाषा-संस्कृत | विषय - सिद्धान्त | रचनाकाल X | लेखनकाल X | पूर्णं । वेष्टन नं० २६० । विशेष - श्रन्तकृतदशसूत्र श्वे० जैन श्रागम का दबंग है। श्राश्रव त्रिभंगी -- नेमिचन्द्राचार्य | पत्र संख्या - १२ । साइन- ११३ विषय- सिद्धान्त | रचनाकाल । लेखनकाल - सं० १६०९, द्वितीय मादवा सुदी ३ | पूर्णं । वेष्टन नं ० ६७६२ विशेष-प्रति संस्कृत टीका सहित हैं । भाषा प्राकृत | ३. इकबील ठाणा चर्चा-पत्र संख्या - ६ साइज - ११४५ च । भाषा - प्राकृत | विषय - चर्चा | रचनाकाल × | लेखनकाल संवत् १८१३ फागुण सुदी १३ | पूर्ण | बेष्टन नं० १५४ विशेष-पं० किशनदास ने प्रतिलिपि की भी । ४. इक्कीस गिरती का स्वरूप - पत्र संख्या - १३ । साह - ८३x६ ६ । भाषा - हिन्दी | विषय - सिद्धान्त । रचनाकाल | लेखनकाल- सं० १८२६ | पूर्ण | वेष्टन नं० ३८६ | विशेष—संख्यात श्रसंख्यात और अनन्त इनके २१ मेदों का वर्णन किया गया है। | भाषा ५. एक सौ गुणहत्तर जोत्र पाठ - लक्ष्मणदास | पत्र संख्या- ७१ | साइज - ११७३ हिन्दी (पथ) 1 विषय - चर्चा। रचनाकाल सं० १८८४ माघ सुदी ५ | लेखनकाल X | पूर्ण । वेष्टन नं० ४६८ । विशेष- प्रारम्भ - श्रय लिमदास कृत पाठ लिख्यते । अथ एक सौ तर जीवों की संख्या पाठ लिख्यते । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [सिद्धान्त एवं चर्चा दोहा-वृषभ प्रादि धौनीस को नमो नाम उरधार । कचु क संख्या कहत हु उत्तम नर की सार ॥१॥ प्रभमहि जिन चौबीस के कहीं नाम सखदाय 1 मोटि जनम के पाप ते दमक एक मैं जाय ॥२॥ छंद-प्रथम वृषम जिन देव, दूजी अजित प्रमानौ । तीजी संमत्र नाथ अभिनंदन चउ जानी ॥३॥ अन्तिम-इनका कथन वसेषतै प्रव नगरी प्रादि । मथ माहि ते जानयों जथा जोग धनवाद ॥६॥ पाठ बदन के कारण कियौ नाहि मैं मित । नाम मात्र अनुराग बसि घारि फियो हरि चित ०॥ छन्न सुन्दरी--जैनमत के व लखाय के। कहत हौं ये पाठ बनाय के। नाम ए चित मैं जु धरै नरा । होय मिथ्या जाल सबै परा | ' मूल यूक जु होय सुधारयो । होसि पंडित माहि न फारयौं । करि निमा मो गुगण गहि लीजियो । राम कह फिरप तुम कीजियौ ॥७२॥ दोहा-ठारास चौरासिया वार सनीश्चर बार, पोस कृष्ण तिथ पंचमा कियो पाठ सुभ चार ||७३"; __"इति एक सौ घुणतर जीव पाठ संपूरणाशा नित्र पाठ और है: नाम पत्र संख्या पद्य संख्या विशेष ६से २४ तुक २२७ १२४ दस बैंच मेद वर्णन रामचन्द्र कत (1) तीस चौवीसी पाठ (२) गणधर मुख्य पाठ (३) दसकरण पाठ (४) जयचन्द पचीसी १५) सागति जागति पाठ ६) बट फारिक पाठ ७) शिष्य दिशा कीसी पाठ (८) सात प्रकार वनस्पति उत्पत्ति पाठ {1) जीवमोद बत्तीधी पाठ सं. १८४ मंगसिर वदी ११ mernam ४३ से ४४ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Party सिद्धान्त एवं पर्चा ] नाम पत्र संख्या पद्य संख्या विशेष ने २६ (१०) मोह उन्ष्टमित पचीसी (१) प्रथम शुक्ल ध्यान पचीसी ( १२ / अंतर चोबनो (१३) बंधवोल (१४) इकबीस गिमाती को पाठ (१५) सम्यक चतुरदसी (१६)क अक्षर आदि बीसी (१.! रामद रूपदीय १६. Kw १८८४ माघ सुदी। मंगलवार ६. कर्मप्रकृति-प्राचार्य नेमिचन्द्र । १५ संख्या-९६१ साइज-!१४४ इञ्च भाषा-प्राक्त । विषय-- सिद्धान्त | रचनाकाल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन सं० १६ । विशेष-मूल मात्र हैं तया गापायों की संख्या १६२ हैं। ७. प्रति नं.२-पत्र संख्या-१६ । साहज-१०x१३ लेखन काल सं.-१-५६ भावस्य सुदी १३ । पूर्व । बेष्टन न०१७ विशेष - चंपाराम ने प्रतिलिपि की थी। इस प्रति मे १६४ गाथायें हैं। ८. प्रति नं० ३-पत्र संख्या-१६ । सान-१२४४३ इव । लेखचकाल x ३ पूर्ण र वेटन नं. १ | विशेष-गाथाओं की संख्या-१६१ है । ६. प्रति नं.४-पत्र संख्या-१३ । साइज-१४४३ इव । लेखनकाल सं० १३.६ प्रयाद सुदी १ । पूर्ण । वेष्टन नं. १६ | इसमें १६१ गाथा हैं। विशेष- संस्मन में कहीं २ टिप्पग्ण दिया हुआ है । लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है-सं. १६४६ वर्षे प्राषाट मासे शुलपक्ष प्रतिपदा तिम्रो भोमवासरे श्रीमूलरांचे नंघानाये वलात्कारनये सरस्वतीगच् कुन्दकुन्दाचार्यान्वये पाचायं भुवनकीर्तिदेवा तत् शिष्यणी या० मुक्तिश्री तत् शिप्या श्रा० कार्तिी पठनार्य । कल्याणमस्तु । अमरसरमध्ये सध्यश्री मजाजी । १०. प्रति नं.५-पत्र सख्या-४४ । साइन-५:४ । लेखनकाल सं.-१८११ मादवा मुदी १३ । पूर्ण । श्रेष्ठन नं. ५६। विशेष-हरचन्द ने प्रतिलिपि को थी । ग्रंथ गुटका साइज में है। १६१ गाथायें हैं। ११. प्रति नं. ६–पत्र संख्या-११ | साज-१.३४६ च । लेखनकाल-X ! पूर्ण । वेष्टन नं ७ । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सिद्धान्त एवं चर्चा विशेष-प्रति प्रशुद्ध हैं। संस्कृत टीका सहित है । मूल गायायें नहीं है । म प्रकृति का सत्वस्थान भंग सहित गुणास्थान का वर्णन है। जिनदेवं प्रणम्याहं मुनिचन्द्र' जगत्प्रभु। मकर्माकलिस्थानं संदणीमि गमागमं ॥३॥ णामिऊण बड्ढमायां करणयदि देवरायपरिपुन्छ । पयडीणसत्तठा योघे भगे समं वोछे ॥१॥ देवराजपरिपूज्यं कनकनिम बद्ध भानभगवद श्रमिट्टारकं नत्वा कर्मप्रकृतीना सत्वस्थान मंगसहितं गुणस्थाने वशमीति संबंध: १२. प्रति २०७-पत्र संख्या-३४ । साइज ११-xk इश्च । लेखनकाल-१६७६मादत्रा सुदी १४ । पर्ण । देष्टन में० २१ । प्रति सटीक है । अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है। विशेष-इति प्रायः श्री गोमट्टसारमूलात् टीकाश्च निष्काम्य अमेण एकीकृत्य लिखितां श्रीनेमिचन्द्र सैद्धान्तिक विरचित कर्मप्रकृतिग्रन्यस्य टीका समाप्ता। लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है सं० १६७६ वर्षे माद्रपदमासे शुक्सपो चतुर्दश्यां तिथौ संग्रामपुरवास्तव्ये महाराजाधिराजराजश्रीभावसिंहराज्ये शोमलसंधे थाम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये महारत श्रीपमनदिदेवातपट्टे भट्टारक शुभचन्द्रदेवा तत्पष्ट म० श्री जिनचन्द्रदेवा तत्प?' भट्टास्क श्री प्रमाचन्द्रदेवा तत्पट्टे श्रीचन्द्रकीर्तिदेवा तत्प म. श्री श्री श्री श्री श्री देवेन्द्रकीतिजी । तदाम्नाये खंडेलवालान्वये मौसा गोत्रे सा• गंगा तदभार्या गौरावे तयोः पुत्र सा• घेस्हा तद् भार्या थेलसिरि तयोः पत्र पंन । प्रथम सा. ताल्हु तद भार्या ल्होड़ी तयोः पुत्री ही सा- माजू तद् भायें है . बालहंदे, दि० प्रतापदे तत्यत्री द्वौं प्र० पुष सा० सावल तद् भार्या सहलालदें तयोः पुत्र चि० साहीमल, द्वि० पुय सा० साकर | साह ताल्छु द्वि पर सा० च तस्य मार्या गावदे । एतेषां मध्ये साह वाजू तद मायाँ बालहंदे इदं शास्त्र स्त्रययत-उधापनाथ भट्टारक श्री श्री श्री देवेन्द्र कीर्ति तत् शिम्य आचार्य श्री रामकीर्तिये दस । ५३. कर्मप्रकृति विधान-बनारसीदास। पत्र संख्या-१३ । साइज--१.६४४ इञ्च । मावा-हन्दी । विषय-सिद्धान्त । रचनाकाल-६० १.०० । लेखककाल-१७६० | पूर्ण । श्रेष्टन नं. ८१२ | विशेष—यह रचना बनारसीविलास में संगृहीत रचनाओं में से है । १४. प्रति नं०२-पत्र संख्या-५ | सावज-६x६३ दश्च । लेखनकाल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ३६७ । विशेष-कर्मग्रकृतिबिधान गुटके में है जिसमें निम पाठ और है-थानकों के १. नियम, सिंदूर प्रकरण(बनारसीदास) और अनित्य पंचाशिका-( त्रिभुवनचन्द )। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं पर्चा ] १५. प्रति नं०३-पत्र संस्था-१६ । सारज-६५४५ इंच | लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं ३६८ | १६. कर्मप्रकृतियों का ब्योरा-( कर्मप्रकृति पर्चा ) ................... । पत्र संख्या-१७ । सारज-१४६x६ इंच । भाषा-हिन्दी 1 विषय-सिद्धान्त । रचना काल-४ | लखन काल-। पूर्ण । पेटन नं. ८३३ । विशेष-प्रच मही खाते की साइज में है। १७. कर्मस्वरूपवर्णन- अभिनव वादिराज (पं० जगन्नाथ)। पत्र संख्या--१. साइज१७६x६ इंच ! भाषा-संस्कृत | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-सं० १७०७ माष बुदी १३ । लेखन काल-सं० १५.७ । अपूर्ण । वेष्टन नं. ६८४ । विशेष-१० से २३ तक के पत्र नहीं हैं । रचना का प्रादि अन्त भाग निम्न प्रकार है ___कर्मव्यूहविनिर्मुक्ला, मुक्त्वाम्नत्वा त्रिशुद्धितः । अन्यकर्मस्वरूपाख्यो वादिराजेन तन्यते ॥ १ ॥ अन्तिम पाठ इति निस्वविद्यामंडनमंडित पस्तिमंडलीमंडित मट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्तिजीकास्यशियः कविगमस्विादिवाग्मित्व वागणभूषणैः कन्यादातपादप्रभाकरभट्टशिवपुगतचार्वाकसांकरप्रमुखपवादिगणोपन्यस्तदूषणदूषणैस्पैविधविषाधिः पंडित जगन्नाधैरपराख्ययाभिनमवादिराजविरचिते कम्मस्वरूप थे स्थित्यत्मागप्रदेशनिरूपणं नाम द्वितीय उल्लास, वर्षे तत्त्वनमो व भूपरिमिते ( १७०७) मासे मधौ सुन्दरे, तत्पते च सित्तेतरेहनि तथा नास्ना द्वितीयाहये । श्रीसर्चशपाबुजानति-नालद् झानावृतिप्रामवा स्ववियश्वरतागता व्यरचयन् धौवादिराजा इमं ॥ १ ॥ तावत्केवलिभिःसम: कलिमलैर्मुक्ताः कली साधवः । तावज्जैनमतं चकारित विमलं तावनधर्मोत्सवः । तावत्षोडशभावनाभवभूता स्वर्गापवर्गोक्कयो पावटीपरमागभी विजयने गोमट्टसारामिधः ॥ २ ॥ १८. काल और अन्तर का स्वरूप--.......................... । पत्र संख्या-१२ 1 साज-११४५ १५ । भाषा-हिन्दी । विषय-सिद्धान्त । रचना काल--- ! लेखन काल-x 1 पूर्ण । बेष्टन नं. E७३ । रचना का धादि अन्त भाग निम्न प्रकार है... अब काल र अन्तर का स्वरूप निस्पण करिए है।॥ तिनि विर्षे भार सातर मार्गमा तिनका स्वरूप Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा] संख्या विधान निरूपणे के अर्थि गाथा तीन करि कहै है। नाना जीवनि की अपेक्षा विवक्षित गुणस्यान वा मार्गपणास्थान नै सोद्धि धन्य कोई गुणस्थान त्रा मार्ग णास्थान में प्राप्त होइ । बहुरि उस हो विवक्षित गुण स्थान का मार्गणारयान को यावत्काल प्राप्त न हो इति सत्काल का नाम अंतर है । अन्तिम-विवक्षित मागंगा के भेद का काल त्रिय निक्षित गुणस्थान या अंतराल जेते कालि पाईए ताका वर्णन है । मार्गपणा के मेव का पलटना मा । अमत्रा मार्गणा के भेद का सद्भाव होते विवक्षित मुणस्थान का अंतराल मया मा ताकी बहुरि प्राप्ति भए विस अंतराल का अभाव हो है। ऐसे प्रलंग पाई काल का घर अतर कथन कीया है सो जानना ॥ इति संपूर्ण पोथी शान आई की। १६. झपणासार टीका-माधवचन्द्र ऋविध देव । पय संख्या-६.| साइज-१४४६३ च 1 माषा-संस्कृत | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-४ । लेखन काल-X { पूर्ण । बेष्टन नं. ८ | विशेष – प्राचार्य नेमिच द कन क्षणासार को यह संस्कृत टीका है । मूल रदना प्राकृत भाषा में हैं। २०. गुणस्थान चर्चा- | पत्र संख्या-५२ । साइज-१२४७ ११ | माषा--हिन्दी । विषय-चर्चा । रचना काल-X । जेसन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ८.२ । विशेष-चौदह गुणस्थानों पर विस्तृत चाट ( संदृष्टि ) है : २१ प्रति नं०२–पत्र संख्या-३६ | साज-१२४६ इन । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन २२. प्रति नं० ३.--पत्र संख्या-५१ । सहज-१०६x६५व । लेखन काल-* | पूर्ण । वेष्टन नं. ८६४ । २३. गोमदृतार-पा० नेमिचन्द्र । पत्र संख्या-५२६ । माइज-१४४५३. इञ्च | भाषा-पात । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X. लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन न. ६८६ । विशेष-७२ से थाने पत्र नहीं हैं । प्रति सस्कृत टीका सहित है। २४. प्रति न० २-पत्र सं०-१६५ से ८४८ । साइज़ -१२३४५ इष्ण | लेखन कःल X । अपूर्ण । घटन. ७५ विशेष:-प्रत संस्कृत टीका सहित है। २५. प्रति नं०३-पत्र संख्या ५५ । साइज-११४५ च । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ६.01. . विशेषा-जोकारक मात्र है गायात्रों पर संस्कृत में पर्यायवाची शब्द हैं। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा] ------ २६. प्रति नं. ४-१त्र संख्या १७२ | साज-१३४८ इस । लेखन काल- | अपूर्ण | पन नं.६६२ । विशेष – हिन्दी अर्थ सहित है। आगे के पत्र नहीं है । २७. प्रति नं०५-पत्र सल्या-४० | साइज-३०x४३ १५ । लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन में० ६.४ । ८. प्रति नं. ६-पत्र ५.२पा-११ । साइम-११४४४ ६३ । लेखन काल-X । पूर्ण । बटन नं ११ । शप-निदा ..... हैं , - २६. प्रति नं.-र संख्या-: ४. ५:१ | साइज-२.४७३, म | X । लेखा कहल-सं. १९ । मार्ण । टन ०६५। विशेष---२४६ पे २४३, ३० से ४४०, ४८० से ५२८ तक पत्र नह! हैं । गांत गैस सामा ने प्रतिलिपि की थी । सं. १७६६ में महाराजा जयसिंह के शासन काल में सवाई जयपुर में जोधराज पाटोदी द्वार। उस नि.मत्त ( बनाये हुए) ऋषभदेव चैयालय में गुलाबचन्द गोदीका में प्रतिलिपि करता कर इस पंच को भेंट किया था। केशव को कटक वृत्ति के माधार पर संस्कृती शस्ति--संवासरे नव-नारद मुनि ते १७६६ भाद्रपदमासे शुक्लपते पंचमोतिथी सबाईकयपुरनाम्नि नगरे महाराजाधिराज पवाई जयसिहराव्यपवर्तमाने पायेदी गोलीय साई जोधराज कारित श्री ऋषभदेव चैत्य लय । श्री मूलधि नधासाय चलाःकारनामों सरस्वती कुन्दकुदानाधिो भडारका झन् ४ी जान कीर्तिदेवास्त-पर्ट प्रमाणपत्र दिन प्रतिभाधारक मारक जन् श्री देवेन्द्र के.सिंदेवा । तपधारक , कुमतिनिकारक केनुमोनिकारक भवमय-भंजन महाराधिनत भी महेन्द्रकीर्ति देवासाय लाया शोपन भाँवसा गोगामध्ये मोदीके'त गाना प्रसिद्धा श्रेग्नजित की लूणाकराव्यास्तापुत्र थी भगवदर्भ प्रकरजकारणापर साह जो रूएनन्द जी करतः पुत्रः राद्धांतवितरणेचनितानादिमिथ्या वनिकर गिर जोयक्ति श्री गुलाब चन्द ण इन नोमट्टमार शास्त्र लिखाध्य महारक जिन श्री महेन्द्र पोतिये परत ।। ३०. गोमट्टसार भाषा-पंटोडरमता जी । लब्धिसार क्षपणासार सहित ) पत्र संख्या-१०५.३ । साइ7-2०४६ सश्च 1 मामा-हिन्दी । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-स. ११ माघ सुदी ५ । लेखन काल-x | पूमो । वटन नं. ७१२ विशेष-कई प्रतियों का सम्मिश्रण है। बहुत से पत्र स्वयं पं. वरमलजी के हाथ में लिखे प्रतीत होते हैं। भंस का विस्तार ६.,००० श्लोक प्रमाण है। ३१. पति i०२-पत्र संख्या-११०४ : साइन-१५४ इञ्च । येखन काल-सं० १८६. पाच युदी १२ । अपूर्ण । वेष्टन नं०७१६ । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सिद्धान्त एवं चर्चा विशेष - संदधि के पलग पत्र है । ११८, १३३ तया २०२ के पत्र नहीं है। ३२. प्रति नं०३-पत्र संख्या-१०३१ । साज-१२x६३ इंच | लेखन काल-X । पूर्ण । वेप्टन ३३. प्रति नं०४-पत्र संख्या-३११ । साज-१३:४८ 1 लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन • १९ विशेष-केवल कर्म कागड भाषा है। ३४. प्रति नं०५-पत्र संख्या-१२ । साज-१४४६१६च | लेखन काल-४ अपूर्ण । वेष्टन नं०८.१। विशेष-जीवकारख की माषा मात्र है। ३५. गोमट्टसार कर्मकाएर टीका-सुमति कीनि । पत्र संख्या-४५ | साइज--११x* इस । भाषा66 | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन में० २० । ३६. गोमसार कर्मकाण्ड भाषा-५० हेमराज | पत्र संख्या-४ । साज-1xr । माषा-हिन्दी | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-x | लेखन काल-स. १७०६ । पूर्ण । वेष्टन न. ३६६ । विशेष -- ६० सेवा ने सरोजपुर में प्रतिलिपि की थी। प्रभ का प्रारम्भ और अन्तिम माग निम्न प्रकार है - प्रारम्भ-पग्णामय सिरस गर्मि शुष स्यण विड्स महावीरें । सम्मत्रय निलय पडि समुचित्तणं बोई ॥१॥ अर्थ- अहं नेमिचंद्राचार्यः प्रकृती समुत्कीतने बच्य । अहं है र हौ नेमिचंद्र ऐसे नाम प्राधार्य सो प्रकृतिसमु. कौतन प्रकृति हुकार है समुत्कीलनं कथन जिस विष ऐसा जम कर्मकांड नामा तिसहि वक्ष्ये कहूंगा । किंकृत्वा कहा कार सिरसा नेमिं प्रणम्य सिस्करि श्री नेमिनाथ को नमस्कार कारकै । कैसे है नेमिनाथ गुणरत्न विभूषण-अनत सानादिक र गुण तेई हुवे रत्न तेई है विभूषण प्राभरण जिनके । बहुरि कैसे हैं महावीर महासमद हैं कर्म के नासकरण कौं । बहुरि कैस है सम्यक्त रत्न निलयं । सम्यक्त रूप व है रत्न तिसके निख्य स्थानक है । अन्तिम- जिस काल यह जीव पूर्वोक्त प्रत्यनीक धादिक किया विर्षे प्रक्स, तब जैसी कुछ उत्कृष्ट मध्यम जघन्य शुभाशुम किया होई, तिस माफिक कर्म हूँ का बंध कर स्थिति अनुमाग की विशेषता करि । तिस ने समय समय बंध ड करै तौ स्थित अनुमाग को हीनता करि । प्रसव प्रत्यनीक आदिक पूर्वोक्त क्रिया करि करें सुस्थित अनुमाग की विशेषता करि यह सिद्धान्त माखना | स्यं माषा टीका पंडित हेमराजेन कृता स्वबुद्धधानुसारेषा । इति कर्म का भाषा टीका सम्पूर्ण । इति संवत्सरे अस्मिन् विक्रमादित्यराजसप्तदशसत सतषटीचर १७०६ अव सरोजपुरे संनिधे पुस्तक लिख्यतं पंडित सेवा स्वपठनाई ३७. प्रति न० २-47 संख्या-७६ । साइझ-१५xa | लेखन काल-सं. १८२५ श्रासोज दी १०। पूर्ण । यष्टन. ३६६ । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] विशेष फोटा में प्रतिलिपि हुई थी । ३५. चर्चाशतक -द्यानतराय । ११ लम्बा-५३ विषय- सिद्धान्त । रचना काल X। लेखन काल - सं० १६२४ चैत सुदी पूर्ण वेष्टन नं - १९०३ भाषा (२६)। पूर्ण वेष्टन नं० ७०३८ 1 विशेष- यह प्रति बधीनाम्य साहामिका के शिष्य हरजीमल पानीपत वाले की हिन्दी वा टीका सहित है। ३६. प्रति नं० २- पत्र संख्या ४७ | १४६११ इंच | लेखन फाल - सं० १६३ ज्येष्ठ बुद्री पूर्ण । वेष्टन नं० ७८४ । हैं । विशेष-- प्रति बहुत सुन्दर हैं-हिन्दी व्या टीका सहित है। बीच में नक्शे आदि भी दिये हुए ४०. प्रति नं० ३-५ संख्या ६२ । साईज - १२x६६ इंच | लेखन काल स० १९०६ भाघ सुदी विशेष [ε प्रत्येक पत्र पर ३ पंक्तियां हैं। ४९. चर्चासमाधान - भूधरदास जी पत्र संख्या ७६ विषय—चर्चा | रचना काल -x | लेखन काल सं० १८८४ । पूर्ण | बेष्टन नं० ३६१ । ४२. प्रति सं० २- पत्र संख्या - ११३ | साइज - १०३ नं० ३६२ | 31 साहज - १०३४५ इंच | भाषा - हिन्दी । 1 ५४ | लेखन काल - स०१८०३ । पूर्ण 1 बेष्टन ४३. प्रति नं० ३ - पत्र संख्या १३ साहन - १९९५ पंच । लेखन काल-सं० २०४८ पूर्ण पेष्टन- २६३ ॥ ४४. चर्चासंग्रह — पुत्र संख्या - २७२ | साइन - १२४६ ६ । माषा - हिन्दी | विषय-चर्चा | रचनाकाल - X। लेखन काल -X | अपूर्ण । वेष्टन नं० २५६ । विशेष-— गोमहसार त्रिलोकसार, रूपणासार यादि प्रन्थों के आधार पर धार्मिक वर्षायों को यहाँ सग्रह किया गया है । चर्चाओं के नाम निम्न प्रकार हैं चर्चा वर्णन, कर्मप्रकृति वर्णन, तीर्थकर वर्धन, मुनि वर्णन, नरक वर्णन, मध्यलोकन, अन्तरकाखन समोरमवर्णन श्रुतिसानवर्णन | नरकनिगोदवर्णेन । मोहसुखवर्णन, अन्तरसमाभिवर्धन, कृषवन ६ । ४५. चौबीस ठाणा चर्चा - श्रा० नेमिचन्द्र । पत्र संख्या ६९ से १२७१ साइज -- १२४६ एच | भाषा प्रश्कृत । त्रिषप - सिद्धान्त | रचान काल- ४ | लेखन अल - अपूर्ण । वेष्टन नं० ३२० । विशेष-संस्कृत में टीका दी हुई हैं। ४६. प्रति नं० २ – पत्र संख्या - १२३ । साइज - ११३४४३ ह । लेखन काल-सं०] १७०२ | पूर्ण 1 बेटन नं० १६६ । विशेष—–श्रुति संस्कृत टथ्वी टीका संहित है। टीकाकार- श्रानन्द राम है शु Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.] [ सिद्धान्त एवं चच ४७. चौबीसठाणा चर्चा भाषा--पत्र संख्या-५२ । साइज-११४५ इञ्च । माषा-हिन्दी | विषय-चर्चा | . रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८८५ माह बुदी । पूर्ण । वेष्टन नं. ३५६ । विशेष-भाषार्टीका का नाम बाल बोध-चर्चा दिया हुआ है। ४८. प्रति नं०२-पत्र मख्या-३० । साइज-४५ इन । लेखन काल-० १३२३ कार्तिक बुदी । " | पूर्ण । वेष्टन नं. ३५६| विशेष-खुशालच'द ने प्रतिलिपि की भी। ४६, चौथीसठाणा चर्चा-पत्र संख्या-१३ । साइज-१०४ ५ इन्च | भाषा-हिन्दी । त्रित्रय-चर्चा । । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । श्रेष्टन नं. ८६१ । ५०. चौबीसठाणा चर्चा-पत्र संख्या-८ । साइन-३४४३ ६ । भाषा-हिन्दी | विषय चर्चा । रचना काल-X । लेखन काल-X । अपूर्ण 1 वेष्टन नं. ५४६ । ५१. चौवीसठाणा चर्चा–पत्र संख्या-३८ | साइज-११३४१३ बम | माया-हिन्दी । विषय-चर्चा । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १८२० । पूर्ण । थेष्टन नं. ५४५ । विशेष--हिंडोली में प्रतिलिपि हुई थी। ५२ चौबीसवाणा पीठिका-पत्र संख्या-- । साइज-१:xs इन ! भाषा-हिदी । विषय-चर्चा | रचना काल-X । लेखन काल-x 1 पूर्ण । वेष्ठन नं० ११२७ । ५३. चौबीसठाणा पीठिका-पत्र संख्या-४३ | साइज-११४५ इन्न । भाषा-हिन्दी | विषय-चर्चा । रचना काल-X । लेखन काल-x। ग्यं । वेष्टन न. ५१६ । ५४. जीवसमास वर्णन-पा० नेमिचन्द्र । पत्र संख्या-१४ । साइज-१२४१५ वा । भाषा-प्रारुत , विषय-सिद्धान्त । स्वना काल-x | लेखन काल-X | अपूर्व । वेष्टन नं. ३२१ । विशेष-गोमट्टसार जीवकार में से गायाओं का संग्रह है। ५५. प्रति २-पत्र संख्या-४५ । साहज-११४५ च । लेखन काल-x | पूर्ण। वेष्टन नं. ३२२ । विशेष-गाथाओं पर संस्कृत में अर्थ दिया हुआ है । ५६. झानचर्चा-पत्र संख्या-४६ । साज-४५३ हश्च । भाषा-हिन्दी । विषय-चर्चा । रचना काल-- x। लेखन काल-४ | अपूर्ण । वेष्टन न० ३५७ | विशेष-गोमट्टसार, त्रिलोकसार, आपल्यासार श्रादि मयों के अनुसार निभ २ चर्याश्रों का संग्रह है । ५७. सत्त्वसार-देवसेन । पत्र संख्या-४ । साइज-१.६४४१ न । माषा-प्राकृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन ने० ७० | Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं वर्षा] विशेष-यति प्राचीन है। ५८. तत्वार्थसूत्र-ठमास्यामि । पत्र संख्या-२३ 1 सारज-११४५ इन। भाषा-संस्कृत । विषय-- विद्वान्त । रचना काल-x। लेखन काल-सं० १८७३ / पूर्ण । वेष्टन नं. ५१४ । विशेष-~-प्रारम्भ में भक्तामर स्त्रोत्र तथा द्रव्य संग्रह की गामायें दी हुई है। ५६. प्रति नं०२-पत्र संख्या-३३ । साइन-१.३ । लेखन फाल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ५२४ । विशेष-पत्र लाल रंग के हैं तथा चारों ओर मैलें है। ६८. प्रति नं०३-पत्र सं०-१५ । साइज-११४५६ इञ्च । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं: ५३१ । ६१. प्रति न०४-पत्र सल्या-७ । सोइज-१.३४७ इञ्च | लेखन काल-x I पूर्ण । वेष्टन न० ५६ | ६२. प्रति नं०५-पत्र संख्या-१४ । साइज-११३४५३ च | लेखन फाल-- । पूर्ण | बेष्टन मं०५६ ६३. प्रति नं. ६-पत्र संख्या-७ 1 साज-१६x६ । लेखन काल--१९३१ पूर्ण । वेष्टम नं. ६०६ ॥ ६४. प्रति नं. ७-पत्र संख्या-१-१६ । साज-१०x४३ ra | लेखन काल-x अपूर्ण । वेष्टन विशेष-एक पत्र में ४ पंक्तियाँ हैं । ६५. प्रति न०८-पत्र संख्या-७ । साइन-१०x४ इन्ध | लेखन फाल-X1 पूर्ण 1 वेएन नं० २०४१। विशेष—प्रति प्राचीन है। ६६. प्रति नं. ६-पत्र संख्या- ७३ | साइज-७४५६ । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं. ६४८ । विशेष-भक्तामर स्तोत्र तथा पूजात्रों का मी संग्रह है। ६७. प्रति नं०१०-पत्र संख्या-२० । साइज-१११५५६ च । लेखन कल ई । बेन नं. १४२ विशेष-तीन चौवीसी नाम तपा भक्तामर स्तोत्र भी है। ६८. प्रति नं. ११-पत्र संख्या-४ । सारन-१.३४३ इंच । लेखन काल-४ । पूर्ण । घेटन . विशेष-हिन्दी टव्या टोका सहित है। ६६. प्रति नं० १२ -पत्र संख्या-४ । साइन-१०३४७६च । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन 40 411 विशेष-हिन्दी व्यारीका सहित हैं । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] नं ० नं० १६० । ७८. ४६० [ सिद्धान्त एवं चर्चा प्रति नं० १३ - पत्र संख्या ५२ | साइज - १००७३ मंच | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन विशेष – हिन्दी टीका सहित हैं । ७१. प्रति नं० १४ - पत्र संख्या - १६ । साइज - ११४५३ च । लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन । ७२. प्रति नं० १५- पत्र संख्या - १५ | साइज - १०४५ १ । लेखन काल -X | पूर्ण | वेष्टन मं० ३०४ । ७३. प्रति नं० १६- पत्र संख्या - १३ | साह - Ex४३ च । लेखन काल स० १-१२ श्रावण पुदी १४ । पू। बेटन नं० २०५ । ७४. प्रति नं० १७-पत्र संख्या - १० | साइज - ६x४३ ७५. प्रति नं १८ - पत्र संख्या ६ साइज - ११३४६३ विशेष-- प्रत्येक पत्र के चारों ओर सुन्दर बेलें हैं। ७६. प्रति नं० १६ - पत्र संख्या ६६ | साइज - ११४५ च लेखन काल - x पूर्ण 1 नं० ४८७। वेष्टन नं० ४ । | लेखन काल - X। पूर्ण वेष्टन नं ० ३०६ ॥ । लेखन काल-X | वेष्टन नं० ३०७ । विशेष-- सूत्रों पर संक्षिप्त हिन्दी अर्थ दिया हुआ है । थतर मोटे हैं। एक पत्र में तीन पंक्तियाँ हैं । ७. प्रति नं० २०५ संख्या - ६३ । साइज - १२४१ ३ ६ । लेखन काल - X 1 पूर्ण । वेष्टन विशेष-- हिन्दी वा टीका सहित है प्रति प्राचीन है । ७. प्रति नं० २१ पत्र संख्या-1 साइज - ११४५ इंच | लेखन काल सं० १६४६ कार्तिक सुदी ६६ । प्रति संस्कृत टीका सहित है जिसमें प्रभाचन्द्र कृत लिखा हुया है। लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है । की दी हुई है। प्रशस्ति - संवत् १६४९ वर्षे शाके १५१४ कार्तिक सुदाँ १५ गुरुवासरे मालपुरा वास्तव्ये महाराजाधिराज श्री फंवर माधोसिंह जी राज्य प्रवर्तमाने श्री मूलचे नंया नाये रखा कारणे सरस्वती श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री प्रमाचन्द्रदेव विरचिता । यह अन्य मीमराज वैथ ने मनोहर लोका से पढ़ने के लिये मोल लिया था । ७६. तरषार्थ सूत्र वृत्ति-पत्र संख्या - २८ | साइज - १०३४४३ मंत्र | भाषा-संस्कृत । त्रिषयसिद्धान्त । रचना काल-X | लेखन काल सं० १४.४७ वैशाख सुदी ७ | पूर्ण | वेष्टन मे० ६१ । विशेष-- टीका में मूल सूत्र किये हुऐ नहीं हैं। टीका संकित है। 0 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] [ ५३ प्रशस्ति-संवत् ९४ २७ वर्षे वैशाख सुदी श्री मूलचे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्चे कुन्दकुन्दाचार्यान्विये मंडला नायें स्त्रीति शिष्य ने लिखापितं । Co तस्यार्थसूत्र वृति-योगदेव | पत्र संख्या - १११ | साइज - १०४ ई ई | भाषा-संस्कृत । विषयसिद्धान्त | रचना काल -x | लेखन काल सं० १६३ ष्ठ बुद्धी १३ पूर्ण प्टन नं० ६८ । विशेष - महारक चन्द्र देव की अनाथ के धजमेरा गोपाल साह सांगू व उनकी साथ सुहागदे ने यह प्रम स. १६३ में लिखवा कर षोडषकारण मतोद्यापन में मंडलाचार्थं चन्द्रकीर्ति को भेंट किया था। तत्वार्थसूत्र पत्र संख्या - १२३ | साइज - १२५ इञ्च । भाषा-संस्कृत विषय सिद्धान्त | रचनावेष्टन नं ० ६७ ॥ विशेष---संस्कृत तथा हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है तथा दोनों भाषाओं की टोकायें सरल हैं । तत्वार्थसूत्र भाषा ढोका - कनककीर्ति पत्र संख्या - २७१ | साइज - x५ चाषाहिन्दी | विषय-सिद्वान्त । चना काल -X | लेखन काल-सं० २०३६ |प्टन नं० ८३४ । १ काल-X | लेग्खन बालु प्रति के हैं । विशेष- नय सागर भे जयपुर में प्रतिलिपि को भी पत्र १७६ से २७१ तक बाद में लिखे हुए हैं अथवा दूसरी प्रारम्भ-गोरा मार्गम्य नेतारं सारं कर्मभूभृतां । शातारं विश्व तत्वानां वंदे तद्गुलम् ॥ १ ॥ टीकाअहं उमास्वामी मुनीश्वर भूल ग्रंथ कारक | श्री सर्वज्ञ वीतराग बंदे कहतां श्री सर्वज्ञ चौतराव ने नमस्कार करूनू । किस] इक है श्री श्रीतराग सद्र देव, भोत्र (ख) मार्गस्य नैतार कहतो मोतमार्ग का प्रकासका परवा बाला है । थोक किसा इक लै सर्वज्ञ देत्र कम्मे नूगृतां मेत्तारं कहता ज्ञानावरणादिक आठ कर्म यह रूपियां का मेदिवर वाला छ । अन्तिम के इक जीव चार रिधि करिधि में । के हक जीव चारण बिना सिंघ है। कैं इक जीव घोर तप करि सिध है | के एक जोन श्रवोर तप कर सिद्ध । के इक जीव उरसि बैं । इक मध्य सिव है | के इक जीव श्रध सिंध है । इह माति करि क्या हो भेदा सो सिथ हुआ है । सो सांत सू' समझ लोच्यों । इति तत्वार्थाधि गये मी शास्त्रे समीयां पोसतक लिखत नेण सागर का चोमनराम दोसी सवाई उपुर में लिख्यों संवत १८४६ में पुरी कियो । 1 ८३ प्रति नं० २- पत्र संख्या १२२ | साइज -४ एच 1 लेखन - x । पूर्ण । वेष्टन ००२३ । विशेष- शुतसागरी टीका के प्रथम श्रध्याय की हिन्दी टोना है। ८४. प्रति नं० ३ - पत्र संख्या - २१६ | साइज - १०४५ इंच | लेखन काल-सं० १८४० । पूर्ण । चन्दन नंद्र ७३५ । विशेष- केन सागर ने सोमर में लिपि की थी । प्रारम्भ के पत्र नहीं है यद्यपि संख्या १ से ही प्रारम्भ है । इ । लेखन काल सं० १७३८ ज्येष्ठ सदी ८५ प्रति नं ४ - पत्र संख्या ११२ | साइज - १२ वेष्टननं ७३८ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] सिद्धान्त एवं चर्चा ] विशेष-दूसरे अध्याय से है । श्रेष्टन नं० ७४ के समान है। ८६. प्रति नं.५.---पत्र संख्या-६२ | साइज-११६x४३ ह । लेखन काल-X । पुणे । वेष्टन 4. ७४७ बेष्टन नं. ८३४ के समान है। ७. प्रति नं०६-पत्र संख्या-१३१ । साइन-१४४५व्व । लेखन काल-पैशास्त्र मुदी ५ भ. १७७६ । पूर्ण । वेष्टन नं० ८२३ । विरोष-पापब्दा में ग्रन्थ की प्रतिलिपि की गई मो: लिखितं ऋषि जवीराजेण । तिखापित श्री संघन नगर पापडदा मन्ये । दूसरे अध्याय से लेकर १०३ अध्याय तक की टीका है। यह टीका उतनी विस्तृत नहीं है जितनी प्रश्नम अध्याय 4. तत्त्वार्थसूत्र भाषा-जयचन्द्र छाबडा । पत्र संख्या-४४० । साहज-१०४७ च । भाषाहिन्दी गछ । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-सं.१८६५ चैत सुदी ५ । लेखन काल-० १८६५ । पूर्ण । वेष्टन नं. ७३२ । विशेष-महात्मा लालचन्द ने प्रतिलिपो की भो । म. तत्त्वार्थसूब भाषा-सदासुख कासलीवाल | पत्र संख्या-३३६ । साइज-११४७ । माषा-हिदी गया। विषय-सिद्धान्त 1 रचना काल स. १६१४ वैशाख सुदी १० । लेखन काल-सं. १:३६ कार्तिक सुदी। पूर्ण । वेष्टन नं. ७१। विशेष-सदारास जी कृत तत्त्वार्थ सूत्र की यह वृहद टीका है । टोका का नाम 'अर्थ प्रकाशिका' है। अन्य की रचना सं० १३१२ में प्रारम्भ की गई थी। १०. तत्वार्थ सूत्र भाषा-सदासुख कासलीवाल । पत्र संख्या--१२३ । साज-८४५ हन । भाषाहिन्दी गध । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-सं० १६१. फाल्गुण बुदी १० 1 लेखन काल-सं० १११६ श्रापाद मदी ।। पूर्ण । वेष्टन नं०७१२ । विशेष-सदासुखजी द्वारा रचित तस्वार्थ सूत्र को लघु भाषा वृत्ति है। ११. प्रति नं २–पत्र संख्या १२७ । साइज-११४५ च । लेखन काल-X I पूर्ण । वेष्टन नं. ७५३ । १२. तत्वार्थ सूत्र टोका भाषा-पत्र संख्या-१ से १०० 1 साइज-१५४७ च | भाषा-हिन्दी । विषयसिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-- । अपूर्ण । वेष्टन नं. ७८० । विशेष---१०. से भागेकेपत्र नहीं है । प्रारम्भिक पद्य निम्न प्रकार हैं श्रीवृषमादि मिनेश अर, अंत नाम शुभ वीर । मनवचकायविशुद्ध करि, बंदो परम शरीर ॥ ३ ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] [१५ करम धराधर भेदि जिन, माम चराचर पाय । धरम बराबर कर नमू, सुगुरु परापर पाय ॥२॥ ६३. तत्त्वार्थसूत्र भाषा-पत्र संख्या-11 । साइज-०६x६ इत्र | भाष-हिन्दी ! विषय-सिद्धान्त ! रचना काल-X । लेखन काल-४ । अपूर्ण । बेष्टन नं ० ७०३ । १४. तस्वार्थसूत्र भाषा-पत्र संख्या-७७ से १७ । साज-Ex४३ च । माषा-हिन्दी । विषयसिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-x 1 घपूर्ण । वेष्टन नं० ८३५ । १४. तत्त्वार्थबोध भाषा-बुधजन । पत्र संख्या-७७ । सारज-१.४७ र । माषा-हिन्दी (पत्र)। विषय-सिद्धान्त । रचना काल-१८७६ कार्तिक मुदी ५ । लेखन काल-~| पूर्ण । वेष्टन नं०७३३ । विशेष-२०२६ पथ हैं 1 प्राप्त मत्रीन एवं शुद्ध है रचना का अन्तिम पाठ निम्न प्रकार है-- अन्तिमपाठ - एक्स बस जयपुर तहाँ, नृप जयसिंह महाराज । बुधजन कीनों ग्रंथ तह पति के 4 ॥ र ५१ . ! संवत् ठारासै विषै घधिक गुण्यासी बेस । फातिक सुदि ससि पंचमी पूरन ग्रन्थ असैस || २०२८ ।। मंगल श्री अरहंत सिद्ध मंगल दायक सदा । मगल साध महंत, मंगल जिनका धर्मवर ॥ २०२६ ॥ ६६. सस्वार्थरत्नप्रभाकर-प्रभाचन्द्र । पत्र संख्या-१२. | साइल-ex५३ इन। भाषा-संस्कृप्त । विषय-सिद्धान्त ! रचना काल-४ । लेखन काल-सं. १७७७ ! पूर्ण । बेष्टन नं० ३०३ । विशेष-स्वार्थ सूत्र की यह टीका मुनि श्री धर्मचन्द्र के शिष्य प्रभातन्द्र द्वारा विरचित है । मकसूदाबाद में मट्टारक श्री दीपकीर्ति के प्रशिष्य एवं लालसागर के शिष्य रामजी ने प्रतिलिपि की थी । १०६ पत्र के धागे नेमिराल गृहमासा तथा रावल पच्चीसी, शारदा सोत्र ( भ. शुमचन्द्र ) सरस्वती स्तोत्र मंत्र सहित स्तोत्र और दिया हुआ है। १७. तत्त्वार्थराजषार्तिक-भट्टाकलंकदेव । पत्र संख्या-३ से ११७ | साइज-११४७३ ० । माषा-संस्कृत | विषय-सिद्धान्त । स्वना काल-X । लेखन काल•X । अपूर्ण । वेष्टन नं. ६११ । १८. प्रसि नं० २–पत्र संख्या- १ से ५३ । साज-१६x६६ च । लेखन काल-x] अपूर्ण वेधन नं. ४७ । ६. सत्यार्थश्लोकवार्तिकालंकार--आचार्य विद्यानन्दि । पत्र संख्या-५३१ । साहज-१२४६ छ । भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-४ । लेखन काश-सं० १७६५ भावणा मुदी १ । पूर्ण । वेण्टन नं. १६४ | Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेष प्रन्थ लोकसंख्या २०००० प्रमय है । १०० नश्वार्थसार-पत्र संख्पा-४ | सार-११५ मामा-संस्कृत विषय-सिद्धान्त | रचना काल- लेखन काल पूवेशन २०१३। | ०१. त्रिभंगी संग्रह पत्र संख्या ४० स० इ । रचना -- खन सं०] १७२२ आवय इदी ११ पूर्ण वेष्टन नं० १३ । + के गंगाराम ने यह प्रति लिखी थी। द्वेष अन्य में निनिधियों का संग्रह है— बंधनमंत्री उदयउदीरणा मंगी (नेमिन्द्र), राता दिनी भावत्रिमंगी तथा विशेष सत्ता विधा सिद्धान्त एवं चर्चा १०२ त्रिभंगीसार श्रुतमुनि | पत्र संख्या-18 | साइज - ११४५ ६ । भाषा प्राकृत विषयसिद्धान्त | रचनाकाल -X | लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं. ३२३ । २०३३व्यसंग्रह - थानेमिचन्द्र पत्र संख्या - ११ साइज १०३ मा वेष्टननं० भाषा प्राकृत वनसिद्धान्त । विषय- सिद्धान्त | रचनाकाल देखन काल ४० १८३३ आदी १५ विशेष – हिन्दी धर्म सहित है। १०४. प्रति नं ०२ पत्र -१३ - १२फा १७३० कार्तिक सी पूर्ण वेष्टन नं० ७६ । विशेष – संस्कृत तथा हिन्दी अर्थ सहित है । १०४. प्रति नं० ३पत्र संख्या २११२६ लेखन का सावनी २१ वेन ०७० | विशेष पर्वत बालबोधन टीका सहित है। बलसीट में महनजी ने प्रतिििष की थी। १०६. प्रति नं० ४ पत्र संख्या साहस लेखन-पूर्व केन में L वेष्टन नं० ८० । विशेष—पद्मनन्दि के शिष्य महारूप ने प्रतिलिपि की । १०. प्रति न० ६ पत्र संख्या १०७. प्रति नं० ५१ संख्या २ साइज-११- पूर्व केदन नं० ७ ॥ I विशेष इसी प्रकार की प्रतियां चोर है। केप्टन २००१ से ८० तक है। ७ साइज १० । लेखन का पूर्व Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं पर्चा ] १०६, प्रति २०१५-पत्र संख्या-६ । साइम-१२४५३ च । लेखन काल-४ । पूर्स । वेष्टन । । . . . . विशेष-गायाभों पर हिन्दी अर्थ दिया हुआ है। ११०. प्रति नं०१५-पत्र संख्या-११ । ॥ १.१४: : : -. : सुदी १३ । पूर्व | वेटन नं० = | विशेष--माधोपुर में पं० नमराज ने प्रतिलिपि को । १११. प्रति नं १६-पत्र संख्या- । साइज-११४५ च । लेखन काल- ४ | पूर्ण वेष्टन नं. ६ | विशेष लेखक प्रशस्ति-शरदि पशुपतीक्षणामु गवस्वजाकित पुण्य समय मासे अनेतस्पते तियो पयोदश्या भीम वासरे सवाईजयनगरे कामपालगंजे वृषमचैत्यालय पंडितोचम विद्वद्वरजिस्ट्री रामकृष्णाजिकातच्छिष्य बिद्वद्वरेण सकलगुण निधान जिन्ट्री नगराजे जित्तच्छिभ्य बाल कृष्णेन स्वपटना लिखितं । प्रति संस्कृत टोका सहित है। ११२. प्रति न०१७ -पत्र संख्या-६२ । साइज-१.४५ च । लेखन काल-XI पूर्ण । पेष्टन नं०६१ विशेष- संस्कृत में पर्यायवाची शब्द दिये हुऐ है। ११३. प्रतिनं०१८-पत्र संख्या- | साज-- x च । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन ने ५६ । । लेखन काल--. १८२० । पूण । ११४. प्रति नं०१६-पत्र संख्या-1 साम-१२४ बेटन १७ । विशेष-जीवराज BIMEI ने अपने परने को प्रतिलिपि कराई। ११५. प्रसि नं० २०-पत्र संख्या-७ । साइज-rxi ५८ । च । लेखन काश-20 Rs. । ग्य अप्टन म ११६. द्रव्यसंग्रह वृत्ति ब्रह्मदेव । पत्र संख्या-२७० 1 साज-१०४६३८ । माषा-संस्कस विनवसिद्धान्त । रचना काल-- । लेखन काल-X1 पूर्ण । बेष्टन नं. ४ | १५. व्यसंग्रह भाषा--पर्वतधर्मार्थी । पत्र संख्या-२९ से ५६ । साज-tux च । साथगुजराती । विषय-सिद्धान्त । रचना माल-४ । लेखन काल-सं० १७५८ कार्तिक सुदी : 1 पूर्ण वेटन नं० ७४२ । विशेष-बाया में प्रति लिखी गई थी। अमरपाल ने लिखवायी थी। . Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] { सिद्धान्त एवं चर्चा ११८. प्रति नं०२-पत्र संख्या-३५ । साइज-११६४५ च । लेखन काल-० १ १३ पौष बुधो १० । पूर्ण । वेष्टन नं०७४३। विशेष-संग्रामपुर नगर में प्रतिलिपि हुई। ११६. प्रति २०६-पत्र संख्या-३१ । साहब-१२४६ इज । लेखन काल-- | सूर्य । वेष्टन नं. ७४४ ।' विशेष प्रतियौं वर्षा में भीगी हुई हैं। १२०. प्रति नं. ४-पत्र संरव्या-४= ! साइज-१२४५३ च । लेखन काल-- । पूर्ण । वेष्टन नं ७४५ । १२१. द्रव्यसंग्रह भाषा-जयचन्दजी । पत्र संख्या-३७ । लाइन-२०३४. च । भाषा-हिन्दी। विषय-सिद्धान्त । रचना काल-- लेखन काल-सं० १८६५ । पूर्व । वेष्टन नं. ७२६ । १२२. प्रति नं २-पत्र संख्या-४६ । साइज-१०१४ च लेखन काल-सं० १८६४ । पूर्ण। बोष्टन नं. ७३०। १२३. प्रति नं.३--पत्र संख्या-४८ | साज-१०४६ च । खेखन काल-सं. १५६ भादव। मुदी १४ । पूर्ख । वेष्टन नं० ७४१ । विशेष- महात्मा देवकर्ण ने सवाण में प्रतिलिपि की । हेसराज ने प्रतिलिपि कराकर बधीचन्द के मन्दिर में स्थापित की। पहले तपा अन्तिम पत्र के चारों घोर लाइनें स्वर्ण को रंगीन स्याही में है, अन्य पत्रों के चारों ओर बेलें तथा ? अच्छे हैं । प्रति दर्शनीय है। १२४ व्यसंग्रह भाषा-बंशीधर । पत्र संख्या-३० । साइज-10x६ रन । भावा-हिन्दी | विषयसिद्धान्त ! रचना काल-X । लेखन काल-~/ पूर्ण । वेष्टन ने० ८५७ । विशेष-प्रारम-जीवमजीवं दवं इत्यादि गाथा की निम्न हिन्दी टीका दी हुई है। टोका-अहं कहिये मैं श हो सिद्धासचक्रवर्ति श्री नेमिचन्द्र नामा प्राचार्य सो त कहिये आदिनाथ महाराज है ताहि सिरसा कहिये मस्तक करि सब्बदा कहिये सर्वकाल विष बंदे कहिये नमस्कार करू' हूँ... । अंतिम टीका-मो मुग्विणाहा कहिये है मुन्यों के नाय हो जयं कहिये नुम जु हो ते हगां दवं संगहे कहिये इहु द्रव्यसंग्रह अन्य है ताहि सोधयंतु कहिये सौग्यो है पुनिनाय हो तुम फैसाक हो.....। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा १२५. द्रव्यसंग्रह भाषा-पत्र संख्या-- * । साइज-६x६ | भाषा-हिन्दी ! विषय-सिद्धान्त । रचना काल-४ । लेखन काल-४ । पूर्व । वेष्टन नं. ८४१ 1 विशेष-पहिले द्रव्य संग्रह की गाथायें दी हुई हैं और उसके पश्चात् गामा के प्रत्येक पद का अर्थ दिया हुआ है। १२६. द्रव्य का ब्योरा-पत्र संख्या-१८ । साज-४४६१ दछ | भाषा-हिन्दी । विषय-सिद्धांत । रचना काल-X । लेखन काल । । . . १२७ पंचास्तिकाय-पा० फुन्दकुन्द । पत्र संख्या-३३ । साइज-११४५ इव । भाषा-प्राक्त । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-सं०. १८०५ । पूर्व । बेष्टन नं. ११६ । विशेष-मूल मात्र है। १२८. पंचास्तिकाय टीका--अमृतचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-४३ । साइन-५२४३ प । भाषासंस्कृत । विषय-द्धिान्त र रचना काल-XI खेखन काल-सं० १८७२ फाल्गुण बुदी । पूर्ण । वेष्टव नं. ११४ । १२६. प्रति नं.२-पत्र संख्या - 2 | साइज-१२४५ च । लेखन काल-सं० १८२५ भाषाट बुदी ७ । पुन । वेष्टन नं. ११५ । विशेष-सबलसिंह की पुत्री पाई रूपा ने जयपुर में प्रतिलिपि फाई की। १३०. पंचास्तिकाम प्रदीप-प्रभाचन्द्र । पत्र संख्या- १२ । सा--१३४६ इंच | भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना कास-X1 लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन ने 30 । विशेष-या कुन्दकुन्द कृत पञ्चास्तिकाय को रीका है । अन्तिम पाठ इस प्रकार है-- इति प्रमाचन्द्र बिरचिते पंचास्तिक प्रदीपे मूलपदार्थ प्ररूपाणाधिकार समासः ॥ १३१. पंचास्तिकाय भाषा-पं० हेमराज ! पत्र संख्या-१०४ | साइज-११x६ । भाषा-हिन्दी । विषय-सिद्धान्त । एवना काल-x ! लेखन काल-सं० १७२१ श्राबाट बुदी = | थपूर्ण । वेष्टन ने० ३२१ । विशेष-श्रामेर में शाह रिषभदास ने प्रतिलिपि कराई थी । प्रति प्राचीन है । हेमराज ने पञ्चास्तिकाय का हिन्दी गध में घर्थ लिखकर जैन सिद्धान्त के अपूर्व प्रन्म का पऊन पाठन का अत्यधिक प्रचार किया था। हेमराज ने रूपचन्द्र के प्रसार से अब रचना की थी। १३२. पंचारितकाय भाषा-बुधजन ! पत्र संख्या-६५ । साइन-२१४५ इश्च । भाषा-हिन्दी ( पद्य ) । त्रिस्य-सिद्धान्त । रचना काल-सं० १८२ | लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं. ३७५ । विशेष-संघी अमरचन्द दीवान की प्रेरणा से मन्ध रचना की गयी थी। 4 में ५८२ पप है। रचना का आदि अन्त निम्न प्रकार है Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] { सिद्धान्त एवं पर्धा मंगलाचरणा बंद जिन जित कम प्रति १८८, वाक्य विशद त्रिभुवन हित मिष्ट । अंतर हित धारक गृन वृन्द, ताके पद दत्त सत इंद ॥ प्रतिमा पराकात कुन्दकुन्द बखानी, ताका रहिस अमृतचन्द्र जानि । टोका रची सहस कृत वानी, हेमराज बचानिका पानी ॥ ५७७ ॥ करें मम्यक्त्व मिपाव हरे,' भन्न सागर खौल तै तरै। महिमा मुम्न से कही न जाय, बुधजन बंदै मन बच काय ॥५७८ ॥ सोगही अमर चन्द दीवान, मोफू कही त्यावर पान । मुनालाल फुनि नेमिचन्द सहसकिरत न्यायक गुन वृन्द || शब्द अर्थ धन यो में लयो, भाषा कान त उमगधो ||५८०॥ भक्ति प्रेरित रचना यानी, लिखो पटी नाचौ भवि शानी । औ बहु यामै अनुध निहारी, मूखमय लखि ताहि सुधारो। रामसिंह सूप जयपुर मसै सदि छासोज गुरु दिन दशै । उगणो से में घटि हैं बाट ता दिवस में रचयो पाठ ॥५८२॥ १३३. भाव संग्रह-देवसेन । पत्र संख्या-५ से ३४ । साइज-११४५ छ । माषा-प्राकृत । विषयसिद्धान्त । रचना काल-। लेखन काल-सं० १६३१ फाल्गुण बुदी ४ । पूणे । रेष्टन नं. १११ । लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है विशेष - अथ श्री संवत् १६२१ वर्षे फाल्गुण बुदी भौमवासरे । श्रम श्री काष्ठा घे माथुरा यये पुष्करग जिनाये यमोत्कान्वये गौरल गोत्रे पंचमीवत उद्धरण वीर साह जगरु तस्य भार्या देल्हाही तस्य पुत्र सा. धुजीला तस्य मायर्या बाल्हाही फतेहाबाद बास्तव्यं । तयों पुत्रा पर प्रथम पुत्र..........। १३४. प्रति न०२--पत्र संख्या-६१ । साइज-११४ ५ ६ । लेखन काल-इ० १६.१ भोगसिर सुदी १०। पूम्य : वेष्टन नं. ११२ । विशेष-शेरपुर निवासीपाटनी गोत्र काले साह मल ने यह शास्त्र लिखा था। प्रशस्ति निम्न प्रकार है संमत् १६०६ मार्गसरी १० शुक्ले रेवती नक्षत्रे श्री मुद्धसंघे नंयामाये बलात्कारगणे सरस्वतीगरी श्री कुन्दकन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनन्दि देवाः तत्प? म. श्री शुभचन्द्र देशाः सत्य? भ. श्री जिणचन्द्र देवाः जल्पट्ट भ. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] [ २१ श्री प्राचन्द्रदेवाः सत्शिष्य वसुन्धराचार्य श्री धर्मचन्द्रदेवाः तदान्नाये खंडेलवालान्वये शेरपुर वास्तव्ये पाटणी गोत्रे साह श्रबणा तहमा तेजी तयोः पुत्रौ द्वी प्र० संधी चापा द्वितीय संधी दुल्हा | संधी भाषा तद्भार्या श्रृगारदे तयोः पुत्रान चत्वारः । a प्रथम साह ऊथा द्वितीय साह दीपा तृतीय साह नेमा चतुर्थ साह मलू । साह ऊधा भार्या अधसिरि तत् पुत्र साह पर्वतमा पोसिरी । स दीपा मार्या देवलदे । साह नेमा भार्या लाडमदे तयोः पुत्र चि० लाला | साह मल्लू भार्या महमादे | साह दूलह भार्या बुधी तो पुत्रास्त्रयः प्रथम संघी नानू द्वितीय संधी टक्करसी तृतीय संघमुदत | संघी नानू माय नामक तो पुत्र चि० कोजू । संघी टक्कर भार्या पारमदे तयोः पुत्र प्रसाद ईसर त मार्यो अहंकार, द्वि० चि० सेवा | साइ गुणदत्त माथी भारवदे । तयो पुत्रास्त्रयः प्रथम चिद रोगराज द्वि० चि० सुमतिदास तृ० वि० धर्मदास एतेषां मध्ये साह भलू इदं शास्त्रं लिखाय पंचमीत्रतोद्योतनाथं श्राचार्य श्री ललितकीर्ति श्राचार्य धनक राय | १३४. भावसंग्रह - श्रुतमुनि । पत्र संख्या - १ से १४ । साहब - ११६४५६ | भाषा - प्राकृत । विषय— सिद्धान्त । रचना काल -x 1 लेखन काल- सं० १५१० । पूर्णे । देष्टन नं० ११० १ वशेष — कही २ संस्कृत में टीका भी है। लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है संवत् १५१० वर्षे श्राबाद मुदि ६ शुक्ले गुरुजश्देशे ऋपहली शुभस्थाने श्री श्रादिनापचैः पालये श्रीमत् श्रष्ठाचे नन्दीतरगच्छे विद्यागणे सट्टारक श्रीराम सेनान्यये भट्टारक श्री यश कीर्तिः तत्पड़ भट्टारक श्री उदयसेन, श्राचार्य श्री जिनसेन पठनार्थ | १३६. लब्बिसार - ० नेमिचन्द्र । पत्र संख्या - १६ | साइज - १२३४४ विषय- सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १५५१ श्राषाट सुदी १४ । पूर्ण वेष्टन नं० १०४ | विशेष—संस्कृत टीका सहित हैं । लेखक - प्रशस्ति निम्न प्रकार है । | भाषा - प्राकृत | संवत् १५५१ वर्षे आषाढ सुदी १४ मंगलवासरे ज्येष्ठानात्रे श्री मेवाटे श्रीपुरनगरे श्री ब्रह्मचालुक श्रीराजाधिराज रायश्री सूर्य सेन राज्यप्रवर्तमाने श्री मूलसंधे बलात्कारमये सरस्वतीगच्छे, श्री नंदिसंचे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० श्री पद्यनंदिदेवाः तत्पङ्ग श्री शुमचन्द देशः पट्टे श्री जिनचन्द्र देवाः तत् शिष्य मुनि स्वकीर्तिः तत् शिष्य मुनि लक्ष्मीचन्द्रः खंडेलवालन्वये श्री साह गोत्रे साह काल्हा मार्या रामादेतत् पुत्र साड़ बीका, साह माधव, साह लाला, साह दूँगा | श्रीझा भाग विजयश्री द्वितीय मार्यो पूना । विजय श्री मार्या पुत्र जिणदास भार्या जौणदे, तत् पुत्र साह गंगा, साह सांगा साद सहसा साइनो 1 सहसा पुत्र पासा साम्रमिदं लन्धिसारभिधानं निजलानावरणी कर्म क्षयार्थ मुनि लक्ष्मीचन्द्राय पठनार्थ लिखापितं । लिखितं गोगा नाम गोड शातीय जयंत्यन्त्रहमर्हतः सिद्धाः सून्युपदेशकाः । साधवो मध्यलोकल्प शस्योत्तम मंगलं ॥ श्री नागार्य तनूजतिशांतिनाथोपरोधतः । वृत्तिर्मध्यप्रबोधाय सन्धिसारस्य कथ्यते ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] १३७. लब्धिसार टीका - माधवचन्द्र विशदेव | पत्र संख्या -६७ | भाषा-संस्कृत । विषय- सिद्धान्त । रचना काल - । लेखन काल- ४ । पूर्वं । ष्टन नं० ८७७ | विशेष—इस प्रति की सं० १५८३ वाली प्रति से प्रतिलियों की गई यो । १३. प्रति नं० २ - पत्र संख्या - २४ | साइज - १४४६ ३ इव । लेखन काल -X | श्रपूर्ण | वेष्टन नं०८७८ - १२३७ भाषा अब्धिसार भाषा - पं० टोडरमल | पत्र संख्या -१ से ४५ I १३६. हिन्दी | विषय - सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल -> | अपूर्ण । वेष्टन नं ० ६० । १४० षट् द्रव्य वर्णन - पत्र संख्या - ११ | रचना काल -x ] लेखन काल -X | धपूर्ण । वैप्टन नं० ६२५ | [ सिद्धान्त एवं चर्चा साइज - १४४६६ इन । साइज - १२४६६ | भाषा - हिन्दी] | विषय - सिद्धान्त । २४१. सर्वार्थसिद्धि - पूज्यपाद पत्र संख्या - १२२ । साइज - ११३४५६ इंच | भाषा-संस्कृत | विषय- सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल - ० १५२१ चैत ३ । पूर्ण वेष्टन नं० ४० | विशेष – लेखक प्रशारित पूर्ण नहीं है । केवल संवत् मात्र है। प्रति शुद्ध है। १४२. सिद्धान्तसार दीपक - भ० सकलकीर्ति । पत्र संख्या -५ से २१ साइज १२४६ च । भाषा-संस्कृत | विषय - सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० १०७ | विशेष-तृतीय अधिकार तक है । १४३. प्रति नं० २- संख्या १२ से ४० | साइज - १०३x६ई इस 1 लेखन कात x 1 श्रपूर्णं । वेष्टन नं० १०८ । १४४. प्रति नं० ३- पत्र संख्या ३८ से २७५ | साइज - १०x४३ इंच । । लेखन काल - X। श्रपू । वेष्टन नं० २०० । १४५. सिद्धान्तसारदीपक भाषा - नथमल बिलासा | पत्र संख्या - २४५ । साइज - १०३०३ । माषा-हिन्दी 1 विषय- सिद्धान्त । रचना काल - सं० १८२४ । लेख्नन काल - सं० २०३५ । पूर्ण । वेष्टन नं० २९५ । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं आचार-शास्त्र १४६. अनुभवप्रकाश-दीपचन्द । १५ संख्या-२२ । साहज-१२६४८ इंच। भाषा-हि-दी नथ । विषय-धर्म ! रचना काल-सं० १७८१ पौष चुदी ५ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ८४५ । ६४७ श्ररहम्त स्वरूप वर्णन-पत्र संख्या-३ | लाइज-८४५६ | भाषा-हिन्दी (गया। विषयधर्म । रचना काल-X । लेखन काल-X । अपूर्ण । त्रैश्टन नं ११४४ । १४८. आचारसार-वीरनन्दि । पत्र संख्या-८२ | साइज-११४५६ इंच | भाषा-संस्मत । विषयपागार शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८१६ वैशास्त्र बुरी ११ । पूर्ण । बटन नं. १७ । विशेष- प्रति उत्तम है, क्लिष्ट शब्दों के संस्कृत में अर्थ भी रिये हुथे हैं। १४६. आचारसारवृत्ति-वसुनंदि । पत्र संख्या-३५० । साइज-१२४५६ इंव । भाषा-संस्कृत । वित्रय-ग्राचार शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-० १८२४ । 'पूर्ण 1 वेष्टन ने० ३७ | विशेष-मूलका श्रा० बकेर स्वामी हैं। मूल प्रम प्राकृत भाषा में हैं। १५०. अपदेशरत्नमाला-सकलभूषण । पत्र संख्या-६ | साइम-१३४६ इंग्छ । माषा-संस्कत । विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं० १६९७ श्रावण सुदी ५ । लम्बन काल-x | पूर्ण । वेपन नं ० १५ । विशेष-रचना का दूसरा नाम षटकर्मोपदेशरत्नमाला मी है । इस प की ४ प्रतियां और हैं वे सभी पूर्ण हैं । १५१. उपदेशसिद्धान्तरनमाला--भंडारो नेमिचन्द्र । पत्र सम्पा-११ । साइज-१.६x४३ च | भाषा-पाका । विषय-धर्म । रचना काल-x | लेखन काल-सं. १८११ श्रावणा सुदी ६ । पूर्ण । बेष्टन में० १५५ | विशेष—महामा सीताराम ने नोनदराम के पठनार्थ लिपि कराई थी। १५२. उपदेशसिद्धान्त रत्नमाला भापा । पर संख्या-१० । साइज-११६x४, | माषा-हिन्दी {पय) । विषप्र-धर्म । रचना फाल-सं० १७७५ चैत्र सुदी १४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ३७६ । विशेष-भाषाकार के मतानुसार उपदेशसिद्धान्तानमाला की रचना सर्व प्रथम प्राकृत भाषा में धर्मदास गणि ने की पी। उसी पथ का संक्षिप्त सार लेकर मंसारी नेमिचन्द ने अन्य रचना की भो। माषाकार में मंगरी नेमिचन्द की (चना की ही हिन्दी की है। पारम्भ-शुद्ध देव अहंत गुरू, धर्मपंच मनकार । से निरंतर नाम हिय, धायकृती नर सार ॥१॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ पठन गुणाइन सामन देहि, तप याचार नहु नहि करेहि । ॐ हिय एक देव परिहंत, तापत्रय न आता करते ||२|| धन्तिम पार इम मंदारी नेमिचंद, रची कितीयक गाइ । जेह ||६१|| यह उपदेश रतनमाला सुम, प्रचरणौ श्रमदासगणी, तामहिं केतक ग्राह श्रनोपम नेमिचन्द भंडार भी । जिनवर भरम मावन काजमा यी धनुद्धि थी। जाके पद सुनता हु पर विरमयी ||१२|| संवत् सतरह से सतरि अधिक दोष पय सेत । चैतमास चातुदी, पुरण मौसु एव || १९६३ ॥ १५२. उपदेशसिद्धान्तर ब्रमाला भागचन्द्र पर संख्या ६२ हिम्य रचना काल सं० १६१२ बाद बुदी २ लेखन काल - १५४. उपासकदशा सूत्र विवरण- अभयदेव सुरिपत्र संख्या १० भाषा-संस्कृत विषय याचार शास्त्र रचना काल- लेखन कॉल x पूर्ण वेशन नं० १७१ श्रीमानमानश्व व्याख्या काचिदयिते उपासकदशादीनां प्रायो यतिरेचिताः॥१॥ १५५. उपासकाचार दोहा-लक्ष्मीचन्द्र पप संख्या २७ चीन हिन्दी| विषय आचार शास्त्र रचना काल- लेखन काल वेष्टन नं० १७८ | [ धर्मं एवं आचार शास्त्र विशेष जोड़ों की संख्या २९४ है । साद १०४ भाषा विशेष उपासक दशा सूत्र वे० सम्प्रदाय का सातवा अंग है जो दश प्यायों में बिमक्त है। संस्कृत में यह विवरण अतिसंचित है। विवरण का प्रथम पप निम्न प्रकार है पूर्व वेटन नं० ४०७ ॥ I -१०। साइज - २०६४ र भाषा १८२१ वैशाख १२१ पूर्व बुदौ । १५६. कर्मचरित्र बाईसी रामचन्द्र पत्र संख्या २ साइज २६३ ६ भाषा-हिन्दी विषय-धर्म रचना काल-लेखन काल-X पूर्ण वेशन में १५७ ॥ I विशेष-२ पत्र से धाने दीलतरामजी के पद हैं । १५७ क्रियाक्रोश भाषा - किशनसिंह | पत्र संख्या - ११४ | सादन- १०३५३ इञ्च । भाषा - हिन्दी Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वम एवं आचार शास्त्र] । २५ च । विषय-प्राचार शास्त्र । स्नना काल-सं० १७८५ भादवा सुदी १५ । लेखन काल-सं. 14 कार्तिक बुद्री ।।। सर्व । वेटन नं०४७। विशेष-भरडार में ग्राम को ११ प्रतियां और है जो समो पूर्ण है। १५६. गुणतीसो भावना-पत्र सत्या-२ । साज-१११x६ इन्न । भाग-पाने : विषय-धर्म । लेखन काल-x1 पूगा । वन नं. १७६ । बना काल- विशेष-हिन्दी गा में गायाओं के ऊपर घर्थ दिया हुया है । नाथाओं की संख्या २६ है। १४६. गुरोपदेश श्रावकाचार--डालूराम। पत्र संख्या-१६ । साइज-१२३४६, इन 1 भाषाहिन्दी (पथ) | विषय-याचार शास्त्र ! रचना काल-~। लेखन काल-० १८६१ | पूर्ण । श्रेष्टन नं.:.। विशेष—पचेवर में प्रथ की प्रतिलिपि हुई थी। १६.. चारित्रसार (भावनासार संग्रह) चामुगडराय । ५ संख्या-११० । साइज-X12 इन। भाषा संस्कृत । विषय-याधार शास्त्र । स्वना काल- । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन में० १.५ । विशेष-प्रयम बुद्ध तक है तभा अंतिम प्रशस्ति धपूर्ण है। ११. चारित्रसार पंजिका-पत्र संख्या-८ } साइज-१४ । भाषा-संस्कृत | विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० ० । विशेष-प्रति प्राचीन है । नरिप्रसार टिप्पण भी नाम दिया हुआ है। विपण अति संक्षिस हैं। भारम्भिक मंगताहारण निम्न प्रकार है नमानंतसुखमानन्बीर्याय जिनेशिने । संसारवारापारास्मिन्निमजज्जीवतापिने ||१|| चारित्रसारे श्रु तसारं संग्रहे यन्मंदबुद्ध स्तमस्तावृत्त' पदं । अश्यक्तये व्यक्तपर प्रयोगतः प्रारभ्यते विभीष्टपंजिका मा १६२. चारित्रसार भाषा-मन्मालाल | पत्र संख्या-२३५ । साइज-१०६४५ है। भाषा-हिन्दी । दिन-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं. १८.१ । लेखन काल- १७६ | गई । बेष्टन नं. १५ । प्रादि भाग (प)- श्री जिनेन्द्र चन्द्राः । परम मंगलमादिशत्रु तराम् । दोह! ---परम धरम.रम नेमि मम, नैमिचन्द्र जिनराय । मंगल ध र विमल, नमो नमन-बच-गाय ॥१॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] मनचा सायर परे, अमल जंतु दुख पाठ | करि गहि काढत तिनहि यह, जैन धर्म विख्यात ॥१२॥ करत परम पद त्रिदश सुख, नाटत गुण विस्तार । नमो ताहि चित हरष वरि, करुणामृत रस धार || २ || मध्यभाग (गद्य):-~~(पत्र [सं० ६४) मंदिरा को पीछे था और टू मादिक बस्तु भय करें तब प्रमाद के बने हैं विनाश होग। ताके नाश होते हित हित का विचार होता नाहीं। ऐसे धर्मकार्य तथा कर्म नोटन हुने अष्ट होहि नातें इस मघवत तथा मादिक वस्तु का सर्वथा प्रकार त्याग ही करना जोग्य हैं । ऐस| जानना । ग्रंथोत्पत्ति वर्णन प्रशस्तिः सर्वाकाश अनन्त प्रमान | ताके बीच ठीक पहचान ॥ खोकाकाश असंख्य प्रदेश, ऊरिध मध्य मध्यलोक में जैनू दोष तो है सम द्वीपनि बवनी व या दक्षिण दिश भरत नाम क्षेत्र प्रकट सोहै सुरधाम जहाँ बसें भूपेश || भिमे सुदर्शन ज्ञान | मानू भूमि दंड है मान ||२|| १ || ताके मध्य ॐ टाइड देश । बहु शोमा त ल अशेष ॥ ३ ॥ तहाँ सवाई जयपुर नाम | नगर लसत रचना अभिराम || बहु जिन मंदिर सहित मनोग्य मानूर गद्य ने जीम्य ॥४॥ जगत सिंह राजा त जान | कंपत अरिगन करे प्रनाम ॥ [ धर्म एवं आचार शास्त्र तेजयंत अनंत विशाल रीत हुन गम करत निहाय ॥५॥ जैनी लोग सेवल धर्म ने दुख रोम ॥ तिन मधि सरंगा न विशाल । भोगिदास सूत मनालाल || ६ || भाजपने से संगति पाय विद्याभ्यास कियो मनसाय जैन मंच देखे कुछ बार जयचंद मंदलाल उपकार || नागपुर तीर्थ महान तहि बंदन बायो सुखधाम || इन्द्रप्रस्थ पुर शीमा होइ । देहे भयो अधिक मन मोह || || वहां राज अँगरेज करें। कम कंपनी फिरंत ॥ नादस्पा कर सिर से सेवक जननि अन्य बहु दे ॥६॥ इस राग बजाना त तिनके सोहे धरम भरत ॥ मंदिर तिनि नैं रथ्यो महंत । जिनवर तनो धूजा लहर्कत || अगरवाल गोत्री गुण नाम चन्द्र पुत्रान ॥१०॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं श्राचार शास्त्र [२७ बहु विधि रचना स्ची तह माहि । शोमा वानत पार न पाहि ॥१२॥ ताके दर्शन कर मुस्स राशि । प्रापत भई रंक निधि भासि || कारन एक मयो विहि ठाम । रहने को भानु तप्त नाम |॥१२॥ मंत्री जगतसिंह को नाम । अमरचन्द्र नामा गुणधाम ।। रहै बहुत सजन सुखदाय । धर्म राग शोभित पधिकाय ॥१३॥ मोत अधिक प्रीति मन धरै । विनि अटकागो मैं हित खरे ॥ ता कारण चिरता तिहि पाय । सुगनचंद्र के कहै भाय ॥१४॥ चारित्रसार प्रम की भाष ! बचन रूप यह कार ससाख । ठाकुरदास और इन्दराज | छान भाइन के बुद्धि समाज ॥१५॥ मंदबुद्धि श्रर्थ विशेष । तहि प्रतिमायो होय अशेष ।। सुधी ताहि नोकै ठानियो । पछिपात मत ना मानियो ॥१६॥ अनेकत यह जैन सिवंत । नय समुद्र बर कहि विलसत ।। गुरुवच पोत पार मत्रि जीव । लहो पार मुख करत सदीन ।।१७|| जयवंती यह होइ दिनेश । चन्द नखत उह बजावत शेष ॥ पढो पदावो भव्य संसार |बटी धर्म जिनवर सुखकार ॥१८॥ संबत एक सात अठ एक । माघ मास सित पंचमि नेक ॥ मंगल दिन यह पूरण करी। मांदो विरधो मुख गण भरी ॥१॥ दोहा:-मुभ चिंतक ह लेख का दयाचंद यह जानि । लिख्यो मम तिनि नै पो बाचो पटो मुझसानि । विशेष-ग्रप की एक प्रति और है लेकिन अपूर्ण है। १६३. चिद्विलास-दीपचन्द-पत्र संख्या-५ | साइज-१२३४व । भाषा-हिन्दी । विषय-धर्म । बमा काल- सं. १७७६ फाल्गुण बुद्धी ५ । लेखन काल-० १७८४ वैशाख धुदी १२ । पूर्ण । वेष्टन में ७३६ । १६४. चौरासी बोल-हेमराज । पत्र संख्या-१४ | सारज-११६x४ास । माषा-हि-दी । ५-धर्म । रचना काल-X| लेखन काल-x । पूर्ण । वेष्टम में० ८७१। १६५. चौवीस दंडक-पत्र संख्या-२८ 1 साज-uxt । भाषा-हिन्दी । विषग-धर्म । रचना काल सं० १८५४ प्रावण सूदी । । सेवन काल-x पूर्ण वेष्ठन नं. १४७ । विशेष-~१४ वें पत्र के आगे बारह भावना तथा बाईस परीषह का वर्णन है । दंडक में ११८ पथ हैं। . Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ [ धर्म एवं प्राचार शास्त्र ६६. चौवीस दंडक-दौलतराम । पत्र संख्या १ । साइज-४४२१३ इंच 1 भाषा-हिन्दी । विषयअम । रचना काल-X 1 लेखन काल-x | पुयां । वेष्टन नं० १८५ । १६७. जिनगुण पच्चीसी-पत्र संख्या-२२ । साइज-.१४ इंच । भाषा-हिन्द | विषय-धा। ग्चमा काल-X । लेखन काल-X | पुणे । बेष्टन नं० ८०५ | १६. जीयों की संख्या वर्णन-पत्र संख्या-८ | साइज-sxs इन। भाषा-हिन्दी : विषय-धर्म । रचना काल-X ! लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन न० ११३६ । १६६. ज्ञान चिन्तामणि-मनोहरदास | पत्र संख्या--१0 1 साज-१-४४३५ । भाषा-हिन्दी । विषय-धर्म । रचना काल-सं० १७२८ माह सुदी ८ । लेखन काल-सं० १८१.६ । पूर्ण । वेष्टन 400 | ५७८. ज्ञान मार्गणा-१५ संख्या-६ । साइज-१६४७६ इश्व । माषा-हिन्दी : विषय--धर्म . रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण: । वेष्टन नं० ३६४ । विशेष-मार्गपात्रों का वर्णन संशप में दिया हुआ है। १७१. ज्ञानानन्द श्रावकाचार-रायमन । पत्र संख्या-११ साइज-११४. इ.। माषा-हिन्दी । विषय-याचार शास्त्र । रचना काल-x। लेखन काल सं. १६२६ । पूर्वा । वेष्टन नं.४ १७२. ढाल गण-सूरत । पत्र संख्या-4. । साइज-.x५ च । भाषा-हिन्दी 1 विषय-अाचार शास्त्र । नना काल-X । लेखन काल-x1 पूर्ण । वेष्टन नं. ५०६ | १७३. पनक्रियाविधि-पं० दौलतराम | पत्र संख्या-१५% | सज-११४६ इञ्च | भाषा-हिन्दी (पय) । विषम-प्राचार शास्त्र । रचना काल-० १७.५,भादका सुदी १२ । लेखन काल-x | पूर्ण बैटन न.७७७। विशेष-कवि ने यह रचन! उदयपुर में समाप्त की भी । १७४. दशलक्षणधर्म वर्णन-पत्र संख्या-२६ । साज-१२x= इन्न । भाषा-हिन्दी । विषय-धमे । रचना काल-x | लमान काल-X । पूर्ण | वेटन नं. ३७६ । विशेष-दश धर्मों का हिन्दी गद्य में संक्षिप्त बयान है। १७५. दर्शनपचीसी-भारतराम । पत्रसंख्या-12 : साईज-११६४ इंच । रचना x लेम्बन काल-x | पूर्ण । बंटन में० १०३ । विशेष -फुटकर सत्रैया भी हैं । एक प्रति और है जिसका घेष्टन न.१०६ है। १७६. देहव्यथाकथन-पत्र संख्या-१६ । साज-१०x४३ इंच । भाषा हिन्दी 1 विषय-धर्म । सरमा काल-x ! लेखन काल-X । पूर्ण | टन ०६३: । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं प्राचार शास्त्र] [१६ बशेष-देह को किस २ प्रकार से व्यथा है इसका वर्णन किया हुअा है ५४७. धर्म परीक्षा-श्राचार्य अमितगति । पत्र संख्या-८८ | साइज-११५४५ इंच । माषा-सं५ । विश्य-धर्म । चना काल-सं० १० । लेखन काल-सं० १७६२ पौष शुक्ला २ । पूर्ण 1 वेष्टन नं. १७ । विशेष-वृन्दावती गट (वृन्दावन) में प्रतिलिपि हुई पी । लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है 1 सं० १७१२ मिति पौषमासे शुक्लपक्ष द्वितीया दिवसे वार शुक्रवार लिनितं गढ़ वृन्दावती मध्ये श्री राव सुधसिंह राज्ये नेमिनाथ चैत्यालगे भट्टारक श्री जगतकीर्ति श्राचार्य श्री शुभचन्द्रन शिष्य नानकरामेन शुभं भवन् । मंच की एक प्रति और है जो सं० १.७२६ में लिखित है । वेष्टन नं० १८ है : १७८. धर्म परीक्षा-मनोहरदास सोनी । पत्र संख्या-१२४ । साइज-!.x.: । मात्रा-हिन्दो । (पथ) दिश्य-धर्म । रचन! काल-- । लेखन काल-सं० १७६३ फागृण पुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं0 52 विशेष-हिन्डौन में प्रतिलिपि हुई थी। इसी मथ की पांच प्रतियां और हैं जो सभी पूग्य हैं तथा उत्तम है। १७. धर्मविलास-यानतरराय । पत्र संख्या-२१६ । साइज-१०४६ ६४ । मापा-हिन्दी । विषधधर्म । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १६४२ | पूर्यो । वेष्टन नं ० ५२३ । त्रिशेष-यानतरायजी की रचनाओं का संग्रह है। १८० धर्मरसायन-पद्मनन्दि । पत्र संख्या-१६ 1 साइज-११४५ इञ्च | मावा-प्राकत | विषय-धर्म । रचना कास-X I लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. २७ । विशेष --- मय की एक प्रति और है जो संवत् १८५४ में लिखी हुई है । वेष्टन नं० २८ है । ११. धर्मसार चौपई-पं० शिरोमणिदास । पत्र संख्या-३६ । साइज-१०४५ इन ! मापा-हिन्दी। विषय-धर्म । रचना काल--सं० १७३२ बैसाख मुदी ३ । लेखन काल-१८३६ माघ सुदी १ । पूर्ण । वेष्टन नं. ०६ । विशेष-प्रति सुन्दर है। इसमें हिन्दी के ७६३ छन्द है । रचना काल निम्न पंक्तियों से जाना जा सकता है। संवत् १७३२ वैशाख मास उज्ज्वल पुनि दोस । तृतीया अक्षय शनी समेत मविजन को मंगल सच देत ।। । भाषा--हिन्दी । १५२. धर्मपरीक्षा भाषा-बा. दुलीचन्द 1 पत्र संख्या- २७२ । साइज-११४५ विषय-धर्म । रचना कास-सं० १८६८ : लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टम नं० ७८६ । विशेष-अंतिम पत्र नहीं है । मूल कर्ता पाचार्य अमित गति हैं । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [धर्म एवं आचार शास्त्र १८३. धर्मप्रभोत्तरभावकाचार भाषा-चंपाराम । पत्र संख्या-१६० । साज-१२xk३ च । भाषा-हिन्दी पद्य । विषय-वाचार ! रचना काल-सं० १८६८ भादवा सुदी५ । लेखन काल-सं० १६६० भादवा सुदी ७ । पूणे । वेष्टन न.७..। विशेष-दीपचन्द के पौत्र तथा हमालाल के पुत्र चम्पाराम ने सवाई माधोपुर में अन्य रचना की थी। जिसन प्रशस्ति दी हुई है। १८४. धमसंग्रह श्रावकाचार-पं० मेधाची । पत्र संख्या-४ | साज-११४ विषय-बाचार । रचना कास-सं. १५४१ । लेखन काल-सं. १८३२ र्गा | बोष्टन नं. १८ । च । भाषा-संस्कृत विशेष-सवाई जयव में मोपतिराम ने प्रतिलिपि की थी। १८५. धर्मोपदेशशवकाचार-प्र० नेमिदत । ११ संख्या-३० । साहन- x५ च । भाषासंस्कृत । विषय-श्राचार । स्चना काल-- । लेखन काल-सं० १६३३ कानिफ सुदी । । पूर्ण । वेष्टन नं० १८२ । विशेष- चपावती वर्ग के श्रादिनाम चैत्यालय में महाराजाधिराज श्री भगवंतदासजी के शासनकाल में प्रतिलिपि की गयी की। १८६. प्रति मं०२-पय सरच्या-१७ साज-११४५३ च । लेखन काल-सं० १६.६ माह सुदी ५ । घूर्ष । वैधन नं. १:३1 विशेष-टोडा दुगे। टीटारायसिंह ) में महाराजाधिराज श्री रामचन्द्र के शासनकाल में प्रतिलिपि हुई थी। १७. नरक दुःख वर्णन-पत्र संख्या-३-४ | साइज-१२x६ इन्च ! भाषा-हिन्दी विषय-धर्म । स्चना काल-X । लेखन काल-४ | अपूर्ण । घेण्टन नं. १ । १६. नरक दुःल वर्णन-पत्र संख्या-३ । साइज-२१:४ । भाषा-हि-दी। विषय -धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-४'। अपूर्य 1 बेष्टन नं. १०४७ । १६. नरक दुःख वर्णन-पत्र संख्या-१२ । साइज-६x४, इव । भाषा-जि-दी गय । विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन कारख-० १८१६ पौष कुंदी ३ । पूणे । मेष्टम नं. १०१।। . विशेष-माषा इटारी है तथा उर्दू के शब्दों का मो कहीं २ प्रयोग छुपा है। नरकों के वचन के प्रागे अन्य बन जैसे त्वर्ग, मार्गखायें तथा काल अन्तर श्रादि का वर्णन मी दिया हुआ है। १६०, पद्मनन्दिपंचविंशति-पअनन्दि । पत्र संख्या-६२ । साज-१०x१ इंच । भाषा प्राक्तमंस्कृत | विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल- ४ | पूर्ण वेन्टन नं. ३ ! विशेष-ति प्राचीन है। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं आचार शास्त्र] [ ३१ २६१. प्रति नं०२-पत्र संत्र्या-६६ । साइज-१.४४ इंच । लेखन काल-० १२३२ फायन सुदी ।। पूर्व । पैप्टन ने. ११। विशेष-सं० १५३५ फागुण सुदी प्रतिपदा सोमबासरे उत्तरानक्षत्रे शुभनामजओगे श्री कुन्दकुन्दाचार्यन्वमे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री मट्टारक थी प्रमाचन्द्रदेवा तत्पट्ट शुभचन्द्रदेवा तत्पट्ट भट्टारक श्री जिनचन्द्र देवा तपट्ट मट्टारक. थी सिंह कीर्ति देवा तत् शिष्य समाचन्द्र पठनाय दत्त पुण्या इचाक वैशे अश्वपतिना दत्त शुभं भवतु । १२. पद्मनंदिपच्चीसो भाषा-मन्नालाल खिंदूका। पत्र संख्या-२६८ । साइज-१०६४८ च । मावा-हन्दी । विषय-धर्म । रचना काल-सं० १.१ १५ । लेखन काल-सं० १९३५ मादवा मुदी १५ । पूर्ण । बेष्टन नं. ३ १६३. परीषह विवरण-पत्र संख्या-३ | साइज-१३४ | भाषा-हिन्दी। विषय-धर्म । स्थना काल-४ । लेखन काल-~| पूर्ण । वेष्टन नं० १०५५ । १६४. प्रासन-पथ संस्था-५ । ३- ४१६ १७ । भाषा-प्रारत-संस्कत । विषय-धर्म 1 रचना काख-X | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० १०६३ | १६५. प्रयोधसार-महा पं० यश:कीर्ति । पर संस्था-२८ । साइज-८x१३ । भाषा-संस्मत । विषय-याचार धर्म । रचना काल-X | स्खन काल-सं० ११२५ मंगसिर सदी १५ । पूर्व ! बेष्टन नं० १.६ । विशेष-रनना में ४७८ पद्य है । प्रशस्ति अपूर्व है जो निम्न प्रकार है संवत् १५२५ वर्षे मार्गसुदी १५ श्री भूलसंधे बलात्कारगये सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाबायांवये भ० श्री जिनचन्द्र देवास्वत् शिष्य म. श्री हेमकीर्ति देवाः तस्योपदेशात जैसवालान्वये इक्ष्वाकु वंशे सा........" १६६. प्रश्नोत्तरोपासकाचार-बुलाकीदास । पत्र संख्या-१४३ | साइज-१२x रंच । माषाहिन्दी (पध) । विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-X । लेवन काल-सं० १७८ कार्तिय. चुदी ११ । पूर्ण । वेटन नं. ७४ | विशेष-4. नरसिह ने प्रतिलिपि की भी। १६७. प्रायश्चित्तसमुच्चय-नंदिगुरु । पत्र संख्या-१.. साइज-१२४५१ इंच । भाषा-संस्कृत । विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८६६ श्रावण युदो । पू । बेष्टन नं. २९ । १८. प्रश्नोत्तरभावकाचार-सकलकीर्ति । पत्र संख्या-६२ | साज-११४५ ६ । भाषा-संस्कृत । विषय-प्राचार । रचना काल-x। लेखन काल-सं० १८११ । पूर्ण । वेष्टन में० १८४ | ११. प्रति नं०२-पत्र संख्या-१० । साज-११४५ च । लेखन काल-0 १६३२ माघ सदी ५ । पूर्व। मेटन नं. १०। लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ । [धर्म एवं माचार शास्त्र सर्वत्सरेस्मिन विक्रमादित्य १६३२ बजे माघमास शुक्लपक्ष पंचम्यां तिथी शुक्रवासरे मालवदेशे पन्दगदुर्गे पार्श्वनाथ चैत्यालये श्री मूलसंधे मलाकारगर सरस्वतीगरछे कूदकदाचार्यान्वये तदानाय महाबादवादीश्वर मलाचार्य श्री श्री श्री देवेन्दकीर्तिदेव । तस्पट्ट में० नाचार्य श्री त्रिभुवनकीर्ति देव । तापट्ट मं० श्री सहस्रकीतिदेव । तत्पट्ट मंडलाचार श्री पद्मनंदि देव । तत्प? मंडलानार्य श्री यशःकीर्तिः । तत्प म. श्री ललितकीर्ति लिखित पंदित रत्न पठनार्थ ३८. उपासकाचार ग्रन्थ लिखितं । २००. प्रति नं० ४३ - पत्र संख्या- १२२ | साइज-११४४६ इंच | लेखन काल-स. १६४८ शास्त्र नदी । पूर्य 1 वेष्टन नं. १६१ । विशेष-सहारनपुर नगर बादशाह श्री अकनर जलालुद्दीन के शासनकाल में प्रतिलिपि हुई थी। इस प्रप की भण्डार में ५ प्रतियां और हैं जिनमें : प्रतियां अपूर्ण है। २०१. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार-सकल कीर्ति । पत्र संख्या ६२ | साइज-११३४५ इंच । भाषासंस्कृत | विषय-प्राचार । मना माल- । लेस्टुन काल. ५ : पर्ण : का. १८५ । विशेष-यति प्राचीन है प्रथम पत्र नवीन हैं। २०२. प्रति नं० २-पत्र संख्या-७२ | साइज-११४५ च । लेखन काल-X । अपूर्ण । पेन नं० १.४।। २०३. पुरुषार्थसिद्धयु पाप-अमृतचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-३८ । साइज-२४x च । भाषासंस्कृत | विषय-धर्म । रचना काख-XI लेखन काल-सं. १६२७ वैशाख मुदी ५ । पूर्ण । वेष्टन नं ० ६३ । विशेष इसका दूसरा नाम जिन प्रवचन रहस्य कोश भी है। प्रति संस्कृत टीका सहित है तबा रीका का नाम त्रिपाठी है। संस्कृत पदों पर टोका। २०५. पुरुषार्थसिद्धयुपाय-पंडित टोबरमलजी । पत्र संख्या-१११ । साहज-११४७३ च । माषा-हिन्दी । विषय-धर्म । रचना काल-सं० १२७ । लेखन काल-स. १८३८ माघ दी 1 पूर्ण वे टन नं० ३१६ । विशेष-प्रम को २ प्रतियां और हैं लेकिन वे दोनों ही अपूर्ण हैं। २०५. ब्रह्मविलास-भगवतीदास ! पत्र संख्या-११६ । साइज १०६४७३ इंच। मा-हिन्दी; विषय-धर्म । रचना काल-१७५५ । लेखन काल-१८८६ | अपूर्ण । वेष्टन नं ० ७२६ । विशेष -भैय्या भगवतीदास की रचनाओं का संग्रह है। विलास की एक प्रति श्रीर है वह अपूर्ण है। २८६. बाईस परीपह वर्णन-पत्र संख्या-६ 1 साइज-१.६४६३ इञ्च । रचनाकाल-४ । लेखन कात.. सं० १८६४ । पूर्व 1 वेप्टन नं०६८० | विशेष -प्रय गुटका साइज है । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं प्राचार शास्त्र] [ ३३ २७. भल्या आराधना कार-सदासुख कासलीवाज । पत्र संख्या-५३४ 1 साइज-११४७३ इंच । भाषा-हिन्दी । विषय-याचार शास्त्र । रचना काल-सं0 भादवा सुदी २ । लेखन काल-सं. १६०८ माघ सुदी २ | पूर्ण । वेष्टन नं. ३६.1 २८. मालामहोत्सव-विनोदीलाल । पत्र संख्या-३ । साइज-११४४३ इ.। भाषा-हिन्द।। विषय-धर्म । रचना काल-- । लेखन काल-सं० १८:८ चैत्र सुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. ५.५६ । २०६. मूलाचार प्रदीपिका-भट्टारक सकालकीर्ति | पत्र संख्या-१३ | साइब-११६x४, इन | भाषा-संस्कृत । विषय-याचार शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८८३ । पूर्य । वरन नं. ३८ । विशेष-भ में बारह अधिकार है। सालिगराम गोधा ने स्वपठनार्य जयपुर में अन्य की प्रतिलिपि का था। २१०. पति नं०२-पत्र संख्या--१३७ । साइज-१४५ इञ्च । लेखन काल-सं० १९८१ पौष सुदी २ । विशेष- लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है स्वस्ति सं० १५=१ वर्षे पोषमासे द्वितीयायां तियो सोमवासरे अपह वीजापुर वास्तव्ये भेदपाट ज्ञातीय न्याति श्री बलिराज सूत लीलाधर केन स्तिका निखिता । श्री मलसंघे ब्रह्म श्री राजपाल तन शिष्य श्री पठना। २११. मूलाचार भाषा टीका-ऋषभदास। पत्र संख्या-१२ | साज-k1x. इञ्च । भावाहिन्दी गद्य । त्रिषग-प्राचार शाम । रचना काल-सं० १८.८८ कार्तिक मुदी ५ । लेखन काल-- । पूर्ण । वेष्टन नं ५ | विशेष-बहकर स्वामी की मून पर आधारित मातुनि की प्राचार नृत्ति नाम की टीका के अनुसार माषा मुई हैं। प्रारम्म-दौ श्री जिन सिद्धपद याचारिज उवमाय । साथ धर्म जिन भारती, जिन गृह चैत्य सहाय ।।१।। बट्टकर स्वामी प्रणभि, नाम वनंदि पूरि । लाचार विचार के माग्यो लखि गुण भूमि ||२|| अन्तिम पाउदि सिद्धान्त चक्रवत्ति करि रची टीका है सो चिरकाल पर्य-त या विष तिरहु । कैसी है टोका सई अर्धनि की है सिदि जानें । बहुरि कैसी है समस्त गुणनि की निधि । बहुरि ग्रहण की है नीति जानें ऐसो भी प्राचारज कहिये मुनिनि का प्राचरगा ताके सूक्ष्म भावनि की है अनुवृत्ति कहिने प्रवृत्ति जातै । बहुरि विख्यात है अठारह दोष रहित प्रवृत्ति जाफी ऐसा जी जिनपति कहिये ।जनेश्वर देव ताके निदोष बचनि करि प्रसिद्ध । बहुरि पाप कप मल को दूर कर!! हारी । महरि सुन्दर । २१२. मोङ्ग पैडी-बनारसीदास । पत्र संख्या- सारज-१०.४४ | भाषा-श्री विषयधर्म । रचना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । मेष्टन नं० ५६४ । विशेष-- एक प्रति और है। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] [ धर्म एवं आचार शास्त्र २१३. मोतमार्ग प्रकाश-4. टोडरमल | पत्र संख्या-१६०५ साज-१३१४६३ इन्न । भाषाहन्दी । इंटारी | विषय-धर्म । रचना काल-x 1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. २ । विशेष-प्रति संशोधित की हुई है । २१४. प्रति नं०२-पत्र संख्या- २२७ । साइज-10x५६ इव । लेखन काल-x। अपूर्ण । बटन नं. ७११ । विशेष-यह प्रति स्वयं पं. टोडरमलजी के हाथ की लिखी हुई है । इसके अतिरिक्त प्रभ की २ प्रति और है लेकिन वे भी अपूर्ण है। -पत्र संख्या-१३ । साइज-१९४५ इन्च | मात्रा-हिन्दी | विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-x 1 अपूर्ण । बेटन नं०८७० | २१६. यत्याचार-वसुनंदि । पत्र संख्या-७ से २०७ । साइज-१५४६.५ इश्च । भाषा-संस्कृत । विषय-प्राधार शाम । रचना काल-x | लखन काल-सं. १८६५ चैत्र सुदी । अपूर्ण । वैप्टन नं०६८ 1 विशेष-अमरचन्द दीवान के पठनार्थ अप की प्रतिलिपि की गयी थी। २१७. रनकरंट पावकाचार-श्रासमंतभद्र । पत्र संख्या-१० । साइज-3x४: इन। भाषासंस्कृत | विषय-पाचार शान | रचना काल-- लेखन काल-सं. १६.. भादवा सुदी १३ | पूर्ण । वेष्टन नं. १ । विशेष-जयपुर में प्रतिलिपि हुई थी। श्रावकाचार की ३ प्रतियां और हैं । २१८. रनकरंडप्रावकाचार टीका-प्रभाचन्द्र | पत्र संख्या-५२ । साइज-1:४५ इश | भावासंस्कृत । विषगप्राचार शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन में० ७४० । विशेष—प्रारम्म के २५ पत्र फिर से लिखवाये हुये हैं । टीका की एक प्रति और है। २१६. रत्नकरसद्धश्रावकाचार-सदासुख कासलीवाल । पत्र संख्या-४७६ | साइज-१२३४४३ इश्च । भाषा-हिन्दी । रचना काल-सं० १९२० चैव वुदी १४ । लेखन काल--X } अपूर्ण । वेष्टन ० ७७६ | विशेष प्रति उत्तम है । प्रम की २ प्रतियां और हैं । दोनों ही थपूर्ण हैं। २२०. व्रतोद्योतन श्रावकाचार-अभ्रदेव । पत्र संख्या-१७ | साइज-१२x२ इंच । भाषा-संस्कृत । विषय-धाचार शान । रचन। काल-x | लेखन काल-स. १८३५ आषाद बुदी ३ | पूर्ण । बेष्टन नं. ८१४ । २२१. वृहद् प्रतिक्रमण-पत्र संख्या-३७ । साहज-११५४५ इन | भाषा-पात | विषय-धर्म। रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७४२ श्रावणा चुदी ३ | पूर्ण । वेष्टन नं. १४ । विशेष-मुनिभुवनभूषण ने बाली में प्रतिलिपि को थी। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं आचार शास्त्र ) [ ३५ २२२. श्रद्धान निर्णय-पत्र संख्या - २० | साइज - ११८५ ६ | भाषा - हिन्दी गद्य 1 विषय-धमं । रचना काल-X | लेखनकाल- पूर्व वेष्टन नं० ३८४ । 1 विशेष- शानावाई श्रोतवाल कोदारी के परनार्थ तेरह पंथियों के मंदिर में प्रतिलिपि की गई। धार्मिक चर्चाओं का संग्रह हैं | अब की एक प्रति और है। २२३. आवक क्रियावन -पत्र संख्या ९६ साइज - ११००६ इव भाषा - हिन्दी | विषय-धर्मं । रचना काल-X | लेखन काल- ४ पूर्ण वेष्ठन नं० ५५० । २२४. धावक दिनकृत्य वर्धन-पत्र संख्या साइज - १०३४ पू० १२ । पर प्रकाश डाला गया है। २२५. आवकधर्म वचनिका पत्र संख्या १७६३१ माया-हिन्दी विषय धर्म । विषय-धर्म रचनाकार- लेखन फाल विशेष प्रति दिन करने योग्य — रचना का | लेखन काल-X अपूर्ण वेष्टन नं० १०४ ॥ त्रिशेष – स्वामीकार्तिकेयानुपेक्षा में से श्रावक धर्म का वर्णन हैं। २२६. आवक प्रतिक्रमण सूत्र ( छाया युक्त) भाषा प्राकृत 1 विषय-धर्म । रचना काल -x | लेखन काल -X | अपूर्ण । त्रेप्टन २०१८२ । विशेष प्रथम पत्र नहीं है संस्कृत में भी धर्म दिया हुआ है। विशेष प्रति प्राचीन है । - भाषा- प्राकृत | पत्र-२ से ३ -६६४ । २२७. भावकाचार स्वामी पूज्यपाद पत्र संख्या १ साइज ११५ भाषा-संस्कृत विषयबाजार शाख । रचना काल सेन काल-x पू वेष्टन नं० १०१ | } २२८. आयकाचार - वसुनन्दि पत्र संख्या ३५ साइज - ११५५ च भाषा-वाकृत विपयश्राचार] शास्त्र । रचना काल X वन फा०] १६३० चैत्र सुदी १२ पूर्ण वेष्टन २०१७२ । विशेष – प्रांच की प्रतिलिपि मोजमाबाद ( जयपुर ) में हुई थी। अंग की एक प्रति और है वह पूर्व है । । माया-संस्कृत विषय २२६. श्रावकाचार – पद्मनन्दि पत्र संख्या ६६-११४ आचार शाख । रचना काल - लेखन -X पूर्व टन नं० १७९ ॥ विशेष प्रति प्राचीन है । २३०. श्रावकाचार पत्र संख्या २७-११३४६ भाषा-संस्कृत विषय-आचार शाक्ष । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 रचना काल -X | लेखन काल -x खे विशेष - प्र'ध पर निम्न शब्द लिखे हुये हैं जो शायद बाद के हैं ये श्रावकाचार उमास्वामि का बनाया हुन नहीं हैं कोई जैन धर्म का द्रोही का बनाया हुआ है। झूठा होया सागत है । २३१. श्रावकाचार पत्र -११ मा विषय राख चमका १२३२६ ॥ वेष्टन नं० १७५ । २३२. धारकाचार अमितगति पत्र संख्या १४-११-विषयथाचार शास्त्र : रचना काल - । लेखन काल - सं० १२.१८ | पूर्ण | वेष्टन न० १०१ । २३३. श्रावकाचार -- गुणभूषणाचार्य | पत्र संख्या - १२ | साइज - ११५३ च भाषा-संस्कृत | विषय-आधार शास्त्र । रचना -x खनाल ०१०१७ बुदी २०१७०। २३४ पोडशकारण भावना वर्शन-पत्र संख्०-२१० इंच भाषा-हिन्दी श्य धर्मं । रचना काले-X | लेखन काल - X | पूर्ण वेष्टन न० ३७८ | I विशेष - दशलक्षण धर्म का भी वर्णन है। २३५ सम्मेदशिखर महात्म्य दीक्षित देवदत्त भाषा संस्कृत विषयधर्ममा १७८ लेखन -X पूर्व वेष्टन नं. ३०२ ॥ ! [ धर्म एवं आधार शास्त्र २३६. सम्मेदशिखरमहात्म्य - मनसुखसागर | पत्र संख्या - १६५ | साइज - ११४५ ४०२ । भाषा-हिन्दी विश्व-धर्म रचना काल X| झन पूर्वटनं विशेषाचार्यविरचित 'नीम' में से महात्म्य की भाषा है महात्म्य को एक तिर | हैवी है। २३७. सम्यक्त्व पच्चीसी- -भगवतीदास | पत्र संख्या-2 | साइज - ६३४७ ६ | भाषा - हिन्दी | विषय-धर्म रचना का खनाल पूर्व वे नं २३८. सत्यप्रकाश - डालूराम पत्र संख्या - १ | साइज - ११ विषय-धर्म । रचना काल सं० २०७१ चैत्र सुदी १५. । लेखन काल- ० बेशास मुदी पत्र-२११६ च २३६. संबोधवासिकार धर्म रचना काल XX पूर्ण वेष्टन नं. १० । -- ww. विशेष नावाओं की संख्या ४२ है अन्तिम गाथा निम्न प्रकार है— | | भाषा - हिन्दी ( प ) | पूर्व वेष्ठन नं० ८४४ माया-अपभ्रंश विषय Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं का चार शास्त्र] [ ३७ सावण मासम्मिकन्या, गाहा वैधेच बिरदय मुबह । कहियं सपुच्चयत्वं, पइडिज्जंतं च सुइबोहं ॥४॥ २४०. संबोधनासिका-द्यानतराय । पत्र संख्या-४ । साइज-rxt च । भाषा-हिन्दी । विषयधर्म । रचना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन नं ११५ । २४१. संबोध सत्सरो सार........... | पत्र संख्या-५ साइज-१०३४४ इश्च । भाषा-संस्कृत । विषय- । रचनाकाल-~। लेखन बाल-० १६३. ! ! श्रेष्पन नं. १०४ ! विशेष-पत्र ४-५ में सम्यक्त्व कल वर्णित है । भाषा पुरानी हिन्दी है। सत्तरी में ७० पद्य है । अन्तिम पद निम्न प्रकार है जे नराः ध्यानानं च स्थिरचितोऽग्राहकाः । तीरते अष्टकमाथि सारसंवोधसत्तरी ||७|| २४२. सागारधर्मामृत-पं० आशाधर । पत्र संख्या-५.१ | साइन-११४ च । भाषा-संस्कृत । विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं० १२६६ पौष बुढी ७ 1 लेखन काल-२० १६२५ कार्तिक सुदी ८ । पूर्ण | बेष्टन नं.१८०। २४३. सामायिक महात्म्य पत्र संख्या-4 1 साइब-x५ च । माषा-हिन्दी । विषय-धर्म । रना काल- लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं०६६५+ २४४. सारसमुच्चय--कुनभद्र । पत्र संख्या-१६ । साइज-tox इंच । भाषा-संस्कृत । निषयधर्म । स्वमा काल-४ 1 लेखन काल-२० १५४५ कार्तिक बुद्धी ४ । पूर्ण । धेष्टन नं. १०६ । विशेष - संघी श्री लाजू अग्रवाल ने अंथ लिखवाया था । तमा श्री भैरोंरक्स ने प्रतिलिपि की थी। सारसभुश्चय का दूसरा नाम प्रभसार सपुच्चय भी है । इसमें ३३० श्लोक है । देवदेवं जिन नत्वा मवोदभवविनाशनं । वक्ष्येहं देशना काचित् मतिहीनोऽपि भक्तितः ॥२२॥ संसारे पर्यटन जुनुहुयोनि-समाकुलो। शरीरं मानसं दुःखं प्राप्नोतीति दारुणं ॥२॥ अन्तिम पाठ अयं तु कुलमद्रथ मवविञ्चित्ति-कारयां । इण्टी बालस्त्रमविन प्रमः सारसमुच्चयः ॥३२६॥ ये भक्या माधयिष्यन्ति, भवारनाशनं । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] [ धर्म एवं श्राचार शास्त्र अचिरेणैवकालेन, सुत्र प्राप्स्यन्ति शाश्वतं ॥३२७|| सारसमुच्चयमेतेच पति समाहिताः । ते स्वल्पे व कालेन पदं यात्यंत्यिनामयं ॥३२६॥ नमः परमसध्यान विघ्ननाशनहेतवे । महाकल्याणसंपशि कारिगोरिपनेमये ॥३३०॥ इति सारसमुच्चयाख्यो प्रथः समाप्तः । २५५. सारसमुच्चय-दौलतराम । पत्र संरच्या-१८ । साइन-६६x६ इंच । माषा-हिन्दी। वित्रय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-XI. पूर्ण । वेष्टग नं० १०८२ । विशेष-सारसमुच्चय के अतिरिक्त पूजाओं का संग्रह है । सार समुच्चय में १०४ पद्य है । अन्तिम पय निम्न प्रकार है सार समुच्चै रह कशो गुर थाझा परवान । घानंद सुत दौलति नै मजि करि श्री भगवान ॥१०४॥ २४६. सुगुरु शतक-जिनदास गोधा। पत्र संख्या-७ । साइज-१४३ इन्च | भाषा-हिन्दी । . विषय-धर्म । रचनाकाल-सं० १८०० ] लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. ५०२ 1 विशेष-१०१ पद्य हैं। विषय-अध्यात्म एवं योग शास्त्र २४७. अध्यात्मकमल मार्शए-राजमल्ल । पत्र संख्या-१२ । साज-१०६x४३ इव । माषाहरकत | विषय-अध्यात्म । रचना कास-X । लेखन काल-सं० १६३१ फाल्गुण सुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० २३ । विशेष-सं० १९८२ में नंदकीर्ति ने अर्गलपुर (आगरा) में प्रतितिपि की थी। अब ४ अध्यायों में पृये। होता है। २४८. अध्यात्म बारहखड़ी-दौलतराम 1 पत्र संख्या-६७ | साइज-६३४५३ इन्न । भाषा-हिन्दी (षध) | विषय-अभ्यास्म । रचना काल-सं० ११८ | शेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन में० ३७ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म एवं योग शास्त्र २४६. अष्टपाहुछ-कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या- मे ५७ । साइज-१०:४५ च । भाषा-भारत । त्रिश्रय-अध्यात्म | रचना काल-X । लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन नं०६३ । विशेष-प्रभ की प्रतियां और है लेकिन वे दोनों ही अपूर्ण है। २५:, अष्टपाहुड भाषा-जयचन्द्र छाबड़ा । पत्र संख्या ८१ मे १२३ । साइज-११४० इंच 1 माषःहिन्दौ । विषय-अध्यात्म ! रचना काल-सं. १८६५ । लेखन काल-X18 । वेष्टन नं. ८१० । विशेष-अप की एक प्रति और है लेकिन वह भी यपूर्ण है। ५१. अात्मसंबोधन काव्य-रइथू । पत्र संख्या-२८ । साइन-१४४ इभ । भाषा-धपाश । विषय-प्र. ना कार. -- लेसना स-- . . ५१६i kण बुदी : । पूर्व । वेष्टन नं० २४ । विशेष - अलवर नगर में प्रतिलिपि हुई थी। २५२. श्रात्मानुशासन--आचार्य गुणभद्र । पत्र संख्या १ । साइजः-१०४४३ । माषा-वत । विषय-अध्यात्म । रचन। काल-x। लेखन काल-सं. १७७० भादत्रा सुदी १२ । पूयें । वेष्टन नं. ३४ । विशेष-साह ईसर अजमेरा ने धन्दी नगर में प्रतिलिपि की थी । प्रभ की २ प्रतियां और हैं। २५३. आत्मानुशासन टीका-टीकाकार पं० प्रभाचन्द्र 1 पत्र संख्या-७१ । साइज-१.४४३६ ! भाषा-संस्कृत | विषय-अध्यात्म | रचनाकाल-X ! लेखन काल-२० १५८१ चैत्र बुदी ६ । पूर्ण । बेष्टन नं० २३ । __विशेष - पत्र ३८ तक फिर से प्रतिलिपि की हुई है, नवीन पत्र हैं । प्रशस्ति निम्न प्रकार हैं: सं० १५८१ वर्षे चैत्र बुदी ६ गुरूवासरे घटपानीनाम नगरे राउ यो रामचन्द्रराज्यप्रर्वतमाने श्री मूलसंघे नद्याम्नाचे वलात्कारगणे मरस्वती गच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पन नंदि देवा तत्पर्ट भट्टारक श्री शुभचन्द्र देवा तत्प?' भ. श्री मिनचन्द्र देवा तत्पर्ट भ० भी प्रभाचन्द्र देवा तदानाये खंडेलवाला-बये साह गोत्रे चतुर्विधदान वितरण कल्पवृक्ष साह काधिल तरभार्या कावलदे तयोः पुत्राः प्रयः प्रथम साह गूजर, द्वितीय सा. राधै जिनचरग्य कमलचंचरीकान् दान पुजा समुद्यतान् परोपकारनिरतान् प्रस्वरुप चिन्वान् सम्यक्त्व प्रतिपालकार श्री सर्वझोक्त धर्मरे जितन्तसान कुटुम्ब साधारकान रत्नत्रयालंकृत दिव्य देहान् महाराभयशास्त्रदानसमुन्नितान् त्रयो साह बच्छराज तमार्या पतिव्रता पद्मा तस्याः पुत्र परम श्रावक साह पचाणु तद्भार्या प्रतापदे तत्पुत्र माह दूलह एतेषां मध्ये सा. बच्छराज इद शास्त्रं लिखायितं सत्पाषाय मुनि श्री माघनन्दिने दरा कर्मक्षयार्थ । गौरवंश से३ श्री खे तस्य पुत्र पदारथ लिखितं । २५४. प्रात्मानुशासन भाषा-पं० टोडरमल । पत्र संख्या-५६ । साइज १०४ च । माषाहिन्दी गय | विषय-अध्यात्म | रचना काल-x | लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. ७१॥ विशेष-प्रति स्वर्ग १० टोडरमल जी के हाथ की लिखी हुई है। इस प्रति के अतिरिक्त मतियां और है। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૦ ! उनमें से प्रति है। २५४. आत्मावलोकन - दीपचन्द कासलीवाल पत्र संख्या १४ साइज - १९८५ मंच भाषाहिन्दी | विषय-श्रव्यात्म | रचनाकार- २७० न का पूर्ण । वेष्टन नं० ७६१ ॥ २५६. आराधनासार- देवसेन अध्यात्म | रचनाका समX पूर्ण विशेष-संस्कृत में संक्षिप्त टिप्पण दी हुई है। दो प्रतियां और हैं ' पत्र संख्या १६-१०टन नं० ३५ । २५७. चार ध्यान का वर्णन विषय-योग | रचना काल -- x | लेखन काल -X 1 पूर्ण जेष्टन नं० ४३७१ चौरासी आसन भेद २५८ विषय - योग । रचना काल -X | लेखन काल - ०२७८८८ पूर्ण ज्ञान व भाषा देखना -X पूर्ण WAI d विशेष लूथ के शिष्य पं० खीबसी ५६. ज्ञानात्र - श्राचार्य शुभचन्द्र । विषय-योग शास्त्र | रखना - लेखन काल ०१०१२ पत्र विशेष - पं० श्री कृष्णदास ने प्रतिलिपि कराई थी २६०. ज्ञानाय भाषा - जयचन्द्र छाबडा हिन्दी विषय-योग रचना का सं०] [१८६६ लेखन काल२६१. योग। चना काल पत्र संख्या २२ साइन-६ भाषा - हिन्दी । विशेष प्राधायाम प्रकार का ही वर्णन है। [अध्यात्म एवं योग शास्त्र पत्र संख्या - ११ साम-च भाषा-सस्त वेष्टन नं० १३६ । प्रतिलिपि । संख्या - १२८ | साइज - १०३८५ । माषा-संस्कृत | वेष्टन नं० २० ॥ पूर्ण की २ प्रतियां और हैं । संख्या १६६ साहस- १०३०३ च भाषावेष्टन नं. ४०० | ↓ पूर्ण पत्र संख्या १६ साइ-१० च भाषा-हिन्दी विषयवेष्टन ० ५१२ २६२. द्वादशानुप्रेक्षा काभ्याम । रचना -- लेख -X पूर्व वेशन मं०८२८ । पत्र संख्या-४४-१६ भाषा-विषय विशेष प्राकृत भाषा में गाथा दी हुई है और फिर उन पर हिन्दी में लिखा हुआ है। २६३. द्वादशानुप्रेक्षा पत्र संख्या १ से ५१४ पूर्ण वेष्टन नं० १३ विषय-अध्यात्म रचना काल- लेखन का २६४. द्वादशानुप्रेक्षा" अध्यात्मा । रचना काल-X लेखन का पूर्व मेननं० ५५१ भाषा-हिन्दी) पत्र संख्या--११ भाषा-हिन्दी विषय Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म एवं योग शास्त्र . u D २६५. परमात्मप्रकाश-योगीन्द्र देव । पर संख्या- २५५ । साइज-१०३४ इन्न । भाषा-प्राकृत । विषय-वस्म । रखना काल-- । लेखन काल-X । 'पूर्ण । वेष्टन नं. ७६५ । विशेष—ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका तथा दौलतरामकृत भाषा का सहित है। योगीन्द्रदेव कृत लोक संन्या-४३, ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका श्लोक संख्या ५००, तभा दौलतराम कत भाषा श्लोक संख्या ६ • प्रमान्य है। दो मतियों का मिश्रा है । अंतिम पत्रों वाली प्रति में कई जगह अक्षर काटे गये हैं। २६६. प्रति नं. -पत्र संख्या-२४० | साइज--१९४५ इञ्च । लेखन काल -x | पूर्ण । वेष्टन नं. ७६६ २.६७ प्रति नं०३--पत्र संख्या-२१६ | साज-१०:४५ ४५ ! लेखन काल-में- १८६२ । पृणं । बन नं. २६. प्रति नं -पत्र संस्था--१७६ । साइज-११३४५६ इंच । भाषा-अपनश । लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं० २०३। विशेष- प्रति संस्कृत टीका सहित है । टीका उसम है । टीकाकार का नामोल्लेख नहीं मिलता है। इन प्रतियों के अतिरिक्त मय की ४ प्रतियां और हैं । २६८. परमात्मपुराण-दीपचन्द । ५५ संख्या-1 से 3 | साइज-१०४४३ च । भाषा-हिन्दी । विषयपथ्याम । रचना काल-X । लेमन काल-४ । पपूर्ण । ३न नं. ७३.८ | विशेष - अन्य का दि अन्त भाग निन्न प्रकार है पारम-पथ परमातम पुराण लिस्यने । दोहा-परम अखंडित ज्ञानमय गुण धनंत के धाम । अविनासी पानंद अग नखत लहै निज शाम ॥१॥ गाय --अचल अतुल अनंत महिम मंडित अखंडित त्रैलोकर शिखर परि विराजित अनीपम अबाधित शिव दीप है। तामें प्रातभ प्रदेश असंख्य देस है । सो एक एक देस अनंत गुण पुरुषन करि ब्यापत है। जिन गुग पुरुषन के गुण परणति नारी है | तिरा शिवीप को परमातम राजा है । चेतना परिणति राणी है । दरसण ज्ञान चरित्र ए तीन मंत्री हैं। सम्यक्स्व फोजदार है । सब देसका परणाम कोटवाल है । गुण सत्ता मन्दिर गुण पुरुषन के है । परमातम राजा का परमातम सत्ता महल परया तहा चेलना परणति कामिनी सो केलि करते प्रतें दिय अबाधित थानेद उपजे है । अन्त में ( पृष्ठ ३६ -परमातम राजा एक है परणति शक्ति भाविकाल में प्रगट श्रीर ओर होने की है परिवर्तन धन काल में व्यक्त रूप परणति एक है सो ही बस राजा को रमाई है। जो परणति वतमान की की राजा भोगये है सौ परगति समय मात्र श्रामीक अनंत सुम्य में करि विलय जाय है । परमातमा में लीन होय है। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] [अध्यात्म एवं योग शास्त्र २६६. प्रवचनसार-कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या-८ से ४४ । साइज-१६४७३ इंच | माषाप्राकृत । विषय-अध्यात्म विचना काल-- । लेखन काल-४ | अपूर्ण । वेष्टन नं. ६८८ | २७०. प्रवचनसार भाषा-हेमराज । पत्र संख्या-३५ । साइज-१०x१३ इन्च । माषा-हिन्दी (q) विषय-अध्यात्म ! रचना काल-सं. १७०४ । लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. ७१८। विशेष-पप संख्या ४३८ है। srbe २७१. प्रति नं२-पत्र संख्या-११.साइज-१२x= इव | रचना काल-सं. १७०४ माघ दी ५ | लेखन काल-सं० १.११ श्रासोज सुदी पूर्ण । वेष्टन नं. ७.७। विशेष -श्री नन्दलाल अग्रवाल ने प्रतिलिपि कराई थी। सं. १११ वर्षे श्राश्विनि मासे शुक्ल पक्ष गुरुवासरे श्री अकबराबाद मध्ये पातशाह श्री शाई जहान विजय राज्ये श्वेताम्बर कासीदासेन अग्रवाल मातीय साह श्री नन्दलाल पटनायें । सं० १७६१ शाह छाजूराम नज के पठनार्थ खरीदी थी। मथ की ४ प्रतिया और है। २७२. प्रवचनसार भाषा-वृन्दावन । पत्र संख्या-१५३ । सारज-१३४७६ इन्च | भाषा-हिन्दी । पच) । विषय-अध्यात्म । रचना काल-सं. १६०५ बैसाख मुदी ३ । लेखन काल-सं. १९२७ । पूर्ख । वेटन नं० ७२६ । विशेष-वीरालाल मंगवाल ने लश्कर नगर में प्रतिलिपि कराई थी। "ALL: att २७३. मृत्युमहोत्सर भाषा-दुलीचन्द । पत्र संख्या-१५ । साइज-१२४. इन | माषा-हिन्दी । विषय-अध्यात्म । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्ठन नं. ५३८ । २५४. योगसार-योगीन्द्र देव । पत्र संख्या- १३ | साज-११४५३ इन। भाषा-अपभ्रंश । विषय-योग | रचना काल-X । लेखन काल-सं० १९२१ ज्येष्ठ पुदी २ । पूर्ण । वेष्टन नं. १ २७५. प्रति नं०२-पत्र संख्या-१० । साइज-१.३४७६इन । लेखन काख-। पूर्ण । वेष्टन नं०६१ । विशेष-गामानों पर हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है । गापा सं० १०८ । ४ प्रतिया और है। २७६. योगसार भाषा-बुधजन । पत्र संख्या-८ | साइज-१०४५ च । भाषा-हिन्दी । विषयअध्यात्म । रचना काल-सं० १८६५ । लेखन काल-४ । पूर्ण । श्रेष्टन नं० ३८२ । २७७. योगीरासा-पाण्डे जिनदास । पत्र संख्या-३ । साइज-१३३४९ । माषा-हिन्दी । विषय-पश्यात्म । रखना काल-- । लेखन काख-। पूर्ण । वेटन नं० ११२४ । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म एवं योग शास्त्र ] [ ४३ रेन वैराग्य पच्चीसी - भैया भगवतीदास । पत्र संख्या -४ | साइज - ७८ । भाषा - हिन्दी विषय- अध्यात्म | रचना काल सं० १७५० । लेखन काल- ४ । पूर्ण । वेटन नं० ५५६ | २७६ वैराग्य शतक ....... - पत्र संख्या- ११ साइज १०४४ स्थ। भाषा प्राकृत विषयश्रध्यात्म | रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८१६ बैसाख सुदी ११ । श्रपूर्यं । वेष्टन नं० १४४ विशेष - जयपुर में नाथूराम के शिष्य ने प्रतिलिपि को भी | गाथाओं पर हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है । १०३ गाषायें हैं । प्रारम्भिक गाथा निम्न प्रकार हैं: संसार मिसारे पथि सुहं वाहि वेखापरे । तो जीवो यकार जिपदेसिय धनं ॥ १ ॥ २८० षट्पाट - कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या - ६२ । साह - १३४ इंच । माषा-प्राकृत विषयश्रध्यात्म | रचना काल–× । लेखन काल - सं० १७३६ मात्र बुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० ६२ । विशेष --- साइ काशीदास घागरे वाले ने स्वपठनार्थं धर्मपुरा में प्रतिलिपि की । चक्षर सुन्दर एवं मोटे हैं। एक पत्र मैं ४-४ पंक्तियां हैं । ८१. प्रति नं० २ - पत्र संख्या - २४ । साइज - ११९५ ३ | लेखन काल - सं०] १७४४ | पूर्ण | वेष्टन नं० ८६ । विशेष- प्रति संस्कृत टीका सहित हैं। प्रथ की २ प्रतियाँ और हैं । २८२. समयसार कलशा - अमृतचन्द्राचार्य पत्र संख्या- ४५६ साइज - ११३८ च । माषासंस्कृत] | विषय - अध्यात्म | रचना काल -X | लेखन काल सं० १६०२ श्रावण बुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन नं. ४३ । विशेष- संस्कृत में कहीं २ संकेत दिये हुए हैं। यम की दो प्रतियां और हैं। २८३. समयसार टीका - अमृतचन्द्राचार्य । पत्र संख्या ६४ | साइज - १२४६ हश्च । भाषा-संस्कृत | विषय- श्रध्यात्म 1 रचना काल -x | लेखन काल-सं० १७८ भादवा सुदी १४ । पू । बेष्टन नं. ४१ । विशेष – लेखक प्रशस्ति निन्न प्रकार है प्रशस्ति-संवत्सरे बसुन |गमुनदुमिते १८ मापद मासे शुक्ल पते चतुदशी तियों ईसरदा नगरे राज्ये श्री श्रजितसिंहजी राज्य प्रवर्तमाने श्री चन्द्रप्रभुचैत्यालये श्रीमूलसंघे बलात्कार गयो सरस्वती गच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्मये मंगावत्या: भट्टारकजित श्री सुरेन्द्र कीर्तिस्तरपट्टे म० श्रीजित् श्रीजगतकीर्ति तत्पदृपः स्मर्यसमाया निर्जितसागरेसादि पदार्थ स्वपंडातरितागम बोधे म० शिरोमणि भट्टारक जित श्री १०८ श्रीमद्देवेन्द्र कीर्तिस्तेनेयं समयसारयैका रवशिष्य मनोहर कथानार्थ पठनाथ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Kop ४४ ] [अध्यात्म एवं योग शास्त्र बोधिनी सुगम निबुद्धद्या पूर्व टीकामवलोक्य विहिता बुद्धिभद्रः बोधनीया प्रमादात् । श्रल्पबुद्धया पत्रहीनाधिकं भव भवेत् तत् शोधनीयं पाचनेयं कृता मया किं महुकयनेन वाचकाना पाठकाना मंगलावली समवो भवेत् थी जिनम २४. प्रति नं० २ - पत्र संख्या १२७ । साइज - १९४६ इच | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० ४२ । I विशेष-संघ ही दीवान श्योजीराम ने पपने पुत्र कुंवर अमरचन्द के पठनार्थं प्रतिलिपि कराई थी। श्योजीराम दीवान के मन्दिर जयपुर में प्रतिलिपि हुई। २८५. प्रति नं० ३ - पत्र संख्या - १६ | साइज - १३७ ६ । लेखन काल सं० १८६६ श्रासोज डुदी ४ पूर्ण । वेष्टन नं ० ४५ विशेष—– संघही दीवान श्रमरचन्द पडनार्थं पिर गदास महुश्रा के ने प्रतिलिपि की । २८६, प्रति नं० ४- पत्र संख्या १०० | साइज - १०५ च । लेखन काल शक सं० १८०० | पूर्ण | वेष्टन नं० ४७ । विशेष - [सं० ख ख त्रमुइन्दुमिते वर्षे शाकै माघ मास शुक्ल पते तिथी द्वितीयायां गुरुवारे धनेकवनवापी कृप तागजिन पैरेयालयादि विराजमाने बहुत्रिख्याते सफल भगराम मटं वादीनां शेखरीभूते पाति साह थी गुहम्मदशाह तत् सेवक महाराजाधिराज महाराजा श्री ईश्वरसिंहराजय प्रबर्तमाने सवाईपुरनामनगरे तब श्री पार्श्वनाथ चैत्रालये सोनी गोत्रे साह श्री प्रश्गदास जी का पिते । श्री मूलचे मंधानाये बलात्कार गये सरस्वति गच्छे श्री कुन्दकु दग्वदार्यान्वये मट्टारकजित श्री १०८ श्री महेन्द्र कीर्तिजी तस्य शासनवारी ब्रह्म श्री अमरचन्द्रस्तत् शिष्य पं० श्री जयमल्लस्तत् शिष्य पं मनोहरदास तत् शिष्य पं० श्री श्रीमतस्तत् शिष्य पं श्री हीरानन्दस्तद् शिष्य गरिष्ट बुद्धि वरिष्ट सफलतर्क मीमांसा सही प्रमुखादगुणानी व्याख्याने निपुण पंडितीत्म पंडित जितश्री चोख चन्द्रजीकस्य शिष्य तुकारामेण स्वशयेन स्वपठनार्थं ज्ञानावरणीय लिपिकता । २७. प्रति नं० ५ – पत्र संख्या ३६ | साइज - १०४०३६ | लेखन काल सं० १७२१ पष सुदी पूष्टन नं ० ० | विशेष - सा० जोधराज ने प्रतिलिपि करवाई थी । 3.55. समयसार नाटक - बनारसीदास | पत्र संख्या- ३०० | सहज - १०३४३ इ मात्राहिन्दी | विषय - श्रध्यात्म रचना काल सं० १६६३ । लेखन काल सं० १८६७ बुदी १४ | पूर्ण । देष्टन नं० ७४६ २८६. प्रति नं० २०पत्र संख्या- १६४ | साइज - ८३४ इंच लेखन कास-सं० १००० कार्तिक सुदी ७ पूछे । वेष्टन नं० ७५६ । विशेष – श्रीमानुसात्म पठनार्थं लिखितं । श्रमेर में प्रतिलिपि हुई । १४३ पत्र के आगे बनारसीदास कृत अन्य आठ हैं। (गुटका Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म यवं योग शास्त्र] { ४५ २०. प्रति नं०३-पत्र संख्या-७ | साइज-११६x४३ च | लेखन काल-सं० १७०३ सावन सुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन ने० ७६७ । विशेष-संवत् १७०३ वर्षे श्रावणसितचतुर्दशीतिमा श्रीमूलसंधै बलात्कारगणे सरस्वतीगरछे कुन्दकुन्दाचार्या श्रये भ. श्री चंद्रकीतिजी भ. श्री नरेन्द्र कीर्तिजी तदाम्नाये सेव्या गोये साइमस मार्या वर्षी तश इदं समयसार नाम नारक लिख्य प्राचार्य श्री सकल फौर्तिये प्रदरी । विशेष-समयसार नाटक की भण्डार में १६ प्रतियां बीर हैं। २६१. समयसार भाषा--राजमल्ल ! पत्र संख्या-२१६ | साज-११x१३ च । भाषा-हिन्दी गय | विषय-अध्यारम 1 स्चना काल-x ! लेखन काल-स. १७४३ पौष बुदी ४ | पूर्ण । वेष्टन नं. ७६४ । विशेष—इति श्री समयसार टीका राजमल्लि भाषा समारतेयं । २९२ प्रति नं० --पत्र संख्या-२७ । साइज-१:५४ इञ्च । रेखन काल-सं० १७४८ अषाढ चुदी ५ । पूर्ण । वेष्टन मं० ४६६ । -पत्र संख्या-२०२ | साह-१२४६ च । लेखन काल-सं. १८२० । पूर्ण । २६३. प्रति नं वैटन नं. ६१३ । विशेष--नैणसागर ने सवाई जयपुर में प्रतिलिपि की थी । पुढें पर बहुत सुन्दर बेल बूटे हैं। २६४. समयसार भाषा-जयचन्द छारा। पत्र संख्या-३२० । सारज-१०:४७ । माषाहिन्दी । विषय-अध्यात्म । रचना काल-सं. १८६४ । लेखन काल-सं० १६.६ । पूर्ण । वेष्टन नं ४२० | २६५. समाधित भाषा-पर्वतधार्थी । पत्र संख्या १२० । सादज-१२४१३ इम्च | भाषागुजराती । विषय योग । रचना कास-x 1 लेखन काल-सं० १७६३ कार्तिक सुची १३ | पूर्य । वेष्टन नं. ७.६ । विशेष-~६ प्रतियां और है । प्रम की लिपि देवनागरी है। २६६. समाधितन्त्र भाषा - ............."| पत्र संख्या-१७२ । साज-१९४७३ इंच । भाषा-हिन्छ। विषय- योग । रचना काल-X | जेस्खन काल-सं० १९३३ 1 पूर्ण । वेष्टन नं. ०४६ विशेष- चाकार में लिपि हुई भी। २६७. समाधितंत्र भाषा............."। पत्र संख्या-२७ । साहज-११४५ ६ । माषा-हिन्दी । विश्य–योग । रचना काल-X । लेखन काल-सं०१४३६ फागुग्ध सुदी १३ । पूर्ण । वेष्टन नं. ७ः। २६८. समाधिमरण.............! पत्र संख्या-२८ । साइज-X| भाषा-हिन्दी । विषय-अध्यात्म । रचना काल-X । लेखन काल-x 1 पूसा । वेष्टन नं. ११३४ । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [न्याय एवं दर्शन शास्त्र PEL. समाधिमरण" ....... । पत्र संख्या-१६ | साइज-११४५ इंच । माषा-हिन्दी विषयएण्यात्म ! रचना काल-X । शेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं। ५८७ । ३०. समाधिमरण भाषा ...... । पत्र संख्या-३. 1 साइज-ex४ इंच । भाषा-हिन्दी । विषय-अध्यात्म | रचना काल-x | लेखन काल-सं० १.३४ प्रासोज दी ४ । पूर्ण । वेष्टन न.७८८ । ३०१. समाधिमरण भाषा........। पत्र संख्या-१६ । साइन- ११xk इच। भाषा-हिन्दी । विषय-अध्यात्म | रचना काल-X1 लेखन काल-XI पूर्ण 1 वेष्टन नं. ८७५ | ३०२. समाधिशतक-श्रा समन्तभद्र । पत्र संख्या-१३ । साइज-१२३४६ च । भाषासंस्कृत | विषय-योग । चना काल-xलेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. १४६ । विशेष-हिन्दी में पधों पर अर्थ दिया हुआ है। ३०३. स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा-स्वामीकात्तिकेय । पत्र संख्या-२८७ ! साइज-१२४५३ इच। । भाषा-प्राकृत । विषय-अध्यात्म । रचना काल-x ! लेखन काल-X I पूर्ण । वेष्टन नं० ४८ 1 विशेष-प्रति म० शुमचन्द्रकृत टीका सहित हैं । टीका संस्कृत में है । मभ की ३ प्रतियां और हैं । ३०४. स्वामीकार्तिकेयानुप्रेज्ञा भाषा-जयचन्द छावका । पत्र संख्या-१५५ । साज-११४५ ५३ | विषय-प्रध्यात्म । रचना काल-सं १८८३ श्राधय बुदी ३ | लेखन काल-~। पूर्व । वेष्टन नं. ४०३ । ३०५. प्रति नं०२-पत्र संख्या- १११ । साइज-१०४३ इञ्च । लेखन काल-सं. १८६३ श्रावध बुदी ३ । पुणे । वेष्टन नं. ४०४१ विषय-न्याय एवं दर्शन शास्त्र ३०६. अष्टसहस्री-आचार्य विद्यानन्द । पत्र संख्या-२६७ । साइज-११६४५ च । भाषासंस्कृत | विषय-न्याय शास्त्र । रचनाकाल-४ । लेखन काल-सं० १८२७ चैत्र सुदी १२ | पूर्ण । वेष्टन नं. ११३ । विशेष-जयपुर में घासीलाल शर्मा ने प्रतिलिपि की थी। ३०७. तर्कसंप्रह-अभट्ट । पत्र संख्या-५ | साज-११४४३ इंच । माषा संस्कृत । विषयन्याय शास्त्र | रचना काल- लेखन काम-२०१८२६ । पूर्ण वरन नं. १५१। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्याय एवं दर्शन शास्त्र ] विशेष - सांगानेर में पं० नगराज ने प्रतिलिपि की गी । अन्य की एक प्रति और है । २०६. देवागमस्तोय - समंतभद्र पत्र संख्या ११-६६१ न्यायशास्त्र रचना काल- लेखन - पूर्ण वेष्टन नं० २०७१ विशेष- एक प्रति भीर है। ३०६. देवागमस्तोत्र भाषा - जयचन्द्र छाबडा । पत्र संख्या--४-११हिन्दी विषय न्यायशास्त्र रचनाकाल १० १०६६ चैत्र बुदी १४ । लेखन कामं० १६८४ पौष बुदी १५ पूर्ण वेष्टन २०४६१। -- ३१०. नयचक्र भाषा - हेमराज | पत्र संख्या - १७ | साइज - १०३४३ भाषा - हिन्दी | विषयदर्शनशास्त्र रचना फा०] १७२६ लेखन काल से० १०६२ । पूर्ण न मं० २०३ I न्यायदीपिका भाषा-पन्नानात पत्र संख्या १०३ रचनाकाल सं० १३५ मंगसिर सेखन काल x विशेष मन्म प्रशस्ति का अन्तिम भाग निम्न प्रकार है:अन्तिम पाठ [ ४७ ! ३११. न्यायदीपिका यति धर्म भूषण पत्र संख्या ३७ सह- ११४३ भाषा-संस्कृत विषय-याप शास्त्र । रचना काल -X | लेखन काल - x 1 पूर्णं । वेष्टन नं० २०११ विशेष क्रम को एक प्रति और है। ३१ . विषय-म्यान शास्त्र मा विषय ार्यक्षेत्रा में जयपुर अदभूत नगर महा ताके श्रधिपति नीति तुप श्रति रामसिंह नृप नाम कहा !! मंत्री पद में रायबहादुर जीवनसिंह नाम सहा साइज १२४६ । माषा-हिन्दी वेष्टन नं० ३९५ पूर्ण ताको गृह मति संधी भावह पन्नालाल सु धर्म चहा आवक धर्मी उत्तम कम्मी है मभी जिन वचमन के । नाम सदासुख नाशित सब दुख दोष मिटावन के || सास निकट जिन भूत निति प्रति न सुनत मन तापाय न्यायशास्त्र को रहिस ग्रह हित न्यायदीपिका हमें पदाय ॥ तास वचनका विशद करन की धानंद हृदय पटायी है। करी वीनती त्रिभुवन गुरू हैं अर्थ समस्त लखायी है || फतेलाल जय पंडित पर पति धर्म प्रीति को धारक है। शब्दागमत तथा व्यायते श्रर्थ समर्थन कारक है | Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [न्याय एवं दर्शन शास्त्र तिनके निकट विशद कुनि कोनी, अर्थ विकल्प निवारन कौ । करी पनिका स्त्र पर हित को पहौ भव्य प्रम शाम को ।। विक्रम नृप के उगणीस पर तीस पाच सत चीना है। मंगसिर शुक्ला नवमी शशि दिन अन्य सम्पूरन कौन। है । चौपई-श्री जिन सिद्ध सूरि उवझाय सर्व साधु हे मंगलदाय । तिनके चरण कमल उरलाप, नमन करै मिति शीश नवाय ।। ३१३. परोक्षामुख-आचार्य माणिक्यनंदि । पत्र संख्या-५ । साइज-१०४३१ । माषा-संरक्त । विषय-दर्शन ! रचना काल-X । लेखन काल-* | पूर्ण । वेष्टन नं० ३४ । ३१४. परीक्षामुख भाषा-जयचन्द छाबड़ा। पत्र संख्या-११७ । साज-१०x४, । भाषाहिन्दी विकाय-दर्शन । रचना काल-सं. १६२७ श्रावण मुदी २ | लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं. ३३८ । ३१५. प्रमेयरत्नमाला-अनन्तवीर्य । पत्र संख्या ४५ 1 माज-११४ इञ्च । भाषा संस्कृत । विषयदर्शन शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं० । निशेष-- माणिक्रनन्दि कृत परीक्षापुच की टीका है। ३१६. मितिमापिणीटीका-शिमादित्य । पत्र संख्या- 1 साज-१०x४३ इम | भाषा-संस्कृत । विषय-न्याय शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण वेष्टन नं. १५३ ।। विशेष- प्रति प्राचीन है। प्रारम्भ का दूसरा पधः विह शादीत नमस्कल्प मापारय सरस्पत्ती शिवादित्यकोष्टीको करोलि पिवमाधिश ॥२॥ ३.१७. "सप्तपदार्थी-श्रीभावविद्यश्वर । पत्र संख्या-८ | साज Px४ | भाषा-संस्कृत । विषयन्याय । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६८३ फागुण सुदी ५ । पूर्या । वेष्टन नं: १४३ । विशेष-५० हर्ष ने रख पठनार्थ प्रतिलिपि की भी । अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है-- अंतिम-यमनियमस्वाभ्यायधारणासमाथिचोरया) मथानय नया पत्ताचार्य श्री. भावविय श्वरविरचिता वाडिया विलास विचित्रबाद्यत्वस्वार्थापरायचमत्कार-पाश्वमया परापान्यायवैशेषिकमहाशास्त्रसमुद्धरपशीलन विरचिता सप्तपदामी । समाप्ता ॥ ३१८. स्याद्वादमंजरी-मभिषेण । पत्र संख्या--३४ । साइज-१३४५३ च । भाषा-संस्कृत । विषयदर्शन शास्त्र । रचना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० १४.। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] ३१६. स्याद्वाद मंज-मल्लिषेण । पत्र संख्या-५९ । साइज-१०४४३ | भाषा-संस्कृत । विषयदर्शन शास्त्र । टीका काल-शक सं० १२१४ । लेख्नन माल-iC.७६७ माह सुदी १ । पूर्ण । मेष्टन नं० २७१। विशेष – उदयपुर में प्रतिलिपि हुई । असिषेण उदयप्रभसूरि के शिष्य थे । विषय-पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ३२०. अकृत्रिम चैत्यालयपूजा-चैनसुख । पत्र संख्या-४ । साइज-२०६४५ इश्व | भाषा-हिन्दी। विषय-पूजा । रचना काल-सं० १९३० । लेखन काल-सं० १५३५ । पूर्ण । बेष्टन नं. ४५८ । विशेष-पूजा की एक प्रत और है । ३२१. अकृत्रिमचैत्यालयपूजा-पंजिनदास : पत्र संख्या-३६ ! साज-८१४५ इश्च । भाषासंस्कृत । रचना काल-X । लेखन काल-सं० ११२। पूर्ण । बेष्टन नं. ८८६ | विशेष- लक्ष्मीसागर के शिष्य पं. जिनदास ने रचना की थी । ३२२. अकृत्रिमत्याजयपूजा. . ...."। पत्र संख्या-१२३ । साइज-१९१४ च । माषा-हिन्दी । रचना काल- लेखन काल-XI पूर्ण । बेष्टन नं ४७२ । ३२३. श्रदाईद्वीपपूजा-डालूराम । पत्र संख्या १२४ । साइज-१२४८ च । भाषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-सं० १८५६ । लेखन काल-सं० १६८५ । पूर्ण | धेटन नं० ४७३ । विशेष प्रथ का मूल्य पद्रह रुपया साढ़े पांच प्राना लिखा हुआ है। ३२४. अढ़ाईद्वीपपूजा ............. | पत्र संख्या-३१६ । साइन-१.४५ इंच । माषा-संस्कृत । रचना काल-XI लेखन काल-सं० १८५२ | फागुड मुदी ५ । पूर्ण । वेष्टन नं० ३२७ १ विशेष-थ के पुट्ट पर १२ तीर्थंकरों के चिन्हों के चित्र है । वित्र सुन्दर है । ३२५. प्रदाईद्वीपपूजा-विश्वभूषण । पत्र संख्या-१० | साइज-१०४६ ह । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा 1 रचना शास-४ । लेखन काल-सं. १६. श्रावण बुदी ७ । पूर्ण । वेष्टन ० ३१५ । ३२६. अंकुरारोपणाविधि-इन्द्रमन्दि । पत्र संख्या-६२ | साहस-१५x इस माला-संस्कृत । विषयविधि विधान । रचना काल-- लेखन काल-x| पूर्ण । वेष्टन नं१०१। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ३२७. अभिषेकपाठ............ | पत्र संख्या-३१ । साइज-११x६ च । भाषा-संस्कृत | विषयविधि विधान । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं. ८८८ । ३२८. अष्टाह्निकापूजा......... | पत्र संख्या २५ | साइज १२४८ इश्च । भाषा-हिन्दी । विषयपूजा । स्वना काल-x ] लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं. ४७६ । ३२६. अष्टाह्निकापूजा-मानतराय 1 पत्र संख्या-२३ से ३० । साइज-११३४५६ इञ्च | माषाहिन्दी । विषय-पूजा ! रचना काल-X1 लेखन काल-X | पूर्ण । वेटन नं. ६३० । विशेष-1-२२ तक के पत्र नहीं है। ३३०. अष्टाहिकावतोद्यापनपूजा ..........." 1 पत्र संख्या-१८ । साइज-१.६५५ । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल•४ । लेनिन कारत-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ३३६ । ३३१. श्रादिनाथपूजा-रामचन्द्र । पत्र संख्या-६ । साइज.१.४५३ ५श्च । भाषा-हिन्दी । रचना काल-X | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १४८ | - ...-ALIA विशेष-प्रारम्भ में हिन्दी में दर्शन पाठहै। l iving. ' ३३२. आदिनाथपूजा-पत्र संख्या ७ । साइज-७४६ इन्छ । भाषा-हिन्दी विषय-पूजा। स्वना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ११३३ । ३३३, इन्द्रध्वजपूजा-भ० विश्वभूषण। पत्र संख्या-२४ । साइज-१०६x६ इच। भाषासंस्कृत | विषय-पूजा । रचना काल-४ । लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं० ३२५ । विशेष-रूचिकगिरि उत्तर दिगदैत्यालय की पूजा तक पाठ है। ३३४. कमलचन्द्रायणपूजा... ......"। पत्र संख्या-३ । साइज-१३४६३ हच । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन ने ० ४५६ । ३३५. कर्मदहनपूजा......"। पत्र संख्या-१ । साज-६५८ इन्च ! माषा-हिन्दी । विषय-पूजा। रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० १.५६ । ३३६. कर्मवहनपूजा............."। पत्र संख्या-२० । साइज-८३४६ इन्च माश-हिन्दी। विषय-- पूजा । रचना काल-x ! लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० १.७ । ३३७, कर्मदहनपूजा..........."। पत्र संख्या-५२ । साइज-१३४६३ स्म । भाषा-हिन्दी । विषयपूजा | रचना काल -X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. ४४४ । ३३८. कर्मदहनपूजा-टेकचन्द । पत्र संख्या-२७ । साइज-११४५६ इञ्छ । भाषा-हिन्दी ! विषय Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] पूजा | रचना काल -X | लेखन काल-सं०] १६३२ | पूर्ण | केवल नं० ४६० । विशेष- इस पूजा की ५ प्रतियां और हैं। ३३६. कर्मदहनपूजा पूजा | रचना काल -x | लेखन काल -X | पूर्ण | बेटन नं० ३५० | | पत्र संख्या - १४ | साइज - १०४५ इंच | भाषा-संस्कृत | विषय - ३४०. कर्मदहनवतपूजा" ......... | पत्र संख्या - ११ साहब - १०३४५ इन्च भाषा संस्कृत | विषय - पूजा । रचना काल -- ४ | लेखन काल-सं० २०९३४ | पूर्णं । वेष्टन नं० ४६२ । विशेष - पूजा मन्त्र सहित हैं। एक प्रति और हैं । २४९. कर्ममंत्र संख्या विषय-पूजा । रचना काल - । लेखन काल - सं० १९३५ | पूर्ण | वेष्टन नं० ४६१ । 1 ५१ ३४२. गणधर वलयपूजा - सकलकीर्ति । पत्र संख्या- ६ । साइज - १०३६ इच ! भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० ३२४ साइज - १०३५ इव । भाषा-संस्कृत | ३४३. गिरनार क्षेत्रपूजा ---...- ..... । पत्र संख्या - ४६ | साइज - १०३८ च । भाषा - हिन्दी | विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल सं० १२३ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४४६ । विशेष – प्रतिलिपि कराने में तीन रुपये साढ़े पांच घाने लगे थे ऐसा लिखा हुआ है । ३४४. चतुविंशतिजिनपूजा हिन्दी | विषय - पूजा । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० ४४० । पत्र संख्या - ११३ | साइज - ११५ इन्च भाषा ३४५. चतुर्विंशतिजिनकल्याणकपूजा - जयकीर्ति | पत्र संख्या १३१ साइज - १०४४३ भाषा-संस्कृत | विषय - पूजा । रचना काल -X | लेखन काल - ० १६०४ चैत्र सुदी ७ | पू 1 वेष्टन नं० ३४१ । ३४६. चतुर्विंशतिजिनपूजा - वृन्दावन | पत्र संख्या १६ विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १६३५ | पूर्ण । वेष्टन नं० विशेष – सं० १९८४ वर्षे चैत सुदी ७ सोमे बहली नगरे श्री बादिनाथ चैत्यालये श्रीमत् काष्ठा संचे नंदीतटगचे विद्यागणे भट्टारक श्री रामसेनान्वये तदनुक्रमेण भ० भुवनकीर्ति तत्पट्ट म० श्री रत्नभूषण, म० श्री जयकीत्तिं श्राचार्य श्री नरेन्द्रकीर्ति, उपाध्याय श्री नेमकीर्ति, क्र० श्री कृष्णदान, पूरकमला श्री हरिजी ऋ० वद्धमान १० वीरजी, पं० रहीदास लिखितं सहज - ११४८ । माषा - हिन्दी | ४१० | विशेष- २ प्रतियां और हैं । ३४०. चतुर्विंशतिजिनपूजा - सेवाराम पत्र संख्या ६३ विषय - पूजा | रचनाकाल - सं० २८५४ | लेखन काल -X | अपूर्ण । वेष्टन नं० साइज - १०३४५ च । भाषा - हिन्दी | ४१६ । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान विशेष- अन्तिम पत्र नहीं है । २ प्रतियां और हैं । ३४८, चतुर्विंशतिजिनपूजा-रामचन्द्र । पत्र संख्या-६६ । साइज-११४६३ इन्च | भाषा-हिन्दी । विषय-पूजा । रचना काल-४ । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं ४२० । विशेष-तीन प्रतियां और हैं। ३४६. चतुर्विंशतितीर्थकरपूजा.............'| पत्र संख्या-४५ । साइज-१.६४ इश्व । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं ३३८ । ३५०. धन्दनषष्ठीत्रतपूजा............"। पत्र संख्या--४ । साइज-१.४५ इ । भाषा-संस्कृत । विषय- पूजा | रचना काल-x | लेखन काल--- | पूर्ण ! वेष्टन मं० २४७ । ३५१. चतुर्विधसिद्ध चक्रपूजा- भानुकीचि । पत्र संख्या ११६ । साइज-७६x६३ इंश । भाषासंस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६३० । पूर्ण 1 वेष्टन मं० १२ । विशेष--वृहद पूजा है । मन्थकार तथा लेखक दोनों की प्रशस्ति हैं । म. भानुकौति ने साधु तिहुणपाल के निमित्त पूजा की रचना की भी । साधु तिहुणपाल ने ही इस पूजा की। प्रतिलिपि कावायी थी। ३५२. चारित्रशुद्धिविधान-भ० शुभचन्द्र । पत्र संख्या-६४ । साइज ११xk | भाषा-संस्कृत । विषय-विधि विधान । रचना काल-x। लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. २६२ । विशेष–१२३४ नतों का विधान' यह मी इस रचना का नाम है । ३५३. प्रति नं० २१ पत्र संख्या--२ से ३५ । साइज १०x४६ च । लेखन काल-सं० १५८४ कार्तिक बुदी ८ । अपूर्ण । वेष्टन न. ५१० । विशेष-प्रथम पत्र नहीं है । जाप्य दिये हुए हैं । प्रशस्ति-संवत् १९८४ वर्षे कार्तिक बुद्धी अष्टमी वृहस्पतिवारे लिखितं ५० गोपाल शर्मक्षयार्भ पात्री (सी) खुखिकावाई सोना पड़ा इदं इत्त श्री पार्श्वनाथ चैत्यालये दुबलाणापत्तने । ३५४. चौबीसतोयंकरजयमान-पत्र संख्या--- | साज-१३४५ । भाषा-हिन्दी। विक्य-पूजा । । रचना काल-~। लेखन काल-सं० १९५७ बैसाख सुदी १४ १ पूर्ण । वेष्टन ने. ११४६ । ३५५. चौसठऋद्धिपूजा-स्वरुपचन्द । पत्र संख्या-३३ । साइम-१२४८ इम। माषा-हिन्दी। विषय-पूजा । रचना काल--सं० १६१० श्रावण सुदी ७ ३ लेखन काल- १९६६ । पूर्ण । बेपन नं ० ४१२ । विशेष -१ प्रतियां और हैं । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] [ ५३ ३५६. जलगालन किया -- ब्रह्म गुलाल | पत्र संख्या- ५ | साइज - x५ इन्च भाषा - हिन्दी विषयविधान 1 रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८१६ वैसाख पुदी | पूर्ण | वेष्टन नं० १००६ । विशेष – रूडमल मौसा ने गारनील में प्रतिलिपि की थी । जिन सहस्रनामपूजा – धर्मभूषण | पत्र संख्या - ६३ | साइज -११x६ इ०च | भाषा-संस्कृत | विषय-पूजा | रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण | बेटन नं० ३२१ । ३५७ ३५. जिनसहस्रनामापूजा भाषा-स्वरूपचन्द्र बिलाला । पत्र संख्या - २ | साइज - ११४५ इश्ख । भाषा - हिन्दी | विषय-पूजा रचना काल सं० १३१६ । लेखन काल -X | पू । वेष्टन नं० ३८१ | ३५६. जिनसंहिता – पत्र संख्या - साज - २०१४ रचना काल -X | लेखन काल- सं० १५६० सावख सुदी ५ | भाषा-संस्कृत विषय विधि विधान | पूर्ण वेष्टन नं० २६४ । विशेष – संवत् १९६० वर्षे श्रावण सुदी ५ श्री मूलमंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये महारक श्री पद्मनन्ददेवाः तत्पष्ट भ० शुभचन्द्रदेवाः तत्पट्ट भ० जिनचन्द्रदेवाः तत् शिष्य मुनि श्री रत्नकीर्त्ति मुनि श्री हेमचन्द्र तदाम्नाये खंडेलवालान्चये सेठी गोत्रे सा० वाल्ह मार्या पर्दा तत्पुत्र साह जीव्हा माय सुहागिणि इदं शास्त्रं सत्पात्रा दत्त इति जिन संहितायां विमानहोम शान्तिहोम गृहहोम विधि समाप्तमिति । नवीन गृह प्रवेश यदि के अवसर पर होम विधि श्रादि दो हुई है। ३६०. तीन लोक पूजा - टेकचन्द | पत्र संख्या - ४०४ | साइज - १२८११६ इन्च | भाषा - हिन्दी | विषय-पूजा । रचना काल-X। लेखन काल - सं० १९२ = सावन बुदी ३ । पूर्ण | वेष्टन नं० ४६८ । विशेष प्रभ्य का मूल्य २७१) लिखा है । ३६१. तीसचौवीसीपूजा भाषा - वृन्दावन | पत्र संख्या- ८४ | साइज - १२३४ ई इ 1 भाषाहिन्दी । विजय–पूजा । रचना काल सं० १८७६ माघ सुदी ५ । लेखन काल - 1 पूर्ण वेष्टन नं० ४११ । ३६२. तीस चौत्रीसीपूजा भाषा" विषय - पूजा | रचना काल-रां० १६०८ | लेखन काल - X ! पूर्ण । वेष्टन नं ० ४१० t विशेष – शत्रु पूजा है । ३६३ तेरहद्वीपपूजा पूजा । रचना काल-X | लेखन काल सं० १२१६ 1 पूर्णं । देष्टन नं ० ४१७ | | पत्र संख्या - ५ | साइज - १२४८ इब | भाषा - हिन्दी । ------- | पत्र संख्या - ४२ | साइज - ११ भाषा-हिन्दी विषय ३६४. दशलक्षण जयमाल - रइनू । पत्र संख्या- | साइज - ६३४५ इस | भात्रा-यवन श | विषय - पूजा | रचना काल -X | लेखन काल - X ३ पूर्ण । वैश्वन नं ० ७ । a Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] [पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान विशेष-संस्कृत में अर्थ दिया हुआ है । तीन प्रतियां और हैं। ३६५. दशलक्षणजयमा समाव शश, पत्र प्रस्!- सारन । माषा-प्राकृत । विषय-पूमा । रचना काल-X । लेखन काल-- । पूर्ण ! वेष्टन नं. ३४५ । विशेष-एक प्रति और है। ३६६. दशलक्षणजयमाल ........ | पत्र संख्या-२ 1 साइज-११६४५ च । भाषा-संस्कृत ।। विश्ग-पूजा । रचना काल-४ । लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं० ४८१ । ३६७. दशलक्षणपूजा-सुमतिसागर । पत्र संख्या-११ । साइज-१२४५ इन भाषा-संस्थत । विषय-पूजा | रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७१६ । पूर्ण । वेष्टन नं० ३४७ । ३६८. दशलक्षणपूजा......"। पत्र संख्या-१४ | साइज-११x६ इञ्च । माषा-संस्कृत । विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वैश्न नं० ४३० । विशेष-पूजा में केवल जल चढाने का मंत्र प्रत्येक स्थान पर दिया है। अन्त में ब्रह्मचर्य धर्म वर्यान की जयमाल में प्राचार्यों का नाम भी दिया गया है। ३६६ दशलक्षणव्रतोद्यापन पूजा" ..... | पत्र संख्या-३७ । साइज-११४ । भाषा-हिन्दी , विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १४२६ । पूर्ण । वेष्टन नं० ६४८ । ३७७. द्वादशांगपूजा.........."| पत्र संख्या-६ । साइब-x६ इन्न । भाषा-हिन्दी। विषय-पूजा।। रचना काल-~। शेखन काल-X । अपूर्ण : वेष्टन नं ११४३ । ३७१. देवगुरूपूजा ....... ... ...."। पत्र संख्या-३ । साइज-१३४४३ च । भाषा-हिन्दी | विषयपूजा । रचना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं. ११४७ । ३७२. देवपूजा.... ......."| पत्र संख्या-७ । सारज-१०:४५ इत्र | माला-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-- । लेखन काल-XIपूर्ण । बोष्टन नं. ४८४ । ३७३. देवपूजा.......। पत्र संख्या-२ से १४ । साइज-११४५ इंच । माषा-संस्कृत | विषयपूजा । रचना काल--X । लेखन काल-X । पूर्ण । केटन नं ० ६५२ ॥ ३७४. देवपूजा............." | पत्र संख्या-* ( साइज-१२४५ इंच । माषा-संस्कृत। विषय-पूजा ! रचना काल-~। लेखन काल-X । पूर्ण विष्टन नं ३६ । ३७५. देवपूजा... " । पत्र संख्या-५ । साइज-६x४% च । माषा-संस्कृत | विषय-पूजा।। स्चना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन ने० ८८१। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठावि अन्य विधान ] [५४ ३७६. देवपूजा.............। पत्र संख्या-७ । साइज-०६४५ च । भाषा-सस्कृत । विषय-पूजा। रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ३। ३७७. देवपूजा".."पत्र संख्या-५ । साज-tx४, म । भाषा-संस्त । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं. ८८४ ! न पिडामा-गसोधि : पर संकट साइज-१०४४३ इश्व। भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-४ । पूणे । बेप्टन नं० ३२६ । विशेष -५० सुशालचन्द्र ने पतिलिपि की थी। . ३७६, नन्दीश्वर पूजा ..........."१ पत्र संख्या-३ । घाइज-११४४ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-- पूजा । रचना काल-- 1 खेखन काल-४! पूर्ण । वेष्टन नं० १०४२ | विशेष-जयमाला प्राकृत भाषा में है। ३८०, नन्दीश्वर उद्यापन पूजा....."। पत्र संख्या- | साइज ११६४७ इम्त । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८३४ ज्येष्ठ सुदौ ४ । पूर्ण । वेष्टन नं. ३४३ | विशेष-पत्रों के चारों और सुन्दर बेलें हैं। ३८१. नन्दीश्वरजयमाल टीका........"। पत्र संख्या-११। साइन-4x7 | भाषा-प्राकृत हिन्दो । विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-10 1४१ थाषाढ खुदी ६ । पूर्ण । वेष्टन नं. १४६ विशेष-श्रीश्रमीचन्द ने जोबनेर के मन्दिर में प्रतिलिपि की पी। ३८२. नन्दीश्वरविधान ....."। पत्र संख्या-२३ । साइज-1:४७ इत्र | भाषा-हिन्दी। बषयपूजा । रचनाकाल- लेखन काल.० १६.७६ अषाढ सुदी १५ । पूर्ण । वेष्टन नं. १०४ । विशेष-विजेलाल लुहादिया ने प्रतिलिपि कर बंधीचन्दजी के मन्दिर चढ़ाई थी। २८३. नन्दीश्वरव्रतविधान......... । पत्र संख्या-५ । साइज-१६४१२ । भाषा-हिन्दी । विषय-पूजा | रचना काल-X । लेखन काल--सं० १९२६ । पूर्ण । वेष्टन नं ० ५०० । विशेष—पूजा का नाम पश्चमेरू पूजा भी है। ३८४. नवग्रहनिवारणजिनपूजा ... ......"। पत्र संख्या-७१ साज-७६४७३१ । माषा-दा। विषय-पजा 1 रचना काल-x | लेखन काल-X1 पूर्ण । वेधन न ० ८६७ । ८५. नांदीमंगलविधान" ......." ""। पत्र संख्या-२। साइज-११x६ च । भाषा संस्कृत । विषय-विभि विवान । रचनाकाल-४ । लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन ने० १.६। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] [ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ३८६. नित्यपूजासंग्रह .........| पत्र संख्या-११८ । साइज-११४५३ इंच । माषा-हिन्दी संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-x 1 अपूर्ण । वेष्टन नं. ६२१ । विशेष ... निल मलिक ना न सगह है। ३८७. नित्यपूजा........."। पत्र संख्या-४१ । साइज-१०४ । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-- | लेखन काल-सं० १८७४ । पूर्ण । वेष्टन नं. ७०६ । ३८. नित्यपूजा ......... | पत्र संख्या-३७ । साइज-१.४५ च । भात्रा-संस्कृत । विषय-पूजा । रनना काल-४ । लेखन काल-सं० १८७४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ७.७ । विशेष प्रतिदिन की जाने वाली पात्रों का संग्रह है। ३६. नित्यपूजा ..... ..." | पत्र संख्या-२१ । साइज-१३४५ दृश्च । माषा-प्राकृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । मेष्टन नं. ५३५ । ३६०. नित्यपूजापाठ........। पत्र संख्या-३० । हाइज-4३४५३ इञ्च । भाषा-संस्कृत | विषयपजा। रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६५६ । पूर्ण । वेष्टन नं. ५७० । ३६१ निस्यपूजासंग्रह ....... | पत्र संख्या-३, | साइज-११३४५३ श्च । भाषा-संस्कृत । विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ४५६ । ३१२. निर्वाणपूजा"... ... .. | पत्र संख्या-२ । साइज-४७ दश्च | माषा-संस्कृत | विषय पूजा । रचना काल-४ | लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं. ११२८ ।। ३३. निर्वाण क्षेत्रपूजा..."। पत्र संख्या-२२ । साइज--१२३४८ इन्च | माषा-हिन्दी | विषयपुजा ! रचना काल-X । लेखन काल-x ! पूर्ण ! वेष्टन ने ० ४४५ | वरूपचन्द । पत्र संख्या-३३ । साहज-१२:४५ इंच | भाषा-हिन्दी । विषय - पुजा । रचना काल-सं० १९११ कार्तिक युदि. १३ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ८४६ | विशेष-२ प्रतियाँ और हैं। ३६५. पश्मावतीपूजा........."| पत्र संख्या-- । साइज-१०४३, इश्न । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल--। लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन ने० १०५ | ३६६. पंचकल्याणकपूजा-40 मिनदास । पत्र संख्या-५३ । साइज-१२४५६ इंच । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-सं० १६४२ फागुण सुर्दा ५ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ३५० । ३६४. ३६७. पंचकल्याणकपूजा-सुधासागर। पम संख्या-२६ । साज-११४५ च | मात्रा-संस्कृत। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] विषय--पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । वेटन नं. ३४२ । ३६८. पंचकल्याणकपूजा-पत्र संख्या-३६ । साइज-११४५३ च । माषा-हिन्दी । विषय-पूजा । पचना काल-सं. ११३८ । लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन नं० ४६७ ! ३६६. पंचकुमारपूजा-जवाहरलाल । पत्र संख्या-३ 1 साइज-१०६x४३ इञ्च । भाषा--हिन्दी । विषयगजा । रचना काल-x | लेखन झाल-x | पूर्या ! वेष्टन. ४६४ । ४००, पंचपरमेष्ठीपूजा-यशोनन्दि । पत्र संख्या ११४ । साहज-६x६ इश्च । माषा-संस्कृत । विश्य'ना । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । श्रेष्टन नं. ३५१ । विशेष-तीन प्रतियां और हैं। ४०१. पंचपरमेष्ठीपूजा-डालूराम । पत्र संख्या-३५ । साइज-१०४४ छ । भाषा-हिन्दी । विषय -पूजा | रचना काल-सं० १८६० । लेखन काल-- | पूर्ण । वेष्टन नं ० ४५३ । विशेष—महात्मा सदासुखजी ने माधोराजपुरा में प्रतिलिपि की थी। पूजा की ६ प्रतियां और हैं । ४०२. पंचमंगलपूजा-टेकचन्द । पत्र संख्या-२१ । साइज- ११४५६ इन्च । भाषा-हिन्दी 1 विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन कःख-सं० १६ ३४ । पूर्या । वेष्टन नं ० ४५.८ । ४०३. पंचमेस्पूजा-टेकचन्द । पत्र संख्या-४३ । साइज-११x१ | भाषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-सं० १६.१० । लेखन काल-~। पूर्ण 1 वेष्टन नं ० ४.७७ । ४०४. पंचमेस्पूजा--भूधरदास । पत्र संरच्या-४ | साइज-११४४३ च । माषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-x लेखन काल--- | पूर्ण । वेष्टन नं. ६६ । विशेष-धानतराय कृत घष्टाहिका पूजा मी है । ४०५. प्रतिष्ठासार संग्रह-वसुनंदि । पत्र संख्या-१३५ । साहज-१९x१६ च | भाषा-संस्कृत । विषय-विधि विधान । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. ११६ । विशेष-हिन्दी अचं सहित है । अन्म का प्रारम्भिक माग निम्न प्रकार हैप्रारम्म --विद्यानुवादसन्मूत्राद्वाग्देवीकल्पतस्तथा । चन्द्रप्रनप्तिसंनाच सूर्यप्रज्ञप्तिमपतः ॥४॥ तथा महापुराणार्या छावकाध्ययनश्रुतान् । सारं संगृय बन्येहं प्रतिष्ठःसार संग्रहे ॥५॥ हूँ यानदि नामा श्राचार्य हु सो प्रतिष्ठासार संग्रह नामा जो ग्रय ताहि कटुंगो-कहा करिफ सिद्ध' परिहंत Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] [पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान शेस जो वमान पर्यन्त जिन प्रवचन कहता शास्य गुरु कहता सर्व साधु यात नमस्कार करि के कैसे छहै ये सिद्ध, सिद्ध मयो है माम स्वरूप जिनकै..........| ४०६. पयविधानपूजा-रत्ननंदि । पत्र संख्या-६ । साइज-१३४६३ इन्छ । माषा-संरकत । विषय--पूजा | रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्व । वैप्टन नं. ४३१ । विशेष-पूजा की एक प्रति और है । ४०७. पार्श्वनाथ पूजा.....| पत्र संख्या-३ | साइज-१३४५३ इञ्च ! भाषा-हिन्दी | विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्वा । वेप्टन नं० ११४१ । ४०८. पुष्पांजलिव्रतोद्यापन" - ...। पत्र संख्या-११ । साहन-x१३ दम्च । माषा-संस्कृत। विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-~। पूर्ण । वेष्टन नं. ५४२ । विशेष-वृहत् पूजा हैं। ४६. पूजन किया -कावा दुलीचन्द । पत्र संख्या-३० | साइज-१२४६ इन्च । माष,हिन्दी । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-x 1 पूर्व । वेष्टन नं० ५१८ । ४१०. पूजासंग्रह ..............! पत्र संख्या-१०० ! साइज-७६४५६ इंच । भाषा-हिन्दी विषयपूजा । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०१६ ॥ विशेष-स्तुविशति तथा अन्य नित्य नैमिनिक पूजाओं का संग्रह है । पूजा संग्रह की तीन प्रतियां और है। ४११. पूजासंग्रह....."। पत्र संख्या-३८ । साज-१२४६ | भाषा-हिन्दी । विषय-पूजा । | रचना काख-४ । लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं.६.२ । विशेष-इसमें देव पूजा तथा सरस्वती पूजा है। ४१२. पूजासंग्रह...... " ! पत्र संख्या-६ | साज-१२४८ इन्च | माषा-संस्कृत-हिन्दी । विषय- , पूजा । रचना काल-X I लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ८१४ । विशेष-मित्य नियम पूजा, दशलक्ष्य, स्नत्रय, सौलहकारण, पंचमेर तथा नन्दीश्वर द्वीप पूजाऐ है। पूजा । संग्रह की ४ प्रतियां और है। ४१३. पूजासंग्रह.........."। पत्र संख्या-२७१ । साइज-६x६ । माषा-संस्कृत । विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन कास- 1 पूर्ण । वेष्टन नं. ३१७ ॥ विशेष-नित्य नैमित्तिक ३७ प्रजाऐ तथा निम्न पाउ है १२) तत्वार्थ सूत्र (२) स्वंयभू स्तोत्र (३) सहस्त्रनामस्तोत्र । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] [ ५८ ४१४. पूजा संग्रह... .... | पत्र संख्या-३३ । साहज-१३४६३ इश्च । माषा-संस्कृत | विषयपूजा । रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं० ४३२ । विशेष—इसमें पल्यविधान, सोलहकारण, कंजिका व्रतोद्यापन श्रादि पूजायें है । ४१५. पूजासंग्रह .........। पत्र संख्या-२६ । साइज-११४५ १५ । भाषा-संस्कृत | विषय--पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X पूर्ण । वेष्टन नं. ३३७ । सुखसंपत्तिपूजा, जिनगुणसंपत्तिपजा, लघुमुक्तावली पूजा का संग्रह है। ४१६. * कामरपूजा-उद्यापन--श्री भूषण । पत्र संख्या-२४ । साइज-११४१ इद्ध । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा | रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८७८ वैसाख मुदी २ । पू । केटन नं. ३४ः । ४१७. रजत्रयजमगाव.........! पत्र संख्या-२ । माइज-१२४५३ च । भावा-हिन्दी ( गथ ।। विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ८८७ | ४१८. रनत्रयजयमाल".."पत्र संख्या-३ | साज-Ex५ च । भाषा-हिन्दी विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ८६८ ! ४१६. रत्नत्रयपूजा....."| पत्र संख्या-१० । साहज-११४६३ च । भाषा-संस्कृत | विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन फाल-X । पूर्ण । बेष्टन नं० ४२१ । ४२०, रत्न अयपूजा-."। पत्र संख्या-५ | साइज-१०x४ इञ्च । माषा-संस्कृत । रचना काख-x | खेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. १०४३ । ४२१. रअत्रयपूजा भाषा-धानतराय । पत्र संख्या-२१ । साहज-११४१३ भाषा-हिन्दी । विषयपूजा। स्चना काल-X । लेखन काल-४ | मपूर्ण । बेष्टन मं० ४३६ । ४२२. रत्नत्रयपूजा भाषा....... "| पत्र संख्पा-३६ । साइज-११४७१ च । भाषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १६३७ भादवा पुदी ३ । पूर्ण । वैटन म. ४१४ । ४२३. रत्नत्रयपूजा भाषा-पत्र संख्या-३ से ५४ | साह १०४५ इ । माषा-हिन्दी विषय-पूजा ! रचना काल-X । लेखन काल-सं० १९३७ कार्तिक पुदी १३ । अपूर्ण । वेष्टन ० ४२५ । विशेष-प्रारम्भ के २ पत्र नहीं हैं । एक प्रति और है किंतु यह भी थपूर्ण है । ४२४. रोहिणोप्रतोद्यापन-कृष्णसेन सथा केसयसेन । पत्र संख्या-३ । साइन-१.६x४३ च । भाषा-संस्कृत | विषय-पूना | रचना काल-- | लेखन काल--X । पूर्ण । वेश्न नं० २६३ । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] [ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ४२५. लधिविधानद्यापनपूजा........"। पत्र संख्या-" । साहज-८४६ इछ । भाषा-संस्कृत । रचना काल-X । लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन ने० ५३४ । ४२६. वृहत्शांतिकविधान ..... .१९३२-१३ । स:५७-५0 x च । भाषा-संस्कृत । विषय -विधान । रचना काल-x! लेखन काल-सं० १६११ । पूर्ण । बेष्टन नं० ५४० । विशेष-मुन्नालाल ने प्रतिलिपि की यो। ४२७. विद्यमान बोस तीर्थकर पूजा ...... ! पत्र संख्या-" | साइज-१.६४५. ईच 1 भाषाहिन्दी । रचना काल-X ।लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं० ८६८ । ४२८. विद्यमान बीस तीर्थकर पूजा-जौहरीलाल । पत्र संख्या-४ । साइज-२४३४८६ च । माषा-हिन्दी । विषय--पूजा । रचना काल-सं० १४६ श्रावण सुदी १४ 1 लेखन काल-सं० १९७१ । पूर्ण । वेष्टन मं० ४०८ | ४२६. विमलनाथपूजा.........। पत्र संख्या- । साइज-८४६ ६ । भाषा-संस्कृत । विषयपूजा । रचना काल-| लेखन काल-x, पूर्ण । श्रेष्टन नं० १०६९ । ४३०. विमलनाथपूजा.........."। पत्र संख्या-११ । साइज-१.६x६ इञ्च । माषा-हिन्दी । विघग्गपूजा । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०६८ । ४३५ शांतिचक्रपूजा.......! पत्र संख्या-३ | साज- १३४४३ इन्च । माषा-संस्कृत | विषयपूजा । रचना काल-X । खेसन काल-X पूर्ण । वेष्टन मं० ४८ ) ४३२. शास्त्रपूजा-द्यानतराय । एत्र संख्या-३ । 'साइज-१३४५६ इन्छ । भाषा-हिन्दी 1 विषयपूजा । स्थमा काल-~। लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ५६२ । ४३३. श्रुतोद्यापनपूजा"....। पत्र संख्या-८ | साइन-२०६x६ | माषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-~। लेखन काल-XI पूर्ण । बेष्ठन नं० ४१५ । विशेष-लिपि बहुत सुन्दर हैं। ४३४. षोडशकारणमंसमपूजा-आचार्य फेसबसेन ! पत्र संख्या-५० । साइज-११४५ ५। विषय-पूजा । रचना काल-X । सेसन काल-सं० १८७८ म्येष्ठ सदी ! पूर्ण । वेष्टन नं० ३३३ । ४३५. पोडशकारणवतोद्यापनपूजा-१० बानसागर | पत्र संख्या-३२ 1 साइज-१०x४३ रन । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ३३४ । ४३६. पोडशकारणजयमाल ...........1 पत्र संख्या-१०८ । साइन-११४७६ | भाषा-हिन्दी | Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-। पूर्ण । बेष्टन नं० ३७७ । विशेष-रत्नत्रयजयमाल (नममल) तमा दशलक्षणजयमालमी है। ४३७. षोडशकारणजयमाम-रइधू । पत्र संख्या-२२। साइज-११४५ ६ञ्च । भाषा-प्राकत । विषय-अम । रचना काल- । लेखन फाल-सं० १८७६ मादया मुदौ ५ । पूर्व । वेष्टन नं ०.५ । विशेष-महात्मा लालचन ने इसी मन्दिर में प्रतिलिपि की थी ! गाथाओं पर संस्कृत में उल्या दिया हुआ है। एक प्रति और है। ४३८, पोडशकारण जयमाल......." | पत्र संख्या-७ । साइज-१-१४५ इंच । भाषा-संस्कृत । बियम-पूजा । रचना काल-x | लेखन काख-x ! पूर्ण । वेष्टन नं. ४३४ । विशेष-रखवय तथा दशलक्षण जयमाल भी है। ४३६. पोडशकारणजयमाल.......... ! पत्र संख्या-२० । साइज-१६x४३ इञ्च । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-- । लेखन काल-४ । पूर्ण । टन न० ३३० । विशेष-दो प्रतियां और हैं। ४४०, षोडशकारणपूजा. .........'। पत्र संख्या-१६ । साज-१४ च । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X! लेखन काख-x | पूर्ण । वेष्टन में० ३३६ । ४४१. पोडशकारणपूजा.... ... . | पत्र संख्या-२ | साइज-११४५ हश्च । माषा-संस्कृत । विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ४८२ ॥ विशेष-प्रति एक और है। ५४२. सम्मेदशिखरपूजा-रामचन्द्र । पत्र संख्या-७ । साज-११६x४ च । माषा-हिन्दी । विषय--पूजा । रचना काल-x। लेखन काल--X । पूर्ण । वेष्टन नं. १७१। ४४३. सम्मेदशिखरपूजा .....। पत्र संख्या-३१ । साहज--४६३ च । भाषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १९२४ । पूर्ण । वेष्टन ० ४४२ । ४४४. सरस्वतीपूजा पत्र संख्या-१० । साज-१x१० इंच। भाषा-हिन्दी। विषय -पूजा ! रचना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वैपन नं. ११२३ । (बशेष--अन्य पूजाएँ भी हैं। ४४५. सरस्वतीपूजा भाषा-पन्नालाल । पत्र संख्या-६ | साश्म-१४४-३ इन्च | भाषा-हिन्दी । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] [पूजा साहित्य विषय-पूजा । रचना काल-सं० ५९२ १ ग्यैठ सौ ५ । लेखन काल-- | पूर्ण । वैप्टन नं० ४०६ । ४४६. सहसगुणपूजा - म० धर्मकीर्ति । पत्र संख्या-७३ | साइन-११६४५३ च | भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-x! लेखन काल-सं० १७६५ बैसाख सुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन नं० ३४८ । विशेष-सवाई धरपुर तिलिपि दुई ।। ४४७. सहस्रनामगुणितपूजा-भ० शुभचन्द्र । पत्र संख्या-१०४ । साइज-=xt छ। माषा-- संस्कृत | विषय -पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १५१० कार्तिक बुदी - । पूर्ण । वेष्टन ने० ३२८ । ४४८. सिद्धचक्रपूजा-यानतराय । पत्र संख्या-६ | शाहज-१२४५३ इच । भाषा-हिन्दी । विषय-- पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं० ५३२ । विशेष-एक प्रति और है। .. ४४६. सुगन्धदशमीपूजा .... ... | पत्र संख्या-८ | साज-१२x६६ च । भाषा-हिन्दी । विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन न० ६२ः । ४५०. सोजकारणपूजा-टेकचन्द । पत्र संख्या-७० । साइज-१२४५ इन्च | माता-हिन्दी । विश्य-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १.३५ माश्वा युदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. ११५न । विशेष-दो प्रतियां और है। । माषा-हिन्दी। ४५१. सोलहकारणपूजा--........"। पत्र संख्या-१३ । साइज-१९xts विश्य-पूजा । रचना काल-x लेखन काल-४। पूर्ये । वेष्टन नं. ४३५ । विशेष-धानतराय कृत रत्नत्रय, दशसहय, पंचमेर तथा प्रधाई दीप की पूजा भी है। ४५२. सोलहकारणपूजा-द्यानतराय । पत्र संख्या-५ । साइज-ex६ इंच । माषा-हिन्दी 1 विषय-- पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४३६ । विशेष - दशलक्षण पूजा भी है। ४५३. सोनहकारण भावना.........."। पत्र संख्या-१४ | सास-११४५६ च । माषा-हिन्दी (१) । विषय-पजा । रचना कास-X | लेखन काल--x पूर्ण । वेधन नं. ८२७॥ ४५४. सोलाकारणा जयमाम"""""""| पत्र संख्या-२। साब-xv पन। भाषा-प्राक्त । विषय-पूजा । रचनाकाल-x| लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं० ११५७ ! विशेष-एक प्रति और हैं। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुराण साहित्य] [ ६३ ४५५. सोजहकारण विशेष पूजा ....... .. "। पत्र संख्या-१२ । साइज-११४५ । माषाप्राकृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० ३३५ । ४५६. सौख्यव्रतोद्यापन-अक्षयराम । पत्र संख्या-१४ । साइज-exi इन । माषा-संस्कृत | -२ भिषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८८६ । पूर्ण । वेस्न नं ० २७४ । विशेष-जरपुर में श्योजीलालजी दीवान ने प्रतिलिपि कराई । विषय-पुराण साहित्य ४५७, श्रादिपुराण-जिनसेनाचार्य । पत्र संख्या-३४६ | साम-१२४५ ६ । माषा-संस्कृत । विषष-पुराण । रचना काल-x। लेखन काल-सं० १७८६ मंगसिर सुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. १३३ । विशेष-तीन तरह की प्रतियों का मिश्रा है। प्राचार्य पाकीर्ति के शिष्य छान में प्रतिलिपि की थी । एक प्रति और है लेकिन वह अपूर्ण है । ४५८. श्रादिपुराण-म सकलकीर्ति । पत्र संख्या-२०६ । साइज-११५५ ६च 1 भाषा-संस्कृत । विषध-पुराण । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८३० श्रासोज मुदी १ । पूर्ण । पैटन मं० १३२ । विशेष-श्री मोतीराम लुहाडिया में प्रतिलिपि कराई भी । १ ते १३१ तक के पत्र किसी प्राचीन प्रप्ति के हैं। एक प्रति और है। ४५६. प्रति नं०२। पत्र संख्या-२४ । सायन-१९५६ च । लेखम काल-सं० १७१ चैत सुदौ ५ । पूर्व मेटम नं० २१३ । विशेष- चंपावती ( चाकम् ) में प्रतिलिपि हुई थी। ४६०, आदिपुराण भाषा-दौलतराम | पत्र संध्या-६०१ । साइझ-१२४७ इंच । भाषा-हिन्दी | गथ । रचना काल-सं० १८२४ । लेखन काल-सं० २८५५ मंगसिर सुदी १४ । पूर्ण । वेपन नं. ६५३ । विशेष-४ प्रतियां और हैं लेकिन वे अपूर्ण हैं। ४६१. प्रति नं०२। पत्र संख्या-२०१ से १३१. साज-१०३४७ इश्व | लेखन काल-सं० १.१४ आसोज बुदौ ११ । अपूर्ण । वेष्टन न. ७१३ । विशेष-प्रति स्त्रय अन्धकार के हाथ की लिखी हुई प्रतीति होती हैं, मगह जगह संशोधन हो रहा है। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] [ पुराण साहित्य ४६२. उत्तपुराण - गुणभद्राचार्य | पत्र संख्या - ६२४ | साइज - १२४७६ | भाषाऋषय-पुराण 1 रचनाकाल -X | - लेखन काल x | पूर्ण वेष्टन नं० २५८ । विशेष – २ प्रतियां और हैं। ४६३. उत्तरपुराण- खुशालचन्द | पत्र संख्या - ५४४ | साइज - १२३ भाषा - हिन्दी । विषय-पुराण | रचना कारण-लं १७६४ । लेखन काल - ० १८१३ । पूर्ण । वेष्ठन नं० १६.४२ । विशेष – दूसरी २ प्रतियां और हैं और वे दोनों ही पूर्ण हैं । ४६४ मनपुराण - ब्रह्मनेमिदत्त | पत्र संख्या - २७४ | साइज - ११४६ भाषा-संस्कृत | विषय- पुराण | रचना काल -x | लेखन काल-सं० १६४४ मादवा सुदी ५ | पूर्ण | वेष्टन नं० १२८ | विशेष – लेखक प्रशस्ति अपूर्ण है । ३ प्रतियां और हैं। अभ्य का दूसरा नाम हरिवंश पुराया भी है। । माषा - हिन्दी | ४६५. पद्मपुराण भाषा - खुशालचन्द । पत्र संख्या - ३४४ । साइज - १०६५ विषय-पुराण | रचना काल सं० २०८३ । लेखन काल - सं० ११५२ । पूर्ण । वेष्टन नं० ६६३ । विशेष—एक प्रति और है लेकिन वह अभ्य है । ४६६. पुराण भाषा - पं० दौलतराम | पत्र संख्या २ से ४१७ | साइज - १५९६३ श्ख । माषाहिन्दी । रचना काल-सं० १=२३ । लेखन काल - ४ । अपूर्ण वेष्टन नं० ६४० ! विशेष -- २ प्रतियां और हैं लेकिन के भी श्रपूर्ण है। ४.६७. पायवपुराण -- खुलाकीदास पत्र संख्या - २०२ | साइज - १६ | भाषा-हिन्दी विषय-पुराण | रचना काल - सं० १७५४ । लेखन काल -x | पूर्या वेष्टन नं० ६ ४४ । विशेष—एक प्रति और लेकिन वह पूर्ण है । ४६८. पाण्डवपुराण - भ० शुभचन्द्र । पत्र संख्या - २६५ | साइज - १९६४५ इव । माषा-संस्कृत | विषय-पुराण । रचना काल—सं० १६०८ | लेखन काल-मं० १७१७ वैशाख सुदी १५ । पूर्ण | कैप्टन नं० ११ । विशेष हंसराज खंडेलवाल की स्त्री लाड़ी ने मन्य की प्रतिलिपि करवाकर पं० गोरधनदास को भेंट की थी। । माषा ४६६. पुराणसार संग्रह - भः सकलकीर्ति । पत्र संख्या २११ । साह - १२x६ १५ | पूर्णं । बेष्टन नं० २५६ ॥ संस्कृत | विषय - पुराया | श्वना काल -X | लेखन काक्ष-सं० १८२३ चैत ४७० । भरतराज दिग्विजय वर्णन भाषा - पत्र संख्या ५६ गद्य 1 विषय-पुण । रचना काल -x | लेखन काल - सं० १७३८ श्रासोज सुदी साइज - १२९५६ इन्च भाषा - हिन्दी पूर्णं । वेष्टन नं ० ६८० | Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुराण साहित्य ] [ ६४ विशेष – जिनसेनाचार्य प्रणीत आदि पुराण के २६ वे पर्व का हिन्दी गद्य है । गद्य का उदाहरण निम्न प्रकार हैं। हे देव तुम्हारा बिहार के समय जाणु कर्म रूप बैरी को तर्जना कहतो डर करतो संतो ऐसो महा उद्धत सबद कार दिल का मुख पूरा है | जानें ऐसी पगार नगरा को टंकार वद भगवान के बिहार समय पग पग के विषै हो रहै । ( पत्र संख्या ३३ ) ४७१. वद्ध मानपुराण भाषा - पं० केशरीसिंह | पत्र संख्या - २०३ भाषा-हिन्दी । विषय-पुराया । रचना काल - सं० २०७३ फागु सुदी १२ । । लेखन काल सं० पूर्ण वेष्टन नं ० ६७८ विशेष — ७५ से ६४ तक पत्र नहीं हैं। अन्य का श्रादि श्रन्त भाग निम्न प्रकार है प्रारम्भ – जिनेशं विश्वनाथाय अनंतयुग सिंघवे । धमंचभूते मूर्द्धा श्रीमहावीरस्वामिने नमः ॥ १ ॥ | साइज - १९३५३ १८७४ चैत च । १४ । श्री बद्धमान स्वामी व हमारी नमस्कार हो । कैसेक हैं बद्धमान स्वामी गणवरादिक के इस हैं, घर संसार के नाम हैं और अनन्त गुखन के समुद्र है, पर धर्म चक्र के धारक हैं। गद्य का उदाहरण नगर सवाई जयपुर जानि at after अधिक प्रवानि | जगतसिंह जहराज करेह गोत कुलाहा सुन्दर देह ॥६॥ देव देस के श्रावे जहाँ, मांति मति की वस्ती तहो । जहां सरावग यसै अनेक ईक के घट माही विवेक || - तिन में गोतछाडा माहि, बालचंद दीवान कहांहि । ताके पुत्र पांच गुणवान, तिन में दोय विख्यात महान् ॥८॥ जयचंद रायचंद है नाम स्वामी धर्मवती कोने काम | राजकाज में परम प्रवीन, सधर्म ध्यान में बुद्धि मुलीन ॥ ॥ संघ चखाय प्रतिष्ठा करी, सब जग में कोर्ति विस्तरी । और अधिक उत्सव करि कहा रामचंद संगही पद कहा ॥ १० ॥ दीवान जयचंद के पांच, सबकी धरम करम में सचि । श्रहो या लोक बिषै ते पुरुष धन्य हैं ज्यां पुरुष न का ध्यान विषै तिष्ठताचित उपसर्ग के सेंटेन कर किंचित् मात्र ही विक्रिया कुळे नहीं प्राप्ति होय हैं ॥७॥ तहां पीछे वह रूद्र जिनराज कू चलाकृति जाणि करि लब्जायमान भयायका आप ही या प्रकार जिनराज की स्तुत्ति करिबे कू उद्यमी होता मया । धन्तिम प्रशस्ति Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { पुराण साहित्य तब रूमि को मह मन सहि. वीर चरित की भाषा नाहि ॥१२॥ जो याकी अब भाषा होय, तौ यामै समुझे सहु कोय । यह विचार लखिकै बुधिनान, पंडित केशरीसिंह महान ॥१३॥ तिन प्रति यह प्रार्थना करी, याकी को धचनिका खरी । तत्र तिन अर्थ कियो विस्तार, मथ संस्कृत के अनुसारी |२४॥ यह खस्यो कीनी तब तिनै, ताकी महिमा को कवि भने । पुनि व्याकरण बोध बुधिवान, बसतपाल साहवडा जान |१|| ताने याको सौधन कीन, मूलप्रय अधुसारि सुपीन । मुधि अनुसारि बच निका मयी, बाकू परजन हसियो नहीं ॥१६॥ दोहा-बत अष्टादश सतक, और तहरि ज्ञानि । कल पन फागुग्ण मली, पुण्य नक्षत्र महान ॥२॥ सक्रवार शुभ द्वादसी, प्रण भयौ पुराण । वाचै सुनै ज मव्यजन, पावै गुण श्रमलान ॥२२|| इति श्री भट्टारक सकलकोर्ति विरचिते "श्री बद्धमान पुराण संस्कृत मध की देस भाषा मय की बचनिका पंडित कशरीसिंह कृत संपूर्ण" । मिती चैत चुदी १४ शनिवार सं० १८७४ का मैं मम लिख्यौ । ४७२. वर्द्धमानपुराणसूचनिका............। पत्र संख्या-१० । साइज-१०४५ इन्च । भाषा-हिन्दी । विषय-पुराण । रचना काल-X । सेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० ६७४ | ४७३. बद्ध मानपुराण भाषा..... .. .. " | पत्र संख्या-७ । साइज-११४०३ च । माषा-हिन्दी । विषय-पुराण । रचना काल-X I लेखन काल-४ । अपूर्ण । जेष्टन नं ० ८४६ ।। ४७४. शान्तिनाथपुराण-प्रशग। पत्र संख्या- ८ । साइज-१०४४२ इंच। मात्रा-संस्कत | विषय-पुराण ! रचना काल-X । लेखन काल-सं० १३३४ अयाद सुदी :२१ पूर्ण । वेष्टन नं० १२ । ४७५. शान्तिनाथपुराण-सकलकीर्ति । पत्र संख्या-१६१ । साहज-११४५ इभ । भाषा-संस्कृत । विषय-पुराण । रचना काल-x। लेखन काम--XI पूर्व । वेष्टम नं. १३.। विशेष-अन्य संख्या श्लोक प्रमाणा ४३७५ है । एक प्रति धीर है। ४७६. हरिवंशपुराण-जिनसेनाचार्य। पत्र संख्या-३५५ । साइम-११४५३, इन | मालासंस्कृत | विषय-पुराण | रचना काल-x | लेखन काल-x पूर्ण | प्रेप्टन नं. ११९ । विशेष-प्रति नवीन है । ३ प्रतिया चौर है। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्य एवं चरित्र ) [३७ ४७७. हरिवंशपुराण-६० दौलतराम | पत्र संख्या-५३० । साइज-११४६ रन । भाषा-हिन्दी । स्वना झाल- सं०१८२६ । लेखन काल-सं० १८३४ 1 पूर्ण । वेष्टन नं ० ६६४ | . विशेष- रूपचन्द ने प्रतिलिपि की थी । दो प्रतियां और हैं । ४८, हरिवंशपुराण-खुशालचन्द । पत्र संख्या-१६१ | साइज-११:४५३ ३ । भाषा-हिन्दी । विषय-पुराण । रचना काल-10 10 पैशाख सुची ३ । लेखन काल-सं. १८३१ फागुण सुदी ११ । पूर्ण। बेष्टन नं.६४५। । विशेष-तीन प्रतियां और हैं। ------ - -- --- विषय-काव्य एवं चरित्र ४७. उत्तरपुराण-महाकषि पुष्पदंत । पत्र संख्या-३२४ से ८३८ । साज-१२४५३ । भाषा-अपभ्रंश । विषय-काव्य । रचना काल-X1 लेखन काल-सं० १५५७ कार्तिक सुदी १५ | पूर्ण । वेटन नं० ११७ । विशेष---- २४ से पूर्व श्रादि पुराण है । प्रशस्ति-सं० १५५७ कार्तिकमासे शुक्लपक्षे पूर्णमास्या तिथौ गुरुदिने अधो श्री धनौधेन्द्रगे यी चामप्रम पैत्यालये श्री मूखसंधे भारतीगचे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये महारक श्री धनन्देिवा: तत्प? भ० भी देवेन्द्रकीर्ति देवाः तत्पट्ट भ० श्री विद्यानन्दिदेवा तत्पम श्री मल्लिभूषण देवा: तस्य शिष्य प्र. महेन्द्रदत्त, नेमिदच तैः महारक भी मल्लिभूषणाय महापुराण पुस्तक प्रदत्त ।। ___४८०, कलावतीचरित्र-भुवनकौन्ति । पत्र संख्या-५ । साइज-१.६४४२ इञ्च । माषा-हिन्दी । विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेटन मं० १०६५ । : __४८१. गौतमस्वामीचरित्र-प्राचार्य धर्मचन्द्र । पत्र संख्या-३२ । साइल-१२४६३ ५३ । माषासंस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १६२२ । लेखन काल-सं. १८०२ ज्येष्ठ सुदी १ । पूर्वा । बेप्टन नं. २१३ । ४८२. चन्द्रप्रभचरित्र-कषि दामोदर । पत्र संख्या-१२३ । साइज-११x१ इम्प । माषा-सस्कृत । विषय-चरिख । रचना काल-X । लेखन काल-~। पूर्ण । वेष्टन नं. १३१ । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ काव्य एवं परित्र विशेष-१२३ से श्रामे के पत्र नहीं है। प्रति नवीन है । ग्रन्म की पुष्पिका निम्न प्रकार हैं। इति मंडलसूरिश्रीभूषण तत्प? गच्छे मट्टारक श्री धर्मचन्द्र शिष्ण कवि दामोदर विरचिते श्री चन्द्रप्रभ चरित्र . चन्ह भकेट लमानोत्पति इनो नाम ट्राबिंशतितमः सर्गः । ४८३ चन्द्रप्रभचरित्र-बीरनंदि । पत्र संख्या-११२ । साज--१९४५ म्छ । माषा-संस्कृत | विषयकाव्य । रचना काल-X I लेखन काल-सं. १८६६ माघ बुदी १३ । पूर्ण । वेष्टन नं० २० । विशेष –फतेहलाल साह ने प्रतिलिपि कराई थी। काव्य की १ प्रति और है । ४८४. चेतनकर्मचरित्र-भैया भगवतोदास । पत्र संख्या-१५ । साइज-१०४५, इंच । माषाहिन्दो (पच) | विषय-चरित्र | रचना काल-सं. १७३२ ज्येष्ठ बुदौ ७ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ३.. । विशेष-प्रन्थ को ३ प्रतियां थौर है । ४८५. जम्बूस्वामीररित्र-महाकवि वीर । पत्र संख्या--११४ | साइज-१२४४३ छ । भाषाअपभ्रंश | विषय-काव्य । रचना काल-सं. १०७६ माह मुबी १० । लेखन काल-२० १६.१ असाढ सुदी १३ 1 पूर्ण । वेष्टन न० २२० । विशेष—प्रन्धकार एवं लेखक प्रशस्ति दोनों पूर्ण है । राजाधिराज श्री रामचन्द्रजी के शासनकाल में रोसागर में । श्रादिनाब चैत्यालय में लिपि की गई थी। खंडेलवाल वंशोत्पान साह गोत्र वाले सा. हेमा मार्य हमीर दे ने प्रतिलिपि करवाकर मंडलाचार्य धर्मचन्द्र को प्रदान की भी 1 लेखक प्रशस्ति निम्न है। संवत् १६०१ वर्षे अाषाद सुदी १३ मोपवासरे टोडागढवास्तव्ये राजाधिराजरावनीरामचन्द्रविजयराज्ये श्री आदिनापत्यालये थी मूलस घे नंद्याम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छ कुन्दकुन्दाचार्यान्वये मट्टारक श्री पद्मनन्दि देवास्तपट्टे म. शुमचन्द्रदेवा: तत्पष्ट मा श्री जिनचन्द्र देवास्तत्पट्ट म० प्रभाचन्द्रदेवास्तव शिष्य मंडल श्री धर्मचन्द्रदेवाः तदानाये खंडेलवालान्वये साह गोत्र जिनपूजापुरन्दरान गुणश्रेयोनृपतिः साह महसा तद् भार्या मूहागर्दै तत्पुत्र साह मेधचन्द्र द्वि० कौनू । साह मेघचम्द्र मार्या मारायदे द्वितीय नवलाद । तत्पुत्र साह हेमा द्वि• साह हीरा तृतीय साह छाजू । साह हेमा मार्या हमीर दे तत्पुत्र चि० भीखा । साह होरा मार्या हीरादे । साह कौन मार्या कौतुकर्दे तत्पुत्र साह पदारय द्वि० सोना । सा. पदारय मार्या पारमदे तत्मत्र सा. धनपाल । साह खीवा भार्या खिसिरी तत्पुष हूगरसौ एतेषा मध्ये सा. हेमा भार्या हमीर दै एतत् बन्यूस्वामीचरित्र लिखाप्य रौहिणीबत उद्योतनाथ मंडलाचार्या श्री धर्मचन्द्राय प्रस। ४८६. जम्बूस्वामीचरित्र-३० जिनदास । पत्र संख्या- ३१ । साज-११६x४३ च । भाषासंस्कृत ! विषय-चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण 1 वेहन नं० २२० । विशेष-प्रशस्ति अपूर्ण है । एक प्रति और है । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्य एवं चरित्र ] [ ६६ - ४८७. जम्बूस्वामीचरित्र पांडे जिनदास पत्र संख्या - ३० | साइज - १०३६ रुच | भाषा-हिन्दी ( प ) | विषय -दरित्र । रचना काल सं० १६४२ भादवा बुदी ४ । लेखन काल -X | पूर्णं । वेष्टन नं ० ५८० | विशेष-यकबर के शासनकाल में रचना की गई थी। दो तरह की लिपि हैं । ४८. जिनदत्तचरित्र - गुणभद्राचार्य । पत्र संख्या ४८ | साइज - १०३४ ३ ६म्ब | भाषा–संस्कृत । विषय - चरित्र । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८२५ | पूर्ण । वेष्टन नं० २२० | विशेष - पं० नगराज ने प्रतिलिपि की थी । २ प्रतियां और हैं। ४८६. जिण्यत्तचरित (जिनदत्तचरित्र ) - पं० लाखू | पत्र संख्या - १०० | साइज - ११३४५६ इश्च । साषा-अपभ्र ंश । त्रिषय-चरित्र | चना काल - सं० १२७५ | लेखन काल - सं० १६०६ मंगसिर सुदौ ५ । पूर्णं | वेष्टन नं० २२१ । विशेष – सं० १६०६ मंगसिर सुदी ५ श्रादित्यवार को रणथंभौर महादुर्ग में शान्तिनाथ जिन चैत्यालय में सलेमशाह आलम के शासन के अर्न्तगत खिदिरखान के राज्य में पाटनी गोत्र वाले साह श्री दूलहा ने प्रतिलिपि करवाकर वाचार्य ललित कीर्ति को भेंट की भी । ४६०. खायकुमारुचरिए ( नागकुमारचरित्र ) - महाकवि पुष्पदन्त । पत्र संख्या - ६६ | साइज - भाषा-अपभ्रंश | विषय - काव्य रचना काल - ४ । लेखन काल-सं० १५१७ बैसाख सु५ पूर्ण =३x४ बेष्टन नं० २१२ । प्रशस्ति निम्न प्रकार है ० १५१७ वर्षे बसाख सुदी ५ श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे मट्टारक श्री पद्मनंदिदेवा तत्पट्ट भट्टारक श्री शुभचन्द्र देवा तत्पालंकार महारक श्री जिनचन्द्र देवा । शिक्षणी बाई मानी निमित्ते नागकुमार पंचमी कथा लिखाप्य कर्मक्षय निमित्ते प्रदत्त । ४६१ प्रति नं० २ । पत्र संख्या-६० | साइज - १०३५ ४ | लेखन काल - सं० १५२८ श्रावण बुधी । पूर्ण । वेष्टन नं० २३४ | प्रशस्ति — संवत् १५२८ वर्षे श्रावण बुदि १ दुवे श्रवणनक्षत्रे सुभनामायोगे श्री नयनत्राह पचने सुरवात बलाबदोनराज्यमवत माने श्री मूलसंबे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये मट्टारक श्री पद्मनन्दि देवा तत्पट्टे म० श्री शुभचन्द्र देवा तत्पट्ट भट्टारक जिनचन्द्रदेवा तत् शिष्य जैनन्दिश्राम कर्म तथार्थं निमित्ते इदं वायकुमार पंचमी लिखापितं । खंडेलवाल बंशोत्पन्न पहाड्या गोत्र वाले भरजन मार्या केलूई ने प्रतिलिपि कराई । ४६२. द्विसंधानकाव्य सटीक - मूलकर्त्ता - धनंजय, टीकाकार नेमिचन्द्र । पत्र संख्या - १६६ ॥ साइज - १४४६३ इन्च | भाषा-संस्कृत । विषय-काव्य । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० १४ । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७.] [कान्य एवं चरित्र अंतिम पुष्पिका-ति निरवविद्यामंडनमंडितपंडितमहली मंडितस्य पटतचक्रवर्तिनः श्रीमतविनयचन्द्रपडितस्य गुरोरतेबासिनो देवनंदिनानः शिष्येण सकलकलोवचारचातुरीचंद्रिकाचा नेमिचन्द्रण विरचितारांद्विसंधान कविर्धनंजयस्य राघव पांडवीयापरानमकाव्यस्य पदकौमुदीनां दधानाया टीकायो श्रीरामच्यावर्ण नाम अष्टादश सर्गः । टीका का नाम पदकौमुदी है। ४६१. धन्यकुमार चरित्र सकलकीर्ति । पत्र संख्या-४ | साइज-११६४४ रम्च 1 भाषा-संस्कृत । विषय-काव्य । रचना काल-४ : लेखन काल-सं० १६५६ | पूर्ण । वेष्टन ने० २३७ । प्रशस्ति-संवत् १६५६ वर्षे कार्तिक बुरी ७ रविवासरे भी मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्द! चार्यान्वये भट्टारक जशकीर्तिदेवा तत्प?' भट्टारक थी ललितकीर्तिदेवा तत् शिष्य "०" श्रीपाल स्वयं पना गृहीत । लिखितं चन्देरीगढ़दमें वास्तव्य धकधर पातिसाहि राज्ये प्रवर्तते । ४६४. धन्यकुमार चारित्र--ब्रनेमिदत्त । पत्र संख्या-३० । साइज-१.४५ च । भाषा-संस्कृत । विषय- चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं० २३८ । विशेष—प्रारभ्म के पत्र जीणं हैं। ४५. धन्मकुमार चरित्र-खुशालचन्द । पत्र संख्या-५०१ साइज-१.४५ च । माषा-हिन्दी (पच) | विषय-चरित्र । रचना काल-xलेखन काल-x। पर्य। टन मं०६१६ । विशेवा-तौन प्रतियाँ और है। ४६६. प्रद्युम्नचरित्र-पत्र संख्या-११. 1 साज-६xx इश्च 1 भाषा-हिन्दी | विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन नं. ११११ । ET ४६७. प्रद्युम्नचरित्र- पत्र संख्या-४ | साइज-११६४५३ इंच । भाषा-हिन्दी (पथ) । विषय चरित्र । स्नना काल-सं० १४११ भादवा चुदी ५ । लेखन काल-सं १३०५ पासोज बुद्दी ३ मंगलवार । पूर्ण । वेष्टन न० ६१२ । विशेष-अधुन चरित्र की रचना किसी अग्रवाल बन्धुने को पी ! रचना की माषा एवं शैली अच्छी है । रचना का प्रादि अन्त माग निम्न प्रकार है प्रारम--सारद विंणु मति कवितु न होइ, सरासर गवि बूभाई की। सौस धार पक्षामई सरसतो, तिन्दि करें दुधि होह कह दुती ||१|| मधु को सारद सारद करव, तिस कर अंतु न कोऊ लहई । जियावर मुखद खपि गाय बाधि, सा सारद पपबहु परियाणि ॥२॥ अठदस कमल सरोवर कास, कासमीर पुरस (g) निकाम् । इंस नदीकर लेखाणि देश, कवि सभार सरस पभो ॥३॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्य एवं चरित्र सेत वस्त्र पदमवतील, काहं पलागि माजहि पीण । पागम आणि देहु महुमती पुणु दुइ जे पपबई सरस्वती ॥४॥ पदमावती देख कर लेइ, जालामुखी चकेसरी देह । अंत्रमाइ रोहिणी जो सारु, सासण देवी नबइ सधारू ॥१५॥ जिणसासण जो विघन हरेइ, हाथ लकुदि लै कभी होह । भत्रियहु दुरिउ हर प्रसरालु - अगिवापीउ पणउ खित्रपाल ॥६॥ चउनीसउ स्वामी दुस्ख हस्य, चउत्रीस के जर मरण । जिया उवीस नउ घरि मोउ, काउ कवितु जइ हो। पसाउ १७॥ रिषभु श्रजितु संमउ तहि भयउ, अभिनदनु नउत्थर वन यउ । समति पदमु प्रभु अवरु मुपास, चंदप्पउ घाठमड मिका |||| विधु नबड सीतलु दस भएड, अरु भयंसु ग्यारह जयउ । बासुपज अरु विमल बनतु, धमु नदि सीसहउँ पापा ॥६॥ कुथु सतारह श्रम ए प्रत्यार, मल्लिनाथ एगुणसी पार । पुशियरत नमिनेमि बावीस, पासु बौर महुदैहि असीस ॥१०॥ सरस कथा र उपजई घराउ, निसुबाहु चरित पसह तपउ । संवतु चौदहस हुर गये, ऊपर अधिक ग्यारह भये । भादव दिन पंच सो सारू, स्वाति नक्षत्र सनीश्वर बारु ॥१२॥ iii मध्यभाग-प्रय म्न सक्मणों के यहां यापहुधे हैं किन्तु यह प्रकट म हो पाया कि रुक्मणी का पुत्र भागया। पुष मागमन के पूर्व कहे हुए सारे संकेत मिल गये है किंतु माता पुत्र को देखने के लिये अधीर हो रही है - . पण षणा रूपिणि चदा अघास, पर। षण तो जोबा चोपास | मोस्यो नारद कमउ निरूत, श्राज सोहि पर प्रावह पूत ॥३८४॥ जे मुनि वयण कहे प्रमाण, ते सबई पूरे सहिनाया। च्यारि श्रावते कोठे फले, अरुणाचल दीठे पीयरे ॥३५॥ सूकी वापी मरी मुनीर अपय जगत मरि पाये पीर । सउ रूपिणि मन विमउ मयउ, एते ब्रह्मचारि तहाँ गयउ १३०६॥ नमस्कार तब रूपिणि करर, धरम विरधि खूढा उच्चरह । कारे भादस सो विनउ करेइ, कवय तिघासणु सख देहु ॥३८७॥ समाधान पूछई समुझड़, वह मूस्खा २ बिललाई । सखी बूलाइ जणाइ सार, जैवण करहु म लाबहु बार ॥३८॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : [काव्य एवं चरित्र । जीवण करण उठी तस्निग्मी, सुइरी मय श्री यमीणी । नाज न पुरन चूदि धुधार, वाह भूखउ २ चिललाइ ॥३८॥ अंतिम-मदसामी कउ काय वखाण, तुम पचन पायउ निरवाण । अगावाल की मेरी जात, पुर अगरो ए मुहि उतपाति ॥६७५।। सवणु जग्गणी गुणवह उर धरिउ सा महाराज घरह श्रवतरिउ । एरठ नगर बसते जानि, म यिाउ चरित मा रचिउ पुराया ॥६७६॥ सावय लोय असहि पुर माहि, दह लहरा ते धर्म काइ। दस रिस मानइ दुतीया भेउ झावहिं गितहं जीणेसर देउ ॥६७|| एहु चरितु जो बाचद कोह, सो नर स्वर्ग देवता हो । हलु वइ र सो दे, मुलगाए | जो कृषिमुणइ मनह धरि माउ, अमुभ कर्म ते रिहि जाद । झो र नखाणइ माणुसु क्यणु, ताहि बहु तू सइ देव परदमणु ॥६७४।। अलिखि जो रि खियामह साथ, सो सुर होइ महा गुपरम् । जो र पढाव मुग्ण किउ निलउ, सो बर पावइ कंचण भलउ ||६|| पहु चस्तुि पुन भडारू, जो बरु पदर सु नर महत्वाम् । तहि परदमणु तुही फल देइ, संपति पुत्र श्रवर जसु होइ ॥६८१॥ हउ नुधि ही न आणी केम्वु, प्रक्षर मातह गाड न भेउ । पंडित जन्यद न कर जोडि हो। अधिक जरा लावहु खोरि ॥६८२॥ इति परदमश चरित सभाप्तः ॥ ४३८, पार्श्वपुराण-भूधरदास । पथ संख्या-१०६ । साइज-१०:४५ इन्च | भाषा-हिन्दी (पथ) । विषय-काव्य । रचना काल-सं० १७८६ । लेखन काल-सं० १८६३ । पूर्ण । वेष्टन २०६४ । विशेष-- १६ प्रतियां और है। ४. प्रीतिकरचरित्र-० नेमिदत्त । पत्र संख्या-२४ । साइज-१०६x५ इव । माषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-X । खेखन काल-x1 अपूर्म । केटन न. २१०। विशेष – अन्ध प्रशस्ति अपूर्ण है। ५.०. बाहुबलिदेव चरिए (बाहुबलि देव धरित्र)-पं० धनपाल । पत्र संख्या-२६५ | साज११६x४३ इ । भाषा-अपनश | विषय-चरित्र | रचना काल-सं० १४५४ बैसाच सुदी १३ । लेखन काल-सं० १६०६ भाषाद सुदी ५ । पूर्थे । वेष्टन नं. २५२ । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्य एवं चरित्र ] विशेष प्रकार व लेखक प्रशस्ति पूर्ण है। लेखक प्रशस्ति का अन्तिम भाग इस प्रकार है "एतेषा मध्ये 'ढाह देशे कछुवाहा राज्यावर्तमाने अमरसर नगरेतिनाम स्थितो धनधान्य चैत्य चैत्यालयादि सोमान व राज्य पदाश्रितो राजश्री सूज उधरयो राज्ये वसन संघड़ी का तेनेदी चरित्र लिखा ज्ञानपात्र हुन श्राचार्यं धर्मायदः । ५०१. भद्रबाहुचरित्र - श्राचार्य रत्ननंदि । पत्र संख्या ४३३ साइज - १०४४ई इन भाषासंस्कृत | विषय - चरित्र । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १७५० | पूर्ण । चेप्टन नं० २५० । विशेष एक प्रति और है। ५०२. भद्रबाहुचरित्रभाषा -- किशनसिंह । पत्र संख्या - २०२ | साइज - ११x४३ ६ | भाषा - हिन्दी | विषय-चरित्र । रचना काल ५० १७८० । लेखन काल -x | पूर्ण । वेष्टन नं ० ६०८ / विशेष – पत्र ५५ के बाद निम्न पाटों का संग्रह हैं जो सभी किशनसिंह द्वारा रचित है विषय-सूची एकावली व्रत कथा श्रावक मुनि गुण वर्णन गीत पत्री दंडक चतुर्विंशतिस्तुति मोकार राख जिनमक्ति गीत चेतुन गीत गुरुभक्ति गीत निर्वाण कांड भाषा चेतन लौरो नाची कथा (रात्रि भोजन त्याग कय। ) धि विधान कथा कर्त्ता किशनसिंह 33 23 13 33 " 11 1 12 "2 31 33 { t 11 रचना संवत् X x १७६४ X १७६० X x X १७८३ संग्रामपुर में रचना की X १७७३ १७५२ घागरे में रचना की गयी भी ५०३. भाषा भविसपत्तपंचमीकहा - धनपाल | पत्र संख्या - १३१ | साइन- ११४४४ इञ्च । अपभ्रंश | विषय - चरित्र । रवना काल - Xx 1 लेखन काल -x | पूर्ण । वेष्टन नं० २१७ | श्लोक संख्या ३२०० । विशेष - ग्रन्थ की ३ प्रतिया और हैं। दो प्राचीन प्रतियां हैं। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ । [ काव्य एवं चरित्र । ५८४. भविसयत्तचरिय-(भविष्यदत्तचरित्र ) श्रीधर ! पत्र संख्या-१४४ | साइज-११३४५ इंच | माषा-संस्कृत | विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६६१ चैत्र सुदी २ । पूर्ण । वेष्टन मं० २१४ विशेष- राजमहल नगर में प्रतिलिपि हुई पी। प्रय श्लोक संख्या १५०७ प्रमाण है। ५०६, पति न० या : समाज-Ex हन् । लेखन काल-सं० १६४६ चैत्र सुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० २१५। प्रशस्ति-संवत् १६४६ वर्षे चैत्र सुदी ११ मंगलवार अंबावती नगरे नेमिनाथ चैत्यालये श्री मूलरांधे याम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीगचे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म. श्री पद्मनं दिदेवा, तत्पद भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवा तत्प? म. श्री जिनचन्द्रदेवा तत्पट्ट म श्री प्रमाचन्द्रदेवा तत्पट्ट म० श्री धर्मचन्द्रदेवा, तत्पट्ट मट्टारक ललितकीर्तिदेवाः समस्त गोठि अंबावती... ............. खंडेलवालान्चथे भावसा गोत्रे इदं शास्त्र घरापितं । ५०६, प्रति नं०३-पत्र संख्या-७४ । साहब-११४५ इञ्च । लेखन काल-स. १६०६ 1 पूर्ण । वेष्टन नं० २.१६ । विशेष-कहीं २ कठिन शब्दों के अर्थ मी दिये हुए है। प्रशस्ति--संवत् १६० वर्षे वैसाख मासे कृष्ण पने द्वादशी तिथौ बुद्ध-वासरे अनुराधा नक्षत्रे श्री मूलसंधे गढ़ रणस्तंभ शासागरे सेरपुर नाम्नि पातिशाह मल्लेण साहि राज्य प्रवर्तमाने श्री शान्तिनाथ जिण चैत्यालये श्री लसंधे नधानाये बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० पद्मनांन्द देवा तत्पष्ट म० श्री शुभचन्द्र देवा, तत्प? भट्टारक जिनचन्द्र देवा, तत्पमा प्रभाचन्द्र देवा तत् शिष्य मा श्री धर्मचन्द्र देवास्तदानाये खंडेलवालान्चये पाटोदी गोत्रे सा बेला तद्भार्या सारी...................................."एतेषां मध्ये सा वोहिल मार्या लाली इदं शास्त्रं सिखायं मं० श्री धर्भचन्द्राय घापित कल्याया व्रतोद्यापनार्थ । . ५०७. भोजचरित्र--पाठक राजवल्लमा पत्र संख्या-13 | साइज-११४४२० भाषा-संस्कृत। विषय-चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १६० ७ । पूर्ण । वेष्टन नं० २३५ । विशेष-प्रथ को अन्तिम पु-पका निम्न प्रकार है श्री धर्मघोषगच्ने श्री धर्मसूरि सताने स्वाध्वी पट्ट श्री महीतिलक मूरि शिष्य पाठक राजवल्लम कृते भोज चरित्र समाप्तं । सं० १६०७ वर्षे फागुण मासे शुक्ल पक्षे सातम्या तिथौ शुकधासरे अलबरगद मध्ये लिखितं । ५०८ महीपालचरित्र-मुनिचारित्र भूषण | पत्र संख्या-५४ | साइज-१०६x४३ च । माषासंस्कृत । विषय-चरित्र । रचनाकाल-४ । लेखन काल- ४ | पूर्ण । वेष्टन नं० २११ । विशेष-श्लोक संख्या-LE प्रमाण अन्य है। ५०६. यशस्तिलकचम्पू-सोमदेव | पत्र संख्या-५E | साइज-१२:४५ इंच । भाषा संस्कृत । विषाकाव्य | रचना काल-X1 लेखन काल- । अपूर्ण । बेन्टन नं. ६६३ ॥ .. PAINA - . Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य एवं चरित्र ] [७४ विशेष-८ पेज तक टीका दे रखी हैं। ५१०. यशोधरचरित्र-सोमकीर्ति । पत्र संख्या-१७ । साइज-११४४५ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-x | य पूर्ण । वेष्टन नं० २४२ । विशेष-१७ से धागे पत्र नहीं हैं। ५११. यशोधरचरित्र-ज्ञानकीर्ति । पत्र संख्या-६५ । साइज-१४४५ इठच । माषा-संस्कृत । चिय-चरित्र । रचना कास्त्र-स. १६५६ माघ सुदी १ । लेखन काल-सं० १६६४ वैशास्त्र बुदी ३ । पूर्ण । वेटन नं० २४१ विशेष-~-महाराजा मानसिंहजी के शासन काल में मौजमाबाद में प्रतिलिपि हुई थी। ५१२. यशोधरचरित्र-वासबसेन । पत्र संख्या-२-३५ | साइज-१५६४५५ रञ्च । माषा-संस्कृत । विषय-परिव । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १७५६ भादवा मुदी १ । पूर्ण । वेष्टन न० २४० । विशेष प्रथम पत्र नहीं है । पं. पेमराज ने प्रतिलिपि की यो। ५१३. यशोधरचरित्र-भ सकल कीर्ति । पत्र संख्या-६४ । साज-१२४५ मापा-ted | वित्रश्य-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-x । पूर्ण । बटन न० २३६ । विशेष-वार प्रतियां और हैं। ५१४. यशोधरचरित्र-परिहानन्द । पत्र संस्था-३४ 1 साइज-११x६१ प्रश्न ! भाषा-हिन्दी (पथ) । विश्य -चरित्र । रचना काल-सं. १६७० | लेखन कास- १८३: । पूर्ण । वेष्टन • ६१८ । विशेष-श्रादि अत भाग निम्न प्रकार हैशरम्भ-मुसर देव परहंत महत्त, मुग्न अति अगम नहै को अनु ! नाकै माया मोह न मान, लोकालोक प्रकासक शान ।। जाकै राग न मोह च खेद, रित्रिपति रंक व जाके भेछ । राधे हष न विरचे चक्कु, समरत नाम हरै अव चक्क । अलख अगोचर प्रतुक ग्रंतु, मंगलधारि मुकति को कन्तु । युग्ध पारिध मो रसन! एक, अलप पुद्धि पर तुछ विवेक । T कर जोडि नऊ सरस्वतो, बटें बुद्धि उपजै शुभ मती । जिन वानी मानी जिन आनि, तिनकौ पचन चन्यो परधान ॥ विबुध विहंगम नत्र वन बारि, कवि कुल केलि सरोवर मार । भत्र सागर तू तारन भान, कुनय कुरंग सिंघनी भाव ।। वे नर सुन्दर ते नर वली, जिनका पुहसि क्या बड्ड चली । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ काव्य एवं चरित्र जिनकी ते सारद वर दीयो, सुखसुरिताम अमल जल पायौ ॥ समरि समार गुण ज्ञान मभीर, ब, समति अध घटहिं सरीर । जिनमुद्रा जे धारणा धीर, भव आताप वुभावन नीर ॥ विनकै चरण चित्त महि धर, चिर अनुसार कक्ति उच्च । गुरु गणधर समरो मन माहि, विघन हरन करि करिनु वाह !! } नगर श्रागरो बस सुवास, जिहपुर नाना भोग विलास | बसीह साह बढ़ धनी धर्मनि, तन्मय नमःः सा शिलखि ।। गुग्धी लोग छत्तीसौं कुरौ, मथुरा मंडल उत्तम पुरी । और बहुत को करें बचाउ, एक जीभ की नाही दाउ । भुपति सूरदासाह सुजान, परि तम तेज हर नमो मान । मध्य माग-सुनिरी माइ कहीं हो पह, जो नर पाय उत्तम देह । सत पंडित सजन सुखदाइ, सत्र हित कहि न कीप २१६ ॥ जो बोले सो होइ प्रमान, जह चेटे तइ पावै मान । र मात्र मन धरै न कोइ, जो देसै ताकी सुख होई ॥७४|| यह सब जा िदया को अंन, उत्तम कुल अक्ष ५ अनंग ! दौरघ यात्र पर ता तनी, सेवहि चरन कमल बह गुनी ॥७॥ अन्तिम भाग-संवत् सोलह से अधिक सप्तरि सावण मास । सुकल सोम दिन सप्तमी कही कमा पृदु भास ।। अग्रवाल वर रंस गौसना गांव को । गोयल गोत प्रसिद्ध चित्र ता ठाव को ।। भाता चंदा नाम, पिता भैरू भन्यो। परिहानंद कही मनमोद अंग न गुन ना गन्यौ ।।५१८॥ इति श्री यशोधर चौपई समाप्ता । . . सयत १८३१ का मैं घटती पाना पुरी कियौ पुस्तक पहेली लिस्योछ। पुस्तक लूटि में अश्यों सो यो निचरावलि यो गानों का भाशा का पंचा बाचै पर्छ त्याह मन्य जीवाने पुन्य होयसी । ५१५. यशोधरधरित्र-खुशालचन्द । पत्र संख्या-४१ । साज-३४६ इंच : भाषा-हिन्दी । विषयचरिख । रचना काल-सं० १५८१ । लेखन काल-- 1 पूर्ण । वेष्टन न० ६१४ । विशेष-२ प्रतियां और हैं। .. . Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +re . कान्य एवं चरित्र ] ५१६, यशोधरचरित्र टिप्पण........"। पत्र संख्या-२६ । साइज-११४४३ च । भाषासंस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण 1 वेष्टन नं. १०६ । विशेष –प्रति प्राचीन एवं जीय है, पत्र गल गये हैं । चतुर्थ संधि तक है । ५१७. यशोधर चौपई-अजयराज | पत्र संख्या १२ से ५११ साइज-६:४५ अ । भाषाहिन्दी | विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १.१ : कार्तिक बुदी २ | लेखन काल-सं० १८०० चैत बुद्धी ११। थपूर्ण । बेष्टन • ELI विशेष-दृढमल पाटनी अस्सी वाले ने श्रामेर में प्रतिलिपि कराई थी। ५१८. बड्ढमाण कहा (वर्तमान कथा)-सरसेन । पत्र संख्या-२७ । साइज-X४ ६२ । भाषाअपभ्रश । विग-चरित्र । रचना काल -X । लेखन काल-सं० १५८४ | पूर्ण । बेटन नं० २६१ . विशेष प्रशस्ति निम्न प्रकार है-- संवत् १५:५४ वर्षे चैत्र सुदी १४ शनिवारे पूर्वानावे श्री चंपावतीकोटे राणा श्री श्री श्री संग्रामस्य राज्ये, राह श्री रामचन्द्र राज्य, श्री मूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पत्ननन्दिदेवा तत्प मट्टारक श्री शुभ चन्द्र देवा तल भट्टारक श्रीजिनचन्द्र देवा, प्रमाचन्द्रदेवा ! श्री खंडेलवालान्वये अजमेस गोत्र साह लोहा मार्या धनपद तस्य पुत्र साह प्यौराज भायौं रतना तस्य पुत्र शान्तु तस्य मार्या सांतिवी तस्य पुत्र स्यौन द्वितीय साह चापा मार्या सोना तस्य साइ होला तस्य भार्या । ....... ............... ५१६. घमाणकव्य ( पद्धमानकाव्य --पं० जयमित्रहल ! पत्र संख्या-२ से ५६ । साइजkxi इथ | भाषा-अपभ्र । विषय-काव्य । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १५५० वैशाख सुदी ३ | अपूर्ण । वेपन नं. १३..। विशेष - प्रथम पत्र नहीं हैं । प्रशस्ति निम्न प्रकार है संवत् १५५० वर्षे शाल सुदी ३ मेहिणी शुभनाम योगे श्री गैडोली पाने राजाधिराजः अरिमानमर्दनराजश्री चापादेव राज्यपत्र प्रेमाने श्री मूलसं वयात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० श्री पद्मनन्ददेवाः तत्पी भ. शुभचन्द्र देवा तत्प भ : जिनचन्द देवा तत् शिष्य गुनि श्री लकीति देव ......... "। - to ५२०. बद्धमानचरित्र- सकलकीर्ति | पत्र संख्या-१२४ । साहज-१२x६ञ्च | भाषा-संस्कृत 1 विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेप्टन में १२६ । ५२१. वरांगचरित्र--बर्द्धमान भट्टारक देव । पत्र संख्या-६० | साइज-११४५ । माषासम्मत | विषय-मरिन । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६३१ फामुख घुदी: । पूर्ण । वेष्टन नं० २४७ ॥ विशेष-सांगानेर में महाराजाधिराज भगवतसिंहजी के शासनकाल में खंडेलवालवंशोत्पन्न भौसा गोष वाले साह Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [काव्य एवं परित्र नानग प्रादि ने प्रतिलिपि कराई थी। विशेष-२ प्रतियां और है। ५२२, विदग्धमुखमंडन-धर्मदास । पत्र संख्या-१२ । साहज-२०३४४३ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-काव्य । रचन! फाल-४ । लेखन काल-सं० १३१ चैत्र सुदी ३ सोमवार । पूर्ण । वेष्टन नं. १५२ । विशेष-नगराज ने प्रतिलिपि की भी ! ५२३. षट्कर्मोपदेशमाला-अमरकीर्ति । पत्र संख्या- | साइज-१०x४, इस | भाषा-अपभ्रंश विषय-काव्य । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १६५६ ! पूर्ण । वेष्टन नं० १५८ । विशेष - प्रति प्राचीन हैलेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है संवत् १९५६ वर्षे चैत्र बुर्दा १३ शनियासरे शतमिखानव राजाधिराज श्रीभाणविजयराज्ये भीलौड़ा मामे श्री चन्द्रप्रभ चैत्यालये श्री मूलसंघ मसात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पमनन्दिदेवास्तत्प भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवा तत्प? भ० श्री जिनचन्द्रदेवा तत्प? भ. सिंघकीर्ति देवास्तव शिष्य ब्रह्मचारी रामचन्द्राय बड जातीय अंडी हारा मा ईजा सुत व तबष्टी देवात भ्रातृ श्रीष्टी नाना भार्या डूबी द्वतीय भार्या रूपी तयोः मुत शुतोष्टी लाला मार्या बान् तत् भ्रातृ श्रेष्ठी मेला मार्या चोली षटकोपदेश शास्त्र लिखाय प्रदत् । ५२४. शालिभद्र चौपई-जिनराज सूरि । पत्र संख्या-१४ | साइज-१०४४ इन्न । माषा-हिन्दी। विषय-चरित्र । रचना काल-० १६१८ । लेखन काल-सं० १७६४ मादत्रा सदी १५ । पूर्ण । वेष्टन नं० १०७५ । ५२५. श्रीपालचरित्र-व्र नेमिदत्त । पत्र संख्या-५५ । साइज -१२४१३ । माषा-संस्कृत | E विषय--चरित्र । रचना काल-सं० १५८५ श्रापाट पुदी ५ 1 लेखन काल-सं० १३१ साबन बुदी ८ | पूर्ण । वेष्टन नं० २५५ ।। विशेष-मालवा देश में पूर्णाशा नगर में श्रादिनाथजी के मन्दिर में प्र-य रचना हुई थी। छाजूलालजी साह के पिता शिवजीलालजी साह ने झानावरपीक्षयार्थ श्रीपाल परित्र की प्रतिलिपि कराई थी। एक प्रति और है। % 3D ५२६. श्रीपालचरित्र--कवि दामोदर । पत्र संख्या-५७ । साइज-११४४३ ३२ । माषा-अपभ्रंश । विषय-चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १६०६ श्राश्य बुदी ६ । पूर्ण । वेष्टन न० २२४ । ५२७. श्रीपासचरिध-दौलतराम ! पत्र संख्या-४६ । साइज-८६x६ ६ | भाषा-हिन्दी । विषयचरित्र । रचना काल--- । लेखन काल-सं० १९०७ । पूर्ण । बेष्टन नं० ५२० । विशेष-बाराधना कमा कोष में से कथा लो गई हैं। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्य एवं चरित्र ] [ ut ५२८. श्रेणिकचरित्र-भ. विजयकीर्ति । पत्र संख्या-२५० | साज-१०:४५ ३ ह । भाषा-हिन्दी । विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १८२.१ लेखन काल--सं० १८८० । पूर्ण । वेष्टन ० ६१५ । ५२६. श्रेणिकचरित्र-जयमित्रहल | पत्र संख्या-६ ० । साहज-१०६४५६ ६च ६ माषा-पभ्रंश । विषय- चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-X । अपूर्ण । बेष्टन नं० २३६ । ५३०. श्रीपालचरित्र-परिमल्ल । पत्र संच्या-१३६ । साइज-१०६x४३ इन्च । माषा-हिन्दी । विषय-चरित्र | रचना काल-X । लेखन काल-स. १८८० । पूर्ण । वेष्टन नं. ६०४ । विशेष- प्रतियाँ और हैं । ५३१. श्रीपामचरित्र............। पत्र संख्या-३५ | साइज-१३४६३ । माषा-हिन्दी गय । विषय-चरित्र 1 रचना काल-x। लेखन काल-० १८५६ वाषाढ़ बुदी । पूर्ण । वेष्टन नं० ६२७ । विशेष—अन्य के मूलका म० सकलकोर्ति थे । २ प्रतियां और है । ५३२. सीताचरित्र-कवि बालक । पत्र संख्या-१६१ । साइज-kxi इन्च । भाषा-हिन्दी (पद्य) ! विषय-हरित्र । रचना काल-सं० २०१३ 1 लेखन काल-सं० १८६५ | पूर्ण । वेष्टन नं. ६२३ । विशेष-चपावती ( चाका ) में प्रतिलिपि हुई थी । सीता चरिव की मण्डार में ५ प्रतियां और हैं । ५३३. सिद्धचाककथा-नरसेनदेव । पत्र संख्या-३८ | साइज-१०x४३ च । भाषा-अपभ्रंश । विषय-यमा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १५१५ । पूर्ण । घेण्टन न. २७= ! विशेष-लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है --- संवत् १५१५ व ज्यैठ सुदी १५ रवी नैयवाहपने मुत्राण अलावदीन राज्ये श्री मूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्त्रये भट्टारक श्री पद्मनन्दिदेवाः तत्पट्ट जिनचन्द्रदेवा तस्य शिप्य पुनि धनंतवृति लंबकंकाम्वये अदवस काकलिभरच्छगोत्रे साह सीथे भार्या दीपा तस्य पुत्र साह साम्हरि मार्या जसंवरूप नारायण लघु माता कान्ह एतेगु मध्ये नाराण पउनार्य लिखापितं । ५३४. सुदर्शनचरित्र-भ० सकलकीर्ति । पत्र संख्या-३८ । साज-११४५ इञ्च | भाषा-संस्कृत | विषय चरित्र | रचना काल-X1 लेखन काल-X पूर्ण । वेष्टन नं० २३२ । ५३५, सुदर्शनचरित्र-विद्यानंदि। पत्र संख्या-५० | साज-२१४५ इन्च भाषा-संस्कृत | विषय-चरित्र । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १६० । पूर्ण । वेष्टन मं० ५६३ । विशेष-टोंक निवासी गंगवाल गोत्र वाले सा० राजा ने प्रतिलिपि करवायी थी । ५३६, हरिवंशपुराण-महाकवि स्वयंभू । पत्र संख्या-१ से ४०६ | साइज-१३४५ च । माषाप्रपाश । विषय-काव्य ! रचना काश-X1 लेखन काल-से. १५६२ फागण खुदी १३ । पूर्ण । वैस्टन नं० १२३ । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] [ काव्य एवं चरित्र विशेष--प्रति का जीणों द्वार हुना है। पुराण की अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार हैं--- इय रिटामचरिय धवलक्ष्यासिय सय भुएव उच्चरए तिहुश्णसर्यभुए समाणियं यह किचि हरिचेस || गुरुपवबासमयं सुगमगाणुक्कम जहाजायासयेमिक बदहियं संधियो परिसम्मतियों ||६|| सधि १११२ ॥ इति हरिबंस पुराग्य समाप्त ॥६॥ ग्रन्थ संख्या सहस्र १८००५ पूर्वोक्त ॥ ६ ॥ प्रशस्ति निम प्रकार हैं संवत् ११८२ वर्षे फाल्गुगल बुदी १३ त्रयोदशीदिवसे शुक्रवासरे अवमानाने शुम जोंगे चंपावतीगढ़नगरे महागज श्री राम चन्द्र राज्य श्री पाश्वनाथ चैत्यालये श्री मूलसंधे नंयाम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीले श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पसनन्दिदेवा तत्पट्ट मारक श्री शुभचन्द्रदेवा तत्सदै भट्टारक श्री जिनचन्द्रदेवा तप? भट्टास्क श्री प्रभाचन्द्रदेवा तदाम्नाये खडेलवाला क्ये साहीत्र जिनपूजापरं दरान बहशाप्रपरिमनि मन्दगे. जिन चरणारविंद पर पदनीतिशास्त्रपरिगत, निशद जनशासनसमुद्रणधीर, पंचाणुमतपालनकधारसम्यक्त्वालंकृतशरीराभेदाभेदरनश्यराधकात्रिपंचास नियातिपालक शंकायष्टदोषरहितं संदेगावगुरा: युशि दुरियतजनविश्राम, पाय अायक साह काधिल, मार्या कावलदे त्रयाः पुत्राः । द्वितीय पुत्र जिन चरणकमलचंचरीकान्, दानपूजाश्रयान् इन समृघतान् परोपकारनिरतान् प्रशस्तचित्तान् सम्यक्वगुणप्रतिपालकान् श्री सर्वोक्तधमाकर नितचेतसान युटुवमारधुरंधरान रन प्रयालंकृतदिव्यदेहान् श्राहारभैषजशास्त्रदानमदाकिनीयः परितचित्तान् श्रावकाचारप्रतिपालननिरतान् सा राघौ साधी (सावी) मार्या रेनदे तस्य चतुर्थ पुत्रः द्वितिय पुत्र: जियाबिंबत्यविहार उद्धरणधीरान चतुर्विधसंघमनोरथपूर्णान, चिन्तामपि गुण.......... संपूर्णान बहुलक्षणलक्षितदिव्यदेहान् स्वजनानंदकारी देवशास्त्रगुरूणा (गा) भक्तिवत्रात् त्रिकालसामायिकपूत प्रतिपालकान परमाराधकपुरन्दर, निजकुलगगनद्योतनदिवाकर व्रतनियमसंजमरत्नत्रयरनाकर कृष्णावलिप्रस्तस्तमलखंडन चतुर्विध. मुखमंडन, निजकुलकमलविकास कमाण्डान्, मार्गस्यकल्पवृक्षान् सरस्पतिकंठाभरणान त्रेपन क्रियाप्रतिपालकान एतान गुणसंयुतान् परम श्रावक विनवतं साधु सा० हाथ मार्या श्रीमती इत्र साची हरिवंदे तस्य द्वौ पुत्रौ प्रथम पुत्र जिग्यशासनउद्धरणधीर राजपागमार वितरगा प्रवीण सा पासा भार्या द्वौ प्रथम लाड़ी द्वितीप काली तस्य पुत्र चिरे जीव वालधवल सा. हरराज । सा. हाथु द्वितीय पुत्र देवगुरूशास्पशासनविनयवंत सा. प्राशा भार्या हंकारदै । सा० राधौ-जुतीय पुत्र सा. दासा मार्या सिंदूरी तस्य द्वौ पुत्री प्रथम पुत्र सा- भविसी मार्याभावलदे द्वितीय पुत्र सा- नानू सा० फादू : सा० दासा तस्य द्वितीय पुत्र सा. धर्मसी मार्या दासदे । सा० राधों चतुर्थ पुत्र सा. घाटं तस्य मार्या राणी......... ... ." घाटं पुत्र द्वौ, सा. हेमराज......... "पुनमाघनंदाय दत्तम् । ५३७. होलिकाचरित्र-छीता ठोलिया। पत्र संख्या-५ साइ३-१०४५ इंच | भाषा-हिन्दी । विषय-कथा । रचना कारख-सं० १६६० फागुण सुदी १५ । लेखन कालां . १८७४ । णं । वेष्टन नं० १७ । ५३८. होलीरेणुकाचरित्र-जिनदास 1 पत्र संख्या-१ । साज- ११४५१ च : भाषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-- । लेखन काल-सं० १.५ | पूर्ण । बटन #F०८। विशेष-पांडे जसा ने स्वयं प्रतिलिपि को भी। - - Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-कथा एवं रासा साहित्य ५३६. अष्टाह्निकाकथा-भ० शुभचन्द्र । पत्र संख्या-१० । साइज-२०१x६ इभ । भाषा-संस्कृत । विषय-क्या । रचना काल-X । लखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं० २७५ । विशेष--क्या को रचना जालक की प्रेरणा से हुई थी । कथा की तीन प्रतियां और हैं । ५४२. आदित्यवारकथा-भाऊ ऋषि । पत्र संख्या-१७ | साइज-10xxs | गापा-हिन्दी । बिषय-कथा । रपनाकाल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०६६ । ५४१. आदित्यवारकथा--सुरेन्द्रकीर्ति । पत्र संख्या-४ । साइज-५३४४ इन्च 1 माषा-हिन्दी । विषय-कपा । रचना काल-सं० १७४४ । लेखन काल-सं० १८४६ । पूर्गा । वेष्टन नं. ६६६ | विशेष—कामा में प्रतिलिपि हुई थी । यत्र २५ से सूरत की बारहखडी दी हुई है। ५४२. कवलचन्द्रायणव्रतकथा ..."। पत्र संख्या-६ । साइज-१.xk दश्च । माषा-संस्कृत । विषय-कथा | रचना काल-x लेखन काल-x। पूर्या । वेटन नं. ५६७ । ५४३, कर्मविपाकरास- जिनदास । पत्र संख्या-1 | साइज-१.९x४३ इञ्च । भाषा हिन्दी । विषय-सा साहित्य । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७ कार्तिक बुदी ११ । पूर्ण । बेष्टन नं ० ३६६ । विशेष – भाषा में गुजराती का बाहुल्य है । लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है संवत् १७७६ वर्षे कार्तिक मासे कृष्ण पते एकादशी गुरुवासरे श्री रत्नाकर तटे श्री खेमातनंदरे गौसाई कान्हड़गिरेण लिन्दितमिदं पुस्तक ७० मुमतिसागर पठनार्थ । ५४४. गौतमपृच्छा . ... ... | पत्र संख्या-३५ | साज-१०x४ इम | भाषा-संस्कृत | विषयकपा । रचना काल-x1 लेखन काल-x पूर्ण । बेष्टन नं. १०८ | विशेष भारम्भ- वीरजिनं प्रयाम्यादौ बालानां मुखबोधको । श्रीमद गौतमपृच्यायाः क्रियते वृशिमदभुता ॥१॥ नमि का तित्पनाई जातो तहय गोयमो भय । प्रव्हाण बोहणाय धम्माधम्माल दुखे ॥२॥ नत्वा तीर्घनाथं जाणत् तमा गौतमः भगवं । अयोवान बोधनार्य धमाधम्र्मफल अपडे ॥२॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कथा एवं रासा साहित्य अन्तिम पाठ-पाठक पद संयुक्त पता चेयं कमानिका । श्रीमद् गौतमपच्छा सत्रमामुखबोधका 1| लिखतं चेता हमर विजयः। इति गोतमपृच्छा संपूर्णः। ५४५. चन्दनष्टिवतकथा-विजयकीर्ति । पत्र संख्या-६ । साइज-११३४३ इश्च । माषासंत | विषय-कथा । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १६६० | पूर्ण । वेष्टन न. ५०१ 1 विशेष-ईश्वरलाल चादवटि ने प्रतिलिपि कराई भी । ५४६. चन्द्रहंसकपा-टोकम । पत्र संख्या-४४ । साइज-११३४४ इन्च । भाषा-हिन्दी । विषय-- कमा | रचना काल-सं. १७०८ । लेखन काल-सं० १८१२ । पूर्ण । बेष्टन नं. ५.७६ । विशेष-रचना के पथों की संख्श ४५० है । रचना का प्रारम्भ और अन्तिम पाठ निम्न प्रकार हैं। पारम्भ-धोकार अपार गुग्य, सव ही घधार प्रादि । सिद्ध होय ताको जव्या, आखिर एह अनादि । जिन वाणी मुल उचरे, ओं सबद सरूप । पंडित होय मति वौसरो, आखिर एह अनुप ||२|| अन्तिम पाठ-सांभरि स्यौ दश कोसा गांव, पूर्व दिशा कालख है ठाम ॥ ४ ॥ ता माहै व्यापारी रहै, धम्म कर्म सो नीति की कहै । देव जिनालय है तिहाँ मलो, आवग तिहां कमा साभली ॥४४१॥ विधि सौ पूजा करें जिन तनी, मन में प्रीति मु राखें घणी । झगडू तहानग्यौ हुजदार, बस लुहाया में सिरदार ||४४ ९।। भोज राज साहिब को नाव, ई मलाई सौप्यों गांव । सब सौ प्रति चलावै साह, दोष न करें कदै मन माहि ॥४४३॥ पुत्र दोन ताकै घरि मला इजाणि, पिता हुकम करें परवान | कालु और नराईनदास, हगातणीय जीव पास ॥४४४|| माई बंधु कटक परिवार, निधि सौ करै सबन को सार । साहमी तयौ बिनौ पति करें,सति वचन मुस्ख उचरै ।।४४५।। जिती भलाई हैं तिहि माहि, एक जीम वरणन नहो जाई । सब ही को दिल लीया हापि, जिमैं बैंठि आपने सायि || ४४६ भैसी गति बैंचियो भार, जायण ताकौ सब संसार ।। संवत पाठ सतरा वर्ष, करता चौपई हुवो इर्ष ।। ४.४७ ॥ - - Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथा एवं रासा साहित्य [ ६६ पंडित होइ हमो मति कोई, बुरा मला पाखरू जो होइ । जेठमास श्रर पखि अंधियार, जागो दोर्दज अरविवार ।। ४४६ ॥ टीकम तणी बीनती एहु, लघु दीरघु संबार लू लेह । सुणत कया होई जे पास, हो तिन कै चरमण को दास ॥ मनथर कृपा रह जो कहै, चन्द्र हंस जोमि सुख लहै ॥ रोग निजीम न च्यापै कोई, मनधा क्या सुनै जै सोई ।। ४५० ।। ॥ इति चन्द्रहेंस कया संपुर्ण ॥ संवत् १८१९ वर्षे शाके १६७७ श्रापादकृष्णा तिथौ । बुधवासरे लिपि कृतं ॥ जोसी स्यौजीराम ।। शिखापितं धर्ममूरति घरमामा साह जी श्री डालूराम।। ५४७. चित्रसेनपद्मावतीकथा-पाठक राजवल्लभ । पत्र संख्या-१६ । साइज-३४४३ इंच । भाषा-संस्कृन । विषय-कथा | रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७६१ । पूर्ण । श्रेष्टन नं. १०७४ । ५४८. दर्शनकथा-भारामल्ल | पय संख्या-६८ । साइज-Ext: इञ्च | भाषा-हिन्दी | विषयकथा । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १९२७ आयाट चुदी १० ! पूर्व । बेष्टन नं० ५८४ | विशेष - एक प्रति बोर है। ५४६. मानकथा--भारामल्ल । पत्र संख्या-३६ । साइज-११४५ हण | भाषा-हिन्दी । विषयकमा | रचना काल-X । लेखन काख-X । पूर्ण । वेटिन नं ० ५६८ विशेष—मूल्य (1) लिखा हुआ हैं। ५५०. नागश्रीकथा (रात्रिभोजनत्यागकथा)-० नेमिदत्त । पत्र संख्या-२- । साइज-११४४५ इश्च । भाषा-संस्कृत ! विषय-कथा । रचना कात-४ । लेखन काल-२० १६७६ फाल्गुन बुदी ४ । पूर्थ | वेएन नं. १६८ विशेष – चाई तेजश्री वैजवाड में प्रतिस्ताप कराई । पहला पत्र बाद का लिखा हुआ है । एक प्रति और है। ५५१. नागश्रीकथा रात्रि भोजन त्याग कथा)-किशनसिंह । पत्र संख्या-२० । साइज-११४५३ रस | भाषा-हिन्दी । विषय-कथा । रचना काल-सं० १७५३ सावन गुदी । लेखन काल-x। पूर्ण | वेष्टन नं. ५.1 विशेष-३ प्रतियां और हैं। ५५२. नागकुमारचरित्र-नथमल विलाला। पत्र संख्या-१०३ । साइज-११३४५३ च । मायाहिन्दी (प) । विषय-कथा । रचना काल-० १८३७ माघ सुखी ५ | लेखन काल-X | अपूर्ण । वेष्टन नं० ६१३ । विशेष अन्तिम पत्र नहीं है। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] [ कथा एवं रासा साहित्य ५५३. निशिभोजनत्यागकथा-भारामल्ल | पत्र संख्या-२० । साज-४६३ । भाषा-हिन्दी (पय) । विषय-कथा 1 रचना काल-X । लेखन काल-सं. १९२७ भाषया बुद्धी १५ । पूर्ण । वेष्टन नं० ५८५ । विशेष--एक प्रति और है। ५५४. नेमियाहलो-हीरा ! पत्र संख्या-११ । साज-१३४४ इञ्च 1 भाषा-हन्दी । विषय-कमा । रचना काल-सं० १८४८ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन न. ११५० । विशेषद ... नेमिना लिलाट की घटना का विस्तृत वर्णन है-परिचय निम्न प्रकार हैसाल अठारास परमाया, ता पर अडतालीस वखाण | पोष कृष्णा पाच तिषि प्राणि, पारनहस्पति मन में प्राग्य 10 || खुदी को बै महा मुशान, ती मैं नेम जिनालय जान । ती मध्ये पाहत बर माग, रहै कवीश्वर उपमा गाय ॥२॥ ताको नाउ जिनण की सास, महा विचक्षण रहत उदास । सखि हीरो ताको नाम, ती कस्या नेम गुण गान॥२॥ इति श्री नेमि व्याहतो संपूर्ण । लिखत-चम्पाराम । छन्द संख्या ८२ है। पत्र ५ से धागे बीनती समझाय, रतन साकत, शानचीपउसझाय, माणकचन्द फत, धूलेट के ऋषम देव का पद-तथा पेमराज कृत राजुल पचीपी-और है। ५५५. नेमिनाथ के दश भव ...... ...| पत्र संख्या-४ । साइज-१०६x४६ इन्न । भाषा-हिन्दी । विषय-कपा । रचना काल-X । लेसन काल-सं० १E७४ । पूर्ण । बेष्टन नं. ५७५ । ५५६. पुण्याप्रवकथाकोष-दौलतराम | पत्र संख्या-२१६ ! साज-११४५३ इन्च । भाषा-हिन्दी। विषय-या । रचना काल-सं०१७७७ मादवा बुदी । लेखन काल-सं. १८EF | पूर्ण । वेष्टन २०१३ | विशेष-लोक संख्या ८००० है । मंच महात्मा हरदेव लेखक से लिया था। ४ प्रतियां और है । ४५. पुरन्दर चौपई - प्र. मालदेव । पत्र संख्या-१४ । सारज-exईच । माषा-हिन्दी । विषयकथा | रचना काल-x | लेखन काल-x 1 पूर्ण । वेष्टन • E1 । विशेष अन्तिम पद्य-सौल बडी सवि थम मै प्रतं पाली है। अनुस्व कोठ प्रधान | सी. तनागरी कछु पाईये 1 चिंता रतन समान | सी० ॥ ३ ॥ माव देव सूरी गुण नीलो । अ० ट ग कमल दिगणंद || सी तासु सीस इम कहा । 1 मालदेव याद । सी०७४| श्रगर्या मील तो जे कयो। म अनुमोदीजै तेय । सी० बो विरुद्ध किंपी करो न । मोका दुक्कड वेय । सी० ॥७॥ ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा एवं रासा साहित्य ] [ ८५ ५५. राजाच की चौप .........|पप संख्या ५१४१५ म भाषा - हिन्दी विषय-कथा रचना काल- लेखन काल सं० १८१२ व १२ पूष्टनं० १६८ - विशेष प्रारम्भ के पत्र नहीं है। पत्र ३५ से फुटकर पद्म हैं। | पत्र संख्या- साहज ६५ भाषा-हिन्दी विषयपूर्ण नेष्टन ०२३६ । नहीं है। ५६०. व्रतकथाको भाषा- खुशालचन्द पत्र संस्था १० साइज १२६ हिन्दी (पथ) विषय कथा रचना काल सं० २०८३ । लेखन काल-पूष्ट ४२ ५२६. राजुजपचीसी रचनाकाल X लेख - विशेष से आगे ******** विशेष – निम्न कमायें है। (१) जेष्ठ जिनवरवतकथा (२) श्रादित्यवारवतया (३) सप्तपरमस्थान व्रतकथा (४) मुकुट सम (५) श्रनिधित्रता () () चन्दनपष्तकमा () सन्धिविधानव्रत कथा (१०) पुरन्दर कथा (११) दशलवगवतकथा (१२) पुष्पाजलित कथा (१३) आकाशपंचमीमत कश्या (३४ । मुकावलीत कथा (१५) निर्दोष सप्तमीव्रतकथा (१६) सुगंधदशमीत्रत कथा | ५६१. रोहिणी कथा रचना काल -X | लेखन काल -x | पूयं । वेष्टन नं० ५६२. बैताल पचीसी विषय - कथा । रचना काल -X लेखन काल -X | पूर्ण । वेवन न० ९७५ । ****.. ५६३. शनिश्चरदेव की कथा" विषय-क्या । रचना काल-लेखन इश्च । भाषा 1 पत्र संख्या-6 | साइज - ५६४५ इव | भाषा-संस्कृत विषय कथा | १०५१ | पत्र संख्या ६-६२ साइज - ७६ इन्च भाषा - हिन्दी (गथ) । विशेष—स्था जीर्ण है। आदि तथा अन्तिम पाठ नहीं है। टीपा का प्रारम्भ निम्न प्रकार है । श्री वारता लि। तब राजा वीर विवादीत फेरि जाये सीस्थी के रुख जाये चढ़वी पर अत ने उतारि परि से नयी | तब राह में अक्षम बेताल पोम्यो || हे रामा रात्रि को समी राह दुरि । पैव कटे ही ॥ उषा भारता यह कटे सोयेक कथा कहूँ छू ॥ तु सुपि ॥ स्व .........| पत्र संख्या - १३ | साह-- ६x४ ०१०५२ माघ सुदी २ पूर्ण वेष्टन नं० २०३८ । विशेष सेवाराम के पठवार्य नन्दलाल ने प्रतिप करवाई थी। | भाषा - हिन्दी | ५६४. शीलकथा - भारामल्ल । | पत्र संख्या ३३ | साइज - ७२६ । भाषा - हिन्दी (पथ) | विषय - लेखन काल १६०५ पूर्ण वेष्टन नं० ६०० | रचना का Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ] [कथा एवं रासा साहित्य विशेष-सं. १८८६ की प्रति की नकल है । कापी साइज है । यो प्रति और हैं । ५६५. शीलतरंगिनीकथा-अखैराम लुहादिया। पत्र संख्या-८२ | साज-EX६३ इञ्च । भाषाहिन्दी (पद्य) । विषय-कथा । रचना काल-। लेखन काल-सं. १८२५ माघ पुदी ५ । पूर्ण । वेष्टन न. ६. ! विशेष-भारतराम मंगवाल ने प्रति लिपि की भी । ५६६. सप्तपरमस्थान विधान कथा-श्रुतसागर | पत्र संख्या-६ । साहज-१२x६ च । भाषासंस्कृत । विषय-फया । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८३० वैशाख मुदी ८ । पूर्ण । बेष्टन नं: १८ । विशेष-६० गुलाबचन्द ने प्रतिलिपि की । संस्कृत में कठिन शब्दों के अर्थ भी हैं। एक प्रति और है । १६७. सप्तव्यसन कथा-श्रा सोमकीति । पत्र संख्या-७१ | साइज-१०:४४३ च । माषासंत । विषय-कथा । रचना काल-सं०१५२६ माघ सुदी १ । लेखन काल-सं० १७८१ । पूर्ण । वेष्टन न. १६७ । ५८. सम्यक्त्वकौमुषी-मुनिधर्मकीर्ति । पत्र संख्या-१२ से ६.२ । साइन-११४५ च | भाषासंस्कृत । विषय-कथा । रचनाकाल-X । लेखन काल. सं० १६०३ श्रावण मुदी ५ । अपूर्ण 1 बेष्टन नं० १३६ । विशेष-किशनदास अग्रवाल ने प्रतिलिपि कराई थी । शंकरदास ने प्रतिलिपि की थी। ५६६. सम्यक्त्वकौमुदो कथा भाषा.........."| पत्र संख्या-४ । साइन-१x६३ च । माषाहिन्दी (पद्य) । विषय-कया । रचना काल-X । लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं. ५८३ | विशेष-४० से अागे पत्र नहीं है। ५७०. सम्यक्त्वकौमुदी कथा-जोधराज गोदीका । पत्र संख्या-५६ । साइज-१०४६ हम । भाषाहिन्दी (पथ) । विषय-कथा । रचना काल-सं० १७२४ फाल्गुन चुदी १३ । लेखन काल-सं० १८३० कार्तिक खुदी १३।। पूर्ण । बेटन न.५२ विशेष-हरीसिंह टोंग्या ने चन्द्रावतों के रामपुरा में प्रति लपि की 1 एक प्रति और है । ५७१. सभ्यग्दर्शन के आठ अंगों को कथा........ "| पत्र संख्या-। साइज-१०४४४ इच। भाषा-संस्कृत । विषय-कया । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । श्रेष्टन नं० २८० | ५७२. सुगन्धदशमीत्रत कथा-नयनानंद | पत्र संख्या-८ । साइम-१०x४१ इञ्च । भाषाअपनश | विषय-कया । रचना काल-४ लेखन कारल-सं० १५२४ मादवा बुदी मादित्वार । पूर्ण । वेष्टन नं. ५८१ । RAMMART विशेष—इति सुगंधदशमो दुजिय संधि समाप्ता । ५७३. सिद्धचक्रव्रत कथा-नथमल। पत्र संख्या-११। साइज-१२४७ इच | माषा-हिन्दी। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याकरण शास्त्र] [ ८७ विषय-कथा । रचना काल-x1लेखन काल-x| पूर्ण । वेटन नं. ५२१ । ५७४. हनुमंत कथा-व० रायमल्ल । पत्र मंगव्या-७१ | साइज-११४४३ इंच | भाषा-हिन्दी। विषय-कथा । रचना काल-सं० १६१६ । लेखन काल-x i पूर्ण । वेष्टन नं० ६० | विशेष-२ प्रतियां और है। विषय-व्याकरण शास्त्र ५७५. जैनेन्द्र व्याकरण-देवनन्दि । पत्र संख्या-४६५ | साज-११४५१ इ । माषा-संस्कृत । विषय-व्याकरण । रचना काल-X । लेखन काल-४ । अपूर्ण । बेटन नं० २०८ । विशेष-प्रथम पत्र नहीं है । प्रारम्भ के ३० पत्र जीर्य है । एक प्रति और है वह भी अपूर्ण है । ५७६, प्रक्रियारूपायली-पं० रामरत्न शर्मा। पत्र संख्या-८६ | साज--१९x४३ इन्च | माषासंस्कृत । विषय- व्याकरण । रचनाकाल-X । लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं० १६ | ५७७. महीभट्टी-भट्टी। पत्र संख्या--२ से २८ | साइज-१०x४१ इन्च । माषा-संस्कृत । विषयव्याकरण । रचना काल-x | लेखन काल-- अपूर्ण । वेष्टन नं० ७०० । ५७८. शब्दरूपावली .........."! पत्र संख्या-५१. साहज-३४४ इश्च | माषा-संस्कृत । विषयव्याकरण । रचना काल-४ । लेखन कास-। अपूर्ण । वेष्टन नं. ७.४ । १७. सारस्वतप्रक्रिया--अनुभूति स्वरूपाचार्य। पत्र संख्या-४६ 1 साइज-१.६४५ इञ्च | भाषासंहा । विषय-व्याकरणाचना काल-x| लेखन काल-सं. १९ वेष्टन नं. ०३। विशेष- एक प्रति और है। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-कोश एवं छन्द शास्त्र ५८०. अमरकोश--अमरसिंह । पत्र संख्या-२५ | साइज-११४५ पथ | भाषा-संस्कृत विश्यकोष । रचना काल-x। लेखन काल-x | अपूर्ण | बेटन नं. १३४ । | भाषा-संस्कृत | ५८१. एकाक्षर नाममाला-सुधाकलश । पत्र संख्या-४८ | साइज-११xt विषय-कोष । रचना काल-x1 लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. १५६ । ५६२, छन्दरत्नावली-हरिराम । पत्र संख्या-२६ साइज-६१४५ इन्न । भाषा-हिन्दी 1 विषयछन्द शास्त्र 1 रचना काल-सं० १७०८ | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० १११ । विशेष—पृष्ठ २११ पध हैंअंतिम-अप हंद स्नावली सारथ याको नाम । भूतन भरती ते मयों कहै दाश हरिराम ॥२५१ इति श्री चंद रत्नावली संपूर्ण । रागनभनिधीचंद कर सो समत सुमजानि । फागुण बुदी त्रयोदशी मालिखी सो जानि ॥ ५८३. छन्दशतक-कवि वृन्दावन । पत्र संख्या-३१३ साइज-xxs इन | भाषा-हिन्दी । विषयछन्द शास्त्र । रचना काल-सं० १८४ माघ दी २ | लेखन काल-४ । पूर्ण | बेष्टन नं. ०३ | ५८४. नाममाला-धनंजय । पत्र संख्या-१६ | साज-१.४४ इन्च | भाषा-संस्कृत । विषय-कोष । रचना काल-XI लेखन काल-० १८३१ त बुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं. १७ ॥ विशेष-स्त्रीवसिंह के शिष्य खुशालचन्द्र के पठनार्थ प्रतिलिपि हुई थी। ५५५. रूपदीपपिंगल-जैकृष्ण । पत्र संख्या-१० | साइज-१०x. इ । माषा-हिन्दी 1 विषावन्दशास्त्र । रचना काल-सं० १७७६ भादवा सुदी २ । लेखन काल-x। पूर्ण | वेष्टन न. ५७३ । विशेषचन का आदि अन्त माग निम्न प्रकार हैप्रारम--सारद माता तुम बी बुधि देहि दर हाल । पिगंल की वाया लिये वरन् आवन घाल ॥२॥ गुरु गणेश के चरण गहि हिय धारके विष्णु । कंवर भवानीदास का जुगत करें जै किवा ॥२॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक] सप दीप परगट करू. भाषा बुद्धि समान | बालक यू. मुख होत हैं उपजे अक्षर ज्ञान ॥३॥ प्राकृत की बानी कडिन भाषा सुगम प्रतिक्ष । कृपाराम की कृपा सू कंठ करै सन शिन्य [1] पिगंल सागर सम को बैदा भेद अपार । लघु दीरघ गण गण का परन् बुद्धि विचार ||५|| दोहा-गुण चतुराई इधि है मला कहै सब कोइ । रूप दीप हिरदै धरै सो बार कवि होय । सोला-निज पुहकरग्य न्यात तिस में गोत कटारिया । मुनि प्राकृत सी बात से ही भाषा करी ॥ दोहा- पापा भरती चाले सत्र, जैसा उपजी भुद्धि । भूल भेद जाको कयो, को कबीश्वर सुद्ध । संवत सत्रही बरसे और छहत्तर पाय । मादों सुदी दुतिया गुरू मयो मथ मुसदार ॥५६॥ ॥ इति रूपदीप पिगंल समाप्त || ५८६. श्रुतबोध-कालिदास । पत्र संख्या-५ | साज-६४५३ रन । भाषा-संस्कृत । विषय-छन्द शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८ = | पूर्ण । श्रेष्टन नं. १०१ विषय-नाटक ५७. ज्ञानसूर्योदय नाटक-वादिचन्द्रसूरि । पत्र संख्या-१ । साइज-११४४३ इञ्च । माषासंस्कृत | विषय-नाटक | रचना कास-सं० १६४८ माघ मुदी - । लेखन काल-सं० १६८८ जेष्ठ सही। पूर्ण 1 वेष्टन म.१६५। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०] [ नाटक विशेष - मधूक नगर में प्रथ रचना हुई । जोशी राधी ने मौजमाबाद में प्रति लिपि की । ५८८. सान सूर्योदय नाटक भाषा-पारसदास निगोत्या । पत्र संख्या-४ | साइज१०x इश्च ।। भाषा-हिन्दी । विषय-नाटक | रचना काल-सं० १६१७ । लेखन काल-सं० १६३६ । पूर्व | वेष्टन ने ४०२ । ५८. प्रबोधचन्द्रोदय-मल्ल काव । पत्र संख्या-२५ । साइज-८४६ 1 भाषा-हिन्दी । विषय-नाटक रचना काल-सं० १६०१ । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं. ८६ | विशेष-इस नाटक में ६ अंक है तमा मोह विवेक युद्ध कराया गया है। अन्त में विवेक की जीत है। बनारसीदास जी के मोह विवेक युद्ध के समान है । रचना का यादि सन्त माग इस प्रकार है प्रारंभिक पाठ-अमिनंदन परमारय कीयो, श्रम है गलित ज्ञान रस पीयो। नारिक नागर चित मैं बस्यौं, ताहि देख तन मन हुलस्यौ ।।१।। कृष्ण भट्ट करता है जहाँ, गंगा सागर मेटे तहाँ । अनुभं को घर जाने सोइ, ता सम नाहि विवेकी कोई ॥२॥ तिन प्रबोधचन्द्रोदय कीयो, जानौ दीपक हाम ले दीयो । र हवा खाद, कायर भी कर प्रतिवाद. ||३|| इन्द्री उदर परागन होप, कबव पै नहीं रीझी सोइ । पंच तत्त्र प्रवर्गात मन धारयो, तिहि माष:नाटिक विस्तारयो ॥४॥ काम उवाच-जो रवि तु बूझति है मोहि, ब्यौरी समै सुनाऊ तोहि । वै बिमात भैया है मेरे, ते सत्र सुजन लागै तेरे ।। पिता एक माता हूँ गाऊँ, यह म्योरी प्रामे समझाऊं। ज्यो राधी अरु लंकपति राक, यो हुम ऊन भयो जुध को घाऊ ।। विवेक श्री विवेक सैन्याह कराई, महाबली मनि कही न जाई । न्याय शास्त्र बेगि मुलाया, तासी कहीबसीठ पठायौ ॥ तव बह गयो मोह के पासा, बोलन लागै बचन उदासा । मथुरादासनि रति जो कीजै, माग ते विरला सो जीजै । राह विवेक कही समझाई, ए व्यौहार तुम छोटो माई । तीरथ नदी देहुरे जेते, महापुरुष के विरद ते ते ॥ या र तुम न सतावी काही, पश्चिम खुरासान को जाही। न्याय विचार कही यो बाता, यतिसै क्रोध न अंग समाता || Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक ] अंतिम पाटपुरुष उवाच-तब थाकास भयो कारा, और सभै मिटि गयौ विधारा । पुरुष प्रकट परमेश्वर शाहि, तिसी त्रिचेक जानियो ताहि || भव प्रभु मयो मोवि तन धरिया, चन्द्र प्रबोध उदै तब करीया । सुमति विवेकर सरधा साति, काम देव कारन की काति ।। इनकी कृपा प्रसभ मन मुत्रो, जोहो प्रादि सोह फिरि हुवो । विष्णु मक्ति तेरे पर सारा, कृत कत भयो मिल्यो अनुवारा ।। अब तिह संग रहेगो एही, हौं भयो ब्रह्म विसरीयो देही । विष्णु मति तु पहुँची भाइ, कीयो धनंद जु सदा सहाइ ।। अरु चिरकाल के मनोरथ पूजे, गयो शत्रु साल है दूजे । जो निरवत्ति बासमा होड, तातें प्यारा औरन कोई ॥ भई त राज अभैम पदलयो, प्रचित चिंतवत अचित भयो । जा सिर उपर सनक सनंदा, अम वासिष्ठ बेदै ताहि वंदा । कृष्ण भट्ट सोइ रस गया, मथुरादासे सारु सोई वाता ।। चंदे गुरु गोविदं के पाइ, मति उनमान कमा सो गाइ । इति श्री मालकवि विश्चिते प्रबोधचन्द्रोदय नाटके पटमा अंक समाप्त । ५६०. मदनपराजय भाषा-स्वरूपचन्द बिलाला। पत्र संख्या-६६। साइन-११४७, ५ 1 भाषा-हिन्दी । विषय-नाटक | चना काल-सं० १६१८ मंगसिर सुदी ७ । लेखन काल-सं. १६१८ 1 अषाढ मुदो ५ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४७१। चिशेष-संवत शत उगग्गीस अरु अधिक अठास माहि | मार्गशीर्ष सुदी सप्तमी दोतवार सुखदाहि ॥ तादिन यह पूरण कायो देश वनिका मांहि । सकल संघ मंगल को ऋद्वि वृद्धि मुख दाय ।। इति मदनपराजय प्रभ की नचनिका संपूर्ण । सं० १६१५ का मिती प्रसाद सुदी ७ शुकवार संपूर्ण । लेखन काल संभवतः सही नहीं है। ] भाषा-संस्कत । ५६१. भदनपराजय नाटक-जिनदेव । पत्र संख्या-४१ । साइज-१२:४ विषय-नाटक ! रचना काल-४ लेखन काल-सं० १७८१ | माह सुदी १३ । पूर्ण । येष्टन नं० २५ | विशेष-सवा नगर में प्राचार्य सानोति तथा पं० त्रिलोकचन्द्र ने मिलकर प्रतिलिपि की । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] [लोक विज्ञान ५१२. मोहविवेक युद्ध-बनारसीदास । पत्र संख्या- । साइज-१०४५ १४च । भाषा-हिन्दी । विषय-नाटक । रचना काल- लेखन काल-x। पूर्वा । वेष्टन नं. ८७२ | विषय-लोक विज्ञान ५६३. अकृत्रिम चैत्यालयों की रचना.......} पत्र संख्या-१ । सारज-११४७ इभ । भाषाहिन्दी । विषय-लोक विज्ञान । रचना काल-। लेखन काल-x 1 पूर्ण । वेष्टम नं. ४६६ ! ५६४. त्रिलोकसार बंध चौपई-सुमतिकीति । पत्र संख्या-१० । साइज-१०३४५६ इश्व | भाषाहिन्दी । विषय-लोक विज्ञान | रचना काल-X । सेखन काल-स. १८१३ । पूर्ण । श्रेष्टन नं. ८००। विशेषअंतिम - प्रतीत प्रभागत वर्तमान, सिड बनता गुणना धाम । मावे भगति समझ सदा, समति कीरति कहति अभतरु कदा ॥३०॥ मूलसंघ गुरु लक्ष्मीचंद मुनीदत्त सपाटि भीरजचंद । मुनिन्द ज्ञानभूषण तस पाठि चंग प्रभाचन्द मंदो मजरंगि ॥३॥ सुमति कौरति सूरि घर कहिसार त्रैलोक्य सार धर्म म्यान विचार । जे भणि गणि ते मुखिया चाय एयशा रूपधरी मुगति जाय ॥३४॥ ५६५. त्रिलोक वर्पण कथा-खासेन । पत्र संख्या-२१८ । साइब-x६ इश्व । भाषा-हिन्दी । (१) । विषय-लोक विमान । रचना काल-स. १७१३ । लेखन काल-सं० २८२३ । पूर्ण । वेष्टन नं. ३७४ | विशेष – यह प्रति संवत् १७३६ की प्रति से लिपि की गई है। ५६६. त्रिलोकसार-आचार्य नेमिचन्द्र । पत्र संख्या-१८७ । साइम-१.४५ ६५ । माषाप्राकृत । विषय-शोक विज्ञान ! रचना काल-X । लेखन काल-० १६४६ | पूर्ण । वेष्टन नं० १०२ । विशेष-टीकाकार माधवचन्द्र औषिधाचार्य है । जयपुर में प्रतिलिपि हुई । एक प्रति और है। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छोष विज्ञान ] २६७. त्रिलोकसार भाषा विषय-लोक विज्ञान | चमक लेखन ४६८. त्रिलोकसार भाषा विज्ञान रचनाकाल १८४१ बुदी १२ पूर्व बेननं० ७८१ [ ६३ पत्र संख्या २ से १२x भाषा हिन्दी -X पूर्व नं० - उत्तमचन्द १२२५१४६ भाषा हिन्दी विशेष -- दीवान श्योजीरामजी की प्रेखा से अंथ रचना की गयी थी जैसा कि ग्रन्थकर्ता ने लिखा है— अंतिम दोहा-सब प्रष्टादश सत इतालीस अधिकानि | ज्येष्ठ पत्र द्वाद्वशी रविवारे परमानि ॥ त्रिलोकसार भाषा लिख्यो उतिमचन्द विचारि । मूल्यो होऊं तो कछु लीन्यो कवि सुधारि ॥ दीवा श्योजीराम यह कियो हृदय में ज्ञान । पुन्तर लिखाय श्रवणा सुग्गु राम्रो निस दिन ध्यान || ॥ इति ॥ ६००. लोक विज्ञान | रचनाकाल गद्य- प्रथम पत्र ---"तहा कहिए है । मेरा शान स्वभाव है सो शानावर के निमित्त ते हीन होय मति स वय रूप गया हैं तहा मति ज्ञान करि शास्त्र के अक्षरनि का जानना भया। बहुरि श्रुतज्ञान की अक्षर अर्थ के त्राम्य वाचक सम्बन्ध हैं | ताका स्मरणतै तिनके अर्थ का जानना भया । बहुरि मोह के उदयतें मेरे उपाधिक भाव रागादिक वाइये हैं ***| ५६६ प्रेलोक्यदर्पण पत्र संख्या २१-११६५६ भाषा-संर पूर्ण वेष्टनं ६७८ ॥ विषय- लोक विज्ञान | रचनाकाल -X लेखन काल-X विशेष मीच २ में पित्रों के छोटी हुई है। त्रैलोक्यदीपक - बामदेव | पत्र संख्या-8 साइन- ११४५ इथ । साषा-संस्कृत | विषय - लेखन का सं० ११२ माघ खुदी ५ पूर्ण वेष्टन १०० विशेष-१० खुशालचन्द्र ने लालसोट में प्रतिलिपि को ६०१. प्रत न० २ पत्र संख्या ६५ सहज १९४५ च लेखन काल- १०६ वाट दी | पूर्ण वेष्टन नं. १०१। विशेष - पत्र [सं० २७ तक नवीन पत्र है इससे आगे प्राचीन पत्र है । प्रशस्ति निम्न प्रकार है I स्वस्ति [सं०] १५१६ वर्षे घाषाद खुदी भौमवासरे ॐ शुभ स्थाने शाकभूपति प्रजाप्रतिपालक सम सान विजय राज्ये ॥ श्रमूलान्वये बलात्कार सरस्वती गच्धे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० पद्मनंद देवास्तपट्टम० श्री शुभ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ } [सुभाषित एवं नीति शास्त्र चन्द्र देवास्तन पट्टालंकार पटतकचूडामणि भट्टारक श्री जिन चन्द्रदेवारतत् शिष्य मुनि सहयकार्तिः तशि . तिहुणा सडेलवाला बये टिट गोत्रे से मरना भायं माहुस्तत्युत्र सं. भारयोरेख संघवी पदमानंद भ्राता रहाण्यः सं० पदमा भार्या पा श्रीः पुत्राः गया हेमा, गूजर, महिराज । कल्हा मार्श जाजी पुत्र धोराज प्तपाल एत पंचमी यापन निमिदं त्रैलोक्यदी। नामा कमक्षय निमित्त सरुवे प्रदत्तं । विषय-सुभाषित एवं नीति शास्त्र ६०२. उपदेशशतक-बनारसीदास । पत्र संख्या-२५ । साइज-८४४: । मात्रा-हिन्दी | विषयसमावित । रचना काल----X । लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. ५५३ । ६०३. गुलालपच्चीसी-ब्रह्म गुलाल | पत्र संख्या-४ । साइज-१०x४ रह ] भाषा-हिन्दी । विषयसुभाषित । रचना काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ५७४ । ६०४. जनशनक-भूघरदास । पत्र संस्था : साज-१४४ । माषा-हिन्दी । विषय-- प्रभाषित । रचना काल-० १७८१ । पौष बुदौ १३ लेखन काल-सं० १५.१४ । पूर्ण । वेष्टन में. ५११ । विशेष-उत्तमचन्द्र पुशरफ की मार्या ने चटाय।। ६०५. नन्दयत्तीसो--मुनि विमन कीर्ति । पत्र संख्या-११ बाइज-१०x४, इव । मापा-हिन्दी। पथ) । विषय-नीति शास्त्र । रचना काल-सं० १७० । लेखन काल-सं. १७५० | पूर्ण । वेष्टन नं० ३१२ । विशेष-२२ लाक तमा १०१ पद्य हैं। ६०६ नीतिशतक - चाणक्य । पत्र संख्या-२१ । साइज-६x६ | भाषा संस्कृत । विषय-नीति शास्त्र रकना काल-x.। लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन न० ११३० । ६०७. बुधजन सतसई-बुधजन । पत्र संख्या-11 | साज-६x६ । माषा-हिन्दी । विषय-- सुमाषित । रचना काल-x। लेखन काल-x | य । वेष्टन नं.१४३ । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभाषित एवं नीति शास्त्र | ९०. भावना पनि मति ! चना काल - X लेखन काल -X | सूर्यो | न न० ११३६ । विशेष – हेमराज ने प्रतिलिपि की थी ६०६. रेखताबज़ीराम पत्र रचनाकाल । लेखन काल -x पूर्ण वैप्टन नं० ११४२ । विशेष—स्फुट रचनाएँ हैं। ६१० सद्भाषितावली भाषा | पत्र संख्या २० | साइज - १२३४४६ इस माषा - हिन्दी | विषय - सुभाषित | रचनाकाल - ४ । लेखन काल -X | पूर्णं । वेष्टन नं ०७०६ । हैोधित है। पथ संख्या २०५ है अंग के मूल कर्ता [भ] [सकोर्त्ति हैं । मात्रा-हिन्दी (पथ) [ २५ पत्र संख्या ३ लाइ १३४ भाषा-हिन्दी (पद्य) विषय विश्यमादित रचना - ६११. सुबुद्धिप्रकाश - थानसिंह पत्र संख्या - १४८१३६३६ ०१४७ कण कुदा ६ जेसन काल-X पूर्ण टन नं० २० । रचना का आदि अन्त में. गनिम्न प्रकार है + - साम्य भाषा - हिन्दी विषय भारत । प्रारम्भ केवल ज्ञानानंद जय पासी पूज्य अरहंत समोरच लक्ष्मी सहित राजे नमूं महंत ॥ २ ॥ कर्म भरि निट कर अष्ट महागुण पाए । सिष्टि भरा नहीं सिद्ध पद बाय ॥२॥ पंचसार आचार मुस्लि गुण छत्तीस निवास । सिसा दिशा देत हैं श्राचारज शिव वास ॥३॥ अन्तिम पाठ - श्रीमति सांति नाथ जी सालि करी निति श्राप | विचन हरी मंगल करो तुम के बाप ॥१०३ सांति मुद्रास्रांति जिस करितीहि । पूवमा सी प्रेम कुसल कर मीहि ॥१०४॥ देस प्रजा भूपति सकल ईत मीत कर दूर सुख संपत्ति धन धान जस किया भाव रख पूर ||३०६ ।। फागुन वदि षष्टी सुगुर ठारासत सैताल पूर अँथमुखांति रोख विषै किय गुनमाल ॥ ६०६ ॥ परियनिसांच करती चरना सार मन किसी तिनकी भी बहार ||६| - Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ [ सुभाषिन एवं नीति शास्त्र इति श्री सद्धि प्रकास भाषा बध जिनसेवक पानसिंह विचित संपूर्ण । कवि अवस्था वर्णन-मरत क्षेत्र में देस ढूढारि । तामै बन उपवागि रसाल || नदी बाबडी कुप तडाग । ताकौ देखत उपजै राग ॥ कुकुट हि बैठे लिहि अम । यो समवर्ती तामै गाम ।। धन फन गोधन पूरत लोग । तपसी चौमासे दे जोग ।। ता मधि यंदावति पुरसार । चौगिरदा पत्रित अधिकार ॥ बस्ती तल उपरि साँघनी । ज्यो दाडिम वोजन है वनी ॥ ताकी जैसिंघ नामा भूए । सूरज वंस वि र अनुप । न्यायवंत वुधित विसाल । परजापालक दीन दयाल । दाता सूर तेज जिम मान । ससि अहला दीज्यों जसरवानि ।। हय गय रथ सिवकादि अपार । भ्रत मंत्री प्रोहित परिवार ।। हदि सौ विभौ कुबेर मंडार । बंदु समूह तियाँ बहुवार । पंदत कवि माटादि विसैख । पट दरमन सबही को भेष ।। अपने अपनै धर्म मचखै । कोऊ का नहीं मिले ॥४॥ पणि सिव धर्मी भूपति जान । मंत्री जैनी पुखि अधिकाहि ।। जैनी मिव के धाम उतुंग । सिखर धुजा बुत कलस सुचंग || राग दोष श्रापस मैं नाहि । सवक प्रीति मात्र अधिकाहि ।। सन हो भूपन मैं सिरदार । छत्रपती चलि इन अनुसार ॥ दुतिय पुरी सांगावति जानि । दक्षिण दिसि षट कोस प्रमान ।। पुरी तले सरिता मनुहार । नाम पुरसती सुध अलधार ॥४४ | नगर लोक धनधान अपार । विविध माति करि है व्योहार ॥ ऊचे सिखर कत्लस भुज जहाँ । पन जैन मन्दिर हैं तहाँ ।। धर्म दया सञ्जन गुन सीन । जैनी वहौरा व परवीन ॥ वंस वण्डेलवाल मम गोत । लोल्या बहु परिवारी गीत ॥ यारौ वास हमारौ सही । हेमराज दाद! मम कही ।। पुनि धनुसारि सकल घर मध्य । सामग्री भी सब रिद्धि ।। दोहा-बडौ मलूक सूचंद छत, दृजौ मोहन राम । लूगाकर्ण तीजी कयौ चौथौ साहिब राम ॥ सबके मुत पुत्री धना मोहन राम मुतात । मेरौ जन्म संगावति मांहि भयौ अवदात ।। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभापित एवं मोति शास्त्र ] अबादति सागाति नगर बीच जै भूप । प्राप बसायौ चाहि करि जैपुर नाम अन्य ॥ सूत बंध सबद्री किंपे हार सुघर बाजार । मिदा कोटि सुकांगरे दरवाने अधिकार ।। सतम्भौ जु बनाइयो, अपने रहनै फाज । बिंब महल बना करी, धाग ताल महाराज । साहूकार वुलाइया लेख भेज बहु स । हासिल बाँध्यौ न्याय जुत लोम अधिक नहि लेस । सुखी भये सरही जहां अधिक चल्ली व्यौपार । सांगावती श्रांवावती उजरी तब निरधार ॥१४॥ आय बस जैपुर विगै कीन्है घर अरू हाटि । निज पुनि के अनुसार ते सुनित भयौ सब साठ ॥१५॥ घोडश संवत्सर मयो सब हो की मुख भात । , सिंह लोकतिर गयौ पिछली सनि अब मात ॥ सब ईसुर मुख भूपती ईसर सिद्ध सु नाम । अति उदार पाबम बदौ सब ही कौ धाराम ।। गायत सबही मुखी इद मूल का ना है । काहू' को दोन्है नहीं चुगलाचार न रहाय ॥ काल दोष ते नाच जन समराखि वछत्रारि । तीन वग्यं के ऊंच जन सिनको मानधराय ।। आप हठी काह सनी मामी नाहीं मात । पिछले मंत्र भकी जिके किया भूप को घात || डिल- दस्त्रिया लियो बुलाय गांद बाहिर रहे । मिल के जहि दिवान दाम देने कहे || लघु भ्राता माधव कु वेगि मिलाय के। लेख भेजियो राज करो तुम श्राय के ।। माधव यागे सित्र धरमी मुखियौ भयो । जैन्यासौं करि द्रोह बैंच में ले लियो । देव धर्म गुरु श्रुत को विनर विगारियो । कीयो नाहि विचारि पाप विस्तारियौ ।। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ ] बोहा सार अहिल----- सोरठा - भूप अरथ समभयो नहीं मंत्री के वसि होय । दंड सहर मैं नाखियौ दुखी मये सब लोग || fafe मोति वन घटि गयौं पायौं बहुत कलेस | दुखी होय पुर को तो तब ताकौ पर देस ॥ मध्यपुर में बाय कछ काल बैठे रहे । पुनि जयपुर में जाय विराज गणि रहयो करें ॥ माधव दरवार विराज कियौं सुख सौ रहे । मै इनिचित धारि माधो की जी वारता ॥ ६५ ॥ दुखी रोग धन हीन होय परगति गयी। सुपुत्र पृथ्वी हर राजा पद भयो । इंग्या करि लघु वृतति च लैगयौ । अनुजरात्र परतापसिंघ पी मय ॥ शिवमत जनमत देवधन विप्र तिथि जो कोय । महया कियौ वसि लोग ते भाप पुण्य नहिं जोय | ई अन्याय के जोग तो दुख को हम नोय । उदास पुर छाँडियो मुख इन्या उर होय || जादौ स विसाल नगर करोरी को मही । नाम सूप गोपाल, क्विज हमारों को सदा ॥ पीछे तुरकमपाल बैक्यों वास करो। राख्यौ मान विमाल, हाट घट उद्यमकियों मानिकपाल नरेस तुझ्समपाल सुपद सर्यो । मंद कषाय महेस, राम दोस मध्य रत है | जाके शत्रु न कोय, सबसौं मिलि राज करें F रेत खुसी छु जोय, भिरता पाते इन करी ॥ पिता र हहि थान, हम जैपुर में ही रहे । लघु भ्राता सत जानि दिन व्योपार कियो घन ॥ नैन ख है नाम, नानिग राम तलुज हैं। बहु स्यानो अभिराम, राजदुबार में प्रगट हैं । गल्यांतर मैं तारा, गयौं जुटीको करण कौ । [ सुभाषित एवं नीति शास्त्र Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्ति एवं नीति शास्त्र | लाये तव ते भात, दहा रहे विरता को || देवल साघरमी जहाँ पूजा धर्म मान । पारसन खान सपान की, थिति संगति विद्वान ।। असी अंकथा रूप जो कीजे सुधि प्रकास । माषामय घर बहु रहसि रहैसि यामैं मासि ॥७॥ मैना को लघु भात, नाम गुलाब सु नाम को। श्रत मुनि के हरपात, सुधि दैन को श्रुत स्थ्यौ ।। ६१२. सुभाषित ....... | पत्र संख्या-६ | साइज-४५ च । विषय- सुभाषित । रचना काल-x। क्षन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं. ११५४ । ६५३. सुभाषितरत्नालि-भ. सकजकीर्ति । पत्र संख्या-१८ । साइज-१०x४३ इछ । माषासंस्कृत | विषय- सुमाषित । रचनाकाल-x लेखन काल सं० १९८० सास सुदी १ । पूणे । श्रेष्टन मं० १ । बीच २ में नये पत्र मी लगे हैं। प्रशस्ति निम्न प्रकार है - विशेष-संवत् १५८० वर्षे वैसास्त्र मुदी । गुरौ श्री टोकानामध्ये राजाधिराजमुकुटमणिपूर्यसेनराज्ये श्री सोलंकी वंशे .... "श्री प्रभाचन्द्र देवा तामाये खंडेलवालान्वये वाकलीवाखगोत्रे साह नेमदास तस्य भार्या सिंगारदे तत्पुत्र पाखा सस्प मार्या ...... . . ." दुतिय पुत्र साह जैला तस्य भार्या गौरादे तत्पुन गिरराज | इदं शास्त्र लिखापितं नाई माता अनिमित्त । विशेष---सात प्रतियां और है । सभी प्रतियां प्राचीन हैं। ६१४. सुभाषितार्णव ..... ... ! १२ संख्या-4 से ४८ । साहज-११४५ इव। माषा-संस्कृत । विषय- सुभाषित । रचना काल-x | लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन न. ५० । विशेष – प्रति प्राचीन है। संस्कृत में संकेत भी दिये हुए हैं। पत्र २३ वा माद का लिखा हुआ है । ६१५. सुभाषितावलि भाषा............"। पत्र संख्या-७४ | साइज-६६४६३ च । भाषा-हिन्दी; विषय-मानित । सपनाकाल-X । लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन न० १०२४ । विशेष-६७ पधों की भाषा है अन्तिम पत्र नहीं है । प्रारम्भश्री सवार नमू वितलाय, गुरू समुरू निरनभ मुभाय । जिन बाणो भ्याउ निरकार, सदा सहाई मवि गग्य तार ||१|| Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] ग्रन्थ मात्रित जिन वरगायौ, ताकी अरथ कछु हक लगौ । निज वर हित कारण गुण खान, माखू भाषा सुखहु तुजान ॥ सीख एक सदगुरु की सर, सुवि धारौ निज चित्तमभारि | मनुषि जनम सुख कारण पाय, एसी क्रिया करहु मन लाय ॥२॥ - ६१६. सूक्तिमुक्ता (लो सोमप्रभसूरि । ११ संख्या - १४ | साइज - १४० ३ १ | भाषा-संस्कृत | विषय-समति । रचना काल -X | लेखन काल - X 1 पूर्ण 1 वेष्टन नं० ३०० १ विशेष - = प्रतियां और हैं । ६१७ सूक्ति संग्रह " सुभाषित । रचना काल -X | लेखन काल -X [ स्तोत्र । पत्र संख्या - २० - १९४५ च । माषा-संस्कृत । विषयचूर्ण | वेष्टन नं० १४५ ॥ विशेष - जैनेतर ग्रन्थों में से सूक्तियों का संग्रह है। ६१८. हितोपदेशयत्तीसी - बालचन्द पत्र संख्या- ३ | साह - १४४ इ मात्रा - हिन्दी | विषयसुभाषित | रचनाकाल -X | लेखन काल -X | पू । वेष्टन नं ० ५६३ । ६१६. अकलंक स्तोत्र स्तोत्र । रचना काल-->< | लेखन काल - ० विषय - स्तोत्र ....... | पत्र संख्या - ५ | साइज - ३४३ इ । माषा-संस्कृत विषय१६२६ | पूर्णं । वेष्टन नं०६५ । ६२० अलंकाष्टक भाषा - सदासुख कासलीवाल | पत्र संख्या- १६ । साइन- ११५ इम्च । भाषा - हिन्दी | विषय-रतीय रचना काल सं० १६१५ श्रावण सुदी २ | लेखन काल- सं १६२५ माघ बुदी ७ | पूर्ण वेष्टन नं० ५०५ ६२१. श्राराधना स्तवन-वाचक विनय सूरि । पत्र संख्या- ५ | साइज - १०६४३ इन्च । माषाहिन्दी | विषय-स्तोत्र । रचना काल - सं० १७२६ । लेखन काल -x | पूर्णं । वेष्टमनं० ६०४ | Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोन] विशेष-प्रन्य प्रशस्ति निम्न प्रकार है श्री विजयदेव मूरिंद पटथर, तीरप जग मा पणि जाग । तप गच्छपति श्री विजयप्रमसूरि मूरि तेज झगमगर ॥२॥ श्री हीर विजय सूरी सीस वाचक श्री कीर्तिविजय मर गुरु समो । तस सीस वाचक चिनय विणयह, धरयो जिन चोरीस मो ॥३॥ सइ सरर संवत् उगणसीय रही राते रन्दउ मास ए । विजय दसमी विजय कारया कोड' गुण अभ्यासए ॥४॥ नरभव अराधना सिद्धि साधन त लीला विलासए। निर्जरा हेत इठबन चिड नामइ पुण्य प्रकासए ॥५॥ ६२२. बालोचना पाठ.. ........: पब मा... १९.२६:- १.६४ : भाषा-प्राकृत ! विषय-स्तवन । रचना काल-x 1 लेखन काल-XI पूर्ण । अष्टन नं०५१ । विशेष-प्रति प्राचीन है । एक एक प्रति और है। . ६३. इष्टछत्तीसी... ...... । पत्र संख्या-८ 1 साज-tx४३ पश्च । भाषा-संस्कृत | विषय . स्तोत्र ! रचना काल-x। लेखन काल-X । पूर्ण । थेटन नं० १०५३ । . ६२४. छत्तीसो-बुधजन ! पत्र संख्या-६ । साइज-१२४८ इन्च | भाषा-हिन्दी | विषय-स्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-x 1 पूर्ण । वेष्टन नं ० ५२३ | ६२५. ऋषिमंडलस्तोत्र-गौतम गणधर । पत्र संख्या-७ । साइज-Ex४ च । माषा-संस्कृत । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६.२५ । पूर्ण । वेष्टन ०६६ । विशेष-एक प्रति और है। ६२६. एक सौ पाठ (१०८) नामों की गुणमाला-धानत । पत्र संख्या-३ । साa-Ex४ इञ्च । भाष:-हिन्दी । विषय-स्तोत्र | रचना काल-x | लेखन काल-सं० १६२५ । पूर्ण । वेष्टन नं. ३१८। ६२७. एकीभावस्तोत्र-वादिराज | पत्र संख्या-६ | साइन-१०४४३ इन्च । माया-संस्कृत । | विषय-स्तोत्र । रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं० २६४ । विशेष-संक्षिप्त संस्कृत टीका सहित है । ५ प्रतियां घौर हैं। ६२८. कल्याणमन्दिरस्तोत्र-कुमुदचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-६ । साइज-११४६ इञ्च । भाषा- - संस्कृत । विषय-स्तोत्र । रचना कास-X । लेखन काल-सं० १८६४ | पूर्व । वेष्टन नं ० ४६७ । विशेष-टोंक में प्रतिलिपि हुई थी । अन्त में शान्तिनाथ स्तोत्र मी है । ७ प्रतिया और हैं । . Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२] [ स्तोत्र ६२६. कल्याणमन्दिरस्तोव भाषा-यनारसीदास । पत्र संख्या ११ से २६1 साज-x सश्च । भाषा-हिन्दी । विषय-स्तोत्र । रचना काल- ४ | लेखन काल-सं० १८८७ ध्येच बुदी १३ । प्रपूर्ण । वेष्टन नं ८० । विशेष-नामूलाल बज ने प्रतिलिपि की १६ से २६ तक पत्र नहीं हैं । २७ से २१ तक सोलह कारण पूजा जयमाल है। ६३०. कल्याणमन्दिरस्तोत्र भाषा-अस्त्रयराज । पत्र संख्या-७ से २६ । साइज ६४४ इश्च । । माषा-हिन्दी गद्य । विनय-स्तोत्र । रचना काल-X ! लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं० ११०५ । ६३१. चौबीस महाराज को विनती-रामचन्द्र । पत्र संख्या-७ । साइ३-१.३४. श्च | भाषाहिन्दी । त्रिथय-स्तोत्र | रचना काल-x | लेखन काल-x । पूर्ण । बेष्टन नं० ३०५ । -: । ६३२. ज्वालामालिनी स्तोत्र.... ..! पत्र संख्या-८ । साइज-xx च । भाषा-संस्कृत । विषय-स्तोत्र । रचना काल. x 1 लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं ० ६५७ । ६३३. बिन दर्शन ......... ."| पत्र संख्या-३ | साज-६x४ । भाषा-प्राकृत | विषयरतोत्र । रचन। काल-- । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० ५२७ । विशेष-प्रति हिन्दी अर्थ सहित है। ६३४. जिनपंजरस्तोत्र कमलप्रभ । पत्रं संस्म-३ । साइज-८४४३ हन्न । भाषा-संस्कृत । विषय स्तोत्र । रचना काल-। लेखन काल-सं० १२५ । पूर्ण । वेष्टन नं० ६५६ । ६३५. जिनसहस्रनाम-जिनसेनाचार्य । पत्र संख्या-१२ । साइज-११४१३२ । भाषा-संस्कृत | विषय-स्तोत्र 1 रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन न० ४७६ । विशेष लक्ष्मीस्तोत्र भी दिया हुआ है । दो प्रतियां और हैं । ६३६. जिनसहस्रनाम-पं० श्राशाधर | पत्र संरच्या-८ : साइज-१०:४५ ६श्च । भाषा-संस्कृत | R विषय-स्तोत्र | रचना काल-x 1 लेखन काल-सं० १८४६ । पूर्ण । वेष्टन नं० २८६ । विशेष-एक प्रति धौर है। ६३७. जिनसहस्रनाम टीका-पं० आशाधर ( मूल कर्ता ) टीकाकार श्रुतसागर सूरि । पत्र संख्या-१२१ । साइज-१२४१ इन्च । भाषा-संस्कृत । विषय-स्तोत्र । रचना काल-। लेखन काल-सं० १८०४ पौष । सुदी १२ । पूर्ण । वेष्टन • १२ । विशेष--प्रति मन्दा एवं शुद्ध है। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तोत्र [ १०३ ६३८. जिनसस्त्रनाम भाषा-बनारसीदास । पत्र संसा-७ । साइन-११x१३ हन । मावा-हिन्दी । विषय-स्तोत्र । सपा सर- सं ब न डाला. १६.७४ | पूरी । पटन नं. ५६०। ६३६. जिन स्तुति ......"। पत्र संख्या-५ । साइज-१२४५३ इंच । भाषा-हिन्दी गय । विषयस्तवन । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १९३७ । पूर्ण । वेष्टन न० ८८५ । ६४०. दर्शन दशक-चैनसुख । पत्र संख्या-१ । साइज-११४८ ६ । माया-हिन्दी । विषय-स्तोत्र । रनना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ५५३। विशेष—एक प्रति और है। ६४१. दर्शन पाठ ...........। पत्र संख्या-४ । साइज-११४५ इम्म । भाषा-हिन्दी। विवय-स्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन ५० ५७७ । विशेष-दर्शन विधि मी दी है। ६४२. निर्वाणकारद्ध गाथा " " " पत्र संख्या-१२। साइज-४४४ इञ्च | माषा-प्राकृत। विषय-स्तोत्र । रचना काल- 1 लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन ०६०। विशेष- गुटका सारज है । तीन प्रतिया और हैं । ६४३. निर्वाणकाण्ड भाषा-भैया भगवतीदास । पत्र संख्या- 1 साइज-- x६ इन। माषासंरकृत । विषय-स्तोत्र । रचना काल-x। लेखन काल- १८२८ । पूर्ण । वेष्टन २० १.४६ । ६४४. पद व भजन संग्रह ...... । पत्र संख्या-| साइज-१२४७६ इन्च | भाषा-हिन्दी । विषय-स्तवन । स्चना काल-X | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ४६३ । विशेष-जैन कवियों के पदों का संग्रह है। ६४५. पदव भजन संग्रह ..........."। पत्र संख्या-२०६ । साज-११४५ हश्च । भाषा-हिन्दी ! विषय-पद संग्रह । रचना काल-X । लेखन कारख-XI पूर्ण । वेष्टन ने 8२ । सारंग, बिलावस, टोडी, ७२-१.५ विशेष-निम्न रागिनियों के मजन है___ राग भैरु, मैत्री, रामकली, ललित, पत्र -- १ १६-२२ २३-४० पत्री, मल्हार, ईमण, सोरस, ११५-११- ११-१३१ १३१-१५० १५-२०४ इनके अतिरिक्त नेमिदशमनर्णन मी दिया हुआ है। प्रासावरी, Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] [ स्तोत्र ...। पत्र संख्या -४ | साइज-८८४ इस भाषा - हिन्दी | विषय-पर ( स्तवन ) | रचना काल -X | लेखना० २०४४ पूर्ण वेष्टन नं० १०५४ | ६४६. पद संग्रह ६४७. पद संग्रह" .............| पत्र संख्या ४७६ इमादी विषय स्वन । पूर्व वेष्टन ०२१३ रचना काल x लेखन काल सं० १७२० ६४५. पद संग्रह स्तवन । रचना काल-X | लेखन काल ६४६. पद संग्रह विषय-स्तन रचना का X लेसन कास X पूर्ण वेष्टन नं० -२ | विशेष किशनदास तथा पानतराय के पद है । ६५०. स्तवन । रचना काल 1404144 ६५१. पद संग्रह " रचनाकाल -X | लेखन का- पूर्व विशेष पत्र है। पत्र संख्या १ से १०३५ई भाषा-हिन्दी विषयपूर्ण वेटन नं० १२३ । पत्र संग्रह - ब्रह्मदयाल | पत्र संस्था | साइज ४३X६ लेखन- पूर्वं वेष्टन नं०] १६१ । पत्र संख्या १-१५६४६ | भाषा-हिन्दी पत्र संख्या १ साइज १४२७ मावा-हिन्दी विषय-स्तवन । वेष्टन नं० १३०१ ६५२. पद संग्रह रचना काल -> | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० ६५३. पद संग्रह लेखन काल-X | पूर्णं । वेष्टन नं० १११७ | लेखन कास-1 पूर्व वेष्टन नं० १११४ । इ८ | भाषा-हिदो | विषय - पत्र संख्या १० साह- भाषा-हिन्दी विषय वन 1 I पद्मावतीस्तोत्र ६५६. स्तोत्र । रचनाकाल - नकारा पूर्व ... | पत्र संख्या- ३५ | साइज - १९४ | भाषा - हिन्दी | विषय - स्तवन । ६५४ पद संग्रह संख्या १४६४ माषा-हिन्दी विषय-स्तवन । ६५५. पद्मावती अष्टक इति" विषय-रोत्र रचना काल-खनकाल विशेष— स्तोत्र संस्कृत टीका सहित है। ........| पत्र संख्या - १६ | साइज - १२४५३ च | भाषा-संस्कृत । पूर्ण वेष्टननं ८२३ । ........ पत्र संख्या- माष:-संस्कृत विषयवेष्टन नं. ६५४ । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तोत्र ] [ १०५ ६५७. पद्मावतीस्तोत्र "......। पत्र संख्या-४ । साइज-५०६x६ इञ्च । भाषा-हिन्दी । विषय-स्तोत्र । रचना काल-X1 लेखन काल-सं० १७०७ | पूर्ण । वेष्टन नं० १.६७ । | भाषा-हिन्दी । विषय ६५८, पंचमंगल-रूपचन्द | पत्र संख्या-२ से १२ । साइज-६६४४, स्तोत्र । रचना काल-x/ लेखन काल-xो ! नेश्न नं. : । विशेष --एक प्रत और है । ६५६. पार्श्वनाथ स्तोत्र " ..... .''पत्र संख्या-१ • । साइन--४४६ च । भाषा-संस्कृत | विषयस्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-x | पुणे । बेष्टन मं० ५५४ । गठ ...." पत्र संख्या-३ | साइज-१०x४ इन। भाषा-प्राकृत । विषयस्तोत्र । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूसा । वेष्टन नं० १.५६ | ६६१. बडा दर्शन ..... .... "। पत्र संख्या-६ । साइज-११६४५३ छ । माषा-संस्कृत ! विषयलोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-x1 पूर्ण । टन न० ५०७। विशेष - पत्र ३ से प्रागे रूपचन्द त एच मंगल पाठ हैं । ६६२ विनती संग्रह ..... - " | पत्र संख्या-५ | साज-tx५ | भाषा-हिन्दी । विषय-स्तोत्र । रचना काल-x | लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन नं. ११३५ । ६६३, विनती-किशनसिंह । पात्र संख्या-१ | साइज-६x६ इन्च । माषा-हिन्दी । विषय-तोय | रचना काल-x 1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०१६ | ६६४. भक्तामर स्तोत्र-मानतुगाचार्य । पत्र संख्या-१२ । साइज-१०x४ | भाषा -१५ । विषय-स्तोत्र | रचना काल- । लेखन काल-सं० १६७४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४८६ । विशेष--१० प्रतियां और हैं। ६६५. भक्तामरस्तोत्र भाषा-हेमराज । पत्र संख्या-1 0 1 साज-०६x६३ इन्च । माषा-हिन्दी । विषय-स्तोत्र | रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं० ५२५ । ६६६. भक्तामर स्तोत्र सटीक-मानतुंगाचार्य टीकाकार ! पत्र संख्या-४ । सादज-११३४४३ इश्व । भाषा-संस्कृत | विषय-स्तोत्र । रचनाकाल-x | लेखन काल-४ । पूर्वी । वेष्टन नं० २६६ । विशेष-श्वेताम्बरीय टीका है, ४४ पप है तमा टीका हिन्दी में हैं । एक प्रति और है जिसमें मंत्र यादि भी दिये हुए हैं Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६] [स्तोत्र ६६७. भक्तामर स्तोत्र टीका............"। पत्र संख्या-१२ । साज-१x६३ च । भाषा-संस्कृत । विषय-रतोत्र । रचना काल-x1 लेखा काल- अपूर्ण बटम 14 विशेष - १२ से घागे पत्र नहीं हैं । ६६८. भक्तामरस्तोत्रवृत्ति-ब्रह्मरायमल्न । पत्र संख्या-४५ ! साहज-१०४४ इन्च | भाषासंस्कृत । विषय-स्तोत्र | सपना काल-० १६६७ श्रषाढ़ सदी ५ । लेखन काल-सं० १६८१ । पूर्ण । वेश्धन न. ६५ । विशेष-प्राचार्य भुवनकीर्ति के लिए दारपुर में लालचन्द ने यह पुस्तक प्रदान की। ६६६. भूपालचतुर्विशति-भूपाल कवि । पत्र संख्या-६ । सारज-१०x४ १६ । भाषा संस्कृत । विषय-स्तोत्र । रचना काल-~। लेखन काल-x। पर्ण। बेष्टम नं. २१ । विशेष- १ प्रति और है। ६७०, मंगलाष्टक.... ..... | पत्र संख्या-२ । साइज-१३४४३ च । माषा-संस्कृत । विषयतात्र । रचना काल-x | लेखन काल-~। पूर्ण । वेष्टन न. ११४५ । ६७१. लघु सामायिक पाठ......1 पत्र संख्या-१ साइज-१.४५ इन्च । माषा-संस्कृत विषयस्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०४४ । ६७२. लक्ष्मीस्तोत्र-पानंदि। पत्र संख्या-२ । साइज-Ext च । माषा-संस्कृत । विषय-स्तोत्र ।। रचना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्छ । वैप्टन नं० ११२१ । ६७३. विषापहारस्तोत्र-धनंजय । पत्र संख्या-६ । साज-१०x४ च । माषा-संस्कृत । विषयस्तोत्र । रचना काल-X । खैनन काल-X । पूर्ण 1 पेष्टन नं० २६६ । विशेष-तीन प्रतियां और हैं, जिनमें एक संस्कृत टीका सहित है। ". "- - ६७४. विषापहारस्तोत्र भाषा-अचत्तकोन्ति । पत्र संख्या-५ | साइज-०x४३ इन्च । माता-! हिन्दी । विषय-स्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण | वेष्टन नं. १४४ । ६७५. वृहदशान्ति स्तोत्र........."| पय संख्या-१४ । साइज़-१०४४ इञ्च । माषा-संस्कृत प्राकृत ।। विषय-रहोत्र । रचना छाल-x | लेखन काल-x1 पूर्ण । वेष्टन नं.३.१।। विशेष-प्रारम्म में मयहार स्तीव, अजित शान्ति स्तोत्र, व मक्तामर स्तोत्र है। ६७६. चीरतपसमाय.....पत्र संख्या-२ | साइज-१०४४३ इन्च । माषा-हिन्दी। विषय स्तवन । रचना काल-x | लेखन काल-XI पूर्ण । देण्टन न. १.५८ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ स्तोत्र [१०७ भाषा गुजराती है । ६५ पध है प्रारम्भ में ३४ पय में कुमति निघटिन श्रीमंधर जिनस्तवन है । ६४७. शान्तिस्तवनस्तोत्र.... | पत्र संख्या-३ । साइज-८३४४३ इम्च । माषा-हिन्दी | विषय-- स्तोत्र । रचना काल- लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. ५३ । ६८. सरस्वतीस्तोत्र-विरंचि । पत्र संख्या-- | साइज-१०४५६ र 1 भाषा-संस्कृत । विषयरतोय । रचना काल-x। लेखन काल-~| पूर्ण । वेष्टन नं० ५२६ । विशेष-सारस्वत स्तोत्र नाम दिया हुआ है । ब्रांड पुराण के उत्तर खंड का पाठ है। ६७६. स्तोत्र पाठ संग्रह ..........1 पत्र संख्या-४. । साइज-११४५३म्स । माश-संस्कृत । विषय-स्तोत्र । रचना काल-४ । लेखन काल-x । पूर्ण । बेटन नं. ३..। विशेष-निम्न स्तोत्रों का संग्रह है (१) निर्वाण काण्ड (२) तत्त्वार्थ सूत्र उमास्वाति (३) मक्तामर स्तोत्र मानतुगाचार्य (४) लक्ष्मीस्तोत्र पक्षप्रमदेव (५) जिनसहस्रनाम जिनसेनाचार्य (६) मृत्यु महोत्सव (७) द्रव्य संग्रह गाथा नेमिचन्हाचा (८) विषापहार स्तोत्र धनंजय ६८०. स्तोत्र संग्रह..........। पत्र संख्या-२१ से ६५ | साज-११३४५ च । माषा-संस्कृत हिन्दी । विषय-स्तोत्र । लेखन काल-सं० १५२६ पपूर्ण ! वेष्टन न० १२४ । ६ स्तोपों का संग्रह हैं। ६८१. स्तोत्र........ | पत्र संख्या-- | साज-१२४५३ च । भाषा-संस्कृत । विषय-स्तोत्र । रचना काल-x | लेखन काल--X । पूर्ण । वेदन नं० १०७३ । विशेष-अक्षर मोटे हैं तमा प्रति प्राचीन है। ६८२. स्वयंभूस्तोत्र -समंतभद्र । पत्र संख्या ४ | साइन-११३४४१ माषा-संस्कृत । विषयस्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-X | पूर्व । वेष्टन नं० २६७ । विशेष-विसर्जन पाठ भी है। दो प्रतियां और है। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] [ स्तोत्र ६८३. समंतभद्रस्तुति ( वृहद् स्वयंभू स्तोत्र )-समतभद्र । पत्र सरन्या-१४ । साइज-११३४५३ रश्च । भाषा-संस्कृत | विषय-स्तोत्र । रचना काल-X | लेखन काल-X । पूर्य । वेष्टन नं० २६४ 1 ६८४ साधु बंदना .... . ..। पत्र संख्या-| साइज-१ ० ६४४ हन । माषा-हिन्दी विषय-स्तवन । रचना काल-X | लेखन काल-सं० १७६१ । पूर्ण 1 वेष्टन नं० १.७३ । ६८५. सामायिक पाठ"""""""। पत्र संख्या-१ साज-७४५ इन्च । माषा-प्राकृत-संस्कृत। विषय-स्तोत्र । रचना काल-X 1 लेखन काल-x ! पूर्ण । वेष्टन नं० ५४ । विशेष-गुटका साइज है तथा निम्न संग्रह और है: निरंजन स्तोत्र-पत्र संख्या ३ सामायिक–पत्र संख्या चौवीस तीर्थकर स्तुति- पत्र संख्या-६४ से २५ निर्वाण काण्ड गाथा-पत्र संख्या-२५ से २६ ६८६. सामायिक पाठ" " "| पत्र संख्या-६१ । साइज-११४४ श्र। भाषा-संस्कृत | विषयस्तोत्र । रचना काल-४ । लेखन काल-पौष बदी २ । पूर्व । बेष्टन नं. १४८३ विशेष-जोशी श्रीपति ने प्रतिलिपि की थी। ५८७. सामायिक पाठ भाषा-त्रिलोकेन्द्रकीर्ति । पत्र संख्या-६४ | साइज-kxi इ 1 माताहिन्दी विषय-स्तोत्र । रचना काल-सं. १८३२ पैशाख बुदी १४ । लेखन काश-सं. १८४४ । पूर्ण । वेष्टन नं. २ । प्रारम्भ-श्री जिन बंधी माव धरि जा प्रसाद शिव बोध । जिन वाणी पर जैन गुरु मंदो मान निरोध ॥ सामायिक टीका करी प्रमाचन्द मुनिराज । संस्कृत वाणी जो निपुण ताहि के बो काज |२| जो ज्याकरण बिना लहै सामायिक को अर्थ । सो भाषा टीका करू अल्पमती जन अर्थ ॥३॥ अन्तिम-अटरासै चौर बचीस संवत् जाणो बिसवा नीस । मास भली भैसाख बखाण किसन पक्ष चोदसि तिथि जाण || शुक्रवार शुभ बेला गोग पुर अजमेर बसै मवि लोग। मुल संघ नंयाम्नाय बलात्कार गण है सुखदाय || गच्छ सारदा अग्वयसार कुन्दकुन्द मुनिराज विचार । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोत्र ] [ १६ श्री भट्टारक कीर्ति निधान विजयीति नामैं गुण स्वान || तिन इह माषा टीका करी प्रभाचन्द दौंका अनुसरी । दोहा-संस्कृत शब्द नहीं किया सन नामक इय भाई । किहा किहा लिखियो काठन घणी वधाई माहि ।। p भावारम सूचिनी ह टीका को नाम । जाणों नांचो उर धरी ज्यू सी शिव काम ॥ प्रमानन्द की मति कहां किहो हमारी बुद्धि । रवि की कान्ति किही किहा पर दीपक की शुद्धि ॥ पै हम प्रति माफिक करी पण में अर्थ विरुद्ध । जो प्रमाद वस होय सो पुमति कीजिये शुद्ध। सोरठा -माषा टीका पह कोई जिनेसर मक्ति बसि । जो चाहो शिव गैह इण को पाठ करों सदा । इति श्रीमदमट्टारक श्री तिलोकेन्द्रकीर्ति विरचिता सामायिक दीका भात्रार्थसूचिनी नाम्नी सिद्धमगमत् । गाय का उदाहरण-मलो है पाव कहता सामधि जैह को असा हे सुपार्श्वनाथ भगवन् श्राप जय जय कहता बार बार जयचंता रहो। प्रापनै म्हारौ बारंबार नमस्कार होको । ( पत्र ३८) ६८, सामायिक वनिका-जयचन्द छाबड़ा। पत्र संख्या-५ । साज-१२xkण | भाषाहिन्दी । विषग-स्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन ० ४०५ । . विशेष-एक प्रति और है। ६६. सिद्धिप्रियस्तोत्र-देवनन्दि । पर संख्या-3 1 साइज-11४५६ इन्च 1 भाषा-संस्कृत । विषयसोच । रचना काल-X1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ५! . विशेष-तीन प्रतियों और है जिसमें एक हिन्दी रीका सहित है। . Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-संग्रह गुटका नं० १ । पत्र संख्या - १५५ | साइज - १०७ हम मात्रा माक्रत संस्कृत | लेखन ६६०. काल -x | पूर्ण वेष्टन नं ० ३१८ | मुख्यतया निम्न पाठों का संग्रह है- विषय सूची पटपाहुड याराधनासार तवसार समाधि शतक त्रिमंगीसार श्रावकाचार दोहा कर्ता का नाम कुन्दकुन्दाचार्य देव सेन देव सेन पूज्यपाद नेमिचन्द लक्ष्मीचन्द साषा प्राकृत 37 " संस्कृत মার विशेष – अष्टकर्म - प्रकृति वर्णन तथा तीन लोक वर्णन है । " ܘܕ ܐܐܐܗܘܘ ܝ विशेष ६६.१. गुटका नं २ । पत्र संख्या - १२६ । साइज - इस भाषा - प्राकृत- संस्कृत | लेखन काल - सं० १०१५ माघ सुदी ५ | पूर्ण । वेष्टन नं० ३१६ । ।।।। विशेष पूजा पाठ तथा सिंदूरकर आदि का संग्रह है। करौली में पाठ संग्रह किये गये थे। श्री राजाराम * पुत्र मौजीराम लुहाडिया ने प्रति लिखवाई थी । ६६२. गुटका नं० ३ । पत्र संख्या ६० साइज - ६९६ ६ । भाषा - हिन्दी | विषय - चर्चा | लेखन काल -X | पूर्ण | वेष्टन नं० २६० । विशेष - धार्मिक चर्चाओं का संग्रह है। ६६३. गुटका नं० ४। पत्र संख्या ११६ | साइज ३४६ व सावः- हिन्दी विषय-सिद्धान्त | लेखन काल - । श्रपूर्ण । वेष्टन नं ० ३७३ । ६६४. गुटका नं० ५। पत्र संख्या - २०१३ सहज - १०३४७ । माषा - हिन्दी-संस्कृत | लेखन -बल-सं०] १८६६ | पूर्ण | वेष्टन नं० ४३३ । ६ निम्न पाठों का संग्रह है Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह कर्ता का नाम भाषा विशेष मिषय सूची पार्श्व पुराण चौबीस तीर्थ का पूजा . देवसिद्धपूजा एवं पाउसह भूधरदास रामचन्द्र पत्र १-२ ७३-१२६ १२६-२८१ हिन्दी ६६५. गुटका नं०.६ । पय संख्या-१५२ । साज-७४६१ खेनन काल-x , पूर्ण । वेष्टन नं ० ४३७ । | भाषा-हिन्दी-संस्कृतः । रचना काल-~। निम्न पाठों का संग्रह है कर्ता का नाम विशेष पायय संस्कृत विषय सूची चाणक्य नीति शास्त्र वृन्दविनोद सतसई विहारी सतसई कोकसार x ७१. पप है। ७०६ पथ हैं। ४४४ पध हैं। बिहारी श्रानंद कवि हिन्दी हिन्दी करत- ६६६. गुटका न०७ । पत्र संख्या-१५२ । साज-x६३ इंच । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन १७६१ पूर्ण | बेष्टन नं. ४४७ 1 विशेष-निम्न पाठों का संग्रह है संस्कृत हिन्दी भक्तामर यादि पञ्च स्तोत्र तचार्य पुत्र उभास्वाति सुदर्शनरास नारायमल्स भविष्यदत्त चौपई ६६७. गुटका नं०८। पत्र संख्या-१८७ । साइज--x६ काल-२०१७२७ पासोज मुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं ४४८ । विशेष-निम्न मुरुम पाठों का संग्रह है--- 1 माषा-हिन्दी-सस्त । लेखन प्रवचनसार माषा हेमराज .रूपचन्द परमा दोहा शतक पाच मंगल लेखन काल १७२६ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ संग्रह भक्तामर स्तोत्र मावा हेमराज . चिन्तामणि मान रावनी मनोहर कवि २० पय है । अपूर्ण कलियुग चरित १. पद्य हैं। ६६८, गुटका नं० । पत्र संख्या-१३१ साज-tx६ च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-सं० १८१२ पूर्ण । वेष्टन नं. ४४६ । विशेष-सामायिक पाठ हिन्दो टीका सहित अन्य पाटों का संग्रौ । ६६. गुटका नं०१०। पत्र संख्या-४४ । साइज-६x४ इम्च । माषा-हिन्दी। लेखन कालसं. १८८ अषार सुदी ८ । अपूर्ण । पैप्टन नं. ४५० । विशेष पूजा पाठ संग्रह है। ७००. गुटका नं०११ । पत्र संख्या-२६४ | साज-४६३ ६ । माषा-संस्त-हिन्दी-प्राक्त । लेखन काव-x पूर्ण । वेएन नं. ४५१।। विषय-सूची कर्ता भाषा भक्तामर स्तोत्र मानतुग संस्कृत कल्याणमंदिर स्तोत्र कुमुदचन्द्र कर्मकाण्ड गाया नेमिचन्द्र प्राकत द्रव्यसंग्राह गाथा तत्वास्थ उमास्वाति संस्कृत नाममाला चौरासी बोल हेमराज हिन्दी निर्वाण काण्ड भारत स्वयंम् स्तोत्र समंतभद्र परमानंद स्त्रोत्र दर्शन पाठ कवणारक पार्थस्तोत्र पपप्रमदेव पाश्वस्तोत्र चौबीस तीर्थकर पूजा रामचन्द्र हिन्दी पूजा संग्रह . " संस्कृत संस्तत Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह] [ ११३ स्तुति हिन्दी __ पदसँग्रह - रूपचन्द्र, दीपचन्द, टेकतन्द, हर्षचन्द, धर्मदास, सुधरदास और बनारसीदास प्रादि कत्रियों के हैं । ७०१. गुटका नं० १२ | पत्र संख्या-७२ । साइज-१०x.३ इन् । भाषा-हिन्दी । रचना काल-x { लेखन काल-X । अपूर्थ । वेस्टन नं ० ४८६ । विशेष-पूजाधों का संग्रह है। ७०२. गुटका नं०१३। पत्र संख्या- ६४ ! साइज-६x६३ च । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-सं० १८४२ । पूर्ण । वेष्टन न. ५८८ | विशेष कर्ता का नाम माषा विशेष हिन्दी विषय-सूची चौवीस ठाणा चर्चा फुदेव स्वरूप वर्णन मोक्षपडी बनारसीदास १४। पत्र मंगा-३ । सा-४४३ इT Fषा-हिन्दी । लेखन काल-x। ७०३. गुटका प्रपूर्ण । वेष्टन नं. ५८६ । विशेष-पूजा संग्रह, कल्यायमन्दिर स्तोत्र समयसार नाटक भाषा-(बनारसीदास) श्रादि पाठों का संग्रह है। ७०४, गुटका नं०१५ | पत्र संख्या-२६२ । सहज-Ex६ इञ्च | भाषा-हिन्दी | लेखन कालसं० १७५६ । पूर्ण । श्रेष्टन नं० ६३५ । कर्म का नाम पत्र भोपालरास मझरायमल्ल विशेष रचनाकाल १६३० ग्राषाट सुदी १३ १६२८ भादवा सुदी २ १६१५ श्रावण सुदी १३ १६२६ पैशाख सुदी । २६-४४ ४४-५६ ५६-७६ ७६- ८ प्रद्युम्नरास नेमीश्वररास सुदर्शनरास शीलरास विजयदेव सूर पठारह नाता का वर्णन लोहट धर्मरास रविवार की कया भाऊ कवि अध्यात्म दोहा रूपचन्द ५८-६२ १२-११४ १०४-११३ ११३-११७ १०३ दोहे हैं। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ संग्रह सीताचरित्र पुरन्दर चौपाई योगसार कविबालक मालदेव पुरि योगचन्द्र . ११७-२३७ ६३७-२५६ २१७-२६२ लेखनकाल १७६ ७०५. गुटका नं०१६ | पत्र संख्या-३७६ । साइज-६४४३ हछ । मात्रा-संस्कृत-हिन्दी । लेखन काल-X| पूर्ण । वेष्टन नं. ६३११ निम्न पाठों का संग्रह है जिनसहस्रनाम पूजा समवशरण पूजा संस्कृत पत्र-१५६ श्रम भूषण लालचन्द विनोदीलाल रचना काल-१८३४ ७०६. गुटका नं०१७) पत्र संख्या-६० से ४१० | साइज-ext स्व | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x। अपूयो । वेष्टन नं.६३६ । मूख्य पाठों का संग्रह निम्न प्रकार है - भाषा विशेष हिन्दी अपभ्रश रचना का नाम क का नाम पंथोगीत धीहल परमात्म प्रकाश पोगोन्द्रदेव पनारसी विलास के कुछ अश बनारसीदास লালুঙ্গি कवि नालक घद संग्रह मांगी तु गीतीर्थ वर्णन परिखाराम दोह। शप्तक हेमराज रचना काल 1७१३ , विभिन्न कत्रियों के पदों का संग्रह है ___ अध्यात्म, २० का सं. १७२५ कार्तिक सुदी ५, १०१ पय है। अध्यात्म १०१ पय है। , स्तोत्र अंतिम पद्य हेमराज कृत है। दोह शतक रूपचन्द सिन्दूर प्रकरण बनारसीदास भक्तामर स्तोत्र टीका प्रखयराज श्रीभाल संबोध पंचासिका त्रिभुवनचन्द असुबत की बखरी अकृत्रिम चैत्यालय को जयमाल पद-चेतन यो घर नाहीं तेरो मनराम Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] पद-निय ते नर मषि यों ही खोयो रोगापहार देखो मनराम हिन्दी पद-मुम्ब नही कर पापली नहीं हो हकीर्ति संसार मझार १२ अंतरे हैं। १७०७. गुटका नं०१८। पत्र संख्या-१६ । साहज-sxइ भाषा-हिन्दी लेखन काल-x| पूर्ण। वेष्टन नं. ६३५ । कती का नाम विषय-सूची कल्याणमन्दिरस्तोत्र मावा भाषा विशेष भक्तामर माषा कम मत्तीसी बनारसीदास हेमराज अचलकीति का० १७७५ पाहा नगर में रचना की गयी थी। MP शान पच्चीसी मेष कुमार गौत सिन्दूर प्रकरण बनारसी विलास के पद एका पाठ जम्बूस्वामी पूजा नारसीदास पूनों बनारसीदास पांडे जनराम ले. का. १७४४ पोषपदी विशेष-जबलपुर में प्रतिलिपि की गई थी। विशेष-१२० पत्र से धागे की लिपि पटने में नहीं यातः । - -- ७०८. गुटका नं०१६ । पत्र संख्या-१२ । साज-५४४६ च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-x1 पूर्णः । ०४ - बहन नं. - विशेष-जीवों की संख्या का वर्णन है। - ७०६ गुटका नं०२० । वषरस्या-१३५ साज-61x..इन । भाषा-हिन्दी लेखन काल-२०१३८ । पूर्या । वरन नं.८८ । निम्न पारों का मह है - बनारसीदास रचना काल सं १६६१ समयसार नाटक बनारसी विलास कर्म प्रति वर्णन Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] संग्रह ७१०. गुटका नं० २१ पत्र संख्या २४१६ च भाषा - हिन्दी-संस्कृत लेखन २०१७ माघ सुदी ५। पूर्व रेशन नं निम्न पाठों का संग्रह १ चौदह मार्गणा चर्चा स्वर्ग नर्क और मोक्ष का वर्णन अन्तर काल का वर्णन जिन सहखनाम जिनसेनाचार्य ७११. गुटका नं० २२ । पत्र संख्या- ३१ | साइज - ६३० च । भाषा - हिन्दी । लेखन काल - X पूर्व वे नं 1 विशेष ७१२. बाल- पूर्ण विशेष ७१३. वेटन नं. ३००1 विशेष विषय-सूची दशलक्षण जयमाल मोच पैडी संबोध पंचा पंचमंगल पद योगसार संग्रह लेखनका ७१४. गुटका नं० २५ पूर्व हिन्दी पदों का संग्रह है । गुटका नं० २३ पत्र संख्या १५५६ भाषा-संस्कृत-हिन्दी लेखन ०६६४१ सम्मेद शिखर पूजा एवं रामचन्द्र पौडीसी पूजा संग्रह है। क्त समुच्चय गुटका नं० २४ पत्र संख्या २४६ कर्ता का नाम हिन्दी बनारसीदास धानस रुपचन्द परमानन्द योगीन्द्र देव 37 35 मात्रा-हिन्दी लेखन काx *141 हिन्दी 35 "" विशेष 37 37 अपभ्रंश पत्र संख्या - २५३ साइज - ६५ । भाषा - हिन्दी-संस्कृत- प्राकृत । विषयमं० २७१ | विशेष-गुटके में लगभग ३३ से अधिक पाठों का संग्रह है जिनमें मुखप निम्न पाठ है Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंमद ] नाम यांच नमीश्वर जयमाल गीत नेमीश्वर गीत शक्तिनाथ स्तोत्र जनवरस्वामी बनती भूतनुचा हंसा सावमा 朗 कुमार ओवरएस ग्यारह प्रतिमावपन पत्र रेमन काड़े को मूलिरह्यो विषया बन सारी नेमिराजमति बेलि जिए लाइ गीत पदय सार मनोरथमाला निरपे भरतेश्वर बेराम्य रोष ( को ) स यादित्यवार कथा पट्टा हुसेनंत गीत ७१५. गुटका ०१००४ पूर्व तेन नं०७२। विश्य सुनी पंचगांत वे कर्चा भारी ने गचंद च वीहव शुरुभद्र राम तिकोनि पं० योगदेव ब्रह्म अजित पूनो निदास नि कनकामर न्त्रील ठाकुरसी काराहमस कुरसी साह चल भाऊ श्र कर्चा का नाप दर्शनीति अपभ्र हिन्दी हिंदी संरकव हिन्दी 최대 हिन्दा हिन्दी भाषा 21 14 21 37 כז " "3 39 37 हिन्दी મંત भाषा हिन्दी लेखन का ० १७:४ की थी। अंत में इस विशेष पत्र १५ पद्म ४ पत्र २० सरगरत में है। गुरु की जगह गुणभद्र भी | नाम मिलता है। तीन दर है। पत्र १०० तक ३७ पप ? पत्र २२४ नं० २६ | पत्र संख्या - २०६ साइज - ४५ ३०१ भाषा-हिन्दी लेखन 17 ११७ ܟܕ. २१६ ४ २२४ २.२.४ २२७ २.३ ܐ ܀ RVR २४२ कास· विशे नाकाल १६८३ | मधुपुरा में दम ने प्रतिलिपि नाम चहुँग विवेलि भी दिया है। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Con ११] [ संग्रह समयसार नाटक बनारसीदास के रूकमणी बोल रचना काल सं० १६९३ । से 41.स. १.५ धीराज राठौड़ हिन्दी सपना काल स. १६.४ । ० काल सं.२०५४ विशेष-हिन्दी टेका सहित है। (२) शलाजत शुद्ध करने की विधि । 1) फोडे फुसिमों की श्रौषश्च । १३घोड़। के हवाद' रोग की औषध । सिंदूरमकरम नारसीदास हिदो रचना काल यि ११ लेखन रा०२:१२ विशेष - रामसिंह ने मधुपरा में प्रतिलिपि को पौ। ७१६. गुटका नः २५ । पत्र संस्थ३४ ANA-१x६५ भाषा-हिन्दी प्राक्त । पूर्ण । श्रेष्न विषय-सूची माषा विशेष वसेन प्राकृत प्रारधिनासार संभोधपचासिका ११५ गाया है। योगीन्द्रदेव अपरश परमात्मप्रकाश दोहा गोगसार प्राप्त पुष्पय दोहा बादशानुप्रेक्षा जयमाल ग्रह समयसार मनारसीदास हिन्दी बनाविलास " ले का० सं० १७० मंगसिर सुदी रचनाकाम १ लोकसार चौपाई मुमतिमीति प्रारम्भ-मुमतिमाप पंचमी जिनाय | सरसति सदगुर संघपाय। त्रिलोकसार पोपाइ कहु । तेहि विचार मुखौ तम्हें सह ॥१॥ श्रलीकाकास माहि के लोक । अधोमध्य उर्ध छै योक ॥ मध्ये मयो लोकाकास | अलोक माहि केवल बाकात || Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ घन वनोदधि तमु आधार । वाते वेधै त्रिणि प्रकार ।। छाल वैयौ तर थर जेम । लोककास कहैं , जेम ||३|| मतिम---श्री मूलसंध गुरु लक्ष्मीचन्द । सास टिबीरनन्द मुदि ।। ज्ञानभूषण तस पाटि चंग। प्रसाद बादी मनरंग ॥७॥ समतिकारि माहेशार : विलोमा ध ना || जे मर गुणे ते मुखिय याय । अण्ण भुषण परि मुमप्ति जाई ॥५॥ वीर वदन विनि गत वाक । गुणता पायि संसारा नाक || भावक जन मात्र ज्यौ जोय । सुमतिकीर्ति स्त्र सागर होय ॥१४॥ सिंहपुरी बंसी गार 1 बान सील तप मात्रन अपार ।। साहता माई सिंघा वपसार । कुवरजी कुवेर अर दातार ।।६.] संवत सोमनि सशात्रीस । माघ शुक्ल नै बासि दिस || कोदादी रचिये हसार । ममि भगत यावो भासार १॥ इति श्री त्रिलोकसार धर्मभ्यान विचार चउपई वद्ध रासा समाता । मनोहर हिन्दी १३ पथ हैं। जिपदास ४. पप हैं। प्राकृत हिन्दी जिग्यदास लीहत भान बावनी लघु मावनी जोगी रासो द्वादशानुप्रेक्षा निर्वाण कार गाथा द्वादशानुप्रेक्षा चेतन गीत उदर गीत यी गीत चाय बेलि मिरचर बबडी गुण गाथ। गीत जखमी परमार्थ गीत जखडी दोहा शतक ५ पय हैं। ४ पर हैं। ६ पथ हैं। चना काल सं० १५६५ कार्तिक सुदी १३ ठकुरसी जियादास मी वर्तमान रूपचन्द दागह रूपचन्द १०१ पत्र हैं। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] [ संग्रह प्राकृत | | " सदशन जयमाल दशरम जयमाल मेषकुमार मौत पंच कल्याणक पाठ द्वादशानुप्रेता २१ पद्य रूपचन्द ७१७. गुट का नं० २८ । पत्र संख्या-२६। साज-६३४६३ इत्र | भाषा-हिन्दी । लेखन कालसं. १८२३ वैशाख सुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन नं ० ६७४ | विशेष-पूजात्रों तथा पर्दो का वृहद संग्रह है । बनारसीदास कृत माझा भी है जो अन्नात रचना है। ७१८. गुटका नं० २६ । पत्र संख्या-२७ । साइज ६.४५: । भाषा-हिन्दी । लेखन कालसं० १८४ । अपूर्ण । वेष्टन नं. १७६ । विषय-सूची कर्ता का नाम जगजोवन भाषा हिन्दी नाथ नेशिनाप का ध्याहला निर्वाय काण्ड भाषा भगवतीदास पक्ष मनराम साधुनों के श्राहार के समय । ४६ दोषों का वर्णन भगवतीदास रचना कालसं.१७. विशेष संतोष राम अजमेरा सांगानेर वाले ने प्रतिलिपि की थी। ७१६. गुदका नं.३०। पत्र संख्या-२५१ । साइज-४६ हश्च | भाषा हिन्दी लेखन काल-४ | पूर्ण | वेटन नं. १७ | निम्न पाठों का संग्रह है-- विषय-सूची कर्मा का नाम बनारसीदास भाष! विशेष समयसार बनारसी बिलास पंचमंगल योगी रासो रूपचंद जिणदास ७२०. गुटका नं०३९ । पत्र संख्या-७ | साइज-१-३४७ इन | माषा-हिन्दी ( पथ)। लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन मं० १८६ | Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह [ १२१ विषय-सूची कर्ता का नाम पत्र संख्या बाणिक प्रिया कवि सुखदेव १-१७ रचना काल सं० १०६. लेखन काल सं० १६५५ विशेष- इसमें ३२१ पद्य हैं । व्यापार सम्बन्धी बातों का वर्णन किया गया है । स्नेहसागर लीला वक्षी हंसराज विशेष-सिक प्रिया का यादि अन्त माग निम्न प्रकार हैप्रारंभ-सिध थी गनेसाय नमः श्री सरसते म: जानुफी बलमाद न्मः प्रथा लिखते बनक प्रिया । चौपई-गुर गंने [ स ] कहै सुस्त्रदेव, श्री सरसुती बतायी भेव । वनिक प्रिया वनिक नामी दिया उनिगार हाय ने टौ । दोह!-गोला पूरव पच विसे वारि विहारीदास । तिनके सुत सुखदेव कहि, वनिक प्रिया प्रकास |1|| वनिकनि को वनिक पिया, मद्यसारि को हेत ॥ पाधि अंत श्रोता सुनो, मतो मंत्र सौ देत ॥३॥ माह मास कातक करे, संवतु सौधे साठ । मते याह के जो चले कबहु न श्राव घाट ॥२॥ चौपई-फागुन देव दलज पाइयो सफल बस्तु सुरपति चाइयौ ।। चार मास इहिरे हैं प्राई पुन पताल एता हो जाइ ||२| मध्यभाग--प्रथा जेट बस्तु लांचे को विचार । दोहा--तीन लोक मऊ दिसा, सुरनार एक विकार । जेट वस्तु विकात है पाक्स की दरकार ॥१४७|| घट घटी सो घटि गई, वस्तु पैच षतकार । विक्री कौ दिन बाहरी कीजे वाच विचार ॥१४१|| जेठी विक्री जेठ की सव जेठन मिल माख । सकल वस्तु पानी भई जौ पानी लौ राख ||१४२|| चौपई-ग्राम ऋतु वरसै लछिमी बैंच बस्तु न भाव कमी । यहि मत जौ न मान है कोष, वीधै सारै ब्याज गये सोइ ।। १ ४३।। जेठे वस्तु न बरिये धाइ, अपनै हो तो वेची नाइ। सालु सम्हा रहियो वाकी, जलके वर दुलभ गहकी :॥१४४॥ अंतिम माग-- Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] [संग्रह दोहा-देखी मुनी सो मैं कही, मंत्री जो मति मान । जानी जाति जी न सब को श्रागै की जान ||३१७॥ चौपई - मतो हथियारू हाम लै जोर, साहु सुभकरन करत का मोर । मारगहान हर मन मानियो, दिल कुसाद हरप न बानियों ॥३१८|| कवि सोधे संवत्सर साठ, इह मत चलै परै नहि बाट । हहि मति अन्नु पेट भर खाई, एही चीरन को पहराई ॥३१॥ दोहा-जनक प्रिया मैं मुम असुभ सबही गयो बताइ । जिहि जैसी नीकी लगै तैसी की बो जाइ ॥३२०॥ सत्रह से सत्रह बरस संवत्सर के नाम | कत्रि करता मुखदेव कह लेखक मायाराम ॥२२॥ .इति वनिक प्रिया संपूर्ण समाप्ता । मादी सुदी १२ शुक्रवासरे स. १८५५ पुकाम घिरारी लिखत लाला उदैतसिध राजमान छिरारी वारे जो बाचे वाको राम राम । दोहा-लिखी जथा प्रत देखके कहि उदेत प्रधान । जो वाचै श्रवननि सुनै ताको भोर नाम || ७२१. गुटका नं० ३२ । पत्र संख्या-११८ | साज-४४३ इन्च । भाषा-हिन्दी-संस्कृत-प्राकृत । लेखन काल-x/ पूर्ण । वेष्टन नं.६८७| कर्चा का नाम भाषा विशेष विषय-सूची लघु सहस्त्रनाम योगीरासो कल्याणमन्दिर स्तोत्र संस्कृत हिन्दी जियादास कुमुदचन्द्र मात्रा अपूर्ण " बैराग्य गीत पद संग्रह देवीदास नन्दन गणि जिपदास द्रव्य संग्रह ग्रा०मिचन्द्र जेठ वदी १३ सं. १६७१ में लाहौर में रचना तश लिाप हुई। प्राकृत लेखन काल सं० १६६६ प्राचीन हिन्दी द्वादशानुप्रेक्षा Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबह ] [ १२३ धर्मतरुगीत जिएदत्त (भव तरु साँचै हो मालिया ...... ....." ) हिन्दी ( जय पर सौ कत प्रीति करी रे । पद संग्रह धादिनापजी की भारती मालचन्द लेखन काल १७४६ नोमनाथ मंगल बीस तीकरों की जयमाल विशेष-"पद संग्रह जिग्णदत्त" का नाम "जिणदत्त विकास" मी दिया है। ७२२. गुटका नं. ३३ । पत्र संख्या-४१ ३ साइज-२४३ ६ | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X) पूर्ण । बेष्टन नं. ८ । विषय-सूची कर्ता का नाम भाषा संस्कृत जिनदर्शन संबोध पंचासिका पंच मगल पानतराय रूपचन्द ७२३. गटका नं०३४। पत्र संख्या-७ । पाइज-xt अर्ष बेष्टम नं०१८ १ माषा-संस्कृत । लेखन काख-x। निशेष-नित्य पूजा का संग्रह है। ७२४. गुटका नं. ३५ । पत्र संख्या-२१ । साइन-६४५ मपूर्ण । वेष्टन नं. ६१४ विशेष पूजा पाठ संग्रह है। ५ । भाषा-हिन्दी । लेखन कारी-X । ७२५. गुटका न०३६ | पत्र संख्या-४ | साइज-४४४च । माषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल# १७३६ । पूर्ण । वेष्टन नं० ११५ | विशेष-निम्न पाठों का संग्रह हैसंचौध पंचालिका गीतम स्वामी प्रात संस्कृत टीका सहित है। एमाव स्तोत्र नादिराज संस्कृत " Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] [ संग्रह ७२६. गुटका नं० ३७ पत्र संख्या १०० साइज - ८४६ च । माषा - हिन्दी । ऐखन काल - X । वेष्टन नं० १००१ । विशेष—- केवल पूजाओं का संग्रह हैं । ७२७. गुटका नं० ३८ पत्र संख्या ४४० | [ साइज ७३६ । माषा - हिन्दी । लेखन कालसं० २०२३ । पूर्ण । वेष्टन नं० १००२ । कर्ता का नाम अन्य - नाम यशोधर चरित्र भाषा खुशालचन्द विशेष- बीतरमल सेटी ने प्रतिलिपि की । चौबीस तीर्थकरों के नांव गांव घन विशेष - नरहेड़ा में प्रतिलिपि हुई । षट् द्रव्य चर्चा विशेष - छीतरमल सेठी ने नरहेड़ा में प्रतिलिपी | aौन लोक के चैत्यालयों का वर्णन ち ग्यारा विषापहार भाषा भक्तामर भाषा -- व्यायण मन्दिर भाष भाषा हिन्दी महाराज प्रणीराज लेख परधान पठायो । लेख काजि लाखीक वडम चवाण सवाय ॥ दाहिक नासि लाख यस्तु मालिन लीना । देखि स्यंघ गाडरी कोट का श्रारम्भ कीना ॥ से दरोध गढ़ नागौर चजीत गिर । म लगन तीज बैसाख इदि नींव देय भाष्यो नगर ऐसी धष्ट उपासना खान पान पैरान | ऐसा जो मिलिबो सही तो मिलिन यो प्रमाण ॥ अन्चलकीर्ति हिन्दी बनारसीदास हिन्दी हिन्दी निश्चय व्यवहार दर्शन सं० १८२३ 37 विशेष - छीतरमल सेठी बासी लूम्यूटको ने लाडखायों के रामगढ में खेतसी काला की पुस्तक से उतारी । कवित्त पृथ्वीराज चौहायका हिन्दी २० का ० सं० १७६१ हिन्दी "" ले० का सं० १८२३ 23 सं० २८२३ सं० २०२३ विशेष रचनाकाल १७१५ नारनौल में रचना हुई। सं० १८६३ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .संग्रह । [ १२५ . विशेष-छीतरमल सेठी ने लिखा। हिन्दी पाशावली ( अवजद केवती) - पुण्यायवयाकोश किशनसिंह जोधराज गोदीको " रचनाकाल सं.१७७३ ७२८. गुटका नं० ३६ | पत्र संख्या-५१ । साज-Ex६३ । माषा-हिन्दी । लेखन सास-X1 पूर्ण । वेटन नं. 11.1 विशेष-पत्र २६ तक रूपचन्द के पदों का संग्रह है इसके बाग जगतराम तथा रुपचन्द दोनों के पद हैं। करीब २०० पद एवं भजनों का संग्रह है। __७२६ गुटका ४७ । अ संस्था- I NIMA-2x५६इ । माषा-हिन्दी लेखन काल-सं० १८२३ ज्येष्ठ पुदी २ । पूर्ण । बेष्टन नं १००४ । विशेष—मृगीसंवाद चर्यन है। २५७ पच संख्या है । रचना का अादि धन्त माग निम्न प्रकार हैश्रादि पाठ-सफल देव सारद नमी प्रणमा गौतम पाय । कथा करू र लियामणी सदगुरु तणौ पसाय ॥२॥ जंबू द्वीप सुहामणी, महिधर मेर तंग । जहिथे दघि दिसि मलौ, भरत क्षेत्र सुचंग ||२|| अन्तिम पाठ-पणि समै पायौ केवली; चा चरण वचन मुनि भणी । तीनि प्रदरूपया दोधी सार, भाम उपदेस पुण्यो तिष वार ॥२५६॥ दोहा-दो मेद धरमा तणा मुनी प्रावक कार देत । मन वच काया पालता, दो, लोक मुख देत ॥२५७॥ इति श्री मृगीसंवाद चौपा कया संपरसा । लिखित सेवाराम राघौदास स्पोधूध । पाथी पंडित रायचन्दजी 4. सिख पं. चोख चन्दजी वासी टौंक का की सू देउरा ख्यौंधूका मये । मितो जेठ सुदी २ सोमवार संपत् १८२३ का । ७३०. गुटका नं०४१ । पत्र संख्या-२३४ । साइज-६४५ | माषा-हिन्दी । लेखन काल-x | पूर्ण । बेधन १०.५ । · विशेष-मुल्य २ पाठों का संग्रह निम्न प्रकार है। कर्मा का नाम भाषा विषय सूची नवतत्व वर्णन विशेष . हिन्दी अर्भ दिया हुआ है। मात Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ } [ संग्रह र जैन कवियों के पद है। स्वनाकाल सं. १७६० शान सुखडी शोमचन्द्र भक्तामरस्तोत्र मानतुगालाय कल्यायमन्दिरस्तोष बमा पचीसी समयसुन्दर शत्रुजयोद्धार पं. मानुमेक का शिष्य नपसन्दर ७३१. गुटका नं. ४२ । पत्र संख्या-१ | साज sxr एन नं. १...1 हिन्दी , ० १७७० बैशाख पदी ६ छ । भाषा-हिन्दी । लेकम काल-x। पूर्ण विषय-सूची कर्ता का नाम माषा हिन्दी पद पक पागतराय रूपचन्द रामदास रूपचन्द गंगाराम पांच्या जखमी मालामरसोत्र भाषा विशेष-इसमें संस्कृत की ४८ वी काव्य का ४७ में पथ में निम्न प्रकार अनुवाद है। है जिन तुम्हारे गुष कपन पहुप माल, भक्ति तीन माधरि के बनाई है। प्रेम की मुरुचि नाना वान सुमन थरि, गुणगय उत्तम अनेक मुखदाई है। ई भव्य जन कंठ पारि है उछाह करि, फुलकित अंग के श्रानंद सो माई है। ई मानतुगः कति मुकति बधू सो इत, गगन सरित सम सोमा मुख आई है ।। इक्का निषेध भूधरमक्ष विनती (प्रभु पाप लागू कर' सेत्र मारी) जगतराम विषापहारस्तोत्र मापा अचलकीर्सि गुजराती, सिपि हिन्दी । हिन्धी रचना काकस.१५१५ मारनौल मंद-मे पायो दुख अपारखि संसार में- थानतराय Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२७ हिन्दी दीपकन्द हरीसिंह पद-दोरी थे लगायोनी प्रभुजी के नबस नाम् मनराम अक्षरमाला दश बेत्रों की चौबीसी के नाम २५ प्रकार के पात्र वर्णन पद किशोरयास ७३२. गुटका नं० ४३ । पत्र संख्या-४२. | साज-ex | भाषा-हिन्दी । वेखन काख१५८२ पूर्ण । वेष्टन नं. १०.८ | विषय-सूची कर्ण का नाम श्रेमिक चरित्र की कमा हिन्दी गय प्रीयंकर चौपई नेमचन्द हिन्दी मर देखनकाल सं० १५.३ पूर्व विशेष -तुलसीराम चांदवाड ने पांडे स्पचन्द की पुस्तक से सं० १५८२ सावन सुदी १५ में पलपल में प्रतिलिपि को । पोमी बिजैराम मौसा की। देसीयाराम (हरिवंश पुराव) नेमिचन्द्र का 11 का सं, १५८१ विशेष-सं. १७७५ को पति से विजैराम मौसा ने प्रतिलिपि की पी। १३०८ प है। प्रध प्रशस्ति विस्तृत है: बन्दराजा की चौपई - १ का. सं० १६. ३ फागुन सुबो र ले. का. स. १८२ विरीष- सामानपुरी (गिरनार के पश्चिम दिशा में) के राजा चन्द की कमा है। बिजैराम मीसा ने मथुरा में तिलिपि की भी । इसका दूसरा नाम चंदन मखियागिरि कया भी है । रुपा बड़ी है। -चंद राजा की चौपई का आदि अंत माग निम्न प्रकार हैप्राम- दोहा-सिधि मधुधि दातार दुव गौरी नंद कुमार | चंद कथा बारम किय पुमति वैहि अपार ॥१॥ ब्रह्म सता सरस्वती तुष हंस नदी पति रूट । तुब पसाय वाणी विमल होय मया मति मूद ॥२॥ चौपई-प्रमय समौतु सरजन हार, वौ जिन यंम रच्यो गद गीरनारि । मेर समौ दी सिरधार, तिष्ठ लोक तिदि को बीसतार ||३|| Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] समरौ संकर दोय कर जोखि, मी सुर तेजीसौं कोधि। सदगुर कह लागौ पाय, मुलौ अखिर घौ. समुझाय ॥४॥ सोलासैर तोडौतरै जाणि, चंद कमा ज्यौ चदै परमाणी । मै म्हारी मति साफ कहु, अखिर मात्र पदा सो लहु ॥५॥ दोहा-फायण मास वसंत रिति, दुतिया सम गण सति । चंद मा प्रारम्भ कोयौ धूरौ वृधि तुरंत ॥६॥ प्रामानपुरी अपिदिसि पछिम दिसा गिरनारी। वेह संजोग असी रम्यौ चंद परमला नारी || अन्तिम-भाव रेखो अचपला जॉगि । तीजी और परमला भोग । याकै सत्य सारथा सब काज, विलसै चंद प्रापणौ राज ॥ ॥ इति श्री राजा व चौपई संपूर्ण ॥ पूर्ण बीस विरहमान तथा । तीस बीबासी के नाम तीन.लोक कमान १३ २३२ से ३६५ तक बेलि के विषै कमन हर्षकीर्ति (चतुगति की बेलि कम हिंदोलणा विशेष-इस गुटके की प्रतिलिपि महाराम चारसं वाले की पुस्तक से जैपुर में सं० १७६४ में हुई थी। सम्यक्त्व के पाठ अंगो का क्या सहित वर्णन , गध चेतनशिला त , पप पद-उठु वेरो पुत्र देखू' नाभि जिनंदा टोडर ४३३. गुटका नं०४४ । पत्र संख्या-२५ | साx३ इम्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-x। पूर्व । वेष्टन नं ...। विशेष-नरक दोहा एवं पद संग्रह है। ५ । माषा-हिन्दी । लेखन कास-x। ७३४. गुदका नं. ४५ । पत्र संख्या-१५ । साहन-xx पूर्थ । वेष्टन ०.०१०। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेष-विनंती संग्रह है। ७३५, गुटका नं०४६ । पत्र संख्या- साज-११४१३ च । भाषा-हिन्दी.। लेखन काल-x। पूर्व । वेष्टन नं. १०११. विशेष-शिखर विलास, निर्वाणग्रंट एवं बादिनाम पूजा है । ७३६. गुटका नं. ४७ । पत्र संरूपा-३८ : साइज-: x ३६ माया-स्कृत | लेखनकाश-स. १८८ १ | पूर्व। बेष्टन नं० १.१३ (क) । विशेष-पूजा संग्रह है। ७३७ गुटका नं. ४ । पत्र संख्या-१६ । साज-६x६ । माषा-हिन्द संस्कृत-प्राक्त । | समान शास-X । पूर्व । एन १.१६)। विशेष-पूजोत्री, यशोश्रस्चरित्र रास (सोमबत्तरि) तपा स्तोत्रों का संग्रह है। ७:. गुटका ०४६ । पत्र संख्या-१६७ । साज-xER | माषा-संस्कृत हिन्दी । लेखन काल| १७६५ । पूर्ण । वेष्टन नं० १०१३ (ग)। विशेष पुख्यतः नित्य नैयशिक पूजाओं का संग्रह है। ७३६. गुटका नं.३० । पत्र संख्या-२० । साज-५६४५३ च । माषा-संस्कृत-हिन्दी । लेखन कास-x | पूर्ण । रेन ने. १०१४ ॥ विशेष-कम्याण मन्दिर स्तोत्र को सिद्धसेन विचाकर कृत लिखा है। स्तोत्र एवं पात्रों का संग्रह है। प्रजयराज पाट कृत पत्र १३१ पर एक रचना वित् १७१३ की है जो पाक.सास्त्र सम्बाधा है । रचना का बादि अंत भाग निम्न प्रकार है। शारंभ-श्री बिनजी को कई रसोई । ताको सम्पत बहुत सुख हो । 'तुम रूसो मत मेरे .समना । खेली महुषिधि घरके अगना ।। देव अनेक बहोत खिलाये। माता देखि बकृत सुख पावे ॥१॥ ‘मभ्यमें —धिमक चणा मिया बात मला । हलद मिरच दे घृत में तला || मेसी रोटी अधिक बनाई । बारीगो त्रिभुवन पति राई ॥२४॥ अंतिम---प्रजैराज सह किया बखाय) मूल चूक मति हसौ मुजाय ।। संवत सत्रासै प्रेणायै। जेठ मास पूरण। हौ ॥५॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] संग्रह जिनजी की रसोई में सरकार के व्यंजनों एवं भोजनों के नाम गिनाये हैं। भगवान की बाल लीला का अच्छा गान किया है। मोजन के बाद वन विहार यदि का वर्णन भी है। २. पद हैं। सीई वर्णन दो जगह दिया हुवा है । एक में ३६ पय हैं वह अपूर्ण है। दूसरे में १६ पद्य तथा पूखे है। - पद-सेवग पा महर करो जिनराई अजयराज १२ अंतरे है। पत्र १०५-११३ मेष कुमार गति २१ पथ हैं। शातिनाम जयमाल अजयराज पद-प्रभु हस्सनागपुर जनम जाय " श्री जिनपूजाहायची १४ पद हैं। , मन मनरकट चमेक बातम अपवाद । १५ पम है। धीबोस ताकर स्तुति अहो सिमामी खेमें हो पानअन राचि सध राजम फाग सुहावों, ७ पद माल्य वर्णन " पद श्री सिरिघांस सकल गुण धार . संदीश्वर पुजा श्रादिनाम पूजा রুলিয়ানি রাখৰ কুর पाश्चनायनी का सालेहा रचना सं० १७६३ श्रेष्ठ सुदी १५ । पंचमेस पक्षा महावीर, नेमीश्वर श्रादि समी वीधरों के १६ सिद्ध स्तुति कीसतीर्थकों की जयमात इंदना ७४०. गुटका न०५१ पास्या -६६ I साज-१x६ का माषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखम कास-सं० १३ कार्तिक मुद्दा । पूर्व । वेष्ठन न. १.१.। विषय-सूची का नाम भाषा विशेष हिन्ध (प) आयुर्वेद नुस्खे शिवा की बातें पंचममति की मेखि हर्मकिसि (पष) रचना काल. १६३ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संमह किशनसिंह चेतन शिक्षा गीत ग्रामोकार सिद्धि अजयराज पद ऋषमनाथ विनती ( मोहि लारो नी सरखे तुम अाइयो। बधावा ( जहाँ जन्मे हो स्वामी नामकुमार) राखल पच्चीसी भालचंद विनोदीलाल पद विश्व भूषण (जिव जपि जिमनापि जीयता) विनती पनो सहेलीगीत सुदर कनककीर्ति मंगल बिनोदीलाल शान चिन्तामणि मनोहरदास पंच परमेषि गुण हिन्दी गव सूता भेद जोगी समा লিখা धर्मरासा सुदर्शन शीख रासो . रायमल्ल जम्बूस्वामी चौपई जिसकास विशेर-विपदास का पूर्व परिचय दिया हुआ है। जयचंद साह ने लिपि को भी । श्रीपाल रासो ० गइमल्ल विशेष-जयचंद साह ने चाकम में सं. १८३२ में प्रतिलिपि की । वित्रापहार भाषा अचलकीनि कुल १२८ पच है। ४१ पच है। | | । ७४१. गुटका नं०५२। पत्र संख्या-१८८ | साज-txe इमाका-प्राकृत अपश। खेखन काल-सं० १५.. । पूर्छ । बेन नं. १०१८। कर्मा का नाम माथा प्र-प-सची मुनिसुलतानप्रेमा बोगसार दोहा अपभ्रश पं. बोगदेव योगीन्द्रदेश १५८० वी १३ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२] [ संग्रह उपासकाचार परमात्मप्रकाश दोहा .परपाहर सटीक घाराधनासार .-समयसार गाथा झानसार गाथा पूज्यपाद योगीन्द्रदेव कुन्दकन्दाचार्य देवसेन कुन्दकुन्दाचार्य अपनश प्राकृत टीका सहित है। ७४३. गुटका नं०५३ । फ्ष संरूपा-११३ । माज-Ex४ । माषा-हिन्दी-संस्कृत | लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन ने० १.२. । विशेष-प्रथम संस्कृत में पंच स्तोत्र पाद है फिर उनकी भाषा की गई हैं। ४. गुटका नं. ४४। पत्र संख्या-३२ | साइन-Ext इ । माषा-हिन्थी । लेसन काल -* | एर्ग । वेष्टन नं. १०२२॥ विशेष-देवब्रह्म कृत गिनती संग्रह है। ७४५. गुटका नं०५५ । पत्र संख्या-१८ । साइज--६x४ च । माषा-हिन्दी - संस्कृत । लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन नं. १०२६। विशेष-स्तोत्र एवं पना पाठों का संग्रह है। ७२६. गुटका नं०५६ । पत्र संख्या-५३ ! साइज-६x६ च । मला-हिन्दी । लेखन काल-४ । पूर्ण । एन नं. १०२३ 1 विशेष चासें गति दुःख वर्गान, गाल पचीसी, जोगी रासी, अठारह नाता चौटाल्या के अतिरिक्त वृन्द, दीपचन्द, विश्वमृषय, पनो, समदास, अजगराम, मृघरदास के पद मी हैं । ४७. गुटका नं०४७ । पत्र संख्या-१६० । साम-x५ ५ । मावा--हिन्दी । खेत्रनकाल१७६ज्येष्ठ बुदी - 1 पर्स । वेटन न. १०२५ । विशेष महारक जगतकीर्ति के शिष्य बालूराम ने प्रतिलिपि का की। विश्य सभी पता का नाम अ० रायमल्ल हिदी स्चमा, सं० १६२८ नेमिकमार रामो सुदर्शन रायो हनुमंत या 'मावा. नम्न रासो Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रा ! [ १३३ ७४८. गुटका नं. ५ | पत्र संख्या-५८ | साइज-६६x४६ कार-४ | ५र्य । वपन नं. १०२६ । च । भाषा-हिन्दी-संत : लेखन कनों का नाम । भाषा. संम्मत विषय-सूनी तीर्थमाला स्तोत्र जैन नायी पाचन.स्तोत्र पद पक्का बत्तीसी प्राचीन हिन्दी हिन्दी यजयराम पद रामह धनारसीदास सिन्दूर प्रकरण परमानन्द स्तोत्र सस्कत ४. गुटका नः५६ | पत्र संख्या-७ । साइज.-५४५ इभ । भापा-हिन्दी लगन क.ल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०७ । विशेष कर्ता का नाम भगवतीदास विषय-सूची। राम पच्चीसी चेतन कर्म चरित्र वदन्त चक्रवति की मारना गुपद रचनाकाल से १७३६ ७५०. गुटका नं. ६० । पत्र संख्या २८॥ . साज-xr | माय:-हिन्दी-कृत । संस्बन काल-४ । पूर्ण : वेटन नं. १०२८ | विशेष- मुख्यतः पूजात्रों का संग्रह हैं । ७५१. गुटका नं. ६१ । पत्र संख्या-२१६ | साइज-tx४३ इन। भाषा-संस्कृत-हिन्दी । लेखन पा-x | अपूर्ण । वेष्टन नं.१०२६ । विशेष – मुख्यतः पूजा संग्रह है । कुछ अंगतराम कृप्त पद संभह भी है । ७५२. गुटका नं६२। पत्र संख्या-३४ | सहज-६४४ इश्व | भाषा-हिन्दी पू । वेष्टन नं० १.३० । लेखन काल-x| विशेष-स्तोत्र संसह भा॥ एवं निर्वाणकाण्ड माषा श्रादि हैं। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] [संह ७१३ गुटका नं०६३। पत्र संख्या-३० । साइज-४४४६ च | माषा हिन्दी । लेखन कालसं. १८१६ । पूर्ण 1 वेष्टन नं. १०३१ । विशेष -शनिक्षर देव की क्या है। ७५४. गुहग्ज पूर्ण । वेपत न० १.३३ । ६ । संध्या-01 -३ । माया-हिन्दी । लेखम काल-xI कता का नाम विषय-सूची चरवाशतक भाषा विशेष पानतराय हिन्दी दाल गण "६२ पष सुति धानतराय ७५. गुटका २०६५। पत्र संख्या-२१२ । साइज-६x४३ध। माषा-प्राकृत-संस्कृत । लेखन काख-~। पूर्ण । श्रेष्टन नं. १०३३ । विशेष -षड्भक्ति पाठ, आराधनासार, जिनसहस्रनाम स्तवन याशावर कृत, तमा अन्य स्तोत्र संग्रह है । ७१६. गुटका नं.६६ । पत्र संख्या-७४ । साज-३४ च । मामा-हिन्दी । लेखन काल-सं. १८८७ श्रापाट बुदी १ । पूर्ण । श्रेष्ठन नं० १०३४ । विशेष विषय-सूची ঐসক। धर्मविलास कर्ता का नाम ___भूवरदास थानतराय भाषा हिन्दी रचना काल सं. १७१ ७५७. गुट का नं०६७ । पत्र संख्या-१११ । साज-५५५४६ प | भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल-XI पूर्ण । श्रेष्टन नं.१.३५ | विरोय--स्तोत्र संग्रह है। ५८. गुटका नं० ६६ । पत्र संख्या-४६ से १४ । साज-७६x२ इन्च | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-सं. १८१: मंगसिर सुदी १५ । श्रपूर्ण । वेएननं० १.१७॥ माषा विषय-सूची बिहारी सतसई नागदमन कमा की का नाम बिहारीलाल हिन्दी विशेष भपूवं श्रादि अंत माग निम्न प्रकार है Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] [ १३५ पारम्म--वलतो सारद वरण, सारद परी पसाय | पवाडी पन्नग तणौ जानुपात कौ| जाय | प्रभु श्राणये पाकीया देत बडा चादन्त । के पालय पौटीया केई पर पान करत ।। अन्तिम-मुणौ मणौ समवाद नद नंदन अहि नारी । समझा पार संभार धी द्रोपत अनहारी ॥ अनंत अनंत के ससु श्रह वधाई स्मीयो स्वाट राधा रमण दह कर भुज काली दवणा ! त्रिभुवन पुगण महि रख तन गमय' तास श्रावो गमण ॥ ७५६. गुटका नं०६६। पत्र संख्या-४२ । साइज-६x४ इन्च : मावा-संस्थत । खेखन काल-- । पूर्ण । वेष्टन ने. १०३८ । विशेष-मक्तामर स्तोत्र एवं तत्वार्थ सूत्र है। ७६०. गुटका नं०७० । पत्र संख्या-६४ | साइज-७६x६ इश्च । माषा-प्राकृत-संस्कृत । लेखन काल-X | पूर्ण । धन न० १०३ । विशेष--कर्म प्रकृति माषा-नेमि चन्द्राचार्य कृत एवं द्रव्य संग्रह तया स्तोत्र संग्रह है। ७६१. गुटका नं०७१ । पत्र संख्या-१ | साइज-५३४४ इञ्च । भाषा--हिन्दी । लेखन काल-. १३४ | पूर्ण । वेष्टन नं. १०४०। विशेष-पद संग्रह, मक्तामर स्तोत्र भाषा चौपई बंध ऋद्धि मंत्र मूलमंत्र गुण संयुक्त षट् विधान सहित है । ७६२. गुटका नं०७२ | पत्र संख्या-२०६ । साइज-६४ इश्च । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं.१०७६ । विशेष-पूजाओं का संग्रह है अबस्या जीर्ण है। ७६३. गुटका नं०७३ | पत्र संख्या-६३ } साइज ६४५३ इव । माषा-हिन्दी-संवत्त । लेखन ___ काल-X । अपूर्ण । श्रेष्टन नं० १.४७ । विशेष--पूजा पाठों का संग्रह है । कोई उक्लेखनीय पाठ नहीं है । ७६४. गुटका नं०७४ । पत्र संख्या-१ | साज-६४५ । माषा-हिन्दी-संत । लेखन काख-x। अपूया । येष्टन नं० १०७८ | विशेष पूजा तथा पद संग्रह है। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] [ संग्रह ७६५, गुटका नं. ७५ | पत्र संख्या-३५ । साइज-६x४ च | भाषा-हिन्दी लेखन काल-x1 प्टन नं. १.८० विशेष- सामान्य पाठों का संग्रह हैं । ७६६. गुटका नं०७६ । पत्र संख्या-६ : | साइज-६x४ इन्च । माघा-संस्कृत-हिन्दी । लेवन काल-x | पूर्ण | वेष्टन नं. १०८१ । विषय-सूची कर्ता का नाम ___ माषा মূলা विशेष विशेष चतुर्विशति रिन स्तुति पद्मनाद संस्कृत बहत्तारि जिनेन्द्र जयमाल स्वयंभू स्तोत्र श्रा०समन्तभद्र द्रव्य संग्रह प्रकत हिन्दी तपोधोतन अधिकार सत्तावनी संस्कृत ७६७. गटकान ७७ पत्र लेख्ला-६० | साज-५४४ इन्। माषा-हिन्दी लेखन काल-४। पूर्ण । वेष्टन नं. १०८३ | विशेष- श्रायुवेदिक नुसखों का संग्रह है। ७६८. गुटका २०७८ । पत्र संख्या-६४ | साज-६x४, स्व । भाषा हिन्दी-संस्कृत | विषय -संग्रह । लेखन काल-४ । अपूर्ण | श्रेष्टन नं. १०८४ । अपूर्ण मगीत संबंधी कवित्त है। ६ कवित्त है। जन्म सं १०१. फुटकर कवित्त कवित कवि पृथ्वीराज कचित्त প্তি । कवित्त खुणस ( कमी) और खुशी के सर्वमुखजी के पुत्र अमयचन्दजी की पुत्री की जन्म पत्री (चौदवाई) चिट्ठी चादबाई की सर्वसुखजी यादि को सोत्तरा ( पहेलिया) पहें लयां वृन्द कुंदलियां गणित प्रश्नोत्तर ) . - सं० १६१ २६ पहेलियाँ उत्तर सहत है।। अपूर्ण Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] अपूर्ण कर दोहे सपा कुंडलिया सिस्थरदास रविश खेमदास मानों का कान छह टासा थानतराय अपूर्ण लेखनकाल सं० १३१४ बंदरो के पठनार्थ वे लिखा गया था। मण्यमलोक चैत्यालय वपन बधाई जखडी उपदेश जखडी बालक- असीद भूवाद। रामकृपा ७६६. गुटका ने०७४ । पत्र संख्या-१५ । पाज-१०४८ इत्र | माव संस्कृत प्राकृत । लेखन काख-X | यपूर्ण । बेष्टन २०१००५ । " विशेष-गुणस्थान चर्चा, कर्म प्रति वर्णन, तथा तीर्थंकरों के कल्यायकों के दिनों का वर्णन है। कल्याणक वर्मान प्रपत्रंश में हैं । रचनाकार मनसुख है। ७७०. गुटका ८०। पत्र संख्या-३७ । साज-८४६ एव । माषा-हिन्दी । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं. १०६ । विशेष-नवलराम, जगतराम, हरीसिंह, भूधरदास, पानतराय, मखजी, बखतराम, जोधा प्रादि के पदों का संग्रह है। ७७१. गुटका नं०६१। पत्र संख्या-६ । साइन-2x६ | भाषा-हिन्दी । लेखन प्रल-x। पूर्ण । वेस्टन नं. १०५५। विशेष-पदों का संग्रह है। इसके अतिरिक्त परमार्थ जली तथा जोगी रासा मी है। भूधरहास, अगतराम, पानत, नवलराम, बुधजन आदि के पद हैं। ७७२. गुटका नं.८२ पत्र संख्या-६" । साहन-६x४ | माषा-हिन्दी। लेखन काल-X । पूर्ण । बटन मं० १०८८ ॥ विशेष-जिन सहस्र नाम मावा, प्रश्नोचर मासा, कवित, एवं बनारसी विलास श्रादि हैं। ७७३ . गुरका नं०८३। पत्र संख्या-0 | साइज-६४४६च ! भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x| पर्य । वेष्टन नं ६ विशे-पो म संग्रह है। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ संमह ७००१ १३८ ] ७७४. गुटका नं.८४ । पत्र संख्या-३४ | सारज-exerच | माषा-दिस्यो। लेखन काल--x पूर्व । पेष्टन न० १०६ | विशेष-१८ सय श्रादि की चर्या, नरक दुःख वर्णन, द्वादशानुप्रेक्षा आदि हैं । ७७५. गुटका नं०८५। पत्र संख्या-१४ से १४६ | साइज-६४५ इञ्च 1 भाषा-हिन्दी-संस्कृत ।। खेसन कल-xi अपूर्ण टिन नं० १.११ । विशेष- सामान्य पाठों के अतिरिक्त कुछ नहीं है । गौच के बहुत से पत्र नहीं है। ७७६. गरका २००६। पत्र संख्या-१३१ | साइज-६x४ इन्च । माषा-संस्कृत। शेखन काल-x! पूर्ण । वेष्टन - १० ॥ विशेष-सोत्र एवं पाठों का संग्रह हैं। ७ गुटका नं.८७ । पत्र संस्था-१६ । साइन-१.३४४ इञ्च । माषा-हिन्दी। निदय-संग्रह । शेखन -X). | वेटम में १०६३ । विशेष- क चर्चाश्रों का संग्रह है। ७७८, गुटका नं. ८८। पत्र संख्या-६८ REE-xx इश्च । माषा-हिन्धी । विषय-संग्रह। लेखन काल--- । पूर्ण । टिन नं० १०६४ ! विषय-सूची कों भाषा विशेष दीतबार क्या माऊ १५५ पथ रानोश्चर देश की कमा " (गण) का० सं० १५६ वैत मुदी.२ शारातचीत की बात पार्वनाम स्तवन विनती नेमशील वर्षन पद ले.का.सं १८१ ७६. गुटका नं० २ | पत्र संस्था-१३ । साज-६x६ सय | भाषा-संस्कृत हिन्दी । लेखन काल-४। पूर्ण वैष्टन:१.६५। बिसेम-गुटके में पूजा संग्रह हवा स्वर्ग नरस का वर्णन दिया हुआ है। 50. गुटका 10801 पत्र संख्या-११० । साइज-५४३३ इन्च । माषा-हिन्दी-संस्कृत | लेकन कास-४ | पूर्ण । बेपन नं. १.११। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] [१३६ कर्ता का नाम भाषा विशेष विषय-सूची अवबद केवली मलामर स्तोत्र भान गाचार्य । ... हेमराज , कुमदचन्द्र संस्कृत हिन्दी " माषा कल्याणमन्दिर स्तोत्र संस्कृत बनारसीदास प्रध्यात्म काग साधु वंदना बारहमावना संबोधपंचासिका स्तोत्रसंग्रह प्राकृत संस्कृत ७८१. गुस्का नं ५ | पत्र संख्या-२०४Bाज-Ex५१ च । माषा-हिन्दी । लेखन कारसं० १७८६ | अपूर्ण । वैप्टन नं. १०६८ | निम्न पाठों का संग्रह है-- भाषा हिन्दी বিষয়। ४६ पत्र है। पथ है। लेखनकाल १५७ विषय-सूची की का नाम कसलीला मोरग्वज लीला महादेव का व्याइलो मकमाल सुदामा चरित गंगायात्रा प्रान कवाका राजाओं की वंशावली ताराबोल की वार्ता नासिकेतोपाख्यान नंददास महामारत कथा खालदास देहली के राजाओं की वंशावलि " १७८७ चरित ७८२. गुटका नं०१२। पत्र संख्या-१३१। साइन--x६ मह । लेखन काल-x ! पूर्ण । बेपन 1.11 । भाषा-संस्कृत-हिन्दी । विषय Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ संग्रह विशेष ३२ पथ २८ पथ १४ गाथा ले. का० सं० १७१५ पौष बदी २ राजरंगगधि ने सिषि की थी। १८ पक्ष १४पच ४ पध १४पए विषय-सूची फर्ता मावा अजिव शान्ति स्तोत्र उपाण्याय मेग्नंदन सीमधरस्वामी स्तवन उपाध्याय भगतिखामः पार्श्वनामस्तोत्र निनराज सरि संस्कृत विघ्नहरस्तोत्र आत सामान्यो शनिश्चास्तोष दशरण महाराज पार्श्वनाव जिनस्तवन जिनकशल सरि भन्दा चित्र है और चित्रकार अग जीवन है। धमया पाश्र्वनाथ स्वबन कुरालालाम हिन्दी चिंतामणि पानाच स्तबन जिनरंग राख कर भारह मासा पदमराज श्री जिनकुशल सरि स्तुति उपाण्याय जयसागर पाश्चनाप स्तवन रंगवस्लम श्रादिनाथ स्तवन जयतिलक श्री अजिधशांति स्तोत्र भयहर पार्श्वनाथ स्तोत्र व विधायक स्तोत्र कोकसार श्रानंद कवि ग्यप्ती ( नैनसिंहनी) - के व्यापार का प्रमाण पावनाम स्तोत्र कमल लाम __ सघुस्तोत्र अमराज संमेश्वर पार्श्वनाप स्तवन -- चिंतामचि पाश्वनामस्तोत्र भषमकीशि पार्श्वनाय स्तोत्र मनरंग जिनरंग ऋषभदेव भावन २१ पथ ३. गाया २१ गापा २६ गाथा पूर्ण सं १७२६ ७ पथ पूर्व रचनाकाल सं० १... लेखनकाल २०१७२. पदमराज इसमथी पाश्वनाथ स्तवन Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबह ] [ १५१ .विजयकीर्ति पूर्ण जिमनरलम संस्कृत पर्ण ३० श्लोक गजसमुद्र जिनर गरि प्रेमराज पारनाय स्तवन महावीरस्तवन प्रतिमास्तवन चतुर्विशति जिनस्तोत्र गीस विरहमान स्तुति पंचपरमेष्ठि अंध स्तवन सोलहसती स्तवन प्रबोध बावनी दानशील संवाद प्रस्तारिक दोहा লিন रचयसं. १७६१,५४पष। समयसन्दर जनरंगसरि इसका दूसरा नाम "दहा बंध बहुत्तरी" भी हैं । ७२ दोहा है । लेखनकाल ०१४४५ । बापना नसों के पटनार्थ कृष्णगर में प्रतिलिपि हुई थी। षष्ययराज बाफना के पुत्र की कुंडली - मं० १७७२ ७५३. गुदका नं. ६३ । पत्र संख्या-- से ५.८ तक । घाइज-३४५३इन । मावा-हिन्दी । लेखन काद-X1 अपूर्ण । घटने नं.११ 'विषय-सूची कर्ता भाषा विशेष जैन रामो हिन्दी लेखन काल सं. १७१ जेठ सुदी १५ विशेष - दौलतराम पाटनी ने कस्वा मनोहरपुर में लिखा प्राम्भ के १८ पच नहीं है। सिद्धिप्रिय स्तोत्र देवनदि मस्त २६ पप, इसे लनु स्वयम्म स्तोत्र भी कह तोपका बीनती मत्स्यायाकोसि हिन्दी रचनाकात मं० १७२३ चैत बुदी । विश्वभूषन पंच मंगल रुपचन्द विशेष—प्रारम्म के ७ पत्र तयार, २० और १२ वी पत्र नहीं है । ५४ मे धागे पत्र खाली हैं। ७४. गुटका नं।४। पत्र संस्था-२६ | साज-५४७ च । भाश-हिन्दी । लेखन काल-x/ पूर्व । देशम नं. ११.। विशेष - • काहखडी भाईस परीष १७-२६ पूर्व Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [संह १४२ } ७८५. गुटकानं०६५14 सल्या-१९ साइज-1xहन । माषा-हिन्दी । लेखम काल--- अपूर्ण । वेष्टन न. ११०१. विशेष-को उल्लेखनीय पाठ नहीं है। ७५६. गुटका नं.६६। पत्र संख्या-१६४साइज-६x४ दश। माला-संस्कृत । लेखनकाल-x1 पूर्ण । वेष्टन नं. ११०२। विषय-सूची कता का नाम विशेष । । । । सममन्दर आवकनी सउझाय जिनहर्ष अमितशाति सक्न पंचमो स्तुति चतुर्विंशतिस्तुति हिन्दी मोडीपाश्चस्तवन मारहवसी अपूर्ण राम्य शतक महरि संस्कृत लेखनकाल सं. १७३ विशेष-ग्रामपुर में प्रतिलिपि हुई पो । प्रति हिन्दी टीका सहित है, टीकाकार इन्द्रजीत है । अंतिम पुयिका निम्न प्रकार है-इति श्री सकलमौलिमदनमनिश्रीमधुकरनृपतितम् । श्रीमदिन्द्रजीतविरचिताया विकटी पकायां वैराग्यशत समाप्त । नाकौन पाश्वनाथ स्तवन समयसुन्दा पद (अखियो भान पवित्र भई मेरी) मनराम ७. गटका १७ पत्र स्या-१ | माइज-६x४ इन। मा-हिन्दी । लेखन काल-x। पूर्ण । वेटन नं. ११०३। __.. विशेष-पद, चन्द्र गुप्त के सोलह स्वप्न (मावमद्र) जखडी, सौलह कारया मावना ( कनकौति ) संग्रह है। ७८८. गुटका नं० १८ | पत्र संख्या-६४ । साइज-६x६ इंच । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । सेवन प्रश-४ । पूर्व । वेष्टन नं. ११०४। विशेष-स्तोत्र एवं पूजा संग्रह है। ! मा-संस्कृत । खैखमकार-x1 ७८६. गुटका नं०१६ । पत्र.,संख्या-६५ । मान-५४६ पर्श । बेष्टन न. ११.६ । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समझ } विशेष-निल पाउ पूजा आदि का संग्रह है। | भाषा-हिन्दी लेखन काल-x! ८. गुटका नं. १००१ पत्र सर-१८ साज-Ext टनन·११.। प विशेष-पद व स्तोत्रसंग्रह है। पूर्व ७१. गुटका नं० १.१ । पत्र संका-२.. I साइज-६x६ च 1 भाषा-हिन्दी । लेखन कास-X1 धन न. १.. ! विषय-सूवी का का नाम भाषा भाषा विशेष श्रादित्यवार कया __भाऊ , हिन्दी चतुर्विशति स्तुति शुभचन्द्र श्रीपाल स्तोत्र - कामराज नाशि कामरान का परिचय दिया हुआ है। सठ शलाका पुरुषों का वर्णन श्रीपाल स्तुति अजित जिननाय की विनती ( मोई प्यारो लागेजी) पर्थ च। मापा-संस्कृत-हिन्दो। लेखन ४२ गुटका नं. १०२ । पत्र संमया-१७ | साज-Ext काल-। पूर्ण । वेष्टन नं. ११०६ | विशेष-नित्य नैमिशिक पूजा पाठों के अतिरिक्त मुरमा निम्न पाठ है-- नाम मावा विशेष माक श्रादित्यवार का श्रीपाल दर्शन पटमार वर्षान श्रुतलाम पूर्स प्रारंभ-दोहा--प्रथम जिनसुर बंद करि भगति भाव उरलाय । करवर्गान षटमास कछु' . ... ....। पौपाई-एक समै श्री वीर जिपाय, शिपलाचल पाये मुख । श्री जिनी अतिसे माय, सम जीवन को और पलाय । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४४ ] मासी निश्चरन लहये 1 1 परिजन ते फल फुल म समोसरण कि महमा माल ऐसे मन चित वनपाल । धाम तिन वाणि सुविस्थान कियो, और व्याकरणा नहि देखियो । तैसे बजे कणि मोती विधियो मृतसिबलता पैगम कियो । जैसे बुधि जन वाणिमाला वरण कियो भाषा गुण माल || अंतिम — पटमाल व महान पुरिव वस्न कियो दोहा- देश का निरज में न राजान | ताके पुत्र है तो सूरजमल सुवधाम || तेजपुंज रवि हैं मलो, न्याय नीति गुणवान | दाको एस है जगत में, तथै दूसरो मान ॥ तिन्ह नगर बसाइयो नाम भरतपुर तास । सा राजा समष्टि है भला, परवि प्यारि उपवास | जिन मंदिर तह बात है, जिस महाम वाह } इन्द्र पुरि धमिराम है सोमा सुरंग निवास | साहा नगर को चौधरि विहरि दा तिनकै मंदर उपरों, श्री जिन मंदिर प्रवास ॥ श्री जिन सेवक है भलो भी जिनको दास । के बार गोत्र है भंलो, हम मया जिसदांस ॥ वाह समिषे याग कर वर्ग किमी दर निवास वासि सांगानेर को जाति व धमवाल || गिल गोत उद्योग है गहरी रामसंघ को बाल | उत्तर दिसम है न मसी, अहली प से पुनियान नर दिलो काटियो धान | हादिजगर को वाफवर संगही पदारथ जानि ॥ बार्क देसी खान को ऐ दोष लिये चानि । महन्द्रमा मोरचंद्र के पाट | कासटागा गच्छ में न धन्दाबाट निज गुरू सु विनति करि, पाप हर के काजि ॥ स्वामी तुम उपदेश बोह, तारे खान || [ संद Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] [१४५ सन मुसमुख बापि खिरी, सणी भात गुणवान ।। सिध क्षेत्र बंदन करो, पुरि वर्म... ....टान । तब में परस ते तुषि in ! सजन भ्राता संग ले श्राये उर्जत मिलान । जिन माईस मों पूजि करि, भली मगति वर यानि । अष्ट द्रव्य ले निरमला हरे करम वसु सानि | चनुर संग निज पाहार दे अंग प्रभावना सार ।। सर्व संग को भगति सु भयो सुजै जै कार । सम्म माता निज हेत करि, धरौ ज संगहि नाम | तातै संगहि कहत सघ नहि कियो पतेसटा धाम | संवत अठारा से भला ऊरि एकाइस जानि । जेठ सुकल पंचमि भली श्रतसागर बखाणि ।। सुवाति नवित्र है भलो व्रत हो रविवार । 4.किचंद उपदेस ते रच्यो माल विस्तार ।। हमारो मित्र है सही जाति ज पलिवाल । वह वसतु हैं हीडोगा में बने रहै मरतपुर रसाल ।। तिनसु हम मेलो भयो शुभ उदै के काल । उनहि का संजोग ते करि मापा षटमास ॥ इति परमाल वन संपूर्ण..विलास अपवाल यांचे तीने प्रहार बंच्या। ७३. गुटका नं० १०४ । पत्र संख्या-६४ ॥ साइज-५४४३ इस । माषा-हिन्दी । लेखन काल-४। पूर्ण । वेष्टन नं १११३ । विशेष-हिन्दी पर्दो का संग्रह हैं । लेखन ७६४. गटका+०१०५ | पत्र संख्या-१३ से ५० साज-4xxs इच। माता-हिन्दी काल-४ | अपूर्ण । वैष्टन नं० १९१३ । ७६५. गुटका नं० १०६ । पत्र संख्या-१५ साज-१४४ इन्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-x1 पूर्ण | बेष्टन नं. १११। विशेष-पद संग्रह है। ___E६. गुटका नं०१०७ । पत्र संख्या-1 साइन-xx च । माषा-हिन्दी | लेखन कालसं. १८०१ । पूर्ण । वेष्टन न११६ । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ } . [ संग्रह ७६७. गुटका नं०१०८। पत्र संख्या-१६. लेखन काल-xथिय । वेष्टन नं. १११८ । साहज-६x४ भावा-हिन्दी। विषय-संग्रह | विशेष-मुरूपतः निम्न पाठ हैं हिन्दी सलचचंद विनोदीलाल बनारसीदास कनककीर्ति श्रीपाल की स्तुति रामुखपच्चीसी उपदेश पश्चीसी का वालि पद तथा पालोचना पाठ १६ पंच मंगल विनती-बंदु श्री जिनराई हरीसिंह रूपचंद कनककीर्ति অনুষ " ले. का० १७० मादा दवाड ने प्रतिलिपि को। बनारसीदास पूर्ण कल्याणमंदिर भाषा भखड़ी रविवार कमा UEE. गुटका नं०१०४ । पत्र संख्या-२४ । साइज-८४६ इव । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १११ । विशेष-स्तोत्र तमा पदों का संग्रह है । अक्षर पहुत मोटे हैं । एक पत्र में तीन तमा चार पंक्तिया है। ७६. गुटका नं० ११० । पत्र संख्या-७२ । साइन-६x४ इन्च । माषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन कास-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ११२० । विशेष-निम्न पाठों का संग्रह है। संस्कृत सामायिक पाठ रजस्वला स्त्री के दोष सूतक वर्णन स्तोत्र संग्रह ८००. गुटका नं० १११ । पत्र संख्या १३ । साहज-txi इम्च । माषा-संस्कृत-हिन्दी । लेखन काम-x1 पूर्ण वेटन नं.११२२। विशेष-सामान्य पाठों का संग्रह है। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संमह] ८०१. गुटका नं० ११२ । पत्र संख्या-- । साज-७४६ । साषा-संस्कृत-हिन्दी लेखन काश-x; पूर्ण। वेष्टन नं. १५२६ । विशेष-दर्शन तथा पार्श्वनाम स्तोत्र श्रादि हैं। ८०२, गुटका नं०११३ । पत्र संख्या-४ । साइज-१४ । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X । पूर्ण । पेष्टम नं. ११४०। विशेष ---सिद्धाष्टक, १२ अनुप्रेथा-बालूराम फत, देवाष्टक, पद-डालूराम, गुरू अष्टक श्रादि हैं । ८०३. गुटका ने०११४ । पत्र संख्या-10 | साइज-xx४ । माषा-संस्कृत । लेखन काल- पूर्ण। बेधन. १९४८। विशेष-दर्शन शास्त्र पर संग्रह है। ८०४. गुटका नं.११५ । पत्र संख्या-५ । साइज-५४४३ भाषा-हिन्दी । लेखन काल-४ । पूर्ण । बेष्टन नं. ११४ । विशेष-बीस तीर्थकर नाम व निर्वाण काल है। ८०५, गुटका नं०११६। पत्र संख्या-२०८ | साइज-६x४ | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-xपूर्ण बेष्टन नं. ११५५ । भाषा हिन्दी कर्ता का नाम अमरमणिक सहजकीर्ति समयमन्दर सहजकीर्ति विषय-सूची चैत्री विधि पाच मजन पंचमी स्तवन पोसा पडिकम्मा उठावना विश्चि इतबीस जिनगणावर वर्णन वीस तीर्थकर स्तुति नन्दीश्वर जयमाल पार्श्व जिन स्मान वर्णन सीमधर स्तवन नेमिराजमति गौत चौवीस तीपंकर स्तुति सिद्धचक्र स्तवन सहजक ति जिनहर्ण जिनपूर्ण Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८] शुरु विनती साहु रिषि संधि अंगोपांग फरकन वर्णन ब्रह्मचर्यं नव माडि बन लघु स्नपन विधि अष्टादिका वपन विधि मुनि माला क्षेत्रपाल का गीत ८०६. गुटका अपूर्ण । त्रेष्टन ० ११८४ । विषय-सूची नूरकी शकुनावली श्रायुर्वेद के स वायगोला का मंत्र तथा पत्रक मारण विधि नूरकी शकुनावली विशेष - माईचंद में लिखा है। मातृका पाठ मंत्र स्तोत्र आयुर्वेद के नुसखे विषय-सूची | माणिक पूरि समाधि भरण मांडा प्रारम्भ - राम सोरठी: पुण्यसागर कर्ता नूर ।। नूर हिम्पि कर्ता नं० ११७ | पत्र संख्या २० से ३९ । साइज - १०x४३ | भाषा - हिन्दी | लेखन काल-x हर्ष कीर्ति ע 32 i 22 39 " ·"3 33 माथा हिन्दी RAR म्हारो रे मन मोडा तू तो गिरनारच्या उठि चापरे । ₹ नेमिजी स्यौं युं कहियो राजमती दुक्ख ये सौसे ॥ म्हारो ॥ " ८०७ गुटका नं० ११८ | पत्र संख्या ५३ से ८६ । साइज - ६५३ य भाषा-प्राकृत-हिन्दी | लेखन काल - X अपूर्ण । जेष्टन नं० १९८५ | 77 " भाषा प्राकृत हिन्दी विशेष अपूर्ण 21 [ संग्रह སྨ शेष ५३ से ६२ पत्र तक ६४ से ६७ पत्र तक Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंतिम-- मोन्त्र गया जिन राज प्रभु गट गिरनार भझार रे । राजल तो सुरपति हुवौ स्वामी हर्षकीर्ति मुकारौ ॥ म्हारो० ३ ॥ ॥इति मोहोसमाता ।। प्राकृत से मकि वर्णन पद - पारम्भ-जय घरहंत संत मन देव मा त्रिभुवन भूप । हिन्दी 205. गुटका नं० ११६ | पत्र संख्या-2.1साइज-८४६ इन्च | मापा-हिन्दी लेखन काल-४। पर्श । वेष्टन नं. १२१ विषय-सूची सामा कर्ता महमद पद हिन्दी प्रारम्भ-भूलो मन भमरा रै का.. . ..... ...: चंतिम भाग-महमद कहै वसत बोरीये ज्यौ ५ प्राबै साथी । लामा अापण उगाहीने लेखा साहिब हाथी । सया बनारसीदास नववारसम्झाय जिनहर्ष विशेष-अंतिम-रूप कूप देखि भरि रे मांहि पर किम ग्रंथ । दुख मारी जारी नहीं हो कहै जिनहरण प्रबंध ॥ सुन रे नारि रूप न जोत्ये रे ॥ १० ॥ इति नववाहसमाय संपूर्य । अपूर्व राजल बारहमासा पार्शनीय स्तुति हिन्दी गुजराती माबकुशल यौतम-भत्रि भवि दीगो देव सेव क ताहरौ । भिर सिर तुम्ह मी श्राश बास ५ माहरी ।। पदम सुन्दर उवझाय पसाय गुण भणे। भाष कुशल मरपूर मुख संपति घौ ॥ इति पार्थ जिन स्तुति ॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५. ] संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुति रामविजय ले० का सं० १६. चैत दो ५ अंतिम--संत्र्यो श्री जिनराज । श्राएँ अविचल राज ॥ रामविजय भगाए । सु प्रसन । धीए ।' इति श्री मंखेश्वर पार्श्वनाम जिन स्तुति । इमें लिखिता भाव कुशलन । श्री केसरि बाचन कते ॥ नंद छत्तीसी - संस्कृत अपूर्ण . गार ले. का. सं. १७६३ पौष पदी २ विशेष-केवल १० से ३६ तक पद्य है। नाई केपर के पठनाय लिपि की गई पो। नमिनाप बारहमामा (गु.) १४५८ है। विशेष-रागभरा राजीमती लिधो संजम मार । कहै ब्राण हर जसुमालीया मुगत मंझर १४|| वियोग शृगार का अच्छः वर्णन है। बुधराम हिन्दी त्रित्र -- प्रारम्भ के पत्र गल गये हैं । प्रतिम-गति गरथ मत लूस्खा खाय । ............... । मुखो मत चालें सियाले । जीमर मत चालें उम्हाले । भिण होय अगा-हायो। कापम हो पर लेखो भूले । ए तिनु किण ही तो ॥१२० ॥ एह सुधसार तणोर विचार | पालन पाने पण संसार ।। भरी पालय रोषम युता । राज को पसार संयुता ॥२१०|| ॥ इति बुथरास संपूर्ण ॥ तमास्तू की जयसाल याणंद मुनि। विशंक-प्रारम्भः-प्रीतम सेती भीनमें प्रमदा मुण किशान । मोरा लाल मन मोहन एके चित तू संभाल ।। चतुर सुजाण ॥ निम-दया धरम जागी करी सेवो सदगुरु साध मारा जाय। पाणंद मुनि श्म उच्चर बग माही जस वाम मोरा लाल ॥ चतुर तमाच परिही। ॥ इति तमाखू जयमाला संपूर्ण ।। ॥ लिखत ऋषि होस। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १५१ संग्रह ] ८०१. गुटका नं० १२०-२५ भाषा-हिन्दी लेखन काल बेननं १२१०। विशेष – जीवों की संख्गा का वर्णन दिया हुआ है। 1 पत्र १०. गुटका नं० १२१ पूर्व मेननं०.१२१८ विषय-सूनी कक्का बचीसी पद नारी ि मनुष्य की उत्पति पद श्री जिनराजे ज्ञान अभिधर ।। सेवन काल - X विनती श्री जिन रिम महंतु गाऊ || उपदेश नसीसी U पूर्ण न नं १२२० । कर्ता अजयराज वारी हो शिव का लोमी पूर्ण । वेष्टन नं १२२१ । दीपचंद अजयराज निम्न पाठों का संग्रह है राज विषय-सूनी राजुल पथ्वीसी नेमकुमार बारहमासा ५६६ माषा - हिन्दी लेखन का X I भाषा हिन्दी " फर्ता विनोदीलाल 23 ११. गुटका नं० १२२ १४४३६ नावा-हिन्दी रचना काल -X | १२१६ " विशेष मतिसागर से की कथा है। पद्म संख्या १०१ है प्रारम्भ में मंत्र जत्र सी दिये हुए – | " 12 १२. गुटका न० १२३ पत्र संख्या ६ सम्म भाषा-हिन्दी लेखन काल-XI 7" 77 31 विशेषगुणस्थान की चर्चा एवं नवल तथा भूधरदास के पद धीर खंडेलवाल गोत्रोत्पत्तिवन । १३. गुटका नं० १२४६ माषा-हिन्दी लेसन काल-X विशेष भष हिन्दी ष Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] नेमि राजमति जी जखी का अंतिम दिल्ली में प्रतिलिपि हुई थी. तिलोकचंद पटवारी गोधा चाक वाटी ने से० १७८२ में प्रतिलिपि की थी। फलसफलतामखि तीर्थकरों की जयमाल पार्श्वनाथ की मिनी बार हैं। पूर्णा | नेष्टन नं० १६२२ । रेगराज -नीस दिन अक निरवारजी । । विषय-सूची जिनराज स्तुति १४. गुटका नं० १२५ पत्र संस्था ३२६४ भाषा-हिन्दी लेखन कास - X हेम मथे जीन जानिये ते पाये म पार जी | 1 नेमीश्वर लहरी पंचमेक पूज चिन्तामयि स्तोष पार्श्वनाथ स्तोष फुटकर कवि विधि पूजा आदित्यवार कथा (छोटी) ज्ञान पश्चीको भक्तिमंगल नित्यपूजा जिन स्तुति श्रादीश्वरजी का बचावा सम्यक्त्वी का बघावा क कनककीर्त्ति विश्वयुध्य विराम । । बनारसीदास 19 रूपचन्द ऋल्या पाकीति सं०] १७०४ बाद सुदी ५ | यपूर्णा । वेष्टन नं० १२२४१ माथा विशेष हिन्दी (गुजराती) से० का० सं० १७५६ फागुन ६ सांगानेर में प्रतिलिपि हुई। 77 11 हिन्दी 13 13 " विशेष पूजाओ के अतिरिक्त निम्न मुख्य पाठों का संभ "" "7 हिन्दी "" 97 93 [ संग्रह २. का० सं० २७०४ श्राबाद सुदी | ० ० ० १०० पूर्ण " 19 श्रपू १५. गुटका नं० १२६ । पत्र संख्या १२२-२४ भाषा-हिन्दी लेखन काउ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संम ] विषय-सूची कस्यायमन्दिर तीन सदेसी संबोधन मापका ज्ञाननितामणि पूर्वनेष्टन १२२६ । विषय-सूची कर्म प्रकृति वन भाषा टोकर पूजा प्यान बचीसी पद जोगीराखा मिशन विनटो कर्त्ता का नाम बनारसीदास मनराम मनोहर पू० १२२८ ॥ अजयराज बनारसीदास दीपचंद जिनवास १६. गुटका नं० १२७ पत्र-२ साइन-६६ १५ माषा-हिन्दी लेखन काल-XI t पंच मंगल स्वश्चन्द पद (मस्त भाजि हो पवित्र मोहि भयो) पाठ द्रव्य की भावना जैन पचीसी पदसंग्रह चार मित्रों की कमा भाषा हिन्दी माष! हिन्दी " " 19 22 33 21 33 15 " विषय-सूची कर्णा कक्का बत्तीसी गुलाबराव विशेष - हीरालाल ने प्रतिलिपि की । संबोध क्यासिका भाषा बिहारीपास विशेष—बिहारीदास गरे के रहने वाले थे। बादिना का नावा (बाजा बाजीचा पया ज जय हो प्रभु कुमार ) " "3 १४ [चर है। १०. गुटका नं० १२८ पत्र संख्या १०२ भाषा-हिन्दी लेखन काम-XI M " 147 हिन्दी 17 जगराम नवराम मोधराज मनारसीदास आदि पद है। अजयराज विशेष विशेष [ १५३ ००१०१३२ विशेष ०००२८२ कार्तिक ५ १०० १७५ काशिकी १३ । २०२० १७२१ जेठ ००१०११ २३ । मा बुदी Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] [ संग्रह भूवादास . हिन्दी बननामि चकत्तिको वैरसम्म मानना १%, गुटका नं०१२६ । एन संख्या-१३ | लाज-xeम । माषा--हिन्दी । लेखन काल-x| अपूर्ण । बेटन ने० १२३० । विशेष पूजा पाठ मह है। ८१६. गुट का नं. १३८ । पत्र संख्या-७३ से ११४ । साइज-५३५३३ च । माषा-संस्कृत-हिन्दी। लेखन काल-- | अपूर्ण । टन नं. १:३२। . विशेष—नित्य नमितिक पूजाओं का संग्रह है । प्रारम्भ के ७१ पत्र तथा ४, ७५ पत्र नहीं है। २०. गृटका नं० १३५ । पत्र संख्या-१६ । साज-६४३३ इञ्च | भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल--सं०३६ मादवा मृदी ११ । अपूर्या । श्रेष्टन नं. १२३५ । ... विशेष-~-सामान्य पाठों का संग्रह है । जयपुर नगर स्थित चैत्यालयों की सूची दी हुई है। ८२१. गुटका न. १३२ । पय प्रस्था-१५७ । साइज-६३४५६ छ । माया-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल -X । अपूर्ण । वेष्टन नं० १२३६ । विशेष-नस्य नैमित्तिक पूजा, साधु नंदना, भक्तामर भाषा श्रादि पाठ हैं बीच में कही २ पय नहीं है। २२. गुटका नं० १३३ । पत्र संख्या-१० | साज-४:४२५ इन्च । माषा-हिन्दी-संस्कृत : लेखन काल-x1 पूर्ण । केटन न१२३८ । विषय-सूची कती माश बिशेष श्रादित्यकार कमा माऊ हिन्दी चतुर्दशी कया हरिकृष्णा पाण्डे पंच मंगल रूपचंद नित्य पूजा पाठ जिन जागा स्तुति स्नपन पूजा, त्रिपाल पूजा आदि नैमितिक पूजा-संग्रह भी है। ८२३. गुटका नं० १३४ । पत्र संख्या-१५० ! साज-६४३हैं। माषा-हिन्दी लेखन काल-x | पूर्ण। वेष्टन ०१२३६ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपह [१६ सावा विशेष सपथ है। . २० ५५ हैं। पद विषय--सनी नमीश्वर विनती पुण्य. पाप जग भूल पच्चीसी भगवतीदास ४६ दोष रहित श्राहार वर्णन - जिन धर्म पच्चीसी मगबत्तौदास पदा संग्रह जगतराम शोभाचन्द (भज श्री रिवन मिनिंद क') पद जिणदास (जैन धर्म नहीं करना नरदेही, पाई. ). . औदनार (अश्वसेन राय कुल मंडन उग्र वंश अवतारी) सप्त व्यसन कवित जिनके प्रभु के नाम की मई हिये प्रतीति । विरूनराय देनर मजे नरक बास मयमीत।। सोलह स्वप्न (स्त्रप्न बत्तीसी) भगवतीदास विशेष–अन्तिम-निज दौलत पाँचै मया हरै दोष दुख रासें ।। मरत नकवी के १६ स्वप्नों का वर्णन है। . से. .से.१८१.. ( समरि जिनंद समरना है निदान) । बहदाला बुधजन शंभूराम ने प्रतिलिपि की थी। ननद भौजाई पानंदवर्धन का भागढा चतुर्विशति स्तुति विनोदीलाल पद संग्रह बनारसीदास एवं पूधरदास माईस परीषह भूधरदास चरखा चपर चारहखडी Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] [ संज्ञ ८२४. गुटका नं० १३५ पत्र संख्या ७४ साइज भाषा - प्राकृत- संस्कृत | लेखन -X पूर्ण वेष्टन नं. १२४० । विषय-सूची दर्शन सार त्रिलोक प्रति सम्मुद्रिक रोक सहायक ऋषि पूजा क देवसेन 4 गुस्थान सकते है इसका ब्यौरा है। चौबीस अका चर्चा शाका पुरुषों की नामावलि माषा गात " संस्कृत कश माऊ ममिति 57 37 राज पट्टावली 11 राजाओं के वंशों की पट्टाबलि संवत् ८२६ से १६०२ तक की दी हुई है। मालियाचार्य सज्जन चित्त मल्लम त्रिलोक प्रति विशेषटके के अन्त के ४ पृष्ठ याचे फर्ट हुये हैं । २५. गुटका नं० १३६ पत्र संग- १४० + साइज ७४६ | भाषा - हिन्दी-संस्कृत-प्राकृत | लेखन कामा-- पूर्ण वेष्टन नं० १२४१ । " प्राकृत विषय-सूखी आदित्यवार कमा मावना बतीसी अनादिनिधन स्तोत्र कर्म प्रकृति वचन 22 १४८ प्रकृतियों का वर्णन है तथा ४ स्थान तक सात मोहनीय की प्रकृतियों का ब्यौरा भी हैं। त्रिभुवन विजयी स्तोत्र संस्कृत हिन्दी गुणस्थान जीन संख्या गृह वर्णन से १४ भाषा हिन्दी संस्कृत विशेष ५२ गाथाएं है । १२६ 17 31 २० श्लोक है। हिन्दी 分 विशेष १५४ पक्ष है। गुपस्थान तक एक समय में कितने जोन अधिक से अधिक व कम से कम ।। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संप्रह [:. परमानंद स्तोत्र नमीत्र के दश मवांतर ब्रह्म धर्मचि विन्दो अन्तिम पाट निम्न प्रकार है। दीगर में भासन कीधी भासी जेनर नारी जी। श्रीघ मंगल कारण कीधी सग धर्मरुचि ब्रह्मचारीजी ॥ निर्वाण काण्ड गाया प्राक्त लयु सहस्त्र नाम विकापहार स्तोत्र धनजय वडा कल्याण हिन्दी तीर्थंकरों के गमे जमादिक अध्यायों की तियां दी। पल्प विधान गरुमक्ति स्तोत्र प्राक्त यामीकार महिमा पल्प विधान कथा संस्कृत २६. गुटका नं. १३७ । पत्र सहिया-४४ ३ साइज-६३xन पूर्ण बेन नं. १२४२ । | साषा-हिन्दी । लेखन काल-X । पत्तों विषय-सूची भाग विशेष पंच मंगल रूपन्द तीन चौवीसी एवं मोस तीकरों को नामावलि गिनती संग्रह बारह भावना भूधरदास वज्रनाभि चक्रवर्ती की वैराग्य मावना ५२७, गुटका ० १३८ । पत्र संख्या-5 से ४ । साइज-2x., इम्ब । भावा-हिन्दी-संस्कृत । देखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं ११४३ | विशेष विषय-सूची कर्ता भाषा पूजा संग्रह संस्कृत विशेष-देव पूजा वोन विरहमान सिद्ध पूजा श्रादि का संग्रह हैं। समुच्चय नौनीस तीर्थकर पूजा अजयराज हिन्दी ७ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ } [ संग्रह अपूर्ण - चमेस पूजा तीन चौबीसी तीर्थ करों की नामावलि समुच्चय चौबीस तीर्थकर जयमाल - २८. गुटका नं. १३६ । पत्र संरूपा-३ में .. 1 साज-Exe | भाग-सस्कृत-हिन्दी। लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्ट न नं: १२४४ । विशेष थपूर्ण विषय-सूनी कर्ता भाष। पद्मावती पूजा संस्कृत चंदनभस्तुति (चन्द्रप्रभु जिन ध्यायज्यौं । मात्र हो चंद्रप्रभ जन ध्यायज्यों ॥ टेक पंच बधावा आदिनाथ स्तुति धारती विनती " पद विनती अपूर्ण ले. का. सं. १७७७ मंगसर मुदी लै. का.सं. १७७४ पौष बुदी दर्शनपाठ भक्तामर स्तोत्र माननुगाचार्य सौख गुरुजनों की कल्याणदिर माषा बनारसीदास ले. का. सं० १७१५ यसोज सदी ४ देवपूजा , ले० का० सं० १.६६ श्रावण बुदी २ विशेष-गुलाबचन्द पारनी की पोभी हैं । सांगानेर में प्रतिलिपि की गई थी। +२६. गुटका नं० १४० । पत्र संख्या-१० से १२० । साइज-५४६ इछ । भाषा-हिन्दी-संस्थत । सेखन काल-। पूर्ण । श्रेष्टन नं० १:४५ । सापा विशेष विषय-सूची समयसार भाषा + क्तामर तोय एवं पूजा बनारसीदास हिन्दी संस्कृत | । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] [१५४ संस्कृत सिद्धि निय स्तोत्र कल्याण मंदिर स्तोत्र विषापहार स्तोत्र नेमीश्वरगीत जखडी नेमीश्वर राजमति गीत मेधभुमार गीत मुमित्रा तुति ज्येष्ठजिनवर कपा देवनन्दि कुमुदचंद्र धनंजय जिनहर्भ अनंत की ति हिन्दी स्नना काल सं० १७५८ भादवा सुदी १. विनोदीलाल पूनो गुरके के प्रारम्भ के 2 पत्र नहीं हैं । लेखन कारल-x। ८३०. गुटका नं०१४१ । ११ख्या -१२ साज-७४६ इन।भाषा-हिन्दी बाणं । वेष्टन नं० १२५३ । विशेष - सामान्य पातों का संग्रह है। | साज-2x । भाषा-संस्कृत-हिन्दी । ८३१. गुटका नं. ५४२ । पत्र संख्या-१५ लेखन काल-० १८११ । मपूर्ण । वेष्टन नं० १२१४ । भाषा विशेष संस्कृत विषय-सूची पार्श्वनाम जयमाल कलिकुंड पूजा चिंतामणिपूजा शान्ति पाठ सरस्वती पूजा ষণা ধূলা महावीर विनती । । । लेका सं० २०११ जेठ चुदी र हिन्दी जिशेष--चाँदनगांव के महावार को विनती है। इसमें ११ अंतरे है । यन्य पाठ भी है। ८३२. गुटका नं० १४३ । पत्र संख्या-१ • 1 साजxx६३ इञ्च । माषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल-२०१८१३ । अपर्ण । बेश्टन ० १२५५ । विशेष-निम्न पाठों का संग्रह है। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० [ संग्रह (१) निर्वाण काण्ड, भक्तामर भाषा, पन मंगल, कराण मंदिर श्रादि स्तोत्र ! १२) ४८ प्रविधि सहित दिए हुए हैं एवं उनके फल मी दिये हुए हैं। ये भक्तामर स्तोत्र के यंत्र नहीं हैं । (३) गज करणादि की औषधि, हितोपदेश भाषा, लाला तिलोकचंद की स. १८१२ की जम कुडली मी दी (४) कवित- केई खंड खंड के निरवन कू जिति पायो । पलक में तोरि डार था किलो जिन धारको ।। म्हा मगरूर कोऊ सूझत न सर । राहु केत सौ गरूर है वहीया बळे सारको । मोर है हजार च्यारि प्रसवार और । लगी नहीं बार जोग विरच्यौ वजार को ।। . माधव प्रताप सेती जैपुर सवाई मांझ । ___ मारि कडा(चो मग महाजना मलारको ।। (५) नौ कोठे में बीस का यंत्र-- । मंत्र का फल मी दिया। २३३. गुटका नं. १४४ । पत्र संख्या-२२ । साइज-६४४३ ईन् । मा-हिन्दी लेखन काल-x1 अपूर्ण । वेष्टन नं० १२५६ । विशेष - सामान्य पाठों का संग्रह है। ३४. गटका ८१४५ पत्र संख्या-७५ साइज-4xच। माषा-हिन्दी-लेखन काम-x. अपूर्ण । वेष्टन नं. १२५७ । विशेष-बखतराम कृत श्रासाबरी है पथ संख्या ३६ है। ८३५. गुटका नं० १४६ । पत्र संख्या-३ से २७ । साइज-६x४ इन्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-। अपूर्ण । बेन्टन ने० १३१८ । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] [ १६१ - विरोप-पंच मंगल पाठ तथा चौबीस ठाय का ब्यौरा है। - - ८३६. गुटका नं १४७1 पत्र संख्या-११ से ६१ । साइज-६x४ इञ्च । भाषा-हिन्दी । लेखनकाल - सं० १.३८ आषाद बुदी । | अपूर्ण । वेष्टन नं. १२५ । विशेष-सामान्य पारों का संग्रह हैं तथा सूरत की बारह खली है जिसके ११३ पा है । ३७. गुटका नं. १४८ । पत्र संकपा-२७६ | साइज-७६x६ इञ्च ! भाषा-हिन्दी । लेखन कालसं. १६ व्ये ४ युद्धी ११ । अयं । वेष्टन नं १:६.] कत्ता भाषा विशेष ब्रह्मरागमन , ले० का० सं० १.२७ फाल्गुगा सुदी १ विषय-सूची हनुमंत कमा मविष्यदत्त कथा जैनरासो साधु बंदना चतुर्गति बेलि अठारह नाता का चोदाला रफुर पाठ बनारसीदास हर्षकीर्ति साड् लोहट ८३८ गुटका नं० १४६ 1 पत्र संन्या-२० ! साज-६६४४६४ञ्च । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेन्या काल-४ । पूर्ण | देष्टन नं. १२६५ । मिशेष-सामान्य पाठों का संग्रह है। ८३६. गुटका नं. १५० 1 पत्र संख्या-११० | साइ-५६४५ : इम्य । माषा-हिन्दी । सेखन काल-X । घपूर्ण । वेष्टन नं. १२६६ । विशेष-पूजात्रों का संग्रह है। ८४०. गुटका नं. १५१ । पत्र संख्या-६४ | साज-६४१३ च 4 मामा-हिन्दी : लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं० १२६७। विशेष ---पद व स्तोत्रों का संग्रह है। ४१. गुटका नं० १५२ । पत्र संख्या-१३० 1 साइज-६x६३ सोखन काल-सं० १७६३ । पूर्ण । वेटन नं० १२६ । | भाषा-हिन्दी-संस्कृत-प्राकृत । विशेष-नित्य नमितिक पूजामो, जयमाल तथा भाउ कवि कृप्त प्रादित्यवार कणा आदि का संग्रह है। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [संह ८४२. गुटका नं0१५३। पत्र संख्या-X18-1४४१६च । माषा-हिन्दी-मरणत । लेखन काल-- | पूर्ण । वेष्टन न० १२०० । मुख्यत: निम्न पाठों का संग्रह है:मतामर स्तोत्र मानतु गावार्य बारह खड़ी श्रीदत्तलाल संस्कृत हिन्दी प्रारम्भ-कका केवल कृष्ण मज जब लग रहे शरीर । बहार न असा दाव है, पान पडेगी मोड ||१|| अन्तिम- हा हा इह मत्र हसत हो, हरजन हम को । से हॅस खाली गये ए जुर रहे सुम जोग । जे जर रहे सुभ जोय होय तीन रेपूर | होनहार भी रहे मुरापन गऐ जु धाक ॥ सत्ग म्रत पाताल काल ग्रह वाली ! भाइदतलाल वह साहिब खाली ।। ॥ बाराखडा संपूर्ण ४३. गुटका नं0१५४ । पत्र संख्या-१७। साइज-३४५६ । भागा-हिन्दी । लेखन काल-x1 श्रतराई । बेष्टन नं० १२७१ । विशेष-जगराम, नवल, सालिग सागचंद, यादि कत्रियों के पद हैं तथा बनारसीदास त कुछ कवि! श्रीर सवैये भी हैं। । भाषा-हिन्दी लेखन काल-- ६४४. गुटका नं१५५ । पत्र संख्या-६४ । माइज-६:४४ ६. १९०६ यासोज सुदी १३ | अपूर्ण । वेष्टन नं. १२७२ । कर्ता विषय-सूची भाषा विशेष सुगुरु शतक जिनदास १० का० सं० १८५२ चैत नदी मोक्ष पत्री बनारसीदास बारह भावना मगवतीदास निर्वाण काण्ड मात्रा 10 का० सं० १७४३ श्रासोज मुदी १० जैन शतक भूधरदास २० का.सं. १७१ पौष बुदी १३ ८४५ गटका न०१५६ । पत्र संख्या-५ | लाइज-७४ इञ्च | भाषा-हिन्दी लेखन काल-४| पूर्गा ! वेटन नं० १२। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] हुआ है। [ १६३ विशेष नित्यनैमिशिक आदि का समह एवं ६३ राजाका पुरुष तथा ११२ ९५ जीवों का पीरा दिया ८४६. खनाल - लेखन काल गुटका नं० रचना का नाम समयसार नचनिका १५७ पत्र संख्या- २३४ साम्य भाषा - हिन्दी-संस्कृत | पूर्व केन नं १२०४ | I कर्ता श्री श्री शिख मोसी खरा प्रसिद्धा | प्रशस्ति ० १६६७ चैत्र शुन्यावतीमध्ये राजा सिंघम लिखा सहि देव द्वादशानुप्रेक्षा शुभाषिताव पदसंग्रह धर्म धमा ग्राम हिंडोलना वणिजारी राख ज्ञान पच्चीसी फर्म शोसी ज्ञान बतीसी बनारसीदास चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्न ब्रहार रायमल्ल लू बनारसीदास, रुपचन्द धनं केशवदास रूपचंद बनारसीदास - विशेष मुख्य रूप से निम्न पार्टी का संग्रह है पूजा स्तोत्र एवं पद संग्रह भाषा हिन्दी अजयराज 35 ע 71 "" 17 17 33 हिन्दी 12 ४७. गुटका नं० १५८ पत्र संख्या १२२ साहब ६४ १०६ भाषा-हिन्दी लेखन का पूर्ण न० १२७४ | I " संस्कृत हिन्दो विशेष ले. का. सं० १६६० चैत्र दी । जिनगीत शिवरम को विवाह कशनसिंह, अजयराज पानतराय, दीपचंद बादि कवियों के पदों का संग्रह है। ४. गुटका नं० १५६ मत्र ०-१५ से ६४-१६३६ भाषा-हिन्दी लेखन फालन मं० १२७६ " ले. . ० १६६६ श्रावण बुदी । 17 ले. का. १६६६ आय हृदी १७ नच है । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] [ संग्रह विशेष--चन्द्रायण व्रत कथा है। पद्म संख्या १८ से ६३० तक है | क्या गद्य पद्य दोनों में ही हैं । गद्य का उदाहरण निम्न प्रकार है— जदी सभा लोग कही । छप तो जाण प्रती श्री जसा बल ग्यान कुला सो तो काम की नहीं। श्रर पीहर सावर श्रादर माँ पर जमारी अधीको बीसर होई जी का काम व भर वो तो सीली तीखो बीघापका मनम भावतोवर ने गुलालोनी || F ६४६. गुटका नं० [सं०] १७३० कार्तिक पुदी १३ पूर्ण निम्न पार्टी का मिह है: विषय-सूची मट्टारक देवेन्द्रकीचि की पूजा सिद्धि प्रिय स्तोत्र टीका योगसार अनित्य पंचासिका कर्म प्रकृति वर्णन मुनीश्वरों की अपमान पंच १६० पत्र संख्या १६ से १४४३ मात्रा-हिन्दी लेखन व्यपेष्टन नं० १२३७ धमाल जिन विनी गुपस्थान गीत समकित भावा परमार्थ गीत पंचम मेघकुमार गीत मक्कामर स्तोत्र भाषा मनोरथ माला पद कर्त्ता योगचंद्र त्रिभुवन चंद निदास धर्मचंच सुमति की शि ब्रह्मबद्ध न रूपचंद पूनो हेमराज स्वागदास जिनदास चादि संस्कृत हिन्दी ל 33 13 " संस्कृत हिन्दी 99 " 79 29 19 AARR 33 " विशेष पत्र १३ से १४ १४ से ३२ २३ से ४६ ० ० ० १०३५ चैत्र । सांगानेर में लिखा गया । पत्र ४७ ५६, ५५ पथ है । १० से ६८ ३८ से ७२ ७२ ७१ ७३ से ७४ १७४७८२३२६ है । ७० से ८१ ८१ से ८४ ४८ ८५ से से ८६ से ३५ ६५ से ६६ १३ से १०१ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह ] [ १६५ बनारसीदास जिनदास १११ से ११३ मोह बिवेक युद्ध योगीरासो जखबी पंचेन्द्रिय बेल स्पद ठक्करसी हर्षकीर्ति पंचगति की बेल पंगात १२४ से १२६ २.का.सं.१५८५ १२१ से ११२ १२ से १३४ १३४ से १३६ रुपचंद द्वादशानुगेक्षा 4 | भाषा-हिन्दी । लेखन =५०, गुटका नं. १६१ । पत्र संख्या-१५ । साइज-- स-X| यपूर्ण | बेष्टन नं. १२७८ । निम्न पाठों का संग्रह है कती हिन्दी विशेष अपूर्ण । केशवदास - विषय-सूची सवैया सोलह घडी जिन धर्म पूजा को महीराम गोधा ने लिपि की। पंच धावा पाश्वनाथ स्तुति पद पं. हरीस ले. का. १५७१ र. का. सं. १७.४ आवाट सुदी। १३ पद हैं। हर्णकार्ति प्रारम्भ-जिन जप जिन जपु जीयढा भुवय में सारोजी । अंतिम--सुम परणाम का हेत स्यो उपजै पुनि मंतो जी । हरण कीरतो जीन नाम समरणी दोनी मति चको जी। जिन जपु जिन बपि जीबडी।। हिन्दी ले, का.म.१७१ वादिनाथ जी का पद कुशलसिंह मयाचंद गंगवाल ने रौझली में लिपि की दी। गो नेमिनी की लहर पं. मुगुरु सीम माह हरीदास ने प्रतिलिपि की थी। मनोहर Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ संग्रह ले.का.सं. १७३ जे. सं. १८६ श्राबाट पदी १४ । राबुल पच्चीसी विनोदालाल अठारह नाता का चौटाला लोहट नेमिनाथ का बारहमासा श्यामदास गोध अंतिम-नाराजी मासी नेम को राजल सोलहनी गाद जी । नेम जी मुक्ती यहुत श्यामदास गोधा उरि सानो जादुगड़ती। इति बारहमासा संपूर्ण । काका ने.क.स.१७७४ बारह मानना भगवतीदास हिन्दी ले० का सं० १.५० मानमल ने प्रतिलिप की थी। कर्म प्रकृति ५१. गुटका नं. १६२ । पत्र संख्या-1 से २१२ । साइज-८४३, ६ ! माषा-हिन्दी । लेखन काल-x | पूर्ण । वाम नं. १२७४ । विशेष--निम्न पाठ का सग्रह है-- विषय-मूनी कर्ता मावा विशेष माली रासा जिग्णदास पत्र नमीश्वर राजमति गीत नामिनाथ रामुरल गीत हर्शकीर्ति प्रारम्भ-म्हारो रे मन मोरटा गिरनारयाँ रङि वैसा । अन्तिम-मोपि गयो जिया रामह गद गिरनारि मझारे। राजमति सुरपति हुई हरष कीरति सका । नमीश्वर गीत हर्षकीर्ति भाचारासा Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रह 1 बंदिवान जयमाल गीत हेमराज चौबीस तीर्थकर स्तुति के २ पथ हैं। जीया मीत विशेषतु मेरो पीच साजना रे तु तेरी वर नारि मेरा जीवठा | पूजा संप श्री जिनस्तुति तुम बिन विद्या एक ना रहो रेखाले प्रेम पियार मेरा जीवडा । काया कामिणी वीनउ रे लाल ॥१॥ जिन नमस्कार भ्रमं सरेजी मेघकुमार गीत पद जीरकी भावना ऋषमनाथ बेति नेमिल गीत पंचेन्द्रिय बेलि कर्मरिंडोलना नेमिगीत नेभिराजमती गीत दीवार कथा भारह खड़ी सीता की धनाद तत्वार्थ सूत्र म० तेजपाल यशोनंदि सनराम पूनो कविन्दर बुगरी बैनादा ठक्कुरसी ह संस्कृत हिन्दी झाऊकत्रि लक्ष्मीचंद उमास्वाति 38 संस्कृत हिन्दी 93 31 " 77 "" 31 11 29 ५ 77 11 29 73 33 33 संस्कृत पत्र ७२ ७२ ७४ ६५०है। LE [ १६७ २०१ २१२ ':: ११६ ११७, ११ प है । १६२, २० है । १६६, २१ पद्म है ९६७, १० प हैं ।. है। १०२२ १७३ १७५ १७३१. का. सं. १५८३ १८१ १८४ १०६ १० पथ है । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्फुट एवं अवशिष्ट साहित्य ८५२. अइमंताकुमार रास-मुनि नारायण । पत्र संख्या-4 साज-१.४४ | भावा-हिन्दी (पष) गजराती मिश्रित | विषय-कथा रचना काल-मं०११-३ । लेखम काल-४ | थपूर्ण घटननं० १९६१ । विशेष-१तमा ५ वी पत्र नहीं है। अन्तिम-अरिहंत दासी हदय यागी पुग इति नजयासए । श्री रनसीह गखि गन नायक पाय प्रगमा तास॥३३॥ संबत सोस बिहासो था बर्षि अत्रि बदि पोस मासए। कल्प वल्ली माहि रगिह रच्या सुदर राम ए॥३॥ गाचारिषि शिथ्य समरचंद मुनी विमल गुण पाकाला ॥३५॥ ८५३. अजीर्ण मंजरी-पय संख्या-८ । साज-४४३ इञ्च । भाषा-संस्कृत 1 विषय-प्रायद । रचना काल-X । लेखन काल-* । पूर्ण । वेष्टन नं ५४१ । ८५४. भर्द्धकथानक-यनारसीदास | पत्र संख्या- से ३२ । साइज-६४८१ | भाषा-हिन्दी पक्ष । विषय-प्रात्म चरित्र । स्वमा काल-४ । लेखन काल-। अपूर्ण । वेष्टन २० १५६३ । विशेष-कवि ने स्वयं का यात्म चरित लिखा है। ४५. अन् सहस्रनाम-पत्र संख्या- । माइज-१६xव | भाषा-संस्कृत । विश्व-स्तोत्र । रचना काल-होलन काल-४! पूर्ण । वेष्टन में- १२०३। विशेष-चिंतामणि पाश्चनाव स्तोत्र एवं मंत्र मी दिया हुआ है। पंडित श्री सिंघ सौभाग्य गगि ने प्रतिलिपि की मी ५६. आदिनाथ के पंच मंगन-अमरपाल । पत्र संख्या-८ । साइज-६x६ इन्च । मादा -हिन्द, 4 | विषय-वर्म । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७७२ सावमा बुधा १४ । पूर्ण । वेष्टन नं० १५१० । विशेष-सं0 100 में जहानाबाद के सिंहपुरा में स्वयं अमरपाल गवाल ने प्रतिलिपि की थी। अन्तिम लंद-श्रमरपाल को रित सदा श्रादि चरन ल्यो खाइ। मय मघ माझि उपासना रहो सका ही श्राद। जिननर स्तुति दीपचन्द की भी दी हुई है। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्फुट एवं अवशिष्ट साहित्य ] [ १६१ ८५७. किशोर कल्पद्रुम - शिव कवि । पत्र संख्या-१८ । साइज-८४६ च । भाषा-हिन्दी । विषय-पाक शास्य । रचना काल-x : लेखन काल-X | अपूर्ण । बेष्टन नं. १०१२। विशेष-इति श्री महाराज नृपति किशोरदास श्राक्षा प्रमाणेन शिव कवि विरचितं ग्रंम किशोर कल्पद्रु मे सिखरादि विधि वरनन नाम नबविंसत साखा समाप्ता । १२० पय तक है । भागे के पत्र नहीं है। ५८. कुवलयानंद कारिका-पत्र संख्या-८ | साइज-१२४७ इञ्च । भाषा-संरत | विषय--स अलंकार । रचना काल--- लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं० १०७१ । विशेष--एक प्रति बोर है । इसका दूसरा नाम चन्द्राखोक भी है। ८५६, ग्रन्थ सूखी--पत्र संख्या- । साइज-८४६ इन्च । भाषा-हिन्दी । विषय-सूची। रचना काल-४ । लेखन काल-४ | थपूर्ण । वेष्टन नं० ११५२ । ८६०. चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न-पत्र संख्या-३ | साज-६३४४ करून 1 भाषा-हिन्दी । विषयत्रिविध । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण | वैप्टन नं. ३ | विशेष-सम्राट चन्द्रगुप्त को संबह स्नान करे उनमा ५.५१ दिया हुआ है। ८६१, चौवीस ठाणा चौपई-साह लोहट । पत्र संख्या-१२ | साइज-११६x६ इन्च | आषाहिदी। विषय --सिद्धान्त । रचना काल-सं० १७३६ मंगसिर सुदी ५ | लम्बन काल-सं० १.१३ फागुण सुदी १४ शाके १६२३ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४२ । विशेष--कपूरचन्द ने टोंक में प्रतिलिपि की भी । प्रशस्ति में लोहट का पूर्ण परिचय है। रचना गौपई छन्द में हैं जिनको संख्या १३०० है | साह लोहट अच्छे कवि थे जो श्री धर्मा के पुत्र थे । पं. लक्ष्मीदास के प्राग्रह से इस प्रप की रचना की गयी मी । भाषा सरल है। प्रारंभ- जिन नमि जिनंदचंद बंदियानंद मन | सिंध सुध घकलंक भ्यं सर मरि मयंक तन ।। ए अष्टादश दोष रहत उन अभ्रत कोहय । प गुण रस्न प्रकास सुजस जग उच्च मनोहम || ए शान पद गमत सवै इन सांति वहै सीतधर । ५ जीव स्वरूप दिखाय दे वह लखा लोक वर ॥ अंतिम - बुध सज्जन सब ते अरदास, लम्नि चीपई करोमत हासि । इनकी पारन कीऊलही, मै मोरी मति सार कही ॥१५॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. ] [ स्फुट एवं अवशिष्ट साहित्य लाख पचीस गिन्यापन कौखिएक. अब बुध लीटम नोहि । सी रचना लल यौन लाय । जंग कदे धरु बनाय ॥२८॥ ६२. अम्बडो-पत्र संख्या-३ । साइज-११३४३ इन्न । भाषा-हिन्दी। विषय-रफुट । रचना । काल-xलखन काल-x | पूर्ण श्रेष्टन नं. 104६ | ५६३. जीतकल्पाचचूरि-पत्र संख्या-५ | साज-.xx५ च । भाषा-प्राकत । विषय-धर्म। स्चना काल-- लेखन काल-x | पूर्ण वैटन नं.११६२ । विशेष-संस्कृत टिप्पया दिया हुत्रा है। ८६४. दस्तूर मालिका-बंशीधर | पत्र संख्या ६ । साहज 10x1 | मात्रा-हिन्दी । विषय-अर्थशास्त्र ।। रचना काल सं. २०६५ । लेखन काल-x | अपूर्ण एवं जीर्ष । बेष्टम में० १९८७ । विशेष – इसमें व्यापार संबंधी दस्तूर दिये हुए हैं । प्रारभ- ..." जो धरत गनपति नाते मैं श्रस्त जे लोड । भुन वदत कदंत के सर पनि जन सब को ।१॥ होत्र श्रक चक धुज पग पर प्रय पाप प्रसाद । बंसीधर वरननि कियो मुनत होय यहलाद ॥ २ ॥ अदि यदुनी लखे धनै लेखे के करतार । मटकत विनि दस्तूर है अटकत मारंभार ॥ ३ ॥ सूध पंप जो जनिरिंग पहुचहि मजल ऊताल । रहिवाना विसराद है संकट कट जाल | ४ || पातसाहियालम अमिख तालिम प्रवल प्रताप । ग्रालम मे जाको सबै घर घर जापत जाप ॥ ५ ॥ छत्र साल भुत्रपाल को रानम राज विसाल ! सकरन हिन्दु उम जाल में मनी इन्द्रदूत जाल ।। ६ ।। ताके अंता सौमिजे सकतसिंघ बलवान | उपसना व हके नंद दीह दलबान ! सहर सकतपुर राज ही सम समाज सम ठौर । परम धरम सुफान जहा सबै जगत सिर मौर ॥ ८ ॥ सक्त त्रासका पैसठ परम पुनीत करि रननि यहि ग्रन्थ को छह चरनन करि मीत ॥ ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्फुट पयं अवशिष्ठ साहित्य] अप पडा खरीद का दस्ता --- जिते रुपैया मोल को गन प्रत जी पर लेइ । गिरह एक श्राना तिते लेख लिखारी देह ।। १.॥ अाना ऊपर हीय मज प्रति पिया अंक । तीन दाम 48 अप्सु कसम Ka संखी निरंक ।। २१ ॥ इसमें कुल १५२ तक पध हैं । प्रति अपूर्ण है । ८६५ नख शिख वर्णन - पत्र संख्या-६ से १६ साज-Ex६ च । मा!-दिदी । विषय-गार ए । (जना काल-X । लेखनकाल-६० १८० । अपूर्ण । बेष्टन नं० १.१३ | विशेष-बनतरान साह ने लिखी पी। ८६६. नित्य पूजा पाठ संग्रह । पत्र संख्या-१० । साइज-११४६ । मात्रा-हिन्दी । [मय पूजा । रचना काल -x | लेखन काल-x। अपूर्णा । वेष्टन नं ० ३.५ । ६७. पत्रिका-पत्र संख्या- सहज-X| साषा-संस्कृत-हिन्दी । विषय-प्रतिष्ठा का वर्णन । रचना लसनकाल-x | पूर्ण । वेटन नं. १२६१ काल-x विशेष-सं० १९२१ में जयपुर में होने वाले पंच प्याक प्रतिष्ठा महोत्सव की निमंत्रण पत्रिका है । ६८. पद संग्रह - जौहरीलाल | पत्र संख्या-२४ । साहज-१.१३ ! भाषा-हिन्दी पर । विषय-पद । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन, १२१२ । विशेष-२ पो का सग्रह हैं । ८६६. पन्नाशाहजादा की बात-पत्र संख्या-२० । साइज-६३४८३ इन्च । माषा-हिन्दी गय । रचना काल-x | लेखन कारम--सं० १६० ग्रासोज सुदी ३ । पूर्यः । वेष्टन ०५५। विशेष-प्राविका कुशला ने बाई केशर के पठनार्य प्रतिलिपि की। २० से धागे के पत्र पानी में मांगे हुए हैं । इनके अतिरिक्त मुख्य पाठ ये है हरीसिंह सुमति कमति का गीत विनोदीलाल २०७१ जागीरासा जिपदास ८००, परमात्म प्रकाश-योगीन्द्र देव । पत्र संस्था-५ से १४ । साइन-११३४५ इन्च । भाषाश | विषय-अण्णात्म रचना काल-x। खेखन काल-सं० १५६ चैत्र बुदी १० । अपूर्ण । नेष्टन नं. ११६६ । प Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२] विशेषकर के दुर्ग में लेखक इगर ने प्रतिलिपि की । अंत में वही लिया है: ८७१. पल्य विवान पूजा-रत्न नंदि । पत्र संख्या - १ विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्णा । वेष्टन नं० १२११ । संतोष हैं। ८७३. काल -X | लेखन काल -X श्रीमत्कीर्ति ने पुस्तक मि ॥ बहुपुरे ॥ ८०२ पाठ संग्रह पत्र संख्या ६१ साइज - १२०५ इंच भाषा-संस्क-प्रास विषय-संग्रह | लेखन काल -X | पूर्ण । नेष्टन नं० १०६७ । विशेष आशावर निरतिष्ठा पाठ के पाठों का संग्रह है। [ स्फुट एवं अवशिष्ट साहित्य साइज - १०३४६ | भाषा-संस्कृत | पाठ संग्रह पत्र संख्या २०-१२४८ इन्च भाषा - हिन्दी विषय-संग्रह रचना नं विशेष-१२ मत र तिल्या मन्दिर और बाल-1 पूर्व बेहन 1 ८७४. पाठ संग्रह - भगवतीदास पत्र संख्या २१० इन्च भाषा-हिन्दीसंग्रह सेना X पूर्ण वेष्टनं० ६६७। I विशेष -- निम्न पाठों का संग्रह है- भूटाष्टक वन सम्यक्त्व पच्चीसी वैराग्य पच्चीसी- २० का ० ० १७५० । ८७५ पाठ संग्रह - पत्र संख्या - २५ | साइन- १२८ १ | माषा-संस्कृत विषय संग्रह | रचना फाल - X। लेखन काल-X पूर्ण वेष्टन नं० ४०४ | विशेष- मक्लामर स्तोष, सहस्र नाम तथा सत्यार्थ सूप का संग्रह है। ०६. पाठ संग्रह पत्र संख्या - १० साहब-४ ६४ माया-हिन्दी विषय-संग्रह | लेखन विशेष - सास बहू का झगडा आदि पाठों का संग्रह है । 3. बनारसी विलास - बनारसीदास पत्र संख्या-७ से ८ हिन्दी (पद्य) विषयसंग्रह रचना काल- संग्रह का १७०१ लेखन का० १००८ कु येशन नं० ०३६ । साहब माषा Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कुट एवं अवशिष्ट साहित्य ] विशेष-सकलकीर्ति ने प्रतिलिपि की थी । प्रारम्भ के २१ पत्र फिर लिखवाये गये हैं । प्रति नं० २ पत्र संख्या - १३७ । साइन- १०३x४ ब | लेखन काल सं० १७०७ फागु गुदी १३ । पूर्ण वेष्टन नं० ७६३ । विशेष- २ प्रतियां और है। ७६. बुधजन विज्ञास-- बुधजन विषय-संरचना काल X लेखन काल- पूर्ण ८. रागमाला - पत्र संख्या - रचना काल->९ । लेखन काल -X | पूर्ण 1 चेप्टन नं० पत्र संख्या - ११२१०० भाषा-हिन्दी वेष्टन नं० ७२९ । मजलसराय की चिट्ठी-पत्र संख्या - २२ | साइज - ६४४ इन्च | भाषा - हिन्दी | विषय - यात्रा बने । रर्चन। काल-X लेखन काल सं० १८४७ मादवा सुदी ११ पूर्ण वेष्टन नं० १२४ । विशेष— नजरा पानीपत वाले की चिड़ी है। चिट्ठी के अन्त में पदों का संग्रह भी है। [ १७३ साइज - ६३X६ इव । माषा-संस्कृत-हिन्दी विषय-संगीत शास्त्र ६०६ । २. लघु क्षेत्र समास - पत्र संख्या - ४६ | साह - ६३४५ ६ | भाषा-संस्कृत | विषय - लोक. विज्ञान रचना काल -X 1 लेखनकाल - X पूर्ण अर्थ वेष्टन नं० ११८६ | ' विशेष-मूल प्राकृत भाषा में हैं जो रत्नशेखर कृत हैं । यह इसकी टाँका है । ३. लीलावती भाषा- पत्र संख्या १ से २४ । साह - १०३४५ छ । वेष्टन नं० ६३४ ॥ गणित शास्त्र रचना काल -x लेखन काल -X | पूर्ण / 1 | · ८४ वर्द्धमानचरित्र टिप्पण - संख्या- ३ से ४१ | साइज - १०३ विषय-नरित्र । रचना काल -X | लेखन काल-सं० १२१ पासोज सुदी १० भाषा - हिन्दी] | विषय -- । रचना का -X | लेखन कास X पूर्ण वेष्टन नं० १२२३ । विशेष – गुटका साइज हैं । च भाषा-संस्कृत 1 वेष्टन नं० १२१३ | विशेष – वृद्ध मानचरिव संस्कृत शिव यह टिप्पा जयमित्र हलके व दमाथ क ( ) का संस्कृत टिप्पण है। टिप्पण का अन्तिम भाग ही यत्रशिष्ट हैं । ५. व्यसनराजन टेकचन्द पत्र संख्या विषय- विविश्व । रचना काल सं० २०२७ | लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं० ८७८ । विशेषप्त व्यधनों का वर्णन है पथ संख्या २५६ ३ । ६. आवक धर्मं वर्णन --पत्र संख्या - १० | साइज - ४३४६ । भाषा - हिन्दी | विशेष-प्राचार १२० भाषा हिन्दी (प) Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] [ स्फुट एवं श्रवशिष्ट साहित्य 4८७. सज्झाय-विजयभद्र। पत्र संख्या-१ । साइज-१.४४न । भाषा-हिन्दी। विषयस्तुत । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्भा । वेष्टन मं० १९७१ । निर: इराकै मारिरिका याद सनी माय मी दी हुई है। म. साधर्मी भाई रायमल्लजी की चिट्ठी-रायमल्ल । पत्र संख्या-१, | साज-१०४७ इन्च । भाषा-हिन्दी ।।वषय-इतिहास | रचना काल-60 १८२१ माह बुदी । लेखन काल- २१ माह दी । पुणे । पन नं० १०८1 विशेष-रायमल्लजी के हाथ की चिट्ठी है। भाषा प. शालिभद्र सज्माय-मुनि लावन स्वामी।... ज्या-१ । साइ7-20x४६३ हिन्। विषय-स्तुति । रसना काल-X । लेखन काल-० १७२६ चत्र बुदो ४ । पूर्ण । वटन नं. १७० । विशेष --रामजी ने प्रतिलिपि की थी। 8. हरिवंश पुराण-महाकवि धवल । पा संख्या-.१६ से २३ । साज- १२४४५ भाषा--प्रवनश। विषय-काव्य | रखना काल- लखन काल-४ | अपूर्ण एवं जीगा । बेष्टन नं.१२/1 च Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर में टोलियों क, मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत एक कलात्मक पुट्टा जिम पर नौवीस नीर्थङ्करों के रंगीन चित्र दिच हुये हैं। Ki -3.. KA PAHMAeEAMKAR जयपुर के दिगम्बर जैन मन्दिर पार्श्वनाथ के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत यशोधर चरित्र के मचित्र पनि का एक चित्र । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दि. जैन मन्दिर ठोलियों ग्रन्थ विषय-सिद्धान्त एवं चर्चा १ भागमसार--मुनि देवचंद्र । पाप संख्या-४६ : साहज-१०x४६ । माया-'हन्दी गद्य । विषय-सिद्धान्त | सपना काल-मं.. १.७३ । लेसन काल-० १७६.६ । पूर्ण । वेष्टन न. ४०४ । भारमा- अम मध्य जीत्र प्रतिबोधवा निमित्त मोक्ष मार्गनी पनिका कहै हैं । तिहां प्रथम जीच श्रमादि काल नी मियाती थी। काल लनधि पामी में तीन वरण करें प्रथम यशापयति करण १ वीजौ अपूरन क( २ तौजी अनिवृत्ति ५.रण ३ तिहा यमा प्रवृति कहै छ। पन्तिम----संवत् सतर बिहोत मन स कारण मास | मोटे कोट मरोट में वसat सुख चौमास ! || विहत खतर गछ मुधिर जुगर जियचंद्र सूर। पुण्य प्रधान प्रधान गुण पाठक गुणेय भूर ॥६॥ तास सीस पाठक प्रवर जिन मत परमत बाग। भक कमल प्रतियोधवा राज सार गुर माध || मान धरम पाठक प्रवर खम दम भगो आगाह । राज हंस गुरु सकति सहज न करें सराह |2|| तास सौस यागम रूपी जैन धर्म को दास । देवचंद आनंद मय कोनौ ग्रन्थ प्रकाश ॥६॥ पागम सारोद्धार यह पाकृत संमृत रूप । अंभ कियो देवचंद मनि शानामृत रस प ||१० धर्मामत जिन धर्म रति भविजन समकित यत । सद्ध अमर पदर लषण मंच किया गण वंस ॥११॥ तस्व ज्ञान मय गंभ यह जो रखें बालाबोध । निज पर सहा सन लस्ने श्रोता लहै मनोध ॥१५॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सिद्धान्त एवं चर्या ता कारण देवचंद कीनी माय। प्रभ । मणसी गुणासो जे मदिक लसी ते सिव पंथ ॥१३॥ श्यक शुद्ध श्रोता रूची मिल यो ५ संयोग । तत्वज्ञान श्रद्धा सहित बल काया नीरोग ||१४|| परमागम 'राचज्यो लहस्यो परमानंद । धर्म राग गुरु श्रम सुधरि उओं एख वृन्द ॥१५॥ अंध फिया मनरंग ससित पख फागुण्ठ मास | भौमवार श्रम तीज तिथि सफल फली मन श्रास !|१६|| तथीभागमसार प्रसंपूणे । स. १७१६ वर्षे मार्गसीय बुदी १२ भृगुवासर धमनगरमध्ये रावत सोहि पाध्ये लिपिक मट प्रदेगा पाना । मई गागा भी । २. आवधिभंगी........"। पत्र संख्या-११० । साइ-१२४५ इञ्च । भाषा-हिन्दी। विषयसिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-X | पूर्णं । वेटन नं. ३२२ । विशेष-पत्र २० तक सत्ता त्रिभंगी तथा इससे आगे भाव विभंगी है। गुणस्थान तथा मागण। का धान है। ३. कर्मप्रकृति-नेमिचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-२१ । साहज-११४४३५ । मात्रा-मारत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल - | पूर्ण । धन मं. १६७ । वशेष-दो प्रतियां और हैं ४. कर्मप्रकृति वृति-सुमसिकीत्ति । पत्र संख्या-४६ । साइज-१६x६ इन। माषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८५५ वैसाख बुदी । । पूर्गा । वेष्टन न० ३७८ | विशेष-जयपुर में शान्तिनाथ चैत्यालय में पं० श्रानन्दराम के शिष्य श्री चंद्र ने प्रतिलिपि की । ५. गुणस्थान चर्चा--पत्र संख्या-११० । साज-१२४६ च । भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-x 1 लेखन काल-सं० १७६० | पुरा । बटन नं. १३ । विशेष-गोमट्टसार के अधार से हैं। ६. गुणस्थान चर्चा .........."f पत्र संख्या-४ । साइज-१२३४६ इन्च | भाषा-संस्कृत । विषयसिद्वान्त । रचना काल- xलेखन काल-x। पूर्ण | बेष्टन नं० ३१४१ विशेष-गोमसार के आधार से वर्णन है । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] [१. ७. गोमसार । कर्मकाण्ड -मिजन्दावार्थ । पन सं-४२ | साज-१०४४३५ । भाषाऋत । त्रिय-सिद्धान्त । रचना काल-x लेखन काल-सं० १७८३ । पूर्ण । वेष्टन नं. ६६५ । विशेष --हत हिन्दा टाका सहित है। केवल कर्म प्रति का वर्णन है। ८. गोमट्टसार जोबकाण्ड भाषा-पं. दोडरमल । पत्र संख्या-३६६ । साइम-१३x= च । गाषा-दिदी म | विषय-सिद्धात रसना काल- १८१८ । लेखन काल-X । घपण । श्रेष्टन नं० १२ = | विशेष- अन्म की एक प्रति और है लेकिन वह भी अपूर्ण है। १. गोमट्टसार कर्मकाण्ड भाषा-हेमराज । पत्र संख्या-१.! ! साज-१४ । भाषाहिदी नघ । विषय - सिदान्त । रचना काल- ४ | लेखन काल-म० १७६० मंगसिर मुदी ५ । पूमा । वेष्टन beti विशेष-बीना में रामपुर में प्रतिलिपि की मो । एकति और हैं लेकिन वह अपूर्ण है । इस प्रति के पुटु वर सन्दर चित्रकारी है । १७. चरचा संग्रह ....... | पत्र संख्या-१४ । साइज-१.४५ । भाषा-हिन्दा पछ । विषय - एच ( धर्म ) । रचना क्रास-- | नेस्खन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. १४७ | ११. चर्चाशतक-यानतरायजी । १५ संख्या-२८ । साइज-४६ । भाषा-हिन्दी पथ ॥ ६षय-वन । रचना काल-X । धन काल-x । पूर्ण । वेष्टन नं. १०६ । विशेष प्रति प्राचीन है। २ प्रतियां श्रीर है । १२. चची समाधान-भूधरदासजी । ५५ संख्या-१११। साइज-१.३४५ इन्च | भाषा-हिन्दी गध । विष :-सिद्धान्त । रचना काल- १८०६ माघ दी ५ । लेखन काल-सं. १८१३ मात्र सदी १५ । पूर्ण । अष्टन १६ विशेष-यति निहालचंद में प्रतिलिपि की थी। १३. चौबीस ठाणा चर्चा - नेमिचंद्राचार्य । पत्र संख्या-३ । साइज-११४५ इन्न । भावाभारत । विषय-सिद्धान्त । रचन| काल-x | लेखन काल में० १.१४. कार्तिक बुदी १० । पूर्ण । श्रेष्टन नं-१८६ । विशेष – जमानावाद मध्ये राजा के बाजार में पंडित भाया राम के पठनार्थ प्रतिलिए की गई। कान हनिया भीर है । ये संस्कृत वा टीका सहित हैं । ५४. चौवीस ठाणा चर्चा-नेमिचन्द्राचार्य । पत्र या ८ | साइज-११६४५ च । माषापकत । विषय--HFत | रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १७३ | विरोध-पत्र संख्या ४ से प्राय कलियुग की बीनती है भाषा-हिन्दी तथा ब्रह्मदेव कृत हैं Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सिद्धान्त एवं चर्चा १५. ज्ञान क्रिया संवाद-पत्र संख्या-३| साज-.xxइच। मावा-संस्कृत । कनय-चर्चा। रचना काल-X । लेखन काल-सं.१७६ यासोज चुदी १२ । पूणे । वेष्टन नं. ४१५ । विशेष – श्लोक संख्या-१५ हैं। तृतीय पत्र पर धर्मचर्चा भी दी हुई है : १६ तत्वसार दोहा--भट्टारक शुभचंद्र। पत्र संरगा-५ । साइज-११४८१६ । भाषा-गुजरात लिपि देवनागरी । विनय-सिद्धान्त । रचना काल-x | लेखन काल-x ! पूगः | बटन न. ६ । पारम्भ-समय सार र सांभली, रे समरवि श्री समिसार । समय सार सुख सिद्धना, सीमि सुक्न विचारं ॥१॥ थापा प्रप्पि श्रापमुरे प्रापण हेति पाप । आप निमिर' पाषणो ध्यान रहित सन्ताप ।।२।। यार प्राथा प्रोधित सदा रे निश्चय न्याय विया । सत्ता सुख वर वोधमि चेतना धुव प्राण ||३|| क.यार प्राण व्यवहार यी रे दश दौसि एह भेद । दिय वल उरसासनायु तगा बह छेद ||४| अन्तिम - भणी मनीया २ मक्तिमर मारि चेता चिदप । निप्तता निति चेतन चतुर भाव प्रावए । सातु धात देहवेगलो ममल सकल सु विमस्य भावए । अात्म ससप परूवण पटल्यौ पावन संत । भ्याजो ध्यानि ध्येयस्य ध्याता पार मईत १०॥ सात शिव कर : झान निज माघ शुद्ध चिदानंद चीनती मूको माया मोड़ गेह देह । सिद्ध तणा सुखजि मल हरहि घामा मानिशुम ए हए ।। श्री विजय कीर्ति गुरु मनि धरी ध्याउ शुद्ध चित्र ५ । भट्टारक श्री शुभचंद्र मणि पातु शुद्ध सरूप ।।३।। ॥ इति सत्वसार दूहा ।। १५. तत्वार्थरत्नप्रभाकर-भट्टारक प्रभाचंद्र देव । पत्र संख्या - १३८ । साज-१६x 4 | भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-- | लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. १७.। विशेष-- यह तत्वार्थ पूत्र की टीका ई। साल कृत में है। कही हिन्दी भी द होती है। प्रणा Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] अध्याय २४ को कम्बली बोखती होय इति हिंसाद [ १७६ हिसानंद जी भात मानहिंखानन्द हो द्र ध्यान प्रथम पद नरक करण दिसानुस्ते रौद्र ध्वानं कथयति हृदयचा प्रकार होय जान बीचमै २ मे ७१ भी नहीं है। १८. तत्वार्थसार अमृतचंद्र सरि विश्व-सिद्धान्त । रचना काल- लेख काल-X इति तत्वार्थ सनप्रमाकर अन्धे सर्वाधिदेव विरचिते महाल सूत्र विचारकरणं । पूर्ण | वेष्टन ० १३३ । प्रति प्राचीन है। १६. तत्यार्थसूत्र - उमास्थति पत्र संख्या १४ लेखन काल-Xन नं १४४ । पत्र -२५ मा १२४२ । भाषा संस्कृत | 1 ५१४ । 1 सिद्धान्त रचनाकाल विशेष संस्कृत टीका सहित है। २०. प्रति नं० २पन संख्या १० बाइ १३ | देखना-०१०६६ साइज - ११५५६ मात्रा-संस्कृत विषय विशेष सूत्रों पर हिन्दी में धर्म दिया हुआ है। चार मतियां और है किंतु मात्र हैं। वे मूल – साज - १३४०३ साथ-संस्कृत २१. तत्वार्थसूत्र टीका (ब्बा ) | पत्र संख्या - २१ हिन्दी । चाय-सिद्धान्त रचना काल -x | लेखन काल - ० १११२ श्रासोज खुदी १४ । पूर्ण वेष्टन नं० ७० । । I विशेष-लाला रतनलाल ने कस्बा शमसाबाद में प्रतिलिपि की 1 २०. प्रति नं० २४६२१४० | लेखन फाल- पूष्टन नं० ३१ प्रति संस्कृत टीका सहित हैं । २३. सत्यार्थसूत्र भाषा टीकाकनककोर्त्ति पत्र संख्या १०२ हिन्दी गद्य रचना काल -X | लेखन काल-सं० २०४४ कार्तिक खुदी ६ । पूर्ण । नेष्टन नं ४१ | विशेष – कनककीर्ति ने जोशी जगन्नाथ से लिपि कराई । उमर स्वाति रचित तत्त्वार्थ सूत्र पर श्रुतसागरी टीका की हिन्दी व्याख्या है। एक प्रति और हैं। सिद्धान्त रचना का XX पूर्ण नेटनं २४३ । - १५५४ म भाषा २४ विभंगीसार नेमिचन्द्राचार्य पत्र संख्या-२६-११ विषय Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] विशेष एक प्रति धीर है। - २४. त्रिलोकसारसंदृष्टिनेमिचन्द्राचार्य पत्र | विषय सिद्धान्त रचना -Xनकाल १००० १२ पूर्ण पेशन ०६४ | 1 विशेष-जयपुर में फेवक मानजी ने महात्मा दयाचंद में प्रतिलिपि कराई थी। २६. द्रव्यसंग्रह नेमिचन्द्राचार्य - सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन क ल -X | विशेष—४ अति और हैं। वेष्टन नं १४३ । " २७. प्रति न० साइज - १०x४ इ । लेखन काल-सं० २०२० फागुन सुदी १४ । वेष्टन नं० २०॥ लिपि देवनागरी। विषय [ सिद्धान्त एवं चर्चा विशेष हिन्दी और में सो अर्थ दिया है। २८. २. द्रव्यसंग्रह टीका- ब्रह्मदेव पत्र संख्या १११ साइज ११८३३सिद्ध। रवन्ना काल-×१४६ मा १२ पूर्ण १०६ विशेष लेखक प्रशस्त मिश्रप्रकार है। २६. द्रव्य संग्रह भाषा पर्वतधर्मार्थी रचनाकाल ११३२ भाषा-प्रोत विष संवत् १४१६ वर्षे मादवा सुदी १३ दिने श्रीमयोगिनी पुरे सकल राज्य शिरोमुकूट माणिक्य मरीचिकृत चर म १६ पटस्य श्रीमत् वेरोज खाई साम्रा ममी कुन्दकुन्दाचान्वये सरस्वती भी प्रचार शिष्य नाथू पठन में अंतर गोहिल गोत्रे मरयल वास्तत्र्य परम श्रावक साधु साउ माय बीरो तो पत्र सायु उस मर्या चालही तथ्य पत्र पारीतस्य पुत्र ही गाय खोचा ही मरवा विनापि कर्म या नलदेव पंडित शिखितं बलाला गं महकनकर्ता I I संख्या २६ साइज - १२९६६ १८४३ फागुन मुदी | " कुलधर मार्या शुभं भवत् । माषा-हिन्दी गुजराती मेननं १० विशेष पं० केशरीसिंह ने असर में प्रतिलिपि की थी। ३०. नामक प्रकृतियों का वर्णन-पत्र संख्या - १६-१० मा चित्रय-सिद्धान्त 1 रचना काल -X 1 लेखन काल - पूर्ण । न नं० ३६१ | विशेष संस्कृत टीका सहित है | २१. पंचाशिका टीका मूलकर्ता आ० कुन्दकुन्द टीककार अमृतचंद सूरि ११ संदा ६५ । साइज - १३६० इ-संस्कृत विषय सिद्ध रचना काल-काल-X पूर्व बेननं १४४ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] विशेष- २ प्रति और रचना - तेन काल- पूई नं० ४२४ काल-X | ३४ सिद्धारमा ३२. पंचास्तिकाय भाषा टोका हिन्दी गय। विद्यय-सिद्धान्त रचना काल शेषरामपुर में प्रतिलिपि हुई थी। ३३. पाचिक सूत्र- पत्र संख्या-2 - १३ भाषा-संस्कृत विषयन्ति। पांडे हेमराज लेखन विशेष प्रतिलिपि की थी। पत्र संख्या १२१ T = ०१७१११०२४ । 1 भगवती सूत्र - पत्र संख्गा २० से ८५४च भाषा विषय - सन १८६४१ अपूर्ण हननं० १९२ । गुजराती, हिन्दी में है। चंद के शिष्य तुलसा ने किशनगढ़ नगर मे ३५. भावसंग्रह--पंडित नामदेव पत्र संख्या ३४ साइज १५ ।मा-संस्कृत | विषय-सिद्धान्त । रमना काल- लेखन काल-सं० १८५० पीपी ७ पू वेष्टन नं० ३६। विवृद्ध आनन्दराम के शिष्य विशेष सवाई जयपुर में शान्तिनामा (इसी डोसियों के मन्दिर में श्रीचंद्र ने प्रतितिष की भी विशेष – एक प्रति और है ३६. भावसंमह - देवसेन पत्र संख्या २०१३ माश-वातसिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं० ६० ३७. भावसंपद्दश्रुतमुनि पत्र पा-१२-१९६८ भाषा-प्राकृत विषय| | | | - धर्म ' रचना काल -X | लेखन काल सं० १५६६ माघ बुदी पूर्ण वेष्टन नं० २८६ । ८ T विशेष—घ हरिदास ने प्रतिलिपि को ३ प्रतिय और है। ३५. रसंचय - विनयराज गण पत्र संख्या १४ साइन- १० मावा विषय-सिद्धान्त रचनाकाल १०१०७० कार्तिक शुदीन नं० २०७१ ३६. बिसार टीका- माचवचंद्र त्रैविद्यदेव पत्र संख्या सिद्धान्त । रचना काल - XX। लेखन काखX-०१ फागुन १४ । पूर्ण मेंटननं १२ श्री विद्यासागर सूरि के शिष्य लक्ष्मीसागर गोगा ने प्रतिलिपि की थी। पं० जीवा वाकडीबाल के पा की गई थी। ११ भाषा इस। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] [ धर्म एवं आचार शास्त्र पत्र संख्या २६ - १२४६ व भाषा - हिन्दी | विजय ४०. विशेष सत्ता त्रिभंगी सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूरी | बैष्टन न० ३०३ । ४१ सिद्धान्तसार दीपक सकलकीर्ति । पत्र संख्या - २२= । साइन - १०० च । माष:संस्कृत] | विषय - सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल सं० १८२१ । पूर्ण । ष्टन नं० २५६ | विशेष- कुल १६ अधिकार है तथा अथ (श्लोक संख्या ४८३६ है । २ प्रतियां और हैं। ४२ सिद्धान्तसार संग्रह - प्राचार्य नरेन्द्रसेन । पत्र संख्पा-६६ | साइज - १२४६ मात्रासंस्कृत | विषय - सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल-सं० १८२३ ज्येष्ट मुदी २ । पूर्ण वेष्टन २५ । विशेष - जयपुर में चंद्रप्रभ चैत्यालय में पंडित रामचन्द्र ने माधवसह के राज्य में प्रतिलिपि की भी श्लोक संख्या २४१६ | एक प्रति और है। विषय - धर्म एवं माचार शास्त्र ४३. अनुभव प्रकाश दीपचंद काशलीवाल | पत्र संख्या ५४ | ३ | माषाहिन्दी मेथ | विषय - धर्म । रचना काल सं० १७७२ | लेखन काल-X | पूर्णष्टन नं० ११६ | - ४४. आचार शास्त्र | पत्र संस्था २२ | साइज - ११९४ | मात्रा - संस्कृत विषयआचार । रचना काल -४ । लेखन का x ३ पूर्ण वेष्टन नं० २१२ । ४५. आचारसार - वीरनंदि पत्र संख्या १०० | साहब - १९६६ च । माया-संस्कृत विषयश्राचार । रचमा फाल-X | लेखन काल - पूर्ण वेष्टन नं० २५१ १ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं प्राचार शास्त्र [ १८३ विशेष-कुल १२ अधिकार है। प्रारम्म के पच जीर्ण हो चुके हैं। ४६. उनतीसबोल दंडक-पत्र संख्या-१० । साम-१०x४३ च | माषा-हिन्दी । विषय-धर्फ । रंगना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. २२५ । ४७. उपदेशसिद्धान्त रनमाला भाषा--भागचंद । पत्र संख्या-४३ । साज-१०१४४, च । विषय-धर्म । रचना काल-सं. १९१२ प्राषाद पुर्दा : | लेखन काख-x । पूर्ण । बेरन म० । विशेष- मूलभ ही गायाएं भी दी हुई हैं। ४८. उपासकाध्यन-श्रा. वसुमंदि। पत्र संख्या-५५ । साज-१९४५३ | मारा-पंरकत ; विषय-प्राचार । रचना क.ले- । सेखन काल-सं० १६० भादवा प्रदा । पूर्ण श्रेष्टन २०५४ विशेष-प्रति हिन्दी अर्थ सहित है । प्राय का दूसरा नाम बसनन्दि श्रावकाचार मी है । एक प्रति पार है। ४६. प्रति नं०२। संस्था-३८ · साज-४४: हन । लेखन काल-सं०१६ चैत्र कुल ५ । पूर्ण । वेष्टन नं. ३४४1 विशेष-लक प्रशस्ति निम्न प्रकार है श्रम संवत्सरेस्मिन श्री नृप विक्रमादित्यमतादः संवत् १५ १.५ वर्षे चैप खुदी ५ धादिमवारे श्रीदुरुजांगल देशे श्री सवर्णापत्र सुभद्र्गे पातिसाह हम्माऊराव्यप्रवत्त मान श्री काष्ठासंघे माथुरा-वये पुष्कर गये भट्टारक गण कोत्तिदेवाः तत्प ग्भय भाषा प्रीप भट्टारक थी सहसकीर्तिदेव। तत्प?' विककलाकमलिनीविकाशन कास्कर भट्टारक श्री मलयकीर्तिदेवाः तत्प वादीमकु भस्मलविदारपैककेसरि, भत्र्यांपुजविकाशनैकमास एड भट्टा• श्री गुणप्रदरिदेवाः तदाम्नाय पावू वंशे गगंगोत्रे गोधानइ वास्तव्य अनेक गुख विराजमानु साधु णरणी तस्य समुद्रहन गंभोरान मेरबदौरान चतुर्विध दानवितरणैक पासायलाान सरस्वती कंठा काठतान राज्यसभा जैनसमा गाहारान् परोपकारी पंढिणु साधु गोपा तेन इदं श्रावकाचार लिखापिनं । कर्म बगार्य। पत्र नं. १७ के कोने पर एक म्होर लगी हुई है निसमें उर्दू में नानदास मूल पद.. . .. ..... त लिखा है । प्रम में कुछ परिचय प्र-थ ri का मी दिया हुश्रा है। ५०. एषणा दोष (छियालीस दोष) भैया भगवतीदास । पत्र संख्या-७ । साइज-३ ० ३४५ च । भाषा-हिन्दी पए । विषय-धर्म रचना काल-x ! लेखन काल--X । पूर्ण । वेष्टन नं० १.४ । ५१. क्रियाको भाषा-दौलतराम | पत्र संख्या- 1 साज-१२४४३ प | भाषा-'हन्दी पध। विषय-ग्रवार । रचना काल-सं० १६६५ भादवा सदी १३ | लेखन काल-सं० १६१४ भादवा बही -1 पूर्ण। . बेटन नं. १६३। विशेष एक प्रति और है। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] ५२. ग्यारह प्रतिमा वरान पत्र संख्या-२ आचार । रचना काल - X 1 लेखन काल - X | पूर्ण वेष्टन नं० ६५१ धर्म रचना का 1 ५३. चर्चासागर भाषा-पत्र संख्या २०० लेखन कास X पूर्व श्रीर है। विशेष से पत्र भी है। दो तीन तरह की लिपि है ५४. पौबीसडक दीनतराम पत्र संस्था- २ भाषा-हिन्दी वि धर्म 1 रचना काल -X | वन काल - X। पूर्ण | वेष्टन नं० ११२ | विशेष ७ पत्र है। दो प्रतियां और है। ५५. जिनवालिस मुनि स्वाध्याय-विमल हर्ष वाचक पत्र संख्या २१०४ भाषा-हिन्दी पद्य विषय-रचना काल- लेखन का पूर्ण २६ । विशेष प्रारम्भ सिरि पास साइन- १३३०३ भाषा-हिन्दी व विषय२०६१ । पाणािलित मूनि सं [ धर्म एवं आचार शास्त्र भाषा-हिन्दी विषय अन्तिम संत एहनीय परिजगड, विविषयदिना । एह परमव ते थाइ सुखिया तेहमी कीर्ति गवाणी ॥ जगगुरु दीर यह सोदाकार श्री विजयसेन सरिंद श्रीमानका अति प्राचीन है। ५६. त्रिवर्णाचार-सोमसेन- १२४-११बनार । रचना काम ० १६६० काम० १६०२ मसूदी पूर्ण वेटन मं० २०७ । विशेष — पालिपुत्र (पटना) में प्रतिलिपि हुई। कुल १३ अन्याय है । था भ० ७०० एक प्रति . ५७. धर्म परीक्षा-हरिये पत्र संख्या २७६ भाषा०१०४०X पूर्ण वेटन नं १०१ । सरना विशेष-प्रथम पत्र नहीं है । ५८. धर्म परीक्षा अमितगति पत्र संख्या १२ भाषाधर्म रमना काल ०१०१० लेखन - पूर्ण वेभ नं० ३१९ । ५६. धर्मपरीक्षा भाषा-३२-१६दी ग विषय-धर्म रचना कारा-Xफा -X नं. १००। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं प्राचार भास्न ] ६०. धर्मरत्नाकर---अयसेन । पत्र संल्पा-१२१ । साइन--1.5xk पञ्च | भाषा-संस्कृत । त्रिषधर्म रचना काल-x | सोवन काल-सं० १८६५ | पूर्ण । वेष्टन नं.०.३० । ६१. धर्मरसायन-पननंदि । पत्र संख्या-« ! साज-११५४५३ इन्च ! माषा-प्राकल | विषय-धर्म । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १८७२ । पूर्ण । वेटन नं० ३१८ | ६२. धर्मसंग्रहश्रावकाचार-१२ मेधावी । पत्र संल्या-५२ । साइज--१११४ च । भाषात | विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं० १५४१ कार्तिक बुदी १३ । लेखन काल-सं. १८३५ माघ । । पूर्ण । वेष्टन में २४६ । _ विशेष-कूल दश अधिकार हैं । म प १४.४० श्लोक प्रमाण है । मयकार प्रशस्ति विस्तृत है पूर्व परिचय दिया हुआ है । श्रीचंद ने प्रतिलिपि की थी । ६३. धर्मोपदेशभावकाचार-ब्रह्मनेमिदत्त । पत्र संख्या-३५ । साइज-:४६ इन्च । भाषा-संस्कृत । विषय-माचार शास्त्र । रचना काल-x 1 लेखन काल-सं० १८.७३ फागृप भुदी १५ । पूर्ण । वेष्टन न. १.६ । ६४. नास्तिकवाद-पत्र संख्या-२ | साज-१:४३ सम्छ । माषा-संस्कृत । विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । बेपन नं. ४२५ । ६५. नियमसार टीका - पद्मप्रभमंजधारिदेव । पत्र संख्या-१२७ । साज-१२४१३ छ । भाषासंस्कृत । विषय-धर्म । रचना काल-X1 लेखन काल-० १७८६ मंगसिग सुदी ६ ६ पूर्ण । वेष्टन नं. ३१८ । ६६. पंचसंसारस्वरूपनिरूपण-पत्र संख्या-६ 4 माइम-१-४५ च । माषा-संस्कृत । विषय । निना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण | वेष्टन नं. १७३ । विशेष- एक प्रति और है। ६. पाखण्डवतन-धीरभद्र। पत्र संख्या-१६ । साइज-8xx. इष । मावा-संस्कृत ! विषयधर्म | ना काल-X । लेखन काल-सं. १८४१ भाष बुदो ४ 1 अपसौ । मेष्टन नं. ४७४ । विशेष-पत्र २ व ४ मही हैं। माननगद में मंगलदास के पालनार्थ पेमदास में प्रतिलिपि की थी। ६८. पुरुषार्थसिद्ध यु पाय-अमृतचंद्र सूरि । पत्र संकया-१०६ । साहज-११४५. 1 1 भाषास्कत । विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काम-X । पूर्ण । अष्टम नं. ११४। विशेष--प्रति संस्कृत टीका सहित है। टीका सुन्दर एवं सरल है। ६. पुरुषार्थसिद्धघुमाय भाषा-चौलतराम । पत्र संख्या-१६४ । साज-१३४, ३ञ्च । भाषाबिन्दी गय । विषय-मर्म । रचना कास-. १८२७ मंगसिर २ मान काम- सम्बन 1.4 प बहन नं.५४ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं लाचार शास्त्र विशेष-चिमनलाल मालपुरा वाले ने प्रतिलिपि की मी ।.२ प्रतिया और हैं। . ७०. पुरुषार्थानुशासन-गोविन्द । पत्र संख्या-६६ । साज- ११४५ * | माषा-संस्कृत । विषयधर्म । । स्थना काल-x | लेखन काल-सं० १५४८ मंगसिर सदी । । पूर्ण । बेधन नं . २६ । । विशेष— विस्तृत लेखक प्रशस्ति दी हुई हैं । श्रीरंद ने सलाई जयपुर में प्रतिलिपि को यो । ७१. पुष्पमाल-हेमचंद्र सूरि ।। पत्र संख्या-१६ । साज-१०x४३ च । भाषा-पात । विषयधर्म । रचना काल-X । लेखन कल-X । पूर्ण वेधन नं. ३८५ । विशेष-हीं २ गुजराती भाषा में अर्थ दिया है जोकि सं. १४४६ का लिखा हुया है प्रति प्राचीन है। इसमें फूल ५०५ गाथाएँ दी हुई है। म. बाबा ने प्रतिलिपि की भी। पत्र संख्या-३ गुजराती गध: रति न्दरी राजपुत्रा नदनपुर बह रानाद परिणाप्रतिरुप पात्र समिली हस्तिनपुर नीराबाई प्रामा लायी सांग इव ममादिक अशुचि पाउ दिशाला राजा प्रतियोधउ साल राखिउ रिद्धि मन्दरी श्रेष्टि श्री व्यवहारि पुत्र परिणी समुद्र चर्टि प्रवहण मागड | फाष्ट पयोगि शून्य दीपि पहता । श्रीजा प्रवहणि चट्या रूपि मोहि तिथि भारि ससद माहिला विउ प्राचीने दह प्रवन्यनः। ७२. प्रश्नोत्तरोपासकाचार-समलकीर्ति । पत्र संख्या-७ से १४४ | HIEF-१६x४ इञ्च । भामासंस्कृत | विषय-प्राचार शास्त्र रचना काल-x1 लेखन काल सं.१७५३ मंगसिर मुदी १३ । अपूर्ण । वेष्टन नं.१ । विशेष- अलवर में प्रतिलिपि हुई पी । यो प्रतियां और हैं । ७३. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार - मुलाकीदास । पत्र संख्या-१३८ । साज-१२३४८० | मावा-हदा पद्य । विषय-याचार शास्त्र । रचना काल- १७४७ बैशाख मुदी ३ । लेखन काल-सं० १३५५ सावन मुवी “ । पूर्ण । बेशन नं. ३ विशेष-विमनलाल बडजात्याने अजमेर में स्व पठनार्ग प्रतिलिपि की थी। ४४. प्रायश्चितसमुच्चय चूलिका - श्री नदिगुरु । पत्र संख्या-2...। साइन-१२४१३ १४ । झाषा-संस्कृन । विषय-प्राचार शास्त्र । स्थना कास-X । लेखन काल-सं० १८२८ कार्तिक सुदी ५ | पूर्ण । वेष्टन नं. २१८ । विशेष-लालचंद रोंग्या ने प्रतिनिपि करवाकर, शन्तिनाब चायालय में चदाई । मेताम्बर मोतीराम में प्रति लपि की थी। ७५, प्रायश्चितसंग्रह-अकलंक देव । पत्र संख्या ८ | काल-xx. ft. ाला-संस्मत | विषय-यादार शास्त! रचना काख- x खन काम-x पूर्ण । बेष्टन मं०३१। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं आचार शास्त्र ] ७६. बाईसपरीषह-पत्र संख्या- I साइज-X लेखन काल- प । लेष्टन . २ । . [ १८७ । भावा--हिन्दी । विषय-धर्म । रचना काल-x ७७ भगवतीभाराधना भाषा-सदासुख कासलीवाल | पत्र संख्या-१८ I साइज-११४:18 | माला-हिन्दी गध । चित्रप-याचार शास्त्र । रचना काल-सं० १६०० भादवा दी लेखन काल-सं. १६४ श्राबाट बुद्धी ३ । पूर्ण | बेष्टन नं० ५ । विशेष-श्लोक संख्या २१६७ । एक प्रति और हैं । ७८. मिथ्यात्व संग्न-वस्तराम साह । पत्र संख्या-८ । साइज-=१x६ ! भाव-हिन्दी पथ | विषय-धर्म ( नाटक ) । रनना काख-सं० १८५९ पौष सदी । । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १४- | पद्य संख्या-१४२८ दिया हश्रा है । एक प्रति चौर है। ७६. मिथ्यात्व निषेध-बनारसीदास । पत्र संख्या-३२ । साइज-१०x. इन 1 भाषा-हिन्द विषय--धमं । रचना काल-X1 लेखन काल-सं० १६०७ सावन सुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं. १५.। विशेष--०८ पत्र से सूम सूमनी कमा थानतरान कृत दी हुई है। ८०. मोक्षमार्गप्रकाश-पंटोडरमज । पत्र संख्या-२..। साज-११xc. २ | भावा-हिन्दी (नध) 1 विषय-वमं । रचना काल-: । लेखन काल-स. १९४८ भाषाद बुदी २ । पूर्ण । वेष्टन न । १. रत्नकरंतश्रावकाचार-पं० सदासुख कासलीवाल । पत्र संख्या-४३.0 | HII-११४८ ।। भावा-हिन्दी गए । विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं० १५ चैत्र बुदी १४ । लेखन काल--- | पूर्ण । बेष्टन नं. ८३ । विशेष-- सावजी के हाम के खस्टे से प्रतिलिपि की गयी है। ८२. रत्नकरदायका चार--थान नी । पत्र संख्या-२१ । साइज-१३३४५ इंच । भाषा-हिन्दी । मित्रय-प्राचार शास्त्र । रचना कास-सं. १८२१ चैत्र पुरी ५ । लेखन काल- I पूर्व । बैटन नं. १ विशेष-हरदेव के मन्दिर में लिवाली नगर में फूलचंद की प्रेरणा से अप स्वना हुई पी । ८३. रयणसार--कुन्दकुन्दाचार्य। पत्र संख्या-१८ 1 साइज-EX । मावा-प्राकृत । विषयधर्म । (चना काल--- ! लेखन काल- १ । पूर्व । बेष्टन नं. ८ । विशेष-सवा नगर में महात्मा गोरगन ने प्रतिलिपि की पी 1 गाथा सं० १.० है । एक प्रति और है । ६४. लाटीसंहिता (भावका चार)-राजमल्ल ! पत्र संख्या-६ | Ha-११४५ 1 भाषा-संस्कृत । सिम-प्राचार शास्त्र । (चमा काल-सं० १६४१ । लेखान काल-सं. १८५३ अाधार बुदी: । पूर्व । वान नं. २८ ! Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १*६ ] [पत्र आवार शास्त्र विशेष-सं० १६४१ में बादशा अकबर के शासनकाल में खानक हुदा के पुत्र फक्त में मंथ रचना कराई थी। ८५. घटकर्मोपदेशमाला - अमरकीर्त्ति पत्र संख्या - १२० | साइज - ११८६ ६ । भाषा - अपभ्रंश । वेश्य-प्राचार शास्त्र । रचना काल सं० १२४७ मावा मुदी : १० | लेखन काल- १६४५ सोजी वेष्टन नं०६६ । पूर्णं । विशेष – १४ संधियां है। लेखक का परिचय दिया हुआ है। ६. षटकर्मोपदेशमाला - भट्टारक श्री सकलभूषण पत्र संख्या १५० भाषा-संस्कृत 1 विषय- श्राचार शाख । रचना काल-सं० १६२७ सावन ६ । लेखन कालबैं० २०३ । विशेष :-- संवत् १४४४ वर्षे जेष्ठमा से शुरूप नवाम्या तिथी रविवासरे स्तन सिघियोगे भी स्थपत्र दुर्गे राजाधिराजराजाश्रीजगन्नाथराज्ये प्रवर्तमाने श्री मल्लिनाथचैत्यालय श्री काष्ठाचे माथुरगच्छे मुकर गये मट्टारक श्री दोमकीर्तिदिवा ताप मट्टारक कमल कीर्तिदेवा तापट्टी मट्टारक श्री जयसेमिदेवाः । तदान्नाये श्रमवालान्वये गोपलगोत्रे देव्याना बडि साहजी पदार तस्य नावां मार्गी साह श्री भवानीदास तस्य भार्या गोमा तस्य पुत्र साह खेमचन्द तथ्य मार्ग बाजी तस्य पुर द्रयः । प्रथम पुत्र मोहनदास तस्य मार्या कौजी । द्वितीय पुत्र चिरंजीव धूडो । द्वितीय पुत्र साहयान तृतीय पुत्र साइ बीरदास । चतुर्थ पुत्र साह श्री रामदास तस्य भार्या माग्पोती स्यू पुत्र श्रयः । प्रथम पुत्र साह मेधा द्वितीय पुत्र चिरंजीव साइ चोखा तस्य भार्यां पार्वती तस्य पुत्र चिरंजीव देवसी तृतीय पुत्र साह नेतसी 1 पंचम पुत्र रमोला । तेषां मध्ये चतुर्विधिदानतिराकल्पवृक्ष साह चोखा तस्य भार्या पार्वती इदं शास्त्र शिखाप्य ज्ञानावर्णोकर्मभिर्मित्तं रचय पुन्यनिमित्तं मानपात्राय अ श्री रूपाचन्दये दर्द ॥ इति ॥ साइज - १०६८५ इन्च | १६४४ । पूर्ण । नेष्टन 1 ८. पोडशकारणभावना - पत्र संख्या - १६ | साइज - १३४५३ च भाषा - हिन्दी पय त्रिवध-धर्म । रचना काल X। लेखन काल -x | पूर्णं । वेष्टन नं० १४२ । मम कारण भावना व दशलक्षण धर्म - पं० सदासुख का सीवान पत्र संख्या ११३ | साइज - ११५७२ ह । भाषा-हिन्दी विषय-धर्म । रचना काल-X: लेखन काल - X। पूर्ण । मेष्टन नं० १३६ । यह शिम्बरविशास - मनसुखराम पत्र संख्या ६३ साइज - ११४५ । भाषा हिन्दी १५ । विषय-धर्म । रचना काल सं० १८४५ सोज १० लेखन काल-सं० १६ आबाद सुदी १५ पूर्ण वेष्टन नं० ४५ । विशेष – शिखर महात्म्य में से वर्णन हैं । मनसा के शिष्य थे । साइन- ११६४६ श्रৰकाचार्-'-------------६० आधार शास्त्र । रचना काल -x । लेखन काल-सं० १७३१ वैशाख सुदी भाषा हिन्दी | विषय पूर्ण नेशन नं.० १६.३ ॥ . Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म एवं प्राचार शास्त्र] विशेष:-राजनगर में तिखिपि हुई पी । प्रामवाट लातीय बाई मरा मे लिखवाया मा । ६.१ श्रावकाचार-योगीन्द्रदेव । पत्र संख्या-१४ | साइज-२१:४५ च . माषा-अपभ्रंश । निवर-भर्म । रचना काल-X | लेखन काल-X I पूर्ण । वेष्टन नं० १४३ । विशेष-दोहा संख्या २२१ है। ६२. संबावर्षचासिका---गौतमस्वामो । पत्र संख्या- । साज-१६xइस । भाषा-प्रास्त । भिषय-धर्म । रचना काल-x | लेखन काल-- 1 पूर्ण | पेष्टन मं० ३८७ । ३. संबोधपचासिका टीका-पत्र संख्या-१३ । साज-१x११ ३२ । भाषा-प्राकृत -संस्कृत 1 विषय-धर्म । रचना काल--- | लेखन काल ·४ | वेष्टन नं० ३८८ । १४. संयमप्रवहण-मुनि मेघराज । पत्र संख्या-४ । साइज-.४ । भाषा हिन्दी पद्य । विषय-प्रमे । रचना काल-सं० १६६। । लेखन ।.८ १६८; 'मी :५। ६. न. २३ । विशेष: प्रारम्भ दोहा:---रिसह जिणेसर अगतिला नामि नरिंद महार । प्रथम नरेसर प्रथम जिन त्रिमोवन जन साधार ||१|| ची पंचम मानी सोलमठ जिनराय । शान्तिनाथ नगि शान्तिकर नर सुर प्रणाम पाय ||२|| धन्तिम-नाग धन्यासीगरपति दरिसपि पति पाणंद । औराजचंद सूरीतर प्रतपर जा लगि हु रविचंद ॥ ४३. | श्रीकपी । संगम प्रवहण मालिमगायउ नयर खम्भावन माहि ॥ संवत सोल अन इकसठई प्राणी अति उछाह || गछ । सरवथ ऋषि गुरु साधु शिरोमणि, मनि मेघराज तसु सीर ।। मुख गबपति ना भावह माषद पहना थास नगीस || १५२ ॥ ॥ इति श्री संयम प्रबह सात श्रुधाविका पुन्यप्रभात्रिका धर्मनिर्घाहिका सम्यक्त्वमूलद्वादसवत कारपूरत्रासितोक्मांगा अ श्राविकारुंध वाई पक्षनाम। मंचन १६८१ वर्षे श्राघाट मासे शुक्ल पड़े पुषिीमादित्यवारे स्नंभ मां लिखितं ऋषि कल्याणेन । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] [ धर्म एवं प्राचार शास्त्र श्लोक संख्या २०० है । ६५. सम्मेदशिखरमहास्य-दीक्षित देवदत्त । पत्र संख्या-७८ | साज-११x१३ च । भाकासंस्कृत | विषय-धर्म । रचना काल-स. १८४५ । लेनन काल-२०१८४८ | पूर्ण । वेतन ०.३६ । विशेष-जयपुर में प्रतिलिपि हुई थी। ६६. सागारधर्मामृत-4 पाशाधर । पत्र संख्या-१८१५ साज-११४१३ । मात्रा-संत | विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं० १२६६ । लेखन काल-सं० १७८७ । पूर्ण । वेष्टन ने० ३०७ । विशेष- एक प्रति और है। ६७. सामायिक टीका--पत्र संख्या-३६ । साहज-१२४५ इ 1 माला-संस्कृत प्राकृत | विषय-धर्म । रजना काल-x ! लेखन हाल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ३२१ । विशेष--प्रति संस्कृत टीका सहित है । १६. सामायिक पाठ-पत्र संख्या-१२ । साइज-१०४४६ इंच । माषा-संस्कृत 1 विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं० ४३ / ६. सामायिक पाठ भाषा-जयचन्द छात्रसा। पत्र संख्या-५३ । साइज-११४४३ च । माता-हिन्दी गद्य । विषय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-२० १९.१ चैत्र सुदी १३ । पूर्ण । वेष्टन नं. १२ । विशेष-३ प्रति और है। १००. सुदृष्टितरंगिणि-टेकचन्द । पत्र संख्या-४४७१ साज-११ x 1 माश-हिन्दी। विषय-धर्म । रचना काल-२० १८३८ सावन मुदी ११ । लेखन काल-२० १६१२ माघ दी । पूर्ण | बेटन ४८६ | विशेष---४२ सधियां हैं। चंद्रलाल बज ने प्रतिलिपि की थी। १०१ सूतक वर्णन-पत्र संख्या-२ | साइज-8X४ इंच । भाषा-संस्कृत । वित्रय-अ चार 1 रचना काल-X । लेखन काल-xपूर्ण । वेष्टन नं०४४७ । १०२. हितोपदेशएकोत्तरी-श्री रवहर्ष । पत्र संख्या-३ । साइन-१०x४ ३२ । भाषा-हिन्दी । विषय-धर्म । रचना काल-x 1 लेखन काल-X । पूर्ण । बेधन न० १५२ । विशेष-किशनविजय ने विक्रमपुर में प्रतिलिपि की थी । श्लोक संख्या है। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-अध्यात्म एवं योग शास्त्र १०३. अष्टपाहुड भाषा-जयचंद छाबड़ा । पत्र संख्या-1७८ । प्लाइज-१३६x६३ सत्र | भाषाहिन्दी गद्य ! विषय--अध्यात्म । रचना काल-X 1 लेखन काल-सं० १६५० फागुन बुदौ २ । पूर्ण । वेष्टन नं. ६ । १०४. आत्मानुशासन-गुणभद्राचार्य । पत्र संख्या-३० । साइज-११४४३५ । माषा-संस्कृत । विषय-अध्याम । रचना काल-४ । लेखन काल-सं. १५६४ माघ सुदी ५ । पूर्ण । वेष्टन नं० २८६ । विशेष--बसवा नगा में श्री नंद्रप्रभ चैत्यालय में भी तेमकर के शिष्य विलोकचंद ने प्रतिलिपि की पौ। एक प्रति और है। १०५. आत्मानुशासन टीका-प्रभाचन्द्र । पत्र संस्था-६५ । साइन-exe हम्द । माषा-संस्कृत । विषय --अध्यात्म । रचना काल-X । लखन काल-सं० ११ भाषार मुरी ६ । पूर्ण । वेष्टन न. २८ । १०६. आत्मानुशासन भाषा टीका-पं० टोडरमल । पत्र संख्या-१०५ | साइज-१२४५३ च । मावा-हिन्दी । वित्रय-अध्यात्म | रचना काल-सं० १७६६ भादचा सुदी २ । लेखन काल-x। पूर्ण । अष्टन नं. ५१ । ___ विशेष-राजा की मंडी (प्रागस ) के मंदिर में महात्मा संभूराम ने प्रतिलिपि की भी । एक प्रति और है। १०७. आराधनासार-देवसेन । पत्र संख्या-१३ । साहज-१०४५ हस। माषा-प्राकृत | विषयअध्यात्म । रचना काल-X । लेखन काल-X I पूर्ण । वेष्टन नं. १५२ । विशेष-एक प्रति और है वह संस्कृत टोफा सहित है। १०८, पाराधनासार भाषा-पन्नाजाल चौधरी। पत्र संख्या-1 | साइज-१२६४८ | भाषा-हिन्दी गद्य | विषय-अध्यात्म | रत्नना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेटन नं. ८२ । १८६. कार्तिकेयानुप्रेक्षा-स्वामीकार्तिकेय | पत्र संख्या-७E | साइम-११४५३ दम्प | मावाप्राकृत । विषय-अध्यात्म । रचना काल-~। लेखन काल-। पूर्ण । वेष्टन मं० १. विशेष-प्रथम " पर तक संस्कृत में संकेत दिया हुआ है। ११०. कार्तिकेयानुप्रेक्षा भाषा-पं० जयचंद दायरा । पत्र संस्था-१४७ | साम-११ च । माषा-हिन्दी मप । विषय-अध्यात्म 1 रचना काल-सं० १९६३ साजन मुदी ३ । लेखन काल-सं० १९१४ मात्र पुदी ११। पूर्ण । वेष्टन न. ७१। विरोव-२ प्रतियां और है। Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२] [ अध्यात्म एवं योग शास्त्र १११. मरिसादुद्ध भाग--47 सपः मान्डर पाप गन्न्या-१५ । सारज-१२x+ इ ! भाषा-हिन्दी गय । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ६१ । ११२. ज्ञानार्णव-शुभचंद्र । पत्र संख्या-१७६ । साइज - १.१४५३ इञ्च । माषा-संस्कृत । बिमयोग । रचना काल-x1 लेखन काल-सं० १६१८ । पूणं । वेष्टन नं० २५५ । विशेष-संवत् १७E२ में कुछ नवीन पत्र लिखे गये हैं । संस्कृत में कठिन शब्दों का अर्थ दिया हुआ है। अति-एक प्रति और है। ११३, दर्शनपाड-पं0 जयचंद छाबड़ा । पत्र संख्या-२" । साइज-१४ च । भाषा-हिन्दी गध । विषय-अध्यात्म । रचना काल-x | लेखन कान-४ । पूर्ण । वेष्टन ०३० | ११४. द्वादशानुप्रेता-कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या-१२ । साइज-१०९४५ ३२ । भाषा-प्राकृत | विषय-बितन । रनन! काल-X । लेखन काल-सं० १८.२ वि० वैसाख पुदी । अपूर्ण । बेष्टन नं. १७३ | विशेष ---हिन्दी संस्कृत में छाया मी दी हुई है। ११५. द्वादशानुप्रेक्षा-बालू कवि । पत्र संख्या १६ ! साइज-xx च । भाषा-दिदी । विषय-चिंतन । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं०६५ | विशेष- नारह भावना के ३८ पद्य है । इसके अतिरिक्त निम्न हिन्दी पाठ और हैं:(१) जखडो-हरोसिह । (२) पद (वं श्री थरहंत देव सारद नित सुमरण हृदय वर -हरीसिंह (३) समाधि मरन-धानतराय । (४) ननाभि चक्रवर्ती की बराग्य भावना---'धरदास । (५) बधावा--( वाजा बाजिया मला) (६) वाईस परीषह। रामलाल तेरा पंथी छाबड़ा ने दौसा में प्रतिलिपि की भी। ११६. दोहाशतक-योगीन्द्र देव | पत्र संख्या-१ | साइज-ixit च । भाषा-पाश । विषय-अध्याम । स्त्रन? काल-X । लेखन काल-सं १८२७ कार्तिक बुदी १३ ३ पूर्ण । वेष्टन न...। विशेष-श्रीचंद्र ने सवा में प्रतिलिपि की थी। ११७. नवतत्ववाहाबोध-पत्र संख्या-३१ । साइन-२०३४४६ माषा-गुजराती हिन्दी । विक्रमअध्यात्म | रचना काल-X । लैसन काल-सं० १८८५ श्रासोज मुदी २ । पूर्ण । वेटन नं. १७४ । Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म एवं योग शास्त्र] [ १६३ विशेष-हिम्मतराय उदगपुरिया ने प्रतिलिपि की मी ११८. परमात्मप्रकाश-योगीन्द्रदेव । पत्र संख्या-२० । साइज-११४५५ । भाषा-अपभ्रंश । विषय-अध्यात्म । रचना काल-- । लेखन काल-सं० १७७४ फागुन धुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० २५ । विशेष-वृदावती नगरी में श्री चंद्रप्रभु चैत्यालय में श्री उदयराम लक्ष्मीराम ने प्रतिलिपि की थी। संस्कृत में काठन शब्दों के अर्थ दिये हुए हैं । फूल दोहे ३४६ हैं। : प्रति श्रौर हैं । ११६. प्रति नं०२। पत्र संम्या-५२३ । साइज-११४४ छ । जेखन काल-१४८६ पौष कुद : पूर्ण । वेष्टन न०२४०। विशेष प्रति संस्कृत टीका सहित हैं। इसमें कुल ४५ अधिकार हैं । प्रशस्ति निम प्रकार है। सर्वत् १४८६ वर्षे पौष चुदी ६ खौदिने श्री गोपांगरे: तोमरवंशमहाराजाधिराजश्रीमद्दोंगरसीदेवराज्यप्रर्वतमान श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे मट्टारक श्री क्षेरेन्द्रकीर्तिदेवारतद्रू शिम्य श्री पद्मकोचिंदेवा: तस्य शिय श्री वादीन्द्रचूडामरा। महासिद्धान्तो धीब्रह्म हीराख्यानामदेवा । अश्रोतकान्वये मीतलगोत्रे साधु श्री गल्हा भार्या खेमा तयोः पुत्री भौणी एक पक्षा। द्वतीय पक्षा अप्रोतकात्रय गर्ग गोत्र साधु श्री तेमंधरा मार्या हरी । तयापुत्राश्चलार पपम पुत्र देसलु, द्वितीय वील्हा, तृतीय पाल्हा, इतुर्थ भरथा देसल भार्या रूपा. बीन्हा सार्या नाथी साधु श्राहा मार्या धानी तयो पुवाश्चत्वार, साधु श्री चंद। साधु हरिचंद, सा., रता, सा, साल्हा । श्री चंद्र पुत्रमेषा स्वधर्मस्त साधु भी मी मार्या मौणा शीलशालिनी धर्म प्रमावनी रत्नत्रयपाराधिनी बाई जोग्णी प्रात्मकर्मक्षया इद परमात्मप्रकाश म' लिखापितं । इसमें ३५५ दोहा है। प्रथम पत्र नया तिखा गया है। १२०. प्रवचनसार-कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या-३३ | साज-१०३४४ च । भाषा-प्राक्त । विषय-अभ्याम । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १७६८. ! पूर्ण । वेष्टन न. ३५८ । विशेष-पत्र = सक संस्कृत का भी दी है। १२१. प्रपचनसार सटीक-अमृत चन्द्र सूरि । पत्र संख्या-१०७ ! साइन १०x४६च माचासंस्कृत | विषय-अध्यात्म । रचना काल--X । लेखन काल-x। पूर्ण । वैन्टन नं० । विशेष-अन्तिम पत्र फररा हुन्ना है। बीच में २४ पत्र कम हैं । श्रागरे में प्रतिलिपि हुई यो । प्रति प्राचीन हैं १२२. प्रवचनसार भाषा---पांडे हेमराज । पत्र संख्या-३० । साइज-११४५ इंच | भावा-हिन्दी पत्र । विषय-अध्यात्म । रचना कास-सं. १७०६ । लेखन काल-x | पूर्ण । वैप्टन नं. ४४ । १२३. प्रवचनसार भाषा-पांडे हेमराज। पत्र संख्या-१२। साइज-१३x (गध)। विषय-अध्यात्म । रचना काल-२०१७७४ माघ सुदी । लेखन काल-सं० ११२ आषाद श्रेष्टन नं.६. । माथा-हिन्दी दी । पूर्ण Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] [ अध्यात्म एवं योग शास्त्र एक प्रति थोर है। १२४. बोधपाड भाषा-पं0 जयचदलाया। पत्र संख्या-२१ । साइ-१२x२ माषाहिन्दी गध | विषय-अध्यारम | रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण 1 बटन नं० ८६ | ५०५. भव वैशम्य शतक-पत्र संख्या-११ । साइज-१०३४५ इन्च | भाषा-अपनश । विषयप्रयामा । स्नना काख--X | लेखन काल-* | पूछ । वेटन नं. १७३ । विशेष – हिन्दी में छाया दी हुई है। ५२६. मृत्युमहोत्सव-बुधजन । पत्र संख्या-३ | साइन-X६३ च । भाषा-हिन्दी पथ । विषयअध्यात्म 1 स्चना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० १३० । १२७. योगसमुच्चय-नवनिधिराम | पत्र संख्या १२३ । साइज-Ext च । भाषा-संस्कृत । विषय-योग ! रचना काल-- | लेखन काल x वेष्टन नं. ४६० . विशेष-५० पत्र तक श्लोकों पर हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है । ५२८. योगसार-योगान्द्र देव । पत्र संख्या-६ । साइन-११६४५३ । भाषा-अपभ्रश । विषयअध्यात्म । रचना काल-X । लेखन काल-० १८७२ मंगसिर सुदी - । पूर्ण । वेष्टन नं. ३२६ । विशेष-एक प्रति और हैं। १२६. षट्पाहुड-कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या-६७ | साज-१२४५ इन्च | भाषा-प्राकृत । विषययात्म । रचना काल-x लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. २४५ । विशेष-२ प्रतियों और है जिनमें केवल लिंगपाहुइ तथा शीलपार दिया हुआ है। १३०, षट्पाहुब टीका-टीकाकार भूधर । पत्र संख्या-६२ । साज-११६x४३ स्कृत | विषय-अध्यात्म | स्वमा काल-XI लेखन काल-सं. १७४१ । पूण | वेष्टन नं० २४४ | | भाषा विशेष-प्रति व्या टीका सहित है । यह टीका भूधर ने प्रतापसिंह के लिए बनाई थी । १३१ समयसार कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या- १५१ । साज-xtra | माषा-प्रात 1 विग! यात्म 'स्वना काल-x 1 लेखन काल-सं० १८२६ भादवा सुदी १४३ पूर्ण । वेष्टन नं०५०। विशेष-दौसा में पृथ्वीसिंह के शासनकाल में प्रतिलिपि हुई थी। अमृतचन्द्र कृत श्रात्मख्यति टीका सहित है । एक प्रति और है। १३२. समयसार कलशा-अमृतचंद्रसरि पत्र संख्या-8 साज-११x६) माका-संस्कत। विषय-अध्यात्म | रचना काम-४ लेखन क.स-x पूर्ण वेष्टन नं. १२.। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्यात्म एवं योग शास्त्र ] [ १६५ १३३. प्रति नं०२। पत्र संख्या-११२ । साहज-१.४५४ हश्च । लेखन काल-X । पूर्ण । वन ० २४. विशेष-आनंदराम के वाचनार्थ नित्य विजय ने यह टिपण लिखा था। प्पिया टवा टीका के सरश है। प्रति १३४. समयसारनाटक-बनारसीदास | पत्र संख्या-७३ । साहज-१२४५३ छ । भाषा-हिन्दी । विषय-अध्यात्म । रचना काल- १६६२ । लेखन काल-सं० १०० चैत सुदी १५ | पूर्ण | बेष्टन नं. ३२० । विशेष - बसवा में श्री निरभैराम के वेटा श्री मनसाराम ने फतेराम के पठनाएं लिखी थी । ४ प्रतिया और हैं । १३४. समयसार वनिका-राजमल्ल । पत्र संख्या-१६८ | साइज-1x च । भाषा-हिन्दी जय । विषम-अध्यात्म | रचना काल+x | लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं. १३ १३६, समाधितंत्र भाषा-पर्वतधर्मार्थी । पत्र संख्या-७७ । साहज-24x५ इंच । माषा-गुजराती देवनागरी लिपि । विषय-योग । रचना काल-x | लेखन काल-० १७५५ फागन नदी । पूर्ण । बेष्टन नं. १३ । विशेष - सागपत्तन में श्री आदिनाथ चैत्यालय में प्रतिलिपि हुई थी । एक प्रति और है। १३७. समाधिमरा भाषा-पत्र संख्या-१३ । साज-१६xe इक । मामा-हिन्दी गध ! विषयअध्यात्म । रचना काल-xलेखन काल-x|वेष्टन नं. १ १३८, सूत्रपाहुड-जयचंद छाबडा । पत्र संख्या-१५ | साइज-१२x६ ह । भाषा-हिन्दी गय विषय-अयात्म । रचना काल- लेसन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. १२ । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय - न्याय एवं दर्शन शास्त्र १३६. श्राप्तपरीक्षा - विद्यानंद | पत्र संख्या ६ साइज - १०६४६ च । माषा-संस्कृत | विषय - दर्शन शास्त्र । रचना काल -X ! लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं० २० विशेष – पंडित धरमू के पठनार्थं गयाससाहि के राज्य में प्रतिलिपि की गई थी । १४०. श्रालापपद्धति - देवसेन । पत्र संख्या - ११ | साइज - १०४ भाषा-संस्कृत विषयदर्शन शास्त्र । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण । वेष्टन नं० २०६ | विशेष—एक प्रति और हैं। १४१. तर्कसंग्रह - अन्नंभट्ट रचना काल-× । लेखन काल - X | पूर्ण ¡ पत्र संख्या ६ बेष्टन नं० ३०३ । विशेष मोतीलाल पाटनी ने प्रतिलिपि की भी । एक प्रति और है। १४२. दर्शनसार - देवसेन । पत्र संख्या - ३ | साइज - ११३६ शास्त्र । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८७२ मंगसिर चुदी श्रमावस पूर्ण वेष्टन नं० २१७ । विशेष - २ प्रतियां और हैं । १४३. नयचक्र — देवसेन । पत्र संख्या ३२ । साइज - १२३४५६ | भाषा-संस्कृत विषय न्याय शास्त्र । रचना काल -X | लेखन काल- सं० १८२६ फागुन चुदी १२ । पू । वेष्टन नं० २०६ | श्लोक संख्या - ४५३ है । १४४. न्यायदीपिका – धर्मभूषण पत्र संख्या - ४८ | साइज - ४ इञ्च | भाषा-संस्कृत | विषय - व्याग शास्त्र ] रचना काल -X | लेखन काल - सं० २००६ द्वि० भादवा सुदी ११ । पूर्ण । श्रेष्टन नं० २६८ । विशेष – देवीदास ने स्वपटनाथं शिखी थी । १४५. परिभाषा परिच्छेद (नयमूल सूत्र ) -- पंचानन भट्टाचार्य । पत्र संख्या - ११३ साइज - १०३४४ इन्च | भाषा-संस्कृत | विषय - दर्शन शास्त्र रचना काल - X 1 लेखन काल- पूर्ण वेष्टन नं० ४३७ । साइज १०४४ ६५ । माषा-संस्कृत विषय न्याय शास्त्र । माषा - प्राकृत विषय-दर्शन अन्तिम — शति श्री महामहोपाध्याय सिद्धान्त पंचानन भट्टाचार्य कृत परिभाषा परिच्छेदः समाप्तः । १६६ श्लोक हैं प्रति प्राचीन मालूम देती है ! १४६. षट्दर्शन समुच्चय - हरिभद्रसूरि । पत्र संख्या- ७ | साइन - १०x४ इन्च | भाषा-सस्कृत | विषय-दर्शन शास्त्र । रचना काल -X | लेखन काल -X | पर्या । वेष्टन नं० २८४ । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] विशेष -६ श्लोक है। १४७. सन्मतितर्क-सिद्धसेन दिवाकर । पत्र संख्या-- | साइज-Ex४२ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-न्याय शारत्र 1 रचना काल-४ । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. १०२ । पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान १४८. अक्षयनिधिपूजा-पत्र संख्या-३ : साइज-११४४३ च । माका-संस्कृत । विषय-पूजा । चना काल-X | लेखन काल-४ 1 पूर्ण । मेष्टन ने० ११४ । विशेष-लब्धि विधान पूजा भी की हुई है। १४. अंकुरारोपण विधि-पत्र संख्या-७ । साइज-१०x१३ । माषा-संस्कृत । विषय-विधि विधान । रचना कारत-X 1 लेखन काल-। अपूर्णः । बेष्टन मं० ३८५ । विशेष--छठा पत्र नहीं हैं। १५६. अनंतव्रतपूजा-श्री भूषण। पत्र संख्या-६ । साइज-१०x४१ । भाषा-संस्कत । विषयपूजा । स्थना काल- लेखन काल- 1 पूर्ण । वेष्टन में १०६ । १५१. अनंतम्रतोयापन-पत्र संख्या-२२ । साइज-११६x४ । भाषा-संस्कृत । विषय-जा । रचना काल-- | लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं० ३६ । ५५२. अभिषेकविधि-पत्र संख्या-३ । साइज-७३४४६ हज । भाषा-संस्कृत । विषय-विधि विधान । रचना काल-X । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. १२५ । विशेष - एक प्रति और है। १५३. अर्हपूजा-पानंदि । पत्र संख्या-५ | साइज-४६३ इन्न । माषा-संस्कृत । विश्य--पूजा । रचना काल-४ । लेखन काल-x 1 पूर्ण । बेष्टन नं. ४ | Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] [ पंजा एव प्रतिष्ठादि अन्य विधान १५४. अष्टक - पत्र संख्या - १ | १०४३६ भाषा-संस्कृत विषय-पूजा । रचना -४ | लेखन काल -X | पूर्ण | वेष्टन नं० ४३ । १५४. अप्राहिकापूजा" पूजा । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्ण पत्र संख्या १०१ साइज ७३४ पंच भाषा-संस्कृत प्रा वेष्टन नं० १२५ । १५६. अष्टाह्निकापूजा - पत्र संख्या ७ | साइज १६ भाषा-संस्कृत विषय-पूजा रचना काल -x | लेखन काल - । श्रपू । श्रेष्टन नं० ४ विशेष - जय से आगे पाट नहीं है । १५७. अष्टाह्निकापूजा - शुभचंद्र । पत्र संख्या - २ | साइज - १०३x६ इञ्च । माषा-संस्कृत | विषय - पूजा | रचना काल -X | लेखन काल -X | पूखं । वेष्टन नं० ३७ । विशेष -- प्रति प्राचीन है। व० श्री मेघराज के शिष्य व सबजी के पठनार्थ लिपि की गई थी । . १५८. इन्द्रध्वजपूजा - विश्वभूषण पत्र संख्या ६६ । साइज - ११५ ३० । भाषा-संस्कृत विषय--पूजा । रचना काल-X | लेखन काल - सं० १८२०१२ | पूर्ण वेष्टन नं० ३३ । 1 १५६. कलिकु उपार्श्वनाथपूजा-पत्र संख्या- ६ । साइज - ( ६ इ | भाषा-संस्कृत | विषय - पूज । रचना काल-X | लेखन काल -x | पू । त्रेटन नं ४ | विशेष – पत्र ४ से चिन्तामणिपार्श्वनाथ पूजा भी है। १६०. कर्मदहनपूजा - टेकचंद | पत्र संख्या - १६ | साइज - १३७ । माषा - हिन्दीपूजा । रचना काल - X 1 लेखन काल -X पूर्ण वेष्टन न० १३ । I ५ १६१. कौल कुतुहल – पत्र संख्या ३८४ | साइज - रचना काल -X | लेखन काल सं० १९०१ पौष सुदी २ । दुष्टन मं० १०७ | | माषा-संस्कृत विषय-विधि विधान | विशेष— यज्ञादि की सामन्त्री एवं विधि विधान का वर्णन है। कुल ६१ श्रध्याय हैं । १६२. गणधरवलयपूजा शुभचंद्र । पत्र संख्या - १० । साइज - १०३९४ / आषा-संस्कृत विषय-पूजा । रचना काल -x | लेखन काल -x । पूर्ण | बेष्टन नं ० ११७ । विशेष प्रति प्राचीन है । १६३. गिरनार सिद्ध क्षेत्रपूजा - हजारीमल्ल । पत्र संख्या - २६ साइज - १२३० ६०५ मात्राहिन्दी | विषय-पूजा । रचना काल सं० १६२० बसोज मुदी १२ | लेखन काल -X | पूर्ण | वेष्टन नं I I Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान [ २६६ विशेष - हजारीमल के पिता का नाम हरीकिसन था ये अग्रवाल गोयल ज्ञातीय थे तथा लश्कर के रहने पाले कवि ने साहपुर में आकर दौलतराम की सहायता से रचना की थी । १६४. चन्द्रायणव्रतपूजा - भर देवेन्द्रकोति । पत्र संख्या - साइज - १२३४७०। मात्र:संस्कृत विषय- पूजा । रचना काल -X | लेखन का X। पूर्या । ष्ट नं० १७ । विशेष – २ प्रतियां और है। , १६५. चारित्रशुद्धिविधान ( बारहसो चौतीसविधान ) - श्री भूषण | पत्र संख्या- ७२. साइज १२.४९४३ इश्च । भाषा-प्रेस्कृत विषय विधि विज्ञान रचना काल -x | लेखन क ल १८१३ । पूष्टनं०३२ विशेष — दक्षिण में देवगिरिदुर्ग में पार्श्वनाथ चैलालय में मंथ रचना की गयी थी । तथा जयपुर में प्रतिलिपि हुई थी । १६६. चौबीस तीर्थंकरपूजा – पत्र संख्या ५९१ साइज - ११२ | संस्कृत विषय-पूजा 1 रचना काल - X | लेखन काल -X | पूर्णं । वेष्टन नं० ६१ । १६७. चौवीसतीर्थकर पूजा - सेवाराम | पत्र संख्या ४३ | साइज - १२४६ | भाषा-हिन्दी | विषय-पूजा । रचना काल - १८५४ माह ख़ुदी ६ लेनका १६ पू वेष्टननं। 1 १६८. चौबीस तीर्थंकर पूजा - रामचंद्र | पत्र संख्या ५० साइज - १०३७। भाषा - हिन्दी । विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८८४ वेष्टन नं० १० | विशेष — प्रति सुन्दर दर्शनीय हैं। पत्रों के चारों ओर मिग्न २ प्रकार के सुन्दर बेल चूड़े हैं। स्योजीराम भविला ने सत्राई जयपुर में प्रतिलिपि की थी। १० प्रतियां और हैं। १६६ चौवीसतीर्थंकरपूजा – मनरंगलाल ! पत्र संख्या - १ | साइ- १२३ - ह | भाषा-हिन्दी | विषय-पूजा | रचनाकाल - X | लेखन काल X | पूर्ण । वेष्टन नं० ४ ॥ १७०. चौबीस तीर्थंकर पूजा-पृन्दावन | पत्र संख्या - १५१ | साइज - ११०३ भाषाहिन्दी विषय--पूजन | रचना काल -X: लेखन काल -X | पूर्ण । न नं० २० । विशेष- २ प्रतियां और हैं । १७१. चौबीस तीर्थंकर समुच्चय पूजा - पत्र संख्या:साहन - ११०५ ३श्च । माषा-संस्कृत विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल- पूर्ण वेटन नं० ७१ । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ पूजा एवं प्रतिष्ठादि विधि विधान १७२. चौसठ ऋद्धिपूजा ( गुरावली ) – स्वरुपचंद पत्र संख्या -७१ साइज - ११४७३ दश । भाषा - हिन्दी | विषय-पूजा । रचना काल सं० १६०० श्रावण बुदी ७ । लेखन काल - सं० १३५८ | पूर्ण । वेष्टन न० २ 1 विशेष—इस प्रति को बड़ादरजी ठोलिया ने ठोलियों के मन्दिर में चटाई थी १७३. जम्बूद्वीप पूजा - जिणदास | पत्र संख्या - २१ | साइज - ११३४५३ इञ्च । मात्रा संस्कृत । विषय - पूजा । रचना काल -X | लिखन काल -X | पूर्ण |ष्टन नं० ३५ | २०० 1 १७४. जलहर तेला की पूजा - पत्र संख्या -४ | साइज - ११७३ | मात्रा - संस्कृत विषयपुआ । रचना काल -X | लेखन काल -X | पुणे | वेष्टन २० २२ | १७५. जिनयक्ष कल्प ( प्रसिष्ठापाठ ) - शशाघर | १५ संख्या - १२० | भाषा संस्कृत । त्रिषय विधि विधान । रचना काल - सं० १२०५ । लेखन काल-सं० १८७६ | पूर्ण । अभ्यास थ संख्या - २१०० श्लोक प्रमाण है । साइज - १०x६ ६ ष्टन नं ० ३६६ । विशेष संवद्राधस्मृतिश्रमिते मार्गशीर्णभूतिष्ठा सिते लिखितंमिदं पुस्तकं विदुषा श्वेतांबर इन्दरदासेन श्रीमजयपुरे जयपत | १७६. नविवाहविधि - जिनसेनाचार्यं । पत्र संख्या -४४ । साइज - १२x६ | भाषा-संस्कृत | विषय-विधान | रचना क. ल -X | लेखन काल - सं० १९३३ । पूर्ण । वेष्टन नं० १०५ | विशेष—प्रति हिन्दी अर्थ सहित है। भाषाकार पन्नालालजी दूनी वाले है। सं० १६३३ में इसकी भाषा पू हुई थी । १७७. ज्ञानपूजा-पत्र संख्या-४ | साइज - ११४४३ इथ । भाषा प्राकृत विषय-पूजा 1 रचना काल - X 1 लेखन काल - X। पूर्ण वेष्टन नं० ११५ । विशेष - थां मूलसंघ के श्राचार्य नेमिचन्द्र के पठनार्थं प्रतिलिपि की गयी थी । १७८. तीनचौबीसी पूजा-पत्र संख्या - २१ से ६८ | साइज - ११४४३ भाषा-संस्कृत | विषय - पूजा | रचना कॉल-X | लेखन /8-X | अपू । वेष्टन नं ० ६७ । १७६. त्रिंशत्चतुर्विंशतिपूजा शुभचंद्र । पत्र संख्या - १२० | साइज - १ इन्च | भात्रा संस्कृत | विषय-पूजा । रचना काल -X | लेखन काल-X | पूर्ण | बैप्टन नं ० ६१ क | गुटका के आकार में है । १८०. तेज्ञाव्रत की पूजा-पत्र संख्या -४ | साइज १००३ इंच भाषा-संस्कृत विषय-पूजा | रचना काल- X| लेखन काळ - १९ । पूर्ण । वेष्टन नं० १०५ । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] ५८१. दक्षिणयोगोन्द्र पूजा -- प्रा० सोमसेन । पत्र संख्या-५ । साइज-१९४५६ | भाषामंग्छत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १७६४ माघ सुदी 1 । पूर्व । वेष्टन नं. ८५ । विशेष-पडित मनोहर ने प्रतिलिपि की भी । १२. दशलाणवतोद्यापनपूजा-पत्र संख्या-५२ । साज-१x१३ च । भाषा-हिदीवियपूजा । रचना काल-X । लेखन कान-४ । अपूर्ण । वेष्टन नं. ११ । विशेष - अन्तिम दोहा डारि मत दश धर्म को लुब्ध हो यह सेव। रावत सुर नर सर्म इत मरि परमत्र शिव लेन । १८३ दशलक्षणपूजा-पत्र संख्या-३ । साइज-११:४५२ | मापा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ११२ । विशेष-दीश्वर पूजा ( प्राकृत ) मी दी है। १८४. दशलक्षणपूजा-पत्र संख्या-१७ से २४ । साइज-X४ छ । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना कात्र-x ! लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. १२२ । १५. दशलक्षणपूजा--अभयनंदि । पत्र संख्या-१४ । साइज-११५४ । माषा संस्कृत । . विषय-पूजा । रचना काल -X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ७१ । १८६. दशलक्षणजयमान---भावशर्मा । पत्र संख्या-११ । साइज-१०x४, सच | भाषा-प्राकृत । विषय--पूजा । रचना काल -X । लेखन काल-सं. १७१ ३द्वि० सावन सुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन नं. ७१ । विशेष- रामकीर्ति के शिष्य पं. श्रीहर्ष तथा कल्याण तथा उनके शिष्य पं. चिन्तामणि ने स्टेम रतनसिंह के पठनाभं प्रतिलिपि की थी। १७. दशलक्षणापूजा जयमाल-रइधू । पत्र संख्या-१६ 1 साइन-११४४ इञ्च । भाषा-अपभ्रश । विषय-पूजा । रचना काल -X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०८ | संसत रिपच सहित है। ४ प्रतियां और है। १८८. द्वादशत्रतपूजा-देवेन्द्रकीर्ति । पत्र संख्या-१५ । साइज-१२४५३ च । भाषा-संस्कन । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७७२ माघ सुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० ८० | ५८६. देवपूजा-पत्र संख्या - ६ | साइज-toxश्च । माषा-संस्कृत | विषय-पूजा । रचना काल-४। लेखन काल-XI पूर्ण । बेष्टन नं० ४।। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२] [ पूजा एवं प्रतिष्ठादि विधि विधान विशेष-२ प्रतियां और है । एक प्रति हिन्दी भाषा की है। १०. नन्दीश्वरविधान-रत्ननंदि । पत्र संख्या-१ | साइज-११४५ इन्च । भाषा-संस्कृत । विषय--पजा । रचना काख-४ । लेखन काल-सं १८२७ फागुनदी पूर्व । टन नं. ४९ विशेष--महाराजाधिराज श्री सवाई पृथ्वीसिंहजी के राज्यकाल में बसमा नगर में श्री चंदप्रम चैत्यालय में पंक्ति श्रानन्दराम के शिष्य ने प्रतिलिपि की थी । एक प्रति और है । १६१. नंदूसप्तमीव्रतपूजा-पत्र संख्या-५ । साइज-१६x४ । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काख-X ! लेखन काल-X । पर्ण । बेष्टन न० १३ । १६२. नवप्रहअरिष्टनिवारकपूजा-पत्र संख्या-१८ । सारज-१२:४० इम्च । माया -हिन्दी । विषयuz। स्चना काल-1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं.। १६३. नित्यनियमपूजा---पय संख्या-४० । साइज-८४४, इव । भाषा-हिन्दी । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । थेटन में० १२५ । विशेष-प्रथम पव नहीं है । ३ प्रतियां और है। १४. निर्धारणक्षेत्रपूजा-स्वरूपचंद । पत्र संख्या-२६ । ज-११४८ इञ्च । भावा-हिन्दी । विषयपुना । रचना काल-सं० १६१६ कार्तिक दुदी १३ । लेखन काल-सं० १२३ चैत्र सुदी २ 1 पूर्या । श्रेष्टन • ६२ । विशेष-गणेशखाल पांच्या चाकसू वाले ने प्रतिलिपि को थी . १६५. निर्धारणकाण्डपूजा-वानतराय । पत्र संख्या-३ | साइन-११४५ ५श्व । भाषा-हिन्दी । विषय-पूजा ! रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नै० ३४ । . विशेष-निर्वाणकारद गापा भी दी हुई है। १६६. पद्मावती पूजा-पत्र सरन्या-१३ । साइन-११४५ इंच ! मा-संस्कत । विषय-पूजा । रचना काल-x1 लेखन काल-x पूर्व । वेष्टन नं. ३01 विशेष-निम्न पाठों का और संग्रह है:पावती स्तोत्र, श्लोक संस्था ५३, पद्मावती सहसनाम, पद्मावती कवच, पद्मावती पटल, और घटाकरण मंत्र। १६७. वचकल्याणपूजा-लक्ष्मीचंद । पत्र संख्या-२ से २४ तक । माइज-११x१ भाषासंस्कृत । विषय-पूजा 1 रचना काल-X । लेखन काल सं० १६०६ । पूर्ण । वेष्टन नं. ८६ । १८. पंचकल्याणकपूजा-टेकचंद । पत्र संख्या-२४ । साइज-८१x६ इम्म । माषा-हिन्दी। विषय-पजा। रचना काल-xलेखन काल-२०१४ अषाद सदी ६.| पूर्व। वेष्टन 0 1 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ! [२०३ १६६. पंचकल्याणकपूजा पाठ-पत्र संख्या-२२ । साइज-१०३४. इच। माषा-हिन्दी । विषयपुजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६०० वैशाख सुदी = । पूर्ण । वेष्टन नं० २३ । विशेष-चिम्मनलाल मविसा ने जयपुर में बख्शीराम से प्रतिलिपि कराई थी। २००. पंचपरमेष्टीपूजा-पत्र संख्या-४ | साहज-११४४६ छ । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा | रचना काल-XI लेखन काल-सं० १०३ । पूर्ण । वेटन न. १११ । विशेष-श्लोक संख्या १० है। १०१. पंचपरमेष्टीपूजा-पत्र संख्या-51 साइज- । भाषा-संस्कृत | विषय-पूजा 1 रचना काल-X । लेबन काल-x। पूर्ण । वेष्टन ने० ६२ । २०२, पंचमेस्पूजा-पत्र संख्या-७ । साज-७३४४३ ६ 1 भाषा-हिन्दी। विषय-पजा। रचना काल-X । लखन काल-x। पूर्ण | वेष्टन नं. १२५ । २०३. पूजा एवं अभिषेक विधि । पत्र संख्या-१४ । साइज-- च | भाषा-संस्कृत हिन्दी भय । विषय-विधि विधान । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० १०६ । विशेष-गुटका साहज है। २०४. पूजापाठसंग्रह - पत्र संख्या-६८ । साइज-११४८ इन्च | भाषा-संस्कृत हिन्दी। विषय-पूजा । रचना काम-XI लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ७३ । विशेष-नित्य नैमिक पूजा पाठ श्रादि संग्रह है। पूजा पाठ संग्रह की प्रतियो और हैं। २०५. बीसतीर्थकरपूजा-पन्नालाल संघी। पत्र संख्या-६२ 1 साइज-१२x | माषाहिन्दी । विश्य-पूजा । रचना काल-सं० १ ३४ । लेखन काल-स. १९५४ सावन बुद्धी । पूर्ण | वेहन मं० ५ । विशेष-टोंक में भोजसिंह के पुत्र पन्नाखाल ने रचना की तथा अजमेर में प्रतिलिपि हुई थी। ३ प्रतियां और है। २०६. भक्तामर स्तोत्र पूजा-सोमसेन ! पत्र संख्या-१० । साहज-१.३४ च । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-- | लेखन काल-सं० १५८४ कार्तिक सुदी । पूर्ण । वेष्टन नं. १०३ । विशेष - पंक्ति नानकदास ने प्रतिलिपि की मी Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४] [पता र प्रतिष्ठादि अन्य विधान २८४. मंडल विधान एवं पूजा पाठ संमह-पत्र संख्या-६५४ । साइज-११x६ इ । भाषा-- भस्कृत | विषय-पूजा । लेखन काल-२० १०६ । पूर्या । वेष्टन में० १२ । विशेष-निम्न पात्रों का संग्रह है नाम पाठ पत्र संख्या लेकाल विशेष मंडल चित्र सहित ले. पालि १८६१ चित्र सहित मंडल चिन महित चित्र सहित चित्र सहित ।१) जिन सहस्रनाम श्राशाधर ) से १६ (२) , 1 जिनसेनाचार्य (३) तीन चौबीसी पूजा १ से ३३ ( ४ ) पंचकल्याणकपूजा ४से १५ ( ५ ) पंचपरमेष्ठीपूजा, शमचन्द्र ५६ से... ( 2 ) कर्मदेशनपूजा शुमचद्र (( ७ } बीसातीर्ण करपक्षा नोन्दकोति 1 = ) भक्तामरस्तोत्रपूजा i ) धर्मचक स्मामल्ल ११३ से १२१ ११.) शास्त्रमंडल पूजा शानभूषण ५३० से १३४ (११) ऋषिमंडलपूजा श्रा. गिनाद १३५ से १५५ ११) शान्तिचक्रपूबा (१३) पावतीस्तोत्र पूजा १६२ से १६६ (१०) पद्मावतीसहस्रनाम १५) पोशकारमपूजा उद्यापन शव सैन १५४ से १४(१६) मेघमाला उद्यापन १६ से २१३ ६१७) चीनीसोनामस्तमंडल वधान २१८ रो २३० (१८) दशलक्षणव्रतपूजा २५ से २१. (१६) पंचमीव्रतोपापन - २६१ से २६ (२०) पुष्पांजलिव्रतोद्यापन २६ से २ (२१) कर्मचूरवतोथापन २८३ से २६ (२२) अक्षयनिधिव्रतोद्यापन शानभूषण (२३) पंचमास चतुर्दशी भ० सुरेन्द्रकीर्ति ३०६ से ११ व्रतीधापन (२४) अनंत नत पुजा ३१२ से ३४१ चत्र सहित चित्र सहित चित्र सहित Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम पजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] [ २०५ पत्र सं. विशेष १२) अनंतबनपूजा ३४२ से ३७४ र०का. १६३० सचित्र (२६) रत्नत्रय पूजा केशवसेन ३७५ से ३४६ (२७) रनरवतोचापन ३६७ से ४१२ (२८) पत्यमतोधापन पूजा शुमचंद्र ४१३ से ४५६ चित्र सहित (२६) मासांत चतुर्दशी पूजा अदयराम चित्र सहित ५३०) नमोकार पैंतीसी पूजा यक्षयराम ४४५ से ४० चिम सहित (३१) जिनगुणसंपत्तिवतोधापन - ४५१ से ४५८ सचित्र (३२) त्रेपन कियानतोधापन देनेन्द्रकीर्ति ४५३ से ४६६ ३३) सोख्यत्रतोधापन अक्षयराम ४६७ से ४१ सचित्र (३४) सप्तपरमस्थान पूजा ४८१ से ४८ (३५) अन्टारिका पूजा ४८ से ५११ सचित्र (३६) रोहिणीनताधापन ५१२ से १२४ खे० का २८८ विशेष-जयपुर में लिपि हुई थी। (३) रत्नावलीत्रतोषाधान ४२५ से ४३६ (३८) मानपच्चीसीबतोयापन प्ररेन्द्रकीर्ति ५३७ से ५४५ ले.का.१८४० - _ विशेष-जयपुर में चंद्रप्रभु चत्यालय में लिपि हुई थी। (३६) चिमैरुपुजा भ० रमचंद्र १४६ से १२ (४०) श्रादित्यवास्वतीयापन - सचित्र (४१) अनयदशमीवत पूजा - ५६२ से ५६६ (४२) द्वादशवतीघापन देवेन्द्र कीति १६६ से ५७. (४३) चंदनषष्टीनतपूजा - से ५१ सचिष पर अपूर्ण into them सचित्र सचिन कम विशेष-५८४ से ६०१ तक पृष्ट नहीं हैं। (४४) मौनियतीचापन (५५) व तज्ञानमतोधापन (४६) कांजीव तोधापन ६.६ से २१ ६२२ से ६३६ । - (४७) पूजाटीका संस्कृत - ६४५ से ६५४ इसके अतिरिक्त र फुटकर पत्र है। और २ पक्षों में व्रत पजाओं की सूची दी है महत्वपूर्ण पाठ संग्रह है। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] [ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान २०८. मुक्कापलीबतोधापनपूजा--पत्र संख्या-१८ | साज-१४४६३८ | भाषा-संस्कृत | विषयपजा। रचना कल-X । लेखन काल-म० १६०२ सावन मुदी २ पूर्ण । वेष्टन नं. १२७ । विशेष - चाकसू के मंदिर चंद्रप्रम-चैत्यालय में पारित रतीराम के शिष्य रामबख्श ने प्रतिलिपि की थी। २०६. रत्नत्रयजयमाख-पत्र संख्या-५ | सारज-१०x४ इच । भाषा-प्राकृत । विषय-पना । रचना काल-X । लेखन कालन् । पूर्ण । वेष्टन नं० ११० । विशेष-संस्कृत में टिप्पण दिया हुआ है। ३ प्रतियां और है । २१०. रत्नत्रयपूजा-पत्र संख्या-६ । साज-११४४६ च । भाषा-संस्कृत | विषय-पूजा। रचना काल--X । लेखन काल-सं. १८६६ पौष सुदी २ । पूर्ण । श्रेष्टन नं० १०१। विशेष- श्रीचंद्र ने सवाई जयपुर में प्रतिलिपि की थी। एक प्रति और है। २११. रत्नत्रयपूजा-आशाधर | पत्र संख्या-४ | साइज-१२४५६ इन्न । भाषा-संस्कृत । 'वषयपजा । रचना काल-x | लेखन काल-- । पूर्ण । वेष्टन ०६.1 २१२. रत्नत्रयपूजा-पत्र संख्या-३४ । साइज-१२३४ स्त्र । भाषा-हिन्दी । विषय-पूजा । रचना काल-X | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० २६ 1 २१३. रविप्रसपूजा-पत्र संख्या-१५ । साजx५ इंच | माषा-संस्कृत । विषय-पजा। रचन। काल-४ । लेखन कार-X । पूर्ण : वेष्टन नं ० ६३ । २१४. रोहिणीवत पूजा - केशवसेन । पत्र संख्या-है। साइन-११४४६ इन्छ । भाषा-संस्कृत ! विषय-पूना । रचना काल-X । लेखन काल-x । पूर्ण । वेष्टन नं० १..। २१५. लब्धि विधान पूजा-पत्र संख्या-२.१ । साइज-१०x४३ अ । भाषा-हिन्दी। विषय-पजा । रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । बेष्टन नं. ४१ ॥ २१६. लब्धि विधान ब्रतोद्यापन-पत्र संख्या-८ । साइज-१:४८ इञ्च । मात्रा-संस्कृत | विषयपूजा ! रचना काल-४ । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं. ८१ । २१७. विमलनाथ पूजा-रामचंद्र । पत्र संख्या-३ । साइन-११३४५ च । माषा-हिन्दो । विषयपुजा । रचना काल-X 1 लेखन काल-। पूर्ण । वेष्टन नं. ४६ । २१८. षोडशफारण पूजा--पत्र संख्या-८ | साइज-४६ एम्च । भाषा-संस्कृत | विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पुरा । वेष्टन नं. ४८ । विशेष-देशलक्षण पूजा भी है वह भी संस्कृत में है। Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान ] [२०७ २१६. षोडश कारण व्रतोद्यापन पूजा-आचार्य केशव सेन। पत्र संख्या-२।। साइज!:४४३ श्च | REL-संस्कृत | विषय-पूज' | रत! काल-४ | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० ४४ । २२०. शान्तिनाथ पूजा-सुरेश्वर कौन्ति । पत्र संख्या-- | साइज-११४. इस } मात्रा-संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काम-X । पूर्ण । वेष्टन ० ४६ । विशेष-अंत में भारत भी हैं। Hशानी जन भारती नित्य करो । गुरु वृषचंद सुरेश्वर कीर्ति भाव दुख हरो । प्रभु के पद भारती नित्य करो। २२१. श्रुतज्ञान पूजा-पत्र संख्या-१३ । साइज-११३xk इक | भाषा-संस्कृत । विषय-पजा। रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ण । बेष्टन न. २ । विशेष – पत्र 8 से प्रागे पाठों की सूची दी हुई हैं । हेमचंद्र कृत श्रुत स्कंध के प्राधार से लिखा गया है। मंडल तथा तिधि दी हुई है। २२२. सप्त ऋषि पूजा-पत्र संख्या-- I साज-१ ०३४४३ रन । माषा-संस्कृत । विषय-पूजा | रचना काल-X । तखन काल-- | पूर्ण । वेष्टम नं. ३४३ २२३ समवशरण पूजा-ललितकोत्ति । पत्र संरूपा-४ । साइल-११६x४३ च | भाषासंस्कृत | विषय-पूजा । रचना काल-- । लेखन काल-सं. १७६४ श्रासोज मुदी १५ । पूर्ण : वेण्टन नं. ६ : | विशेष-सवा गर में प्रतिलिपि हुई थी। २२४. समवशरण पूजा-पन्नालाल र पत्र संख्या--६७ । साइज-१२३४८ इन्च । मापा-हि-दी। विषय-पूजा ! रचना काल-सं० ११२१ बासोज दी ३ । लेखन काल-x। पूर्ण । वेष्टन नं. ३ । विशेष-जवाहरलालजी की सहायता से रचना की गयी थी । पन्नालालजी जीवतसिंह जैपुर के कामदार थे । २२५. सम्मेदशिखरपूजा-पत्र संख्या-१० । साइF-Exer इञ्च । भाषा-संस्कृत । विचय--पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेटन नं ६ । २२६, सम्मेदशिखरपूजा-नंदराम । पत्र संख्या-१२ | साइज-१३४७३ इन्न । माषा-हि-दी। विषय-पूजा । रचना काल-सं० १९११ माघ बुदी ५ । लेखन काल-स. १६१२ पौष सुदी २ । पूर्ण । वेष्टन नं. ११ । विशेष-नतनलाल ने प्रतिलिपि की थी। २२७. सम्मेदशिखर पूजा-जवाहरलाल | पत्र संख्या-११ । साज-१-x- । भाषाहिन्दी । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल--X । पूर्ण । वेष्टन नं. ३ । विशेष-एक प्रति और है। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] [ पूजा एवं प्रतिष्ठादि अन्य विधान २२८. सहस्रगुणितपूजामीशुभचंद्र । ५३ संख्या-45 1 साज-1०६x४३ च । भाषा-संस्कृत । विषय-पूजा । चना काल-X । लेखन काल-२० १६६८ | पूर्ण । वेष्टन नं ०६० | विशेष-संवत् १६६८ वर्षे शाकं १५३३ प्रवर्तमाने पौष बुदा . महाराजाधिराम महाराज श्री मानसिंह प्रवत्त माने अंवावत्ति मध्ये ..........। २२६ सहस्रनाम पूजा-धर्मभूषण । पत्र संख्या-८७ । साहज-११४५ इम | माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । रजना काल-४ । लेखन काल-२० १८७४ | पूर्ण । बेष्टन ०७७ । विशेष-शान्तिनाथ मंदिर के पास जयपुर में ६० जगन्नाभ ने प्रतिलिपि की थी। | माषा-हिन्दी । २३०. सहस्रनाम पूजा- ।। पत्र संख्या-१८ | साज-4x. विषय-पूजा । रचना काल-~। लखन काल-x | पूर्ण | वेष्टन नं. ८ | विशेष –पद्य संख्या २२० है। - ३१. सादद्वय द्वीप पूजा--विश्वभूषण । पत्र संख्या-०८ साज-२०४४३ इच। भाषासंस्कृत विषय-पूजा । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८१७ मंगसिर बुदी । । पू। वेष्टन नं. ७= ! प्रतिभ..-पत्र सम्या -१६ | साज-११४५३ | खेसन काल-x। पृ । वेष्टन न. ७६ । विशेष-अटाई द्वीप के तीन नक्शे माँ हैं उनमें एक कपडे पर है जिसका नाप 'x' " फीट है। नक्शे के पीछे द्वीपों का परिचय दिया हुआ है । इसके अतिरिक्त तीन लोक का नक्शा भी है। २३२. सिद्धक्षेत्र पूजा-। पत्र संख्या-४५ से ५० तक । साइज-1.3x+ च । माषा-हिन्दी विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । थपूर्ण । वेष्टन ने । विष-निर्वाग्य काण्ड गापा भी हैं । ५ प्रतियां और है । २३३. सिद्धचक पूजा (अष्टाहिका)-नथमल बिलाला । पत्र संख्या-10 | सा५-१२:५८ ३७ । मात्रा-हि-दी। विषय-पूजा । रचना काल-X1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १६ । २३४. सिद्धचक पूजा-सन्तलाल । पत्र संख्या-११० । साइज-१२५४७३ ईन । भाषा-हिन्दी । विषय-पूजन । रचना काल-x। लेखन काल- १९८६ पासोज एदी पूर्ण । वेष्टन नं.१ । विशेष-ईश्वरलाल चांदवाड ने यजमेर वालों के चौबारे में प्रतिलिपि की थी। संवत् १९८७ में अष्टाहिका व्रतोधापन में केसरलालजी साह की पत्नी नंदलाल पाने वालों की पुत्री ने औलियों के मन्दिर में मेट की थी। २३५. सिद्धपूजा-पद्मनंदि । पत्र संख्या-४ । साइज-१०x४६ मा । भाषा-संस्कृतः । विषय-पूजा । रचना काल-XI लेवन काल श्रासोज बुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. ४६। . Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र एवं काव्य ] [ २०६ विशेष-एक प्रति और है। २३६. सुगंधदशमीव्रतोद्यापन पूजा-पत्र संख्या-२२ । साइज-४६३ इम्य | माषा-संस्कृत । विषय-पूजा । स्चना काल-X । लेखन काल-x। पूर्व । वेष्टन नं. ४४ ! विशे:..- किमतीचा वापी संरकत न है। २३७. सोलहकारल्जयमाल-पत्र संख्या-१४ 1 साइज-11x५ इन्च । माषा-अपभ्रश | विषयपूजा । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १८३५ सावन मुदी । पूर्ण । वेष्टन मं० ७.। विशेष-श्रीचंद ने अयपुर में श्री शान्तिनाय चैत्यालय में प्रतिलिपि की थी। २३८. सौख्यकास्यव्रतोद्यापन विधि-अक्षयराम । पत्र संख्या ८ । साइज-६x४५ इन्च । माषासंस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-स. १८२० भादवा बुदो ४ । लेखन काल-१० १८१८ कार्तिक मुदी ६ । पूर्ण। वेष्टन नं. ११३। विषय-चरित्र एवं काव्य २३६, ऋषभनाथचरित्र-सालकीर्ति । पत्र संख्या-२३११ साइज-११४४३ च । भाषासंस्कृत । विषय चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६६६ माह बुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं० २२० । विशेष--मल्हारपुर में चांदवाड गाव वाली बाई लाडा तसिया मागा ने प्रतिखिपि कराई थी। एक प्रति और है। २४०. किरातार्जुनीय-महाकवि भारघि । पत्र संख्या-१६८ ! साइज-११४५ इञ्च । मापासंस्कृत | विषय-काव्य | रचना काल-४। लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ४८) । विशेष—प्रारम्म के ३१ पन दुसरी प्रति के हैं। पत्र १२ से १६८ तक दूसरी प्रति , के है जिसमें श्लोकों पर हिन्दी में अर्थ भी दिया हुआ है। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ चरित्र एवं काव्य २४१. कुमारसंभव - कालिदास | पत्र संख्या १३ | साइज - १०३८५३ इञ्च । भाषा संस्कृत | विषय-काव्य । रचना काल - X 1 लेखन काल - सं० १४८९ श्राषाट । पूर्ण । देष्टन नं० ४८५ । २१० ] विशेष- प्रति संस्कृत टीका सहित है । प्रशस्ति संवत् १४८६ वर्षे यात्रामा बटपद्रवास्तव्य दीसावालजातीय नवेद सुत व्यास पद्मनामेन कुमार संमत्रकाव्यमलेखि । शुमंभत्रतु । भट्टारक प्रभु संखारखारय विदारणसिंह श्री सोमसुन्दर सूरिश्चिरंनंदतु । प्रति सुन्दर है । २४२. चंदनाचरित्र - शुभचंद्र । पत्र संख्या - २७ | साइज - ११३४४३६ | माषा-संस्कृत | विषय - चरित्र । रचना काल - X 1 लेखन काल - सं० १८६१ भादवा सुदी ८ पूर्ण । वेश्टन नं० १५७ । विशेष- शिवशाल साह ने प्रतिविवि कराई थी । २४३. चन्द्रप्रभचरित्र - पीरनन्दि । पत्र संख्या - १४३ | साइज - १३४५ इव । माषा-संस्कृत । विषय-काव्य । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १५५७ भादवा सुदी १० पूर्ण जेष्टन नं० ६७ । विशेष- इसमें कुल १८ सर्ग हैं प्रभाष संख्या २५०० लोक प्रमाण हैं। प्रारम्भ के १४ पृष्ठों पर संस्कृत टीका भी दी हुई है। २४४. चन्द्रप्रभचरित्र - कवि दामोत्र | पत्र संख्या - २०२ । साइज - १२३४५ इञ्च । माषा-संस्कृत | विषय-चरित्र । रचना काल स० १७२३ । लेखन काल - १०५० माघ सुदी १ । पूर्ण । वेप्टन नं० २३३ । विशेष - जयपुर में प्रतिलिपि हुई थी । २४५. चारुदत्तचरित्र - भारामल्ल 1 पत्र संख्या ५१ | साइज - १२४ च । भाषा - हिन्दी (पथ)। त्रिषय- चरित्र । रचना काल -X | लेखन काल -X | पूर्णं । वेष्टन नं० ७६ । विशेष-पथ संख्या ११०६ है । २४६. जम्बूरश्रमीचरित्र - ब्रह्म जिनदास । पत्रसंख्या- ७२ । सहिजे - १२x४ संस्कृत । विषय--चरित्र | रचना काल --X | लेखन काल - X | पूर्ण । वेष्टन नं० २४२ | इभ्च । मात्रा २४७. जम्बूस्वामी चरित्र - नाथूराम । पत्र संख्या - ३२ | साइज - १२३ - इ । माषा - हिन्दी गय | विषय - चरित्र । रचना काल - X। लेखन काल -X | पूर्ण वेश्वन २० । प्रारम्भ - प्रथम प्रणमी परमेष्टिगण, प्रणमी सारद माय । गुरु निर्माय नमो सदा, मत्र मय में सुखदाय ॥ १ ॥ धर्म दया हर ध, सब विधि मंगलकार । जम्बूस्वामी चरित, की करू वचनिका सार ॥२॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र एवं काव्य [२११ प्रय वचनि का प्रारम्स | मथ्यलोक के असंख्यात द्वीप और समुद्रों के मध्य एक लाख योजन के व्यास वाला माली के श्राकार सबस गोल जम्बू नाम की द्वीप है । जिसके मध्य में नाभि के सद्रस सोमा देने वाला एक सुदर्शन नाम का पर्वत पृथ्वी से दस हजार योजन ऊ'चा है और जिसकी जद पृष्ली में १,००० दश हजार योजन की है । अन्तिम - जंबूस्वामी चरित जी, पंह पुने मनलाय । मानवाहित सुख भोग के, अनुकम शिवपुर जाय ।। संस्कृत से भाषा करी, बर्म बुद्धि जिनदास । लमेचू नाथूराम पुनि, ईद पद की तास || किसनदास सुत मूलचंद, करी प्रेरणा सार । जंबूस्वामी चरित की, करी प्रचनि का सार || तत्र तिनके आदेश से माषा सरल विचार । लघु मति नाथूराम सुत दीपचंद परवार ।। जगत राग घर द्वेष वश, चहुँगति भमैं सदीन । पावै सम्यक रल जो, काट कर्म अदीब ।। गत संत निर्वाण को महावीर जिनराय । एकम श्रापया शुक्ल को को पूर्ण हरषाय || यंतिम है इक प्रार्थना सुनी सुधी नरनार । जी हित चाहो तो करो स्त्राथाय परचार ।। इति श्री जंबूस्वामी चरित्र भाषा मय बच निका संपूर्ण । २४८, जीबंधरचरित्र-प्राचार्य शुभचंद्र। पत्र संख्या-८० । साज-११३४५ इम्प 1 माषासस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १६२७ । लेखन काल-X । पुर्ण । वेष्टन नं ० २१३ । २४६. दुर्घटकाव्य-कालिदास । पत्र संख्या-२० । साइज-११४५ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषयकाव्य । रचना काल-x ! लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टना नं. ४८४ । प्रति संस्कृत टीका सहित है। 1 भाषा २५०. धन्यकुमारचरित्र-गुणभद्राचार्य। पत्र संख्या-१ । साहज-१२४४ संस्कृत । विषय-चरिख । रचना काल-- । लेखन काल-X । पूर्व । वेष्टन न. १७२ बिशेष-लंबकचकन्योत्रभूमछुमचन्द्रो महामना। साधुः सुशीलवान् शातः श्रावको धर्मवत्सल ।। तस्य पुत्रो वभूमात्र कम्हणो दानवान वशी। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२११ ] [ चरित्र एवं काव्य परोपकारचित्तस्य न्यायेनार्जितसद्धनः।। धर्मानुरागिणा तेन धर्मकर्मनिधनं । चरितं कारितं पुण्यं शिवापेति शिवाचिनः ।। इति धन्यकुमार चरित्र समाप्तं । संस्कृत में कठिन शब्दों का अर्थ भी दिया हुया है। ७ परिच्छेद हैं। २५१. धन्यकुमार चरित्र-सकलकीर्ति । पत्र संख्या-४० | साइज-१२४५.३०च | माषा-संस्कृत | विषय-चरित्र । रचना काल-- | लेखन काल-२० १५६४ मंगसिर मुद्दे १३ । पूर्ण । बेष्टन नं: ३६४ | प्रशस्ति-मवत् १५६४ वर्षे प्राषाढादि ६५ वर्षे शाके १४३१ प्रथम मार्गसिर सुदि ख्यं श्री गिरेपुरे श्री थादिनाथ चैत्यालये श्री मूलधेि सरस्वतीमन्छे बलात्कारगणे मारक श्री सकलफोचिः तत्प? महारक श्री भुवनकौलि स्ततपट्ट भट्टारक श्री सनभूषवस्ताप मट्टास्क श्री विजयकीर्तिस्तत् शिष्य ब्रह्म मल्लिदासपठमार्य हुबड सातीय वृद्ध शाखायां चौकडी पात्राला तक्रार्या वझलदे तयो द्वौ पुत्रौ । चोकटी साम्पा तक्रार्या राजलदे। एते भानावर्णी कर्म हमार्थ श्री धन्यकुमारलिखायदत्त शुभं भवत् पश्चात् ब्रह्म श्री मल्दिासात् शिष्य उही श्रान पठितं । पं० हीरा की पोयी है। सात अधिकार हैं। " धन्यमा परिध-वभिनन । पत्र संख्या-२५ | साइज-kx४ ३७ । भाषा-संस्कृत । विषय-नास्त्र । रचना काल-४ । लेखन काल-X । यपूर्ण । वेष्टम नं. ४८६ । । विशेष-चतुर्थ अधिकार तक है इसके धागे अपूर्ण है। २५३. धन्यकुमारचरित्र-खुशालचंद । पत्र संख्या-३८ । साइज-१४४, इव | भाषा-हिन्दी पच । विषय-चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १६५६ मंगसिर सुदी ७ । पूर्ण । वेष्टन नं. ६ । विशेष-एक प्रति घऔर है। २५४. धर्मशर्माभ्युदय-हरिचंद्र। पत्र संख्या-१०६ साइज-१२४४१ च । भाषा-संस्कृत । विषय-काव्य । रचना काल-X । लेखन काल-X ! पूर्ण । वेष्टन नं ० ४३२ । विशेष-प्रति प्राचीन है धीच के कुछ पत्र जीर्ण है । धर्मानाथ तीर्थकर का जीवन चरित्र वर्णित है । २५५. नागकुमारचरित्र-पत्र संख्या-३६ । साइज-१३४८ इन्च । भाषा-हिन्दी। विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन ०७६ | २५६ नेमिदूतकाव्य-विकम | पत्र संख्या-१३ । साइज-१०x४३ च । भाषा-संस्कृत | विषयकाव्य । रचना काल-X । लेखन काल-स. ११७ । पूर्णवेष्ठन नं.४०३। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र एवं काध्य ] { २१३ २५७ नेमिदूतकाव्य सटीक-मूल कर्ता विक्रम कवि । टीकाकार पं० गुण विनय । पत्र संख्या १३ । साइज-१०५४४ इश्व । भाषा-संस्कृत । विषय-काव्य । टीका काल-सं० १६१४ । लेखन काल-100 १६५४ । पूर्ण वएन नं. २६३1 २५८ प्रद्युम्नकाव्य पंजिका-पत्र संख्या-- । साज-१०४६ इन्च | भाषा-प्राकृत | विषयकाव्य । रचना काल-X । लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. ३४२ । विशेष-१४ सर्ग तक है। RE. प्रद्युम्न चरित्र-महसेनाचार्य । पत्र संख्या-८८ | साइज-११६४५६ इन | भाषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-स. १७११ ज्येष्ठ सदी ६ । पूर्ण । वेष्टन न० २६४ | विशेष-कुल' २४ परिच्छेद हैं, कठिन शब्दों के धर्म दिये हुए हैं । २६०. प्रद्युम्नचरित्र -श्रा० सोमकीर्ति । पत्र संख्या-२३६ | साइज़-११४५ इ० । भाषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-X । | पूर्ण । वेष्टन नं० २६३ । विशेष-प्रति प्राचीन है । अंच सं० ४८५० श्लोक प्रमाण है | एक प्रति संवत् १६४७ की लिखी हुई और है । २६१. प्रद्युम्नचरित्र---कवि सिंह । पत्र संख्या-१४३ । साइज-११४४३ इन्च | माषा-अपभ्रश । विय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-स. १५६८ चैत सुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन नं. १०१। विशेष – तसगढ ( टोडारायसिंह ) में सोलंकी वंशोत्पन्न पूर्य सेन के राज्य दावयाच्या स्थाने स्वडेलवालजातीय सोगामी गोत्रोत्पन्न संघी सोटा के वंशज दूगा पत्ता सांगा श्रादि ने प्रतिलिपि कराकर मुनि पद्मकीर्ति को भेंट किया। २६२. पाश्यपुराण-भूधरदास 1 पत्र संख्या-८२ । साइज-११४६ इञ्च.। भाषा-हिन्दी | विषयकाय । रचना काल-सं० १५-2 | लैवन काल-० १११६ श्रावण सदी ७ | पूर्ण । वेष्टन नं. १७ । विशेष-२ प्रतियां कौर हैं। २६३. पार्श्वनाथचरित्र-भ सकलकीर्ति । पत्र संख्यः-१०३ । साइज-११४५ इन्च | माप!संस्कृत ! विषय-चरित्र । रचमा काम-X । लेखन काल-० १६०१ कार्तिफ चुदी ११ । पूर्ण । श्रेष्टन मं० ५३ । विशेष-श्री बादशाह सलीमशाह (जहाँगीर के) शासन काल में प्रयाग में भी धाविनाष चैत्यालय में प्रतिलिप की थी | ब्रह्म श्रासे ने इसे सुसतिदास के पठनार्थ प्रतिलिपि की मी। प्राचार्य श्री हेमकीर्ति के शिष्य सा. मेघराज की पुस्तक है ऐसा लिखा है। इस प्र'ध की भण्डार में एक प्रति और है । २६४. प्रीतिकरचरित्र-ब्रह्मनेमिदत्त । पत्र संख्या-२७ । साइज-१२४४ इश्व | भाषा-संस्कृत । विषय चरित्र । रचना काल-X ! लेखन काल-. १८०५ द्वि० वैशाख मुदी २ । पूर्ण । बेष्टन नं० २७ । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ की गई थी। [ चरित्र एवं काव्य विशेष—पुर नगर में श्री चंद्रप्रमचैत्यालय में प० परसराम जी के शिष्य आनन्दराम के पटना प्रतिलिपि २६५. भद्रबाहुचरित्र - रत्ननंदि । पत्र संख्या- ३० | साइज - ११४५ ३ | भाषा-संस्कृत | विषय - चरित्र । रचनाकाल--X | लेखन काल-२० १६५२ कार्तिक सुदी १४१ पूर्णं । वेष्टन नं० २६७ । विशेष - प्रशस्ति श्रपूर्ण है प्र ६० श्लोक संख्या प्रमाण है । २६६. भद्रबाहुचरित भाषा - चंपाराम पत्र संख्या -३८ । साइज - १६५७१ ख | भात्रीहिन्दी गद्य | विषय - चरित्र । रचना काल-खं० १५०० सावन सुदी १५ लेखन काल -x | पूरी । श्रेष्टन नं० २०१ विशेष – प्रम १३२५ श्लोक प्रमाण है । प्रारम्भ-जैवंती वरती सदा, चौबीलू जिनराज । तिन वंदन मंदक लहै, निश्चय भल सुखदाय || चौपई-रिव अजित संभव अभिनंदन | भूमति पद्म सुपारिस चंद ॥ पुष्पदंत शीतक जिन राय । जिन श्रीहास नम्र सिर नाय ॥ पत्र संख्या - २३ पर—प्रथानंतर जे जीव तिस मव विषैस्त्री कूळ मोक्ष गमन कहे है, ते जीत्र श्राय रूप ग्रह करि अस्य है श्रमश्रा तिनकू वाय सगी है ॥८३॥ कदाचि स्त्री परयाय धारि घर दुद्धरे घोर वीर तप करें | तथाक स्त्री व मोल नाहीं ॥८४॥ श्रन्त चरित्र गुर गम्य लखि रत्ननंदि पुनिराय | रच्यौ पंत श्लोक मय मूख महा सुख दाग ||१|| लैव तिस अनुसार कछु रथ्यौ वचनका रूप । जात नाम कुल तास श्रव कद्दू छनौ गुन भूप || २ || देश डुबाहक मध्यपुर माधव सुवस्थान । जगतसंघ वा नगरपति पातल राज महान ॥३॥ तहाँ बसे इक वैश्य शुभ हीरालाल सु जान । वाति श्राषण न्याति में खंडेलवाल शुभ जानि ॥४॥ गोतमसा फुनि धेरै परम गुनी गुन धाम । तिनकें अति मति दीन सुत उपनों चंपाराम ॥२॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र एवं काव्य ] [ २१५ भ्रता जगम से सुजन सुखदाय । नाने कन्नू अतर समझि सीखी पाय सहाय ॥६॥ तिस पुर मभ्य जिन भवन इक राजत अधिक उदार । मध्य लस जिन वृषभ सुर नर बंदित पद सार ॥॥ तहा जात दिन रेन पुझिगडू अभ्यास । तम लखि कै मुचरित्र इह रची वचनका तास ।। ८ ।। होय दोस यामैं जहाँ अमिसत प्रहर होय । सोधौ ताकू मुघद नर निज लक्षामा थम लोय ॥ ६ ॥ संत सदा अन दुर्जन है औगण लेय । सुख ते तिष्टी मूमि पार मो पर कृपा करेग ।। १० ॥ बुद्धहीन तैं मूलत्रत यर्थ भयो नहीं होय । सा परि सजन पुरुष मो क्षमा करो गुम जोय ॥ ११ ॥ पर सोधी वर बोर ते बखि अवर विनास । यह मेरी अरजी शुभग धरौ चित्त गुह रासि ॥ १२ ॥ अधिक कहे किम होत है जे है संत पुमान । ते भोरे ही कहन हैं समझि लेत र यान ॥ १३ ॥ नर सुर पति बदत चरण करन हरन गुन पूर । पर दरसत भजन करै धर्म रूप विधि चूर ॥ १४ ॥ जो जिनेश इन गुग्ग सहित सो बंदू सिर नाय । सोलु दहा मंगल करन हरन विघ्न प्रधिकाय ॥ १५ ॥ श्रावण मुदि निम त रविवार अर्थ रस जानि । मद ससि संवत्सर विौ मयौ मय सुख खानि ।। १६ ॥ चर थिर चवाति जीवत निति होहु पुखी जगमान । रो विधन दुच रोष सब वधी धर्म भगवान ॥ १८ ॥ - अनुष्ट्याभद्रमामुनेरेतत् चरित्र प्रति दर्शता । भाषा मयं कृतं पारामेश मंदभुद्धिना ॥ १४ ॥ -सोरठातस्य दोष परित्यज्य अहं तु गुन सन्जन। यथा दृष्यौपि सौरभ्यं ददाति चंदनोवणं ॥ २१ ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] [ चरित्र एवं काव्य तेरह से पचीस श्लोफ रूप ख्यिा गिनी । मद्रबाटु पनि ई नरिटननी भाषा गई ॥२॥ इति श्री श्राचार्य रजनंद विरचित मद्रबाहु नरिय संस्कृत ग्रंथ ताकी बालबोध वचन का त्रिपै स्वताम्बर मन उत्पति वा पर्यसंध की उत्पति तथा लुकामत की उत्पति नाम वर्ननों नाम चतुर्थ अधिकार पूर्ण भया ॥ इति ॥ २६७. भद्रबाहु चरित्र भाषा-किशनसिंह । पत्र संख्या-३५ । साइज-११४५ इञ्च । भाषाहिदीमय । विषय-चरित्र । रचना काल-सं. १७८३ | लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. ७८ । विशेष—क प्रति और है। २६८. भविष्यदत्त चरित्र-श्रीधर । पत्र संख्या-६६ । साइज- १२४४ इञ्च । माषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रसना काल-४ | लेखन काल-सं० १५८६ मंगसिर पुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं० २३५ । विशेष -- खंडेलवाल जातीय साह गोत्रोत्यत्र साह लाला के वंशज नाथा स्वीमा छीतर आदि ने प्रतिलिपि कराई मी। २६६. भविष्यवचरित्र-ब्र० रायमल । पत्र संख्या-३८ । साज-१२४८ इन्न । भाषा-हिन्दी पद्य । विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १६१६ । लेखन काल-- 1 पूर्ण । बेष्टम नं० ११५ । २७०, भविष्यदत्त चरित्र-धनपाल । पत्र संख्या-११२ । साइज-११४४६ च । भाषा-अपनश । विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६६२ माघ सुदी १२ । पूर्व । वेष्टन नं. १६५ । ___ विशेष-सं० १६६२ वर्षे माघ सुदी ११ गुरुवासरे रोहिणीनक्षत्रे श्री मूलरांधे लिखितं खेमकरग्य कागम्य हाजीपुरनगर। एक प्रति और है लेकिन वह अपूर्ण है। २७१. भोजप्रबंध-परित अल्लारी । पत्र संख्या-२६ ! साइज़-१०x४६ इश्च । भाषा-संत । विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं० २६८ | विशेष-श्लोक संख्या ११०. प्रमाय है। २७२. महीपालचरित्र-नथमल । पय संख्या-७० | साज-१२३४६ इञ्च माषा-हिन्दी गद्य । विषय-चरित्र 1 रचना काल-सं५ १६ १८ श्राषाढ सुदी ४ । लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन नं. ३ः । विशेष--प्रारम्स के २ तया यन्तिम पत्र नहीं है । श्री नथमल दोसी दुलीचंद के पौत्र तथा शिवचंदजो के पुत्र थे । इनने पं० सदासुखजी के पास रहकर अध्ययन व रचना की थी। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र एवं काव्य ] २७३. मेघदृत-कालिदास । पत्र संख्या- । -१०४. हरू । भाषा-संस्कन । वियर-- व्य । रचना काल-X 1 लेखन कान-४ । पर्ण । वैन्टन f० ४१३ । विशेष-प्रति संस्कृत टीका सहित है । टीकाकार सरस्वतीती हैं। काशी में टीका लिखी गई थी। पत्र १३ 4 मल सहित (श्लोक ५५ ) टीका है शेष पत्रों में मूल श्लोकी के लिए स्मान खाली हैं। २७४. यशोधरचरित्र - वादिराजपूरि । पत्र संख्या-१७ | साइज-१:४६ ६ । भाषा संस्कृत । 'वषय-चरित्र । रचना काल--X | लेखन काल-सं० १५००येप्ट बुद्दी ! पूर्ण । वेष्टन नं. २५, | २४५. यशोधरचरित्र-सकल कीति । पत्र संरूपा-५, । साइज- 12xx, अ | भाषा-संस्कृत । त्रिप-चरित्र । रचना कास-X । लेखन कास- 1 पूर्ण । वेष्टम में० २७१ । विशेष - पाठ सर्ग हैं। प्रति प्राचीन है 1 पत्र पानी में भगे हुए हैं। एक प्रति और हैं। २७६. यशोधरचरित्र-ज्ञानकीर्ति । पत्र संख्या- I साज-१.x इज| मारा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-सं० १६५६ माघ सुदी ५ । लेवन काल-सं० १६६१ जेष्ठ सदी । । पूर्ण । वेष्टन नं. २७५ विशेष-- सर्ग हैं । राजमहल नगर के श्री पाश्नानाथ चैत्यालय में महाराजाधिराज श्री मानसिंह के राज्य शान में उनके प्रधान अमात्य श्री भानू गीधा ने प्रतिलिपि कगई थी । २०७. यशोधरचरित्र-यासबसेन । पत्र संख्या-६३ | खाज-2014। भाषा-संस्कृन । विषय-चरिय । रचना काल •X । लेखन काख-सं. १६१४ चैत्र सुदी १ । पूर्ण । वैप्टन २० २७४ । प्रशस्ति--संवत् १६१४ वर्षे त्र मुदि ५ शुक्रबार तक्षमहादुर्गे महाराजाधिराजरानीकल्याणाःयमामाने श्रीमलसंघ नधाम्नाये बलात्कारगणे सरस्वतीथे श्री कुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनंदिदेवा ताप ० श्रीशुभचंद्रदेना ताप भ० श्रीजिनचंद्रदेवा तत्प४ साप्रभार देन। ता शिव्यमंडलाचार्यश्री'धर्मचंद्रदेवा तत् शिष्यमंडलाचार्यश्री लखित कातिदेवासदाम्नाये खंडेलशलान्वये अजमेरा ने सा दामा तदा चादी नरपुत्रौ द्वौ । प्रा सायो जिनपूजापुरंदर चतुदीन त्रितरण कर रह शोलगंगेत्र मा बोहिम, द्वि० सा वाता | सा. मोहेय नद्या बालरंदे । नत्री द्रौ । प्र० सा. सुरदाय द्विर सा. साधु । सा, सुरताग्य मावा ? ............. "। च | भाषः २८. यशोधर चरित्र-पद्मनाभ कायस्थ । पत्र संख्या-८६ माज-११४ संस्कृत | विषय-चरित्र । रचना काल-x | संखन कान-X । अपूर्ण । वेष्टन न २७२ । विशेष - सर्ग तक है, प्रति प्राचीन है । २७ यशोधर चरित्र--सोमकीर्ति । पत्र संख्या-५१ । साइज–१०:४५ ईछ । भाषा-संस्कत ! विषय-चरित्र । रचना कल-सं. १५३६ पौष बुधी ५ । लेखन काल-x | पूर्ण । टन मं० २.।। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेष [रित्र एवं का 1- आठ सर्ग हैं। श्री शीतलनाथ वैश्यालय गौटिल्यामेव पाट में अन्य रचना की गई थी। मांग क रामका- १०१० प्रमाण है । २० से ४१ तक पत्र दूसरी प्रति के हैं। प्रति प्राचीन है। एक प्रति और हैं। २८०. यशोधरचरित्र - लिखमीदास व | निबंध-चरित्र । चदा काल सं० १७८१ कार्तिक सुदी २१८ ] ݇ܕ पत्र संख्या - १३ । साइज - १३४७१ लेखन काल-सं० १९५२ । पू । २८१. । नाषा यशोधरचरित्र भाषा - खुशालचन्द | पत्र संख्या- ३३ । साइन- १३ हिन्दी पथ । त्रिषय-चरित्र 1 रचना काल-० १७८१ कार्तिक सुदी में । लेखन काल - रा० १३.०० प्रवाद बुढी ३ । पूर्व । विशेष- पं० कालीचरन ने प्रतिलिपि की थी। एक प्रति और है । २२. रघुवंश - कालिदास पत्र संख्या- ११७ | साइज - १०४ य कान्न । रचना कारन X लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं०४५ | इत्र । भाषा-हिन्दी न नं १२२ १ विशेष - प्रति प्राचीन है। संस्कृत टीका सहित हैं। वर्षों के मध्य में मूल सूत्र है तथा ऊपर दो टीका की है । अ ंय टीका श्लोक संख्या - ५२४० है । मूल श्लोक संख्या - २००० है । एक प्रति और है लेकिन वह थपूर्ण है । प्रारम्भ - श्रीमज्जानकी नाथाय नमः | २८३. रामकृष्ण काव्य-पं सूर्य कत्रि । पत्र संख्या - २३ | साइज - ११४४ विश्व-काव्य रचना काल-X | लेखन काल-२०१८१७ चैत्र सुदी ११ | श्रपूर्ण | वेष्टन २० ४०२ । विशेष ग्रन्वयदीपिका नाम को टोका है। पंडि श्रानन्दराम ने प्रतिलिपि की भी । श्रीमन्मंगलमूर्तिमार्तिशमनं त्या विवाहः । शब्दब्रहामनोरमं सुगुणकलाविर जात्मनः । श्रन्तिम – मुसन्धवास्तु विलोभव काव्येन भव्येरतिमादधातु । चातुर्यमायाति यतः कविले नाश तथा पाक जातमेति ॥ इति श्री सूर्यकवि कृता रामकःया काव्यस्यान्नयदीपिका नाम्नी टीका संपूर्णा । भाग-संस्कृत | २४ वरांगपरिय-- भट्टारक समान देव । पत्र संख्या ६७३ साइज १२३४५ समाषासंस्कृत | त्रिषय-चरित्र । रचना काल -X | लेखन काल १८६३ ग्राबाट बुदी ५ पूर्णा । वेष्टन नं० ३७० । विशेष – जयपुर के शतिनाम नेत्यालय में विवध श्रमृतचन्द्र ने प्रतिलिपि की थी । २८५. वासवदत्ता - महाकवि सुबंधु । पयसंख्या - १६ | साह - १०६४४२ - संस्कृत ! विषय-काव्य । चना काल -X | लेखन काल- पूबैष्टन नं ०४७६ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्ररित्र एवं काव्य ] [ २१६ २६. त्रिदम्बमुखमंडन - धर्मदास | पत्र संख्या- ३१३ साइज - ११४५ इन्च भाषा-संस्कृत İETA 28, 1963 Bisex I due sarees una do विशेष— यति श्रमरदत्त ने जयपुर में स. १३१ में पंडित श्रीचंद के शिष्य नि मनोरथराम के पटना प्रतिलिपि कराई थी। व्रतसंस्कृत टीका सहित है। २७. शिशुपालवध -- महाकवि माघ । पत्र संख्या - ११ । साइज - ११४५३ | भाषा-संस्कृत । विध-काव्य रचना काल - ] लेखन का -X पूर्ण | बेटन नं० ४२६ । विशेष – केवल १४ सर्ग की टीका है, टीकाकार मल्लिनाथ सूरि हैं। २. श्रीपाल चरित्र - ब्रह्मनेमिदन्त । पत्र संख्या - ६६ | साइज - १९९५ इन्च | भाषा-संस्कृत | विषय-रचना काल० १५०८५ श्राबाद सुदी १५ | लेखन काल १४ श्रामीन सुदी १०१ पूर्णा । वैश्न नं० २२६ ॥ शेन पूनासा नगर के श्रादिनाथ वालय में ग्रन्थ रचना की गई थी । २६. श्रीपाल चरित्र - परिमस्त पत्र संख्या - १३५ अरि । रचना काल -४ । लेखन काल - । पू । वेष्टन नं० २७ । विशेष—४ प्रतियां और हैं। २५०. कचरित्र - शुभचंद्र पत्र संख्या - ११३ | साइज - ११६४ रचना काल -X | लेखन काल-सं० १७८५ यात्री २५ पूर्ण प्टन नं० २४१ | - १२३ मात्रा-हिन्दी विषय- माया-संस्कृत विषय विशेषः - फोडी ग्राम में प्रतिलिपि हुई थी । २६१. सप्तव्यसन चरित्र भाषा | पत्र संख्या-१३ | सहज-१२-१३ | भाषा - हिन्दी गथ विषयचरित्र ] रचना काल-मं० १६२१ | लेखन काल -X | पूर्ण |ष्टननं ७ | विशेष- रचना के मूलकर्ता सोमर्ति हैं । २२. सुकुमानचरित्र - सकलुकीति | पत्र संख्या ४३ साइज - १०३४४६ मात्रा-संस्कृत | विषय-परि | स्वनः का -X लेखन काल -x । पू । न नं० ४.१ । विशेष – १ सर्ग हैं | श्लोक संख्या १२०० हैं प पानी में भीगे हुए है । २५. सुकुरालचरित्र भाषा -- नाथूलाल होसी । पत्र संख्या २५-१९४३ । माषाहिन्दी अश्रु । विषय-चरित्र । रचना काल -X | लेखन काल - पूर्ण वेष्टन नं० १४० । विशेष - प्रारम्भ में चरित्र पत्र में दिया हुआ है फिर उसकी निकाली गई है। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ चरित्र एवं काश्य परम्भ (पय)-श्रीमत वीर जिनेश प६, कमल नमू शिरनाय । जिनवायी उर मैं धरू जजू सुगुरु के पाय ॥ १ ॥ पंच परम गुरु जगत में परम इष्ट पहिचान । भन च तन करि ध्यानते होत कर्म की हानि ॥२॥ अति - सोरम सिथ ली गये, शेष जतो तज प्रान । जानी मवि संक्षेप ईह विध चरित बखान || RH पत्र कमाल चरित्र का सकल ज्ञान या हेत । देश बननिका मव लिपटी मी धरि चित ॥ १६ ॥ अांश प्रमाद कहू भूलि के घरप लिन न ओ होय ।। पंडित जन सब सोधियो, मूल प्रच अवलोय ॥ १२७ ।। अचनिका पध में० ८८ की: थर भूउ नननका बालना ते बुद्धि, को नाश ही है । अपजस फैले है । अर सई जीवन में अविश्वास की 14 हो है । बरि राजादिकनि ते हाथ पाच कान नाक जीम यादि का छेद रूप दे पाई है। निम-श्रादि अंत मंगल करी श्री नृपमादि जिनेश । जैन धर्म जिन भारती, हर संसार कलेश ।। गया . हा देश मध्य अपर नगर वो हैं, गार वर्ग राह चाल अपने मर्ग की। रामसिंह पत के राज मांहि कमी नाहि, की कहु दष्टि परै जानी निज कर्म की ॥ सकल जैनी को पूत्र कस्य पुण्य भको, ____ पायो यह खोलो अब मुदी दृष्टि धर्म की । जैन न कान सुनी घत्मस्वरुप मूनौ, __चा अनुयोग भनी यही संस्त्र मर्म की || २ || कीगई-सी गोत दुलीचंद नाम | ताकीत शिवनंद अभिराम || लाल ताम सुत भयो : जैन धर्म को सालो ल। ।। ३ ॥ बौदाकाणा संभही अमरेश | पाय सहाय पढ्यो शुत लेश || कासलीवाल सदा पुस्य पास | फिर कोनी को अभ्यास ॥ « | श्री कुमाल चरिय रसास । देव कहीं हरचंद गंगवाल || दोन मनिका मय जो ऐह । सम जन वांचे हित गह ॥ ५ ॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र एवं काव्य ] भिन याकरण परे नही शान । मूलभ को हार निदान !! औसी प्रार्थना तने भसाय । मूल मंथ को पाय सहाय ॥ ६ ॥ भावारण सो जिलयो ह । देश वनिका मय धरि नेह ।। नाची पदो पायौं पुनी। यात्म हित के नीक गी ।। || जो प्रभाद बस से कुछ हहा। भोलपनं ते जने कहा || सो सब भूले प्रध अनुसार । पुध करयो बुध जन सुविचार || - !! उनबीससतयार हसार । सात्रय मुदी दशमी गुरुवार ।। पूरा भई वनानि का एह । चाची पटी मुभी धरि नेह || ५ || याहा--गलमय मंगल कान वात राग चिद्रप । मन वन कर सावतें, हो है त्रिभुवन भूप ॥ १० ॥ इति श्री सकलकति याचा विरचित शकुमाल चरित्र संत मय ताकी देशमाए। चरनिका समाप्ता ।। १४. सीताचरित्र-कवि बालक । पत्र संख्या-११३ | साइज-१३४६: इन । भाषा-हिन्दी क्य । बत्रय-चरित्र । रचना काल-सं० १९०३ मन सर सुदी ५ । लेखन काल-सं. १७६ भावन सदी । : । पूर्वी । वेष्टन नं ० ६२ विशेष-५० सुखलाल ने केयू नगर । प्रतिलिपि को भी सुखराम का गीत टालिया, शखापार्टी, वास हिरा गया था । २६५. हनुमतचौपई-ब्रह्मरायमल्ल । पत्र बना-४० । साज-१.४ : भाषा-हिन्दी पच । विषय-रिव ३ रचना काल-सं, १६१६ । लेखन काल-सं० १८६५ ॥ पूर्ण । वेटन ० १: । पदित सवाई रामजी र ) देकर मुम्न विशेष—छोटेलालजी टोया ने मन्दिर दाणावलि ( दीवानी मंवत १०२ में ली थी। . २६६, हनुमच्चरित्र-ब्रह्म अजित 1 पत्र संख्या-| साइज-kxt इन 1 भाषा-स्ति । विषय-चरित्र । रचना काल-४ । लेखन काल-X | पूर्ण : वेष्टन नं ० ५.६६ । विशेष-अथ २० . लोक प्रमाण है प्रति प्राचीन है। २६७. होलिकाचरित्र-निनदास। पत्र संख्या-१०६ । साइज-११,४५ ५ . भाषा-संस्कृत । धक्ष्य-रित्र । रचना कास-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० २३ । विशेष-मयश्लोक संख्या ४३ प्रमाण। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय - पुराण साहित्य २८. आदिपुराण - जिनसेनाचार्य | पत्र संख्या- ३४१ | साइज - १२४६ विषय-पुराण | रचना काल -X | लेखन काल - सं० १७२६ ज्येष्ठ सुदी ५। पू । वेष्टन नं० १५८ | विशेष – पालुम्ब नगर निवासी बिहारीदास के पुत्र निहालचंद जैसवाल ने प्रतिलिपि की भी एक प्रति और हैं लेकिन वह अपूरी है। २६६ आदिपुराण – पुष्पदंत | पत्र संख्या-४ से २७६ | साहज - १२८५३ भाषा - अपन श । रचना काल -X | लेखन काल- ०१४४३ पाखोज दी दु । वेष्टन नं ० १६४ । | भाषा-संस्कृत | विषशे - एक प्रति और है। लेकिन वह अपूर्ण हैं | लेखक प्ररास्ति निम्न प्रकार है | भाषा - हिन्दी | प्रशस्ति — अथ श्रीविक्रमविराज्यात् संवत् १४४३ वर्षे श्रासोज सुदी ६ गुरुवारे श्री हिसार रोजाकीट सलतान श्री बहलोल साहरन्यप्रवर्तमाने श्री मूलचे नंयाम्नाये सरस्वतीगच्छे बलात्कारगो मट्टारकश्रीपद्मनंदिदेवाः तत्पट्टे भट्टारक भी शुभचंद्रदेवा तद् शिष्य श्री मुनि जयनंदिदेवा तत् शिष्यणी बाई गुज़री निमिर्च श्री खडेलवालभ्वये क्षेत्रपालीय गोत्रे सुनामपुत्रास्त जिनशासन मात्रकपरम श्रावकसंवपतिक नामा वत्पत्नी शीलशालिनी साध्वी राग्यो नाही तयो चत्वारः पुत्राः अनेक तीर्थयात्रादिमहा महोत्सवकारायिका श्रहंतादि पंच परमे चिरणारविंद सेव ने चंचरीका संघपति हवा सं० धीरा सं० कामा, स० [सुरपति नामधेया तन्मध्ये संघपति कामा भार्या विहितानेत नियमतपोविधानादिधर्म कार्या साध्वी कमलश्री तत्पुत्र देवपूजादिषट्कर्मपद्मिनी मार्यों हस्तिनागपुरतीर्थ याथाभावनाकारणोपपत्र पुन्यनलप्रचंड स० भीवा से बच्चों संघपति भीमाख्यजाया देवगुरुशास्त्रमक्ति विधानप्रलब्धाया साध्वी मोवी इति प्रसिद्धि तदनंदने प्रर्थनमा गुरुदास तत् केल शीलाच पात्रे सुखश्री नामक तत्सुती चिरंजीव जैरामल संघपति बहू गेहनी विनयादिगुणषुतदाहिनी वडल सरि इति रुधि । तत् तनुज जिनचरणकमल क्षेत्र नेकचंचरीका: स० रावणदासाख्य तज्जननी शीलविनयादि यतं सरस्वती संचिका | एतेषांमध्ये साध्वीया कमली तथा निज पुत्र सं० भीवा बच्छूको न्यायोपार्जित विधेन इदश्री यादिपुराण पुस्तकं लिखापित ॥ लिखितं महेश्वर शोभा सुत ऊथाकेन इदं पुस्तकें ३०० श्रादिपुराण भाषा पं० दौलतराम | पत्र संख्या ६४ | साइज - १३६४६६ ५ | भाषाहिन्दी | विषय-पुराय | रचना काल -X लेखन काल -x | वेष्टन नं ० ६६ ॥ अन्थ २२७०० श्लोक प्रमाण हैं। एक प्रति श्रर हैं : ३०१. उत्तरपुराण- गुणभद्राचार्य । पत्र संख्या- ३-१ | साइज - १२÷६ इन्च | मात्रा-संस्कृत विषय-पुराण | रचना फाल-X | लेखन काल - सं. १८६२ चैत्र सुदी १२ | अपूर्ण | वेष्ठन नं० १५६ | Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुराण साहित्य ] [ २२३ विशेष-प्रशस्ति थपूगई है। अजमेर पट्ट के भ. देवेन्द्रकीर्ति के पक्ष में प्राचार्य रामकीति के समय में लश्कर ग्वालियर ) में आदिनाय चैत्यालय में प्रतिलिपि की गयी भी। इसमें ६६ से ६८ तक पत्र नहीं है। एक प्रति और है । यह प्रति प्राचीन है । ३०२. मिजिनपुराण--ब्रह्मने मिदत्त । पर हल्या-५८३ । साइज-११४५ इञ्च । माषा-संस्कृत । विषय-पुराग । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १६१२ श्रापाट पुदी १३ । पूर्ण । बेष्टन नं० २२० । विशेष-तक्षगह में राजा रामचंद्र के शासन काल में यादिनाथ चैत्यालय में प्रतिलिपि की गई थी। : प्रतिमा और हैं। ३८३. पद्मपुराण-रविषणाचार्य । पत्र संख्या-१ से १५० | साइज-:३४६, इ! भाषासंस्कृत । वषय-पुराण | रचन। काल-| सेखन कान-X । अपूर्ण । वेष्टन नं० १६१ । ३०४. पापुराण-पं० दौलतराम । पत्र संख्या-६२१ । साइज-१२४६३ 1 भाषा-हिन्दी गय। विषय-पुराण । रचना काल-सं०१८२३ माघ सुदी लेखन कार--:50. श्री रन नं. ५= विशेष---दयाचंद चांदना ने लिपि की की। ३०५. पाण्डवपुराण---शुभचंद्र । पत्र संख्या-२०२। साइज १२:४६: इन | भाषा-संस्कृत । विषय-पुराया . रचना काल-सं० १६० भादवा बुदी २ । लेखन काल-२० १७६.२ श्रासोज मुदी १५ । 'पूर्ण । वेष्टन नं ४१ विशेष---श्वेताम्बर यति गोरखदास ने वसत्रा में प्रतिलिपि की भी। ३०६. बलभद्रपुराण-रइधू | पप संख्या-१५५ | साइज-१२८४ इन। भाषा-अपनश । विषय-पुरःण । रचना काल-x | लेखन काल-० १७३२ फागन चुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं० १६ । विशेष -औरंगजेत्र के शासनकाल में बैराठ नगर में अग्रवाल बंशीत्पन्न मुमिल गोत्रीय संघी साचु के वशंज संधी श्री कुशलसिंह ने प्रेमराज से प्रतिलिपि कराई थी। ३८७ रामपुरास्य पद्मपुराण ;-भः सोमसेन | पत्र संख्या-२:४ | साइज-११:४५६ १५ । भाषा-संस्कृत ! विषय-पुराण । रचना काल-सं० १६५६ । लेखन काल-सं० १६२८ माह मुदी ७ । पूर्ण । वेटन नं० २५६ विशेष - श्वेताम्बर जयदास ने प्रतिलिपि कमी । कुल ३ अधिकार हैं। अगामय संरूगा-, एलॉक प्रमाण है। ____३०८, वर्द्धमानपुराण-सकलकीति । पत्र संख्या-१६ | साज-२६x६ इन्च | भाषा-ind | विषय--पुराग्य । रचना काल-x। लेखन काल-२०१८५८ | पूर्थ । वेष्टन नं० २५ । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ] [पुरागण साहित्य विशेष—इसमें कुल १. अधिकार हैं। महाभा सालगराम ने प्रतिलिपि की थी 1 ३०६. शान्तिनाथपुराण-सकलकीर्ति । पत्र संख्या-४६ से १८८ । साइज-1१४ च । भाषासंस्कृत विषय-पुतण । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १६१८. माह सुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. २१८ । विशेष-कुल १६ अधिकार हैं । श्लोक संख्या ४३८० है। एक प्रति और है । ३१०. हरिवंशपुराण-यश कीत्ति । पत्र संख्या-१५१। साइज-१६x४३ इन्च | माषा-अपभ्रश । विषय -पुराण 1 रचना कारी-X । लेखा काल-सं० १६१५ सावनमुदी १३ । पूर्ण । पैन्टन नं. १६६ । विशेष--४०. प्रभागश्लोक गन्थ है। बादशाह अकबर के शासन काल में अग्रवाल वंशोत्पन्न मित्तल गोत्रीय नाडी निवासी शाह असागज के वंशज सा. भीमसन ने प्रतिलिपि कराई यो । लेखक प्रशस्ति का विस्तृत हैं। ३११. हरिवंशपुराण -- जिनदास । पत्र संख्या-३६६ । सा: ज-१.xi i | भाषासंस्थत ! विषय-पुराण । चना काल-x | लेखन काल-सं० १७१२ गहन जुदा - । पूर्ण वेशन नं० १६८ । लेखक प्रशस्ति यपूर्ण है। एक प्रति और हैं । २१२. हरिवंशपुर--- दौलतराम । पत्र संख्या-६८४ | साइज-१३४= इस ! भाषा-हिन्दी । विषय--पुरामः । २चदा काल-सं० १८२६ चैत्र सुदी १ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० १४ । विशेष-बलदेव कृत जयपुर रंदना भी है। विषय-कथा एवं रासा साहित्य ३१३. अमाहिकाकथा-१५ संख्या-३८ । साइज-१०४४३ ३ । भाषा-हिन्दी गए । विष३-41 । रचमा काल-x | लेखन काल-सं० १६१, मंगसिर बुदा ११ । पूर्वी । वेष्टन नं. ७२ । विशेष-गुजराती हिन्दी मिश्रत है । सात जागा है उस पर टीका है । पत्रालाल के पटना प्रतिलिपि की थी। प्रारम्म-शान्ति देव प्रणाम करि निश्चय मन में ध्याय । कथा अठाईनी लिखी, भाषा सगम बनाय ।। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा एवं रासा साहित्य ] [ २२५ ___यहाँ समस्त खोट कर्म रौ पालने वाली, निमल धर्म से उपजावने वाली यौर कर्म तिगरी नासरी करिने वाली फर, यह लोग रे विषै परलोक र विषै परलोक रे रिण किया है। घणौ पुत्र जिन्हे ऐसा पवणा पर्व श्रागी यकी समस्त देवन। भवनाति इन्द्र भेल्या होय ते नंदीश्वर नामा पाठमा द्वीप रे यिनै धर्म री महिमा करनाये जावे ।। अन्तिम - मति मंदिर किनी सरस कथा अठाई देश । पद में यक्षुध केई हुवो कधि जन लीजी देख ॥ ३१४. अष्टालिका कथा--पत्र संख्या--३३ । साइज-१०x४३ हाच । मा21-हिन्दी गध । विषय-कथा । रदना काल-x ! लेखन क.ल-सं. १८८२ श्राबाट सुदी ११ । पूगमे । वेष्टन नं. ६.८१ । विशेष – पन्नालाल ने प्रतिलिपि की थी । अन्त में निम्न दोहा भी है: रतन कोह मुम्न संकदो अलवेली पवार । दंपत पाणि मरै तीस पुरष री नार || १ || ३१५. अनंतव्रतकथा-पत्र संख्या-६ । साइज-१:४५: । भाषा-संस्कृत | विषय-श । रचना केन-x 1 लखन काल-० १९०१ भादवा सुदी १३ । पूर्ण । वेष्टन नं ० ४२५ । ३१६. अष्टाहिका कथा-रत्ननंदि। पत्र संख्या-४ | साज-११:४४३, १५ । भाषा-संस्कृत । शिष--कथा । रचना काल-1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ४५ । विशेष - संसत में कठिन शब्दों के अर्थ भी दिया हुआ है । प्रति प्राचीन है। श्लोक संगा-- है। ३१५. आराधनाकथाकोष--पथ संख्या-८२ 1 साज-१४५ इभ । भाका-संस्कृत । यवन--4.01 । रचना काल-| लेखन काल-सं० १५४५ माघ सुदी = | पूर्मा 1 वेष्टन नं० ३२५ । विशेष-हिसार पैरोजाबादपत्रने मुरत्राण नथलोलिसाहि राको गुणभद्र देवा-तेषां साम्नाथे साधु नोटा." ....... .. .. ... लत कमाकोषप्र लिखापित । ब्रह्म घटिम योगदत्त'। अनि प्राचीन एवं जी है। पत्र ३४ से २ तर मिलिखाये गये हैं । अन्तिम पत्र जी नपा ५zा हुअा है। ३१८. कमलचन्द्रायणकथा-पत्र संख्या-२ । साइन-xx च । भाषा-संसत । विषय-कथा । रचना काल-X । लेखन काल-४ | पूर्ण । वेष्टन नं. ४२५ । विशेष-५४ और १५५ वा पत्र अन्य अन्य के हैं। ३१६. कालिकाचार्यकथानक-भाषदेषाचार्य । पत्र संख्या-- | साइज-34६x४६नु । भा१/परत । विश्य-कमा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ५८४ | विशे१-या संख्या १०० है । पयों पर सुनहरी पंक्ति है । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६.] ३२०. बाराधमाकथाकोश -- पत्र संख्या-५६ । साइन- था । रचनाकाद-४ । लेखन काल-X । पूर्वी । श्रेष्टन ० ८८ | [ कथा एव रासा साहित्य इन । भाषा-हिन्दो पद्य । विषय निम्न कमानी का संग्रह है:--- सम्यवायोन कथा, प्रकल-क स्वामी की कमा, समंतभद्राचार्य की कंघा, सनतकुमार चऋत्रत की कथा, संजयंत मुनि की कमा, मधुपिंगल की कथा, नागदत्त मुनि की कमा, ब्रह्मदस चक्रवर्ती की कथा, अंजन चोर की कमा, अनंतमति की कथा, यापन ग़जा की कथा रेवती रानी की कथा, जिनेन्द्र मक्त सेट की कथा, वारिषेण की कथा, विशुमार कया, वनकुमार कया, पानि कर कथा, तथा जन्यस्वामी का । ये कुल १८ कथाएं हैं। ३२१. नन्दीश्वरविधान कथा-पत्र संख्या- साइज-१.१४४३ इन्न । भाषा- त | विषयकथा ।रचना काल-X1 वन काल-x पूणे । वेटन नं. ११४ । विशेष प्रति प्राचीन है। ३२२. नन्दीश्वरवत कथा-शुभचंद्र। पत्र संख्या-साज-iix इज। माषा-मं11 चिय-कथा । रखना काल-X वन काल-~। पूर्ण । वेष्टन नं० ४३ । विशेष-एक प्रति और है। ३२३. नागकुमारपंचमी कथा-मल्लिषेण सूरि । पत्र स्पा-२६ । साज-१.xx1 भाप:। विषय-कया । रहना काल-X । लेम्पन काल-x | पूर्ण । न नं. ८१ । विशेष-४ सर्ग है | अंथ श्लोक संख्या ४५ प्रमाण है। २२४. निशिभोजनकधा-भारामल्ल ! पत्र संख्या-10 साज-१.४८ ३२ । भोपा-हिन्दी पद । विषय--कथः । रचना काल-x लेखन काल-x। पूर्ण 1 प्रेशन नं ११ । प्रति प्राचीन है। ३२५. पुण्याश्रवकथाकोष-दौलतराम । परस्या -११ | साइज-१३४६ हनन । मात्रा-हिन्दी। गय । विरग-कथा । रचना काल-X । लेखन काल सं. १:। पूर्ण । बटन नं० ६२ । विशेष-एक पति और है। ३२६. भक्तामरस्तोत्र कथा-पत्र संख्या-३७ । साइज-!x३ । भाषाकृत | विषयक्या । रचना काल-X । लेखन काल-X1 यपूणे । वेष्टन नं० २१५ । २२७. भक्तामरस्तोत्रकथा भाषा--विनोदीलाल । पत्र संख्या-१७३ | महज- x= | झापा-'हन्दी मद्य । विष-कमा । चना काल-सं० १७४६ सावन मही। सन काल-i. १९४७ । पूर्ण | बेन Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा एवं रासा साहित्य ] [हिन्दी] ० २९३ । विशेष माननीय जी ने प्रतिनिधि कराई थी। कुछ ३० कथाएं हैं। एक प्रति और है। ३२. मदनमंजरीकथा प्रबन्ध - पोपटशाह | पत्र संख्या - २५ | साइज - १०१४४३ -कथा रचना काल मंगसिर सुदी १० लेखन काल सं० १७०६ भाषाट सुदी १० - ३२६. मुक्तावत्रितकथा-खुशालचंद पत्र संख्या-सा ०१००२ - पूर्व बेटन नं० ११६ । ३३० मेघकुमार गीत-फनककीर्तिप२-१०४ हिन्दी कमः। रचना काल X लेखन बाल- पूर्व वेष्टन नं० ४४० । विशेष प्रति प्राचीन है: -४६ प हैं। श्री वीर जिनंद पसा जे मेघकुमार स्थि गा ताही यागली वीनस बीजाइ, बसी संपति सगली पाह || ४६ || धन धन जे नीवर मेणकुमार, जीपी चारित पालअसार । गुरू श्री माणीक सोस, हम कनक बागाय नीस दीस ॥ ॥ इति मेघकुमार गीत संपूर्ण ॥ ३३१. राजुल पचीसी-लालचंद विनोदीलाल पत्र संस्था (१) विषय-कथा रचना काल X १७६६ पूर्ण - पेन नं० १६४ ॥ ' '३३२. रैवत कथा - देवेन्द्रकीत्ति पत्र संख्या-४ -११४५ | भाषा-संस्कृ कथा | रचना काल -X | लेखन काल - X1 पून ७२ ३३३. रोहिणी व्रत कथा - भानुकीर्ति । पत्र संख्या -४ | साइज - ११४५३ एकमा रचना काल लेखन - पूर्ण वेशन नं० ४२५ | प्रारम्भ || सहज १०४इन 1 मंत्रा विशेष एक पति और है । चाकसू का विस्तृत वर्णन हैं । पद्म संख्या २६ १ हैं । I २२४. कचोर कथा (धनदत्त सेठ की कथा ) - नथमल पत्र संख्या १४-१ माश-हिन्दी पत्रिका रचनाकाल १७२४ वादी २ ले पूर्ण —श्रीपाईप्रथम पंच पीसार तिहू सुमरत पात्रे भवपार | दूजा सारद बिस्तरू । बुद्धि प्रकास कवित उचरू ॥ गुरु नियर्थं नमू जगदीस | संख्या तीस सहसचीबख ॥ वाणीति कड़े अनसार गत भन्न जिय उतरे पार || [ २२७ ] भाषापूर्ण वेश्न इक्ष | भाग-संस्कृत । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] [ कथा एवं रासा साहित्य गाधर मुनिवर कह वंदना । वंक चोर की कथा मन त ॥ ता सीमा पाली निज मांस । ताको भयो सोलहो निवास || ३ ॥ दुजी कमा सेठ की कही । नाम धनद धर्म नगरी सही ॥ सदा ब्रतपाल निज सार । ऊँच नीच को नही विचार ॥४॥ अन्तिम -पटसी मुणसी जे नर कोय । क्रम २ ते मुक्ति ही होय ॥ सहर चाटसू हवस वास । तिह पुर नाना मोग विलास ॥ २७७ ।। नधी कूत्रा नव सै ठाय । ताल पोखरी या न जाय ।। ना बहो जगोली राव । सबै लोग देषण को माल || २६८. ।। डीत माहि वणी चौकोर 1 नीर भरै नारी बहु और ॥ चकवा चकवी केल कराहि । अधिक ताहि नहीं दुख दाय ॥ २७ ।। छत्री चौतरा भैठक घणी । घर मसजद तुरका की पगी ।। चहुँचा रूप वृक्ष बहु प्राय। पंधी देलि रहे विरमाय ॥ २८ ।। चहुधा नार अधिक बहाय । पावे संग वड़ा पर गाय ।। सहर वीचि ते कोट अतग नाहि सुरज प्रति वणी मचंग ।। २८१ ।। 'बहुधा खाई मरी मुभाग : मोस जागी रिहा ।। बहुघा बणे अधिक बाजार । बसे वणिक करै व्यापार ॥ २८ ॥ कोई सौनो रूपी की। कोई मोती माणिक लौ ।। कोई येचे रका रोक 1 केई वानी रोका ठोहि ॥ २८ ॥ कोई परचूना रेनै नाज। केई एकठे मेले साज ॥ १६ उधार दाम की गाठि । ई पसारी माडै हाटि !॥ २८ ॥ प्यार देव ए जिगावर तगा । ता महि दिन बढो यत्ति वसा ।। करै महोछ पूजा सार । धावक लीया सन बाघार || २८3. i! बाई जती रहन को शब । उनही हार दौबे करि भाव ॥ और डेहुरे वैसनु तणा। धर्म क सगला अापणा ।। २८.५ । मौरंगमाहि राज ते धरै। पाँच तीसी लोला करें ।। कडू' नीवा चपन महकाय । हू' अगरका ४ विकसाय ।। २८७ ॥ नगर नायका सोमा धरै । पानु नवु रचित्त बोसो करें ।। असो सहर और नही सही। दुखी बलिद्री दीस नही । २८ ।। हाकिम में महास्वा सही। और जोर कोर दास नहीं ।। मा मा पास भार मौलांत नर नाम उहाय AH Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा एवं रासा साहित्य ] [ २२६ न सतरा से पवीस । पाषाद मदी जागो वरतीज || वारज सोनदार ते जाया । फषा संपूर्ग भई परमाय ।। २६॥ परमी सुरणपो जे नर फोय । ते मर स्वर्ग देवता होय ।। न चूक कही लिखयो होय । नथमल क्षमा कत्रो सब कोय ।। २११ ।। ।। इति श्री कचोर धनदत्त कथा संपूर्ण ।। 1 - 1 प्रति प्रौर है। ३६५. प्रतकथाकोष-श्रुतसागर । पत्र संख्या-८० । साज-१२४५६ च । भाषा-संस्कृत । विषयश्या । पनना काल-X । ललन पाल-२० १७०४ शाख पुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं. १५३ । विशेष-भालाब में पावनाय चैत्यालय में प्रतिलिपि हुई थी । ४ प्रतियां पौर हैं। २३६. प्रतकथाकोप-खुशालचंद । पत्र संख्या-८० । साज-१२४ रच | भागा-हिन्दी पप | विषय-कथा । निना करत-४ । लेखन फाल-२० १७४0 1 पूर्ण । वेधन नं० २० । विशेष-२ प्रतियां चौर हैं। नि १३ थानों का संग्रह है पति कथा, दशलतण कपा, मुक्तावलत्रित कमा, वपकया, पंदनषष्ठीकमा, षोडपकारणकया, ज्येष्ठ जिनवरफमा, श्राफाशपंचमीब 141, मोतसप्तमीव्रतकथा, अक्षयनिधिकथा, मेघमालामतकया, लन्धिविधानकचा और पुष्पांजलिमतकमा । ५३७. शुकराज कथा ( शत्रुजय गिरि गौरव वर्णन )माणिक्य सुन्दर। पत्र संख्या-२१ । साइ-१.xx., । भाषा-संस्कृत | विषय-कथा । रचना काश-X । लेखन काल-x | पूर्ण । बेष्टन नं. ४७६ | ३३८. सायसनकथा-सोमकीर्ति । पत्र संख्या-६६ । साइज-११४ इन्च । माषा-सस्कृत । विषय-कपा । रचना बाल-० ११२६ । लेखन काल-सं० १७१७ चैप पुदी ११ । पूर्ष । श्रेष्टन नं० १६६ । विशेष-~जोश भगवान ने सिलोर में प्रतिलिपी की पी कुल ७ अध्याय है । श्लोक संख्या २१६७ प्रमाण है । २३. सिंहासनद्वात्रिंशका-पत्र संख्या-४१ | साहज-६४४ छ 1 भाषा-संस्कृत | विषय-कथा । रचना काल-X | लवन काल-X । अपूर्ण । देष्टन नं. ३८६ । विशेष-ननासों कमाएं पूर्ण हैं पर इसके बाद जो कुछ धौर विवरण है वह अपूर्ण है। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-व्याकरण शास्त्र ३४०. प्रास्यात प्रक्रिया ...... | पत्र संख्या-२ : सात-.x४: श्च | माषा-संस्कृत । विषयव्याकरण | रचना काल-~। लेखन काल-X । पूर्ण । श्रेष्टन नं. ४१६ । विशेष- श्लोक संख्या ४० हैं। .. २४१. दुर्गपदप्रयोध-श्री वल्लभवाचक हेमचंद्राचार्य । पत्र संख्या-३६ हज-११४४६ भाषा-संस्कृत । विषय-व्याकरण । रचना काल-६० १६६१ । लेखन काm-x | पूर्ण । वेष्टन नं. ४४५ । ' ' ' विशेष-लिंगानुशासन की यति है। प्रति प्राचीन है । ३४२. 'धातु पाठ-बोपदेव । पत्र संख्या-१४ । सबज-10:४३ च । भाषा-संस्कृत | विषयव्याकरण । रचना काल-X1.लेखन काल-सं. १८११ मंगसिर पुदी २ । पूर्ण ! वेष्टन नं. ३००। ‘विशेष-मयामप संख्या ४.५ है । एक प्रति और है वह संस्कृत टीका सहित है। ३४३. पंचसन्धि........"। पत्र संख्या- । साइज--३४४ । भाषा-संस्कृत । विषय-व्याकरण । रचना काल- लेखन काल-~। पूर्ण । वेष्टन नं. ४३६ । ३४४. 'पंच सन्धि टोका ....... ( पत्र संख्या-२८ | साइज-६x४ इश्च । माषा-संरकत । विषयव्याकरण | रचना काल-र/लेखन काख-सं० १७०२ ज्येष्ठ । पर्छ । वेष्टन नं.४३६ । : विशेष.--.१७८२ जेष्ठ में नंदलाल यति नै टीका लिखी थी। . ३४५. प्रक्रियाकौमुदी-रामचन्द्राचार्य ! पत्र संख्या-१ | साइज ११३४५ हज । माषा-संस्कृत । विषय-व्याकरण | रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । बेधन नं.४०८। .. 'प्रति प्राचीन है । श्लोक संख्या-१५०. है। ३४६.' प्रयोगमुख्पसार ....."पत्र संख्या-११। साइज-=xx ६ । भावा-रफत । विषयव्याकरण । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १७८८ } पूर्ण । वेष्टन न. ४८८ } . - ३४७. प्राकृतव्याकरण-चंड। पत्र संख्या-३ [ साइज-१०४५ इ । माषा-संस्कृत । विषयभ्याकरण | रचना काल-x। पोखन काल-सं. १८६६ कार्तिक सुदी 1 पूर्ण । वेष्टन ने १८८। . .. ३४८, प्राकृतव्याकरण ..... पत्र संख्या-१ | साइज-११९४६ च । भाषा-संस्कृत | विषयव्याकरण | रचना काल-x | लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. ४६ I ३४६. लिंगानुशासन-हेमचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-५ । साइज-१०६४४३ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-व्याकरण | रचना काल-x | लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन ४४१ | Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याकरण शास्त्र ] गु • विशेष—प्रति प्राचीन है २५० सवडी विषय-व्याकरण | रचना काल -X | लेखन काल-सं० १७०१ चैत्र सुदी २ पूर्ण वेष्टन नं० २६७ । [ २३१ - १८ | साइज - १०६४३ ह । माषा-संस्कृत | विशेष खंडेलवाल शातीय हेमसिंह के पठनार्थ मन्थ रचना की गई तथा वसू प्राम में प्रतिलिपि हुई थी। ३५१. सारस्वत प्रक्रिया - अनुभूतिश्वरूपाचार्य | पत्र संख्या - १७ | साइज - १९४३ इच । भाषा-संस्कृत विषय-व्याकरण | रचना काल -X | लेखन काल - सं० (८६४. सावन सुदी १ पूर्ण वेष्टन ०२६६ ॥ विशेष - ६ प्रतियां और हैं । ३५२. सारस्वत प्रक्रिया- नरेन्द्रसूरि । पत्र संख्या ७४ से १३३ | साइन २०४३ भाषासंस्कृत] | विषय - व्याकरण रचना काल -X | लेखन काल-X1 पू । वेष्टन नं० ४१५ । विशेष— केवल कृदंत प्रकरण है । ३५३. सारस्वतप्रक्रिया टीका- परमहंस परिव्राजकाचार्य । पत्र संख्या- ६६ १०४ । भाषा-संस्कृत विषय-व्याकरण । रचना काल -X | लेखन कल -x | पूर्ण वेष्टन नं०] ३५० ।। विशेष - द्वितीय वृति तक पूर्ण है। ३५४. सारस्वत रूपमाला - पद्मसुन्दर | पत्र संख्या- ६ । साइज - १०६४ | भाषा-संस्कृत । विषय - व्याकरण रचना काल -४ | लेखन काल- ४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४१६ | विशेष- श्लोक संख्या ५२ है। पंडित ऋषभदास ने प्रतिलिपि की थी। ३५५. सिद्धान्त चन्द्रिका ( कृदन्त प्रकरणी ) - रामचंद्राश्रम | पत्र संख्या - २१ | साइज - १०३५ एच भाषा-संस्कृत । विषय-व्याकरण रचना काल -X लेखन काल सं० १६६६ द्वितीय वैशास्त्र दो । पूर्ण । लैप्टन नं०३८ । विशेष – जयनगर में बासीराम ने महात्मा फतेहचंद से प्रतिलिपि काई । तृतीत वृत्ति हैं। एक प्रति और है लेकिन वह भी अपूर्ण हैं | - १०३४४३ इन्च मात्रा - ३५६ सिद्धान्त चन्द्रिका वृत्ति - सदानंद पत्र संख्या २६४ संस्कृत । विषयाकरण | रचनाकाल -X - लेखन काल - सं० १८६१ । पूर्ण । वेष्टन नं० ३५४ १ ३५७. हेमव्याकरण - माचार्य हेमचन्द्र पत्र संस्था - २४ । साइज - १०४४३ इन्च । माषासंस्कृत | विषय-व्याकरणः। रचना काल -x । लेखन - X पूर्णं । वेष्टन नं० ४२१ | बिशेष – पत्र के कुछ हिस्से में मूल दिया हुआ है तथा शेष में टीका की हुई हैं। चुरादि गय तक दिया हुआ है। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-कोश एवं छन्द शास्त्र ३५८. अनेकार्थ मंजरी-नंददास । पत्र संख्या- । साइन-१२४४३ च | साषा-हेन्दी पद्य : विश्य-कीर | रचना कान-५ 1 जेखन काल-X । पूर्ण। वैपन ० ४०६ । विशेष पथ संख्या-११ है। ३५६. अनेकार्थ संमह-हेमचंद्र सूरि। पत्र संख्या-६६ साइ3-१२६४५ इन्च । माषा-सं२५२ । वित्रय -शि । स्त्रना क.ल-x | लेखन काल-सं० १.४ ३७ कार्तिक मृदा : । पृा 1 वेरन नं ० ६१५ । विशेष-मधाम म सहना २८४ है । पत्र जीर्ण है। पत्र १८ लक संस्कृत टीका की है। ६६: प्रति नं०२। पत्र रूपः-: ४ । साइज-१६x६ । लेखन काल-० ५४८० अपार । पूग । बेनन.३१६ । विशेष- काराड तक है । सागरचंद परि ने प्रतिलिपि को हो । ३६१. अभिधानचिंतामणि नाममाला-आचार्ग इमचंद्र । पत्र संख्या-१२६ । साज-१.६x ४:५५ । भाषा-संस्कृत । विषय-कोश । (ना काल-X । सेनन काल- १:०४ । पूर्ण । बेपन नं. ३.५ 1 बिशप-एक प्रति घीर है। ३६.. अमर कोष (नाम लिङ्गानुशासन)- अमरसिंह । पत्र संख्या-११ । साज-१x६* : भाषा-मकन । विषय - कोत्र । रचना काल-xi लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ३२१ ॥ विशेष-- द्वितीय कार तक है । पत्रों के बीच २ में श्लोक हैं । एक प्रति और है उसमें तृतीय कायस तक हैं। - ६६३. प्रति नं० २ । पत्र संख्या-१८ | साइज-१६x४६ रश्च । टीका काल-सं० १६८१ ग्रेन मुका था । वेष्टन नं० ४ । विशेष - संस्कृत में टीका यी हुई हैं एक कठिन शब्दों के अर्थ भी दिये हुऐ है । च । माषा-ति । ३६४. धनंजय नाम माला- धनंजय । पत्र संख्या-१६ । साइज-१०४ वश्य-कोश । रचना काल-x | लेखन काल- १७४७ माघ । पूर्ण । देवन. ४.। शलो संख्या-२०० है। विशेष-टोंक में प्रतिलिपि हुई तथा दोधराज ने संशोधन किया । एक प्रति और है। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटक ] ३६५. शब्दानुशासन-वृत्ति --हेमचंद्राचार्य । पारड्या--१५ । साइअ-१०:४६ १७८ । भाषाVikri | विषय-कोष । रचना काल-x 1 लेखन काल --सं. १५२४ । पूर्श । वेटन मं० ४१४ । विरोष -- लेख के प्रशस्ति निम्न प्रकार है-- संवत् १५२४ वर्षे श्री स्वरतरगल्ले श्री जिनचन्द्रमूरि विजय लब्धाजसाल गणि, वा. शान्तरत्नगणि शिष्य वा धर्मगगि नाम पुस्तक चिरंथात् । ३६६. वृत्तरत्नाकर-भट्ट केदार । पत्र संख्या: । साइज-११४४६३४ | भाषा-रामकृत । विषयछद्र शास्त्र । रचना काल- लेखन प.ख-सं. १८६२ पाप सदा ५ | भूभ । वेन न: १६ । विशेष – ५ प्रत या गीर हैं जिनमें एक संगकृत टीका सहित है । ३६७. वृत्तरत्नाकर टीका-सोमचंद्रगरण । पत्र संख्या-४ । साज-१७४ | भाषासंस्कृत ! विषय- शास्त्र । टीका काल -सं० १३.१ । लेखक काल-x1 पूर्ण | बेटन नं० २१६ | ३६८. श्रुतबोध-कालिदास । पत्र संख्या-१ | साज-xxइश्च । भाषा-संत । विषय-हंद शास्त्र । रन ना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । श्रेष्टन नं. ४३३ । त्रिशेष --- ६ फुट लम्बा एक ही पत्र है । पद्य संख्या ४३ है । इसके बाद रबमाध्याय दिया हुया है जिस के ५६ पश्य है । इसकी प्रतिलिपि मुख राम मोटे ने (संडेलवाल) स्वपठनार्थ सं० १८४५ मंगसिर बुदो ! को कटेश्वर में की थी। विशेष- एक प्रति और है। विषय-नाटक ३६६. प्रचोधचन्द्रोदय नाटक-श्रीकृष्ण मिश्र 1 पत्र संख्या-४७ | साइज-१:४६ । गाषासंरकत । विषय-नाटक । रचना काल-x | लेखन काल-० १७८३ फाल्गुन मुदी है । पूर्ण । वैप्टन नं. १ । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ ] [ लोक विज्ञान ३७२. मदन पराजय-जिनदेय । पत्र संख्या-१० | साइज-१११४५ श्श्व | भाषा-संस्कृत । विषयनाटक ! रचनाकाल--X । लेखन काल-x | पूर्ण ! बेष्टन नं. २४० । ---- corecame- -. विषय-लोकविज्ञान ३७१, बिज्ञप्ति - निवृपम गः-२-: : मान-१२३४५३ च । भाषा-प्राश्त । त्रिषय-लोक त्रिज्ञान । रचना काल-- । लेखन काल--सं० १८३१ । पूर्ण । वेष्टन नं० २४ । ३७२. प्रति नं० २१ पत्र संख्या-२.८ । साइज-१२४६ ३२ । लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. १३२॥ विशेष-~-अन्य के साथ जो लकड़ी का पुट्ठा है उस पर चौंवीस तीषकरों के चित्र हैं । पुछा सुन्दर तथा सुनहरो हैं । ३७३. त्रिलोकसार-नेमिचंद्राचार्य । पत्र संख्या-२६ । साइज-x४३ इन्न । भाषा-प्रास्त । विषय-लोक विप्नान । रचना काल-x | लेखनकाल–सं. १७६६ वैशाख बुदी ४ ! पूर्ण । वेष्टन नं० २० । विशेष-नरसिंह अग्रवाल ने प्रतिलिपि की थी। ३७४. भैलोक्यसार चौपई-सुमतिकीर्ति । पत्र संख्या-२३ । साइज-Ext इन् । भाषा-हिन्दी पच । विषय-लोक विज्ञान । रचनः काल-२० १६२७ माघ मुदी १२ । लेखन काल-X । पूर्व । वेष्टन नं० १४१ । विशेष-- १३. पत्र से भागे अजयराज कृत सामायिक समावाणी है । जिसका रचना काल--सं० १७६४ है। ३७५. त्रिलोकसार सटीक-मू कर्ता-नेमिचन्द्राचार्य। टीकाकार-सहस्रकीर्ति । पत्र संख्या-८८ । साइज-११४४३ इछ | भाषा-प्रति-संस्कृत । विषय-लोक विज्ञान | रचना काल-X| लेखन काल-स. १७६" माघ १० । पूर्ण । वेष्टन नं० २६। विशेष-नरसिंह अग्रवाल ने प्रतिलिपि की थी। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय--सुभापित एवं नीतिशास्त्र ३७६. कामंदकीय नीतिसार भाषा-कामन्द । पत्र संख्या-४ | साइज-१.४५ च । भाषाहिदी गये । विग-नीति । गला! मल-x ! देखन काल-- | पूर्ण । वेटन नं० ४२८ । प्रारम-अम कामंदकीय मांतिसार की बात लिख्यते । आकै प्रभावतें सनातन मारग विर्षे प्रवते । सो दंड को धार्थ लक्ष्मीनान राज जयवंत प्रवरतो ॥१॥ जो विगुगत नामा श्राचारिन बडे वंश विष उपजै अयाचक गुणनि करि बढे जे रिषीश्वर तिनके वंश में प्रथिवी त्रिपौ प्रसिद्ध होती भयो ।। २ ॥ जो अग्नि समान तेजस्वी वेद के मातानि में श्रेष्ठ अति चनुर घ्यारू वेदानि की एक वेद नाई अध्ययन करतो हुवो।। ४ ।। यन्तिम-विस्ताप विषय रूप वन विषै दोडतो पीडा उपजायवेको है स्वभाव जाको असो इन्दिय रूप हस्ती ताहि अात्मशाम १ अंश करि वशीभूत करै ॥ २७ ॥ प्रयन्न कार यामा विवान अह || मंदकी ॥ मारशरामजी की सोख ॥ ३७७. चाणक्यनीतिशास्त्र-चाणक्य । पत्र संख्या-२ से १५ तक | साइज-१०६४५ च । मा-परकत । विषय-नाति । रचना काल-X । लेखन काल -x | अपूर्व । वेष्टन नं ४३० | विशेष-रथम पत्र नहीं है तथा नाटवें अध्याय तक है । एक प्रति और है । लेकिन वह भी अपूर्ण है। ३४. ज्ञानचिंतामणि - मनोहरदास । पत्र संख्या-६ । सारज-१२४८ इन्च । मात्रा-हिन्दी पच | विर-भाषित । रचना काल-सं० १७२६ माह सुदी ७ । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन ० ३ | ३७. जैनशतक-भूधरदास । पत्र संख्पा-१ | साईज- ११४५ इन्च । भाषा-हिन्दी । विषयसुभाषित । रचना काल-सं० १७८३ पौष पुदी १३ । लखन काल-० १६E मंगसिर पूदी ५ । पूर्ण । वेष्टन नं ० १४ । ३८२. प्रति नं०२। पत्र संख्या-१३ । साइज-१०:४५ इन्च | लेखन काल-x। पूर्ण । वेटन नं. ११८ विरोध-इस प्रति में रचना काल सं० १७८१ पौष चुदी १३ दिया है ! ३८१. नीति शतक-भर्तृहरि । पत्र संख्या-६ । साइज-१२४१६ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषय-नीति । रचना काल-४ । लेखन काल-- I पूर्ण । वेष्टन नं. ३७६ । विशेष – श्लोक संख्या-११५ है। एक मति और है । ३२. नीतिसार-इन्द्रनंदि । पत्र संख्या- | साज-११४५ इञ्च । भाषा-संस्कृत | विषय-नाति । रचना काल-~। लेम्बर काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं० ३३० | Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [सुभाषित एवं नीतिशास्त्र विशेष- श्लोक संसा ११३ प्रमाए । ३८३. शतकत्रय-भत्तदरि । पत्र संख्या-६७ | साज-१०x४६ इन्च 1 भाषा-संस्तुत । विषयसमर्षित । २चटा काल-x | ल काल-स. १८५८ शास्त्र सुदी २ । पूर्ण । वे27 नं. ३५१ । विशेष - पत्र ३ तक संस्कृत टीका भी दी हुई है । नीदिशतक वैराग्य शतक एवं शृगार शतक दिये गये हैं। ३८४. मलराम बिलास-मनराम । पत्र संख्या-१० | साहज-:४५६ छ। भाषा-हिन्दी (पद्य) 1 वषय-सुभाषत । रचना काल-X1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन में ३:५। विशेष-हा, सीथा, कवित्त श्रादि, छंदो का प्रयोग किया गया है तथा विहारीदास ने संग्रह किया है। प्रारम्भ -- करमादिक करिन को हरे परहंत नाम, सिद्ध करै काम सब सिद्ध को भजन है । उत्तम नमुन गुन चाचरत जाकी संग, आचार ज भगत बसत नाकै मन है। उपाध्याय भ्यान तै उपाधि सम होत, साध परि पूरण को नुमरन हैं। पंच परमेष्टी को नमस्कार मंत्रराज धात्रै मनराम जोई पा. निज धन है ।। ३८५. राजनीति कवित्त-देवीदास । पत्र संख्या-२४ । साइज-EX६ च । माषा-हिन्दी । विषयनोनि । रपना काल-X । लेखा काल-X । पूणे । बेष्टन नं ० ४७३ । विशेष--११६ कवित्त है पत्रं गुट का साइज हैं | पत्र १,२,४ तया अन्तिम बाद के लिखे हुए हैं। ताजगंज नागरे के रहने वाले थे तथा श्रीरंगजेन के शासन काल में भामरे में ही रचना की। ६६. सद्भाषितावली-पन्नालाल । ११ संख्या-१३ । साइज-१३४८ रञ्च | गापा-हिन्दी गद्य । विषय-मुमापित । रचना काल-X । लेखन काल-० १६४२ पौष खुदी ८ । पूर्ण | बेटन नं०८४ ।। ३८७. सिंदर प्रकरण-बनारसीदास | पत्र संख्य -३७ । साइज--X६ इञ्च । भाषा-हिन्दी पद्य । विश्य-सुभाषित । रचना काल-सं. १६६१ : लेखन काल -x I पूर्ण । श्रेष्टन नं - १३६ । विशेष-१८ पा से अागे मैया भगवतीदासजी कृत चेतन कम चरित्र हैं जो अपूर्ण है। ३८. सुभाषितरत्न सन्दोह-अमितगति 1 पत्र संध्या-०२ | साइज-१२४४३ इञ्च । भाषामेलनाविषय-भाषित । रचना काल-सं० १३५० । लेखन काल-स. १५६ शाख बुदी १२ | पृणं । वेटन नं०२४३ विशेष--मेवःत देश में सहाजहानाबाद में प्रतिलिपि हुई | अहमदशाह के शासन काल में लाल इन्दराज ने देव दास के पठनार्थ प्रतिलिपि कराई । ३८६. सुभाषित संग्रह..."। पत्र संख्या-२२ । साइज-६०x४३ इन्च । माषा-संस्कृत । विश्यसुभाषित । रचना फाल-x; लेखन काल-- । पूर्ण । श्रेष्टन २० ४१८ | Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभाषित एवं नीतिशास्त्र ] १११ है। ३५३. सूक्तिमुक्तावलि -- सोमप्रभाचार्य लेखा रचनाकाल २० मा ३६० मतृभाषितावली - सकलकीर्ति पत्र विषय-सुभाषित | रचना काल -X | लेखन काल सं० १७६ । पूष्टननं २२१ । विशेष महाबडा ने टीक में प्रतिलिपि की थी। ३६१. माषिता व शुभचंद्र पत्र संख्या ६-११ मात्र । रचनाकाल -x खेखनपु पूर्व नं २० विशेष-सा में दीपचंद ने भी एक प्रति और है जो संवत् १०८ की हुई है। २०. सुभाषिताचली - चौधरी पाशाल प१०४-११हिन्दी र काल ४२ 1 { : संख्या- ४५ । साह - १०x२ ६भ । भाषानं० २०८ विशेष – प्रति संस्कृत टीका सहित है। अन्तिम पुष्पिका में टीकाकार भीमराज बैंध लिखा हुआ हैं। प्रतियाँ और हैं | जो केवल मृल मात्र हैं | 1 ३६. प्रति नं० २११०० लेखन काल-पूर्व वे ०१०२ २६५. प्रति नं० ३६१२१३९ पूर्ण नं० २९० विशेष—प्रति सटीक है। कां टीकाकार है। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-स्तोत्र ३६६. पा -पूज्यपाद ! ५१ संभ:: - : A ME रमना काल-x। लेखन काल-X । पूर्गा । न । | माषा-संरकत ! विषय-स्तोत्र । विशेष-अधर्मसागर के शिभ्य पं० केशव ने प्रतिलिपि की थी। प्रति संतत टीका सहित है। ३६७. एकीभावस्तोत्रभाषा-भूवरदाप्त । पत्र संख्या-- । साज-७३४४६ इभ । भाषा-हिदी । विषय-स्तोत्र । (चना काल-X । लेखन काल-X | पूई । वेष्टन ने० १२५ । ३६८. एकीभावस्तात्र-वादिराज | पत्र संख्या' । साइज-xv५५ । भाषा-संत । विषमलोत्र । ( 11 काल-X । लेखन काल-सं० १५३३ शाल दी । पूर्ण । न ६८ । विशेष- प्रतिया यौर है । जिसमें एक प्रति टीका सहित है। ३६६. कल्याणमन्दिरस्तोत्र-कुमुदचन्द्र । पत्र संस्था-१ | साज-१-४४ इन। भाषा-संस्कत । विषय-तात्र | सना काल-x। लम्रन काल-स. १६.६४ पूर्व । वेष्टन नं. ३ विशेष-रक्त में टिपण दिया हुआ है । तया अन्य कर्ता का नाम सिद्धसेन दिवाकर दिया हुआ है। प्राय समद स में प्रतिलिपि की भी । निन्न श्लोक टीका के अंत में दिया हुआ है। मालवास्प महादेशे सारंगपुरपत्तने । स्वावस्यायों को नव्या छात्राय उत्तमविधा विशत्र- प्रतियां और हैं जो केवल मुलगाव है। ४१. कल्याणमन्दिर स्तोत्र भाषा--बनारसीदास । पत्र संख्या: । साअ - ११३x ** | Miहिन्दी । विषय-स्नान। रचना काल- लेखन काल-xपूर्ण । पटन ०१०१) विशेष - इसके अतिरिक्त पार्श्वनाम स्तोत्र भी है। १०१. कुबेरस्तोत्र"....."। पत्र संख्या-१ | साज-१३१४६६ च | मामा-रात । पिपताच । मना काल--- लेखन काल-सं० १६१४ वैशास्त्र सुदी १० । पूर्ण । बटम नं. । । ५०२. चैत्यवरना ......... पत्र संख्या--- । साइज-७४३म । माता-ति । पिन रचना काल-x | लेखन काल- । पूर्ण । बोन नं. ६८ । विशेष—इसके अतिरिक महावीराक (संस्कृत) भी हैं । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तोत्र ] [ २३६ ५.३. चौबीसजिनस्तुति-शोमन मुनि ! पत्र संख्या - | साज-.:४४ इन्न । भाषा. संत । विषय-स्त : सपना काल-x ! लेखन काल-x | अपूर्ण । वैश्टन नं. ३४८ । विशेष-श्लोक संख्या : ४ हैं। प्रथम पत्र नहीं हैं प्रति प्राचीन है। इसका शासन सूत्र नाम मा है ५०४. चौबीसतीर्थकरस्तवन- लजित विनोद । पत्र संख्या- । साज-«x५ ५ । भाषाहिन्दी । विषय-स्तवन । चना कारा-४ । लेखन काल- १वैशास्त्र पुरी १४ । पूर्ण । बहन नं १२ x.५. ज्यालामालिनी स्तोत्र ..... . ... 4 -5 | साइ-ox । भाषा-ससात । विषय-स्तोत्र (नना काल-४ । देखन काल-- : पूर्ग: । वपन नं. ४३ | ४०६, म्वालामालिनी स्तोत्र......... | 4संख्या-२ | साइज-११४ न । भाषा संस्कृत । विषय- तात्र । रचना काल-Xलेखन काल-सं• E3 प. प्रासोज दी . I M । बटन - १०६ । विशेष-छोटेलाल के पठना प्रतिस्तिय की ii ४७. जिनसहस्रनाम---जिनसेनाचार्य । पत्र संस्था--: । साज-१x६ 'इ। भाषा-स्त । कप-तात्र । रचना काल-x | लखन काल- नं. 10 च | भाषा-स्कृत । ४८. जिनसहानाम-नाशाधर | पत्र संख्या - १ | Hi-११४ शिवरात्र । रचना काल--- । लेखन काम-X । पूर्ण । बटन ० ३३४ | ४०६. जिनसहरू नाम टीका --- श्रुतसागर । ११ स्या-१साज-!२४१३ १४ । भाषारकत । विषय-स्तोत्र । रचना काण-- लेखकाल-x | अपूर्ण बटन नं२११ । विशेष-स इसमें १००० (१२३४ ) पद्य हैं। ४१०. जिनसहस्रनाम टीका-अमर कीनिं । पत्र संख्या-८४ | साइन- ११६४ इत्र | भाषा-संस्कृत । त्रिय-स्तोल । रपना काल--| नेस्वन फल-X । पूरा । 27 नं० २४ । प्रति प्राचीन हैं । मूल पत्ती जिन्नसेनानाय है। एक माति श्रीरई। ४११. जबड़ो-विहारोदाम । १ सया--साज- १४७ । भाषा-हिन्दी विषय-स्तोत्र । रचना काल-: लेवन काल-X1 पूर्ण । बटन नं ४८ | विशेष ३६ पथ है। ४१ . दर्शन... "| पत्र संसपा । साइम-.... म । माषा-त। बिग-मात्र । (मना काल-X । लेखन काल-४ | पूर्ण । तश्वर ४४४ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ मोत्र ४१३. दर्शनाष्टक ....... | पत्र संस्था-१। साज-१९:४५ ४ । भाषा-संस्कृत । त्रिय-स्तोत्र । रचना काल–x | लेखन काल-४ । पूर्ण । वेपन नं० २०१।। ४६४. दंडकषत्रिंशतिका ..... 1 पत्र संख्या-: । साइज-10: च | आश-संस्कृत । विषय-तोच । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ३६० । ४१५. देवागमस्तोत्र-पाचायं समतभन्दू । पत्र संख्या-६ ! साइन-११४४६ इञ्च । भाषा-.. संकत | विषय - दर्शन । रचना क.ल-x | लेखन काल-४ । पूर्ण । वरन नं० ३४५ । विशेष-श्लोक संगा- ११७ मांगा है। ४५६. देवप्रभास्तोत्र-जयानंदिसूरि । पत्र संख्या-६ । साइज-10xx., । भाषा-मन विनय -स्तीग । चना काल-X । वन काल-सं. :८५ । पूर्ण । वेष्टन - २७ । विशेष-स्त वृत्ति सहित है . सवाई जयपुर में प्रतिलिपि हुई थी। । माषा-प्राकत । विषम ५१७. निर्वाण कारडगाथा ......। 4 संख्या-२ । साइज -.४४.९ लांब । रचना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । वेष्टन नं. ४२५ । विशेष-कात धौर है। ११८. नेमिनाथस्तोत्र-रालिपंदित । पत्र संख्या-मान १-४४६ ६१ । भाष:-संस्कृत । विषय-स्तोत्र | रचन। काल-x ! लेखन काल-X । पूर्ण वान नं: १४१ । ४११. पद्मावतीस्तोत्रकवच " ......"| पत्र संख्या-। साज-११४१३ भाषा-संजना विषय-स्तोत्र एवं मंत्र शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काम-x पूर्ण 1 टन मं० ४२५ । ४२६. पंचपरमेष्ट्रीगुणस्तवन- बालूराम | पत्र संख्या-३६ | साइज-५२४१३६च | मापा'हन्दी । विषय-स्तोत्र । रचना काल-x | लेखन करत-x1 पूर्ण । वेष्टन. ४३४ । । मात्रा-हिन्दी। विषय-- ४२१. पंचमंगल रूपचंद । पथ संन्या- १४ 1 साज-x रतीय रचना काल- लेखन काल-४। शं । वेष्ट २५ । ४२२. पार्श्वदेशाम्तरछंद..........! १५ संख्या- ४ | साज-११६x६ । भाषा-हिन्दी । विषयस्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-X | पूर्ण । वेपन नं ० २.१ । ४२३. पार्श्वनाथस्तोत्र-मुनिपादि। पत्र संख्या-१७ में २५ । साज- १८४४ च । भाषासंस्कत । विषय-सांपासमा काम-x: लेखन काम-XIM । वेष्टन ने । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तोत्र ] [*** **** | । पत्र संख्या - १ साइज - १०३४४ छ । भाषा - हिन्दी | विषयस्तो ४२४. पार्श्वनाथस्तवन ना काल-X | लेखन काल-सं० १५ मंगसिर सुदी १ । पूर्णं । वेष्टन नं० २०१ | ४२५. पार्श्वनाथस्तोत्र रचनाकार- लेखन कापूनं० २०१ ४२६. भगवानदास के पद – भगवानदास पत्र संख्या ६५० भाषा-हिन्दी पद्मविषय-पद रचना काल-लेखक-० १८०३ पूर्ण बेटन नं० २७१ | विशेष १४० पदका संग्रह है। विधि राग रागिनियो में कृष्ण भक्ति के पद है। श्रीराग — हरि का नाम विसाहों रे सतगुरु चोखा बर्जिज बनाया | गोविंद के गुन रतन पदारथ ना साथ हो पाया। अन्नपदारथ पाह के किन विरले मेग लगाया। काम क्रोध मद लोभ मोह में मूरख मूल भवाया | हरि हरि नाम बराधि के जिनि हरि ही सौ भन लाया | कर भगवान हिट रामराय तिनि जन में आनि कमाया ॥ ११२ ॥ "वशेष - प्रत्येक पद के अन्त में "कहि भगवान हित रामराय" लिखा हुआ है । ६५ पत्र के अतिरिक्त श्रन्त में ६ त्रों में विषय चार भिक्ष २ रागिनियों की सूची दी है। इसमें कुल १५३ पद तथा २०० श्लोकों के लिये लिखा है : साद साह के पटना में रूपराम नंदीश्वर के गुसाई ने प्रतिलिपि की । पदों की सूची के लेखन दिया है। सम्बत् १८८२ स्तोत्र भी है। पत्र संख्या - २ | साइ३-१०३४५ | भाषा-संस्कृत विषय स्त्र I ४२७. अफ़ामर स्तोत्र – मानतुंगाचार्य | पत्र संख्या - १६ | साइज - ४४४ ६ | भाषा-संस्कृत । विषयस्तो रचनाकाल पाल X पूर्व वेष्टन नं० १४३ । विशेष – १२ पत्र से कल्याण मंदिर स्तोत्र है जो कि पू है। इस में २ ट पत्रों पर संस्कृत में लक्ष्मा विशेष २ और है। ४२८. भक्तामर टीका काल- लेखन काल-X पत्र संख्या ४११०४३ भाषा-संस्कृत वस्ती वेन नं० २०८२ | ४२६ मकामरस्तोत्रवृत्ति-भः श्नचन्द्र सूरि संतु] | विषय - स्तोत्र नाका सं० १६६० वर सुदी बेननं० ३४६ / पत्र संख्या ४४ साइज - १०८ लेखन काल सं० १०२४ कार्तिक - । भाव-१० पूर्णा विशेष- इन्द्रावती नगर में चन्द्रमयालय में चाचार्य कनकली के शिष्य पं० राम ने स्वार्थ परोपकारार्थं प्रतिलिपि की भी मंत्र तथा सहित है। Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :४२ [ स्तोत्र ग्रन्थकार परिचयात्मक श्लोक-- श्रीमद्र वडवंशम इमरिगर्महीपति नामा बरिणक । तवार्या गुणमंडित व्रतयुता पामिति नामधा ।। नत्यत्रो जिनपादपकज मधुपी श्रीर-ननन्द्रो मुनिः । नयी त्तिमिमां स्तवस्य नितरां नवानाधादीन्दुकम् ससषष्ठ भाकिते वर्षे शोडवायहि संवते । थाषाढश्वेतपक्ष पंचम्या बुधवार के ॥३॥ ग्रीवापुरे महीसिन्धोस्तट भाग समाधिते । वोत्तु गदुर्ग संयुक्त श्री चन्द्रप्रमसदनि ||७|| वणिनः कर्मसी नाम्नः वचनात मया स्यारचि । भक्तामरस्य सडि चि रत्नबनण मूरिणा 12}} ५३०, भक्तामरस्तोत्र भाषा-जयचंदजी छाबड़ा पर गंख्या-२७ , साइज-21x1 इस | भाषाहिन्दी मगध । विषय-स्तोत्र । रनमा काल-सं. १८७१ कार्तिक मुदी १२ । लेम्बन काल-x | पूर्ण । बंटन नं० ७ । विशेष-२ प्रतियां और है।। ४३१. भक्तामर स्तोत्र भाषा कथा सहित-नथमल । पत्र संख्या-४७ सम्बज ? २४५: इन । भाषा-हिन्दी पय | विषय-लोत्र एवं कथा । रचना काल-सं. १८२६ बल दो १.! लम्बन काल-नं. १५२ सावन बदी १३ । पूर्ण । वेपन नं. ४० । विशेष-वह मथ लिखवाकर ब्रह्मचारी देवकरमाजी को दिया गया। ४३२. भारती स्तोत्र .......। पत्र संख्या-१ । साइज-१७४१३ इज । भाषा-संस्कन । विषयम्नोत्र । रचना काल-- । लेखन काल--X ! पूर्ण । बाटन नं० २,१ 1 ४३३. भूपाल चतुर्विशति स्तोत्र-भूपाल कवि। पत्र संख्या-३ । माइम-११४४ इन्त्र। भाषा-- मंन । विषय-स्तोत्र । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वपन नं ० : 1 विशेष - संरत में कठिन शब्दों के अर्थ मी दिये हुए हैं। एक प्रति और है। ४३४. लक्ष्मी स्तोत्र-पन्ननलि। पत्र संस्था-३ । साइन-१.३४५६ इन। भाषा-संस्कृन । विषय-- म्तोत्र | रचना काल-X । लम्बन काल-x | पूर्ण । श्रेष्टन नं. ४३ । . ४३५. नधु सम्रइनाम....."| पत्र संख्या-- । साइज-.x४३ इज । भाषा संस्कृत | विषयस्तोत्र । चना काल--XI लेखन काल-X1 पूर्ण । वेन. ११३। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६. विचारपडत्रिंशका स्तोत्र -धरजचन्द के शिष्य गजसार । पय संख्या ४ । गाइजइन । भाषा-संस्कल | विषय-स्तोत्र । रचना काल-~| लखन काल -- पूर्गा । बटन मं. ३ । x विशेष –सिरि जिहंस पुसीसर रजे धवलनंद : सिस गजगारंग लहिया नासा अप हिया ॥१२॥ ४३७, विधापहार स्तोत्र-धनंजय । १५ संख्या-३ । साइब-११४४ इन । भैया- लोन | रनना काल-X । लेखन काल-x पूर्ण । वएन नं० । विषध पत्र संख्या ४० हैं। १८. विषापहारस्तोत्र भाषा-अधक्षकीर्ति । पत्र संख्या-१३ । साइन-२०१४ । भाषा--हिन्दी । विषय-स्लोथ | रचना काल-x | लेखन काल-x 1 पूर्ण । वष्टन नं. २०१॥ विशेष-पत्र साग हेमराज कृत मकामर स्तोत्र भाषा भी है। प्रतियां धीर है। ४३६. विषापहार टीका-नागचंद्रसूरि । पत्र संख्या २६ । साइज-=xt दस | भाषा-स्न । विषय-लाच । चना काल-x। लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. १०। विशेष--महारक ललितकीर्ति दे शों में नयनवर। ५४०. विनतो-अजयराज । पत्र संख्या-२ । साइज - 3:४५, इन्न । सपा-हिन्दी । विषय-लवन | *पना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण | वेष्टन नं. ४२५ । विशेष - दूसरे यत्र पर रविवार कथा भी दी हुई है पर बन यपूर्ण है। पय तक है। ४४१. शत्रुञ्जय मुख मंडन स्तोत्र (युगादि देव स्तवन)। पत्र संख्या-57 1 RE-.xx ज | भाषा-गुजरानी। विषव-स्तोव । रचना काल-x | लेखन काल-x पूर्ण श्रेष्टन नं. २१६ | विशेष—प्रन्थ में २: गाथाएं हैं जिन पर गुजराती भाषा में अर्थ दिया हुअा है ! यर्थ के स्थान ५ "वस्वान" नाम दिया है। ४४२. शान्तिनाथ स्तोत्र-कुशलवर्धन शिष्य नगागरण । पत्र संख्या-४ । साइप्र-१:४- दत्र | भाषा-हिन्दी | विषय-स्तोत्र | रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्ग ! वेष्टन नं. ३६२ । विशेष- पत्र संख्या १२ हैं। पारम्भ-मकल मनोरथ पूरणो वांछित फल दातार । वीर जिणेसर नायके जय जय जगदाधार ॥१॥ यन्तिम-ईय वीर जिणवर सगल मुखकर मयर ली भंडनी। मिधुण्यी भगति प्रवर यगति रोग सोग विडंउनी। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४J [ लोन तय गन्न निरमल जायगा दिनयर श्री विजयसन सूरिसरी । कवि कुसलबर्धन सास ए भ नगागमा मंगल करी ||५.२ ॥ ४४३ समवशरण स्तोत्र - ......! पत्र संख्या-७ । लारज-१६x४, इन | माथा-संस्कृत | ६ि7.-- तोत्र । रचना काल-x | लेखन काल-x | पूर्म । वेष्टन नं० २०.। ४४. स्तुति संग्रह - चंद कवि । पत्र संख्या-- - साइज-- इन 1 भाषा-हिन्दी । विकर-- निन । रचना काल-X । लेखन काल-। पूर्ण । वेष्टन नं० १.४ । विशेष-शान्तिनाथ, महानार तथा श्रादिनाथ की स्तुतियां हैं । दाहा-स्तुतिफन से मनी चट्ट ईन्द्रादिक मुरबास । चंद तणी यह वीनता दी यो मति निवास || 1=Ik ||शते थादिनाथजी स्तुति संपूर्ण । ४४५. स्तोत्रटीका-आशाधर | पत्र संख्या-३० । साइज-१४ इन्च । भाषा-संस्कृत विषर.रात्र | रचना काल-x। लेखन काल-पं. १ कार्तिक पुदी १५ ! पूर्ण । वेष्टन नं. ३६३। विशेष - रायमस्त न प्रतिलिपि की। ४४६. स्नोत्र संग्रह ... | पत्र संख्या-५ | मरज-११x६ इञ्च । भाषा-हिन्दी संस्तत । विषम-- संभ लेखन काल-x | पूर्मा बनाना निम्न लिखित खोत्र : विशष माया 1. काल का हिन्दी xx संस्कृत माम स्तोत्र का पार्श्वनाथस्तोत्र जगतभूषण लक्ष्मीस्तोत्र धन प.श्वनाथलोग कलिकड पार्श्वनाथस्तीन पार्श्वनाथस्तोत्र चिन्तामणि पार्श्वनाथस्तोत्र ४ पार्श्वनाथस्तोत्र सजसन पार्श्वनाथरता पानतराय xx xxx xxx xxxxxxxx x मंत्र माहित ४४७. सिद्विप्रियस्तोत्र--देवनंदि। पत्र संख्या-५ । माहज-x५ च । भाषा-संस्कृत 1 विषरलीन रचना काल-x। लखन काल-x | पूर्वा । वेष्टन न.१२। विशेष-एक प्रति और हैं। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-ज्योतिष एवं निमित्वज्ञानशास्त्र ४४. अरिष्टाध्याय-पत्र संख्या-१० । साइज-१६x६ इञ्च | भाषा-प्राकृत । विषय-न्योतिष । रचना काल-x 1 लेखन काल-सं० १८५६ मंगसिर खुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० १३१ । विशेष—कुल २०३ गाधाएं हैं। अन्त में ८ पच में छाया पुरुष लतच है 1 पं० श्रीचंद्र ने प्रतिलिपि की थी। ___४४६. क्षीरसव-- विश्वकर्मा । पत्र संख्या-१८ । साइज--१२x६व । भाषा-संस्कृत । विषयज्योतिष ( शकुन शास्त्र ) । रचना काल-- । लेखन काल-४ । अपूर्ण । वेष्टन नं. ३७४ | ४५०, चमत्कारचिंतामणि-नारायण । पत्र संख्या-७ | साइज-१०x१ इञ्च । माषा-संस्कृत । विषय-ज्योतिष । रचना काल-- 1 लेखन काल-सं० १-६६ ज्येष्ट सही ४ । पूर्ण । वेष्टन मं० ४६१ । विशेष-सवाई जयपुर में महाराजा जगतसिंह के शासन काल में प्रतिलिपि हुई थी। ४५१. ज्योतिषरत्नमाना-श्रीपति भट्ट । पत्र संख्या-१५ । साइज-१०x४३ ५श्व | भाषा-संस्कृत । विषय-ज्योतिष | रचना काल-x | लेखन काल-~! अपूर्ण । वेष्टन नं. ० ४६४ । ४५२. नीलकंठज्योतिष-नीलकंठ । पत्र संख्या-५६ । साइज-११४५ इञ्च । भाषा-संस्कृत । विषयज्योतिष । रचना काख-शक सं० १५.१ यासोज सुदी ६ | लेखन काल-४ | पूर्ण । वेष्टन नं. ४६ . । वशेष-नीलकंठ काशी के रहने वाले थे। ४५३. पाशाकेबली-पत्र संख्या-६ । साइज-११६४१३ इन्च | भाषा-संस्कृत । विषय-ज्योतिष । रचना काल-x | लेखन काल-~। पूर्ण । वेष्टन नं. ४०० । श्लोक संख्या ४५ है । पाशा फेंक कर उसके फल निकालने की विधि दी हुई है। ४५४. भडजीविचार-सारस्वत शर्मा । पत्र संख्या-१४ । साइज-११६४५ त्र । भाषा-हिन्दी पम | विषय-ज्योतिष | रचना काल-x 1 लेखन काल-~। पूर्ण 1 बेष्टन नं. ४६८ । विशेष-प्रत्येक नक्षत्र तथा तिथियों में मेघ की गर्जना को देखकर वर्ष फल जानने की विधि दी हुई है। फूल ३१६ पथ हैं। ४५५. शोप्रबोध-काशोनाथ। पत्र संख्या-३४ । साइज-१०४६६व | भाषा-संस्कृत । विषययोतिष । रचना काख-X । लेखन काल-सं० १८६६ शाम बुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४६६ | विशेष-चतुर्थ प्रकरणा तक है । श्लोक संख्या-७७ है । उदयचन्द ने खपठनार्थ लिपि की थी । गुटका साइज है। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ज्योतिष एवं निमित्त ज्ञान शास्त्र ४५६. घट्पंचासिका वाताबोध - भट्टोत्पल | पत्र संख्या - १५१ साइज - १०९४६ १ | भाषासंस्कृत | त्रिषय-ज्योतिष । रचना काल -X | लेखन काल-सं० १६५० वैशाख बुदी १० । पूर्ण | श्रेष्टन नं० ४६३ । २४६ ] विशेष-मुनि नोरत्नवीर ने नंदासा ग्राम में प्रतिलिपि की थी। यह मंथ कपूर विजय का था। संस्कृत मूल के साथ गुजराती भाषा में गद्य टीका दी हुई है। प्रारम्भ - प्रणिपत्य रविं मूर्ख ना वराहमिहरात्मजेन सतमःसा । प्रश्नो कृतार्थ गहनापरार्थमुद्दिश्य पृथु यशसा ॥ ॥ नमस्कार करी नह सूर्य प्रति मूर्द्धा मस्तक करी वराहमिहरज पंडित तेह अश्रमज कहीर टीका - प्रणिपत्य कहीं पुत्र यता एह वरं नामि प्रश्न न विषइ प्रश्न तीविया कृता कही की थी । ४५७. संकान्ति तथा महातिचारफल- पत्र संख्या- १८ से ४२ तक | साइज - मात्रासंस्कृत । वित्रय-ज्योतिष | रचना काल -x | लेखन काल सं० १७०३ माघ सुदी ४ । श्रपूर्ण वेष्टन नं० ४०० I विशेष—व्यास दयाराम ने प्रतिलिपि की थी । विषय - आयुर्वेद शास्त्र ४५८. अंजनशास्त्र - अग्निवेश पत्र संख्या - १३ | साइज - १९३५ विषय- आयुर्वेद । रचना काल -X | लेखन काल-सं० १७५४ आश्विन खुदी २ । पू । वेष्वन नं ४५१ | मात्रा संस्कृत | विशेष - श्लोक संख्या २३४ है। नेत्र संबंधी रोगों का न है मुस्तान नगर में रामकृष्ण ने प्रतिलिपि की भी हृदय संहिता - वाग्भट्ट पत्र संख्या ६१ । साइज - १९३५ च । भाषा - संस्कृत | विषय-धायुर्वेद 1 रचना काश-X | लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं० ५५०/ ४५६. विशेष सूत्र मात्र हैं। जयमल ने प्रतिलिपि को थी । ४६२. कालज्ञान-पत्र संख्या - १६१ साइज - १० । भाषा-संस्कृत विषय - आयुर्वेद 1 रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८२७ पी हृदी १५ | वेष्टन नं० ४५८ विशेष - श्लोक संख्या - ४०० हैं । सहजराम ने चित्र में अन्नपुराण जी के पास प्रतिलिपि की थी। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायुर्वेर ] [ २४७ ४६१. त्रिंशतिकाटीका-पत्र संख्या-३, 1 साज-१११४५३ । भाषा-संस्कृत | विषय-आयुर्वेद । रचना काल--x | लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं० ४५८ । ४६२. योगशत--अमृतप्रभसूरि | पत्र संख्या- १६ । साइज-१०३४५ इस | भाषा-संस्कृत । विषयपायुर्वेद । रचना काल-x | लेखन काल-स. १८५५ श्रावण बुदी ६ । पूर्ष । बेष्टन मं० २२ । विशेष-संपतराम बापाने प्रतिलिपि की थी। अन्तिम पुष्पिका-इति श्री अमृतप्रम घरि घिरमित योगशत । सपूर्ण ॥ ० : 5.55 कदै शो :: नवगने मारामाशुभमासे दुतियश्रावणमासे शुभे शुक्सपो तिमी परम्याँ भृगत्रासरे लिखितं संपतिराम प्रावक गोत्र छात्रा निज पठनार्थ । ४६३, रसरत्नसमुच्चय-पत्र संख्या-१३२ । साइज-११६x४ च । भाषा-संस्कृत | विषय-आयुर्वेद । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १८१२ चैत्र सुदी ३ । पूर्ण । वेटन नेः ४५६ । विशेष-गुलामबंद छाबड़ा ने जयपुर में भवानीराम तिवारी की प्रति से लिपि की भी । ४६४. रससार--पत्र संख्या-८ । साइज-१०x४. इश्व । भाषा-संस्कृत | विषय-आयुर्वेद । रसना काल-x| लेखन काल-सं. १७३९ । पूर्ण। बेपन नं.४५५ । विशेषप्रारम्भ-श्री गौडीपार्श्वनाथाय नमः पंडित श्री ५ मावनिधाममणि सदगुरुभ्यः नमः | पन्त - इति श्री रससार मम निर्विषम् अनभूतिसंग्रीहतम महुशास्त्रसम्मत सम्पूर्ण । ४६५. रोगपरीक्षा-पत्र संख्या-७ | साइज-१२४१३इन । भाषा-हिन्दी संस्कृत । विषय-आयुर्वेद । रचना काल-- । लेखन काल-X | अपूर्ण । वेपन नं. ४५७ । ४६६. वैद्यजोवन--लोलिम्बराज । पत्र संख्या-२६ । सराइज-१२x६३ इंश्च । भाषा-संस्कृत | विषयमायुर्वेद । रचना काल- । लेखन काल-सं० १८१३. आसोज सुदी १ । पूर्ण । वेश्न नं ० ४५३ । विशेष-छ्लोकों के ऊपर टीका की हुई है। ४६७. सर्वज्घरसमुकचयदर्पण-पत्र संख्या-३६. 1 साइज-१२४६ हज । भाषा-संस्कृत | विषय-- मायु३६ । रचना काल - । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ४५२ । Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-गणित शास्त्र ४६. पटत्रिशिका-महावीराचार्य । पत्र ख्या-४५ | साइज-११४४३ दक्ष | माषा-संस्कृत । वषय-गणित । रचना काल-x। लेखन काल-सं० १६६५ श्रासोज सुदी = | पूर्ण । वेष्टन नं. ४६५ । विशेष-संवत् १६६५ वर्षे चासोज सुदी - गरौ श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० श्री पभनंदिदेवा तत्प? भ. श्री सफल कीर्तिदेवा । तत्प?' भ० शुभचन्द्र देवा तत्प भ० मुमतिकीर्तिदेवा तत्प? भ. श्रीगणकीर्तिदेवा तत्पी वादिभूपयदेवारतद्गुभ्राता व श्री भीमा तत् शिष्य ब. श्री मेघराज तत् शिष्य ब. केशव पठनायें । व्र० नेमिदास की पुस्तक है । ४६. प्रति नं । पत्र संख्या-१८ साइज-१२४४३ इञ्च । लेखन काल-१६३२ ज्येष्ठ सुदी । पूर्ण । बेष्टन नं. ४६६1 विशेष प्रति पर छत्तीसी टीका भी लिखी है। प्रशस्ति निम्न प्रकार है: संवत् १६३२ वर्षे जेठमासे शुक्लपक्षे नया तिथी शुरलासरे इलाको या श्री मूलसंघे सरस्वतीगच्छे बजारकारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म. श्री पानंदिदेवा तत्पट्टानुसरि म. शुभचन्द्रदेवा तत्प? श्री सुमतिकीर्तिदेवा तत्शिष्य व. श्री सुमतिदास लिखायितं शास्त्र । मट्टारक श्री गुणकीर्ति शिष्य श्रीमुनिश्रुतकीर्ति पुस्तक । विषय-रस एवं अलंकार शास्त्र ४७०. इश्कचिमन-नागरीदास । पत्र संख्या--३ । साइज-११६४४ इश्व | भाषा-हिन्दी पप । विषय-शृगार रस ( रचना काल-X । लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन न० ४३८ । प्रारम्म-इस्क उसी की भालक हैं उयौं पुरज की धूप । जहां ताहा पापहं कादर नागर रूप ॥२॥ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस एवं अलंकार शास्त्र ] कंडु कीया नहि इश्क का इस्तमाल संदर स्रो साहिब हूँ इसक हैं करिश के गंवार ॥ अन्तिम — जिरव जदम जारी जहां नित लोहू का कोच । नागर धासिक लुट रहे इस्क चिमन के बीच || ४ | चले तेज नागर इफ है हरफ तेज की धार । और करें नहीं बार सौ कह करें रिवार ||४५|| I ४७१. कविकुल कंठाभरण - दूलह पत्र संख्या ११६० भाषा-हिन्दी विषयन नं० ४७२ । पूर्ण संकर शास्त्र रचना काल-लेखन का प्रारम्भात शिवचरन में कवि दूलह करि प्रीति । धीरे कम कम तें कहे धकार की रीति ||१|| चरन वरन लखन खलित रजिरी पर्यो करता त्रिन न नहि मूबई कविता वनिता चारु ॥२॥ दोष मत सत कविन के अस्था से लघु तरन । कवि दूलह याते कियौ कविकुलकंठामरन ॥३॥ जो यह कंठाभरन को कंठ करें हुल पाई। सभामध्य सोमा लहै थलरुवी ठहराई ॥ ना चंद्रादिक उपमान है वदनादिक उपमेय । तुम्प अरब बाचक कहै धर्म एक सो ले | मग प्रस्तुत करने प्रससा लिए प्रस्तुत की। पंचधा अप्रस्तुत प्रसंसा होति चाहे ते ॥ पच्छिन मैं याही तें बड़ी है राजहंस | एक सदा नीर कीर के विवेक श्रवगाह ते ॥ प्रस्तुत में प्रस्तुत को घोलन हाई होइ |IN प्रस्तुत अंकुर तहाँ वरमी है। फुली रस रली भली मालती समीप तें यी कर कली कोकले सुदेव का है ||३२|| [ २४६ अन्तिम सूरता उदारता की अदभुत वस्नन । विध्यारुप यति उक्ति भाषै सब लोग है | दानि के जाचक हुवे कमरे Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ रस एवं अलंकार शास्त्र सूखे सिंधु तेरी रिपु रानी करि सोय है । नाम जोग औरे अर्थ थापिए निरूक्ति । सांचे गुपाल मए जो रथ्यो राधे सो वियोग है। प्रगट निषेत्र को अनुकमन प्रतिषेध । गिर गहिवो न यो तो मा मन को भोग है। ४७२ चैनविलास-नागरोदास । पत्र संख्या-६ । साइज-५०१५५ च । माषा-हिन्दी १५ । विश्य-शृगार । रचना काल-x'। लेखन काल-X । पूर्ण । श्रेष्टन नं ० ३७७ । विशेष-ग्रारम्म के ४ पत्रों में स्नेहसंग्राम अतारतेज कृत दिया है जिसके २५ पथ हैं। इसे सं० १८१४ में छोटेलाल होलिया ने ३ थाने में खरीदा था ॥१॥ स्नेहसंग्राम-प्रारम्भ-कुसलिया: मों है बाकी बाकसी लखी कुज की ओद । समर सस्त्र विल्लुवा लम्यो लालन खोटहि पोट लालन लोटहि पोट चोट अब उर में सागी । कियो दिवो दुलार नीर जान में भागः । प्रजनिधि काकवीर खेत में खो यगोहे । तहो पाव पर घाव करत राधे की मोहे॥१॥ अन्तिम-नेही बृजनिधि राधिका दोउ समर सधीर हेत खेत काडत तही छाके बाके वीर ।। छाके बाके वीर इन्य वस्थ न मनि । दोऊ करि करि दाब घाव बिन हूँ नहि ।। यह सनेह संग्राम सुनत चित होत विदेही । प्रताप तेज की बात जानि है सुथर सनेही ॥२५॥ बनविलास-प्रारम्मः अहे बावरी वसरिया ते तप कीनों कौन । अधर सुधारस ते विमौ हम तरफा विच मौन ||३|| अन्तिम - मुरली सुनित में मई प्राप्त दगनि विसाल | मुख बाद सोही कहे प्रेम दिवस अज वाश२१|| नागर हरहि पलाग की दारु धरी दवाय। । भंग रागवंशी लपट्यो हो चिउडी नम काय ॥३॥ ति श्री नागरोदास फत नैनवितास संपूर्ण । Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस एवं अलंकार शास्त्र] [२५१ ४७३. रसिकप्रिया-केशवदास । पत्र संख्या-५ । साइज-१२:४३ इश्च । भाषा-हिन्दी पथ । विषय- गार । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७३३ । पूर्ण । वेष्टन नं ० ३६८ | विशेष-पद्य संख्या-५६४ है 1 मिआ थाभानेरी वाले ने मसबा में प्रतिलिपि की थी । स्वामी गोविंददास की पोथी से प्रतिलिपि हुई थी। सं० १८१८ माह सुदी १ को छोटेलाल गेतिया मारोठ वाले ने सवाई जयपुर में श) रू० निछरावलि देकर यह प्रति खरीदी थी। ४७४. श्रृंगारतिलक-कालिदास । पत्र संख्या-४ । साइज-१०४४३ शृगार । (चना काल-x लेखन काल-x। पूर्या । वेष्टन नं. १०। । माषा-संस्कृत | विषय विशेष–२३ पथ हैं। ४७५. श्रृंगारपच्चीसी-छविनाथ । पत्र संख्या-4 | साइज-०३४४ इश्न | भाषा-हिन्दी । विषयभृगर। रचना काल-x| लेखन काल-x| पूर्ण । वेष्टन नं. ४७ । भारम्भ-कोकिल न हो हिये मतंग महा मस्तक के । बात मान मंघ को क्ताई मली पस्त है ।। प्र शासन और जाल फैलि गये । जग चहुधा राखिवे को बको दस्त है ॥ मेरी समझाई हिल मिल प्यारी पौसम सों। कानि काम भूपति की मान वो प्ररत है ।। कहै अविनाप बाज भकसीष संत लेखि । भाम गड परत फरिवे की करी करत है ॥१॥ अन्तिम-छोखि मकरंद कमलन के मरंद भई पार के। सुगंध जाकौ हस्त न टार है। खंजन चकोर मृग मीन सेदखत जाहि । चौक्त से जहां तहां छपत निचार है । कहै छविनाथ अपि अंगन की देखि । जासों हारि गई तिलोत्तमा जाने जग बारे है । प्यारे नंद नंदन तिहारे मुख चंद पर | धारि बारि हारे वहि नैनन के तारे हैं ॥१॥ दोहा-माधव नूप की रीझ को कवि छविनाथ विसाल । कीन्हे रस शृगार के कवित्त पच्चीस साल ||२६॥ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ] [ स्फुट रचनायें इति श्रीमन्महाराजाधिराज श्री माधवेश प्रसता व्यवस्थापक गोविंददासात्मज कवि छविनाथ विरचिता शृंगारपच्चीसी सोमते || विजेय नाम संवत्सरे दक्षिणाय हेमंत ऋतौ पौषमासे शुक्लपक्षे द्वितीयां शुक्रवासरे लिखित मिंद पुस्तकं । . महाराजा माधवसिंह के प्रसन्न करने को गोविंददास के पुत्र अविनास ने रचना की थी. ४७६. हृदयालोकलोचन – पत्र संख्या - १६ । साइज - १०४ इ । भाषा-संस्कृत || ' विषय- अलंकार । रचना काल । लेखन काल -x | पूर्ण । बेष्टन नं० ४७८ | Leto स्फुट - रचनायें ४०. अकलनामा - पत्र संख्या ३ । लाइज - ११४५३ इम । भाषा - हिन्दी संस्कृत | विषय - स्फुट | रतना काल -X | लेखन काल--X। चपूर्ण । वेष्टन नं० ४४२ । ४७८. अक्षरबत्तीसी - मुनि महिसिंह | पत्र संख्या - २ | साइज-३४४९ द | भाषा - हिन्दी पथ विषय - स्फुट । रचना काल -सं० १७२५ | लेखन काल -X | पूर्ण । बेधन नं० १६६ | विशेष अन्तिम पथ सतरइसई पच्चीस संवत् कीयो बखाण । उदयपुर उधम कीयो मुनि महसंहि जागा | ४७६. ज्ञानाच तत्वप्रकरण टीका - पत्र संख्या - १० | साइज - १६३४६ इव । भाषा - हिन्दी | विषय-योग | रचनाकारा -X | लेखन काल -X | अपूर्ण । मेष्टन नं ० ३१२ / ४०. गोरसविधि - पत्र संख्या -४ | साहब - ९३x४३ इम । माषा-संस्कृत | विषय - विधान । रचना काल-X। लेखन काल - पूर्ण वेष्टन नं० ७१ । । ४८ १. गोत्रवर्णन - पत्र संख्या - १० | साइज - EX६ १ माथा-हिन्दी पद्य विषय - इतिहास 1 रचना काल -x | लेखन काल - X पूर्ण वेष्टन नं० १८४ | Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कूट रचनायें ] विशेष – गोत्रों के नाम दिये हुये हैं । ४८२ चौरासी गोत्र - पत्र संख्या - १ | साइज - २१३४१० इव । भाषा - हिन्दी | विषय - इतिहास | रचना काल -X / लेखन काल - सं० १८९२ | पूर्ण | बेटन नं० १६४ । विशेष - खण्डेलवालों के चौरासी गोत्रों के नाम है 1 ४८३. चौरासी गोत्रोत्पत्ति वर्णन -- नन्दनन्द | पत्र संख्या - १२ | साइज - ६ x ३३ इत्र | भाषाहिन्दी पय विषय - इतिहास । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८८६ । पूर्ण वेष्टन नं० १८४ | विशेष – १ संख्या - १११ है । सुडेलवालों के ८४ गोत्रों की उत्पत्ति का वर्णन है। प्रारम्भ दोहा - श्री युगादि रिसमादि गुण, सस्य श्राय गुण गाय । श्रावक समय रचि श्रतुल सु संपति धाय ॥१॥ वैस्य र मैं उच्य १६, धर्म दया कौ पनि । श्रय कल्यान आवक प्रगट, रच्ये गोत्र कुल माम ||२॥ - आवक व्रत तीर्थ कर सेय सुध्यारहि व ए पालत है । च्यार ही वर्णं सुकर्म क्रिया तब मुक्ति गया सु भालत हैं । श्रीवरवर्द्ध सुमान्य स्वामी जु मुक्ति गया शुभ तालत हैं । फेर वर्स छह सतीयासिंह वा तब पुनि प्रगटालत है । [ २५३ चौपाई पराजित मुनि नाम सुस्वामी । धान सघाडा मन कहामी ॥ अपराजित मुनि तप सु प्रभाक | जिसेनाचार्य भये ताक ॥ 豆 मधि थाथा || श्री जिपसैनचार्य तन होये । संवत् येक साल मध्य जोये || जिग्रसेनाचार्य मध्य सारा। छह सात मुनि काजु सिधारा ॥ प्रभु पद्म पद्म ध्यान तहां घर्ता । श्री जिया जोग र मुनि कर्ता || फिर अवसर इक सहु श्राया | मम खंडेला वन निहुँ पाच सह पंक्तावलि तह | भूत भवषित वर्त ज्ञान लहू ॥ मूनी सकल मुनि धुनि की वानी । हैगी यह उपसर्ग विधानी || होनहार उपसर्ग श्री । होनहार नहि मिटें कठही ! सावधान मुनि ध्यान सहावा | जोग सु ध्यान समर्थ सु जूवा ॥ आम लगे चतुराक्षि खंडेलें । साह एक वित मरी उपजेलै । ताहो नरनारी बहुत प्रति होये । वादां पति चाँता उपजोये ॥ तबै पति सत्र बीघ वूडाये । विन्न मिटे सो करो दुजोये ॥ I Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ ] [ स्फुट रचनायें तम इक बीन कही मुणि राज्ये 1 नरहि मेध को जम काये ॥ तब उह ब्रपति वाक्य सत्य कीन्हों । नरहि मैध सायत रचि दीन्हो ।। नर सव चौरासी के पाए । यथ्यो विन ताहा महोत कहाये ॥ दुन्य कहि व्रपति मनुष सत चाहै । मिटै विम यह होन कराई ।। ताहा मुनी तप करै स त्याकु । पकडि मंगाय होन किये ज्या ।। हाहाकार बोहोत तहां होयो । व्रपति दुष्टतै काहा कर धोयो । तत्र वाहा मुनिराज सब पाये । जैनसन प्राचार्य ताहाये ॥ बड़ा बढ़ा सब मुनि का स्वामी ! जोग भ्यान श्री अंतरयामी ।। मगर सुफल सध्यान लगायो। चक पूरी सु जाप जजायो । महरी गुडो जिन थापन कीनो । शांत मई तूप ग्यान उपीनो।। तब श्राय व्रप बेदन कीनी । ममा करो अपराध मुनीनी || व्रपति कहै मुनिराज दयालं । विन मिटै सो करो कपास । नप सु कही मुनी सर वानी। लग्यो पाप मानुष को पानी ।। स्व छातम ऋत नीदत राजा। परयो पाय मुनि के ड समाजा || कही भूप मम अभ मेटो। तुम पारस्य पुनिराज सु भेटो ।। कहीं मुनि मुनि हे ब्रप राजा । श्री जिगाधर्म सर्ण तुव घाना ॥ दया रूप जिग्गा धर्म प्रकासा । मिटे पाप पुषि निर्मल मासा ।। श्रावक धर्म ब्रपति मुनि लीन्हो | मीटे पाप निर्मल अंग तीन्हीं ।। नगर खंडेल गांव बयासी। अन्या छा छत्री त्या वासी ।। द्वय सुनार बल्या छा त्याही। कही भूप ये दोउ ब्याही । दोउ का दीहाडी न्यारी । श्रावक धर्म मूल सुखकारी ।। इक कही प्रामणी देवी। दूजा कसु मोही तेवी ।। चोरासी सुगोत्र श्रावक का । नीक रनौ भली धुधि मुखका ।। गोत्र वस अरु नाम की हाडी। जिणाम धर्म तकनीकी वाडी ।। अन्तिम-संवत १५ सह गिनो अम्दनीवासी साल । चत कम्न रसि गुरू मुम प्रभ पूर्यास ।। १७ ॥ मन वंछित पठियो मनै कुल श्रावक गुणसार । नंद नंद देदत सुख, न देचा तिर भार ।। ११० ।। इति श्री प्रप श्रावक मोत्र गुणसार नंद नंद रचिते संपूर्ण । सुमः ।। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्फुट रचनायें ] [ २५५ लोखी गणेश लाल कवी स्वयं कृत । लिखायतं राज्य श्री चंपाराम का नंद चिरंजीव || पुत्र पौत्र कुल वृद्धि सुख संपति फल प्राप्ती सत्येव वाक्यं ॥ ११९ ॥ ४८४. जैनमार्ता - भान संश- ६०३ | राज - १२४६ श्च । भाषासंस्कृत । विषय-सिद्धान्त एवं आचार । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८५३ सावन मुदी १५ । पूर्व । न नं० १६७ । विशेष-म० महेन्द्रभूषण ने प्रतिलिपि कराई थी । ग्रन्थ का दूसरा नाम कर्म विपाक चरित्र भी हैं। प्रारम्भः — श्रखंडात्मज्ञानलजनितः तीव्रातिशयितञ्चलः । कालावलीनिधयः परिदग्धाखिलमलः || महासिद्धः सिद्धः श्रुतचस्यपकेति । महावीरस्वामी जयति जगतो नाथ उ दतः ॥ १॥ अन्तिम स्तीर्थकरो महात्मा महाशयः शीलमहावुराशिः । नमोस्तु तस्मै जगदीश्वराय श्रीमन्महावीर जिनेश्वराय || || अन्तिम पुष्पिका - इति श्रीमज्जैनमा महापुराणे श्रीमद्वारक जिनेन्द्रभूषण पट्टाभरण श्री भट्टारक महेन्द्रभूषण दुतिय नाम कर्मविपाक चरित्र कृते चित्रांगदाय भोवाप्तवनी नवमोऽधिकार समाप्तयंप्रभ ॥ ४८४. नंदबत्तीसी - हेमचिमल सूरि । पत्र संख्या ४ साइज - २०४४ । भाषा - हिन्दी | रचना काल - सं० १६० । लेखन काल-सं० १६ । पूर्ण । श्रेष्टन नं० २०४ । आरम्भ - गाथा - श्रागमवेदपुराणमये जंजकबंति कवीयथ तं शारद तुह पसाग । चूहा - पहिल प्रयामं सरसती, जगमति लील विलास | श्री जिवर शंकर नमु मांग बुद्धि पयास ||१|| श्री श्रविरल बुद्धि धण जन मन रंजन जे ? नंद बीसी जे सुगड चरीयर चंपुरि तेह || || नगर हि ठाण जे तेह तदा बोलेस नंद बत्तीसी पई एहज नामट व्योस || चौपईपुर पाडलीय नगर अभिराम । पुहति प्रगट जेह नु नाम ॥ वरण वरण बसि तहाँ लोक । जाणस जाण तथा तिहा योक || सजल बरोबरनि वन खंड | राजा लोक न लेत्रि दंड || गट मठ मंदिर मैडी पोलि । सुरासी चहुंटा नीरा इलि || Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ ] अन्तिम - हयति श्रति ऊमा करी | नंदरायतु बोल्यु चरी ॥ विनोद कथा नृप । नंद सीधी चुपई ||५ तप नायक हमुद जय श्री हेम विमल सूरंद || कान सील पंडित सुविचार | तास सिस्य कहि येह विचार || संवत १५ साठा मस्कार । चैत हृदि तेरसि वार || जे नर विदुर विशेष सु।ि मुनिवर कुल संघ भणि ॥ वंचित सदा नितु नगर संपदा || १५४|| ।। इति विनोदे मंद वचसी चुपई समाप्त || संवत् १६ श्रीमत् काष्ठासंघे नंदीतट्टगच्चे विद्यागणे भ० रामसेनान्वये तदाम्बाये म० उदयसेन तत्पट्ट म० श्री त्रिभुवनकीर्तित्वामरथ दादिगजकेसरी उभयमाचाचक्रवर्ति भ० वी रत्नभूषण नरसिंह पुरा शातीय सांपडी गो सा० योगाभा विनादे सूत ब्रह्म श्री बलराज सखिप्य श्री मंगणात । O ४८६. दशस्थान चौबीसी द्यानतराय सूचना -X | लेखन काल सं० २०४४ पूर्ण बेटन नं० १२५ ( म्फु रचनायें पत्र संख्या ७ | साइज भाषा हिन्दी । विशेष-वीस तीर्थकरों के नाम, माता पिता के नाम, ऊंचाई, आयु आदि १०, बातों का वर्णन है। मीठालाल शाह पावटा वाले ने जयपुर में प्रतिलिपि की थी। ४७. समयसार कलशा - अमृतचंद्र पत्र संख्या १४ साइज ११३५ई इस भाषा | विजयधन्यात्म रचना काल-x खनाल-X पूर्ण वेष्टन नं० २८० । | | | | म । । । पद्मनन्दिपंचविंशतिका - पद्मनंदि पत्र संख्या ५६ सावन- ११६x४६ इत्र भाषासंस्कृत विषय धर्म रचना काल-काल- भपूर्ण वेष्टनं १ । विशेष - १०५ से धागे के पत्र नहीं है। प्रतियां और हैं। ४८६ पंचदशशरीरबन पत्र संख्या १ साइज ११३४ माषा-संस्कृत विश्वस्कुट रचना काल X] लेखन काल-X पूर्ण वेष्टन २०७४ | - ४६०. प्रतिक्रमण सूत्र" " पत्र संख्या १०४ भाषा प्राकृत विषयधर्म रचना काल लेखन काल- पूर्ण वेष्टन नं० ४१० ४६१. प्रशस्त्रिका पत्र संख्या १६ साइज - १९४ म भाषा संस्कृत विषय विविध रचना काल -X | लेखन काल - x 1 पू । वेष्टन नं० ४२३ । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्फुट रचनायें ] [ २५७ ४२. फुटकर गाथा--पत्र संख्या-२ | साइज-११४४व । भाषा-पाकत । विषय-धर्म । स्वना काल-X । लेखन काल-X ! पृर्ग वाहन नं ४२५ | १३. बारहवतोद्यापन (द्वादस व्रत विधाम)-पत्र संख्या-५ 1 साज-१०६४५ इन्न । भाषासंस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । श्रेष्टन नं. ८७ । ४६४ बारहखडी-सूरत । पल्पा -१६ । साज-x | भाषा-हिं५ । विषय-सुभाषित रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १२५ | 82. भावनाबत्तासी-मिलिगति। पत्र संख्या-३ | साइज--१०x४ इन। भाषा-संस्कृत। विषय-चितन । रचना काल-४ । लेखन काल- ४ | पूर्ण । वेष्टन नंः ३६१ । विशेष –पद्य संख्या ३३ हैं। ५६६. मानवर्णन-पत्र संख्या-५ । साइज-१०.४५ ३ । भाषा-संत | विषय-स्फुट । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । बष्टन नं. २२२ । ४६७. मानपचीसी-विनोदाहाल | पत्र संख्या-| साइज-x• इञ्च । भाषा-हिन्दी | विषयधर्म । रचना काल-x 1 लखन काल-सं, 180 ४ पौष मदी ११ । अपूर्ण बटन नं. १८४ । ४९८, सास बहु का झगडा देवाब्रह्म । पत्र संख्या-१ | साइज -११४५५ इन्न । भाषा-हिन्दी । विषय-समाज शास्त्र | रचना काल-XI लेखन काल-X1 पूर्ण। वेतन न. ४३८ । विशेष - देवाब्रह्म यो देखि समासो हाल वरपाई सार । मात पिता की सेवा कोच्यो कुलबंता नर नारी ॥१७॥ सचिी बात कहूं छू जी ।। ५००, लीलावती-पत्र संख्या- | साइज-१०.४५ इन | भाषा संस्कृत । विषय-गणित | सपना काल--- | देखन काल-x, पूर्ण । श्रेष्ठ ४६२। विशेष-संक्रममा सय तक दिया हुआ हैं। ५.१, स्नानविधि-पत्र संख्या-४५ । साइज--x३: इच। भाषा-पात संस्कृत । विषय-पूजा । रचना काल-X । लखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं ० ६४ । प्रति प्राचीन हैं। ५.२. समस्तकर्मसन्यास भावना-पत्र संख्या-७ । साज-.x.३ इभ 1 भाषा-संस्कृत । विषय-- अध्यात्म 1 स्नना काल-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । बेपन नं. ३४ । श्लोक संख्या-१३३ हैं। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] [ गुट के एवं संग्रह ग्रन्ध ५०३. स्तवन-पत्र संस्था-१ | साइज-10xts | भाषा-फारसी। लिपि-देवनागरी । विषयस्तवन । रचना काल-X । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं० १४ । विशेष-प्रदालत में मुकदमा पेश होने का पूरा रूपक है | जिस प्रकार अदालत में अर्ज की जाती है ठीक उसी तरह भगवान से प्रार्थना की गई है। गुटके एवं संग्रह गन्थ ५.४. गुटका नं० १-पत्र संख्या-२७५ । साज-११४५ दश्न । भाषा-हिन्दी संस्कृत । लेखन काल-सं. १८५३ । पूर्ण । मुख्य रूप से निम्न पाठों का संग्रह है-- (१) प्रत विधान बासों-संगही दौलतराम । पत्र संख्या-१ से २३ । भाषा-हिन् । स्थना काल-सं० १७६७ श्रासोज हुदी १० । लेखन कान- सं० १८१८ श्रासोज सुदी ३ 1 पूर्ण । प्राम-प्रश्रम मिरों स्वामी वृषभ जिनंद, श्रादि तीर्थ कर सुस्त्र के औद । तो नमो तिथंकर वीस है, नमो सनमति सदा सिंव मुम्बधाम । नमो परमेशी जी पत्र पद, ता समिरे होय सुख अभिराम । ___ तो वरत की मधि जैन का ।। १ ॥ रस प्रोजली - अहो तप रस प्रोजली मास बैशाख, सुकल तानसी जी करि अभिलाष . तो प्रत चौईस अति निर्मला, तीन स भोजली जल मन भाय ।। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुदके एवं संग्रह ग्रन्थ 1 बहुरी अल लेन संख्या नहीं, ईसु चटाई जे जिन पद जाप तो वरत की भवि जैन का । १४१ ।। नट अन्तिम पाटीदी जी नम का तनी थान, राज करें बुपसिंह कुल मानु पोन छत्तीस लीला करें, गट श्रम कोट वन उपवन वाय । महल तलाव देवल छ, श्रावण धर्म चलै बहु माय ।' तो बरत० ।। बही जगत कीरति मट्टारक परमान, मूल संघी सरस्वती गुच्छ जान | तो हुदा मुनि पाटई, ब्रह्मचार याचारिज पंडित भाय ॥ और धारयिका जी संग मैं, मानत श्रावभ यह अमनाय || तो ॥ यही पानाथ मैनाली जी गाय, तहाँ पंडित तुलसी जी दात रहाय तो सास्त्र समूह विद्या व करह, निरंतर धर्म विशव सुख स्यों काल पूरा करें। तास चरचा रचि गंध पसाय ॥ तो ॥ . अहो साह मामा सुतवर श्रहो धनपाल, युवक तो सुत दौलतिराम हुन वरत विधान राशौ रच्यो, श्री पाणी गोत परसिद्ध महो मोही, खंडेलवाल जिन मतिय कहाहि वचन दिशास | माले, करहि चस्वा जिन 1 तो भाषण अम्बे मारग श्रोन धर्म नहीं ऊपरे सठु परिवार बूंदी गट वास || तो० ॥ ताको चतुरभुज रूप बसाय । जिन गुगा कहि अभिराम || - ताथै पुत्र हरराम सदाराम | तो || ง X X X श्रहो अहो संवत् सतरा स सदि लोन, बासोज सुक्ल दशों दिन परवीन | तो लगन हुरत सुभ घरी वार, गुरु वार नक्षत्र जो ता मोहि ॥ मंथ पूर भयो भविष संबोधन यह उपयोग || अहो दोष से दवस्या भी बंद निवास, सात से पचास बेरूका तास । श्रहो तो एक सौ इकसठ सात कला, दौलतराम विश्व पुरयाय ।। अविकरि मन च काय सों, अनुक्रम सूर सुख शिव पद पाप ॥ २०१ || ॥ इति श्रीमत विधान राम्रो संगही दौलतराम त संपूर्ण (२। १४८ व्रतों के नाम पत्र संख्या २२२४१ [ २४६ (३) पूजा रोष संग्रह संख्या १ से २५१ तक 1 - विशेष ६३ प्रकार के पात व पूजा स्तोष आदि का संग्रह है। टका के कुछ वर्षों की संख्या २७५ है । ५०५. गुटका नं २ - पत्र संख्या ४ साइज - ३x६ इच। भाषा - हिन्दी | लेखन काल -x 1 श्रपूर्ण । Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६०] [ गुदके एवं संग्रह अन्ध विशेष-आयुर्वेदिक नुसखे दिये हुये हैं। एवं मंत्रों का संचालन है। सभी मंत्र घायुर्वेद में सम्बन्धित हैं। स्तोत्र श्रादि भी हैं। ५०६. गदका नं८३-पत्र संख्या-२ साइज-xt च । भाषा-प्राक्त-पंस्कृत । लेखन काल-x। पूर्ण। विशेष-नित्य नियम पूजा पाठ है। ५०७. गुटका न.४-पत्र संख्या-20 साइज-X: इज 1 माषा-हिन्दी लेखन काल-X17 | निम्न पाठों का संभह हैं:-- ।१)ज्ञानसार-घुनाथ । पत्र सं. १ से ३४ । भाषा-हिन्दी। पद्य सस्या-७० । भारम्भ - हप्पय छंद गनपति मनपति प्रथम सकल शुभ फल मंगल कर । स्वरमति अति मति गृद देत प्रारूट हंस पर ।। निगम धरन जग मरन करन लगि चरन गंगधर । अमर कोटि तेतीस कहत रघुनाथ जोरकर ।। भनि तिरन हुस्न जामन मरन सरनि जानि इह देह वर । श्री हरि पद की 43 गुननि गाऊं मन दच कार का ||१|| दोहा-विरसावन सब सुखद अश्व हर ज्ञान उदीत । गंगनीर गुरु के चरन वत्त सुधि गति होत ||२|| तुम सर्वच दयाल प्रभु कहो रूपा करि बात | श्रनत रूप हरि गति पलस्त्र लग्ने कौन विधि जात ||३|| नव अपनी जन जामि मन मानि करी प्रतिपाल। सबै दयाल तिह काल कर बोले बचन साल || si] संत दशा वर्णन . सबया जग सी उदारा मन वास किये नास मन, शरत न आस रघुनाथ यौ कत है। झोधी से न क्रोध, न विरोधी से गिरोध, नहि लोगी सौ प्रभोध नित ने भिवक्त है ।। जीव सकल समानि समझे न कहु अनुराग दोग, थभिमान प्रम नो देहत है। मान जल मंजन मलीन कर्म मंजन के, रात्रै हैं निरंजन सौ, अंजन रहता है ॥१६॥ x अमल रूप माया मिल्यो मलनि भयो सब ठाव । सोनी सोनी संग तें भूषन नाना नांव ॥१४३|| Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह मन्थ ] [२६१ विन जाने बहु दुख है जॉन ते उहि जात । तीन काल में एक रस सो निज रूप रहात ||१८|| गृह त्यागी रामी नही, मागी भ्रम जग प्रीति । हरि पानी जागी सबुधि इह वैरागी राति ॥२५॥ अन्तिम पाठ-असो हरि को निज धर्म मुनि मन भयो हुलास । तातै इह भाषा फरी लघु मति रथो दास ॥२६४॥ गुनी मुनी पंडित कवि चतुर विधकी सोध । कियो मन्थ उनमान विधि विभा सकल अपराध ।। दक्ति मुक्ति तुक छद गति माव दरन मन हीन । इक गुन हरि को गुन वरन तातै गु-पौ प्रवीन |२६६ सतरसे पालीसघिय संवत् माघ अन्य । प्रगट भयो सृदि पंचमी ज्ञान सार सुख रूप ||१७|| मुनत गुमत जे ज्ञान सत नसत अस्त भ्रम रूप | भव नावत वित निगम पावत ब्रह्म सरूप |॥२६॥ मुख पार अधार सत्र सोखन सल विकार । पार करत संसार सर महासर को सार ॥२६॥ राघव लापत्र केरि करि कहत सब संतन सौं शुक्ति । प्रम दान घो जानि जन संत संग हरि भक्ति ॥२०॥ ॥ इति शानसार रघुनाथ सात संपूर्ण || (२) गण भेद-रघुनाथ साह । पत्र संख्या ३ । भाषा-हिन्दी पप विषय-छंद शास्त्र ( १५:४ से ३० तक)। पद्य संख्या-१५ । पूर्ण। पारम्भ-गरिनंद श्रानन्द कर विघन घाय बहु माय । श्रादि कावि के राज कबि मंगल दाय मनाय ||२|| प्रथम चरिन ब्रजराज के गाय मु मन वचकाइ । जन्म सुधारित धारि कुल कलमल सकल नसाइ ॥२॥ हरि गुन भेद विना अमल फल दुह लोक अपार । रहन सकत नर कवित्त विनि तिन मधि विवधि विचार ||२|| मध्य भाग दोहा-अष्ट गणागम श्रमरफल पशुम च्यारि शुभ ग्यारि । रात्र मनि कवि राज पनि धरहु बिचारि विचारिता१०|| Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] पूर्ण । अन्त भाग सुणत गुणत गय मेद को रखा प्रकासत ज्ञान । हर जस कवि रस रीति को पात्रत सकल सुजान ॥ १६ ॥ ॥ इति श्री रघुनाथ साह त ग संपूर्ण ॥ विशेष — बंद शास्त्र की संक्षिप्त रचना है किन्तु वर्णन करने की शैली अन्धो है ! (३) नित्य बिहार (राधा माधो) रघुनाथ- पत्र संख्या-2 मया हिन्दी प प सं १६ आम्मद चरचरी राजत रूप अंग अंग छवि धनूप निरति लगत काम भूप बहु विवास मीनें ॥ रत्नजटित कर हाक मनि अमित वान । कुंडल इति उदित करन तिमर करत दोने ॥१॥ मातरम दिल जैन चपस मोन चिसंत माशा शुरु मोहे ॥ कली दसन रसन बोरी इन मंद हसन कल कपोल अधर लाल मधुर बोल सोहै || २ || अन्तिम जन अघ नाम रटत मंगल सब पनि जटता । श्रकटित जस आर पति जगत गांद गांवे ॥ श्री बाल निति विहार धानंद तर जे उदार ॥ राघो भय होत पार प्रेम मक्ति पार ॥११॥ ॥ श्रति राधो माधी नित्य बिहार संपूर्ण ॥ विशेष रचना श्रृंगार रस की हैं। ( ४ ) प्रसंग सार - रघुनाथ | पत्र संख्या - ४३ से ५६ तक भाषा - हिन्दी पय । पद्म संख्या - १६० । रचना काल सं० १७४९ माघ सुदी ६ । पूर्णं । प्रारम्भ - एक रदन राजत वदन गन मंगल सुख कंद । [ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ राव रिधि सिधि बुधि दे नव निस गवरी नंद ॥१२॥ बांनि गति यांनी कास खानी जात हरि मोनी रोनी सकल वर दानी जय मात गुरु सत गुरु तीरथ निगम गंगादिक सुख आम देव त्रिदेव रखी सुमनि पूरत सबके काम ||२|| Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह अन्य ] [ २६३ सांस नाय सव गाय हो राधी मनि इह रीति । राकल देव की सेवको फल हरि पद सौ प्रीति ॥४॥ अन्तिम पाठ-निस दिन चि पचि मात साठ सबको र उनमान । सकल जानि मन जानि मन राधा मजो मनवान ॥१५६॥ मजनि मजै तिन तें भजे पाप ताप दुख दानि । भागवत भगत जन म्यान बंत सो जानि || १५७।। रूव सुख जत सुदर सुमत सप्तरास गुनचास । कीयो माघ सुदि पंचमी सार प्रसंग प्रकास ||१५८॥ रंग रंग व अंग के बग्ने विधि प्रसंग 1 सुनै गुनै एख में सनै अति रति है सतसंग ॥ १५ ॥ अंग उधारत गंग ज्यों मलिन कर्म करि मंग। उक्ति लूक्ति हरि भक्ति है समझ सार प्रसंग ॥ १.६० ॥ ॥ इति श्री रघुनाथ साह कृत प्रसंगसार संपूर्ण ॥ विशेष:--रचना सुभाषित, उपदेशात्मक एवं भक्ति रसात्मक है । ५०. गुटका नं. ५–पत्र संख्या ४० साइ-में--(४५ इञ्च | भाषा- संस्कृत हिन्दी । लेखन काल-x। पूर्ण । विशेष-केवल नित्य नियम पूजा पाठ हैं । ५०६. गुटका नं० ६.-पत्र संख्या--२५ । साइज-- इश्च । भाषा-हिन्दी लेखन काला-सं० १९६३ भादवा बुदी १० । पूर्ण । विशेष-बारह भावना, इष्ट बत्तीसी माषा, भक्तामर माषा, निर्वाण काडमाषा एवं समाधिमरण बादि पाठों का संग्रह है। ५६. गुटका नं.७–पत्र संख्या-४ , साइज-=3x६ इश्व । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-सं. १-३६ मंगसिर सदी पूर्ण। विशेष- रामचन्द कृत नौबीस ती करों की पूजा है । ५१०. गुटका नं०५-पत्र संख्या २३ । सारज-EX६ इन | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X । पूर्ण । (१) बैराट पुराग-प्रभ्र कवि । प्रारम्भ के पत्र नहीं है । विशेष-प्रभु कनि चरणदासी संप्रदाय के है । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ) [ गुट के एवं संग्रह अन्ध अन्तिम पाठ-काय शिसे कहो, ३ प्र कारका कवन पवन ते चाक उचारा, कवन पवन के रहैय अधारा । याको भेद बतावो मोव, प्रभु कहे गुरु पुतीय ॥ १॥ (२) अायुर्वेद के नुसखे-माषा-हिन्दी । पूर्ण । ५११. गुटका नं. ६ .. पत्र संख्या-२७ : साइज-६४६ इश । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-1 पूर्ण । विशेष-यंत्र चिन्तामयिय के कुल पाठ हैं । ५१२. गुटका नं. १०-पत्र संख्या-३४ | साज-1x६ इञ्च | माषा-संस्कृत-हिन्दी लेखन काल-~| पूर्ण । विशेष-भक्तामर आदि पाठ एवं पूजा संग्रह है। ५१३. गुटका न०११- पत्र संख्या-७१ । साइज--x१३ इन। माषा-संस्कृत-हिन्दी । लेखन काल-~। पूर्ण । विशेष-प्रथम सत्रार्थ सूत्र है पश्चात् पूजात्रों का संग्रह है। ५१४. गुटका नं०१५-पत्र संख्या- । साइज--१०५४५५म । माषा-संस्कृत हिन्दी । लेखन काल-X | पूर्ण । विषय-सूची कत्ता का नाम विशेष भाषा हिन्दी कबीरदास संस्त पत्र १५ तक (१) पद ( २ ) शब्द व धातु पाठ संग्रह (३) लमण चौबीसी पद (४) षोडशकारगाव्रतक्या विद्याभूषण नसानसागर पद्य सं० ३० प्रारम्भ-श्री जिनवर चौबीस नमु, सारद प्रयामा अध निगम। नि: गुरु केरा प्रग्यमुपाय, सकल संत वंदत मुख पाय || ५ || षोडश कास्य व्रतनी कथा, भाषु जिन श्रागम छ यथा । श्रावक मुण जो निज मन शुद्ध, जे श्री तीर्थकर पद वृद्ध ॥२॥ अन्तिम माग-जे नर नारी ए व्रत करे, में तीकर पद अनुसरे । 4ह मवि पावे रिवि पपार, पर भव मोच तयो अधिकार ॥ पामे सकल भोग संयोग, टले प्रापदा रौरव रोग । श्री भूषण गुरु पदाधार, ब्रह्मशान सागर कहे सार ॥३७॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ] विषय-सूची (५) दशलगम था प्रारम्भ प्रथम नमन जिनवर में करू, सासद गयभर अनुस दश च भत कथा विचार, माधु जिन आगम अनुसार ॥१॥ अन्तिम पाठ मत जे नर नारी कवितेम सागर तरे । सौख्य पान नि, सरथ मन यति ि महारक भी भूषण धीर सकस शास्त्र पूरा गंभीर | जस पद प्रमी बोले सार ब्रह्म ज्ञान सागर खुविचार ॥३४॥ ( ६ ) रत्नत्रय व्रत कथा () अनन्त मत कमा (2) त्रैलोक्य तीज कथा कर्चा का नाम ज्ञानसागर (६) श्रवण द्वादशी कमा (१०) रोहिणी व्रत कथा (११) पहाडका मत था (१२) लब्धि विधान कथा (१३) पुप्पाजलि व्रत कथा (१४) आकाश पंचमी स्था (१५ ला बबन कथा (१६) मौन एकादशी भूत कथा (१७) कूट कमी कथा (१८) अतस्कंध कथा (१४) कोकिला पंचमी कथा (२०) चंदन पेटी त कला (२१) निशल्यामी कथा (२२) सुगंध दशमी व्रत कथा (२३) जिन रात्रि व्रत कथा (२४) पश्य विधान कथा ० ज्ञानसार 37 ײ 39 "" 39 "} CR " " 19 3: 37 AAR 2 27 33 22 " भाषा हिन्दी हिन्दी 27 77 33 31 32 33 ,3 " 33 " " " 23 33 77 "3 " 73 [ २६५ विशेष पथ सं० ५५ सं० २०२६ रविवार को सूरत में ब्रह्म कनकलागर ने प्रतिलिपि की थी। ││ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६] [गुढके एवं संग्रह प्रन्थ (२५) जिनगुनसंपति व्रत कथा (२६) आदित्यनार कथा (20) मेघमाला व्रत कथा (२८) पंच कल्याण बड़ा (३०) परमानंद स्तोत्र पृज्यपाद स्वामी संस्कृत प्रारम्भ-परमानंद संयुक्त निर्विकारं निरामयं । ध्यानहीना न पश्यन्ति निजदेहे व्यवस्थिते । (३) वर्धमान स्तोत्र (३२) पानाथ स्तोत्र (३३) आदिनाथ स्तवन राजसन ब्रह्म जिनदास्त्र स्वामी श्रादि जिणंद, कर बीनती प्रापणीय । तु ग साचो देव त्रिभुवन स्वामी तू गी ९ ॥२॥ लाख लोगसी योनि पावर जंगम मभ्याए । तुह न लाधो श्रे संसार सागर तेह तन्यो ए | विहंसिर महिपाध्यसमि अांतपणा ।। जामन मरा वियोग. रोग दारिद्र जरा तेह तय ||३|| कांध भान माया लोम रन्दि चोरेहु मोलयोए । ग द्वेष मद मोह-मयण पापी घणु लकीर ।।।। कुदेव गुरु कुशास्त्र मिथ्या मारग रंजियए । साचो देव सुशास्ष सह गुरु वयष नमै दीयुए। || समन कुलभ ने काज कांघो पापभि यति घणाए । ते पातिकनीवार जिनवर स्वामी प्रश्न त ए ||६|| तु माता नु' बाप, तु जाकर तु देव गुरु | तु वाचन जिन राज, बाश्रित फल हरे दान कर .| 11 हे जो तुम्हें झुल देव करम निवारी अन्न तणा। मवि मवि तुझ पाय सत्र गुण अारो स्वामी ब्रह्म घणा ए ॥ सकलकीरति गुरू बदि, जिनवर बिनति जे भगोए | यहा निणदास भणेसार, मुगति वरांगना ने वरे ए ।।।। (३४) च उत्रीस तीर्य कर विनती म तेजपाल (२५ जिनमंगलाष्टक - संस्कृत ५१५. गुटका २०१३-पत्र संख्या- साइज-४६: भाषा-हिन्दी लेखन काल-x | पूर्ण। विशेष – नित्य नियम की पूजाऐ हैं । ये पूजा बाल सहेली जयपुर में प्रत्येक शुभवार को होती थी। लखन काल-सं. ५१६. गुटका नं०१४-पत्र संख्या-११ | साइज-xE: हम । भाषा-संस १६-३ सादवा सुदी १० । पूर्ण । विशेष-सुगन्ध दशमी बतोद्यापन का पाठ एवं कथा है। ५१७. गुट का नं. १५ - पत्र संख्यः-१६२ | साइज-६x६६३न । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X । पूर्ण Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ] विष-नची ज्ञान तिलक के पक्ष कबीर की परचई नदी का ना कभीरदास [ २६७ ले. विशेष हिन्दी सं० १.६ कात्तिक पुदी - - रेखता कावा पाजी ईसमुक्तावली कबीर धर्मदास की दा यव्य पाठ साखी कितने ही प्रकार की है सोसट बंध विशेष – कवीर दास त रचनाधों का अपूर्व संग्रह है। फासी बसे कबीर गुसाई एव । हरि भक्तन फ्री पकली टेक ।। बहोत दिना संकिट में गये । प्रत्र हरि को गुन लान भये ॥ ( कवि की परसई) ४.१६. गुटका नं. १६-पत्र संख्या-१३ मे " | साइज-४६३ इम्प । मापा - हिन्दी । लेखन काल- | अपूर्ण । विशेष--महाभारत के पांच अध्याय से ३० जे तक है प्रारम्भ के ४ अध्याय नहीं है । जिसके का लालदास है। । में अध्याय से प्रारम्भ --- दरसन भीषम को प्रीय सदा, सकल रीस्वर भागे दिहा । सरसध्या भीषम विश्राम, अब मुनि प्रगट रिषिन के नाम ॥ ॥ गृगु वसिय पारास्वर व्यास, चिवन अत्रिय यंगिरा प्रवगाम । प्रगस्त नारद पवत नाम, जमदग्नि दुरवाला राम ||२|| २८ व अध्यार का अन्तिम माग - धर्म रूपज राजा सिन भयो, जिहि परकाज अपनपी दी। विस्नही श्राराधै इहि रीति थरम क्रया में कार माति ॥ १६ || जो बाह कथा सुमै श्रम गाई, धरम सहित धरम गति पायें । गौं शौं कथा पुरानन कही, लालादात भाख्यौ यो सही । २० ॥ ५१६. गुटका नं०१७-पत्र संख्या-१०६ । सारज-2x६ | भाषा-हिन्दी । रचन] काल-x | हे.खन कान सं० १८.५ पौष सुदी ७ । पूर्ण । विशेष-महाभारत में से 'उषा कथा' है जिसके रचयिता रामदास' है। पारम्भ--श्री गणेसाहनमः । श्री सारदा माताजी नमः । ब्रो नमो भगवत वासदेवाय श्री ऊषा चरण लिखते । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ } [ गुटके एवं अन्य संग्रह बासुदेव पुराण चित्त लाउं, करी हो कृपा रिकह गुण गाउं । समरो गुण गोविंद मुरारी, सदा होत संतन हितकारी ॥ समरो श्रादि सुरसत्ति माता, सुमसे श्री गणपती मुखदाता । बुधकर जोड चरण चीत लाउ, करी हो कृपा कछु हरि गुमगाउ || सुमरी मात पिता वहमाई, सुमरो श्री घुमति के पाई। दोहा - अहसठी तीरथ कथे, समरी देव कोटी तेतीस । रामदास कसा कर बुधी हो जगर्दास | १ ॥ ज्याहा बत्रभुज राय वीराज, प्रमसह तीतहि पुरको राजा। जाके धरम कथा अधीकाई, दानव जुध वी बोहोत बहाई ।। अकलोका स दरसण पुज मुखमान, गऊ विग्र की सेवा जान ॥२॥ नारद उकती भ्यास कही नाही, इसम सकंद भागवत कीन्हा । व्यास पुराण कह सब साखी, श्री सुखदेव नृप मुभाषी ।। दोहा--चित दे मुनी नृपति धनी परीकत राय । ग्यास पुत्र उपदेश तै रस हीयो षभाय । अमर कोक पग मुल नहीं देखों, पंच संग सलत्र सेवा। रामदास वी संगति पाई, भाषा करी हरी कीरति नाई। प्रेम सयाना पुछत वाता, तुम कंसन कहा भये विधाता । आदि देस तुमाहारो कहा होइ, हम सुवचन कहोन जसोई।। महमा कह राम को दासु, देस मालवो यती सुखदास । सहर, सरह निकर ताहा ठाहु, पावो जनम मालनी गाउ || पिता मनोहर दास दिखाता, बीरम ने जनम दीयो माता। रामदास सुत तीन को भाई, कसन नाव को भगतो ताही ।। दोहा-लालदास लालच कथा, सोध्यो भगवंत सार। रामदास की बुधी लघु पंथ कुदे न भार || 10 || मृप पुक सुख हैं बसु सुनौ, सुनाथ करौ हो मोहि । बनरव ऊषा हरन की कथा, कह सुनावो मोही ।। ११ ॥ कैसे चत्रा हरी ले गई, कैसे कत्रट मेंट मई । कुण पुनी वाणासूर लीया, पर वसी हरी दरसण दीया ।। सो बभा मुनी ध्यान लगायो, प्रादि पुरुष को अंत न पायो। कहै प्रताप हरी पूजा पाइ, सो हम स कहीये समझाई ॥ . Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्ध] [२६६ अन्तिम पाठ-.-धनी सो सरता चौत दे सन, अरण वीचार प्रेम गुनमन । धनी सोही देस धनी सोही गांव, नीस दिन कथा कृष्ण को नाव । उषा श्री भागोत पुराना, सहजही दुज दीजे दाना || छुछ मसक पवन भर सोही, कृप्य भगति विना अवस्था देही । रामदास कथा फियो पुराना, पढत गुणत गंगा असनाना ।। दोहा--द मदन यो होय फल, तो पातु दल पान । ईविध हर पूजहीं, कथे हो पुत्र को लाण ।। पति श्री हरिचरित्रपद सभी श्रसकंद श्री भागोतपुराणे ऊषा कपा वरणनो नाम संपत दसो थध्याय ।। १७|| ॥ इति श्री उषाकश्या सपूर्ण समाता । ५२०. गुटका नं०१८-पत्र संख्या-१३२ । साइज-8x६ इञ्च । माषा--हिन्दी । लेखन काल-सं० १७६७ फागुन बुदी । पूर्ण। विशेष--कषि बालक कृत सीता चरित्र है। ५२१. गुटका नं. १६ - पत्र संख्या-१३१ 1 पाइज-Ex६ च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-X1 अवर्ण। विशेष-नंददास कृत मागवत्त महा पुराध भाषा हैं । केवल ६१ पत्र है । ५२२, गुटका नं०२०-पत्र संख्या-३ से ३२ | साइज--१x६ इन्च । भाषा-हिन्दी 1 लेखन काल-x। अपूर्ण । विशेष-हितोपदेश कथा भाषा गध में है.1 रचना नवीन प्रतीत होती है भाषा प्रच्छी है आदि शंत माग नहीं है। ५२३. गुटका नं० २१-पत्र संख्या-१३६ । साइज-4x६ इन | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x। अपूर्ण। विशेष-हिन्दी गद्य में राम कथा दी हुई है। प्रति प्रशुद्ध है। ५२४. गुटका नं० २२–पत्र संख्या-२८ | साइज-६x६ इश्व ! भाषा-संस्कृत हिन्दी । लेखन कालसं. १८१५ | पूर्ण । विशेष-५० नकुल विरचित शालि होत्र हैं। संस्कृत से हिन्दी पथ में भी अर्थ दिया हुआ है। ५२५. गुटका नं०२३-पत्र संख्या-१० 1 साइज--१x१३ इञ्च | माषा-हिन्दी । लेखन काल-x1 अपूर्ण। अपूर्ण । Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rao [ मुट के एवं संग्रह प्रस्थ 1.. विशेष-कृष्ण का बाला चरित बन है।। १२२ पद्य है 1 श्रादि-गर गनेस बदन करि के संतान की सिर नाऊ । बाल विनोद यथा मति हरि के सुदर सरस सनाऊ ।।१। भक्तन के प्रेत्सल करुना मय अदभुत तिन की क्रीडा । सुनो संत ही संविधान ''ही श्री. दामोदरं लीला ॥२॥ ५२६. गुटका नं० २६-पत्र संख्न्य-३० | साइज-EX६ इन | भाषा-हिन्दी । रचना काल-x | लेडन काल-सं० १८२३ यासोज दी ३ । पूर्ण । । विशेष-लच्छीराम कृत 'कहना भरन नाटक है । कृष्ण जीवन की बाल लीला का वर्णन है । प्रारम्भ-रसिक भगत पंडित कांवनु कही महाफल लेह । नाटक करूणां भरन तुम लीराम करि देह 1311 प्रेम बढे मन निपट हो अरु प्रावै प्रति रोइ । करुणा पति सिंगार रस जहाँ बहुत करि होइ ॥ ... छीनाम नाईक कर फो दोनों गुनिन पढाइ । ..... भेत्र रेष नित न निपट लायें नर निसि लाइ ।।२।। ... अन्तिम पाट-श्रीकृपया कथा अमृत सर बरनी, जन्म जन्म के मल वली। .:: ........... ... ..त अगाध रस वरन्यो न जाई, बुधि प्रमान कछु बरनि मनाम ॥३४॥ श्री मति थोरी हरि जस सागर, सिंधु ममाह कहाँ ली गागर | ॥ . . . . . लाराम कवि कहा- वखानी, इरिजस को कोई हरिजन जाने ||३५|| इति श्री का जीवन लीराम कृत का भरन नाटक संपूर्ण | सं. १८२३ श्राश्वन वदा ३ रधिवासरे। सत्तमो अध्यायः।। - . ५२७. गुटका नं० २५–पत्र संख्या-३८ । साइज-x७ ईन । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-XI पूर्ण विशेष—गुटके में मरवाहु चरित है। यह रचना किशनसिंह द्वारा निर्मित है जिसको इसने सं० १९७३ में .-एमाता की थी। प्रति नवीन है। . भद्रबाहु चरित्रप्रारम्भ - केवल वोध प्रकारा रवि उर्दै होत सरिन लाल । जग जन अंतर तम सकश छेद्यो दीन दयाल |॥ १॥ सनमति नाम जु पाइयो असे सनमति देन । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७१ गुटके एवं संग्रह प्रन्ध ] मोको सनमति दीजिए नमी विविध करि सेव ॥ २ ॥ यन्तिम पाठ- यनंत कीरति याचारज जानि, ललित कोहि मू सिम पनाम । रजनंदि साको सिष होय, अलप मति धरि करना सोय || श्वेतांबर मत्त को अधिकार, पृट लोऋ मम रंजन हार तिनही परीक्षा कारम जान, पूर्व श्रुत कृत मानस यानि || १ ॥ किया नहीं कविताद की, काव का अभिमान ही री । मंगाक इस चरितह नानि, सयौं सबै सुखदाइ मान ।। मूल मंथ का भये रतन नंदि सु जानि । तापरिभाषा पडरिकीनी मी परमान।११।। नगर चास मुदेस में बरबाडा को गांव । माधुराय बसंत की दामपुरी है नांव ।। तहा बसत संगही कानो मोर पाटणी जोय । ता मुत जालो प्रवर मुम्ब देव नाम तस होय ॥ ताको लय सूत जानीयो किसन सिंघ सब मान । देस दटाहर को मौ सांगानेर मुवाच ॥ १४ ॥ जहाँ करी भाषा यह मद्रवाह गुणवारी | रामति कुमति को परस्त्र के द्वत्र भाव न बिचारि ।। किसनसिंघ बिनती करें, ललि कविता की राति । वह चरित्र भाषा कियाँ, बाल बोध श्ररि प्रीति ।। १७ ।। जो याकी वा सनै विपुल मति उरधारी । कई सौर नो मूल है लीयो गधी सनारी ।। १८ ।। समति कुमति की परख के, कीन्यौं कुमत निवार । महरा भुमति की कीजियों भो सुर सिव पद कार ।। १६ ॥ संवत् भतरह से असी उपरि और है तीन । माघ कृष्ण कुज अष्टमी मध समापत कीन |॥ २० ॥ ५२८, गुटका नं०२६-पत्र संख्या-२०० । सारज-८:४६, श्च । माषा-सात-हिन्दी । लखन काल-४ | अपूर्ण विशेष-- गृटका प्राचीन हैं । निम्न पा) का संग्रह है। Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ गुटके एवं संग्रह मन्थ भाषा विशेष कर्ता का नाम उमास्वाति मंग रायमल्ल संसत विषय-पूची तत्त्वार्थ सूत्र श्रीपालरास नीश्वररास विवेकजखडी पद्य संग्रह जखडी मांगीतुगी की जस्त्र की जखडी कर्म हिंडाला रुपचंद २० का० सं० १६७३ रामकीर्ति जिनदास हर्षकीति चंद्रकीति म नि धर्मचन्द्र देविदास गीत गीत चतुनगीत चेतन गीत । । । । । । । पंचधावा चन्द्रकीर्ति श्रादिनाथस्तुति शालिभद्रचौपई अपूर्ण ५२६. गुटका नं०२७- पत्र संख्या-२५ | साइज-Exइन । माषा-हिन्दी। लेखन काल-x अपूर्ण विशेष-स्फुट पूजात्रों का संग्रह है। ५३०. गुटका नं०६८-पत्र संख्या-२५ । साइन-ext दश्च । भाषा-हिन्दी । लेखन कालु-४ | थपूर्ण । विशेष-नित्य पूजा पाठों का संग्रह है। ४३१. गुटका नं० २६-पत्र संख्या-१५ | साइज--x इश्व | भाषा-संरकत । लेखन काल-x। थपूर्ण । विशेष-सामान्य पाठ संग्रह है। ५३२. गुटका नं० ३०-पत्र संख्या-१४ | साइज-१x६ ६ | भाषा-हिन्दी संस्कृत । लेखन काल-x | पूर्ण। विशेष -निम्न पाठों का संग्रह है: Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह अन्य ] विनती संग्रह संपासिका भाषा अठारह नाता पूर्ण | काल x पूर्ण थानतराय विशेष – मुख्य पाठों का संग्रह निम्न प्रकार है। विषय-सूची कर्ता का नाम स्तोत्रत्रिवि जिनेश्वरपूरि मक्कार तोष मानगाचार्य कल्याण मंदिरस्तोत्र कुमुदचन्द्र पद संग्रह सतर प्रकार पूजा प्रकरण) रागमाला अष्टापद गिरिस्तवन ५३४. गुटका नं० ३२-१३ -२० सा७४ | भाषा-हिन्दी लेखन काल-X पद २ स्तंभनक पार्श्वनागीन विशेष-६५ चतुराई की बार्ता दी है जिसका रचना कल वीर सं० २०४९ है । ५२५. गुटका नं० ३३ पत्र संख्या २३ से १४२ साहब - ६८६ इस भाषा - हिन्दी लेखन पद कवित साधुकीर्ति " हिन्दी इनके अतिरिक्त और भी हिन्दी पद हैं। सतर प्रकार पूजा प्रकरण रामनामाथि धन 33 23 17 भाषा हिन्दी संस्कृत हिन्दी धर्मसुन्दर (वाचनाचार्य) जिम महिमासागर जिनचन्द्र सूरि, जिनकुशल सूरि व कुमुदचंद्र | हिन्दी " વિમ્મી [ २७३ विशेष ││1 ब. का. १६५८ श्री. पु.५ २. का. १४२१ के सठि दिन सेम तरणि सुख राज | 1 कवि शतक बाउ पति शक्रस्तव परगद मखाज ॥ ० ॥ पर शांति सब सुखदाई सो प्रभु नवनिधि सिधि श्राव जह || सत्तर पूज सुविधि आवक की । मीमई भगति हिज काज ॥० ॥ श्रीजिनचंद्रसूरि गरू खरतरपति । धरमनि वचन दानु तसु राजइ ॥ संवत् १६ अार आव दि पंचम दिवसि समाज ॥०॥ । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ [ गुट के एवं अन्य संग्रह दयाकलशागणि यमरमाधिक गृक । तासु पसाद सुविधि हुँ भाजद । कहा साधु कीरति कर अमन संसा रादि ! साधुकीरति करत जन संस्तव सविलील सव सुख साजा ।। इति सत्ता प्रकार पूजा प्रकरण || ५३६. गुटका नं. ३४-पत्र संख्या-१४ से ८६ । सइन-x५५श्व | भाषा-प्राकत हिन्दी । लेखन काब-x| अपूर्ण। विशेष-द्रव्य संग्रह की गाथायें हिन्दी अर्थ सहित है तथा समयसार के २०६ पथ है। ५३७. गुटका नं. ३५-पत्र संख्या-६ से २८ । साइज-६६x४ ३श्व | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x। अपूर्ण । विशेष--पूजाथों का संग्रह है। ५५गुटका नं.३६-पत्र संख्या-६ मे ६३ । साइन-१४५ इच : माषा-हिन्दी लेखन काल-x। अपूर्ण। विशेष—महाकवि कल्याण विनित अनंग रंग नामक कान्य है । काम शास्त्र का वर्णन है श्रामे इसी कवि द्वारा निरूपित्त संभोग का वर्णन है : श्रायुर्वेद के नुसखे दिये हुए हैं। ५३६ गुटका नं.३३-पत्र संग्ख्या-६ साइज-६x६अ। माषा-संसत हिन्दी । लेखन काल-x0 पूर्ण। विशेष-विष्णु सहस्रनाम के अतिरिक्त अन्य मी पाठ हैं। ५४२. गुटका नं० ३८-पत्र संख्या-१० । साहज-७४५६ इन । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-सं. १५६ पौष सुदी | पूर्ण । विशेष—त्रिमिन साधारण पाठों का संग्रह है। ५४१. गुटका न -पत्र संख्या-७ | साइज - Exism | भाषा-संस्कृत । लेखन काल-सं० १८८३ चत्र पुदी १४ । पूर्ण । विशंव- चाणक्य राजनीति शास्त्र का संग्रह है। ५४२. गुटका नं०४१-~-पत्र संख्या-३८ | साइन-ixi इव । मावा-संस्कृत । लेखन काल-x। अपूर्ण एवं जीयं । ५४३. गुटका नं.४२-पत्र संख्या-६ । साइन-६x६ इन | भाषा-प्राकृत | लेखन काल-सं. १८१२ । पूर्ण । Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ] . [२७५ विशेष-श्राचार्य कुन्दकुन्द कृत ( दर्शन, चारित्र, सूत्र, पोथ, भाव और मोक्ष ) षट पाहुड का वर्णन है। ५४४. गुटका नं०४३ - पत्र संख्या-४८ । साइन-Exk इन्न । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X । अपूर्ण एवं जीर्ण । भाषा विशेष विशेष-देहली के मादशाहों की बंशावति दी हुई है अन्य निम्न पाठ भी हैंविषय-सूनी का का नाम कृष्ण का बारह भासा धर्मदास हिन्दी विरहनी के गीत प्रायुर्वेद के नुस्खे दादूदयाल । । । । ५४५. गुटका नं: ४४–पत्र संख्या-६८ 1 साज--१४६ ५श्व | भाषा-संस्कृत | लेखन काल-- ! विशेष - मंत्र शास्त्र से सम्बन्धित पाठ है। ५४६. गुटका २०४५-पत्र संख्या-६० साइज-.४४ इश्व । भाषा-हिन्दी संस्कृत । लेखन काल-XI विशेष पार्श्वनाथ स्तोत्र-संस्कृत, क्षेत्रपाल पूजा शनिश्नर स्तोत्र-हिन्दी श्रादि पाठ हैं । ५४७. गुटका न. ४६-~~-पत्र संख्या-१२ । साइज-१४४३ ५५ । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x। विशेष-चामदास के पद है 1 कूल १५ पद हैं। ५४८, गुटका नं. ४७-पत्र संख्या- १६ | साइज--x-३ इन । भाषा-संस्कृत ! लेखन काल-x1 विशेष-भुवनेश्वर स्तोत्र सोमकीर्ति कत है। ५४६. गुटका नं०४८-पत्र संख्या-३४ | साइज-६x४ची भाषा-संस्कृत हिन्दी। लेखन कालसं. १८६: अपार खुदी है । पूर्ण। त्रिशेष-ऋषि मंडल स्तोत्र तथा अन्य पाठ है । ५५०. गुटका नं. ४-पत्र संख्या-२४ से ६०, १७२ से २१२ । साहज-५४३ संस्कृत । लेखन काल-x। अपूर्ण । अ | भाषा विशेष-पंचरतोष, पद्मावतीस्तोत्र, तस्त्रार्थसूत्र, पंचपरमेठीस्तोत्र एवं वज्रपंजररतोत्र (अपूर्ण) प्रादि हैं। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ ] काल -X | अपूर्ण । विशेष- स्तोत्र श्रादि का संग्रह हैं । ५५२. गुटका नं० ५९ - पत्र संख्या २६ । साइज - ५X३ | भाषा-संस्कृत विषय संमह । लेखन काल -X | अपू । पूर्ण [ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ५१. गुटका ४०-२४ से २१० | साइज -६९४ इम । भाषा - हिन्दी संस्कृत | लेखन विशेष- स्तोत्र श्रादि का संग्रह हैं। ५५५. गुटका नं० ५४ - पत्र संख्या -६-२०४ | साइज - १३४ च । माषा-संस्कृत-हिन्दी लेखन काल - X | श्रपूर्ण । श्रपूर्ण । विशेष - स्तोत्र यादि के संग्रह है गुटके के अधिकांश पत्र खाली हैं । ५५३. गुटका नं० ५२ – पत्र संख्या - ४० | साइज - ७९४ इञ्च | भाषा - हिन्दी । लेखन काल -X | पूर्ण | विशेष – गुटका जल्दी में लिखा गया है। कोई उल्लेखनीय पाय नहीं हैं । ५४४. गुटका नं० ५३ - पत्र संख्या- ६ । साइज - ७४४३ इव । माषा-संस्कृत लेखन काल -x | विशेष – आरम्भ में स्वर्ग लोक का वर्णन हैं और पीछे तत्वार्थ सूत्र के सूत्रों की हिन्दी टीका है। कोई उल्लेख नीय सामग्री नहीं है। पूर्ण । ५५६. गुटका नं ५५ - पत्र संख्या - २० | साइज - ४४३ इ । भाषा-संस्कृत । लेखन काल - X । विशेष - मक्काभर, पार्श्वनाथ, लक्ष्मीस्तोत्र यादि है । ५५७ गुटका नं० ५६ - पत्र संख्या- साइज ७५ ] माषा-संस्कृत । लेखन काल - सं०] १६२३| विशेष - सामान्य पाठ संग्रह है। ५५८. गुटका नं० ५७ – पत्र संख्या - ३-४६ । साइज - ७८४ इस भाषा - हिन्दी | विषय - संग्रह लेखन काल - सं० १९२३ । वपूर्ण विशेष – उल्लेखनीय पाठ नहीं है । ५५६. गुटका नं० ५ पत्र संख्या - ० | साइज-३६ हम | भाषा - हिन्दी । लेखन काल -x पूर्ण एवं जी । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ] [२७४ विशेष-अक्षर घसीट होने पढने में नहीं पाते हैं। च । भाषा-संस्कृत, हिन्दी । विशेष ५६०, गुटका नं०५६-पत्र संख्या-- से ।। साइज-६३४ लेखन काल-x। पूर्ण | विशेष-निम्न पाठ हैंविषय-सूची कर्चा का नाम भाषा चौबीस तीर्थकर पूजा संस्कृत सरस्वती जयमाल प्रकृतिम जयमाल परमज्योतिस्तोत्र बनारसीदास हिन्दी भक्तामरस्तोत्र मानतुगाचार्य संस्कृत ५६१. गुटका नं०६०-पत्र संख्या से ३८ । साज-v४५ हेव। भाषा-हिन्दी। विषय-कथा । लेखन काल-X । अपूर्ण । विशेष—हितोपदेश की कथाएं हैं । ५६२. गुटका नं०६१-पत्र संख्या-१०३ साइज-६४५ इन। माषा-हिन्दी लेखन काल-x| अपूर्ण। विशेष--पूजाओं तथा स्तोत्रों का संग्रह है। ५६३. गुटका ने० ६२-पत्र संख्या-१ । साहज-६४६ इञ्च । भाषा-हिन्दी। लेखन काल-सं. १७५४ ! अपूर्ण । विशेष-१ से १६ एवं १० से धागे के पत्र नहीं है । मिन विषयों का संग्रह है। विषय-सूची वर्ता का नाम भाषा भट्टारक पावली कृष्णदास का रासो पर्वत पारणी को रासो बीच रासो भवान्न कवित विशेष १. का. सं. १७३३ र.का. सं. १७४६ ले. का. १७५२ ते. का.सं. १७१४ " " ५६४. गुटका नं. ६३--पत्र संख्या-६० से १२ | साइज-७४५ पाल-सं० १७६० भाष सुदी १५ । अपूर्ण । च । माषा-1हन्दी। लेखन Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] गुटके एवं संग्रह प्रन्थ (१) तृहरि को वार्ता — पत्र संख्या ६० से ७८ | भाषा - हिन्दी गद्य लेखन काल सं १७६० मात्र सुदी १५ | अपूर्ण अन्तिम पाठ — भरथरी जी गोरखनाथजी का दरसण नैं चलता रक्षा | प्रथां को मात्र सारो देखी करि वकत चीत हुयो | सारी जगत की सुख । हैव ताको दुध । श्रीणी पराजमन मो देखता और सुना मंडल में चित बीओ इति भरथरी जी का बात संपूरण | पोथी मान स्त्रं चत्रभुज का बेटा की लिखी जैगम काइम बाचें जैजैराम । मी. माह हृदी ३३ सं० १७५० | (२) आसावरी को बात - पत्र सं०-८० से १२५ | भाषा - हिन्दी गंध 1 अपूर्ण । I 1 श्री साई नीमो । श्रवै श्रसाव की बात ऊतिपति वरण ववरणी जे है । ईतरा माँही राणी के पुत्र हुत्रों । नाम सीधुनीसरयो। उात्र हुबो जाति कर्म को | दान पुनि बाजा तो वाजवा लागा | नम्र मात्रै वृद्धाह घरिघरि हुवो 1 श्रावतै दीनि कन्या को जन्म हुवो। पंडित नाम श्रसवरी काव्यां । सिद्धि को वचन है । सोई नाम जनम को मंसिरयो । श्रासावरी देव अंग अच्छरा को श्री हुई तदि श्रासावरो वरस बहकी हुई । तदि पढ़िवानें बैठी । ५६५. गुटका नं. ६४ - पत्र संख्या १३ | साइज - ७३५ दम भाषा-संस्कृत | लेखन काल - X । पूर्णं । विशेष— निन्न स्तोत्रों का रूग्रह है विषाहार, एकीभाव एवं भूपालचतुविशति । ५६६. गुटका नं० ६५ पत्र संख्या ४५ साज-७५ इख भाषा - हिन्दी लेखन काल खं० १७७६ | अपूर्ण । विषय-सूची भान मन्जरी जानकी जन्म लीला सीता स्वयंवर लीला कर्त्ता का नाम नंददास बालवृन्द तुलसीदास श्रादिपाठ-गुर गणपति गिरजापति गौरी गिरा पति, सारद सेव सुकवि श्रुति संत सरल मति । हाथ जोडि करि विनय सकल सिर नाऊ', श्री रघुपतिवित्रा जथामति मंगल गाऊ ॥३१॥ शुभ दिन रच्यौ सुमंगल मंगल दाइक | सुनत अचन हिंए वससी देस सुहावन पावन वेद मोमि तिलक सम तिरहुत त्रिभुवन मानिये ||२|| रघुनाइक । वखानिये | भाषा हिन्दी 13 " विशेष श्रपूर्ण पूर्ण ले० का ० सं० १७७६ माघ सुदी ६ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ जानकी जन्म लोला--- श्रादि माग - श्री रघुवर गुर चरन मनाऊ', जानकी जनम पुमंगल गाऊ । काम रहित धर्म जग जोहै, देस विरोहित शन धरि सौहै ।। ता महि मिथुला पुरि सुहाई, मनउ म विधा छवि छाई ।।२।। शान्तिम पाठ-भये प्रगट भक्ति अनंत हित इग दया अमृत रस भरे । सफल मरनर मुनिन फैई है छिनहि सब कारिज सरे ।।३।। मैं देवि दानि सिरोमने करि, दया यह वर दीजिये। सदा अपने चरनदास के दास हम कहूँ कीजिये ||४|| ॥ इति श्री जातुनी जनम लीला स्वामी धारनवन्दजी कृत संपूरन माह सुदी ६ संवत् १७७६ ५६७. गुटका नं०६६-पत्र संख्या-८० | सःज-xk! इज | माषा-हिन्दी । लेखन काल-स. २. ३४ पौष घुर्दा ३ । पूर्ण । विषय- सूची भाषा विशेष फरी का नाम महाराज जसवंतसिंह महाराजा रामसिंह भूषाभूषगा छवितरंग हिन्दी पप सं• २१. पद्य संE प्रारम्भ-अतुर कदन मोहन मदन वदन चंद रघुनंद 1 सिया सहित बसियो सन्नित, जग जय मय श्रानंद ।।।। यहाँ कवि फी शैति प्रधानता रिकै राम जू सौ बिज्य होत है । तात भाव धुनि । अरु प्रयम अनेक चरन अनेक पर फिरत है तातै किति धनुप्रास चंद रघुनेद यह यक । दोहा- श्रानंदित पं.दत जगत सुस्व भिक निव नंद । भाल चंद तुब जपत ही दूरि होत दुख बंद - 11 अन्तिम पाठ-परी परोसनि सौ अटक, घटक चहचही चाह । भरि मादों की चोमि को चंद निहारत नाह ||१३|| कछुक गुन योहान के, वरने और अनूप । असे ही सत्य सर्व प्रौरी लम्नौ अनूप || ४ || इति श्री महाराजा रामसिंहजी विरचिते छवितरंग संप्या । अप्रजाम कवि देव ११३१ গীখি লৰ্যৰ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८०] [ गुट के एवं संग्रह ग्रन्थ ५६८. गुटका नं०६७-पत्र संख्या-५ से ११३ | साइज-६xइष | भाषा-हिन्दी लेखन काल-x अपूर्ण। विषय-सूची का का नाम भाषा कुदालीला वर्णन पत्र ५-१७ होली वर्णन बारहमासा पत्र सं. ७४७ स्फुट पद पत्र ७८ से ११३ ५६६, गुटका नं०६८-पत्र संख्या-२३ । साइज-६x४ च । माषा-हिन्दी । लेखन काल- । पूर्ण । विषय-सूची कर्ता का नाम माषा विशेष पीपाजी की पत्रावलि हिन्दी घु चरित सुखदेव विनति पद्मावती कथा ५७०. गुटका नं. ६१-पत्र संख्या-२४ । साइज-५३४४ इन | माषा-हिन्दी। लेखन काल-x। पूर्ण । विशेष-निम्न रचना हैकल्मष कुठार-राममंद्र हिन्दी । मध्यम भान-करनी हो सो कीजियो करनी की कछु दोर। मो कानी जिन देखियो तो करनी की ओर || २१ ॥ मोसी करनी कुटिल जग तो सो तारक ताज । यही मरोसो मोहि तो सरन गहे की लाज !॥ २२ ॥ इति श्रीमत् काम्वनस्थ माधुल सगोत्रोत्पन्न गणेश मट्टामज रामभद्र भट्टन... .. ................ विरचिते कल्मषकुठार प्रथ संपूर्ण ।। ४१. गुटका नं०७०-पत्र संख्या-५ | साइज-५४४ ५ । माषा-हिन्दी । लेखन काल-४ : अपूर्ण । विशेष-सराज नामक मथ हैं। ५७२, गटका नं०७१-पत्र संख्या-५ | साइज-६x४५श्व | भाषा-हिन्दी लेखन काल-सं० ११२ चैत्र वदी १२ । पूर्ण । पद्य संख्या-२५ । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ] विशेष-गुटके में नंदराम पीसी दी है । रचना सं० १७४४ अथ नंदराम पच्चीसी लिस्बते । [ २८१ दोहा-नपति को ज मनाय हरि, रितु सिद्ध के हेतु 1 बाद वादनी मात तु, सम अछिर बहु देत ॥ कछु कल्यो हु चाहत इ, तुम्हार पुनि प्रताप | ताहि सरया एख उपजे, दया को अब पाप ।। २ ।। अन्तिम प द खंडेसात अंगावति को नासी । मुत बलिराम गोत हैं रावत मत हैं कृष्ण उपासी ।। २.४ || संवत् सतरासै चबाला कातिक चन्द्र प्रकासा । भदराम कछु.. ... ... ... ............... । कली व्योहार पचीसी वरनी जथा जोग मति तेगी । कलजुग की ज बानगी एहै हैं और रासी बहुतेरी ।। राखे राम नाम या कलि मैं नंद दासा । नंदराम तुम सरने धागो गायो अजब तमासा || २ || इति श्री नंदराम पच्चीसी संपूर्ण | संवत् १३५२ चैन बुद्ध १२ । ५७३. गुटका नं०७२-पत्र संख्या-१६। सास-६x४ हव। भाषा-हिन्दी लेखन काल-x। अपूर्ण । विशेष- हिन्दी के वित्त है। ५७४. गुटका नं. ४३ पत्र संख्या-११-०१३ ॥ साइज-ix बाल-x यपूर्ण । दम । भाषा-हि-दी। लेखन विशेष--श्य रूप से निम्न पाठ हैं कर्ता का नाम माषा विशेष ले.का. सं. १८२५ हिन्दी भाधरायमत चतुजदास सनारसौदास विषय-सूची श्रीपाल राम मधु मालती कथा गोसन बचन बय लक्षण शिव पचीसी भवसिन्धु चनुर्दशी बानपच्चीसी Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] तेरह काठिया स्थान बतीसो अध्यात्म मतली सूक्तिमुक्तावली बनारसीदास " 77 "" मधुमालती का प्रथम- मरवीर चित नया वर पाउ, संकर पूत गणपत मनाऊं । चातुर हेत सहत रिझाउ, सरस मालती मनोहर गाऊं || १ || चन्द्रसेन जिहां सु नेरेसा । मानू भंदर रची मखा ॥ २ ॥ चौरासी मोहटा चोवार लीलावती ललित ऐक देता, सुभग यामिनी ही गगन प्रवेशा बहपुर नगर जोजन चार अति विविध दीमे नरनार मातृ | दोहा कायथ मैगमा कूल गई, नाबा त म राम भए । तनय चतुभुज तास के, कथा प्रकासीताम ॥ ६३॥ वधू दी दई काम प्रबंध प्रश्छल । कवियन सु' कर जोर करिं, कहत चतुर्भुज दास | ८६४ १ कामप्रबंधक पुनी माती दिवास । हिन्दी प्रदुमनी का खाला है, करत चतुर्भुजदास ॥ ८६५ ॥ बनावरति में चंबल, रस में एक संत । कथा मध्य मधु मालती त्रुट् रति अधि बसंत ॥ ८६ ॥ लता मध्या पतंग लता, सो वन में धनसार । कथा में मधु माखती, भूषण में हार ॥ ६७ ॥ " मध्य भागवती निस मनिंदा, ठानामध समोसा में सांई ताख परंतर चवर न कोई 3 ठार मांहि पुलंदर नर मम मोड़े ॥ ४४ ॥ जात मंत्र मह कन्या सुन्दर वर रूपरेख तसु नाम सौ जा देखे सुर अन्तिमबाट हम है काम अब अवतारी, इहैव कहे सोनी को न्यारी। जैसे कही मधु नृप समझायो, राजा सुनत नहीत सुख पायो ॥ रोज पाट मधुक सब दीनों, चन्द्रसेन राजा तप तीनों । राजपत्रिय बोहत होई, उनकी कथा लख ही कोई ॥ ६२ ॥ 22 13 [ गुटके एवं संग्रह प्रन्थ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८३ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ] राजनीत कीया मैं माखी, पंचाख्यान बुध ईहाँ भाषी । चरना ऐका चातरी बनायी, थोरी भोरी सबहु आई ।। ८६८ ॥ पुनि बसंत राज रस गापो, धाम ईश्वर का मद झायो । ताका ऐड बिलावसतारो, रसिकमि स्सक श्रवन सुखकारी || ८६६ ॥ रसिक होग सो रस कू चाहे, अन्याम प्रातम अबगाहे । नातुर परष होई है जोई कहे कला प समझ मोई !| ८७० । किसन देव को कवर कहावें, प्रदुमन काम अंस मधु गावें । पुत्र कात्र सब सुख पावै, दुख दालिद रोग नहीं प्रावै ॥ ८.१ ॥ दोहा - राजा पढे ही गज नीत, मिंग प? ताही वधू । कामो काम बिलास रस, ग्यानी तान सरूप ॥ ८७३ ॥ संपूरन मधु मालती, कलस भगो संपूणा । सुरता वक्ता सबन कू', मुख दायक दुःख दूर ॥ ८७४ || कैसर के पति सामजी, तीण उपगार माहाराजै । कनक वदनी कामनी, ते पानी में भाजै ॥ ८७५ ।। ॥ इति श्री मधु मालती की कथा संपूर्ण ॥ फागुग; बुदी ७ मंगलबार संवत् १८२५ का दसकत नन्दराम सेठी का । ७५. गुटका न०७४-पत्र संख्या-३४ | साइज-७४४ इश्व | भाषा-हिन्दी लेखन काल-से. १८७३ पूर्ण। विशेष – नन्ददास त मानपजरी है। यच संख्या-२८६ है । प्रारम्भ-तं नमामि पदम पाम गुरु कृष्ण कमन दल नैन । जग कारण, करुवार्णव गोकुल जाको औन ।। नाम रूप गुण मेद लहि प्रगरत सब ही वोर । ता दिन तहाँ जान कछु कहे तु अति व बोर ।। अन्तिम पाठसुमन नाम-जुगल जुग्म जुग दय दूष उभया मिथुन विविवीप | जुगल किशोर सदा बसई नंददास के द्वीप |८|| रस नाम-सरन्य मधु पुनि पुष्प रस कुस्म सार मकरं। रस के जाननहार जन सुनियें है अानंद ||८८ ॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४] [गुट के एवं संग्रह प्रन्य माला नाम-मालाकज गुणवती यह हनान की दाम । जो नर कंठ कर सुनै है है छवि को दाम ॥२ ॥ इति श्री मारमंजरी नंददारा कृत संपूर्ण । संचन १८७३ मंगसिर वुदी १३ दोतवार । ५७६. गुटका नं०७५.--पत्र संख्या-६० : साइज-६x४५ च । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x| पूरी। अशुद्ध । विशेष - साधु कवि की रचनायों का संग्रह है । चरणदास को गुरू के रूप में कितने ही स्थानों पर स्म३० किया है। कोई उल्लेखनीय सामग्री नहीं है । प्रति अशुद्ध है । ५७७. गुटका नं०७६-पत्र संख्या-२४ से १८ साइज-४३१ञ्च | भाषा-हिन्दी लेखन काल-XI अपूर्ण विशेष-विविध पाठों का संग्रह है। १७८. गुटका नं०७७ - पत्र संख्या-६३ । ।ज-६४६ इञ्च । माषा-हिन्दी संस्कृत । लेखन काल-x पूर्ण। विशेष-निम्न पाओं का संग्रह है। ५स अलेरा, मुनि श्रहार लेता के पाच प्ररथ, मनुष्य राशि भेद, मुमेरु गिरि प्रमाण, जम्बू दीपका वर्णन, शील प्रमाद के भेद, जीन का भेद, अदाई द्वीप में मनुष्य राशि, अप्ट कर्म प्रकृति, विवाह विधि आदि । ५७६. गुटका नं०७९---पत्र संख्या-१८ से २०४ । साइज--४४४ ६४ : भाषा-हिन्दी 1 विषयसंग्रह । लेखन काल-सं० १७.४ फागुण बुदी ६ | अपूर्ण । (१) श्री धू चरित-हिन्दी । लेखन काल- ० १७१६ कामुग्ण बुदी । श्रन्तिम पाठ-राजा प्रजा पुत्र समाना, संकट दुखीनदीसे अांना । राजनीति राजा जु दोचार, स्वामी धरम प्रजापति पाने । चक्र दरशन रझ्या करई, भाग्य मंग करस सिर हरई । तात सबको श्राग्या कारी, चक्र सुदर्शन को डर मारी || असी विधि करें धृ राज, हरि क्रिया सरै मन काजू । घर में बन, वन में घर माई, अंतर नाही राम दहाई ।।३।। पानी तेल गिल पुनि न्यारौ, यो धू वरतो राम पीयारी । परवनि पत्र मिले नहीं पानी, येहि विधि परत दास की रानी ॥६॥ उली मौल चले जल माही, यो हरि मगत मिलन हरि जाहि । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८ गुरके एर्य संग्रह प्रभ जैसे सीप समद से ज्याग, स्वाति बुद बरर्षे मुय मारी ७|| जैसे चंद कमोड निभावै, जल में असे पर प्रेम पदार्थ । जैसे कंबल नर ते प्यारो, जैसी विधि 5 पीयारो ॥८ जैसे कनिक में काई लाने, अनि दीका ते काती जानें । सुत लपेटि ग्रीन में दं, मोहरे की सत्या नही छीजै ||६|| धू चरित जे को भने, मन वध कम चित लान । हरिपुरन सक कामना, भक्ति पुति कस पाय ।।१०॥ ममृधा सत्र कामद करू', सास्ता लिखु अनाय । अनिशि कीमिये, मान समाय || मैं जानी मति प्रापनी, फलिप कही कछु घात । प्रकसतत अपराध को, जन गोपाल पित मात ॥१९॥ इति श्री धू वस्ति संपूरय समापसा । () भक्ति भावती-भक्तिभाव) हिन्दी पारम्भ-सव सेतन को नाथ माथा, जाप्रसाद त भयो सुनाथा । भत्र जल पार गयौ की छाहै, तो संत नरन रज सांस नदात्रै ॥२॥ जे. नारायण यंतरजामी, सब की दुधि प्रकासक स्वामी ! तुम वाणी मैं प्रगटो थाई, निर्वति. पस्नति देह भताई ।। दोहा---पर्म हंस प्रास्तादित चस्न, ... ... .. केवल मकरंद। नमो ........" सामानंद नमो धनत्तानंद १३॥ में प्रवृति को दुख नहिं जाने, तो निवृति भी क्यों मनमाने । कलि अायान भी विस्तारा, पुरचा ""."मही संचारा ||४|| अन्तिम-भगति मावती बाकी नरमा, दुख खंडन सम सुख विसराभा । सीखें सुपर करें विचारा, तो कलि कुसम्मल को न रूयौ कारा || २७५ ॥॥ मलप सब नाही जाय केला, म सुख पाच चारै जेला || योहा---जो बहू गुम त मति लहें डू पंदित वुभै होई । सो सच याही . लहैं . निकै सोथै कोय ।। २७६ ।। चौपई --हारिका का बल्ला जो पावं, ले माती आगे गुमरान । मली दुरी लेहि पिछांनी, गौ तुम श्रम में यह पानी ॥ २७७ ॥ श्रम बहैबो कहा ते काई, अपणो फल से श्रागे धरई । जैसी क्रिफा. तुम मोस्यू कीन्ही, तैसी मैं बायी कहि दी हो।। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २=६] पूर्ण पूर्ण संवत् सोहले नवासे मथुरापुरी बेसमा थाले । असुन पहल ग्यारसि रविवारी, तहा पट पर मोहि विस्तारी || २७१ || करि जागर प्रकमा दोनी, पी। शु भगत समेत संतोको सोई, ज्यों वो तद वचन सेन के सुख होई ॥ २=० || दोहा - नम राम रामनंदा, नमहं अनंतानंद | अपूर्ण चरन कंवल रज सिर धरै, पर नगै सानंद ॥ २८१ ॥ (३) राजा बंद की कथा-पं फूरो पत्र संस्था- २३१-२०४ | माश-हिन्दी रचना काल सं० १६३ फागुण सुदी २ | विशेष – राजा चंद श्राभानेरी की कथा है। चन्दन मलयगिरी कथा भी इसका दूसरा नाम है । ५५०. गुटका नं० ७६२ २२ साइज ६४ भाषा - हिन्दी ॥ इति श्री भगति भावती च समाप्ता ॥ विशेष चरनदान त सतगुरु महिमा है: प्रथम अन्तिम पत्र नहीं है. प्रारम्भ [ गुटके एवं संमह मन्य सुख देव जी पूरन विसवा वीस | परम हंस तारन तरन गुरु देवन गुरु देवा | अन वानी दीजिए सहजो पावे मेवा । नमो नमो गुर देवन देवा ॥ लेखन का X | ५१. गुटका नं० ८०-११ संख्या ३० साइज इम भाषा-हिन्दी लेखन काल - x 1 विशेष तीर्थंकरों के माता, पिता, गवधर, वंश नाम आदि का परिचय, नन्दीश्वर तथा जीव धादि के भेदों का वर्णन किया गया है। ५२. गुटका नं० ८१ पत्र संख्या २६५ भाषा-हिन्दी लेखन काल- पूर्ण 1 विशेष - पंचमंगल, सिद्धपूजा - सोलह कारण, दशलक्षण, पंचमेरु पूजा प्रादि का संग्रह है। ५६२. गुटका नं० २०११०२६x४ भाषाशात हिन्दी का X Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ] [२८७ विशेष-थाचार्य कुन्दकुन्द कृत रामयसार गाथा मात्र है, अहबल विचार श्रादि पाठों का संग्रह हैं। १४. गुटका नं.३ – पत्र संख्या-३३-१७ | साइज-६x४ च । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-xi षपूर्ण विशेष –नपानमा सीमा में हिन्दी के २४, १० हैं लेकिन वे कहीं २ अपूर्ण है। ५८५. गुटका नं.८४-पत्र संख्या-४० । साइन-७४४३ इन्न । साषा-हिन्दी । लेखन काल-x | अपूर्ण। विशेष-गुटके में कोई उल्लेखनीय पाठ नहीं है। ५८६. गुटका नं.८५-पत्र संख्या-८५ । साइज-६४४ इव । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X । पूर्ण । विशेष---शीलकथा-(भारामल्ल,) लावरी तथा समाधिमरण भाषा का संग्रह है । ५८७. गुदका नं.८६-पत्र संख्या -२२ । साइन-1X४ च 1 माषा-हिन्दी । लेखन काल-X| अपूर्ण विशेष-विभिन्न चक्र दिये हुए हैं जो भिन्न २ कार्य पृश्या से सम्बन्धित हैं। आगे उनके अलग ३ फल लखे हुए हैं। ५८८. गुटका नं. ८७–पत्र संख्या-१० | साइज-६३४४६ इन्न । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-- । अर्ण । विशेष-मोह मदन कथा है । रचना काल-सं० १७६३ कार्तिक कुदी १२ है । जीर्ण तथा प्रशुद्ध प्रति है । ५८१, गुटका नं. ८८-पत्र संख्या-१४६ | साइज-४५ च । भाषा-संस्कृत-हिन्दी। लखन काल-xt विशेष-मलामरस्तोत्र, सिद्धपियस्तात्र, पारश्व नायलोन (पदाप्रम), विषापद्वारस्तोत्र, परमज्योतिस्तात्र, आयुर्वेदिक नुससे, रत्नत्रय पूजा प्रादि पाठों का संग्रह है। बीसा यंघ भी है जो निम्न प्रकार है Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ ], [ गुट के एवं संग्रह मन्च ५६०, गुटका नं. ८६-पत्र संख्या-६१ से १७१ | साइज-x३ म। भाषा-संस्कृत। लेखन काल-x। अपूर्ण। विशेष - नालामालिनीस्तोत्र, चक्र श्वसंस्तोत्र, शनाधस्तोत्र, क्षेत्रपालस्तोत्र. परमानंदतोत्र, लक्ष्मी-- स्तोत्र, चैतन वस्तोत्र, शांति कर स्तोत्र-(प्राकृतो, चिन्तामणि स्तोत्र, पुण्डरीकस्तोत्र, मयस्स्तोत्र, उपसर्गहरस्तोत्र, सामायिक पाठ, जिन सहस्र नाम स्तोत्र आदि स्तोत्रों का संग्रह है। ५६१. गुटका तं०६५-पत्र संख्या-६८ | साइज-kx३ इभ । माषा-संस्कृत । लेखन काल-सं. २५६ | पूर्ण। विशेष-निन्न संग्रह हैं:न्हवण, सकलीकरणविधान, पुण्याहवाचन और याग मंथल । ५६२. गटका नं०११-पत्र संख्या-६.१ साइज-५४४ इच: भाषा-संस्थत। लेखन काल-x विशेष-सामाव्य पाठों का संग्रह हैं। ५६३. गुटका नं०६२--पत्र संख्या-७१ । साइज-५४४ 11 माषा-संस्कृत | लेखन काल-x | अपूर्ण । विशेष-अधिकांशतः नन्ददास के हिन्दी पदों का संग्रह है। कुल पद सूरदास के मी हैं। राधाकृष्ण से संबंधिता पद हैं। पदों की संख्या १५० से अधिक है। ५६४. गुटका नं०.६३-पत्र संख्या-१६१ । साइज-५४४ हस। भाषा-हिन्दी लेखन-काल१७६३ वैसास्त्र सुदी २ । पूर्ण । विशेष-- नेमीश्वररास, श्रीपालसस ( ब्रह्मरायमल्ल ) है। ५६५. गुटका नं.६४-पत्र संख्या-२३ से १४ | साइज-*६x४ रन । भाषा-हिन्दी । लेखना काल-x 1 अपूर्ण । विशेष-हिन्दी पदों क्न संग्रह है। ५६६. गुटका नं. ६५-पत्र संख्या-१४० | साइज-४६x६३ मः | भाषा-संस्कृत । लेखन काल-*1. प्रपूर्ण। विशेष-ज्योतिष शास्त्र से संबंध रखने वाले पाठ है। ५६७. गुटका नं०६६-पत्र संरम्पा-२४ । सारज-३४४ । भाषा-हिन्दी । लेखन काश-* अपर्या। विशेष-पदों का संग्रह है। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके गवं संग्रह मन्थ ) [२८ ५EC. गुटका नं०६७-पत्र संख्या-२७१ । साइज-४४ इन्च | भाषा-हिन्दी लेखन काल-x! अपूर्ण एवं जीर्ण । विशेष -२ गुटकों का सम्मिश्रा है । मुख्यतः निम्न पाठों का संग्रह है। विषय-सूची की का नाम (१) शालिभद्र चौपई जिनराज यूरि हिन्दी भाषा विशेष १० का० सं० १६७ यासोज बुदी ६ प्रारम्भ-सासण नापक समरियई, वडूमान जिनचंद । अभित्र विधन दुरई हरह, आपा परमानंद ||२|| अन्तिम पाठ-साधु चरित कहवा मन तरसर, तिणए मास्यउ हरसहजी । सोलह सय ठित्तरि वरसइ, बासू षदि छठि दिवसाजी ॥ सा: जिनसिंह सूरि मतिसार भबियण नद उपगारद जी । श्री जिनराज वचन अनुसारइ, चरित कचद रु बिचारहजी || इणि परिसायु तणा गृण गावा, जे भत्रियण मन भावइजी । अलिप विधन तस दुरि पुलावइ मन बंछित सुख पावजी ॥१०॥ ॥ संबंध मधिक जे भणिस्थइ, एक मना सांभलिस्वरजी । दुख दुह गतस दृरि गयावस्यर, मनि पंछित फल सहिस्सह जी ॥११॥ (२) शीतलनाथ स्तवन धनराजजी के शिन्य हरखचंद हिन्दी ( ३ ) पार्श्व स्तोत्र २० का० सं.१७ कार्तिक मुदी र कासं कार्तिक सुदी। १० का सं० १७१३ २० का.सं. १७५८ २० का.स.१७४ धनराज ( ४ ) नेमिनाय स्तोत्र * ) पदसंग्रह (६) नेमिनाथ स्तवन (७) चिन्तामणि जन्मोत्पत्ति जन्मोत्सव स्वध्याय (८) गणनायक खेमकरण जन्मो:पत्ति धर्म सिंह पूरि २० का.सं. १ माघ सुदी १.का.सं. १७६६ (E) पुण्यसार कथा (पुण्यकीर्ति) माम्म-नाभि राय नंदन नमु', मांति नेमि जिन पाशि । महावीर उनीसमर्ड प्रयम्बा पुरह श्रास || Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] श्री गौतम गणधर सदा, लीखा लब्धि निधान । समरी सह गुर सरस्वती, वेविष वधारइ वान ||२| अन्तिम पत्र - खरतर गध मति महिय विरजिउ, युग प्रधान जिनवंद श्राचारज मिहमागिर मुनि वरुए, श्री बिनसिंह गुरंद ||२०० ॥ हर्षचंद्र गणि हर्ष हितकरू, वाचक हंस प्रमोद तास सीस पून्यकीरत इम भाथइ, मन घर श्रक प्रमोद || १ || संवत् सोलह सास समछ विजय दसमी गुरुवार | सांगानेर नगर रलिया मराउ, पभण्यउ एर विचार ||२|| पद्मम जिन सुपसा उलउ, दोष दोह गत जा दिन उदय मुद्री माउ, सुख संपद संतान !! रे ॥ एह चरित्र भवियन जे सांभलइ दुख दोह गवसु जाइ दोन उदय श्रकउ न तरुवर, तसंचरन बनि धया ||४|| इति श्रष्ट प्रवचन माता उपर पुण्यसार कथा संपूर्ण । (१०) सीमंधर स्वामी जिन स्तुति (११) छः जीव कथा विशेष-- ६५ पथ के आये पत्र किसी के द्वारा फड दिए गये हैं। (१२) श्रावक सूत्र ( प्रतिक्रमण ) (१३) श्रतिचार वर्णन (१४) नेम गीत (१५) स्तवन (१३) सीमंधर रचन (१५) चउर परिकर या (१८) भक्तामर स्तोत्र (११) नवत (२०) नेमिराजुल स्तवन (२१) ने राजुल गीत (२२) सुभद्रा भाष (२३) विजय सेठ विजया संदार्थी सभाग (२४) पद-करिअरिहंतनी चाकरी लब्धिविजय गणिलाल चंद जिन हर्ष 1 │! सूरकीर्ति जिनवल्लभ.. "3 हिन्दी 33 हिन्दी 73 93 13 Tr 75 " " 37 23 त [ गुटके एवं संग्रह प्रन्थ विशेष । ।।।। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट एवं संग्रह प्रस्थ ? (२४) सझाय (२६) पेनाख्यान पंचतंत्र ) प्रारम्भ प्रथम अ अरिहंत, अंग द्वादश ज् मार — गणधर संत, नमो प्रति गयधर तिसतर || नमो गणेश सारदा भवर गुरू गीत्तम स्वामी | तीर्थकर चौबीस सकल मुनि भए शिवगामी || नमो व्याति भाषक सकल सहाय भविक सम तुम्हरे प्रसाद यह उच्च पंचतंत्र की पंचरूयान बखानि हो न्याय नीति संसार | —— बुद्धि भाषा चुरू अन्य विस्तार ||१|| मिपाठ एवं नाम निज होस्दै घरे मुख से मिट वचन उच । कवि निर्मला सब जिय, सुख्ख सपने थान, सदा कहे निज मन में ग्यान | दोहा—सम निज थानक सुख लहैं, सब मुख समरे राम । सहस किरत भाषा कियो आवक निरमल नाम || (२७) सात व्यसन सिकाय (२८) ज्ञान पच्चीसी (२३) तमाखु गौत (३०) नल दमयन्ती चीप (११) शांति नाथ स्तजन ३१ पार्श्वनाथ स्तवन इति श्री पचारूपान आवक निर्मल दास कृत भाषा संपूर्ण लेखन काल सं० १७५४ जेठ ३१ पत्र में है। तथा १९४१ प हैं। (३२) महावीर स्तवन (३१) राजमसी नो चिट्ठी (३४) नववाडी नो सिकाय (३५) शील (१६) दाम शील चौ (३७) प्रमादी गीत क्षेमकुशल सहक समयम्-दर केशव 27 विजयदेव मूरि जिनदत्त सूरि गोपालदास 11 हिन्दी २१ 35 " १० का० सं० १७२१ पथ सं० १० כ "" "3 39 ?? ?? [ २६१ ० ० ० १७८१ " पद्म सं० ७६ २०० सं० १७४२ २५ २ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ].. [ गुटके एवं अन्य संग्रह । समय सुन्दर गोपालदास । । (३६) म उपदेश गीत (३०) यादुरासो (४०) रात्रिभोजन समाय (४३) तमाखु गीत (४२) शांति नाथ स्तवन (४३) पंच सहेली । मुसि पाणंद गुण सागर घोहल यशःकीर्ति पुण्य रतन गणि २.का.सं.१५७५ फागण पुदी १५ , २० का० सं० १६८८ , ले० का०सं० १७४३ , ले. का० सं० १६३६ (४) माति छत्तीसी (४५) यादवरासा (४६) सिंहासन बत्तीसी (४७) नेमिराजमतिगीत (४८) मनिगीत (४९) भास (५०) सिंघासन बत्तीसी मनहरमा हरि कलश , २० का० सं० १७३६ , २० का०सं० १६३२ आसोज बुदी २ ५६६. गुटका नं -पत्र संख्या-१७४ । साइज-kxs इम्च । भाषा-हिन्दी । लेखन कालसं० १७१८ वैशाख सुदी । । पूर्ण । विशेष–पर्वतधर्मार्थी कृत समाधितंत्र की पाल बोध टीका है । प्रति जीणं है । ६००, गुटका नं०६-पत्र संख्या-१४६ साज-10x1: इन। भाषा-संस्कृत । लेखन कालसं. १७६७ वैशास्त्र वुदी ३ | पूर्ण । विशेष-निम्न पार्टी का संग्रह है: -- विषय-सूची कर्ता का नाम গিঘন্স গাপ্তি । जिनसहस्रस्तवन नवग्रहपूजाविधान प्राषिमंडसस्तोत्र भूपाल चौबीसी मादित्यवार कथा सामायिक पाठ टीका सहित ।। भूपाल कवि भाउ कवि जयचंदजी बापडा १६ पध Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्य ] [२६३ ६०१. गुटका नं० १००-पत्र संख्या-२८ । साइन-१.x म । भाषा-प्राकृत-हिन्दी । लेखन कालसं. १७०६ वैशाख चुदी ११ । पूर्ण । विशेष-गुणचंद्र हरि के शिष्य बाब कल्याण कीर्ति ने प्रतिलिपि को धौ । त्रिभंगी का वर्गान हैं। ६०२. गुटका नं.१०१-- पत्र संख्या-१२२ । साइज-tx+ इ मावा-हिन्दी । लेखन काल-- । अपूर्ण । विशेष लक्ष्मीदास कृत श्रीशिक चरित्र है । भाषा-हिन्दी है । फूल पधों की संख्या १६७५ है, अन्तिम के कुछ पद्य नहीं है । अंगिक चरित्र के मूलफर्ता भ शुभचन्द्र हैं । ६०३. गुटका नं० १०२-पत्र संख्या-- ० | साइज-१०४५३ इञ्च । भाषा-हिन्दी । लेखन काससं० १६.४ । पूर्ण । विषय-सूची विशेष कर्ता का नाम भाषा संघपति सह डूगर श्री जेया सासण सकल मह गुर घिर दे राउर भाव 1 कुशल करि कुशल करि कुसल सरिद गुरू । कालक सरि जय जय भदा जय जय नदा वनिता वचन विकासइरे । ऋषि बीर बीर जी वरखे विस्चीया, श्रमिक मन माहि सोइ । मबिहार गीत करि शृंगार पहिर हार तजि विकार कामनी । जइतपद बेलि कनकसोन ० का सं० १६२५, ले० का सं० १६४८ भादवा दी TE पच हैं। । पारम्भ सरसति सामणि बीननु', पूझ दे अमृत वाणि । मूलपकी खातातणा, कस्स्यूि विरद वखान ||1|| श्रावक श्रात्री मिलि सुणउ मनि धरि अति पाणंद । चिति विष वादन को भरख, सावउ कहर मुनिद ।।२।। सोलह पचीसह समद, वाचक ६या मनांस । चउमासि श्राया श्रामरक, बहुरि करि मुजगीस ।।३।। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] [ मुटके एवं संग्रह ग्रन्थ रतनचंद्र बहरागि गणि, पंटित साधु कीरति । हरिरंग गुण श्रागल उ ज्ञानादेवी रति ॥४॥ अन्तिम पाठ-दया अमर माणिक गुरु सीस, साधु कोरति लहीय जगीस | मुनि कनक सोम इम याखइ चउ विह श्री संघ की साखद ।।४।। इति श्री जात पद वेति । संवत् १६४८ वर्षे अषाढ बंदी अष्टमी । (६) चूनडी साधुकीर्ति (माउलपरि सोहामणउ, गढ मद मन्दिर वाई हो) (७) मंजारी गीत जिनचन्द्र सूरि ग्राली गारउ उदिरउ, नित खेलइ प्रालि । (5) वरामी मौत (E) शील गीत भारवदास (१०) पद (११) दानशीलतपभावना सरसति स्वामिनि वीनवरदेई सारदा महहि हो। (१३) गोरी काली बाद (१३) श्रावक अतिक्रमण सूत्र प्राक्त (१४) पार्श्वनाथ नमस्कार बमयदेव (१५) रागरागिनी भेद, संगीत मेंद - १५) नेमिनाथ स्तवन प्रारम्भ- श्री सहगुरना पाय नमी, जिणवायगी पणमेति । नय भव नेमीसर सणा संषेपह पमणेतु । सील सिरोमगिग गुण निलउ, जादव कुल सिणगार । मुणता तेह तय उचरी, पामीजर मनपार ॥॥ अन्त- इय नेमि जिग्य जगीस गुरु, परम सिव लथी बरो। हरिबंस स्वीर समुद्र ससिहर सामि सह संपह को । उदाम काम कुरंग केसरि, सिवादेयि नंदणज ।। मह देहि नोय पर कमल सेवा, सयल जण श्रावणी ॥४३॥ . (१७) वेताल पच्चीसी देतालदास Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६५ गुटके गर्व संग्रह ग्रन्थ ] पारम्भ - सरसति सुललित वचन विलास, आपउ सेवक परह आरा । तुम्ह पसाइ हुइ वृद्धि विशाल, कविता रसके ,बउ रसाल । भहियल मालन देस विख्यात, बानी सोक बिसन नहीं बान । उजेणी नगरी सु विसाल, राज करइ विक्रम भूपाल H२|| अन्तिम-प्रगट हुई सर्व गिनि रिधि बहु बुधि नरेसर । परउ काज तुम्हि कार राज, जाम तथा दिगोसार || इंद्र दोधउ मान वली, बरदान इसी परि । ए प्रबंध तुम्ह तबउ प्रसिधि होसी जम मीतरि ।। रंराउ मुपसाउ लहि विकमाइत श्राव्या घाहि । उपजेण नगरि उछव हुय हरष करी अति विरतरिहि ३३६ ॥ राज रिधि सच सिधि मुजस त्रिस्तरइ महीतलि | जरा मरण अन्वहरण, जन्म लमा उत्तिम कुलि ।। धरम धराउ धरणा करण मुस्ख अहि निसि । रमन पिरंभा समय, तिजि माण हउ बसि ॥ निहु पदहि प्रथम अक्षर करी. जास नाम श्र प्रसिद्धि । तिणित कही कथा पंच बीसए सास पाचर विबुध ||३|| इति बनालपचीसी चउपई समाप्त । (१८) विक्रमप्रवन्ध राम विनयसम हिन्दी र का• सं. ३६४ पन है। प्रारम्भ-देव सरसति २ प्रथम पर्णवि, वीणा पुस्तक धारिंगी । चंद्र निसि सु प्रसंसि चल्ला कासमीरपुर वासिखी || देइ नाण अनाण पिल्लइ कवियानी माडली दिउ मुझ बुधि त्रिशाल । जिम विक्रम राजा तमाड़ कहाई प्रबन्ध साल | ३ मध्य भाग--विक्रमादित्य तेज धादित्य बोलइ बचन करते सत्य । बलि मागह मीनाथादेस खंभ नगरि करि वेग प्रवेश ॥२४॥ श्री जयकर्ण राय मेघर श्रीजीभि चडि साइस करे पेटी याग्धि वगि तिहां आम, राजा चाल्यु करि सम दाइ 1.- ४६ अन्तिम भाग-संवत पनरह सई त्रासीयइ, ए चरित्र निरणी हरि सीयड् । साहसीक जे होइ निसंकि, कायर कपड़ जे बलि रंकिं । Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । गुट के एवं संग्रह ग्रन्थ श्री उबएसगळ गण वर सूरि, चरया करण गुण किरण मयूर । रखा प्रणु गुणगण भूरि, ता अनुक्रमि जंपा सिद्ध सूरि ।।६७|| तेह नइ बाचक हर्ष समुद्र तम असु उजत षीर समुद्र । तम विनये विन या वृद्धि एह, रच्यु प्रबंधि निरषि तोह । पंच हंट नामा सचिरित्र, देखी हमउ पावि विचित्र । तिणि विनोद चउपई रसाल, कीथी सुणता सुख रसाल ||४६.६॥ RE) विधाविलास चउपई श्रासामुदर हिन्दी ३६४ पच। रचना काल सं० १९१६ प्रारम्भ-गीयम गयडर पाय नमी सरसति हियह धरेवि । विधा विलास नरवह ताउ, दरिय मणु संखेवि ॥१॥ जिभ जिम संभालिया अबधि पुण्य पवित्र चरित्र । तिम तिम परमाद इस अहनिसि विससइ चित्त ||२|| भण का कचंच सुयण जण राशिम भोग विलास । मन वंडित सुख संपंजा जसु हुय पुण्य प्रकाश ॥३॥ चउपई-पुण्य पसाई पाम्यउ राज, पुण्य प्रमाणि चळ्या सविकाज । धन धन विधा दिलासहचरी, तेहिय निसणउ अादर करी ॥४॥ मध्य माग-कालवती पुत्री ताउ पाणि ग्रहमा करत । तउमु तउ नरवइ सुग्णउ वाचा प्ररणहुत ॥६॥ अन्तिम पाठ-इण परि पूरठ पाली बाउ, देवलोकि बहुतउ नरराउ । खरतर मछि जिन वरदान सूरि, तासु सीस बहु पाणंद पूरि ॥ श्री प्राशासुदर वसु बज्झाय, मब रस कि प्रबंध सुमाव । संवत् पनरह सौल बरसेमि सच अयगिएविय सुरम्म ॥ विधा विलास नरिंद चरित, भविय लोय एह पवित्त । जे नर पड़ सुग्णद मामला, पुण्य प्रभाव मनोरथ फलाइ ॥३६४१] इति श्री विधा दिलाम चउपई। (२०) साठि संवत्सरी हिन्दी सं. १६४८ से सं० १६६० का वर्णन है । विषय-ज्योतिष । ६०४. गुटका नं० १०३–पत्र संख्या ५५ । साइज-७४५ इय । भाषा-हिन्दी । लेखन काम-x | पूर्ण विशेष -कमों की १५८ प्रकृतियों तथा चौबीस दंडकों का वर्णन है। Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह अन्य ] [ २६७ ६०५. गुटका नं० १०४ . पत्र संख्या - साइज-txt च । भाषा-संस्कृत । लेखन काल-x | पूर्ण विशेष-सकलीकरग्यविधान, हवनविधि, तथा पुजा संग्रह है। ६०६. गुटका नं: १०५-पत्र संख्या--१२० : साइज-५:४५३ इन्च | भाषा-हिन्दी संस्कृत । लेखन काल-X । पूर्ण । विशेष – नित्य नियम पूजायें अादि हैं। ६०७. गुटका नं० १०६-पत्र संख्या-- १ | सा-५Xइन । भाषा- संस्कृत । लेखन काल-X । विशेष पूजा संग्रह है। ६५८. गुटका नं० १०५-पत्र संख्या-२५५ । साहज-४:४६: रश्च । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल-४ | पूर्ण । विशे-पषजा पाउ सं मह है। ६०६. गुटका न०१०८-पत्र संख्या-२००। साइज-EXइन । भाषा-हिन्दी। विषय-सूची (१) यशावर चरित्र कला का नाम खुशालचंद (२) सप्तपरमस्थानकथा भाषा विशेष हिन्दी र का० ० १७१ १५ - पथ सं० ३ लेखनकाल सं०८६ पघसं. १२ सं०.३० पथ ४४ (३) मुकर सप्तमानतकथा (४) मेघमालावतकथा (५) चन्दनपत्रितकथा 14) लब्धिविधानत्रतकथा (७) जिनपूजापुरंदरकया (1) षोडशकारणवतकथा पचंद १८३० 1८३१ वैशाख पुदी ३ धानतराय (१०) रूपचंद की जम्वदी (१) मुकीमावस्तीत्रभाषा (१२) भक्तामरस्तोत्रभाषा (१३) कल्याणमंदिरभाषा (१८) शनिश्चर देव की कथा १८६४ जेठ सुदी १५ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ गुरुके एयं संग्रह अन्य १८७४ श्राषाढ सदी ४ माऊ हिन्दी (१६) घादित्यवार कथा १६) नेमिनाय चरित्र अजयराज . सं० ) पद्य संख्या - ०६४ । भाषा-हिन्दी | विषय-चरित्र । रचना कारन- १७१३ अषाट सुदी १३ । जम्बन कालनेत्र सुदी - 1 प्रारम्भ – श्री जिनवर बंदी सबे, ग्रादि अंत चवासै । शान पुजि गुण सारिखा, नमो त्रिभुवन का ईस ||२|| ताम नमि जिगर को बंदी बारंबार । तास चरित वस्त्राणिस्यो, दुल रधि अनुसार |॥२॥ म भाग-जो होइ वियोग तिहारी, निफरत है जनम हमागे । ताते संजम यध तजिए संसार तणां मुख मजिए॥ जल दिन मान जिव फिम मीन, तैसे तुम याबीन । तुम भाव दया की कीन्हा, सत्र जीम हुदाई जी । अन्तिम भाग -अजयराज इह कीयो वस्वाण, राज सवाई जयसिंह जाण । अंधावती सहरै सम धान, जिन भनि र जिम देव विमा ।। नीर निवाण सोहै वन राई, बेलि गुलाब चमेली जाई । चंपो मरव अरे संत्रति, यो हौ जाति नाना विध कीती ॥२५॥ बहु मेवा विधि सार, वरणत मोहि लामें बार । गट मन्दिर *लु क्यो न जाइ, सखिया लोग बसे अधिकाइ ॥ ५ ॥ ताम जिन मन्दिर इन सार, तहां विराज श्री नेमिकुमार । स्थाम मूर्ति सोभा अति घणी, ताकी वापमा जाइ ने गग) ।। ६.13 जाकै भाग उदै म होइ, करि दरसण हरचे भेट सोई । श्रात्रै जातै सरावग धगा, कार्ट कर्म स. अापण ॥२६॥ अनेराज तहाँ पूजा कराई, मन वच तन प्रति हस्थ धराई । निति प्रति बंद ते वारंवार, तारण तरग्य क. भन पार ।।५।। ताको चरित कहो मन अपणा बुधि साह उपआई । पंडित पुरुष हंसो मत्ति कोई, भुल चूक याम जो हाई ॥२६॥ संवत् सतरासें त्रैणवे, मास प्रसाद पाई वर्णयो। तिथि तेरस अथरी पाख, शुक्रवार शुभ उतिम दाख । इति श्री नेमिनाथजी की. चौपई संपूर्ण । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ REE गुट के एवं संग्रह पन्थ ] इह पोथी है साह की, पुड माल तसः नाम । मान महातमा लिपि करी, नगर थेवावती धाम || इसके अतिरिक्त चौवीस तीर्थकर स्तुति एवं कक्का बत्तीसी बादि पाठ और हैं। ६१०. गुटका नं० १०६-पत्र संख्या-१६४ । साइज-५१४४३ इच। भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x1 पूर्ण। विशेष-सुदर्शन रास -- पथ संख्या २०१ । लेखन कात्व -सं० १८०१ कार्तिक ९दा ८ । पूर्ण ! इसके अतिरिक्त १• और पाठ है । ६११. गुटका नं०११-पत्र संख्या १२० । साइज-६४५ इत्र । भाषा-हिन्दी । लेखन काले-४ । पूर्ण । विशेष-निम्न मुख्य पाठों का संग्रह है। कर्ता का नाम भाषा विशेष विषय सूची रंडागानीत शिवपच्चीसी समन शरणस्लोन पंचेन्द्रियवेलि बनारसीदास संस्कृत कुरसी बत्तीसी मनाम अंत में बहुतसी जन्मक ढलियां दी हुई हैं। ६१२. गुटका नं० १११-पत्र संख्या-५ से १०४ । साइज-६x४६ च । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-XI पूर्ण हिन्दी विषय-सूची जिनसहस्रनाम मावा एकीमावस्तोत्र-भाषा भक्तामरस्तोत्र कल्याणमन्दिरस्तोत्र फर्ता का नान भाषा बनारसीदास जगजीवन हेमराज बनारसीदास दीपचंद सेवा में जाय सोही सफल पर्छ। मेरे तो यह चात्र हैं निति दस्सख पाउं । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०.) [ गुट के एवं संग्रह प्रन्य कनककीर्ति अवगुनह बकसी नाथ मेरो । धानत समरण ही में त्यारो घानत प्रभु मचराम अखियां बाज पवित्र भई मेरी सोमा कही न जिनवर जाय जिनदर मूरति तेरी इस तरह के २२ पच और है । पेपन क्रिया पंचम काल का गरा भेद ब्रह्मगुलाल करमचंद ६१३. गुट का नं० ११२-पत्र संख्या-३० । साइज-६४४ ६६ । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-सं० १६ कार्तिक सुदी ११1 पूर्ण। विशेष-गुणविवक वार नियाणा है । ६१४. गुटका नं०११३-पत्र संख्या-६ । साइज-ix | भाषा-हिन्दी संस्मत । लेखन काल-x। पूर्ण। विशेष-संबोधपंचासिका भाषा, बारह भावना, एवं पंचपरमेथ्यिों के मूल गुण आदि का वर्णन है। ६१५. गुटका नं. ११४- पत्र संख्या-१४ । साइज़-2x4 इश्च । भाषा-हिन्दी संस्कृत । वन काल-~| अपूर्ण । विशेष – त्रेपन भायों का वर्णन, नरकों के दो है, मक्तामर आदि सामान्य पाठों का संभ्रह है। ६१६. गुटका नं. ११५-- पत्र संख्या-७ | साइज-६४५ वृश्च | भाषा-हिन्दी-मरूत | लेमन काल-x} पूर्ण । विशेष-नित्य नियम पूजा, चौबीसठाणा चर्चा, समायिक पाठ यादि का संग्रह हैं। ६१७. गुटका नं० ११६-पत्र संख्या-३ | साइज-२४४ इन्ज । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x पूर्ण। विशेष-निम पाठों का संग्रह है। की का नाम माषा विशेष विषय-सूची जिनकुशलसरि बंद स्ववन जिनकुशलमूरि Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ] [ ३०१ गंगाष्टक शंकनाचार्य मंस्कृत जिनसहस्रनाम जिनसेनाचार्य रंगनाथ स्तोत्र गोविन्दायक शंकराचार्य ६१८. गुटका नं० ११७-१८ संख्या-६६ । साइज-७४५३ इत्र । मापा-हिन्दी-संरकत । लेखन कवच-X । पूर्ण । निम्न संग्रह है: भाषा विशेष कती का नाम असय देव मारुत जिनबस्लम सूरि ४ हिन्दी विषय-सूची (१) पार्श्वनाथ नमस्कार (२) अजित शांति स्तोत्र (३) अजितशांति स्तवन () यह स्तोत्र (५) सर्वाधिटायिक स्तोत्र (६) जैनरक्षा स्तोत्र {.) मक्तामर स्तोत्र (= ) मध्यागामंदिर स्तोत्र (2) नमस्कार स्तोत्र (१०) वसुधारा स्तोत्र (११) पद्मावती च उपई (१२) शक स्तवन (१३) गोतरासा । । । । । जिनप्रभसूरि सिदिसेन दिवाकर बिनयमम १० का०सं०१४१२ ६१६, गुटका नं० ११५-पन संख्या २२० । साज-६३४४ इन्न । भाषा-हिन्दी । विषय-संग्रह । लेखन काल-X । अपूर्ण । विशेष-बीच २ में से पत्र काट लिये गये गये हैं। विषय-सूची की का नाम ____ भाषा विशेष (१) पीपाजी की चतुराई (२) नाग दमन कमा हिन्दी गय (कालिय नागी संवाद) (३) महाभारत कथा गद्य में ३३ अध्याय हैं ले• का० सं० १७८१ श्रासोज सुदी - ( ४ ) पद्मपुराण ( उत्तर खंड) - ले. का०सं० १७५२ श्रावण सुदी ३ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ गुटके एवं संग्रह अन्य ३०. पच है ३०२ ] (५) ग्वीराजलि पृथ्वीराज (कृप्य रूकमणी वेलि ) लेखन का. १७२ श्रावण सुदी १३ । हिन्दी गय टीका सहित है। ६२०, गटका ११-पत्र संख्या-१३ से ६६ | साज-४४४५। भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x | अपूर्ण। विशेष-हेमराज कृत भक्तामर स्तोत्र टीका है । प्रति जीर्ण है । ६२१. गुटका नं० १२०-पत्र संख्या-३४ । साइज-५४४ १४) भाषा-प्राकृत-संस्कृत । लेस्त्रन काल-X । पूर्ण एवं जीर्ण । विशेष-परमानन्द स्तोत्र, दर्शन पाठ, सहस्रनाम ( जिनसैन ), सकीकरण तपा द्रव्य संग्रह प्रादि पाठों का संग्रह है। संस्कृत ६२२. गुट का नं० १२१-पत्र संख्या-४० । साइज-५४४ इञ्च । भाषा-संस्कृत 1 लेखन काल -४ । पूर: विषय-सूची का का नाम মণি। विशेष रामस्तवन सनरकुमारसहिताया नारदोक्त श्रीरामस्तवराज संपूर्ण । यादित्यहृदय स्तोत्र भत्रियोत्तरपुराणे श्री कृप्याजुन संबादे । सप्तश्लोकी गीता चतुश्लोकोगीता कृपाकवर ६२३. गुटका नं० १२२-पत्र संख्या-११७ (साइज-४४४ इञ्च । भाषा-संस्कृत ! लेखन काल-x | पूर्ण । विशेष- तत्वार्थसूत्र, देवसिद्ध पूजा, लबु चाणक्य नीति शास्त्र आदि पाठों का संग्रह हैं। ६२४. गुटका नं० १२३-पत्र संख्या-६ . | साइज-६४४ इञ्च । माषा-संस्कृत । लेखन काल-X । पूर्ण । विशेष-यंत्र लिखने तथा उसके पूजने की दिनों की विधि दी हुई है। ६२५. गुटका नं०१२४-पत्र संख्या-१२५ । साइज-६x६ इन्न । भाषा-हिन्दी-संस्कृत। लेखन काल-x1पूर्ण। विशेष--मुख्य निम्न पाठों का संग्रह है। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३०३ भाषा विशेष हिन्दी २५ पध गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ] विषय-सूची कर्ता का नाम (१) संघ पच्चीसी चौबीस तीकरों के संघों के माधुओं यादि की संख्या का वर्णन है। (२) नाईस परीषह वर्णन (३) मांगीतुगी स्तवन यभयचन्द पूरि (४) सामायिक पाठ (6) भक्तामर स्तोत्र भाषा हेमराज (६) एकीभाव स्तोत्र भाषा (७) नेमजी का व्याह लो लालचंद (नव मंगल) विशेष-अलग २ नो मंगल हैं । अन्तिम पाठ निम्न प्रकार है:--- एरी इह संवत सुनहु रसालारी हां, एरी सतर से अधिक चवालारी हाँ । एरी भानु मुदि तीज उजारी री हो, परी तो कह दिन गीत सुधारी रोहा छ । रचन। काल सं० १५४० भादवा सुदी ३ इह गीत मंगल नेम जिनका, साहजादपुर में गाया। प्रश्रवाल गरग गोी अनक चूर कहाईया ।। पातिसाह बँठाठिक या च्योरा चक वैन बाईया । नौरंगस्थाह वली के वार लाल मंगल गाइया । () चरचा संग्रह विभिन्न चर्चाओं का संग्रह है। {) परमात्मा बत्तीसी भगवतीदास " रचना काल संवत् १७५० पद संग्रह ब्रह्म टोडर, विजयकीति, विश्वभूषण, नवलराम, जगतराम, पानतराय, खुशालचंद, मनककीर्ति, लालविनोद. प्रादि कवियों के हिन्दी पदों का संग्रह है। (१०) पंचपरमेटी चरचा (११) भक्तामर स्तोत्र भाषा - - ६२६. गुटका नं० १२५-पत्र संख्या-२ से ३३९ साइज-tx६ इन्च | भाषा-हिन्दी । लेखन कालसं० १७१२ ज्येष्ठ पुदी २ | अपूर्ण । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ ] [गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ विषय-सूची कर्ता का नाम माषा विशेष (१) गुनगंजनम हिन्दी ४२२ पयों की संख्या है। मारम्म के १०४ पच नहीं है । पथ सम्दर है खिपि विकत है। ले० सं० १७१२ जेठ सदी २ । (२) गर की पावनी पद्मनाभ १० का० सं० १५४ बावनी में १४ पद हैं | कवि ने प्रारम्भ और अन्त में अपना परिचय दे रखा है प्रति अशुद्ध है । लेखन काल अपार दी। बावनी के प्रत्येक पध में 'गर श्रीमाल को सम्बोधित किया गया है। सं ३ (३ विवेक चौपई नागुलाल (४) चेतन गीत जिनदास (५) मदनबद्ध चूराज २० का सं० १५ (६) बीहल का वावनी कोहल (७) नन्दु सप्तमी कमा २० का० सं०१६ (८) चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न बहरायमल्ल (# ) पंचोगीत खोहल (१०) साधु बंदना बनारसीदास (११) जोगीरासो जिनदास (१२) श्रीपाल रासो ब्रह्मरायमा इसके अतिरिक्त अन्य पाठ संग्रह भी है । भक्तामर स्तोत्र, पूजा, जयमाल, कल्याणमन्दिर स्तोत्र, पञ्चमंगल, मेषकुमार गीत (पुनो) आदि । ६२७. गटकानं०१५६-पत्र संख्या-१४६ । साइज-६xx इब। भाबी-हिन्दी। विषय-संग्रह । लम्बन काल -X1 पूर्ण । विशेष-सामान्य पाठों का संग्रह है। ३२. गुटका नं० २२५-पत्र संख्या-२४० ! साहज-txkar ] भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x। पूर्ख। विशेष पूजा पाठ के अतिरिक्त निम्न पाठों का संग्रह है: विषय-सूची (१) पंचागुव्रत की जयमाल कर्ता का नाम बाई मेघनी भाषा विशेष हिन्दी (मणि चेतन सगा घखा जोहा जीव दया प्रत पाली) (२) सिद्धों की जयमाल ( ३ ) गोमट्ट की जयमाल Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुट के गवं संग्रह प्रन्थ ] [ ३०५ { ४ । पुनीश्वरों की जयमाल (५ ) योगसार जिगादास योगचन्द्र गा: में ही कर दिया है। (*) प्यास मवैया रूपचंद प्रारम्भ-अनभी अभ्यास मैं भिवास सुध चेतन को । प्रनभौ सरुप सुध बोध को प्रकास है । पनी अनूप उप रत अनंत ग्यान । अनमो धनीत त्याग म्यान सुखरास है ।। श्रनभी अपार सार श्राप ही की आप जाने । पाप ही मैं व्याप्त दीस जाम जद नास है ।। अनुभौ सरुप है मरूप निदानन्द चंद । अनुभौ अतीत बाट कम स्यौ बकास है ।। पन्तिम पाठ-चौथे सरवांग सुधि भानै सौ मिथ्याती जीव, स्यादवाद स्वाद बिना भूलौं मूढ मती है । चौंथ अति इन्द्री ग्यान जाने नहीं सो अजान, वह जगत्रासी जीव महा मोह रती है। चौथे पस्यो गौ मान वह मैं को भेद जाने, झानैं यो निदान कीयौ साचौ सील सता है। चार चाल्यो धारा दोइ म्यान भेद जाने सोइ, तर प्रगट चौंदे गयो सिंध गती हैं । इति श्री अध्यात्म रूपचंद रेत कवित समाप्त । ममा ग्रन्थ ४०१ ६२६. गुटका नं. १२८--संग्या-१३० । सारज-६x६ इभ | भाषा-हिन्दी । लेखनकाल-- | अपूर्ण । विशेष प्रारम्भ के २१ पत्र नहीं हैं । काल चरित्र कवीर हिन्दी साखी अपूर्ण २३ पध है अन्तिम पन्ध --ऐसे राम कहे सब काई, इन बातीन ती भगतिन म होई। कहै कबीर सुनह गुर देवा, दूजी जाने नाही भेवा ॥ आरची, कबीर धनी धर्मदास की माला, सबब, रमानी, रेक्सा तथा अन्य पदों व पाठों का संग्रह हैं। Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ गुटके एवं संग्रह प्रन्य गुटका अधिक प्राचीन नहीं है। ६३. गुटका नं० १२६ --पत्र संख्या-२ से ८ | साज-=x५६ | भाषा-संस्कृत | लेखन काल-४ । अपूर्ण । विशेष-संस्कृत में अभिषेक पाठ है। ६३१. गुटका नं० १३०-पत्र संख्या-१ । साज-६x४६ इन्छ । भाषा-संस्कृत । लेखन काल-x} अपूर्ण। विशेष-पूजाथों का संग्रह हैं। ६३२. गुटका नं० १३१- पत्र संख्या-२२५ । साइज-x६ इभ । भाषा-हिन्दी-संस्कृत | लेखन कालसं.१७७६ मंगसिर दी ३१ पूर्ण। विशेष कर्ता का नाम बनारसीदास भाषा हिन्दी मनरम श्रजयराज विषय-सूची मोन पैडी विनती विनती अठारह नाता का चौटाल्या श्रीपाल स्तुति साधु बंदना आदित्यवार कथा लोहट दो प्रति हैं। २१ पत्र हैं। बनारसीदास भाऊ कवि १४. पथ है। काः सं. १६ फागुण सुदी ३ । ४० पद्य है। गुणातरमाला मनराम प्रारम्भ-मन बच कर या जोडि कैरे ब्रदौ सारद मायरे । गुण अनिर माला क मणौ चतर सुख पाई रे । माई नर भन पायौ मिनख को HE परम पुरिष मणमो प्रथम रे, श्री गुर गुन श्राराधी रे, ग्यान ध्यान मारिगि लहै, होई सिधि सब साधो रे । भाई नर भव पायौ मिनख को ॥२॥ अन्तिम भाग-हा हा हासो जिन करें रे, करि कार हासी पानौ रे । हीरौ जनम निवास्यिो, विना भजन मगवानौ रे ||३|| पदै गुण पर सरदह रे, मन वच काय जो पीहारे । नीति गहै अति सुम्न लहै, दुख न च्या ताही रे । माई नर भन्न पायौँ मिनस्ल कौ ॥३८॥ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह अन्य ] समयसार विमती अपूर्ण विनती अपूर्ण । विनती निज कारण पदेस मेरे, कीयों वृद्धि अनुसार रे । कविया दूसरा जिनधरो यो सब सुधारी रे। यह विनती मनराम की है, तुम हो यह विधान रे । संत सहज श्रगखत जी, करें गुम परवानी २ । माई नर भव पायों मिनख की ||४०|| हिन्दी पंचमगति देखि अजराम १७७३ मा बुदी २ । पूर्ण | बनारसीदास दीपचन्द अविनासी आनन्दमय गुण पुरुष भगवान || कुमुदचंद प्रभु पाय लागी क्षेत्र धारी ॥ "" मनराम " चार प्रभु तुम नाम जी जी सुमरे मम वय काय धर्मकीर्ति " भ० रायमल्ल ६३३. गुटका नं० १३२ – पत्र संख्या - १० से ३७ साइज ६४६ । भाषा - हिन्दी लेख काल -x | श्रपूर्ण | 17 विशेष - श्रीपाल चरित्र ( रायमल्ल ) तथा प्रद्युम्नरास, ( ब्रह्मरायमल ) पूर्ण हैं। ६३४. गुटका नं० १३३ - १५ संख्या-३१-६४ बखराज हंसराज चौगई-- जिनदेव हि । प्रारम्भ - आदीपुर बाद करी चौसठ हिंद सरखती मन समरु सदा, श्री जिनतिक सुनिंद ॥ १॥ सद् गुरु माथि प्रकरी पानु गुरु आदेश | 25 पूर्ण विशेष-विमंडल पूजा, दशलक्षण पूजा तथा होम विधान ( आशाचर ) आदि है। ६३६. गुटका नं० १२५ पत्र संख्या १६ साइ-७६ ││││ [ ३०० विशेष – वितामखि महाकाव्य तथा उमा महेश्वर के संवाद का वर्णन है। ६३५. गुटका नं० १३४- पत्र संख्या १०१-०६ भाषा-संस्कृत लेखन -X | भाषा-संस्कृत लेखन काल-सं० भाषा-हिन्दी लेखन काल -X | Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ पुनित शामल बोलिम, कहस्सू सक्लेस ॥२॥ पुनि सु सुख उपजै हो, पुन्य संपति हो ।। राजनीध लीला घी, पुण्य पाच सोई ॥३॥ पुन्य उत्तम कुल होवे, पुण्य पुरष प्रधान । पुण्य पुरो प्रादुषौ, पुण्य वुधी निधान ॥४॥ पुण्य उपरि सुणी जो कथा, मुणता अचिरज धारि । ईसराज बछराज नृप हुश्रा पुण्य पसाई ॥५॥ मध्यभागकामनी-त्रिविध तेल ताहा काटि घरे फुमर न जाणे भेद । कुमरी गयो नरीषई रे देखी धरौ विषाद ॥१॥ कामनी -- कंत भणे ताहाँ कामनी के दाहारै बैई मन छ । नस टालसी साधि परि कासी सगलो श्रो थुङ ॥७२ बदराज कदै कामनी रे, चिताम करि काय । जैद वे जिन नई चितवई रे, तेह वो सिण नै माय ७३|| अतिम पाठ नहीं है ६३७. गुटका नं. १३६--पत्र संख्या-११३ । साइज-=x६ १७ | भाषा-संस्कृत | लेखन काल-४ । अपूर्ण । निम्न लिखित पूजा पाठ संग्रह हैं--प्रयपूजा, त्रिपंचाशतक्रियायतोषाफ्न, जिमगुणसंपत्तिवतपूना (म० रनन्द्र), सारस्वतयंत्रपूजा, धर्मचक्रपूजा अपूर्ण), रनियतविधान ( देवेन्द्रकीति ) बृहत् सिद्धचक्रपूजा । ६३८. गुटका नं० १३७–पत्र संख्या-५-३६ । साइज-८४६ [ माषा-संस्कृत । लेखन काल-x। सपूर्ण विशेष-गणघरवलंय पूजा, एवं प्राचार्य केशव विरचित षोडशकारवपूजा है। ६३६, गुटका नं० १३८-पत्र संख्या-८ । साइज-xx । माषा-संरत हिन्दी। लेख्न बाल-x| अपूर्ण। विशेष-निम्न पाठों का संग्रह है। भक्तामरस्तोत्र, ( मंत्र सहित ) तथा भक्तामर भाषा हेमराज कृत । एकीभावस्तीत्र मूल पूर्व भाषा । निर्वाग भाग भाषा | तत्वार्मसूत्र, पंचमंगल रूपचन्द कृत 1 चस्त्रा संग्रह-( पाठ कों की प्रातियों का वर्मन, जीव सभास गर्गन श्रादि हिन्दी में ) नमा संस्कृतमजरी । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ] [३०४ ६४०. गुटका नं० १३६-- पत्र संख्या-१.२ । साइज-७३x. इश्च । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-x। अपूर्ण । माषा हिन्दी विषय-सूची कर्ण का नाम मधुमालती की बात चतुर्भुजदास ६४५ पच तक है। . पंचतंत्रभाषा विशेष अपूर्ण हिन्दी गद्य विशेष-मे लाभ तथा सद् भद तो पूर्ण है किन्तु विग्रह कपा अपूर्ण हैं । ६४१. गुटका ने०१४-पत्र संरूपा-५६ | साइज-७४५ इञ्च | भाषा-संस्कृत हिन्दी । लेखन काल-XI अपूर्ण। विषय-सूची नेमीश्नरावलसंवाद कती का नाम भाषा विनोदीलाल नेमकीति सरणागति तेरो नाथ त्यारिये श्री महावीर । पद पंचकमारपूजा बीस विधमान तीर्थकर पूजा तत्स्वार्थ सूत्र परोयह वर्णन चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न उमाखामि ६४२. गुटका नं-१४१-पत्र संख्या-६२ । साइज-६४६ इञ्च | भाषा-संस्क्रुत । लेखन काल-पूर्ण । विशेष-भक्तामरस्तोत्र ( मंत्रसहित ) तथा देवसिद्धपूजा है। ६४३. गुटका नं० १४२----पत्र संख्या-१५ से १८६ । साइज-४६ एव । भाषा-प्राकृत-संरक्त हिन्दी । लेखन काल-X । अपूर्ण एवं जीर्ण । विषय-सूची कर्ता का नाम भाषा (१) अजितशांति स्तवन प्राकृत ४० गापा प्रथम चार गामायें नहीं है। (२) सीमंधरस्वामीस्तवन (३) नेमिनाम एवं पार्श्वनाथ स्तवन, (४) बार नवन और महावीर स्तवन - Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० ] (५) पार्श्वनाथ स्तवन (६) शत्रु जगमंडल जी यादिनाव बन (७) गौतम गणधर स्तवन ( ८ ) वद्धमान जिन द्वात्रिंशिका C ( 8 ) मारी स्तोत्र (१०) भक्तामर स्तोत्र (११) रिस्तोत्र (१२) शान्ति स्तवन एवं गृह शान्ति (१३) श्रात्मानुशासन (१३) अजितनाथ स्तमन (१४) वमान सुति (१५) वीतरागा-क (१६) षष्टिशर्त (१७) गोतमपृच्छा (१८) सम्यकत्व सप्तति (१३) उपदेश माला (२०) मतृहरि शतक पार्श्वनाग ६४७, पाठ संग्रह जिनमसूरि पूर्व वेष्टन नं० १२५ | मंदारी नेमचन्द्र ६४६. पद संग्रह पत्र संख्या ४१ से ६४ रचनाकाल x 1 लेखन काल- पूर्ण वेटन नं० १४० विशेष निम्न पार्टी का संग्रह है - संस्कृत 31 " 37 " " 73 " 32 33 , ७७ पथ हैं 33 २० का० सं० १०४० भादवा बुदी १५ 19 [ गुटके एवं संग्रह अन्य श्राकृत संस्कृत हिन्दी संस्कृत १३ पद्म ६ पच भर्तृहरि ६४४. गुटका नं० १४३ पत्र संख्या ५४-५५२ भाषा-हिन्दी]- पूर्व विशेष- चौबीस तीर्थकरों का सामान्य परिचय है। है ६४४. धर्मविकास धानतराय पत्र रूपा-४४ - १०३० भाषा-हिन्दी प रचना काल । लेखन का पूर्ण प्नं०१०८ विशेषधर्मविलास यानी की रचनाओं का संग्रह है। १२ पद्म हैं । ४४ पथ I ११४६ भाषा हिन्दी पद्य विषय-संग्रह ११२ भाषा-संस्कृत लेखन का X Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुटके एवं संग्रह प्रन्थ 3 विषय-सूची (१) मक्तामर स्तोत्र (२) परमज्योति (६) निर्वाणका भा (४) छहटाला काल-X1 श्रपूर्णं । कर्चा का नाम मानतुरंग वनारसीदास भैयाभगवतीदारा पानतराय विशेष निम्न पाठों का संग्रह है : विषय-सूची १) पंच मंगल (२) कल्याणमन्दिर भाषा (३) विश्वापदार ( ४ ) एकीभाव स्तोत्र ( ५ ) जिनस्तुति (६) प्रभात जयमाल (७) बीस तीर्थकर खडी (८) पंचमेव जयमाल ( 2 ) वीनती (१०) वीनतियाँ (११) निर्वाण काण्ड भाषा (१२) साधु वंदना (१३) संत्रोध पंचासिका भाषा (१४) बारह खडी (१५) लघु मंगल (१६) जिनदेव पच्चीसी (१७) चारह भावना (१८) बाईस परीवह (१६) वैराग्य भावना (२०) गज भावना ६४५. पाठसंग्रह - पत्र संख्या - ३६ । साइज - ११४४३ इव । भाषा - हिन्दी । रचना काल -x | लेखन कर्ता का नाम रूप चंद बनारसीदास भूधर श्रीपाल विनोदौलाल हर्ष कीर्ति भूधरदास नवलराम भूधरदास भैयाभगवतीदा बनारसीदास पानतराय सूरत रूपचंद नवलराम चालू कवि भूधरदास 39 11 भाषा संस्कृत हिन्दी भाषा " हिन्दी 17 " 33 "" 33 23 PA " " 11 RERFERE 37 17 71 " " " [ ३११ विशेष विशेष Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ ] [ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ (२१) चौवीस दंडक दौलतराम (२२) जखडी भूघरदास ६४६. पाठसंग्रह-पत्र संख्या-४ से १२ तक | साइज-१०४४ च 1 भाषा-हिन्दी । रचना काल-x। लेखन काल-X | अपूर्ण । बेप्टन नं. ४६ । विशेष—मक्तामर भाषा पूर्ण है एकीभाव स्तोत्र अपूर्ण है। ६५०. पाठसंग्रह-पत्र संख्या-११ । साइज-१०४४ इन्च । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ४३५ । निम्म पाठों का संग्रह है विषय-सूची का का नाम मापा पत्र (१) पाखीसूत्र कुशल मुनिंद प्राकृत १ से २० तक (२६ प्रतिकमा २.ने तक (३) अजितशान्तिस्तवन संस्कृत ३६ से ४ तक (५) पार्श्वनाथ स्तवन ४ से ५० तक (५) गणधर स्तवन पात (६) भक्तामर स्तोत्र ५४ से ५८ तक (5) शान्तिनाथ स्तोत्र মালালা इनके अतिरिक्त ये पाठ और: --- स्थानक स्तुति, नवपद स्तुति, शत्रुजय स्तुति, कल्याणमन्दिर स्तोत्र । संध्या पी बिहार, पंचक, विचार, पटरिशंक, सामायिक विधि एवं संथारा विधि। ६५१. बुधजनविज्ञास-बुधजन | पत्र संख्या-५६ । साइज-१.४६५ म । माषा-हिन्दी १८ । विषय-संग्रह । रचना काल-~। लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. १०१। विशेष--4. दुधजननी की रचनाओं का संमह है । ६५२. भूधरविज्ञास-भूधरदास । १ष संख्या-११६ । साइज-sxks | भाषा-हिन्दी पच । रचना काल-XI लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं० १३२ । विशेष-भूधरदास की रफुट रचनात्रों का संग्रह है। | भाषा-हिन्दी । रचना ६५३. मित्रविलास-घीसा। पत्र संख्या-१ | साज-१.३४६३ काल-X । लेखन काल-सं. १६५३ । पूर्ण 1 चेप्टन नं. ११. 1 विशेष Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३१३ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ ] प्रारम्म-श्री जिन चरण नमू सदा, भ्रम तम नाशक भान । जा सुम दर्शन दर्शत, प्रगटत प्रातम सान ॥२॥ चौपई-बंदू श्रीमत वीर जिनंद, मेस्त सकल कर्म नग फंद, धन्दू सिद निरंजन देव, अप्रगुणातम त्रिभुवन सेव | चंदो श्राचारज गुग्ध सीन, जिन निज मात्र मुद्ध प्रति श्रीन । बंदो उपाध्याय करि भ्यान, नाशक मिश्यातम अज्ञान, मंद साधु महा गंभीर, ध्यान विषय प्रति प्रचल शरीर । बंदू वीतराग हित माष, धातम धर्म प्रकाशन चाब |मा मित्र विकास महा६ख दैन, वरनू बस्तु स्वभाविक ऐन । प्रगट देखिये लोक मझार, संग प्रसाद अनेक प्रकार ॥५॥ -सवैयाअन्तिम-कर्म र सो तो प्यास मति में घसीट फिरयो, ताही प्रसाद सेती वीसा नाम पाया है। भारमल मित्र को बहालसिंह पिता, तिनकी सहाय सेती प्रथ यो बनायी है ।। यामें भूल चूक होय सोधि सो सुभार खोजो, मो कृपा दृष्टि कीजये भाव यो जनायो है। दिग निध सत शान हरि को चतुर्ष गन, फागुन सुदि चोक मान जिन गुन गायो है ।। दोहा-सानंदमय यानंद करन हरन सकल दुख पोग | मित्र विलास अब यह निज रस अमृत भोग । इसमें निम्न लिखित पाठों का संग्रह है:घट द्रव्य निर्णय-दूसरे अधिकार तक । मावों का पूर्ण सैद्धान्तिक विवेचन है। द्वास व्रत वर्णन, कषाय के पश्चीस भेद वर्णन, सम्यक दृष्टि अवस्था पन, गुरु स्वरूप वर्णन, वासानुप्रेमा वर्णन, बाईस परीषह वर्णन, पंच प्रकारचारित्र वर्णन, मोह तत्व बर्मन, एवं सुख दुख निर्णय/मय का विषय है पात्मा में स्व और परभावों का सैद्धान्तिक विवेचन । ६५४. बचनशुद्धिव्याख्यान-पत्र संख्या-६ : साइज-१२४७ इन्न । भाषा-हिन्दी। विषय-संग्रह । रचना काल-X । लेखन काल-सं. १६४३ जेष्ठ बुदी 55 1 पूर्ण । बेष्टन नं० १५१ विशेष व्याख्यान कर्ता थालालजी को कहा गया है । Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ ] [ गुट के एवं संग्रह ग्रन्थ ६५५. विनती पद संग्रह-पत्र संख्या-१४३ से १०६ । साइज-११४५३इन । भाषा-हिन्दी १५ । विषय-स्कुट संग्रह । लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं. विषय-सूची कर्ता का नाम भाषा बिनती भूधरदास भक्तामर माश सम्मेदशिखर पूजा नंदराम स्कुट श्लोक संस्कृत पद श्रातमराम उपदेशी पद पद नवलराम हिन्दी बालोचना पाठ जौहरीलाल हिन्दी पद घानतराय Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थानुक्रमणिका ---- - ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० अहमताकुमार रास मुनि नारायण (हिन्दी) १६८ | अजीर्णमंजरी । सं०) २६८ अकलनामा (सं० हिन्दी ) २१२ घटारहनाता अकलंकस्तोत्र (सं. हि ) १०० | अठारहनाता का चोटाल्या अक्लकाष्टक भाषा, सदासुख कासलीवाल (हि०) १०० १३२, १६१, १६६,३०, अकृत्रिम चैत्यालयों की जयमाल (हि.) ११४ अढाईद्वीपपूजा डालूराम 1 हि.) ४८ पत्रिमचैत्यालयों की रचना (हि. २ अढाईद्वीपपूजा - (सं० ) ४६ अकृत्रिमचैत्यालय पूजा चैनसुखदास (हि.) ४६ अटाईतीपपूजा विश्वभूषण प्रकृत्रिमचैत्यालय पूजा पं० जिनदास म.) ४ अभ्यामकमलमार्तण्ड राजमल्ल अकृत्रिमचैत्यालय पूजा अध्यात्मदोहा रूपचन्द अकृत्रिम जयमाल (सं.) २७. ययाम काग (हि.) १३८ अक्षयदशमी व्रत पूजा - (सं.] २०५ प्रध्यामबत्तीमी बनारसीदास (हि०) ८२ अक्षयनिधि पूजा (सं.) १७ अध्यामबारहखड़ी दौलतराम (हि.) ३८ धक्षयनिधिवतोद्यापन ज्ञानभूपण (सं०] २०४ अभ्यामसवैया रूपचन्द्र अक्षा भत्तीसी मुनि महिसिंह (हि० ) २५२ अन्तगढदशाश्रो वृत्ति अभयदेव रि (सं.) १ अजितनाथस्तवन जिनप्रभसूरि (सं.) ३१० ( अन्तकृद्दशासूत्र वृत्ति ) अजितशांति स्तवन - (हि.) १४२ अन्तरंकाल वर्णन (हि. . ,११६ अजितशांति स्तोत्र उपाध्याय मेरुनंदन (हि.) १४. अन्तरसमाधि वर्णन अजितशांतिस्तोत्र अनादिनिधनस्ताव - (सं.) १५६ अजितशांतिस्तोत्र (प्रा.) ३०१ अनिल पंचासिका त्रिभुवनचन्द (हि० ) ,१६४ अजितशातिस्तवन जिनवल्लभ सूरि । प्रा०, ३. अनुभवप्रकाश दीपचन्द (f.) २ २ अजितशांतिस्तवन (सं.) ३१. अनेकार्थमंजरी नंददास अजितशांतिस्तवन {प्रा० ) ३०६ बनेकार्थसंभह हेमचन्द्र सूरि (सं.) ५३२ अजितजिननाथ की विनती. चन्द्र (हि.) १४३ । अनंगरंगका कल्याण (हि.) २३४ Location into the (सं० १.६ . Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थ नाम अनंतत्रतोषाच अनंतनात कथा अनंतनतकथा अनंतत्रतपूजा शतपूजा श्रतत्रतपूजा अभ्रकमारणविधि श्रभिषेक पाठ अभिषेक विधि श्रभिधानचिंतामणि नाममाला श्रमरकोश यह कथानक रहंत स्वरूप वर्णन बर्हन् सहस्रनाम अरिष्टाध्याय चवजद के त्रस्त्री अष्टक भ्रष्टविधिपूजा षष्ट कर्मप्रकृति वर्णन श्रष्टनाम अष्टपाहुड अष्टपाहुड भाषा अष्टसहखी लेखक अष्टाहिका कथा अष्टाडिका कथा ० ज्ञानसागर श्रीभूषण NA गणचन्द्र हेमचन्द्र अमरसिंह बनारसीदास पद्मनंदि १६८ १५२ ( हि०) १६४ ( हि० ) २७६ ( प्रा० ) ३६ ( हि०) ३६,१६१ विद्यानंदि ( सं० ) वाग्भट्ट ( सं ० ) हृदयसंहिता श्रष्टादगिरिस्तव धर्मसुन्दर वाचनाचार्य ( हि०) भ० शुभचन्द्र सिद्धराज ( ३१६ ) भाषा पत्र सं० मन्थ नाम ( सं ० ) 280 अष्टाहि काकमा ( सं० ) २२५ ( हि०) २६५ कवि देव ० कुन्दकुन्द जयचन्द छाबड़ा (सं० ) ६८, २३२ ( हि०) १६२ ( हि० } २३ (सं०) १४.७ ( सं०) १६८ (०) २०५ ( हिं०) १३८ ( सं ० ) ( हि०) श्रष्टादिकापूजा (सं०) १३७ श्रष्टा हि कापूजा (सं० ) २०४ श्रष्टारिकापूजा ( सं० ) २०५ अष्टाडिकाव्रतकथा ( हि० ) १४८ श्रष्टाहिकास्नपनविधि ( [सं० ) ५०, ३०६ ष्ष्टाहिकायतोयापनपूजा ( सं० ) 980 श्री शिक्षा की बातें ( संच ) २३२ ४६ २४६ २७३ अंकुरारोपयविधि अंकुरारोपयविधि चंगोपांगपुर कनवर्णन अंजनशास्त्र आकाशपंचमीकथा श्राख्यातप्रक्रिया भः शुभचन्द्र घानतराय गतिनागतिपाल लेखक रत्ननन्दि यागमसार याचारासा श्राचारशास्त्र श्राचारसार श्राचारसारवृ सं आठ द्रन्य की भावना श्रात्म उपदेश गीत श्रात्म संबोधन कान्य श्रात्महिंडोलन ( सं० ) ८१ श्रात्मानुशासन ( हि०) २२४, २२५ ) ग्रात्मानुशासन ० ज्ञानसागर AMA इन्द्रनंदि अग्निवेश भाषा पत्र सं० (सं० ) २२५ ( हिं० ) वीरनंदि ५० (सं०) १६८ (हि० ) ४०, ५७ (सं०) १९८ ( हि०) २६५ ( हि०) १४८ A ( सं ० ) ५० ( हि०) १३० ञ ० ज्ञानसागर ( हि०) (सं० ) ( सं० ) YE ( सं ० ) १९७ ( हि० ) १४८ ( [सं० ) २४६ ( हि० ) मुनिदेवचन्द्र (दि०) (ग) १७५ ( हि० ) १६६ ( सं० ) - ( सं० ) २२, १८२ (सं) २३ जगराम ( हि० ) १५३ समयसुन्दर ( हि० ) २.२ रक्षू ३० १६३ ( पत्र श केशवदास ( हि० ) गुणभद्राचार्य (सं० ) ३,१६१ पार्श्वनाग ( सं० ) ३१० २६५ २३० ३ 1 Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० श्रात्मानुशासन टीका प्रभाचन्द्र ( सं०) ११, १३२ ( हि० ) ३६,१६१ श्रात्मानुशासन मात्रा पं० टोडरमल दीपचंद कासलीवाल ( हि० ) ४० आत्मावलोकन श्रादित्यवारकथा ( हि० ) १५२ ( हि० ) २६६ श्रादित्यवारकथा ० ज्ञानसागर चादित्यवारकथा भाऊ कवि आदित्यवारकथा श्रादित्यहृदयस्तोत्र श्रादित्यवारवतीयापन आदिनाथपूजा आदिनाथपूजा श्रादिनाथपूजा श्रविनाथ जी का पद आदिनाथ का बधावा श्रादिनामस्तवन श्रादिनाथस्तवन श्रादिनाथस्तवन आदिनाथस्तुति आदिनाथपंचमंगल धादिपुराण श्रादिपुराण ― भारती विनती ( हि० ) ८१, ११३ ११७, १३८, १४३, १५४, १५६ १६१, १६७, २१२, २६, ३०६ सुरेन्द्रकीर्ति ८१ ३१० २०५ अजयराज रामचंद्र कुशलसिंह to जिनदास विजय तिलक चन्द्रकीर्ति श्रमरपाल जिनसेनाचार्य पुष्पदन्त भ० सकलकीर्ति श्रादिपुराण श्रादिपुराण भाषा दौलतराम श्रादीश्वर का बचावा कल्याणकीर्ति श्राप्तपरीक्षा विद्यानंद श्रायुर्वेद के नुस ( ३१७ ) - (fo) ( सं० ) ( सं० ) ( हि० ) ५०, १२० १३० ( हिं०) ( हिं० ) ५९ ( इि० ) १६५ ( हिं०) १५३ ( हि०) २५८ { हि०) २६६ ( हि० ) १४० ( दि० ) २७२ ( हिं०) १६८ (सं० ) ६३, २२२ ( अपभ्रंश) २२२ ( सं० ) ६३ ( हि०) ६३, २२२ ( हिं०) १५२ ( सं०) १६६ ( हि०) १३०, ] १३६, १४० २६० २६४, २७४, २७५, २०७ ( हि० ) मन्थ नाम श्राराधनाकथाकोष आराधना कथा कोष श्राराधनास्तवन वाचक विनय विजय श्राराधनासार देवसेन श्राराधनावार भाषा श्रालापपद्धति बालोचनापाठ पाश्रवमिंगी श्राश्रवमिंगी आसावरी की बात इष्टवीसी इष्टोपदेश इश्क चिमन इक अक्षर आदि पचीसी इकवीस गिनती को पाठ इक्कीस गिणती का स्वरूप इकवीसठाणाचर्चा इन्द्रध्वजपूजा इष्टचीनी इष्टचीसी उत्तरपुराण उत्तर पुराण उतरपुराण उदरगीत लेखक १५८ उनतीस बोल दंडक ११८, पन्नालाल चौधरी देवसेन wwww नेमिचंद्राचार्य -- बुधजन ( हि० ) ૩ ( हि० ) ३ ( हि० ) १ ( प्रा० ) ₹ भ० विश्वभूषण (सं०) ५०,१६८ (सं०) १०१ पूज्यपाद नागरीदास उ गुणभद्राचार्य पुष्पदंत भाषा पत्र सं ( सं० ) २२५ ( हि०) २२६ ( हि०) १०० खुशालचंद छील ( प्रा० )४०, ११०, १३२, १३४, १६१ ( हि० ) ( सं०) ( प्रा० ) ( हि०) ( प्रा० ) १ ( हि०) २७८ १६१ १६६ १०१ १७६ (६०) १०१,१७२ ( हिं० ) २६३ ( सं०) २३८ (हि) २४८ (०) ६४.२२२ ( अप० ) ( हि०) ( हि०) ( हि० ) ६७ ६४ ११६ १५१ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रन्थ नाम उपदेशज खड़ी उपासकाचार उपासकाचारदोडा उपदेशपचीसी उपदेशमत्तोसी उपदेशमाला उपदेशशतक बनारसीदास सकल भूषण उपदेशरत्नमाला उपदेशसिद्धान्तरत्नाला भंडारी उपदेशसिद्धान्त रत्नमाला भाषा - उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला मावा भागचंद्र उपासकदशासूत्रत्रिवरण अभयदेव सूर उपासकाध्ययन उपसर्गस्तोत्र उमामहेश्वरसंवाद उषाकथा लेखक रामकृष्ण बनारसीदास राज एकाक्षर नाममाला एकीभावस्तोत्र पूज्यपाद लक्ष्मीचंद्र वसुनंदि एकीभावस्तोत्र एकीभावस्तोत्र एकीमावस्तोत्र एकीभावस्तोत्र रामदास भाषा पत्र सं० ( हि० ) १३७ ( हि० } ( हि० ) ( सं ० ) ( हि० ) ( सं० ) बिंद ( - ) ( हि० ) (हि० ) ( हि०) एकसठावन श्रतों के नाम एकसठ नामों की गुणमाला ग्रानतराय ( हि० ) (हि० प० ) एकसौगुनहचर जीवपाठ लक्ष्मणदास एकसौगुनइतर पुण्य जीवों का ब्योरा सुधाकलश वादिराज ( ३१५ ) ( सं० ) ( हिं०) १४६ १५१ ३१० EY २४ (सं०) ૬૪ ( सं०) १३२ (थप० ) ( सं ) ( सं २३ २३ २३ २५४ १०१ १ ( हिं०) १६२ ( सं० ) 5= ( सं ) १०१, १२२, २३८,२७८३०८ द्यानतराय ( हि० ) २६७ जगजीवन ( हि०) २६६ भूरदास (हि०) २६८, ३११ ૨૪ १=३ १८० ३०७ २६७ प्रन्थ नाम लेखक पादोष (छियालीस दोष) भगवतीदास (हि) श्रौ ( हि० ) १७२, ३०३ श्रौषधिवन ऋषमनाथचरित्र ऋषभ नापवेलि ऋषभदेवस्तचन ऋषि मंडलपूजा ऋषि मंडलपूजा ऋषिमंडल स्तोत्र ऋषि मंडल स्तोत्र कफा चकाचीसी चक्काबसीसी काजीसी भः सकलभूषण कर्मचूरवतोयापन कर्मदहनपूजा कर्मदहनपूजा कर्मदहनपूजा ३०८ ३१२ | कर्मदहनपूजा IT आ गणिनंदि गौतम गणधर क गुलाबराय अजयराज कलवाहा राजाओं की वंशावलि कंसलीला कमलचन्द्रायण कथा कमलचन्द्रायणमतपूजा कर्मघटावलि कनककीर्ति कर्मचरित्रमा सी रामचन्द्र टेकचंद शुभचन्द्र भाषा पत्र सं० १८३ (हि०) २७६ ( सं०) २०६ ( हि०) १६७ ( हि० ) १४० ( ० ) ३०७ ( सं ० ) ( संग ) ( सं०) २०४ २६२ १०१ ( हि०) १६६ ( हिं०) १५३ ( हि० )१३३, १५१, ( हिं०) २९६ १३० १३६ २२५ ( हि०) ( हि०) ( सं० ) ( सं० ) 20 ( हि०) १४६ (ft.) २४ ( सं० ) २०४ ( हि० ) ५० (सं० ) ५० (हिं० ) ५०, १६८ (सं० ) २०४ 1 Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१६) लेखक मन्थ नाम भापा पत्र सं० [ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० फर्मदहनवत पूजा - (सं.) ११ | कल्याणमंदिरस्तोत्रभाषा बनारसीदास (हि.) १.२, कर्मदानम्रतमंत्र (मं०) ५१ | ११३, ११५, १२४, १४६, १५३, १५८, १७२, कर्मप्रकृति नेमिचन्द्राचार्य (प्रा०) ३, १३५, १७६ २३८, २६६, ३११. फर्मप्रकृतिवर्णन -- (सं.) , १५३ ! कल्याणमंदिरस्तोत्रभाषा अस्खयराज (हि.) १.२ १५६, १६६, २६६ / कलिकुडपूजा कर्मप्रकृतिविधान बनारसीदास (हि.)४,११९ | कलिक उपाश्वनायपून - (सं.) १९८ कर्मप्रतियों का ब्योरा -- (हि.) * | कलियुग की चीनती ब्रह्मदेव (हि.) १७५ ( क प्रकृति चर्चा) कलियुगचरित फर्मप्रकृति वृत्ति सुमतिकीर्ति (सं.) १७६ करतायतीचरित्र भु वनकीति (हि.) ६७ कर्म छत्तीसी (हि.) १६३ कवित्त पृथ्वीराज चौहाण का - (हि.) १२४ फर्मवसीसी अचलकीर्ति (हि.) ११५ | कवलचन्द्रायण व्रत कथा - (सं.) ८१ कर्मस्वरूपवर्णन अभिनव वादिराज (सं.) ५ कवित्त गिरधर (हि.) १३६ (पं० जगन्नाथ) कवित्त पृथ्वीराज (हि.) १३६ कर्मविपाफरास नजिनदास (हि० गु०) ८१ | कवित खेमदास (हि.) १३७ फर्म हिंडोलना - (हि०) १२८ | कवित्त - (हि०) १३६,२७३ कर्महिंडोलना इर्षकीर्ति (हि.) १६५, २७२ । कनीर की परचई कबीरदास (हि.) २६७ कृष्ण का बारहमासा धर्मदास (हि.) २१ कवीर धर्मदास की दया , (हि.) २६७ कृष्णादास का रासा - हि.) २७७ कविकुलकंठामरण दूलह (हि.) २४ कृष्णारूकमणी बेलि पृथ्वीराज राठौड (हि.) ११८ । कयौ। धनी धर्मदास की माला (हि.) ३.५ कृष्णलीसावर्णन (हिं० ) २८० काजीवतोपापन - (सं.) २०५ कृष्णमालचरित (हि.) २ कार्तिकेयानुप्रेक्षा स्वामी कार्तिकेय (प्रा.) १६१ (२०) ३०२ कार्तिकेयानुप्रता जयचंद छाबड़ा (हि.t) १६] करूणामरन मास्क लच्छीराम (हि.) २७. कामंदकीयनातिसार माषा - (हि.) २३५ (सं.) ११२ काल पौर अन्तर का स्वरूप - (हि) ५ असिषकुठार रामचन्द्र (हि.) २८८ काया पाजी कबीरदास (हि.) २६७ कल्याणकवर्णन मनसुख (अप.) १३. | कालचरित्र कबीरदास (हि.) ३०५ कल्याणमंदिरस्तोत्र कुमुदचंद्राचार्य (सं०) १०१, कालज्ञान ११२, १२२, १२६, १३६, १५६, २३८, २७३, ३१२ | कालिकाचार्य कथानफ भावदेवाचार्य (प्रा.) २२५ कल्याणमंदिरस्तोत्रमाषा -- (हि.) १२२, २६५, ३०1 / किशोरकल्पद्रुम शिक्कवि (हि.) १६६ फरूपाएक Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषा पत्र सं० ग (हि.) ३११ (सं.) ३०% (सं.) ११८ (सं०) १ (प्रा.) ३१२ (हि.) २८१ ( ३२०) अन्य नाम लेखक भाषा पत्र सं० । अन्य नाम लेखक किरातार्जुनीय भारथि (सं.) २.४ कियाकोष भाषा किशनसिंह जमावमा भूधरदास क्रियाकोष भाषा दौलतराम गणधर मुख्य पाठ कुलिया (हि.) १३६ गणधरवलयपूजा कुदेववर्णन गगधरवलयपूजा शुभचन्द्र कुदेव स्वरूप वर्णन (हि.) ११३ गयाधरवलयपूजा सकलकीर्ति कुमतिनिघटिन श्रीमंधर जिनस्तवन गावरस्तवन कुमारसंमक कालिदास (सं.) २१० गणनायक क्षेमकरण धर्मसिंहसूरि कुरेरस्तोत्र (सं.) २३८ जन्मोत्पत्ति कुवलयानंदकारिका (सं०) १६६ गणभेद रघुनाथसिंह सुरि कोकसार आनंद कवि (हि.) १३६ गंगासरावावर्णन कोकिलापंचर्माकथा ब्रह्म ज्ञानसागर (हि०) २६५ गंगाष्टक शंकराचार्य কীবুল (सं०) १८ अन्धसूची तपणासार प्राचार्य नेमिचंद्र (प्रा०) ५ अहवालविचार झपणासार टीका माधवचन्द्र विद्यदेव (सं.) उपवासार भाषा पं० टोडरमल (हि०) ५,६,10 ग्यारहप्रतिमावर्णन मुनि कनकामर ग्यारहप्रतिमावर्णन - क्षमावतीसी समयसुन्दर (हि.) १२६ गिरनार सिद्धक्षेत्र पूजा हजारीमल्ल तीराव विश्वकर्मा (सं.) २४ गिरनारक्षेत्रपूजा क्षेत्रपाल का गौत (हि.) १४ चन्द्रकीर्ति क्षेत्रपालपूजा गौत मुनि धर्मचन्द्र क्षेत्रपालस्तोत्र (सं.) २८ देवपालपूजा (.) २५३ (हि.) १३५ (हि.) २८७ (हि.) ११७ (हि.) १८४ (हि.) ५८ (हि.) ५१ (हि.) २५२ (हि.) २७२ (हि.) २४३ ( हि० ,१५४,३४४ गीत (सं.) १५६ गातीसी भावना गीत - हि.) ११६,१६४ (हि.) ३०४ खण्डेलवाल गांत्रोत्पचि - चर्थन खीचडरासो गुणगायागीत ब्रह्म बर्द्धमान मुनगंजनम ( हि० ) १५१ | गुणस्मानचर्चा गुणस्थान जीव संख्या (हि.) २५७ ___ समूह वर्णन गुणस्थानचर्चा गुणस्थानवर्णन (हि.) १५६ (हि.) १५१ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पापराताजनपूजा रामचन्द्र ( ३२१ ) प्रन्थ नाम माती पत्र संपन्य मांग भाषा पत्र सं० गुयविवेकवारनिसाणी चासरण परिकरया मनराम (हि.) ३०७ चक्रेश्वरीस्तोत्र (सं०) २८८ गुरुवीनती (हि.) १४८ | चतुर्गतिलि हर्षकीर्ति (हि.) ३०२ गुरुभक्तिस्तोत्र (प्रा.) । चतुर्दशीकथा हरिकृष्ण पाण्डे (हि.) १५४ गुलालपच्चीसी ब्रह्मगुलाल (हि.) ४ | चतुर्विधिसिद्धचक्रपूजा भानुकीर्ति (सं.) ५२ गौत्रवर्णन - (हि.) २५२ | चतुर्विंशतिजिनकल्याणकपूजा भानुकीर्ति (हि.) १५१ गुरोपदेशभावकाचार डालूराम चतुर्विशतिजिनपूजा (हि.) ५२,१११ गोमट्ट की जयमाल - (हि.) ३.४ गोमहसार (जीवकारड) नेमिचन्द्राचार्य (प्रा.) ६ | चतुर्विंशतिजिनपूजा वृन्दावन (ह) १,१६६ गोमट्टसार (जीवकाण्ड) पं० टोडरमल (हि.),८,११७ चतुर्विंशतिजिनपूजा सेवाराम (हि.) ५१,११६ गोमट्टमार (कर्मकाण्ड) नेमिचन्द्राचार्य (प्रा.)६,११२,१७७/ चनुर्विशतिजिनपूजा - (हि.) १ गौमसार (कर्मकाण्ड) पं० टोडरमल (हि.) ८,१० | चतुर्विंशतिजिनस्तुति पद्मनंदि (सं.) ५३६ गोमट्टसार टीका (कर्मकाण्ड) मुमतिकीति (सं.। चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र जिनरंग सूरि (हि.) १४० गोमट्टसार (कर्मकाण्ड) हेमराज (हि.) ८,१४७ चतुर्विंशतितीर्ण करपूजा - (सं.) १२ गोरखबचम बनारसीदास (हि. ) २८3 | चतुर्विंशतिस्तुति समयसुन्दर (६०) १४२ गोरसविधि (सं.) २५२ | पतुर्विंशतिस्तुति विनोदीलाल (हि.) १५५ गोरी कालीवार (हि.) २६४ चतुर्विंशतिरतुति शुभचन्द्र (हि०) १४३ गोविन्दाष्टक शंकराचार्य (सं० ) ३.५ चतुश्लोकी गीता - (सं० ) ३०२ गोटीपार्थस्तवन (हि.) १४२ / चन्दनपटियतपूजा - सं०) ५२,२०१ गौतमगाभरस्तवन | चन्दनपटियतकथा खुशालचंद (हि.) २६७ गीतमपृच्छा (प्रा०, ३१० चन्दनपवितकथा प्रशानसागर (हि.) २६५ गौतमस्वामीचरित्र धर्मचन्द्राचार्य (सं.) १७ चन्दनपवितकथा विजयकीर्ति (सं.) २ गौतमरासा विनयप्रभ (हि.) ३.१ | नन्दनाचरित्र शुभचन्द्र (सं०) २५ चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न -- हि.) १६. चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न भावभद्र (हि.) १४२ घंटाकाय मंत्र चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न ब्र० रायमल्ल (हि.) १६३, (हि.) १२७ चउनीसतीर्थ करविनती ब्रह्मतेजपाल चउग्रीसतीर्थकरस्तुति सहजकीति (हि.) ६६ | चन्दराजा की चौपाई (हि.) १४७ । धनमलयागिरि कथा) Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक कवि दामोदर वीरनंदि चन्द्रायणमतपूजा भ० देवेन्द्रकीर्त्ति चन्द्रस कथा टीकम चमत्कार चिन्तामणि नारायण अजयराज प्रन्थ नाम चन्द्रमस्तुति चन्द्रप्रभचरित्र चन्द्रप्रभचरि चरखाच प चर्चावर्णन चर्चाशतक चर्चासमाधान चर्चासंग्रह चर्चा सगरमाथा अपरि चाणक्य नीतिशास्त्र चाणक्य यानतराय भूधरदास चार व्यान का वर्णन चार मित्रों की कथा चारित्रशुद्धिविधान भ० शुभचंद्र चामुण्डराय - Vill चारित्रसार ( भावनासार संग्रह ) चारित्रशुद्धिविधान श्री भूपण ( १२३४ व्रत ) मन्नालाल भाषा ( हिं० ) (सं) ६७, २१० (सं० ) ६, २१० (सं० ) १६६ (Re) (10) (हि० ) ( सं० ) ( सं ) ( ३२२ ) ( सं० ( हिं० ) ( हि ) ( हि० ४,१३४, १७ चिन्तामणि महाकाव्य ( हि० ) ₹१७७ (हिं०) १,१७७, ३०३, (६०) ३०८, १८४ (हि) * ( सं ) पत्र सं० प्रन्थ नाम लेखक १५८ | चिन्तामणि मानभावनी मनोहर कत्रि चिन्तामयि पार्श्वनाथ पूजा चिन्तामणि पूजा ( सं० ) चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवन जिनरंग (हि० ) चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र भुवनकीत्तिं । हि० ) चिन्तामणि स्तोत्र ( हि ( सं ० ) ( डि० ) चारित्रसार पंजिका हि ) चारित्रसार मापा चारों गति दुःख वर्णन चारित्रपाहुड भाषा जयचंद छाबडा ( हि० 1 भारामल्ल चारुदत्त चरित्र (हि०) चित्रसेनपद्मावती चत्था पाठक राजबल्लभ (सं) विट्टी चंद्राबाई की सर्वसुखजी आदि को (हिं० ) चद्विलास दीपचन्द ( हि० ) (सं०) ११९, २२५ २०४ ४० १५३ ५२ २५ t ५२ RE: १५५ 588 २५ २५ १३२ १९२ २१० 3 १२६ २७ चिन्तामणि स्तोत्र चिन्तामणि जन्मोत्पत्ति नूनडी चेतन कर्मचरित्र चेतनगीत चेतन गीत चेतनगीत चेतनबंधस्तोत्र चेतनशितागीत चेतन शिक्षागत चैत्यवंदना चैत्रीविभि चौदहमा चर्चा साथ चर्चा चौबीसठाण चर्चा भाषा ( बालबोधचर्चा ) चौबीसठाणापीटिका चौकीसटाणा चौपई चीसठाणान्योरा चौबीस दंडक धौबीसदंडक - — ( सं० ) ( हि० ) २८.६ ( सं० ) ३०७ T साधुकीति (हि) भगवतीदास (हि०) ६८, १३२ ( हि० ) २७२ (हि०) ११६,३०४ (हि०) २७९ ( सं ० ) २०० ( हि० ) १२० किशनसिंह (हि) १३९ ||२३= ( सं ० ) श्रमरमाणिक ( हि० ) ( हि० ) नेमिचन्द्राचार्य (प्रा० ६, १७ (हि, १०, ११३ १४७ ११६ १५६, ३०० ―― जिम्मदास देवीदास -- भाषा ( हि० ) ( सं० ) पत्र सं (R.) साद लोहट (६०) - ११२ १६८ १५६ १४० १४० १५२ २०० १० १६६ १६१ (हि० ) ( हि० ) २७,११२ दौलतराम ( हि०) २८, १८४ ३१२ + . Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A ग्रन्थ नाम नौबीस तीर्थ करजयमा तीर्थकरों के मात्र गांव वर्णन चौबीस कपरिचय चौबीसी कर पूजा चौबीसजिन स्तुति चौबीस तीर्थंकरस्तवन चौबीसतीर्थंकर स्तुति चौबीस तीर्थंकरतुति चौरासी श्रासन भेद चौरासी बोल चौदापूजा चौबीसतीगंकरपूज चौवीसीनामयतमंडलविधान चौवीस महाराज की बीनती रामचन्द्र चौबीस तीर्थकर समुच्चय पूजा लेखक मन्दरत्नावलि दशतक शक्तिरंग छहढाला छहजीत्र कथा अजयराज जहतपद बेलि 139 मनरंगलाल हेमराज चौरासी गांव चौरासी गोत्पत्ति वर्णन नन्दानंद चौसठऋद्धिपूजा स्वरूपचंद - शोभन मुनि ललित विनोद अजयराज छ हरिराम वृन्दावन बुधजन छड्डाला छियालीसदोष रहित श्राहारवर्णन (हि) ( हि० ) महाराजा रामसिंह ( हि० ) धानतराय ज कनकसोम भाषा पत्र सं० (हिं ) ( हि० ) ( हि०) ( ३:३ ) २ (हि) १२४ ३२० जखड़ी (हिं०) १२०, १५२ जखी (स) १६६,२७० ( हि० } १६६ जखडी ( सं० ) २०४ जबडी ( हि० ) १०२ ! जखडी ( सं ० ) १९६ जखडी ( सं० ) २३६ जंतर चोवनो (हि० ) २३१ जम्बूदीपपूजा (हि) १३० | जम्बूस्वामीचत्त्रि ( हि० ) १४७, २१४ जम्बूस्वामीचरित्र ( सं० ) 50 जम्बूस्वामी चरित्र ( हि० ) २७, २१२ जम्बूस्वामी चरित्र (हि ) १५३ जम्बूस्वामीपूजा (हि०) २५३ जयचन्द्रपचीसी ( हि०) ५३, २०० जयपुरवंदना ८८ ८५ F अन्थ नाम जवडी जखडी २६३ २७३ ( हि० ) १३७, ३११ | जानकी जन्मलीला (हि० ) २६० ज्ञान चर्चा ( हि० ) १५५ ( हि०) १५५ जयमालसंग्रह जलगालन क्रिया जलहरतेला की पूजा ज्वालामालिनीस्तोत्र शान क्रिया संवाद ज्ञानपच्चीसी ज्ञानपच्चीसी ज्ञान तिलक के पद लेखक अनंन्तकीर्त्ति दरिगह भूधरदास रूपचन्द हरीसिंह बिहारीदास जिनदास जिरादास क्र० जिनदास पांडे जिनदास बीर नाथूराम पाण्डे जिनराय बलदेव ० गुलाल बालचंद्र मनोहरदास भाषा पत्र सं ( हि० ) १५.६ ( डि० ) ११६ ( हि ) १३७,३१२ (हि) ११६, १२६ ११५, २७२, २६७ (हि० ) 98 (हि०) १४६, १०० ( हि० ) २३६ (fo) २७२ (हि) ( सं ० . ) १६३ ( मं० ) ६८,२१० (हि०) ६६, १३१ (अपभ्रश) ६८ ६ हि० ) ( हि० ) ( हि०) ( सं० ) २ २१० ११५ R २२४ ( प्रा० ) ११८ ( हि०) ५३ ( सं ० ) २०१ ( सं०) १०२, २३६ २६५ २०७ ( हे० ) (हि०) २८, २३४ १३१, १५३ ( सं० ) १३८ ( हि० ) २०१,२६१ बनारसीदास (हि०) ११४, १५२१६३ raivete (ft.) २६७ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( ३२४) अन्य नाम लेखक भाषा पत्र सं० अन्य नाम लेखक भाषा पत्र सं० ज्ञानपच्चीसीबतोथापन सुरेन्द्रकीर्ति (सं.) ... जिनाजस्तुति कनककीर्ति ज्ञानपूजा - सं.) २०० | जिनराज विनती झानसार रघुनाथ (हि०) ५ १६. | जिनरात्रिन्तकथा व ज्ञानसागर (हि.) २६ सानस्योदयनाटक वादिचन्द्र सूरि (सं.) जिपलाइगीत मा रायमल्ल (हि.) ११७ शानसूर्योदय नाटक भाषा पारसदास निगोत्या (दि०) १० जिनविनती सुमतिकोर्ति (हि.) १६६ ज्ञानमार्गा (हि.) २८ जिनयसकस श्राशाधर (सं.) २०० ज्ञानसारगाथा (प्रा.) १३३ (प्रतिष्ठापाठ) ज्ञानमत्तीसो बनारसीदास (हि.) १६३ जिनस्तुति (हि.) १०३ खानसूघड़ी शोभचंद्र (हि.) १२६ [ जिनस्तुति रूपचंद (हि.) १४२ सानानंद श्रावकानगर रायमल्ल (हि २८ जिनस्तुति श्रीपाल ज्ञानार्याव श्रा० शुभचंद्र (सं० } ४१, १६२ जिनवाणीस्तुति (सं.) १५४ ज्ञानार्णव भाषा जयचन्द छाडा (हि.) ४. जिनसंहिता (सं.) ३ हानार्गव तत्वप्रका टीका (हि.) २५२ जिनस्वामीविनती सुमतिकीति (हि.) ११७ जिमकुशलपूरि छंद (हि.) .. | जिनसहमनाम जिनसेनाचार्य (सं.) १२ जिनगीत अजयराज (हि.) १६३ १००, ११,५०४, २३६, ३.१, ६.३ जिनगुणसंपतिव्रतपूजा भ० रनचंद्र (सं.) ३०८ जिनराहसनामपूजा धर्मभूपण सं० ) ३,१११ जिनगुणसंपचित्रतीयापन - (सं०) २०५ जिनसहस्रनामपूजामापा स्वरुपचंद विलाला (निस) जिनगुण संपत्ति व्रतकथा व ज्ञानसागर (हि.) २६६ जिनसहस्रनाम आशाधर (सं० ) - ०२,१३४ जिन गुणपच्चीसी - हि०) २८ २०४, २३६, २२ जिनदत्तवरित गुणभद्राचार्य (सं०) ६ | जिनसहस्रनामस्तोत्र () जिणयतचरित्र पं० लाखू (थप) ६६ | जिनसहसनामटीका मू आशाधर (सं० ) १,२,३६ (जिनदनचरित्र) दीका० श्रुतसागर सूरि जिनधर्मपच्चीसी भगवतीदास (हि.) १५५ जिनसहस्रनाम टीका अमरकीर्ति (सं.) २३९ जिनदेवपच्चीसी नवलराम (हि.) ३१५ | जिनसहस्रनाम भाषा बनारसीदास (दि. १०३, जिन पंजरस्तोत्र कमलप्रभ (सं.) १.२ जिनपूजापुरंदर का खुशालचंद (ह.) २६७, जीवों की संख्या का वर्णन - (हि.) २८ जिनदर्शन (प्रा.) १.२ | जीतकल्पाव भूमि -- (हि.) १७० जिनदर्शन (सं0) १२३] जीबंधचरित्र श्रा० शुभचंद्र (सं८) २११ मिनपालितमुनि स्वाध्याय विमलप वाचक (हि०) १०४ | जीवमोचन तीसीपाठ - () २ जिनमगलाष्टक - (सं०) २६६ 'जीनसमासवर्णन नेमिचंद्राचार्य (प्रा.) १० Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२५ ) ग्रन्थ नाम जस्वक भागा नाम : लेखमा भाषा पत्र सं. जीब की भावना (हि.) १६७ तत्वार्थसार (सं.) १६ जोयडा गीत (हि.) १६७ तरवार्थसार अमृतचंद्र सूरि (सं.) ११ जैनशतक भूधरदास (हि.) १४, १३४, बवार्थपूत्र उमास्वामि (सं०) ११,१२, १६०,२३५ ५८, १५, १११, ११२, १३५. १६५, जैनगायत्री १७२, १७६,२६४, ६७२, २७५, ३०२, जैनरासो । हि० ) १४१, १६१ ३०८, ३. जैनपच्चीसी नवलराम तत्वार्थस्त्र टीका श्रुतसागर (सं०) १३ ध्येष्ठजिनवरक्या (हि.) १५॥ तत्वार्थच टीका टिब्बा) -- (संहि.) ११ जैनमार्तण्डपुराण भ. महेन्द्रभूषण (२०) २५५ तत्वार्थपूत्र वृत्ति (सं०) ११ जैनविवाहविधि जिनसेनाचार्य (सं.) २०. ' तस्त्रार्यसूत्र वृत्ति योगदेव (सं.) १६ जैनरक्षास्तोत्र हि. ३.१ । तत्वार्थसूत्र भाषा कनककीति हि.) १३, १७॥ जैनेन्द्रव्याकरण देवनंद (सं०) ८७ : तत्वार्यसूत्र भाषा जवचंद छाबड़ा (हि.) १४ जोगीरासा जिणदास (हि० ) ११७.११ वार्मसत्रभाषा सदासुख कासलीवाल (हि.) ४ १३१, १२, १५३, ३०४ | ज्योतिधरानमासा श्रीपति भट्ट (सं० २४ (वर्ष प्रकाशिका । ज्योतिष संबंधी पाठ - (सं.) २८ तपोयोत्तनप्रधिकार सतावनी - (सं.) १३ तमाव की जयमाल आणंद मुनि (हि.) १५० टंडाणागीत - .) २६६ तमापूगीत आणंद मुनि (हि.) २१२ तमाम्य गोत महसकर्ण (R) । ससंग्रह अन्नंभट्ट (सं.jrt, दालगण (सूरत) (हि.) २८ ताराचोल की वार्ता (हि.)१३८, टालगण - (हि.) १३४ त्रिपंचाशक्रियावतोयापन --- (सं.) .. त्रिभुवन विजयीस्तीन तत्वसार देवसेन (प्रा.) १०,११० ] त्रिभंगीसंग्रह | त्रिभंगीसंग्रह नीमचंद्राचाय नेमिचंद्राचार्य (प्रा.) १६, १. तत्वसारदोहा भ० शुभचन्द्र (हि.) १७८ | त्रिभंगीसार तमुनि (प्रा.) १७६,१६ तत्वार्यबोध भाषर बुधजन (हि.) १५ | त्रिलोकदर्पण कमा स्वङ्गसेन (हि.) १२ तत्वार्यवनप्रमान प्रभाचंद (सं.) १५,१३८ त्रिलोकदर्यया नत्वार्थराजवातिक भट्टाकलंकदेव (सं०) १५ त्रिलोकमार नेमिचंद्राचार्य (प्रा.) १२, १३ नावाश्लोकवार्शिकावं कार आ० विद्यानंदि (सं.) १५ | त्रिलोक्सार भाषा - - Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य नाम लेखक भाषा पत्र सं0 ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र संग त्रिलोसार माषा उत्तमचन्द (हि०) ३ : पनक्रियावतोयापन देवेन्द्रकीति (सं०) त्रिलोभार बंथ चौपई सुमतिकीर्ति (हि० ) ६२,११८ पनभाववर्णन (हि.) ३०. विलोकसार संष्टि नेमिचन्दाचार्य (प्रा.) १८. तेरहकाठिया बनारसीदास (हि.) २६ पिलोकप्रनप्ति - (प्रा.) १६ | तेरहवीपपूजा त्रिलोकप्रति यति वृषभ (पा.) २३४ | तेलावत की पूजा (सं.) २.१ त्रिलोकसार सटीक मुकः नेमिचन्द्राचार्य (प्रा.) २३४ | सठशलाकापुरुष दीका साहसकीर्ति त्रेसठशालाकापुरुषों न. कामराज (हि०) १६३ त्रिभंगीवर्णन ___का वर्णन त्रिवर्गाचार सोमसेन (सं.) १४ त्रेसठशलाकापुरुष (हि.) १५६ विशतिकारीका (सं.) २ नामावलि त्रिशश्चतुर्विशति पूजा शुभचंद्र त्रैलोक्यदीपक बामदेव (सं०) १३ तीन चौबीसी वलोक्यतीजकमा ब्रह्म ज्ञानसागर हिप.) . " तीन चौबीसी तीर्थकों का नामावाल है.) १५,१५८ तीनचीबीसीपूजा (सं.)२०४,२०० तीर्थ करविनती कल्याणकीति (हि.) ४१ | दक्षिणायोगीन्द्रपूजा श्रासो तीर्थमालास्तोत्र (सं.) १३३ | दशदेयों के चौबीस नाम - (हि.) १२० तीर्थकरवर्णन (हि.) दशस्थजयमाल (प्रा.) १२० तीर्थकर की गर्भ जन्मादि । ५७ दशलक्ष जयमाल . कल्याणों की तिथिया । शिलरुणजयमाल ताप करजगमाल दशलदाराजयमाल भावशर्मा (प्रा.) ५४, रतनलाक के चैत्यालयों का वर्णन (हि.) १२४ देशलशग्यधर्म पं. सदासुम्ब कासलीवाल (दि.) १८ तीनलोककथन. दशलक्षण वर्म वर्णन तीनलोकपूजा टेकचंद (हि.) शालनगापूजा तीर्थमहात्म्य लोहाचार्य तीसचौवीसी के नाम - (हिं.) १२ । शलक्षण पूजा अभयनंदि (0) २०१ तीसचौबीसोपाठ -., . (हि.) दशलक्षण पूजा सुमति मागर ) ५४ तीस चौबीसीपूजा भाषा वृन्दावन (हि.) ५३ दशलक्षण पूजा तीसचौबीसीपूजा भाषा - . (हि.) १३ दशलक्षण यत्त कथा अ० ज्ञानसागर (दि.) २८५ फ्नक्रियाविधि दौलतराम (हि.) | दशलक्षणवाद्यापन पूजा ... (हि.) २०१,२०४ वेपन क्रिया ब्रह्म गुलाल (हि.) ३.. । दशस्थान चौपीसी यानतराय (हि.) २५६ x " (पा. Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२७ ) मन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० दर्शन (सं.) ३३,३०२ | दोहाशतक रूपचन्द दर्शनकथा . . मारामल्ल (हि.) 3 | मोहाशतक योगीन्द्र देव (अ०१ २ হাহাক चैनसुख (हि०) दर्शनपचीसी आरतराम (हि.) २८ | हे दादूदयाल हि २७५ दर्शनपाठ . - (हि.) . १०३ | दंडकषट्त्रिंशिका - (सं.) २४० दर्शनपाठ __ -- (सं.) ११, १५८ द्रव्यसंग्रह प्रा नेमिचन्द्र (पा० ) ११, १६, १३॥ दर्शनपाहुड पं० जयचंद (हिं० ) १३६, १८०, २७९, ३०३, १०. दर्शनमार देयसेन (प्रा० ) १५६, १६६ ११२, १२२ दर्शनायक - (सं० । दव्यसंग्रह भाषा जयचंद छाबड़ा ( हि०) दसकरमापाठ द्रव्यसंग्रह भाषा बंशीधर (हि.) १८ ( दसबंधमेद वर्णन ) द्रव्यसंग्रह भाषा दसूमालिका बंशीधर द्रव्यसंग्रह भाषा पर्वतधर्मार्थी (गु०) १६, १७, १८. दसोत्तरा (पहेलियाँ) - (हि०) दम्य का न्योस (हि.) १८ दानकथा भारामल्ल (हि० ) | द्रव्य संग्रह वृत्ति ब्रह्मदेव (सं.) १७, १८० दानशीलचौपई जिनदत्त सूरि (हि.) द्वादशांगपूजा दानशीलसंवाद. समयसुन्दर (हि.) द्वादशानु प्रेक्षा (प्रा.) . दानशीलतपमाबना - (हि.) द्वादशानुप्रेक्षा (हि.) ४०,११५,१६५ दुर्गपदामोध श्री वल्लभवाचक (सं.) ...२०,१३८, १२२ हेमचन्द्राचार्य द्वादशानुप्रेक्षा लन्मीचन्द (प्रा.) ११८ देवगुरु पूजा - (हिं.) द्वादशानुप्रेक्षा औधू (हि.) ११६ देवप्रभारतीय जयनंदि सूरि (सं.).. द्वादशानुप्रेता आलू (हि.) १६, ११२ देवपूजा . - (सं.)।४, ५१, २०१ | द्वादशनतपूजा देवेन्द्रकीति (२०) २१, २०१ देवपूजा (हि.) द्विसंधान काव्य सटीक नेमिचन्द् (सं.) देवसिद्ध पूजा देवसिद्धपूजा ध देवागमस्लोत्र श्रा० समंतभद्र (सं०) १७, २४० धनंजयनाममाला धनंजय (सं० ) ૨૧૨ देवागमस्तोत्र भाषा जयचन्द छाबड़ा (हि.) धन्यकुमार चरित्र सकलकीति (सं०) ०, २१२ देहली के राजाओं की वंशावलि (हि.। १३३, २७५ धन्यकुमार चरित्र बनेमिदत्त (सं.) ०, २१२ देहव्यथा कथन (हि० ). .. २. | धन्यकुमार चरित्र खुशालचन्द (सं) ., २१२ दोहाशतक हेमराज (हि.) ११४ ] धन्यकुमार चरित्र गुणभद्राचार्य (सं) २४ ( Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य नाम धमाल ध्यानवतीसी लेखक धर्मचन्द्र बनारसीदास रणमल्ल धर्मचक्र धर्म चक्रपूजा धर्मचकपूजा जर्मत गीत धर्मपरीक्षा धर्मपरीक्षा मनोहरदास सोनी धर्मपरीक्षा हरिषेण धर्मपरीक्षा भाषा धर्मपरीक्षा माषा या दुलीचंद धर्मरत्नाकर धर्म रसायन धर्म रासा धर्म बिलास धर्म प्रश्नोत्तर श्रावकाचार भा धातुपाठ श्रुचरित ध्रुचरित यशोनंदि जिणदास अमितगति जयसेन पद्मनंदि यानतराय चंपाराम न भाषा पत्र सं० (हि. ) १६४ ( दि० ) १५३, २८२ (सं० ) ( संo ) ( सं०1) ( हिन् ) ( सं० ) ( हि० ) ( अ० ) ( हि ) ( हिं० ) ( सं० ) धर्मशर्माभ्युदय हरिचन्द ( सं० ) मनराम धर्म सहेली ( हि० ) धर्मसंग्रहश्रावकाचार पं० मेधावी ( सं० ) धर्मारोप शिरोमणिदास (हिं० ) धम पदेशश्रावकाना ब्र० नेमिक्स (सं० ) बोपदेव ( सं० ) सुखदेव ( हिं० ) (हिं. ) ( प्रा० ) ( हिल ) ( हि० ) २२, ( हि० ) ( ३२५ ) नखसिख वर्णन (fi) ननद मौजाई का आनंद वर्धन ( हि० ) भगवा १८५ २६, १८५ अन्य नाम नंदबतीसी नंदबत्तीसी २९० नंदांसा ३०८ नंदीश्वरपूजा ५५ | नंदीश्वरपूजा अजयराज १२३ नंदीश्वरपूजा लेखक मुनि विमलकीर्त्ति २१, १८४ | नंदीश्वर उद्यापनपूजा સ્ नंदीश्वरजयमाल टीका १८४ नंदीश्वरत्रत विधान १८४ नंदीश्वरवत कथा शुभचंद्र २६ नंदीश्वर विधान नववरवधान रत्ननंदि नंदीश्वरविधानका १३४, ३२० नमस्कार स्तोष नयचक्र भाषा ३० नयचक २१० १६७ २०, १८५ भाषा ( हि० ) ( सं० ) ६ विमल सूरि (हि० ) ( सं ० ) ( हि० ) (510) ( सं० ) ( हि० ) (R.) १३१ | नंदू सप्तमी पूजा १०९ १५५ - नरक के दोहे नरक दुख वन नरक निगोद वर्णन नरक न हेमराज देवसेन -· २६ ३०, १८५ नलदमयंती चौपई समय सुन्दर २३० | नवग्रह श्ररिष्टनिवारयू क नवग्रह निवारण जिनपूजा ૧. ૧૪ नवग्रह पूजा विधान नवतत्व वर्गांन — नवतत्ववर्णन नवतत्ववालाबोध नवरत्न कवित नववाडी नो सिकाय ( सं ) ( दि० ) ( सं० } (सं० ) ( सं० ) (B.) ( हि० ) ( सं० ) पत्र सं० ६४ १५. २५५ ५५ १३० २०१ ५५ ५५ ५५ २०६ ५५ २०२ २०६ २०२ ३०१ 8.3 १९६ ( ६ि० ) २००. १२७ (हि) 30 (हिक ) ( हि० ) ( हि० ) ( हि० ) ( सं ) ( सं ० ) ( हि० ) ( सं० ) ( ३० हि० ) ( हि० ) ( हिं० ) ६. ६, १३८ २६.१ २०२ ५५ २६.२ 可是如 १२५ ११२. २७७ २०१ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्थ नाम नव वाडी सिकाय न्हवन हवन विधि नाकोडा पार्श्वनाथ स्तवन समय सुन्दर नागकुमार चरित्र नथमल बिलाला नोदी मंगल विधान नागदमन कथा लेखक जिन हर्ष ( कालिय नागणी संवाद ) ਗਈਆ॥ ) ५.५ नागकुमार पंचमी कथा मल्लिपेण सूरि (सं० ) ३२३ नागदमन कमा (980) १३४ (हि० न०) २०१ नामकर्म प्रकृतियों का ( रात्रिभोजन कथा ) न नाममाला न्यायदीपिका न्यायदीपिका भाषा नारी चरित्र नारायण लीला नासिकेतोपाख्यान नास्तिकवाद नित्यपूजासंग्रह नित्यपूजा नित्यपूज‍ नित्यपूजा नित्यपूजापाठ नित्यपूजासंग्रह नित्यनियमपूजा नित्य नियमपूजा पत्ति धनंजय यति धर्म भूषण पन्नालाल - नंददास ( ३२६ ) भाषा पत्र सं० मन्थ नाम ( हिन ) rve ( सं ० ) } (in) ( हि० ) १४२ (हिं० प०) ८३ निर्माणका एड माषा लेखक नित्यवहार ( राधा माधो) रघुनाथ (हि० प ) नियम सार टीका पद्मप्रभमलधारिदेव २९७ निर्वाण काण्ड गाथा २८८ (सं० ) ( सं #) ये १५१ २८७ १३६ १८५ ५६ १६ ( हि० ) १४७,२०२ २४०, २६३, ३०८ (हि०)१०३, १०७, १२०, १२९, १३३, १६२, १७२, ३११ धनितराय ( हि० ) २०२ ( सं ० ) ( हि० ) t ( दि० ५६, २०२ ( हि०) १२४ ( हि० ) २६५ (हि० ) ०४, २२३ (सं० ) ६४ ( [सं० ) २३५ सं० ) २३५ (सं० ) (हि०) ११८ (हिन्) १४८ ( हि० ) १५०,१५१. ( हिन् ) १३६ | नेमिनाथ का बारहमासा श्यामदास गोधा (हि० ) नेभिगीत ( हि० ) १६७ ( हि० ) १६७ ( दि० ) २६० (for > २६० ( हि० ) १६७,२६२ (हि० ) १६५ निर्वाणकाएक भाषा भगवतीदास निर्वाय क्षेत्र पूजा १८० ! निश्चयव्यवहारदर्शन ५६ १५२ निर्वाण काण्डपूजा निर्वाणपूजा निर्वाणक्षेत्रपूजा (310) (सं०) ८८, ११२ (सं० ) ४७, ११६ (हि० ) ४७ {fi} ( हि० ) ( हि ) (सं० ( सं० ) ( सं० ) ( प्रा० ) ( हि० ) ( [सं० ५६, १४४ ( दि०) ५६,१७१, नेमिरालगीत हूगरसी चैनाडा २६३, २६६, ३०० : नेमिरा लगत स्वरूपचंद्र नुतखे नूर की शत्रुनाबलि नेमीकुमार बारहमासा नेमिनाथ के दश भव | निश्ष्टमी कथा म० ज्ञानसागर निशिमोजन त्यागकथा भारामल्ल नीतिशतक नीतिशतक नीतिसार नीलकंठ ज्योतिष १० ) २०२,२६०, नेमिराडलस्तवन २६३ नेमिराजमतिगीत ( प्रा० ) ૨. नेभिजी की लहर - चाणक्य भर्तृहरि इन्द्रनंदि नीलकंठ नूर - — जिनहर्ष भाषा पत्र सं० २÷२ tak ( 210 )204,22% १९६ पं० इगो २०४५ イ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३०) प्रन्थ नाम लेखक भाषण पत्र सं०। प्रन्य नाम लेखक भामा पत्र सं० मिजी को व्याहलो लालचंद (हि) ३.३ नमीश्वर लहरी नेमि व्याहलो ( नव मंगल ) हीरा (हि.) ८४ | नेमीश्वर विनती - (हि.) १५५ मंमिनाथ का व्यारला नाथू (हि.) १२. | नैपसी ( नैनरि जी) के व्यापार का प्रमाणा(हि.) १८० नेमि राजमति वैलि ठक्कुरसी (हि.) ११. नैमित्तिक पूजा - (हि.) १. नेमिनाथराजन गौत हर्षकीर्ति (दि०) १६६ पट्टावलि मनबाहु में पानंदि तक (सं.) १९७ नेमिनायचरित्र अजयराम (हि.) २९८ पत्रिका नेमिजिनपुराण ब्र नेमदत्त (सं०) ४,२.३ १३१, १३२ मेमिनाम मंगल _ - (हि.) १२५ अजयराज (6.) १३०,१६३ नेमिराममति गीत जिनहर्ष (हि.) १४. कनककीर्ति नमिरराजमति जखका हेमराज (हि०) ५१ कृष्ण गुलाब (दि.) १५१ नमिदूत काव्य विक्रम (सं.) कवीरदास (हि.) २६४ लेमितूत काव्य सटीक टीका० गुण विनय (सं.) कालिक सूरि (हि.) २६३ नेमिनाथस्तवन धनराज (हि.) २८६ किशनसिंह (हि. नैमिनाथस्तवन कुमुदचंद्र (हि.) २६ नेमिनाथस्तवन (सं.) किशोरदास मेमिनाथस्तोत्र (हि.} खुशालचंद्र (हि.) २६. नेमिनाथ स्तोत्र शालि पंदित {सं. चरनदास नैमिशीलवर्णन ___ - (हि.) छीहल नेमांश्वगीत जिनहर्ष (दि.) जगजीवन नेमांश्वरगाह हर्षकीर्ति (हि.) जगतराम (हि.) १३१,१३७ नेमीश्वरराजमतिगात विनोदीलाम (हि.) मीश्वरराजमति गीत - (हि.) जगराम नेमीश्वररावल संवाद विनोदीलाल (हि.) ३. पर जिनकुशलमूरि (हि.) ७ नमीश्वर के दराभवांतर अ० धर्माधि (हि०) १५७ जिनदत्तसूरि (हि.) २७ नमीश्वरंगीत छीहल हि.) ११. जिनदास (दि.१६४,१२१ नमीश्वरजयमाल भंडारी नेमिचंद्र (अप० । ११७ नेमीश्वरास रायमल्ल (हि.) ११३,१३२, जिनवल्लम २७२. २८८ जीवनराम नमीश्वररास नेमिचंद (हि.) १२५ - पद जोधा (हि. १३५, १५३ (हरिवंशराक) जौहरीलाल Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रन्थ नाम पदसंग्रह पदसंग्रह पपसंग्रह पदसंग्रह पद नाथू . (३३१) लेखक . . भाषा । सं० ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० देकचंद (हि.) ११३ पद बखतराम (हि १३७ टोडर वृन्द (हि.) १३२ डाजूराम विश्वभूषण (हि. ३१,९३२ संघपति राइ डूगर (हि.) २६३ | श्यामदास ब्र.दयाल (हि.) १.४ सालिग घानतराय कवि सुन्दर १६३, ३.. | पद सूरदास शेपचन्द्र . (हि.) ११३,१५१, १६ सोमचंद १५, १६३, २६६, १७, १३० पद हरखचंद ( धनराज के शिष्य) (दि. २८३ मंदास, (हि.) ११३ पदसंग्रह हर्षचंद नंददस (हि.) २८८ इर्षकीति नबलराम हरीसिंह (हि.) १.७,१३. 18 (हि.) १२७ नेमकीति पदसंग्रह (हि. (हि.)101,१०४ . पूनो (हि.) १३२ १२६, २८०, १२८, १४३, १४५ परमानंद १४६, १४६, २५१, १५३, १५८ बुधजन (हि. १६३, २६३, २६४, २६, ३.३ १५७ १३५, ८८, २७२ बालचन्द (हि) पदसंग्रह साधुकीति (हि.) भागचन्द २७३ (सतर प्रकार पूजा प्रकरण) बनारसीदास ११५, १६१, १६३ | पनापुराम रविषेणाचार्य (सं.) २२३ भूधरदास (हि. १९९,१३० पपुराण ( उत्तर खण्ड) २११, १५१ मनराम पानदिपंचविसति पयनदि (प्रा.) ३०, २५६ १२०, १४२, ३.०, ३१० पद्मनंदिपच्चीसी मन्नालाल विन्दुका (हि.) ३. मलजी (हि.) १३५ | पापुराणभाषा खुशालचंद (हि. x रामदास (दि. १३६,१३२ पद्मपुराणमाया दौलतराम (दि. १६४, १२३ ऋषभनाथ . . (हि.). १२१ पञ्चावतीअष्टकवृत्ति (सं०) १० रूपचंद (हि.) १११,११३ पनावतीकवर १३, १२६, १६३, १६५ । पावतीपटका (सं.) ३.२ पदसंग्रह Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३२) ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० पद्मावतीपूजा : २०२६ । पंचपरमेटपूजा - पंचपरमेष्ठीपूजा शुभचन्द (सं.) २.४ पत्रावतीकथा (6.) १८० | पंचपरमेष्ठीगुणस्तमन पं० डालूराम (हि.) २४. पथावतीस्तो सं. } १५४,२०२ पचपरमेठीस्तोत्र - (सं.) २७५ २७५ पंचपरमेष्ठियों के मूलगवा पमावतीस्तोत्र - (हि.) १.४ पंचपरमेष्ठियों की चर्चा (हि.) २७३ पद्मावतीस्तोत्रपूजा (सं.) २.४ पंचपरमेष्ठीमंत्रस्त वन प्रेमराज (हि.) १४१ पद्मावतीसहस्रनाम हि.) २०२,९०४. पंचतंत्र (मि) ३०४ पभगवतीस्तीत्रकवच । सं.) २४० पंचमकाल का गण मेद करमचंद पभावतीचउपई जिनप्रभसूरि हि०) १ पंचमीस्तवन समय सुन्दर (हि.) १४७ पंचकल्याणकपूजा पंजिनदास । सं.) ५६ | पंचमीसुति (सं.) १४२ पंचकल्याया पूजा सुधासागर (सं.) ५६ | पंचभास चतुर्दशी (भ० सुरेन्द्र कीति )(सं.) २०४ पंचकल्यायकपूजा - हि. ) ५१, २०३ नोापन पंचकल्याणक पूजा लक्ष्मीचन्द्र (हि.) २.२ ! पंचमीव्रताधापन - (सं.) २.४ पंचकल्याण कपूजा टेकचन्द (हि.) २०२, ५५, पंचमपूजा (हि.) ५७ पंचकल्यावाकपूजा (सं.) २०४ | पंचमेहपूजा भूधरदास (हि.)५५, ३११ पंचकमागाकवग (हि.) २६६ | पंचमेरुपूजा iहि.) ११२ पंचकुमारपूजा जवाहरलाल (हि.) ५. | पंचमरुजा | हि.) २०३,२८१ पंचकुमारपूजा (हि.) ३०१ | पंचमरुपूजा भकरमचंद सं०) २५५ पंचमंगल रूपचन्द (हिं० १०५,१११ | पंचमेरुपूजा (हि.) १३.. (हि.) १५-१ ११६, १२०, १२३, १४१, १४६, पंचवधावा १५३, १४, १५७, १६१, २४० ८६, २०४, ३०, ३०४, ११ पंचबधावा . हरीवैस (हि.) १६५ पंचमगतिवलि हर्षकीर्ति (हि.) ११२,१३० पंचलब्धि (सं.) १६ पंचसंसारस्वरूपनिरूपण (सं.) पंचदशशरीरवर्णन पंचसंधि (सं.) २३० पंचपरमेष्ठीपूजा यशोनति (सं.) पंचसंधिटीका पंचपरम पूजा डालूराम , पंचस्तोत्र (सं.) २३. पंचपरमेष्ठीगुप (हि.) १३. : पंचस्तोत्र (सं.) २५५ पंचपरमेष्ठीपूजा (२०) २०३ | पंचसहेली . छीइल (हि.) २६२ विश्वभूषण अजयराज Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्य सम जलक पंचाख्यान ( पंचतंत्र ) निरमलदास पंचायुक्त की जयमाल बाई मेघश्री पंचास्तिकाय पंचास्तिकाय टीका पंचारित कायप्रदीप पंचास्तिकाय भाषा पंचास्तिकाय माया पंचेंद्रियवेलि पन्थीगीत परमात्मपुराण परमात्मबत्तीसी परमार्थ गीत परमार्थदोहा शतक परमानंद स्तोत्र कुन्दकुन्दाचार्य अमृतचन्द्राचार्य पत्रकार के पात्र वर्णन पन्नाशाहजादा की चात परमात्मप्रकाश परमानंदरतोय परमज्योति प्रभाचन्द्र हेमराज बुधजन ठक्कुरसी योगीन्द्रदेव परमात्मप्रकाश टीका ब्रह्मदेव परमात्मप्रकाश भाषा दौलतराम परमज्योतिस्तोत्र पर्वतका राम्रो चील दीपचंद्र भगवतीदास रूपचंद्र रूपचंद पूज्यपाद स्वामी बनारसीदास ( ३३३ ) पत्र सं० | ग्रन्थ नाम (हि० ) ૬૨ ( हि० ) ३.४ (नयमूलसूत्र ) ( प्रा० ) १६, १८० प्रथम शुक्लध्यानपच्चीसी (हि) (सं०) १६, १८० | प्रक्रियारूपावली पं० रामरत्न शर्मा (सं० ) ( सं ० ) १६ प्रतिक्रमण ( हि० ) १६, १८ (हि० ) ( हिं०) ११७,११६ परीषद विवरण परीक्षामुख आचार्य माणिक्यनंदि परीक्षामुख जयचंद छाबडा १६५, २६६ ( [हिं०) ११४, ११६ २६४, ३०४ ( 180 ) १.७१ ( श्र० १ ४ १,१३४ ११०. १३२, १७१, १०३ ( सं ० ) ર ( हि० ) ४१ ( हि० ) ( हि० ) ३०३ (हि० ) ११६,९६० (हिं० ) प्रतिक्रमणसूत्र १६१ प्रतिमास्तत्रन प्रतिष्ठापाठ पृथ्वीराजवेलि प्रतिष्ठासारखं मह प्रबोधवार १२७ | 注 (हि०) १११ (सं०) १९२, १३२ १५७, २८८, २०२ (सं० ) २६६ (हिं० १७२, २०७ (सं० ) ( हि० ) (हि०) ३१, ३०९ (सं० ) (हि-) ** लेखक भाषा परिभाषापरिच्छेद पंचानन भट्टाचार्य (सं० ) ४८ YS प्रद्युम्नचरित्र प्रद्युम्नचरित्र म म्नचरित्र प्रद्युम्नचरित्र प्रस्नरासो काव्य पंजिका राजसमुद्र आशावर पृथ्वीराज वसुनंदि पं यशःकीप्ति - सधार महासेनाचार्य कविसिंह प्रमातजयमाल विनोदीलाल प्रमादीगीत गोपालदास मेयरत्नमाला अनन्तवीर्य ३११ प्रयोगमुख्यसार २८७ प्रवचनसार प्रवचनसार भाषा - प्रबोधनावनी जिनरंग प्रबोधचन्द्रोदय मल्लकवि प्रबोधचन्द्रोदय नाटक कृष्ण मिश्र प्रवचनसार भाषा प्रवचनसार भाषा ० रायमल्ल कुन्दकुन्दाचार्य हेमराज वृन्दावन हेमराज (सं० ) ( सं ) (हि-) (हि०) ( सं ) पत्र सं० १६ (प्रा० ) (सं० ) ३१ ( प्रा० )२५६, ३१० ( हि० ) १४१ (सं० ) १७२ ( हि०) ३२ ३ (हि० ) ( हिन्) ( सं० ) ( हिन्) ( हि० ) ८७ ५७ ३१ ७० ७० २१३ ( अप० ) २५३ २०३ ( प्रा० ) (हि० ) १३२,३०० १९३ १४९ ६० २३३ ३०१ २८१ ( ० ) ( सं ) २३० (प्रा० ) ४२, १६३ (६०० ) ४२ १११, १६३ ( हि०) ૪૨ ६हि० प० ) १६३ = Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३४) ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० अन्ध नाम लेखक भाषा पत्र सर प्रवचनसार सरीक अमृतचंद्र सूरि (सं.) १६३ ! पार्श्वनाथस्तबन विजयकीर्ति (हि.) १४१ प्रश्नोत्तरीपासकाचार बुलाकीदास (हि.) १५,१८६ | पाश्वनाथस्तवन (सं.) ३०६,३१० प्रश्नोत्तरश्रावकाचार सकलकीर्ति (सं० ) ३१, ३२, ! १८६ पार्श्वनाथनमस्कार अभयदेव (प्रा.३०१,२६४ प्रश्नोत्तरमाला पार्श्वदेशान्तर छन्द प्रशस्तिका (सं.) २५६ पार्श्वनाथस्तुति (हि.) १६५ प्रसंगसार रघुनाथ (हि.) २६२ पार्श्वनाथस्तुति भाव कुशल (हि.) १४॥ प्रस्ताविकदोहा जिनरंग सूरि (हि०) १४५ এলাখালী। (सं.) १.४,२८७ पल्यविधान पूजा रजनंदि (सं० ) ५८, १७२ १४७,२४०,२१ पल्यविधान (दि.) १५७ पार्श्वनाथस्तोत्र (प्राचीन हि०) १३३ पल्यबिधानकथा | पार्श्वनाथस्तोत्र जिनराज सूरि (सं.) १४० पल्मन्नतोधापनपूजा शुभचंद्र (सं०) २०५ कमललाभ (हि.) १४. पत्यविधानकया अज्ञानसागर (हि.प.) २६५ षाचनामस्तोत्र. मनरंग पहेलियाँ - (हि.) १३६ पार्श्वनामस्तोत्र जिनरा (दि.) १४० पाखशहदलन वीरभद्र (सं.) १८१ | पार्श्वनाथस्तोत्र (हि.) ११२ पाखीसूत्र कुशल मुनि | पार्थनामस्तोत्र मुनि पद्मनंदि। (सं.) २४. पाठसंग्रह (प्रा.) १७२ पार्श्वनाथस्तोत्र राजसेन (iv) २६६ पाठसंग्रह पाश्वनाथलधुस्तोत्र समयराज (हि.) १४० पाठसंग्रह (सं.) १७२ पार्श्वनाथ का सालेहा अजयराज (हि.) ३०,१६३ प्राकृतव्याकरण (सं०) २३० पाय जिनस्थान वर्णन सहजकीति (हि.) १४७ प्राकृतच्याकरण (सं.) ३. पार्श्वनाधचरित्र भ० सकलकीर्ति (सं.) २१३ परिवपुराण बुलाकीदास (हि०) पार्श्वपुराण भूधरदास (हि० ) ७२,१११, पोडवपुराण (सं.)६४, १२३ २१३ पार्श्वनाथपूजा | पार्चलघुपाठ (प्रा.) १.४ पार्श्वनामजयमाल (सं.) १५४ पास्तोत्र (सं० ) ११२:२७६ पार्श्वनाथ की बीनती - (हि.) १५२ पार्श्वस्तोय पद्म प्रमदेय (सं० ) ११२,२८७ पावनागजिनस्तवन (सं० ) १४० | पार्श्व भजन सहज कीति (हि.) १४७ पार्श्वनाथस्तवन (हि.) १३८,२४० पार्श्वस्तोत्र हरखचंद ( धनराज के शिष्य ) (हि. ) २८८ प्रायश्चितसमुश्चय मंदिगुरु (सं० ) ३१,१८६ पावनापरतवन रंगवल्लभ (हि.) १४० । प्रायश्चितसंग्रह अंकलंक देव (सं.) १८६ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य नाम . लेखक भाषा पत्र सं० ग्रन्थ नाम भाषा पत्र सं० पाशाकेवली (सं०) २४५ पूजा एवं श्रमिषेक विधि (सं.) २.३ पाशाकेवली हि.) १२५ माटेगा (सं.) २ (अवजदकेवली) पूजा स्तोत्रसंग्रह (हि.) ४ पादिक्सूत्र (सं०) ११ | पोसापटिकम्मण उठावना विधि पीपाजी की चित्रावनी (हि.) २८० पोपानी को परिचई - प्रीतिकरचरित्र न. नेमिदत्त (सं.) ७२,२१३ / फलपाता प्रीतिकरचौपाई नेमिचंद (हि.) १२७ (फलचितामणि पुण्डरीकस्तोत्र - (सं.) २८८ फलवधी पार्श्वनाथस्तवन पदमराज (हि.) १४. पुण्यपाप जगमूल पच्चीसी भगवतीदास (दि.) १५५ फुटकर कवित्त (हि.) १५१ पुण्यसारकथा पुण्यकीर्ति (हि.) २३ | फुरकरगाथा (प्रा.) २५७ पुण्याश्रय कथाकोष दौलतराम (हि.) २२६,८४ | फुटकर दोहे तथा | फुटकर दोहे तथा गिरधरदास (हि.) १३७ पुण्याश्रवकभाकोष किशनसिंह (हि.) १२५ । कुलिया पुण्याहवाचन (सं०) २८८ ब पुरन्दरचौपई मालदेव पुराणसारसंग्रह भ. सकलकीर्ति (सं. ६४ ! चाककका मनराम (हि.) १५३ पुरुषार्थसिद्धयुपाय अमृतचंद्राचार्य (सं० ) ३२, १८५ बडाफल्याय पुरूषार्थसिद्धयुपाय पं. टोडरमल (हि.) ३२५ মান (सं.) १०४ पुरूषार्थसिद्धयुपाय दौलतराम (हि.) १८५ | पचीसी मनराम पुरुषार्थानुशासन गोविंद (सं०) १८६ बधाई बालक अमीचंद (दि.) १३. पुथमाश हेमचंद्र सूरि (प्रा.) १८६ । प्रधाना पुष्पांजलितोद्यापन - (सं.)२०४, ५८ | बनारसीविलास बनारसीदास (हि.) ४, ११४, पुष्पांजलिव्रतकथा त्रज्ञानसागर (हि. १८) २६५ ११५, १९८, १२०, १३०, १५३ गूजन क्रियावर्णन पाबा दुलीचंद (हि.) ५० पलभद्रपुराय (अप.) २२३ पूजासंग्रह (हि.) ५८, २७४ बहरिजिनेन्द्र जयमाल - (सं.) १३६ भाईस परीषह भूधरदास पूजासंग्रह (सं.) ५८,k पूजासंग्रह (सं.हि.) ११२, माईलपरीषह (हि.) १७,१८२ - ___रइधू पूजापाठसंग्रह - (हि.) १५४, १५८, बाल्यवर्णन . १६३, १६५, २६४, २६.७, ३०६, २०३ मावनलम्ब अजयराज रूपदीप (हि.) (हि.) १३० ३ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ॥ ( ३३६) प्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० | ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० भारहवम प्रेता नथमल (हि.) २२७ मारहखडी सूरत (नि.) १४,१६१ (धनदत्तसेठकीकथा) २५७, ३५१ | देतानजयमाल बारहखडी ( हिं० ) १४२,१५७ अंदना अजयराज भारहखडी श्रीदत्तलाल हि.) १६२,१६६/ बंधचोल बारहभावना (हि.) २६३,३०० ब्रह्मविलास भगवतीदास (हि) २३ १३६ अ चर्यनत्रवादि वर्णन पुठण्य सागर (हि.) १४ बारहभावना भूधरदास बरहम बना भगवतीदास (हि.) १६२,१६६ बारहमाला भक्तमाख बारहवतोयापन भक्तामरपूजाउद्यापन श्री भषण (सं.) ५६, २०४ (द्वादसत्राविधान ) भकामरस्तोत्रपूजा श्रा० सोमसेन (सं.) २०३ बाहुबलिचरिए पं०धनपाल (अपर) ७२ सक्तामरसूजा (सं.) १५८ (बाहुबलि देव चरित्र भक्तामरमाषा गंगाराम पांड्या (हि.) १२६ मीमतीर्थकर जखडी भूधरदास (हि.) ३११ । भक्तामरभाषा (हि.) १२४,२६० बीसतीर्थंकरों की जयमाल (हि.) १२३ २५., ३०१, ३०३, ३१२ बीसतीर्थकरों को नामावलि भक्तामरस्तोत्र श्राचार्य मानतुंग (सं.) ११, १०५ पीसतीर्थकों की पूजा अजयराज १०६, १०, १११, ११२, १२६, १३५, (हि.) १३० चीसतीशंकरपूजा पन्नालाल संघी। (हि.) २०३ २६२, २४, २६४, २७६, १७, बीसतीर्थकरपूजा नरेन्द्रकीर्ति २८०, ३००, ३१०, ३११, ३१२ सं.) २.४ बीसतीर्णकरस्तुति सहजकीर्ति भक्तामरस्तोत्र माषा हेमराज (0) १.४, ११२ (हि.) १४७ ११५, १३५, १३६, १६४ बीसविरहमान के नाम - (हि.) १२१ १७२, २६३, २४, ३०२, बीसविरहमानस्तुति प्रेमराज (हि.) १४७ चीसविद्यमानतीर्थ कर पूजा (हि.) ३.१ भक्तामरस्तोत्रटीका - (सं.)।०५, १०६. बीसा यंत्र (हि.) २८५ बुद्धजनविलास बुधजनं (हि.) १७३,३१२/ भशामरस्तोत्र टीका खयराज श्रीमाल (हि.) ११५ सुधजनसतसई बुधजन (हि.} १४ भक्तामरस्तोत्रवृत्ति प्र० रायमल्ल (सं.) १०६ बुधराम (हि.) १५० भक्तामरवृत्ति म० रतनचन्द्र सूरि (सं.) २४१ वेलिफेविषैकयन हर्षकीति (हिं०) १२८ | मक्तामर स्तोत्र भाषा जयचन्दजी छाबड़ा (हि.) २४२ बाधिपाहुह भाषा जयचंद छाबड़ा (हि.) १६५ | मक्तामरस्तोत्रभाषा कमा माहित नथमल (हि.) २४२ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवसेन श्रुतमुनि रामदेव (३३४) ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्रस० ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० भक्तामरस्तोत्र माषा या सहित विनोदीलाल (सं० ) १२६ | भवसिंधुचतुर्दशी बनारसीदास (हि) २६१ भक्तामरमंत्रसहित - (सं० ३१८ ! भत्र वैराग्यशतक भक्तामरस्तीप्रकथा भागवत महापुराण भाषा नंददास भक्तिभावती (हि.) २६५ भारतीस्तोत्र (सं.) २४२ मक्तिमंगल बनारसीदास (हि.) १५२ मावनाबत्तीसी अमितिगति (सं.) १५६,२५, भक्तिवर्णन (प्रा.) १४ भावनावर्णन भगवतो पाराधनाभाष। मदा सुख कासलीवाल । हि. ) ३३, असलीवालदि । सावसंग्रह मावसंग्रह प्रा.१२.१८१ भावसंग्रह भगवतीसूत्र (प्रा.) भात्रों का कथन (हि.) ३७ भगवानदास के पद भगवानदास (हि. भास मनहरगान भट्टारक देवेन्द्रकोनि की पूजा -- मनहरण । हि०) २६२ सं.) भाषाभूषण महाराज जसवंतसिंह (हि.) भट्टारकपट्टावरती (हि०७० सारस्वत शर्मा (हि.) भुवनेश्वरस्तोत्र सोमकीति (सं०) मडलीविचार २७५ २५५ भूधरविलास भूधरदास हि ३१२ श्रा. रत्ननदि (सं.) ७३ किशनसिंह | भूपालचतुर्विशति भूपाल कवि भद्रबाहुचरित्रभाषा (40) १०६, २४२ भद्रबाहुचरित्रमाण चंपाराम (हि.) २०४ मोजचरित्र पाठक राजबल्लभ (सं.) ४ मयहरस्तोत्र भोजपबंध प०अल्लारी मगहरस्तोत्र (सं.) 10,२८८ भयहरपार्श्वनाथस्तोत्र -- प्रा. . | भातराजदिग्विजयवईनभाषा मजालसराय की चिट्टी भरत पक्रवर्ति के :६ स्व सरनों का वर्णन (दि. १५ | मन्ग्रिहार गीत कवि वीर (हि.) २६३ भरतेश्वरवैभव (यप० । ११. मातिसागर रोट की कथा - हि.) १५१ मत हरि की वार्ता मदनपराजय नाटक जिनदेव (ग) ६१, २३४ भतृहरि शतक भर्तृहरि (सं०) ३१॥ | मदनपराजय भाषा स्वरूपचंद विलाला (हि.) १ भविष्यत्त चरित श्रीधर (अ५७) ७४ । मदनमंजरी कथा प्रबन्ध पोपट भविष्यदत्त चरित्र श्रीधर (रा) २६ | मध्यलोक वर्णन ...भविषदत्तपंचमी क्या पंधनपाल । अप • } ७३, २१६ मध्यलोक चैत्यालयबसौन --- भविष्यदत्ताचौपई व रायमल्त (हि.) १११, २१६ मधुमालती कथा चतुर्भुजदास (हि.) २८१,०६ भविष्यदत्तकमा (दि. १६१ | मनराम विलास मनराम Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भट्टी ANAN ( ३३८ ) प्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० । ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० मनुष्य की उत्पत्ति { हि.) १४१ : पुनिमाला (हि.) १४८ मनोरथमाला (हि.) १६४ मुनिवर्णन महादेव का ब्याहलो (हि०) 135 निवा स्तुति (हि.) १५१ महाभारतकथा लालदाम (हि. ) १३६,२६७ मनौश्वरों की जयमाल जिणदास (हि ) १६५,३०५ महाभारत कथा (हि.) ३०१ | मुनिगीत महावार वामती (हि.) .५६ . पुनिस्मतानुज्ञा योगदेव । (चदिनपुर। मुलाभिमान र खुशालचन्द्र (हि.) २२० महावीरस्तवन जिनबल्लभ (सं.) १४१ मुक्तावलीनतोधापनपूजा ---- (सं.) २.६ महाबीर स्तवन पुकुटसप्तमीकथा प्र. ज्ञानसागर (हि.) : ६५ महाबीर स्तवन मुकुटसप्तमीबतकमा खुशाल चन्द । हि०) २६७ महीमट्टी मूटावृकवर्णन भगवतीदास (हि.) १३२ महीपालचरित्र मुनि चारित्रभूषा (सं.) ७४ मूलाचारप्रदीपिका भः सकलकीति (दि. ३३ महीपाल चरित्र नश्रमल (हि.) २ मूलाचारभाषा टीका ऋषभदास (हि.) ३. मांगीतुगी तीर्थ वर्णन परिखाराम मेघमारगीत (हि ,१५,११. मांगीतु गी की जबढी रामकीर्ति (हि.) २७. १२०, १३, १४,६४, १९७ मांगीतुमी स्तवन (दि.) ३०३ मेघकुमासगीत कनककात्ति (हि.) २२७ मतिचत्तौसी यशःकौति (हि.) २८२ | मेघदत्त कालिदास (सं.) २१७ मातृकापाठ (हि.) १४% मेघमालाउद्यापन मानवावनी मेघभारतावतकथा ब्रझानसागर (हि.) २६६ मानमंजस (हि.)२८,२६३ मेचमादावत कथा स्वशाल चन्द (हि.) २१, मामवर्णन (सं.) २१७ | मोनी बनारसीदास मारीस्तोत्र (सं.) ३१.! मालपच्चीसी विनोदीलाल (हि.) १. मोक्षमार्ग प्रकाश पंटोबरमल (हि.) ३४, १४७ माखामहोत्सव विनोदीलाल हि ) ३ मोहमुखवर्णन -- मासीरासा जिणदास हि.) १६६ मोडा हपकीति (हि.) १४८ मासांतचतुर्दशीपूजा अक्षयराम (सं.) २०. ! मोरनज लीला (हि.) १३६ मित्रविलास घीसा (हि.) ३१२ | मोहउत्कृष्ट स्थिति पीसी - मितभाषणीटीका शियादित्य (सं.) ४८ मोहमर्दन कथा (हि.) २०७ मिथ्या वस्लंडन अखतराम साह (हि.) १८७ / मोहवित्रकयुद्ध बनारसीदास (हि.):१,१६५ मिथ्यात्वनिषेध बनारसीदास (हि.} १७ | नंददास TY Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३६) ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० । ग्रन्थ नाम मौनएकादशीव्रतकथा ब्र. ज्ञानसागर (हि.) २६५ / यादवरासो मौनिव्रतोद्यापन (सं.) २०५ / यादुरासो मंगलाष्टक (सं.) १०६ योगशत मंगल विनोदीलात । हि०) १३१ योगसमुरचय मंजारीगीत जिनचन्द्र सूरि (हि.) २६४ मंत्रस्तोत्र (हि.) १४८ गोगसार मंत्रशास्त्रपाठ (सं०) २५ मगीसंत्रादवर्गान (हि.) १२५ | योगशारभाषा मृत्युमरेत्सव भाषा दुलीचन्द (हि.) ४२ योगीरासा मृत्यु महोत्सव {सं०) १० मृत्युमहोत्सव बुधजन लेखक पुण्यरतनगरिग गोपालदास अमृतप्रभ सूरि नवनिधिराम योगचन्द्र योगीन्द्रदेव भाषा पत्र सं० (हि०) २६२ (हि.) २६२ (सं.) २४७ (सं.) (हि.) १६५३०४ (प.) ४., १४ २१६, १२८ योगसार बुधजन पांडे जिनदास (हि.) ४२, १२० १२२,१६५ य रक्षाबंधन कया प्रज्ञानसागर (हि.प.) २६५ गत्याचार वसुनंदि (सं० ) ३४ ' रघुवंश कालिदास (सं०) १८ यंवचिन्तामगि (हि.) २ ४ रजस्वला स्त्री के दोष - (सं.) १४६ यंचलिखन व पूजने की विधि (सं) ३०१ स्खकर एकश्रावकाचा समन्तभद्राचार्य (सं० ) ३. यशस्तिलकचम्पु सोमदेव (सं.) ७४ | रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका प्रभाचन्द्र (सं.) ३४ यशोधरचीपर अजयराज ___(हि.) ७ रनकरण्डश्रावकाचार सदासुख काशलीवाल (हि०) ३४, ९८५ यशोधरचरित्र खुशालचन्द्र भाषा यशोधरचरित्र ज्ञानकीर्ति (सं.) ५, २.५ स्नकरण्डश्रावकाचार भाषा थान जी (हि.) १८७ . २१०, २६७ बलत्रयजयमाल (हि.) ५६ यशोधरचरित्र परिहानंद (हि.) ७१ रखत्रयजयमाल नथमल यशोधरचरित्र लिखमीदास (हि.) २१ रमंत्रक्जयमाल यशोधरचरित्र पद्मनाभ कायस्थ (सं०) २१७ पलप्रयपूजा (सं०) ५६.८ यशोधरचरित्र वादिराज सूरि (सं०) २१५ २०६ यशोधर चरित्र सकलकीति (सं.)७१,२१७ लत्रयपूजाभावा द्यानतराय यशोथरचरित्र बासबसेन (सं.) , 15 (हि.) १६,२०६ यशोधरचस्त्रि सोमकीर्ति रत्नत्रयपूजाभाष (in ) ५, २१५ २८७ यशोधाचरित्रास सोमदत्त सूरि (हि.) १२६ लवयपूजा केशव सेन (सं.) २०१ यशोधर चरित्र टिप्पण | रत्नत्रयपूजा श्राशाधर (सं.) २०६ याग माल (सं.) २८ ] स्वयवः कथा . झानसागर (हि०प०) २६५ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थ नाम लेखक भापा पत्र सं० । अन्य नाम लेखक भापा पत्र स० रत्नत्रयवतीयापन ५ ) २०५ | देखता वक्षीराम स्त्नावलीव गेद्यापन पृजा { सं० ) २.५ | रेखता कवीरदास रनसंचय विनयराज गण (प्रा.) १८१ / रेंदवतकथा देवेंद्रकीति (सं.) २२७ स्यणसार कुन्दकुन्दाचार्य (मा.) १. रोगपरीक्षा (हि.स.)२४७ रंगनाथ स्तोत्र (सं.) ३०१ | रोष ( कोथ) बर्णन गोयम (प.) १९७ रविव्रत पूजा (सं.) १०६ ! रोहिणीकपा (सं.) ५ रविवार कथा (हि.) १४६ : रोहिगीवन कथा ब्रज्ञानसागर (हि.प.)२६५ रविव्रतविधान देवेन्द्रकीति रोहिणवितकथा भानुकीति (सं०) रसारसमुच्चय {सं.) २४७ रोहिणीवतोयापन पूजा - सराज हि.) रोहिणीव्रतोद्यापन केशवसेन (0) ५२ रससार सं.) २४७ ल रसिकप्रिया केशवदास राममाला (हि.) १७लनाचीवासभेद विद्याभूषण रागमाला माधुकीर्ति हि०) २७३ लक्ष्मीस्तोत्र पनामंदि (सं.).०६,२४२ रागरागिनी भेद (दि०) २६ लक्ष्मीस्तोत्र राप्रभदेव (सं.) १. राजनीति कवित्त देवीदास (हि.) २३६ लत्मस्तोत्र । सं. १२७६, २८ राजमती नो चिलो हि.) २४१ लघुक्षेत्र समास (सं.) १७३ राजाचंद की चौबई - हि०) । लघुवारनी मनोहर राजाचंद की कथा पं० फुरोहि ) २८६ | लघुस्नपनविधि . राजुल का बारह मासा पदमराज (180) १.. लघुमंगल । हि.) ३११ राजुलभारतमासा (दि. 16 | लघुचाणक्यनीति राजलपच्चीसी (हि. ५ | लयुसमनाम । सं०) १२२,१५, राजुलपच्चीसी लालचंद बिनोदीलाल (हि.) १३. १३२. १८६, ११, १६६, २२७ | लघु सामायिक पाट रामकथा माता (हि.) २६. | लब्धिविधान उघान पूजा (i) २२, रामस्तवन लब्धिविधान पूमा रामकृष्ण काव्य पं. सूत्रकवि मं०) २१८ | लब्धिविधानव्रतीधापन - रामपुराण भः सोमसेन ii) २२३ सब्धिविधान कथा व ज्ञानसागर (हि.) २५५ (पापुराग्य । लधिविधानवता खुशालचंद हि०) २६.७ रूपदी पिंगल सकृष्ण (हि.) : लब्धिसारभाष। पं० टोडरमल (हि.) , २२ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जावणी ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र संक अन्य नाम लेखक भाषा पत्र संग लब्धिसार श्रा० नेमिचन्द्र (प्रा.) १ वृत्ताला कर भट्ट केदार (सं.) २३३ लारी संहिता राजमल्ल (सं० १७ व्रतोयोतनधान काचार अभ्रदेव (सं.) ३० (हि) २ | वृत्तरलाकरटीका सोमचन्द्र गरिण (सं० २३३ लिंगानुशासन हेमचन्द्राचार्य (सं.) २३० वृन्दविनोदसतसई वृन्द (हि.) ११ लीलस्वती वृहदमतिक्रमण नीलावती भाषा (हि. १७३ वृहदशांति विधान वृहदशान्ति स्तोत्र (प्रा.) (सं०) १०६ वुहदशान्तिस्तवन (सं०) ३१५ वहरागीगीत वृहददिकपूजा वच्छराज हंसराज चौपई जिमदेव सूरि (हि.) ३. व्यसनराजवर्णन टेकचद (हि.) १७३ वज्रदन्त चक्रवर्ती की भावना- (हि.) १३३ वसुधारा वजनामि चक्रवर्ती की मादना भूधरदास ( हिं . ) ११४,१५७ वाय गोला का मंत्र - हि.) ५४ बाईसपरीष वर्णन पंजरस्तोत्र - (सं.) २७५ | वाईस परीषर भूधरदास । हि०) ३११ वणिकप्रिया कवि सुखदेव (हि.) २२१ ! वासवदत्ता महाकवि सुबंधु । सं० २१८ पदमाण कब पं. जयमित्रहल (अप) ७५ | पंचक विचार (सं.) ३१२ ( वर्तमानकाव्य) | बिन मप्रबंधरास बिनय समुद्र हि०) २६५. वणिजारोरास रूपचंद (हि.) १६३ | विश्नहरस्तोत्र (प्रा.) १८.. वरांग चरित्र वर्द्धमान भट्टारक (सं.) ७०,२१८ | | विन्दारषत्रिंशिका धवलचंद के शिष्य (सं.) ४३ वर्धमानचरित्र सकलकीर्ति (सं.) ७०,२२३ गजसार बद्धमानचरित्रटिप्पण - (सं.) १७३ | विजयसैठ विजया सूरि हर्षकीति (हि.) २१. बर्द्धमानजिनद्वाविंशिका -- (सं.) ३१० । सेठाणी समझाय वर्द्धमानपुराणभाषा पं० केसरीसिंह (हि.) ६५ | विजुच्चर अणुपेहा - अप.) ११५ बह मानपुरायमाषा - (हि.) ६६ | विदग्ध मुखमंडन धर्मदास (सं.) ७०,२१४ बर्द्धमानपुराण सूचमिका विद्यमान नीसती कर पूजा - (हि.) . बद्ध मानस्तोत्र (सं०) २६६ | विद्यमान घीसतीर्थकरराजा जौहरीलाल (हि.) ६.. वद्ध'मानस्तुति (सं० ) ३१० | विधाविलास चौपई श्राज्ञासुदर (हि.) २६६ व्रतकथाकोष भाष! खुशालचंद (हि.) ८५,२२६ | विनती अजयराज (हि.) २४३,३१ प्रतकथाकोश श्रुतसागर (सं०) २२६ प्रतविधानरासो संग (हि.) २५% विनती कनककीति (हि.) १३१,१४६ . Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्थ नाम विक्की विनती विनती संग्रह विनती विनती विनती संग्रह बिनतीसंग्रह विमलनाथपूजा विमलनाथ पूजा विमलनाथपूजा त्रिवेकचॉपर विरहनी के गीत विवेक खडी विष्णुसहसनाम विषापहार विहार टीका विषापहारस्तोत्र विशेष सत्तात्रिमंभी बिहारी पतस विनती संग्रह लेखक किशनस्ि वीतरागक वीरतपसभा वीरस्तवन बैताल पच्चीसी वैताल पच्चीसी वैजीवन जगतराम देवाब्रह्म पूनो मनराम 1! रामचंद ब्रह्मगुलाल T नागचंद्रसूरि धनंजय विहारी भूधरदास लोलिम्बराज भाषा पत्र सं० (Re) ( हि० ) ( हि०) (हि० ) हि० ) ( ३४२ ) १२६ १३२ १३१ (०) २०६, ३१७ वैराग्यशतक (हि० ) १०४,१२८ वैराग्यशतक १५७, २७३ वैराटपुराय (हिं०) १५८,२०० वैराम्यमाना (सं० ) (हि० ) | हि० ) ( हि० ) ( सं० ) ( हि० ) (सं० ) २०६ ३०४ २७५ २७२ ग्रन्थ नाम बंद्यलक्षण चैनविखास د - २९१ शत्रु जयमुखमंडल श्री श्रादिनाथ स्तवन २४३ | शत्रु जयमुखमंडनस्तोत्र विजयतिलक (सं०) १०६, १०० ( युगादिदेव स्तवन ) १५७, १५८, २४३, २७८, २०० विषापहारस्तोत्र भाषा अचलकी ति ( हि०) १०६, १२४ १२६, १३१, २४३ (हि० ) १-२ ( हिं०) १११,१३४ शनिश्चरस्तीय दशरथ महाराज ( हि० ) ३११ शनिश्चरस्तोत्र ( सं० ) २१० शान्तिकरणस्तोत्र ( हि० गु० ) १०६ ( सं ० ) २०५ ( हि० ) २६४ (हि००८ ( सं० ) २४७ पच्चीसी लेखक बनारसीदास नागरीदास भगवतीदास भर्तृहरि प्रभु कवि भूधरदास श शकस्तवन सिद्धसेन दिवाकर भर्तृहरि शतकत्रय शब्दानुशासन वृत्ति हेमचन्द्राचार्य शब्द व वातु पाठसंग्रह शब्दरूपावली शान्तिचक्रपूजा शान्तिनाथपूजा शान्तिनापुरासा शान्तिनाथपुराण शान्तिनाथजयभाऊ शनिश्चरदेव की क्या --- भापा पत्र सं ( हि० ) सुरेश्वर कीर्त्ति अशग सकलकीत्ति अजयराज शत्रुजियोद्वार 2 भानुमेरु का शिष्य ( हि० ) नयसुन्दर (हि-) २५० (हि० प०) ४२, १३३, १७२ 63 ( प्रा० ) ( सं ) (हि० ) ( हि } ( सं० ) ( सं ) ( [सं० ) ( सं ० ) ( सं० ) (सं० ) ( गु० ) २०१ १४२ २६३ ३११ ܕ २३६ २३३ २६४ ८७ ३१० २४३ १२३ (हि०) २६७,८५ १३४, १३८ १४० २७५ ( प्रा० ) ( हि० ) ( प्रा० ) २६८ (सं० ) ६०, २०४ ( सं ) २०७ ( सं० ) ક્ર્ (सं० ) ६६, १२४ ( हि० ) १३० ९ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद्ममंदि ३. ( ३४३ ) ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० ग्रन्थ नाम लम्बक भाषा पत्र सं० शान्तिपाल -- (सं.) १५६ शुभाषितार्गार (सं.) १६३ शान्तिनाथस्तवन केशव (हि.) २१ | श्रद्धाननिर्णय शान्तिनाथस्तवन गुणसागर (हि.) २०२ थचकाचार अमितगति (सं. सान्तिनामस्तोत्र गुरुभद्र ( गुणभद्र) (सं.) ११५ श्रावकाचार गुणभूषणाचार्य शान्तिनामस्तोत्र कुशलवर्धनशिष्य (हि० २४२ । श्ररवकाचार (सं.) ३५ नगागणि आक्काचार पूज्यपाद (सं. शान्ति नामस्तोष मालदेवाचार्य (सं०) ३१२ श्रावकाचार योगीन्द्र देव ( अप.) १६ शान्तिस्तवन (सं.) ३१ श्रावकाचार वसुनंदि (सं.) ३५ शान्तिस्तवनस्तोत्र श्रावकाचार (प्रा.) शालिभद्रचौपई जिनराजसूरि (हि.) ७,२६. श्रावकाचार शारितभरचौपई (हि०) २७२ श्रावकाचार (हि.) १८८ शालिमसम्झाय मुनि लावनस्वामी (हि) १७४ श्रावकाचारदोहा लक्ष्मीचंद शालिहोत्र पं. नकुल (सं० हि ) २६६ } श्रायकों के १७ नियम - शास्त्रपूजा द्यानतराय ० ६ . | श्राव कक्रियावर्णम - शास्त्रमंडलपूजा ज्ञानभूषण (सं.) २०४ . आत्रकधर्भवनिका - (हि. ३४ शिखरविलास मनसुखराम (हि.) १८८ . श्रावकदिनकृत्यवर्णन - शिवरविलास (6.) २६ । श्रावक प्रतिकमसूत्र - (प्रा.) ५,२६४ शिक्पच्चीसी बनारसीदास (हि.) २८,२६१ श्रावकनी सम्झाय जिनहर्ष शिवरमकी का विवाह अजयराज (हि. १६३ | धर्मवर्णन (हि.) १७६ शिशुपालवध महाकवि माघ (सं०) १ प्रावकसूत्र (प्रा.) २६. शिष्यदीक्षाबीसं। पाठ - (हि.) २ , श्रावणद्वादशी कथा व ज्ञानसागर (हि०प०) २६५ शीघ्रबोध काशीनाथ (सं०) २४॥ | श्रीपालचरित्र कवि दामोदर (प.) शीलगीत भैरवदास (हि.) २६४, श्रीपालबधि श्रीपाल चरित्र दौलतराम दौलतराम (हि.) ७८ शीतलनाथस्तवन धनराज के शिष्य (हि.) २ श्रीपालचरित्र बनेमिदत्त सं०) ७८,११६ हरखचंद श्रीपालचरित परिमल्ल (हि.) ७६,२१६ शीलकमा भारामल्ल (हि- ५,२८७ श्रीपालचरित्र (हि. ग.) शीलतरंगिनीकथा अखेराम लुहाडिया (हि ५० ८६ | श्रीपालदर्शन (हि.) १४६ शीलरास विजयदेवसूरि (हि.) १३१,२६१ श्रीपालास न रायमल्ल (हि.) ११.३,१३१ शुकराज कमा माणिक्यसुन्दर सं०) २२ २७०, २१,२८, ३.४, ३०७ ( रात्रु जयगिरि स्तवन) श्रीपाल की स्तुति Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक ग्रन्थ नाम भा। पत्र सं० ग्रन्थ नाम लेखक भापा पत्र स० श्रीपालस्तोत्र, (हि.) १४: षभरिपाट {सं. १४ श्री अजित शान्तिस्तान --- (पा.) १४० । घट्मालबर्ग में श्रुतसागर हि५) १४३ श्री जिनकुशलमूरिस्तुति उपाध्याय जयमागर (हि. ) १४० | | षष्टिशतं भण्डारी नेमिचन्द्र (सं.) ३५० श्री जिननमस्कार यशोनंदि (हि.) to घोडशकारण जयमान श्री जिनस्तुति ० तेजपाल पोशकारण जयमाल रइधू । प्र०) ६१ ६ तज्ञानवर्णन षोडशकारणजयमाल - । ।सं.) । श्रुतमानमताचापन । सं० २०५ षोडशकारगा पूजा भुतमाम पूजा (सं०) २०० षोडशकारण पूजा उद्यापन केशवसेन सं.) २०४,२०७ थ तोचापन ३०८, ६. श्रुतबोध कालिदास (सं.),२६३ | पोशारणताधापनपूजा त्र ज्ञानमागर सं.) ६० श्रुतस्कंधकथा न ज्ञानसागर हि० ) ३६, १८८ अशिकचरित्र गुणचन्द्र सार (ह) २६३ | षोडशकार व पं० सदासुख कासलीवाल (हि. १८ * शिकचरित्र जयमित्रहल (अप) ७६ भावना ओडिकचरित्र भ. विजयीति (हि.) ६. | षोडशकारणवत कथा खुशालचंद हि०) २६७ श्रेणिकचरित्र शुभचन्द्र | (सं.) २१६ षोडशकारण व्रत कथा त्र ज्ञानसागर (हि.। २६४ भोणिकचरित्र की कथ! - श्रृंगारपाचोसी छविनाथ (हि.) २५१ 'गारतिलक कालिदास (सं०) २५१ | सकलीकरण विधान (सं.)२७,२८७ सुगुरुतीख राज्जनचित्तवतम (सं०) ५६ षटकर्मोपदेशमाला अमरकीति (५० ) १८८,७८ साथ विजयभद्र । हि.) १७४ षट्कर्मोपदेशमाला भ० सकलकीर्ति (सं०) १८८ सज्झाय हि.) २६१ षट्कारिक पाट सत्तरिराय स्त्रोत्र पटनिशिका. महावीराचार्य (सं०) २४८ सतगुरु महिमा चरनदास (हि.) २८६ पदर्शन समुच्चय हरिभद्रसूरि सं०) १६६ सद्भाषितावली पन्नालाल हि ग० ) २.६६ षट्व्य (हि.) चर्चा १२४ २३७ पद्रम्पवर्यान (हि.)२२,१३८ सजाषितावनी (हि.) १५ षट्पाहुङ कुन्दकुन्दाचार्य (प्रा० ) ४३,११० १३२, १६४, २७५ संक्रांति तथा महाति चार परल - षट्पाहुटीका भूधरदास (हि.) १६४ | संगीत भेद (हि.) २६४ षट्पंचासिका बालाबोध भट्टोत्पल सं०) २४६ । संधपचीसी मनाहर प Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 10 W . .. ( ३४५) प्रन्थ नाम लखक भाषा पत्र सं० ग्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र सं० पंखेश्वर पार्श्वनाथस्तुति रामविजय (हि.) १५० सम्मेदशिख महान्य दीक्षित देवदत्त (सं० ) ३६,१६. संखेश्वर पार्श्वनाथस्तवन - हि.) ४. | सम्मेदशिखरमहात्म्य मनसुख सागर (हि.! मंथारा विधि । सं.] | सम्यम्प्रकाश डालूराम (हि. ३६ पन्मतितर्क मिद्धसेन दिवाकर (सं. १६६ सम्यग्दर्शन के पाठ घगों को कथा-- ।सं। ६ संस्कृतसंजरी सम्यक्त्व कौमुदी मुनि धर्मकीर्ति सं०) ८६ सप्तपदार्थी श्री भावविद्यश्वर (सं. सम्यकत्रकौमुदी कथा जोधराज गोदिका (हि०प० । ८६ सप्तऋषिपूजा - (सं.) १५,२०७ २२५ सप्तपरम स्थान कथा खुशालचंद हि०२६७ सम्यक्त्वकौमुदी कथा - हि। सप्तपरमस्थान पूजा । सं० २० सम्यक्त्व के पाठकों - हि.। १८ मतपरमस्थान विधान कथा श्रुतसागर (सं० ८६ का कमा सहित चन सातव्यसन कथा श्रा० सोमकीर्ति (सं०) ६६,१२ सम्यकचतुर्दशी मन्तव्यसन फवित्त ~ हि.) २५५ ! सम्यक्त्वपच्चीसी भगवतीदाम हि० ) ३६, १७२ 'सप्तन्यसन चरित्र दि.) २१५ सम्यक्त्वसप्तति पत्तश्लोकी गीता सं०) ३०२ : सम्यकवी का बचावा संबोधपंचासिका गोतमस्वामी प्रा० ) १२३,१८६ (हि. स भनीधपं शासिका त्रिभरनचंद समं तमद्रस्तुति समंतभद्र (सं.) .. संबोधपं नासिका माननराय (वृहद स्वयंभू स्तोत्र ) १२३, २७३, १११ संबोधपंचासिक देवसेन समयसारकलशा अमृतचन्द्राचार्य २०४६,१६६ पा. ११ २५६ संबोधपंचासिका विहारीदाम समयसारगाथा कुन्दकुन्दाचार्य बा १३३, संबोधपंचासिका ( पा० ) १३६ १६४,२८७ संबोधपं नासिक - (हि.) २०० समयसारटीका अमृतचन्दाचार्य (सं.) संबोधपंचालिकाका -- । प्रा• में 2 समयसास्नाटक बनारसीदास (दि. ४४,११६ संबोधपंचासिका रह ( प.) ११५, ११, १२०, १५८ संबोधसत्तरी सार - सं० ३५ EX, २७४, ३०० मम्मेदशिस्त्ररपूजा जवाहरलाल राजमल्ल हि. ४ ,F, सम्मेदशिखरपूजा नंदराम समयसारमाया जयचंद छाबड़ा हि सम्मेदशिखरपूजा रामचंद समयसारत्रचनिफा सम्मेदशिखरपून! समवशरणपूजा पन्नालालहि २८, सम्वशिवरपूजा (मं.) ०७ | समवशरणपूजा लालचंद विनोदीलाल (दि समयसारभाषा Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४६ ) ग्रन्थ नाम माषा पत्र सं० । अन्य नाम लेखक भाषण पत्र संग समवशरणपूजा जलितकीर्ति (सं.) २०७ | सत्रया बनारसीदास । हि.) १४. समवशरणस्तोत्र (सं.) २४५,२६४ | सहसगुणितपूजा भ. शुभचंद (सं.)२,२०० समाधितंत्र भाषा पर्वत धमार्थी (गु० ) ४५, १६५ . सहसमुखपूनम धर्मकीर्ति सं. समाधिय भाषा । हि.) ४५,२३२ . सहसनामपूज! धर्मभषण २६३, २८५ | सहस्रनामपूजा चैनसुख ममाधिमरण भाषा - । हि४५,४६, सम्रनामस्तोत्र • सं. 1 ५.८,१७२. सहेलीगीत समाधिमर प्र.) सखीसंबोधन समाधिमर न द्यानतरा' (हि.) १६२ सागारधर्मान्त पं० श्राशावर समस्तकर्म सन्यास मावना - साली कवीरदास हि ! २६,३०५ समाधिशतक ममंतभद्राचार्य सं०) ४६ | साठि संवत्सर समाधिशतक पूज्यपादसे .) ११. | सात प्रकार वनस्पति उत्पत्ति पाठ समुच्चय चौबीसी पूजा रामचन्द (हि. ११६ : सातव्यसनसन्झाय क्षेम कुशल : हि । २१ समुच्चय चौबीसी तीर्थकर अजयराज रहि० १५५ । माधी माई रामम्ल गयमल्ल हि. १७४ पूजा की चित्र समुकचय चौवीस तीकर जयमाल (हि.) १४ साधुवंदना समोसरणावर्णन (हि.) साधुओं के प्राहार के समग संयमप्रवहण मुनि मेघराज हि.प.) १८ ४ ६ दोषों का वर्णन सरस्वतीस्तोत्र विरंचि (सं० १०७ साधू बंदना अनारमीदाम सरस्वतीजयमाल परस्वती पूजा । सं) १५ सामायिक गार -- । सं.) १.८,१४ सरस्वती पूजा (हि.) १ २१, ३००, १. सरस्वती पूजा भाषा पन्नालाल हि.) सामायिकपाट सर्वज्जर समुच्चय दर्पण - सामायिकपाठमाला त्रिलोकेन्द्रकोनि (दि. १० सर्वमुख के पुत्र श्रमयचंद की (हि.! ३६ सामायिकाठमाषा जयचंद छावना नि ! १६ पुत्री (दिबाई ) की जन्मपत्री) भार्थसिद्धि. पूज्यपाद सामायिकीका सं.प्रा.) पर्वामिप्यायकस्तोत्र प्रा. १४. सामायिकमहात्म्य पुर्वाधिष्टाय करतोष सामाविकविकि शवैया केशवदास दि. ५ । सामुहिक लीक Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्थ नाम लेखक भापा स्त्र सं० प्रन्य नाम लखक भाषा पत्र सब समनोरथमाला साह प्रचल सिदाम्ससारदीपक भासकलकीति (सं.) २३,१८२ सारसमुचय खुलभद्रसिं | सिद्धान्तसार दीपक नथमल पिलाला (हि.! २५ सारसमुच्चय दौलतराम (हि.। . सिद्धान्तसार संग्रह आ. नरेन्द्रकीर्ति । सं०) १२ सारस्वत धातुपार हर्षकीर्ति । । २११ | सिद्धों की जयमान -- । हि.) ३.४ सारस्वत प्रक्रिया नरेन्द्र सूरि । सं० २.५ सिद्धाष्टक सारस्वत प्रकिया अनुभूति स्वरूपाचार्य (सं० : ८७,२३) सिंहासन तानिशिका । सं० २१९ सारस्वत प्रक्रिया टीका परमहंस (सं.) २३१ | सिंहासन बत्तीसी परिवाजकाचार्य सिंदूर प्रकरण बनारसीदास (हि.), ११४, सारस्वत रुपमाम पद्मसुन्दर ।सं। २३१ ११५, ११८, १३३, ३६, २८२ सारस्वत यंत्र पूजा (सं.। ३.८ | सीख गुरुजनो की। मास बहू का झमा (हि.) १७२३ सीता चरित्र गमचन्द्र 'बालक' हि.प.) .. सास बहु का संगबा देवा ब्रह्म (हि. . साद दयद्रीपाजा विश्व भूषण ।सं। २५% | सीता की धमाल लक्ष्मीचंद (हि.) १६. सिद्ध क्षेत्र पूजा - (हि.) २०. सीता स्यबरलीला तुलसीदास (हि.) २८ सिखचक्रपया नरसेन देव अप. सीमंधरतवन सिद्धचक्रपूजा नथमल बिलाला (हि.। २= सीमंधर स्तवन उपाध्याय भगत लाम। हि.) १४. अवाहिका पूजा) समिधरस्वामी जिन स्तुति -- दि० २६. सिद्धचकपूजा यानत राय (हि.! ६२ | सीमधरतवन गणि लालचंद (हि.) २. सिदचकतकमा नथमल | समंधर स्वामी स्तपन - प्रा.) ३५० सिद्धचक्रस्तवन जिनहर्ष (दि. १४, सुकुमाल चरित्र भाषा नाथूलाल दोसी (हि. ग. ) २१ सिद्धप्रियरतोत्र देवनंदि (सं.) १.८, २४१ पुकुमाल चरित्र भ. सकलकीत्ति (सं.) २१६. १. २६, २४४ १ गुरुशतक जिनदास गोधा (हिं० ) ३८, १६५ सिद्धपियस्तोय टीका सुगन्धदशमीपूजा सिद्धप्रियस्तार [सं०) २८७ / सुगन्धदशमी व्रत कथा नयनानंद (प.) ८६ सिद्धपूजा पानदि सुगन्धदशमी तथापन -- (सं.) २०.. सिद्ध पूजा हित २८६ सुगन्धदशमी तथा प्रशानसागर (हि.) १५ सिद्धान्तयन्द्रिका रामचन्द्राश्रम र सुगन्धदशमी पूजा व कया - . (सं.) २६ (कृदन्त प्रकरणी) | सुदर्शन चलि भ० सकलकीति (सं.) सिद्वान्तचंद्रिका वृत्ति सदानेदरवं.२३१ | सुदर्शन चरित्र विद्यानंदि ( ) १ सिद्धस्तति अजयराज रहि.) १३. प्रदर्शन जयमात (प्रा.) ११ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रन्थ नाम लेखक भाषा पत्र संः अन्ध नाम लेखक भाषा पत्र सं० सुदर्शनरास : ब्रह्म रायमल्ल (हि.१ १११,११३) सोलही जिनधर्म पूजा की (हि.) १६५ सोलह सतीस्तवन (हि.) १४. सुदृष्टि तरंगिण। टेकचंद (हि.) १६. | सोखहस्वप्न भगवतीदास हि०) १५५ मुदामा चरित्र (हि. १३६ (वण पत्तासी) मुषय दाहा (पा) १११ सोसट बंध कबीरदास (हि.) २६. सपाहुरिषिसंधि माणिक सूरि (हि. १४८ सौख्यकारख्य अक्षयराम (सं.) सद्धि प्रकाश थानसिंह (हि.प. १५ व्रतोद्यापन विधि ६३, २०५ सुभाषित हि.प.) | स्तंभनपार्श्वनाथगीत महिमा सागर (हि.) २७३ सुभाषितस्लानि भ० सकल कीर्ति सिंग ) E, ३३७ | स्तवन - (हि.) २१. सुभाषितरत्नसन्दान अमितान सं० २३६ स्तवन (हि.) २५० सुभाषितसंग्रह स्तवन जिनकुशल मूरि (हि. ३०० सुभाषिता -- सं स्तुति (हि.) ११३ मुमाषितार्णव शुभचंद्र यानतराय सुभाषितावलि भाषा + हि ) सतिसंग्रह चंद कवि (हि.) २४४ सुभद्रासतीस भार स्तोत्रका श्राशाधर सं०) ४४ सूतकवर्णन (सं.) १४६,१ स्तोत्रविधि जिनेश्वर मूरि हि.) २४३ सूतफभेद (हि.) १३१ स्तोवसंग्रह (सं.) १.१,१३६ सूक्ति मुक्तावलि सोमप्रभ सूरि सं० १००,२३४ १४६, २४४, २५६ सूति.संग्रह (सं० ) :| स्नपन पूजा (हि.) १३४ सूत्रपाइ मावा जयचंद छाबडा (हि.) १५५ स्नान विधि (प्रा. )२ सोलहकारगा हि २८६ स्फुट पर (हि.) १३३ सोलनकारण मान (अप.) २४ म्याद्वादमंजरी मल्लिषेण सोलहकारा जयमा (प्रा.) | स्वयंभूस्तोत्र समंतभद्राचार्य . ) ५:-, ११२ मालहकारगण पुजा - ११७, १३६ सोलह कारग पूजा टेकचंद । हि० ६२ | स्वर्ग नर्क और मोक्ष का वर्णन हि.) १६ सोलहकार पूजा यानतराय | स्वामी कार्तिकेयान स्वामी कार्तिकेय । प्रा.! ४ सोलहकारमा भावना हि.) १२ प्रेक्षा सोलह कारग भावना कनककीति हि.) १४२ | स्वामी कार्तिकेयानु जयचंद छावना . ! . . सोलहकाया विशेष पूजा --- . पा .३ प्रेना भाषा सोलहकाया पाचही - (मे १५ . Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थ नाम हनुमनकथा { चौंबई । अ० रायमल्ल जनुमर चरित्र 5. अजित हंसमुक्तावलि कबीरदास हंसामावना ज० अजित हरिवंश परागा खुशालचंद हरिवंश पुराण ब्रजिनदाम हरिवंश पुराण जिनसेनाचार्य हरिवंशपुराण दौलतराम पानः १. मं.. गाणगाम लम्बक भापा पत्र मं. इस्विंशपुराण महाकवि स्वयंभू अप. . हृदयालोकलाचन । सं ) . . ,१३२ हितोपदेशएकोत्तरी श्री स्वहर्ष के शिप्य { हि } १६.. श्रीमार ।सं २२१ हितोपदेश की कथा - हितोपदेशवत्तीसी वालचंद दि. ११७ हितोपदेशमात्रा . हि ग ! हुक्कानिषेध भूधरमल्ल. ।सं। २२४ हेमन्गाकरगा हेमचंद्राचार्य. सं. २३ (सं. होम विधान आशावर ।सं.) ... होलिकाचरित्र छीतर ठोलिया (हि. . ०२४ | होली रेणुकाचरित्र जिनदास (सं.) ८०:२: (अप० १४ होलीवर्णन (हि.) २ सं० २२० । हरिवंशपुराण परिवंशपुराण महाकवि धवल अशः कीत्ति Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम संख्या ܕ ३. 2. ५. 15. 5. £. १०. १९. १२. १३. ९४. १५. १६. १७. १८. १६. २०. २१. २२. २३. ★ ग्रन्थ प्रशस्तियों की सूची ★ ग्रंथ नाम अध्यात्म सवैया आगमसार आदिनाथ के पचमंगल आदिनाथस्तवन आराधनास्तवन इश्कचमन उपदेशसिद्धांतर नमान्दा भाषा उपासकदशासूत्र विवरण कृपा कथा अमरपाल ० जिनदास वाचक विनयविजय नागरीदास कर्त्ता रूपचंद सुनि देवचन्द्र अभयदेव सूरि रामदास एक सौ गुणहत्तर जीत्र पाठ लक्ष्मदास लच्छीराम नेमिचन्द्राचार्य करुणाभरन नाटक कर्म प्रकृति कर्मस्वरूप कविकुलकंटाभरण कामन्दकीय नीतिसार भाषा काल और अंतर का स्वरूप गणभेद गुणाक्षर माला गोमसारकर्मकांड भाषा गौतमपृच्छा चंदराजा की चौप चन्द्रहंसकथा चारित्रमापंजिका MA दूलह कामंद रघुनाथ साह मनराम पं०] हेमराज टीकम T रचना काल सं० १७७६ 1 1 मं० १७२६ सं १७७२ [1 मं० १८२४ T सं० १६०३ सं० १७०८ | ग्रंथ सूची का क्रमांक ६२८ १ २५.६ ५.१५. ६२१ १७० १४२ १५४ ७१६. y ૬ ११ 14 ی २७६ ४८ ی بر ६३२ ५४४ ७३२ ५४६ १६: A Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रचना काल प्रथमची का क्रमांक सं. १८७१ मंः १५३६ yes स. १५.८ सं १६५ ३१. मं० १E ३७. क्रम संख्या प्रन्थ नाम कना चारित्रमारभाषा मन्नात्वाल चौबीस ठाणाचौपई माह लोहट चौरासीगोत्रोत्पनिदान । नंदानंद छबितरंग महाराजा रामसिंह दरबारली हरिराम जइतपदवेलि कनकरगम ३०. जम्बूस्वामीचरित्र नाथूराम जानकीजन्मलीला बालवृन्द जिनपालित मुनि स्वाध्याय निमलहर्ष वाचक जैनमार्तण्ड पुरागा भः महेन्द्र भूपरण ज्ञानसार रघुनाथ तत्वसारदोहा भ: शुभचन्द्र तत्वार्थबोध भाषा बुधजन तत्वार्थसूत्र भापाटीका कनककीर्ति नमाचू की जयमाल पारदमुनि त्रिलोकसारबंधचीपई सुमतिकीर्ति ४.. त्रिलोकसारभाषा उत्तमचन्द दशलक्षणव्रतकथा त्रज्ञानसागर दस्तरमालिका बंशीधर द्रव्यसंग्रहभाषा बंशीधर श्री धू चरित्त नववाडसउझाय जिनहर्ष न्यायदीपिकाभाषा पन्नालाल नागदमनकथा नित्यविहार ( राधामाधो) रघुनाथ साइ ४६. नेमिजी का व्याहलो (नवमंगल) नेमिच्याइलो नमिनाथचरित्र अजयराज ८०८ सं१८५१ ५६८ ५२४ २६४ मं० १७६५ VE मंः १३५ हीरा मं० १८४८ मं१७६३ St Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नथ सनी का क्रमांक रचना काल मं० १५६० मxy मंः १७६३ मं० १७६६ ५६ ६.. मं. १६१ ५८९ सं. १४११ ४६७ २४. क्रम संध्या ग्रंथ नाम कर्ता . नंदबत्तीसी हेमविमल सूचि नंदरामपच्चीसी नंदराम परमात्मपुराण दीपचन्द्र पाकशास्त्र अजयराज पाटनी पार्श्वनाथ स्तुनि भात्रकुश्ल पुरंदरचौपई म० मालदेव पुण्यसारकथा पुण्यकीर्ति पंचाख्यान (पंचतंत्र) कवि निरमलदाम पंचास्तिकायभाषा प्रबोधचन्द्रोदय मल्ल कवि प्रतिष्ठासारसंग्रह वसुमंदि ६३. प्रद्य म्नचरित्र सवार ६४. प्रसंगमार रघुनाथ बारहखडी श्रीदत्तलाल बुधरासा भक्तामरस्तोत्रभाषा गंगाराम पांडे भक्तामरस्तोत्रवृत्ति भ० रनचन्द्र मुरि भक्तिभावती ( भक्ति भाव) - भद्रबाहुचरित्रभाषा चंपाराम भद्रबाहुचरित्र किशनसिंह मदनपराजय भाषा स्त्ररूपचंद चिलाला मधुमालतीकथा महाभारत लालदास मानमंजरी नंददास मितभाषिणी टीका शिवादित्य मूलाचारभाषाटीका ऋषभदास मृगीसंवाद मोडा हर्षकीति यशोधरचरित्र परिहानंद रामकृष्णकाव्य पं० सूर्यकवि U मं. १६६. मंः १८८८ सं० १७८३ मं. १६१८ ५७४ सं१५८ KM८ NACK - VE. ५. म. १६७८ - Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्ता ग्रंथ सूची का क्रमांक रचना काल सं. १७७६ ७१४ सं०१७६० सं० १८७३ ३३४ ६०३ सं० १५८३ सं१५१६ ५८. सं. १७६७ ५०४ मं०१६ क्रम संख्या प्रथ नाम २२. रूपदीपपिंगल जयकृष्ण २३. बच्छराजहंसराजचौपई जिनदेव सूरि दणिकप्रिया सुखदेव व मानपुराणभाषा पं. केशरीसिंह, बंकचोरकथा নঘল विक्रमप्रबंधरास विनयसमुद्र विद्याविलासीपई प्राशासुन्दर . पैतालपच्चीसी बनरिलास नागरीदाम वैराग्यशतक प्रतविधानरासा मंगही दौलतराम ६.३. शांतिनाथस्तोत्र कुशलवर्द्धन शिष्य नगागरण ६४. शालिभद्रचौपई जिनराज सूरि श्रृंगारपच्चीसी छविनाथ पटमालवर्णन श्रुतसागर पोडशकारणव्रतकथा न झानसागर १८. मतरप्रकारपूजा प्रकरण साधुकीर्ति . सप्तपदार्थी भावविध श्वर संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तुति रामविजय १०१. संयमप्रवहण मनि मेघराज मंबोधसत्तरी सार १०३. संबोधपंचासिका १०४. मावी कबीरदास १०५. मामायिकपाठभाषा त्रिलोकेन्द्रकीर्ति १०६. मारसमुच्चय कुलभद्र सारसमुश्चय दोलनराम १०८ सुकुमालचरित्र भाषा नाथूलाल दोसी १६. सुबुद्धिप्रकाश धाननिह सं० १८१ में० १६१८ ५३५ १००० 505 मं. १६६१ ६२६ मं०१५५२ ६८० मं०१८ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * लेखक प्रशस्तियों की सूची * कम संख्या ग्रंथ नाम पन्थ सूची का क्रमांक २५३ पुष्पदंत २६६ लेखन काल सं. १७६६ सं० १५८१ सं० १५४३ सं०१५४४ सं० १५५७ सं० १८०८ सं० १६०६ सं० १६७६ सं० १७६१ १७ श्रागमसार मुनि देवचन्द्र श्रात्मानुशासन दीका ५० प्रभाचन्द्र आदिपुराण आराधनाकथाको उत्तरपुराण पुष्पदंत उपासकाध्ययन श्रावसुदि कर्मप्रकृति नेमिचन्द्राचार्य कर्माहत गोमट्टसार चतुर्विंशतिजिनकल्याणक पूजा जयकीसि चारित्रशुद्धिविधान भ. शुभचन्द्र जंबूस्वामीचरित्र महाकवि वीर जिण्यत्तरित्त पं० लाख जिनसंहिता मायकुमारचरिए पुष्पदंत .. स १०. ११. 0 PM १४. सं०१५८४ सं०१६.१ सं०१६०६ सं० १५६० सं.१५१७ सं०१५२८ सं० १६४१. सं०१५५७ सं० १५१६ १ १७. उमास्वामी तत्वाधसूत्र तत्वार्थसूत्र वृत्ति त्रैलोक्य दीपक द्रव्यसंग्रह द्रव्यसंग्रह्टीका धन्यकुमारचरित्र धन्यकुमारचरित धर्मपरीक्षा नंदबत्तीसी पानंदिपंचविंशति यामदेव नेमिचन्द्राचार्य ब्राह्मदेव सफलकीति २१. सं०१४१६ सं० १६५६ सं० १५६४ सं० १७६२ २३. श्रा० अमितगनि हेमविमल सूरि पद्मनंदि १८५ मं०१५३० १६५ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ सूनीका क्रमांक १६५ क्रम संख्या ग्रंथ नाम २७. परमात्मप्रकाश २८. प्रबोधसार २६. प्रवचनसारभाषा ३०. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार बाहुबलिदेवचरिण भक्तामरस्तोत्रवृत्ति भगवानदास के पन भविसयत्तचरिण अविसावरिः भावसंग्रह योगीन्द्रदेव २ यश कीर्नि हेमराज सकलकात्ति पं० धनपाल भ० रत्नचन्द्र सूरि भगवानदास पं. श्रीधर NE ३२. १२६ ३४. १३३ लखन काल सं० १४८६ सं. १५२५ सं० १७११ सं० १६३२ सं० १६०० से. १७२५ मं० १८७३ मं० १६४६ सं० १६०६ सं० १६२१ सं० १६०६ सं० १५१० सं० १६.७ मं० १८२३ सं०१५८१ सं. १६१५ सं० १५५१ सं०१५८४ मं० १५५० सं० १८५५ सं०१५२४ ३ ४२. २३६ श्रुतमुनि भोजचरित्र पाठक राजवल्लभ मृगीसंवाद मूलाचारप्रदीपिका भ० सकलकीर्ति यशोधरचरित्र वासरसेन लब्धिसार नेनिचन्द्राचार्य बढमाराका नरसेन बड्ढमाणकत्र २० जयमित्रहल परिणकप्रिया सुखदेव शब्दानुशासनवृत्ति हेमचन्द्राचार्य पट्कर्मोपदेशमाला अमरकीर्ति पट्कर्मोपदेशमाला भ. सकलभूषण पपंचासिका बालाबोध भट्टोत्रल ममयसार टीका अमृतचन्द्राचार्य ५१८ ५१६ ५. ७१६ ४७. ४८. ३६५ ५२३ ८६ २३ " मं० १६४४ मं० १६५० सं. १कन सं१८०० सं०१७०३ सं. १६०१ मं० १५१५ मं० १५८२ २६ ममयसारनाटक संयमप्रवहण सिद्धचक्रकथा हरिवंशपुराणम् ६४ बनारसीदास मुनि मेघराज नरसेनदेव महाकवि स्वयंभू ३६. Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ग्रंथ एवं ग्रंथकार * संस्कृत-भाषा मंथकार का नाम ग्रंथ नाम ग्रंथ सूची की , ग्रंथकार का नाम पत्र संक अमृतचन्द्र २२१ २१६ अमृतप्रभसूरिपं० अल्लारीअशगआनन्दरामश्राशाधर अकलंकदेव- तत्वार्थ राजवार्तिक 1५ प्रायश्चित्त संग्रह अक्षयराम मोकारपैतीसा मातिचनुर्दशी सस्मोद्यान ६६.२.५,९०९ अग्निवेश यंजनशास्त्र ब्रह्म अजित- रनमश्चरित्र अनन्तवीर्य - प्रमेयरलमाला अन्नभट्ट- तर्थसंग्रह अनुभूतिस्वरूपाचार्य-सारस्वतप्रकिया ११ अन्तगादशाबो वृति उपासकदशासूष निवाबा अभयनंदि- दशलक्षण पूजा अभ्रदेव व्रतोपोतन वादकाचार अभिनय यादिगज (पं जगनाथ) भरवल्प वर्मान अभिनव धर्मभूषण- न्यायदीपिका अमरकीत्ति--- नसहस्रनामटी श्रमरसिंह- अमरकोश अमितिगनि--- अर्मपरीक्षण भावनावरी श्रावकाचार सुभाषितस्तसंद्रोह प्रथ नाम पंथ सूची की पत्र सं० तत्त्वार्मसार १७ पंचास्तिकायरीका 16, १८४ प्रवचनसार टीका १६.३ पुरूषार्मसिद्धशु पाय ३२, १८५ समयसार कलशा ४३, १६४, २५६ समयसार टीका योगशतक ૨૪૭ भोजप्रबंध शातिनाथ पुराण बीबीस ठाणा चर्चा टीका जिनयत्रकल्प ( प्रतिष्ठापा) २०० जिनसहस्रनाम १०२, १३४, २०४, २३६, रखत्रयपूजा २०॥ सागारचमामृत स्तोत्र टीका होमविधान अंकुशरीपयनिधि नातिसार तत्त्वार्थमूत्र ११, १०.५८, १.५, ११.१, ११२, १३५, १६५, १७२ 1७१, २६५, २२, २३१, ३.२ ३०८, ३१ २४४ . इन्द्रमंदि-- २३२ उमास्वामी - Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथकार का नाम कमलप्रभ- कालियास कालिदास -- काशीनाथ - कुमुदचन्द्र कुलभद्र - भट्ट केदार प्रथ नाम श्रावकाचार जिनपंजरश्नो गरिमनवि गुणचंद्र श्रार गुणभद्र कुमार संभव संघदूत स्वतंश अबस्थ बंद काव्य गारतिलक शीवबोध २४५ कल्याण मंदिर स्वीच १०१. ११२, ०२२, १३०, १००२४७३ रचन वृत्तरत्नाकर सेन ( o सेन) स्त्रया राजसार (धवलचंद्र के शिष्य ) विचार शिका ऋषि मंडल न अनंतत्रतपूज श्रात्मानुशासन उत्तरपुराण जिनदत्तचनि अम्यकुमार चरित्र शांतिनाथ स्तोत्र ( ३५७ ) प्र सूची की प्रधकार का नाम 1 पत्र सं० गुरुमद्र गुणभूषणाचार्य --- श्रावकाचार गोषिन्द- गौतम गणधर - पुरुषार्थानुशासन ऋषिमं १०२ २१० २२७ चामुण्डराय--- २०५ जिनदेवपूजा ५० २०६ कारामंडलपूजा ६०.२००,२०८ जिनमेनाचार्य - ! श्रीकामा पुजाका ३७ -३३ २१८ भावनासार संग्रह - २३३ मुनिं चारित्रभूषण - महोवालचरित्र जयकीर्ति २११ २५० | जयानंद सूरि जयसेन चंड--- चाणक्य २०४ २४३ पाण्डे जिनदास - पं० जनास ०जिनाम 1 ३८ १६२ | ज्ञानभूषण ६४, २२२ ६६ ब्रह्म ज्ञानसागर दशरथ महाराज - ग्रंथ नाम २.१२ ११० । कवि दामोदर ३६ जैन विवाह विधि जिनसेनाचार्य - 11 रिशपुराण २०५ ज्ञानकीर्ति--- २०४ यशोधरचरित्र दर्शन चित्रतोद्यापच १८४ दीक्षित देवदन्त १०. | चैत्रनन्दि- प्राकृत व्याकरण २३० चाणक्यनीतिशास्त्र १११, २३५, २७४ ६४ नीतिशतक चारित्रसार नसुविंशतिजिन कल्याशा कपूजा देवप्रभास्तीय ग्रंथ सूची की पत्र सं शास्त्र मंडल पूज २४० रेखाकर १८५ पंचकल्याणक पूजा ५६ १५० १६४२१ होली रेणुका चरिच २००, २५१ जम्बूद्वीपपूजा २०० जम्बूस्वामी चि हरिवंश पुराण मनपराजयन्दाट ६८.२१० २२४ १२३४ चादिपुरा ६३, ६५, २२२ जिनमनाम १२, १०, ११६ २०४, २३१, २०१ कारणमतोद्यापन हजा शनिश्वर स्तोत्र चन्द्रप्रभचरित्र २५. २५ श्रीपाल चरित्र सम्मेद शिखरमहात्म्य जैनेन्द्रव्याकरण 25 29 ०० ર ४. २१७ २०४ २०९ १४० ६७, २१० ७८ ३६ C+ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र'धकार का नाम देवसेन— धनंजय भ० धर्मकीर्ति आचार्य धर्मचन्द्र धर्मदास- भ० देवेन्द्रकीति चन्द्रायणव्रतपूजा पन क्रियावतोद्यापन धर्म भूषणपं० नकुल नंदिगुरु — नरेन्द्रकीत्ति नरेन्द्रसेन नरेन्द्रसूरि नवनिधिराम - नागचन्द्रसूरि ग्रंथ नाम नारायण- नीलकंठ - नेमिचन्द्र- सिद्धिप्रियस्ती आलाप पद्धति नगचक्र द्वादशतपूजा रवितविधान देवस्था संधान काव्य / सटीक महगुगा पूजा सम्यक्त्वकौमुदी गौतमस्वामी चरित्र ( ३५८ ) पंथ सूची की | अंधकार का नाम पत्र सं १०६, १४१ ० नैमित्त १५.९.२४४ 8 नाममाला २३२ विषापहारस्तीय .६, ७, १४ १५. २४३ ६२ A जीसकर पूजा सिद्धान्तसारसंग्रह मारस्वतप्रक्रिया टीका १8६ २०५ 204, 208 ३०० योग समुच्चय विषापहार टोकर नमस्कार चिंतामभि नीलकंठ ज्योतिष दिसंधानकाव्य ठीक २६ ६७ पद्मसुन्दर पद्मप्रभदेव -- ग्रंथ नाम ४ धन्यकुमार चरित्र धर्मोपदेश श्रावकाचार ७०, २१२ १०, १८५ नागश्रीकथा (रात्रिभोजन त्याग कथा ! २ ६४, २२३ ०२, १९६ ७८, २१६ २३१ ११२ १०७ १८४. १६७ नेमिनाथपुरापा प्रीतिंकर चरित्र श्रीपालचरित्र आवकाचार सिद्धचक्र पूजा =, 318 विदग्धमुखमंडन पद्मनाभ कायस्थ --- यशोधरचरित्र जिनसहस्रनाम पूजा - २, ११२२०८ परमहंस परिव्राजकाचार्य सारस्वत रूपमा पावस्तीव लक्ष्मीस्तीय पद्मप्रभमलधारि देव-नियमसार टीका पद्मनन्दि पूजा पार्श्वनाथस्तीच लक्ष्मीस्तोत्र प्रथ सूची की पत्र सं० शालिहोत्र २६: सारस्वतप्रक्रिया २३१ प्रायश्रित समुच्चय चूलिका ३२ ३२ | पंचानन भट्टाचार्य --- परिभाषापरिच्छेद (नयमूल सूत्र ) १९६ १६ भान- २०४ ६, १६१ १७८ १२ 53 २३१ TEX २४३ पार्श्वनाग २. ४५ पूज्यपाद ૪. १०६ २४२, २४४ * आत्मानुशासनटीका वस्त्रार्थरत्नप्रभाकर २०० २१७ तवासू प्रका पंचारित कामप्रदीप रत्नकरण्ड श्रावकाचा स्टॉक 1 श्रात्मानुशासन इष्टोपदेश परमानन्दस्तो आवेकाचार ܀ २६. २६६ ३५, १३५ 1 Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भट्टी १४२ ० २२४ ( ३५६ ) मंथकार का नाम मच नाम प्रथ सूची की । प्रथकार का नाम प्रथ नाम प्रथ सूची की पत्र सं पत्र सं ममाधिशतक १५८, २४१, २७३, २४, ३१ सर्वार्थसिद्धि मालदेवाचार्य- शान्तिनामस्तोत्र महामही पं० मेधावी---- धर्मसंग्रहश्रावकाचार भट्टोत्पल .. घरपंचासिका बालाबा २४६ | पं० यश कीर्ति--- प्रबोधसार भ हरि- नातिशत यशोनंदि-- धर्मचक्रगुजा भन हरिशत पंचपरमेष्ठीपूजा वैराग्यशत योगदेव-- तस्वामसूत्र नृत्ति शतप्रय रगमलधर्मचनः २०४ भानुकीति--- चतुर्विधसिद्धन पूजा भ रत्ननंदि-- अष्टाहिकाचा रोहिणीवतकथा मन्दीश्वरबिधान २०२ भारवि-- किरातार्जुनीम पल्पविधानपूजा भावविश्वर-- सप्तपदाची भद्रबाहुचरित्र ७३,२१४ भूधर मिश्र | रत्नचंद्रपदपाहु टीका . जिनगुणसम्पत्तित्रतपून ३०८ भूपाल कवि- भूपालचतुर्विशति १०...२४२ पंचमेरूपूजा मल्लिषेण-- निशिभोजनकया २२६ मक्तामरस्तोत्र मृत्ति सजनचित्तवलम | रविषेणाचार्य पद्मपुराण मल्लिषेणसूरि- स्याद्वादमंजस राजमल्ल-- अध्यामकमलमा एट महावीराचार्य- সহর্নিহি। लारीसंहिता (श्रावकाचार) १८७ महासेनाचार्य--- प्रा म्न चरित्र २१३ | पाठक राजबल्लभ-चित्रसेनपद्यावती कप। भ० महेन्द्रभूषया--- जैनमात गडपुराण २१५ भोजचरित्र माघ-- शिशुपालवध रामचन्द्राश्रम- सिद्धान्त चन्द्रिका माणिक्यनंदि--- परीक्षामुख रामचन्द्राचार्य- प्रक्रियाकौमुदी माणिक्यसुन्दर- शुवराजकः५॥ पं० रामरत्न शर्मा-प्रक्रिया रूपाबलः माधवचंद्र विषादेव ब्र रायमल्ल- भक्तामरस्तोत्रवृत्ति पणासारटी लक्ष्मीचन्द्र- निलोफसारटीका पंचकल्याणपूजा ललितकीति-- नधिसास्टीका समवशरणपूजा २०, १८१ मानतुंगाचार्य--- भक्तामरस्तोत्र १, ०१,१.६ लोलिम्बराज-- य जीवन २४७ तीर्थमहात An० ० २ NN K २१६ . ८ १०६ २०२. Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ . ( ३६०) मंथकार का नाम ग्रंप नाम प्रथ सूची की। प्रथकार का नाम पत्र सं. बर्द्धमान भट्टारक देव वरांगवस्त्र ७, २१८ | श्रीपतिभट्टवाग्भट्ट अष्टोमहदयसंहिता २४६ | आ. शुभचन्द्र--- वादिचन्द्र सूरि--- मानसूयोदय ना22 भ. शुभचन्द्र--- यादिराज एकीमावस्तोत्र यशोधर चरित्र वामदेव होय दीपक भाव संग्रह वासबसेन-- यशोधरचरित्र विक्रम नमिदूत का प्राचार्य विद्यानदि- अष्टसाली कातकरीक्षा नुवाकवातिकाकार विद्यानदि ( भ. देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य ) सुदर्शन चरित्र विरंचि सरस्वती स्तार सारस्वत स्तार विश्वकर्मा- तीरार्णव २४५ शाभन मुनि -- वीरनंदियाचारसार গাঙ্কুমিল্প। चन्द्रप्रमचरित्र | श्रुतमुनि-- वीरभद्र पाग्दण्ड इन वोपदेव-- यातुपाठ २६. श्रुतसागरशंकराचार्य--- गंगाटक गोविन्दापक शिवादित्य- मितमाषिणी का शालिपंडित- नमिनाथ स्तवन २८० सकनकीति-- श्रीधर भविस्यमय चरित्र ७४, २१६ । श्रीभूषगा अनंतवपूना परिवशुद्धिविमान प्रथ नाम ग्रंथ सची की पत्र सं० मक्तामरमा उद्यापन , २०४ भ्योतिषानमाला २४५ जानार्णव ८०, ११ अष्टाहिका कथा -१, २२६ वटारिका पूजा कर्मदहन पूजा गणधरवख्य पूजा चन्दना चरित्र चारित्रशुद्धिविधान जीबंधर चरित्र २११ त्रिशच्चतुर्विशति पूजा पंचपरमेष्ठीएजा पपत्रतोधापन पाण्डवपुराया ६.४, १२३ श्रोधिकचरित्र परखनामणितजा सुभाषितावि २३७ चौबीस जिन स्तुति २३६ प्रमोथचम्बोदय नाटक विभंगीसार भावसंग्रह २०, ११ जिनसानामस्ती टीका १०२,२३६ तवार्मसूत्रटीका अतकथा कोश सप्तपरमस्थानविधानकमा ८६ अादिपुरामा माधिस्वरन्य पूजा धन्यकुमारचरित्र .०, २१२ प्रश्नोतरावकाचार , १८ १३ २२६ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - 4 m १ पंथकार का नाम नथ नाम पंथ सूची की । प्रकार का नाम प्रथ नाम मथ-सूची की पत्र सं. पत्र सं० বাৰৰপলবিল २१३ | पं० सूर्य कवि- रामकृष्णकाव्य २१० पुरासंग्रह ६४ | सोमचन्द्र गरिण- वृत्तरलाका टीका २३ः मूलाचार प्रदीप सोमकीसि- प्रद्युम्न चरित्र यशोधर चरित्र यशीघर परिव १५, २१५ रातिनाथपुराणा ६६, २२४ सप्तव्यसन कथा ६, २२६ सदभाषितावली , #t; २३७ | सोमदेव-- रशस्तिलक चम्पू सिद्धान्तसारदीपक २२, १८२ सोमप्रभाचार्य- सूक्तिमुक्तावली १०, २३॥ सुसमालचरित्र सोमसेल- পিনীৰৰ १८४ सुदर्शनचरित्र दक्षिणयोगीन्द्र पूजा सकलभूषण- उपदेशरन माल! २३, 15 भक्तामरस्तोत्र पूजा (षर कमविदेशरा माला बर्दू मान पुराण मदानंद- सिद्धान्तचन्द्रिका वृत्ति २३५ | हरिचंद- धर्मरामाभ्युदय श्रा०समन्तभद्र- देवागमस्तोत्र . २५० | हरिभद्र सूरि- पट दर्शन समुश्चय स्नकापडभावकाचार | श्री वल्लभवाचक हेमचन्द्राचार्यसमन्तभद्रस्तुति दुर्गपदप्रबोध समाधिशतक हर्षकीति- सारस्वत घातु पाठ २३. स्वयंभूस्तीष १.१२,१३७ सूक्तिमुकायसी टीका सहस्रकीसि-- त्रिलोक्सार सरीक हेमचन्द्राचार्य- प्राकृतघ्याकरण सिद्धसेन दिवाकर- कल्याणमंदिसतोत्र हेमच्याकरण सन्मसितर्फ अभिभानचितामणिनाममाला २५ शक्रस्तवन अनेकार्थसंग्रह सुधाकलश-- एकाक्षरनाममा सुधासागर-- पंचकल्याणक पूजा प्राकृत-भाषा सुबन्धुबासवदत्ता २१८ | अभयदेव- पार्श्वनाथ स्तवन २६४, ३० सुमतिकीति-- जिन चिनहीं स्वामी कात्तिकेय-- कार्तिकेयानुप्रैन। कर्मप्रकृति तृति प्राचार्य कुन्दकुन्द- प्रष्ट पाहुड गोमसार कर्मकांडटीः द्वादशाक्षा सुमतिसागर- दशलक्षण पूजा पंचास्तिकाय १६, १. सुरेश्वरकीति-- মানিন্ম ধু। प्रबचनसार . AM . m र 2 G 4 1 - n Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ १५६, १६६ मंथकार का नाम प्रथ नाम ग्रंथ सूची की। प्रथकार का नाम ग्रंथ नाम ग्रंथ सची की पत्र सं. । पत्र सं० स्ययासार विशेषसत्तात्रिमंगा षट्पाहुड ४३, ११०, १३२, १६४ सत्ताश्मिंगी समयसार १३३, १६.४,२८७ | पहातन्दि धर्मग्मायन २६, १८ गौतम स्वामी- संबोधपंचासिका १२३, १८६ पत्ननन्दिपंचविंशति ३०, २१६ देवसेन- थाराधनासार ४०, ११०, ११७, भावदेवाचार्य- कालिकाचार्य कथानक २२६ ११८, १६१, ३१२ ! भाव शर्मा- दशलक्षण जयमाल तत्वसार विनयराज गणि-- रत संचय दर्शनसार यति वृषभ- त्रिलोक प्रज्ञप्ति भावसंग्रह हेमचंद्र सूरि- पुष्पमाल १. संबीघ्रपंचासिका धर्मदास गणि--- उपदेशसिद्धतिरनमाला २३ अपभ्रंश भाषा मंडारी नेमिचन्द्र- उपदेशसिद्धांतरत्नमाला २३ अमरकीर्ति-- षट्कर्मोपदेशरत्नमाला ८,२८ पष्टिशतप्रकरण गोयमा कोष ( मोध ) वर्णन नेमिचन्द्राचार्य- ाश्रवमिंग | जयमित्र हल-.. कई मान काय उदय उदीरा त्रिभंगी यिक चरित्र कर्मप्रकृति ३, १३५, १७६ | धनपाल बाहुबलि चरित्र वपणासार भविंसगत्तपंचमीकहा ७३, १६ गोमट्टसार । मविध्यदला पंचमी कथा) गोमहसार ( कर्म काण्ड गाथा ) ११२ | धवल हरिवंशपुराण चौबीस ठाणा चर्चा , १७४ | नयनानंद-- मुगंधदशमीव्रत कथा जीव समास वर्णन १० नरसेन देव- बर्द्धमान कमा भिमनीसार .., १६ ! सिद्धचक्र कथा त्रिभंगीसारसंष्टि १२० | भंडारी नेमिचन्द्र-- नमीश्वर जयमाल त्रिलोकसार १२, २३४ | पुष्पदन यादिपुरामा द्रव्यसंग्रह १६, १०, ११२, १२२ उत्तरपुराण मागकुमारचरित्र নিম मनसुख कल्याणक वर्णन मात्रत्रिभंगी १६ | यश कीर्ति हरिवंशपुराण २० | पं योगदेव- पनि बतानुप्रेक्षा लब्धिसार Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . .. ܐܘܪ ܂ ܟ݂ an.. .to १३. ( ३६३ ) ग्रंथकार का नाम प्रथ नाम पंथ सूची को | मंथकार का नाम मथ नाम मंथ सूची की पत्र सं. पत्र सं. योगीन्द्रदेव- दोहा शतक फक्का बत्तीसी परमात्मपकाश ४१, ११४, ११८ चरखा चरपई १४५ १३,२७५, १६२ चार मित्रों की कथा १५३ योगसार ४३, ११४, १६६, ११८ बौलीस तीर्थकर पूजा १३०, ५५३ १३२, १६४६४, ३०५ | चौबीसतीर्थकर स्तुति श्रावकाचार दोहा जिनगीत (साबस्यम्नदाहा जिनकी की रसोई रइधुग्रामसभोवन काव्य यमो कर सिद्धि दशलक्ष जयमाल नंदीश्वर पूजा बलमद पुराण नेमिनाथ चरित्र २९ षोडशकार व जयमाल पद १३०, १३२, १३३, १६३ संबोध पंचासिका पंचमेह पूजा पं० लावजिवायत्तरिम पाश्र्वनामजी का सालेहा धीरजम्पूस्वामीचरित्र बाल्यवर्णन स्वयंभू- (रिवंश पुराग बीसतीगकरों को जगमाल कवि सिंहप्रद्युम्नचरित्र यशोधर चौपई हरिषेण- धर्मपरीक्षा वंदना शांतिनाथ जयमाल हिन्दी भाषा शिवस्मणी का विवाह अस्वयराज (श्रीमाल) कल्याणमंदिक्षस्तोत्र भाषा १०२ | विनती भक्तामरस्तोत्र भाषा अह्म 'अजित- हंसा भावना अवयराम लुहाडिया अनंतकीर्ति- जखडी शीलतरंगिनी कपा मांगीतुंगी स्तवन साह अचल- सारमनोरथमाला अमरपाल- प्रादिनाथ के पंच मंगल अचलकीर्ति- कर्ममत्तीसी अमरमणिक- चैत्रीविधि विषापहार स्तोत्र भाषा १०६, १२४ | बालक श्रमीचन्द्र-- बधाई अवधू- द्वादशानुप्रेक्षा अजयराज ( पाटणी) श्राज्ञा सुन्दर - विद्याविलास चौपाई अादिनाथ गुजा १३० ' पाणंदमुनि- तमास्यू की जयमान १५०, २६२ W १६८ +1 m CG NG Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६४ ) ग्रंथकार का नाम प्रथ नाम मथ सूची की | मंथकार का नाम पत्र सं० आनंद कषि- कोकेसार १४. आनन्द बद्धन- ननद मौजाई का झमला १५५ भारतराम--- दर्शनपच्चीसी कामन्दआलू द्वादशानुप्रेक्षा १६३, १५, ३११ व कामराजउत्तमचन्द्र- निलोफसार मात्र कालकसूरिऋषभनाथपद कृष्ण गुलाबऋषभदास- मूलाचार भाषा का ३२, १८८ किशनसिंहमुनि कनकामर- ग्यारह प्रतिमा बईन कनकीर्ति- कर्म घटावलि जिनराम स्तुति तत्त्वार्यसूत्र wity १६:२६ १५ ० मथ नाम अथ सूची की पत्र सं सोसट बंश्च २६७ हंसमुक्तावलि कामन्दकीय नीतिसार २३५ सठ-शलाकापुरुषों का वर्णन १४३ पद २१ पद प्रादिनाम का १६ एकावलीप्रतकथा कियाकोश गुरुभक्तिगीत पतुविशक्ति स्तुति चेतन गीत पेशन लौरी नौवीस दंडक जिनमकिगीत मोकार राम मागश्रीकथा । ७३,८३ (रात्रि भोजन त्याग कथा) निर्वाण कारभाषा २२७ ३१६२५ १४० . मेषकुमारगीत विनती श्रीपात स्तुति कनकसोम जइतबद लि कमजलाम पार्श्वनाथ स्तोत्र करमचंद पंचमकान का गन्य मद महाकवि कल्याण- अनंगरंग काव्य कल्याणकीर्ति- आदीश्वरजी का अधावा तोकर विनती ऋवीरदास- कबीर की चौपई कवीर धर्मदास की . काया पानी कालचरित्र मानतिलक में १५२ KAN & ६७ ,२१६,२५६ १५. संग्रह पुण्याश्रवक्थाकोश भद्रबाहुचरित्र भाषा लम्धिविधान कथा विनती संग्रह श्रावकमुनिवर्णन गीत वृद १५ MAP २६ किशोरखास२६.. | कुमुदचंद रेखा . सामी. विनती ३.. Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TA २५१ ANA २११ प्रथ नाम प्रथ सूची की पत्र संग फुटकर दोहे तथा कुलिया १५ शान्तिनाथ स्तवन २१. कक्का बत्तीसी गुलाल पच्चासी जलगालनक्रिया সংৰক্ষিত। विवेक चौपई प्रमादागीत यादुरासो मित्रविलास मधुमालती कथः २८१,३०६ पादिनाथ स्तुति गीत धर्मप्रश्नीतर श्रावकाचार भद्रबाहुचरित्र २४ २६२ ३१२ ( ३६५) प्रथकार का नाम प्रथ नाम ग्रंथ सूची की । मथकार का नाम पत्र सं० कुशललाभ- भगापार्श्वनाथस्तवन कुशलवद्धन (शिष्य नगागणि) गुणसागरशांतिनाथ स्तोत्र २ गुलाबरायपं० फेशरीसिंह--- पमानपुराण भाषा प्र० गुलालकेशवदास- रसिकप्रिया केशवदास-- श्रात्महिंडोलमा शान्तिनाथ स्तवन सवैया गोपालदासतेमकुशल-- सातव्यसन सज्झाय ब्रगसेन- त्रिलोकदर्पण कथा धीसाखुशालचन्द- उत्तरपुरायभाषा ६४ चतुर्भुजदास* चन्दनप्रतिघ्रत कथा चंद्रकीति• जिनपूजा पुरंदर कथा २६७ धन्यकुमार चरित्र ५०, २१२ चंपारामपर पद्मपुर भाषा चरनदास• मुक्तावलियत कथा २२७ चन्द्र-- * मुकुटसप्तमीबत कसा २१. • मेघमालावत कथा २६७ चैनसुखयशोधरचरिव ७६,१२४,२१८,२९७ लश्चिविधानप्रत कथा प्रतकथाकोश ४, २२६ / छविनाथ•षोडशकारगरत का छीतर ठोलिया-सन्तपरमस्थान कथा छीहत-- हरिवंश राम खेमदास ऋवित्त गंगाराम पांड्या- भक्तामरस्तोत्र भाषा गिरधर-- विध २७३ २७५ अजित जिननाथ की चीनः १४५ स्तुतिसंग्रह कृत्रिम चैत्यालय पूजा दर्शनदशक सहसनामपूजा गंगारपचीसी होलिकाचवि २७ उदगीत छीदल की भावना पंचसहेली २४२ पंधीमीत ११४, १६५, ३०. एकीमाव स्तोत्र भाषा २९६ * ये सब कथामकथा कोष में संग्रहीत है। जगजीवन Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मथ नाम मय सची की पत्र सं. २६. पद मंजारी गीत बर्मतसंगीत पदसंग्रह १२३ (जिनदत्त विलास दानशील पौपई त्रिम पैथालय पूजा मुगुरु शतक यादिनाथस्तवन कर्मविपाकरास छराज हंसराज चौपई चेतनात ११, 2014 अम्बूस्वामीचरित्र भाषा ६७, ६३१ चिरचर जबड़ी ॥ ( ३६६ ) मंथकार का नाम ग्रंथ नाम प्रध सूची की प्रथकार का नाम पत्र से १२० जगतभूषण- पार्श्वनाम स्तोत्र २४४ | जिनदत्तजगतराम पदसंग्रह १२५, २३३, १३७,१५५ विनती जगरामधाउदव्य की भावना ५३ जिनदत्त सूरि--- १६२ जिनदास गोधाजयकृष्ण-- रूपदीपपिंगल जयचन्द्र छाबड़ा- अष्टपाहुच भाषा ३६, १११ | ब्रजिनदास स्वा० कार्तिकेयानुप्रेक्षा भाषा४६,१४१ चारित्रयाहुङ भाषा | जिनदेव सूरिझानादि भाषा * पाण्डे जिनदासतत्त्वार्थप्दव भाषा दर्शनपाडु देवागमस्तोत्र भाषा द्रव्यसंग्रह भाषा परीक्षामुख भाषा बोधपाहुड भाषा मनामस्तोत्र भाषा समयसार माषा ४५ | जिनप्रभ सूरि-- सामायिक वनिका १०१ ,२६३ सूत्रपाहुद जिनरंगउपाध्याय जयसागर-श्री बिनकुशल सरि स्तुति 1४० जवाहरलाल- पंचकुमार पूजा ___ सम्मेदशिखर पूजा महाराज जसवंतसिंहমিামুন २७१ | जिनराज सूरि- जिनकुशल सूरि- द स्तवन to. | पांडे जिनराय- जिनचंद्र सूरि- पद २७३ जिन २७२ १६५ मालीरासा मुनीश्वरों की जयमाल १६४,207 योगीरामा ४२, ११७, १११, १२० १३१, १३, १५३, ११, ३०५ अजितनाथ स्तवन ३४० पभावती चौपई चतुर्विशति जिन तोत्र चिंतामणि पानाथ स्तवम १. पार्श्वनाथ स्तोत्र १४० प्रभोध बावनी प्रस्ताबिक दोहा पार्श्वनाम स्तोत्र शालिभद्र चौपई 1,२८६ जम्बूस्वामी पूजा बजित-शांति स्तवन ३१ १७३ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६७) प्रथ सूची की प्रथकार का नाम प्रकार का नाम प्रथ नाम पत्र सं0 २६५ २६. मथ नाम प्रथ सूची की पत्र सं. रोहवत कथा लब्धिविश्वान कथा षोडशकारणव्रत कथा २६४ श्रुतस्कंध ( कथा ) श्रावणवादशी कथा सुगन्धदशमीनत कथा चन्द्रहंस कथा मदहन पूजा ५०, १५८ तीनलोक पूजा पदसंग्रह पंचकल्याया पूजा पंचमंगल पूजा पंचमेर पूजा व्यसनराज वर्णन मुदृष्टितरंगिणि सोलहकारण पूजा .......... - rr . . ४ -- ४ पद जिनहर्षनवबाड समाप १४ मिराजमति गीत नेमीश्वर गीत श्रावकनी सडझाय सिद्धचक्र स्तवन जिनेश्वर सूरि- स्तोत्रविधि २७३ टीकमजोधराज गोदीका- पदसंग्रह टेकचन्दसम्यक्ष कौमुदी कथा ६, १२५ जौहरीलाल ११ विद्यमान वीसतीर्थकर पूजा . न०ज्ञानसागर- अनन्तत्रत कथा স্থায়িকার কথা श्राकाशपंचमी क्या मादित्यवार कथा कोकिलपंचमी कथा चन्दनषीयत कमा २६५ टोडरजिनगुनसंपत्तित्रत कथा |पंटोडरमलजिनराश्रित्रत कथा त्रैलोक्यतीज कथा दशलक्षणन्नत कथा निशल्याष्टमी कथा पत्यविधान कथा पुग्धाजलिव्रतविधान कथा २६५ ठकुरसीमुकुट सप्तमी कथा मेघमालावत कथा २६६ मौन एकादशीवत कथा २६५ / डालूराम-- .. रक्षाबंधन कथा रत्नत्रयत्रत कथा ,५ २६५ -४ 7. NU २६५ पद २६६ मात्मानुशासन भाषा ३६,२६१ गोभट्टसार बौवकाएड मा १७ गोमसार भाषा पुरुषार्य सिद्धथुपाय ३३ मोरमार्गप्रकाश ३४, १८७ लग्विसार भाषा नेमिराजमति बेति पंचेन्द्रिय देखि ११७, ११५, १६५ २६५ प्रसाईद्वीप पूजा गुरोपदेश पारकाचार .... Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६८ ) ४७ पy - २७५ प्रथकार का नाम 'ग्रंथ नाम पंथ सूची की | ग्रंथकार का नाम प्रथ नाम पथ सूची की पत्र सं० पत्र सं पंचपरमेष्टी गुणस्तवन रत्नत्रयजामाषा पंचपरमेष्टी पूजा शास्त्र पूजा बारड्यनुप्रेक्षा समाधिमरण सम्यप्रकाश सिंचन पूजा संघपतिराय लूगर- पद सोलहकारण पूजा गरसी बैनाडा-- श्री जिनस्तुति संबोधपंचासिका ३५, ११६, १३२ पं०डूगो- नेमिजी की लहर २७३,३११ तुलसीदास- सीता स्वयंवर लीला २७८ स्तुति व तेजपाल-- चडबीसतीर्थकर विनती | दादूदयाल-- दोहा श्रीजिन स्तुति १६७ | दीपचन्द- अनुमत्र प्रकाश २३, १८२ त्रिभुवनचन्द्र- अनित्य पंचाशिका श्रात्मावलोकन संबोध पंचासिका त्रिलोकेन्द्रकीति- सामायिकपाट भाका पद संग्रह ११३,१२,१३२ श्रीदसलाल- बारहयदी १५१, १५३, १६३, २१ थानसिंह - स्लकाराश्रावकाचार परमात्मपुराण মুক্তিসাধ্য बिनती ब्रह्मदयालपद संग्रह १०४ | बाबा दुलीचंद- धर्मपरीक्षा मापा दरिगहजस्वी पूजन क्रिया वर्णन घानतराय- अष्टाहिका पूजा मृत्युमहोत्सव भाषा १०८ नामों की मुबमाला दुलह कविकुलकंठामाशा एकीभाव स्तोत्र माषा २६७ कवि देव भ्रष्टजाम २७१ चर्चाशतक , १४, १७७ मुनि देवचंद्र- बागमसार छहदाला ३७, ३११ : देवानाम- विनती दशरधानचौवीसी २५६ सास बद्दूका झगडा धर्म विलास २, ५३८, ३१० देवीदास-- राजनीति कवित नियाकाण्ड पज | देवीदास नन्दन गरिणपदसंग्रह १०, १२६, १३७ चेतनगीत वराग्य गीत पाश्चना मात्र २४४ संगही दौलतराम- प्रतविधान रासो NM म. १० १. २४३ H 276 Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र संक ६३, २२२ Iru . vmuv २५८, २-३ K111x ग्रंथकार का नाम नथ नाम नथ सूची की | पंथकार का नाम ग्रंथ नाम ग्रंथ सूची की पत्र सं० । दौलतराम-- अध्यात्म बारहमा ३५ सिंदूचक पूजा ( अष्टारिका । २० श्रादिपुराण भाषा सिड्चत कथा कियाकोश सिद्धांतसार दीपक माषा चौबीसदंतक २८, १८४, ३१२ नंद यशोधर चरित्र येषनकिया विधि २८ नंददास मानमंजरी पनपुराणभाषा F४,२२३ नासिकेतोपाम्यान मामा ४१ बने कार्य मंजरी पुण्याश्रवकथाकोश ४,२२६ नन्द नन्दन- चौरासी गोत्रोत्पति वशन पुरुषार्थसिद्धव पाय नंदराम सम्मेद शिम्बर पजा श्रीपाल चरित्र ७८ ! नागरीदास- कचमन २४सारसमुच्चय वैनक्लिास हरिवंशपुराना ६.६, २२४ नाथू नेमिनाथ काव्याला धनराज मंमिनाथ स्तबम मुनिधर्मचंद्र-- गीत २७२ नाथूराम- जम्बूस्वामी चरित्र धर्म धमा सुकुमाल चरित्र धर्मदास- पण का बारहमामा ५५ | मुनि नारायण- श्रइमताकुमार राम पद संग्रह नरकी शकुनावली १४% ब्रह्म धर्मांच- नमीश्वर के वश मानर कवि निरमलदास- पंचाख्यान ( पंचतंत्र । २६६ धर्मसुन्दर ( वाचनाचार्य) नेमकीर्ति- पद अमापदगिरिकन नेमिचन्द्र हरिवंशपुराग नयसुन्दर-- शत्रुजयोद्धार पोल्यंकर चौपई १२७ नवलराम-- निदेव पास नेमीश्वरराम १२० पदसंग्रह ३५, २५२, १६२ पदमराज--- फन्नुनधी पानाप स्तवन बनत। राजल का बारहमासा नथमल बिलाला.. नागकुमार चरित्र पनानाभ--- गर की प्रावनी चकचोर कपा पन्नालाल अाराधनासार भाषा धनदरा सेठ की कथा न्यायदीपिका भाषा भकामरतोष भाषा कमा सहित ५४१ सद्भाषितावली महोपाल परिव गमवशरण पृजा ५२७ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७० ) अंधकार का नाम मथ नाम अथ सूची की ग्रंथकार का नाम पत्र संक सरस्वती पूजा ६१ | बखतराममुभाषितावली पन्नालाल संघी- बीस तीर्थकर पूना २०३ पृथ्वीराज राठौड-- कृष्णरुक्मणि बेलि ११८ ! बनारसीदास कवित पृथ्वीराज बेलि (कृप्यारुक्मणि नेलि) प्रभु कवि- वैराट पुराण पर्वतधर्मार्थी- द्वव्यसंग्रह बाल ब्राचिनी नीका १६, नथ नाम प्रथ सूची की पत्र संग प्रासाबरी पदसंग्रह १३७ मिष्यात खंडन अध्यात्म सीसी कमानक उपदेश पचीसी १४६ उपदेश शतक कर्मप्रति वर्णन कर्मप्रकृति विधान कल्यापमंदिरस्तोत्र मात्रा १०२, १४३, ११५, १२४, १४६, १५३ um Bf " ० ० कवित गोरख वचन २८१ जिनसहस्रनाम भाषः १०३, १३७, भानपच्चीसी १४, १५.२, १६३, २८१ ज्ञानवतीसी il " समाधितंत्र भाषा ४५, १६५ परमानंद-- क्द परिखाराम- मांगीतुगी तीर्थ वर्णन परिमल्ल-- श्रीपाल चरित्र पारसदास निगोत्या ज्ञानसूर्योदय नाटक पुण्यरत्नगणि- यादवरासो घुश्यकीति- पुण्यसार कथा पुण्यसागर ब्रह्मचर्य नववादि वर्णन सुबाहु ऋषि संधि २३२ मेधकुमार गीत ११५, ११७, १२., १३०, १५६, १६४ विनता प्रेमराज पंचपरमेष्टि मंत्र स्तवन बीसविरहमान स्तुति सोलह सती स्तवन पोपट शाह- मदनमंजरी का प्रबंधन राजाचंद की कथा बीराम पूनो ur m " तरहकाठिया २. ग्यानबसीसी १५३, २८२ पद संग्रह ११३, १५३, १५.. परमज्योति २५७, ३११ बनारसी बिलास १.१४, ११५, ११. १२०, १३, १७२ भवसिंधु चतुर्दशी २८१ मझिा १२० मिध्यावविध मोक्ष पैटी ३३, १११, ११६, ३०६ " " G KG ५ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७१) मंथकार का नाम प्रथ नाम प्रध सूची की , मथकार का नाम प्रथ नाम प्रथ सची की पत्र सं. पत्र सं. मोहविवेक युद्ध , १२, १६५ | बिहारीदास- जखड़ी वैध लक्षण २८१ संबोध पंचासिका शिव पच्चीसौ २८१, २६६ | बूचूराम गीत समयसार नारक ४४, ११५, ११, मदनार १२०, १९५, ३०७ | उपाध्याय भगतिलाभ--- सया सीमंधरस्वामी स्तवन १४. साधु वंदना ११६, १६१, ३०४ / भैया भगवतीदास- एषणा दोष १८१ घेतन कर्म चरित्र ६८, १३३ सिन्दूर प्रकरण ५, ११४, ११५, जिनधर्मपचीसी ११, १३३. २३६ निर्वाचकाए भाषा १.३,१२०, ३५१ बालचन्द्रपद संग्रह १२३ परमात्म छत्तीसी हितोपदेश पच्चीसों पुस्य जगमूल पच्चीसी कवि बालक(रामचन्द्र) सीता चरित्र७६, ११४, २.२१, २६६ मविलास ३२ बालवृन्दजानकी जन्मलीला भारह भावना घुधजन--- हद अत्तीसी मूदायका वर्णन हदाला वैराग्य पच्चीसी ४३, १३६, १२ सम्वार्ष बोध सम्यक्त्व पश्चीती ३६, १७२ पंचास्तिकायमाका साघुत्रो के आहार के अमम १२. पर संग्रह के ४६ दोषों का वर्णन भूधान बिलास १७३. ३१२ सोलह स्वप्न (स्वप्न बसीसी पुधजन सतसई " भगवानदास- भगवानदास के पद २४१ मायु महोत्सव E | भाऊकवि-- ग्रादित्यवार कथा ८१, ११३, 110 बोगसार भाषा १३, १४३, १५४, 16, ११ बुलाकीदास- प्रश्नोतरोपासकाचार १६, २१२, १८, ३.६ पाएखवपुराण ६४ भागधन्द्र- उपदेश सिद्धांत रत्नमाल! २४, १८३ बैशीधर अभ्यसंग्रह भाषा बंशीधररस्तूर मालिका भैरवदास- शीस गीत ब्रह्मदेय-- द्रव्यसमह वृशि १७,१८० भारामल्ल- दर्शनकया परमरममकाश टीका रानमा ww Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र सं - - ग्रंयकार का नाम पंथ नाम ग्रंथ सूची की | पंथकार का नाम पंथ नाम संघ सूची की पत्र सं० निशिभीअनत्याग कथा ....४, २२६ विनती ३०६,३०७ शीलकथा ५.२८७ | मनरंग---- चौबीस सौर्यकर पूजा १६६ भावकुशलपार्श्वनाथस्तुति पार्श्वनाम स्तोत्र भावभर-- · चन्द्रगुप्त के सोलह वन १४२ | मनसुखराम- शिखर विलास भुवनकीति .. कलावती चरित्र मनसुख सागर- : सम्मेदशिखर महात्म्य चितामगि पार्श्वनाथस्नात्र १४. | मन्नालाल ( खिन्दूका) भूधरदासएकीभावस्तोत्र भाप: । :-, ३११ चारित्रसार माषा मनभावना पद्मन दिपच्चीसी भाषा चर्चा समाया .. . ..., ११ मनोहरदाम- मानचिंतामणि २८,१३१, १५.३,२३५ ... अखडी.. १३७, ३१२ . धर्म परीक्षा ..: जैनशतक ४, ५.३४, २३५ । मनोहर चिन्तामणि मान पावनी ११२, १११ . पद् संग्रह ११, १२२, ५३७, १५३ | लधु मावनी . ..पंचमेस.पूजा सग्रस सीन पापुर , १५, २१६ | मनहरा- मास नारह भावना मलजी पद संग्रह भूधर विलास कवि मल्ल- प्रबोधचन्द्रोदय । नाटक . वजनाभि चक्रवती ) ५४, ११२ महमद-- पद १४६ राम्प भावना महिमा सागर--- स्तमनक पार्श्वनाथ गीत २३ बाईस परीष | मुनि महिसिंह- अक्षर मसीसी २५२ वानतियों ३११ । ० मालदेव- रंदर चौपाई भूघरमल्ल हुस्सा निय १६ / बाई मेघश्री- पंचाणुयत की जयमान ३०५ मनरामप्रसारमाला 125 : मुनि मेघराज- . संयम प्रबहाण गुणाहरमा उपाध्याय मेरुनन्दनधर्मसहेला अजित शांति स्तोत्र पद् १.३४.११,१२,१४,३७० . इजकीनि पाति सीसी बड़ा कक्का १५३ यशोनन्दि श्रीजिननमस्कार अचांकी २७: रघुनाथ-. गयमेव मानराम विला २३६ ज्ञानसार रोगापहारस्तान नित्यविहार । था माधी । ... - W " Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथकार का नाम रंगवल्लभ-~ श्री रत्नहर्ष ऋ० रायमल्ल - राज राजसमुद्र --- राजसेन रामकीर्ति रामकृष्ण रामचन्द्र रामदास- रामभद्र राजमल्ल ग्रंथ नाम ( ३७३ ) ग्रंथ सूची की | ग्रंथकार का नाम पत्र सं० प्रसंगसार पार्श्वनाथ स्तवन हितोपदेश एकोत्तरी १६० चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न १६३, ३०४८ २६२ १४० उपदेश बत्तीसी प्रतिमारतवन पार्श्वनाथ स्तोत्र मानतुंगी की जरूढी उपदेशजखडी आदिनाथपूजा कर्मचरित्र बाईसी जिनलाडूगीत नेभिकुमारासो १३२, २७२, १८८ प्रद्य ुम्नरासो १३२, ३०७ भविष्यदत्त चौपाई १११, २१६ श्रगलराम ११२, १३१, २.३२, २६८, २०४, २०७ सुदर्शनरा १११, १३२ हनुमंतकथा ( चौवई ) ८७, १३२, १६१, २२१ १५१ १४१ २४५ २७२ १३७ ५० २४ चतुर्विंशति जिनपूजा ५२, १११, ११६/ चौबीस महाराज की बीमतो १०२, ११२ विमखनाथ पूजा २०१ समुच्चय चौबीसी पूजा सम्मेद शिखर पूजा ऊषा कमा पव कल्मष कुठार समयसार भाषा रामविजय महाराजा रामसिंह रायमल्ल ११७ रूपचंद - ११६ ६१ २६७ १२६, १३२ २५० ४५, १६५ लखमीदास लच्छीरामलक्ष्मणदासलक्ष्मीचन्द्र गरि लालचंद -- लब्धिविजय -- लालचंद - प्रभु नाम संखेश्वरनाथस्तुति तिरंग ज्ञानानन्द श्रावकाचार २८ साधी माई रायमल्ल की चिट्टी १७४ अध्यात्म दोहा ११३ अध्यात्म सर्वेया ३०५ जखडी १६, १६६ १५२. ११४, ११६ १११, ११३, १२३, १२५, १२३, १६५ परमार्थ गीत ११६, १६४ परमार्थदोहा शतक ११९ पंचकल्याणक पाठ (पंच मंगल ) १०५, १११, ११६, १२०, १२३, १४१, १४६, १४३, १५४, १५७, १६१, २४०, २६, ३०, ३११ लघु मंगल ३११ यशोधर चरित्र २१८ २७० करुनाभरन नाटक एक पहर जान पाठ ' उपासकाचम दोहा २४, ११० ११८ द्वादशानुप्रेक्षा सीता की घमाल सीमंधर स्तवन १६७ २१० २६० ३०३ जिनस्तुति दोहा शतक पद नेभिगीत नेमजी का ब्याहलो ( नव मंगल ) लालचंद विनोदीलाल ग्रंथ सूची की पत्र सं चतुर्विशति स्तुति १५० २७१ १५५, २३६ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ २५७ १६५ 2 n दाहा वद ६ मंथकार का नाम नथ नाम प्रथ सूची की | ग्रंथकार का नाम नथ नाम मथ सूची की पत्र सं० पत्र सं० पंचममल १३१ | विनोदीलाल- नेमीश्वर राजमति गीत कुल पचीसी १३,१२२, २४६ नीश्वर राजुल संवाद १५१, १६६, २२७ प्रभात जयमाल समवशरण पूजा ११४ भक्तामरस्तोत्रस्था भाषा लालदास-- महाभारत कथा १३६, २६. मान पचीसी मुनि लावन स्वामी-शालिभद्र सम्झाय १४ राजन पचीसी साह लोहट- अठारह नाता का चौटाला ११३,१३२ मुनि विमलकीति- नंद बत्तीसी १६१, १६६, ३०६ 'विमलहर्ष वाचक- जिनपालितमुनि स्वाध्याय १४ चौबीस ठाणा चौपई १६६ बिहारी- विहारी सतसई प्रझबद्धन-- गुस्थान गीत ११६, १६४ । कवि वीर--- मणिहार गीत वृन्द १३६ वोल्हव- नेमोश्वर गीत १३२ श्यामदास ( गोधा) पद वृन्द सतसई नेमिनाथ का बारहमासा वृन्दावन चतुविशति जिनाजा ५१, १६ | पं० शिरोमणिदास-धर्मसार चौ गई छन्द शतक शिव कवि किशोर कल्पद्म तीस चौबीसी पूजा शुभचन्द्र चतुर्विशति स्तुति प्रबचनसार माषा तत्वसार दोहा २७८ भ० विजयकत्ति- चन्दनषष्टिवतकथा ६१ , शोभचन्द- शान खड़ी पार्श्वनाथस्तवन अंणिकचरित्र ७६ | श्रीपाल- जिनस्तुति विजयतिलक- श्रादिनाथ स्तवन १४. श्रुतसागर-- बमाल वर्णन १४३ विजयदेव सूरि--- शीलास ११३, २६१ | सदासुख कासलीवालविजयभद्र- समाय अकलंकाष्टक भाषा ३४, १८७ विद्याभूषण- लक्षण चौ सी पद अर्थप्रकाशिका विनय तमुद्र- विक्रम प्रबंध सस तत्वार्थपूत्र भाषा विनयप्रभगोतम रासा ३०१ भगवतीचाराधना भाषा ३३, १८७ विश्वभूषण- पद १३१ स्लकाण्ड श्रात्रकाचार माषा ३४,१५४ पंचमेक पूजा १५२ लघु भाषा वृश्चि वाचक विनय सूरि- बाराधनारतवन पोरशकारम्भावना तथा ... १८८ १२॥ ४२. १२६ " २६४ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ मंथकार का नाम प्रध नाम प्रध सूची की , ग्रंथकार का नाम मथ नाम प्रथ सूची की पत्र सं० पन सं० दशलक्ष धर्म बाणिक प्रिया १२१ समयराज- पार्श्वनाथ लघु स्तोत्र सुमतिकीर्ति- जिनवरस्वामी श्रीमती समयसुन्दर- श्राम उपदेश गीत २६२ जिनविनती १६४ दमावतीसी त्रिलोकसारबंध चौपई १२, ११८, चतुर्विशति स्तुति १४२ २४ दानशील पनाह १४१ सुन्दर पद १६७, २१॥ नलदमयंती चौपई सहेली गीत नाकोड्या पार्श्वनाथ स्तवन १४२ | सुरेन्द्रकीति- श्रादित्वार का पंचमी स्तवन सानपचीसी नतोपापन २०५ सहजकीति- चउवीस जिनगणधर बर्गान पंचमास चतुर्दशी प्रतोधापन २०४ पाव जिनस्थान वर्णन १४७ सूरत--- टालमय पार्श्व भजन २४७ बारहखडी १४१, २५७, ३११ प्राति छत्तीसी | सेवाराम- धनुर्विंशतिजिन पूजा , REE बीमतीकर स्तुति सोमदत्त सूरि-- यशोधाचरिव रास सहसकर्ण- तमाखू गीत हजारीमल्ल- गिरनार सिद्धक्षेत्र पूना संतलाल- सिद्धचक पूजा हरिकृष्ण पाण्डे- चतुर्दशी कथा स्वरूपचन्द विलाला हरिसम बंद रलावली चौसठऋद्धि पूजा _____५२, २.० इरीसिंह- जखडी जिनसहस्रनाम पूजा ५३ १६ १२७, १३५, १४६, १९२ निर्वाणक्षेत्र पूजा ५६, २०२ हर्षकीति- कर्महिंडोलना १६५, २७२ मदन पराजय भाषा चतुर्गति नेति ११७, १२८, १६१ साधुकीचि ( बेलि के विष कथन) पदसंग्रह ( सतरप्रकार मा प्रकरण) २७३ पंचमगति बेलि ११७, १३०, १६५ रागमाला २७३ सालिग नेमिनाथ शङ्कल गीत सारस्वत शर्मा भडली विचार नेमीश्वर गीत सिद्धराज- अष्टविधि पूजा बीसतीर्थकर जसरी कवि सुखदेव- धु चरित्र ११२ १६२ २४५ . ११२ में. Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७६ ) मथकार का नाम ग्रंथ नाम पंथ सूची की प्रथकार का नाम सं० सूरि हर्षकीति- विनय सेठ विजया सेठानी | पं. हेमराज-- सम्भाय हर्षचन्द्र पद संग्रह हरखचंद ( धनराज के शिष्य) पदसंग्रह पार्श्वनाथ स्तोत्र शीतलनाथ स्तवन हरिकलश -- सिंहासन बत्तीसी पं० हरीवैस- पंचयधावा हीरा नेमि पाइलो हेमक्मिल सूरि- नन्द बचीसी प्रथ नाम संथ सूची की पत्र सं. गीत गोमदृसार कर्म काण्ड माषा ८,१७७ चौरासी पोश २१, ११२ दोहा शतक नयचक भाषा नेमिराजमती जखडी पंचास्तिकाय भाषा ११, ११ प्रवचन सार भाषा ४२, १११, १६३ मक्तामर स्तोत्र मा५१.१, १५२, २१४, १५, १६, १६४, १७२, २६३, २९, ३०२ ३०३, ३०८ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * शुद्धाशुद्धि विवरण * - - पत्र एवं पंक्ति अशुद्ध पाठ अन्तगढदशाओ वृत्ति इकवीसठाणा चर्चा जीवपाठ माघ सुदी १४१३ १४१४ २४१६ शुद्ध पाठ अन्तगडदशाओ वृत्ति इकवीसठाणा --सिद्धसेनमूरि जीवसंख्यापाठ पोस बुदी ५ से १७ तक सभी पाठ रामचन्द्र कृत है। कण्यणंदी यावक्री बोन्छ समोसरणवर्णन १८.६ ५४२ करायणिंद पावली बोछ ममोसरमवर्णन ६x२१ २०४५३ जिनाय भंडार भंडारी भाषा-हिन्दी रचनाकाल रचनाकालx হুম্মু अज्ञात ಇದX २EX ३६४२३ ३४.४२५ ३५३४२१ ) ३८x१६ ३६४७ ३६४२० ३६x.. yixt में प्रतिलिपि की थी में संशोधन करके प्रतिलिपि करवाई थी चिन्तान चित्तान धर्मरंजितचेतसान धर्मरेजितचैतसान भाषा-अपभ्रंश विद्यानन्दि ४५४१८ विद्यानन्द .. Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र एवं पंक्ति ४६८१४ ४६X ३४६४१२ ४७१० ४०x१३ ४८१० ६०x२३ ६१x ६५x२० ६६x८ ६६८ ७ ७०X१८ ७३X२५ ७५४ २ ७५X ४ ३३६४२३ ३५२५३० ७६४२२ १६ ७८०६ २७६ X ३ JεX X ८१x१६ ८०X१ ८४९१८ ८४x२१ ४८२४ Exxx अशुद्ध पाठ १३ आ. समन्तभद्र यति ३१ सं० १६२७ श्रावण सुदी २ प्राकृत रामचन्द अधुसारि बसतपाल प्रद्युम्नचरि भविसपत्त संस्कृत परिहानन्द परिहानन्द सं० १६१८ (305) आराधना ओणिक चरित्र श्रीजिनहरिं । सुशिष्या पाठकवरा । शुद्ध पाठ १८६३ नन्द परि हां नन्द सं० १६७८ दौलतरामजी कृत आराधना श्रोणिक चरित्र ( वद्धमान काव्य ) "बालक" कवि बालक कवि रामचन्द्र गौतमपृच्छा वृत्ति गौतम प्रच्छा तिमपाठ - " पाटक पत्र संयुक्त" के पूर्व निम्न श्लोक और पढ़ें: ० मालदेव अनुरूप कोठ अग मील तो भारामल्ला पूज्यपाद अभिनव ३१२ सं०] १८६३ अषाढ सुदी ४ बुधवार भाषा - संस्कृत: अपभ्रंश रायचन्द्र अनुसारि वसंतपाल प्रद्युम्नचरित -सत्रा भविसयत्त अपत्र श श्रीमत्सुमतिहंसाशन लग्यो मतिवद्ध ते ।। १ ।। मालदेव उरुष को उ अगमी मीलतो भारामस्त -· ● Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र एवं पंक्ति अशुद्ध पाठ शुद्ध पाठ ८५४२५ ८६४८ पद्य पथ श्रा भल ७७ ७४२१ EX१५ . १७८८ १७६५ लेखनकालx लेखनकाल-सं० १८०६ फागुण बुदी १३ रचन रचना प्रारंभिक पाठ के चौथे पद्य से आगे निम्न पद्य और पढ़ेंअंतर नाही सोस्दै बाय, समरस आनंद सहज समाय । विस्त्र चक में चित न होय, पंडित नाम कहावै सोय ॥ ५ ॥ जब वर खेमचन्द गुरदीयो, तब श्रारंभ प्रथ को कीयो । यह प्रबोध उतपन्यो श्राय, अंधकार तिहि घाल्यो स्वाय ।। ६ ।। भीतर बाहर कदि समुभाव, सोई चतुर ता कहि आवै । जो या रस का भेदी होय, या में खोज पाच सोइ ।। ७ ।। मथुरादास नाम विस्तार चो, देवीदास पिना को धार यो। __ अंतर वेद देस में रहे, तीजै नाम मल्ह कवि कहै ।। ८ ।। ताहि सुनत अद्भुति रुचि भई, निहचे मन की दुविधा गई। __ जितने पुस्तक पृथ्वी आंहि, यह श्री कथा सिरोमणि ताहि ॥ ६ ।। यह निज बात जानीयो सही, प. प्रगट मल कवि कही। पोथी एक कहुं ते आनि, ज्यो उहां त्यों इहां राखी जानि ||१०॥ सोरह से संबत जब लागा, तामहि वरष एक अद्ध भागा। कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादसी, ता दिन कथा जु मन में बसी ।।११।। जो हमें कृष्ण भक्ति नित करों, वासुदेव गुरु मन में धरौं । तो यह मो झं ज्यौं जिसी, कृष्ण भट्ट भाषी है तिसी ॥१२॥ ॥दोहा॥ मथुरादास विलाम इहि, जो रमि जाने कोय । इहि रस येथे मल्ह कहि, बहुर नि उलटै सोय ॥१३|| जब निसु चन्द्र अकासे होइ, सब जो तिमिर न देखे कोड। तैसे हि शाम चन्द्र परकास, ज्यौं अज्ञान अंध्यारो नास ॥१४|| परमात्म परगट है जाहि, मानौ इहै महादेव आहि ।। ग्यान नेत्र तीजे जय होई, मृगतृष्णा देखें जगु सोई ।।१५।। Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र एवं पंक्ति ( ३८०) अशुद्ध पाठ शुद्ध पाठ अनुभं ध्यान धारना करें, समता सील माहि मन धरै । इहि विधि रमि जो जान सही, महादेव मन वच क्रम कही ।।१६। यार उतमचंद यार टोडरमल ६०x२६ Ex३१ ३६४४ Exx६ १००x१८ १०९४६ बनारसीदास चाचक विनय सूरि उगरणसीय राते रचउ कारयां इठबन नेमिदशभवर्णन मानतुगाचार्य टीकाकार यानतराय वाचक विनय विजय उगपतीसह राते कारण १०१४ १०१४ १८३४२६ १८५४२२ १०७४२१ १०.४५ इतवन नेमिदश भववर्णन मानतुगाचार्य । टीकाकार ... . ... ११०४११ १५४४१,५८ १:४४२३ ११४२४ १x१४ प्रथम पंक्ति के आगे निम्न पंक्ति और पढ़ें "शिष्य ताहि भट्टारक संत, तिलोकेन्द्रकीरति मनिवत | प्राकृत (1) अपभ्रंश कवि बालक कवि रामचन्द्र 'बालक' दोह दोहा १६६१ नि कनकामर मुनि कनकामर राष विशेप RUX १.xe मनरकट बडा चादन्त बंदो के पठनार्थ ने १३७४५ १३८x११ १३६४१ १३६४२३ मरकट बड़ाचा दन्त चंदो के पठनार्थ धार्मिक कर्ता का नाम धू चरित का नाम चरित Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i (३९१) पत्र एवं पंकि अशुद्ध पाठ शुद्ध पाठ ललचचंद लालचन्द अमरमणिक अमरमणिक के शिष्य साधुकोति ३६३४२७ १४८४२ १४८४२४,२६ माणिक सूरि मो. पुण्यसागर ३५-४२k १४६x२१ १४६४३ १५०x११ १५०४१८ १५०४२० १५१४६ १५४४१० गुजराती मोहो जसुमालीया कापथ हिन्दी (राजस्थानी) मोरडो जसु मालिया कायथ परवार नारी चरित्र संबंधी एक कथा पखार नारी चरित्र जैन जे न बुधजन द्यानतराय देहली की राजपट्टारली देहखी के राजाओं के अध्यात्म बत्तीसी राज पट्टावली राजाओं के ज्ञानबत्तीसी १५६x१० १६३४१५ । ३७०४२१ । ५७०४ १६६४% १७८४२६ १०x१६ १८०४८ ३५ वें पद्य के आगे की पति निम्न प्रकार है तस शिष्य मुनि नारायण जंपइ धरी मनि उल्हास ए॥१३शा पत्र संख्या-1 पत्र संख्या-१६। रचनाकाल रचनाकाल संभ १४२६ । करण कशाव देवपट्टोदयाद्रितरुण तरुणित्व लोधा ही लोधाही विमलहर्षवाचक भाव १८४ १८७४१५ १८७४१६ १८६ १६०x२१ १८२५ श्रीरत्नहर्ष भव वैराग्य शतक श्री रत्नहर्ष के शिष्य श्रीसार वैराग्यशतक Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र एवं पंक्ति १६४४१८ १६६४१७ अशुद्ध पाठ भूधर धर्मभूषण तेलाव्रत शुद्ध पाठ पं० भूधर अभिनव धर्मभूषण लब्धिविधान तेला व्रत आ० गुणिनंदि २०४४१५ ३१८४१० हिनदि २०४४२४ २१८४१६ २१६x२४ २२१४१२ २२१४१३ २२४४१६ पीले पील्या पंडि पंडित रचनाकाल रचनाकाल सं. १६१८ कवि बालक कवि रामचन्द्र 'बालक' सं० १७०३ १७१३ अष्टान्हिका कथ अष्टान्हिका कथा-मतिमंदिर कनककीर्ति कनक बंकचोरकथा (धनदत्त मंठकी कथा ) बकचोरकथा, धनदत्त सेठ की कथा देव ए से मदारखा सैमदारखा ३३६x२ देवरा ८४२६ २३५४२ ३५८x१८ '. ३६४४५) २३५४५ कामन्द १७२६ २३८४१८ २४५४८ २४०४१४ २४३४१७ २४३४२७ *XXX 3 २४x६ २१६x . जयानंदिसूरि लिपंडित ( युगादि देव स्तवन), मिघुण्यो ए भाइ ज्योतिष ( शकुनशास्त्र) वराहमिहरज महिसिंह १७८० म० ककुमुदचन्द्र/टीकाकार उतमऋषि जयनंदिसूरि शालि पंडित (युगादिदेव स्तवन । विजयतिलक मिघुण्यो पभराइ वास्तुविज्ञान वराहमिहर महेस २५२४१८ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध पाठ महसंहि गोत्रवर्णन रचनाकाल लेबनकाल सं १८८ छह सतीयासिंह अन्दनीवासी हेमविमलसूरि समासो व्रतविधानयासों पत्र एवं पंक्ति २५२४१४ २५२४१६ २५३४६ २५३४ ६ २५xy २५४४२५ २५५४१४ २५७४१६ २५८xt २५६४ ५ २६०४ - २६७x २६६४१२ २०४६ २७१४१३ २७३४६ २७३४११ २७३४१५ २७३४१८ २७३४१८ ७६x २७१x१३ २८०४९० २८४४१८ ३२८४१६ शुद्ध पाठ महेसाहि बंडेलवालों के गोत्र वर्णन रचनाकाल सं०१८ लेखनकाल । छहस तीयासिंह अब्द नीवासी हेमबिमल सूरि के प्रशिक्षण संघकुल तमस्सो अतविधानरासो श्रावक २७० रचना काल सं० १७४३ ५१८ रामचन्द्र 'बालक' श्रावण ५१६ बालक २४ . गौत गोट वीर सं० हिन्दी विक्रम सं. संस्कृत १६५८ जिनदत्त सूरि गीत जिनदत्तमूरि भूषाभूषण पत्रावली पाठ भाषाभूषण च्यत्रावली श्री धूचरित श्री धूचरित-जनगोपाल २६:४१ भाथ तसंघरन वनि थाइ अदुकउ म तरुवइ १६६६ भाष तसं. घर ननिधथाइ अधक बनत हुवई Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (384 ) शुद्ध पाठ सययसुन्दर अशुद्ध पाठ जिनदत्त सूरि 20 का- सं१७२१ पद्य 18 माति छन्सीसी प्राति छत्तीसी सहजकीचि हीरकलश पत्र एवं पंक्ति 261428 261420 26248 3.8418 / 26248 338x18. 262414 262414 26440 264411 264428 DEX6 301x14 301420 30145 30346 30442 / 320x24 / 310x15 310x15 31246 3124 31448 315415 अशः कीचि इरिकलश सं० 1632 थाउलपुरि मारवठा चेतालदास 218 पाडलपुरि भावदामा संस्कृत (12) हिन्दी (13) परिचई चतुराई गुनर्गजनम गुनगंजन कला पष्ठिशतं षष्टिशत प्रकरण प्राकृत कुशलमुनिद चैनसुखदास मुनि महिसिंह गणचन्द्र उपदेशशतक-बनारसीदास यति धर्मभूषण मदास 261 चैनसुख मुनि महेस गुणचन्द्र उपदेशशतक दानतराय अभिनव धर्मभूषण धर्मदास 31846 320416 331411 340422 350x18 362414 36344 36440 36445 गोयम गोयमा संबोध पंचासिका उत्तमचंद्र कामन्द कामन्दकीय नीतिसार टोडरमल