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________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] [ ५३ प्रशस्ति-संवत् ९४ २७ वर्षे वैशाख सुदी श्री मूलचे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्चे कुन्दकुन्दाचार्यान्विये मंडला नायें स्त्रीति शिष्य ने लिखापितं । Co तस्यार्थसूत्र वृति-योगदेव | पत्र संख्या - १११ | साइज - १०४ ई ई | भाषा-संस्कृत । विषयसिद्धान्त | रचना काल -x | लेखन काल सं० १६३ ष्ठ बुद्धी १३ पूर्ण प्टन नं० ६८ । विशेष - महारक चन्द्र देव की अनाथ के धजमेरा गोपाल साह सांगू व उनकी साथ सुहागदे ने यह प्रम स. १६३ में लिखवा कर षोडषकारण मतोद्यापन में मंडलाचार्थं चन्द्रकीर्ति को भेंट किया था। तत्वार्थसूत्र पत्र संख्या - १२३ | साइज - १२५ इञ्च । भाषा-संस्कृत विषय सिद्धान्त | रचनावेष्टन नं ० ६७ ॥ विशेष---संस्कृत तथा हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है तथा दोनों भाषाओं की टोकायें सरल हैं । तत्वार्थसूत्र भाषा ढोका - कनककीर्ति पत्र संख्या - २७१ | साइज - x५ चाषाहिन्दी | विषय-सिद्वान्त । चना काल -X | लेखन काल-सं० २०३६ |प्टन नं० ८३४ । १ काल-X | लेग्खन बालु प्रति के हैं । विशेष- नय सागर भे जयपुर में प्रतिलिपि को भी पत्र १७६ से २७१ तक बाद में लिखे हुए हैं अथवा दूसरी प्रारम्भ-गोरा मार्गम्य नेतारं सारं कर्मभूभृतां । शातारं विश्व तत्वानां वंदे तद्गुलम् ॥ १ ॥ टीकाअहं उमास्वामी मुनीश्वर भूल ग्रंथ कारक | श्री सर्वज्ञ वीतराग बंदे कहतां श्री सर्वज्ञ चौतराव ने नमस्कार करूनू । किस] इक है श्री श्रीतराग सद्र देव, भोत्र (ख) मार्गस्य नैतार कहतो मोतमार्ग का प्रकासका परवा बाला है । थोक किसा इक लै सर्वज्ञ देत्र कम्मे नूगृतां मेत्तारं कहता ज्ञानावरणादिक आठ कर्म यह रूपियां का मेदिवर वाला छ । अन्तिम के इक जीव चार रिधि करिधि में । के हक जीव चारण बिना सिंघ है। कैं इक जीव घोर तप करि सिध है | के एक जोन श्रवोर तप कर सिद्ध । के इक जीव उरसि बैं । इक मध्य सिव है | के इक जीव श्रध सिंध है । इह माति करि क्या हो भेदा सो सिथ हुआ है । सो सांत सू' समझ लोच्यों । इति तत्वार्थाधि गये मी शास्त्रे समीयां पोसतक लिखत नेण सागर का चोमनराम दोसी सवाई उपुर में लिख्यों संवत १८४६ में पुरी कियो । 1 ८३ प्रति नं० २- पत्र संख्या १२२ | साइज -४ एच 1 लेखन - x । पूर्ण । वेष्टन ००२३ । विशेष- शुतसागरी टीका के प्रथम श्रध्याय की हिन्दी टोना है। ८४. प्रति नं० ३ - पत्र संख्या - २१६ | साइज - १०४५ इंच | लेखन काल-सं० १८४० । पूर्ण । चन्दन नंद्र ७३५ । विशेष- केन सागर ने सोमर में लिपि की थी । प्रारम्भ के पत्र नहीं है यद्यपि संख्या १ से ही प्रारम्भ है । इ । लेखन काल सं० १७३८ ज्येष्ठ सदी ८५ प्रति नं ४ - पत्र संख्या ११२ | साइज - १२ वेष्टननं ७३८
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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