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________________ तोत्र ] [ १६ श्री भट्टारक कीर्ति निधान विजयीति नामैं गुण स्वान || तिन इह माषा टीका करी प्रभाचन्द दौंका अनुसरी । दोहा-संस्कृत शब्द नहीं किया सन नामक इय भाई । किहा किहा लिखियो काठन घणी वधाई माहि ।। p भावारम सूचिनी ह टीका को नाम । जाणों नांचो उर धरी ज्यू सी शिव काम ॥ प्रमानन्द की मति कहां किहो हमारी बुद्धि । रवि की कान्ति किही किहा पर दीपक की शुद्धि ॥ पै हम प्रति माफिक करी पण में अर्थ विरुद्ध । जो प्रमाद वस होय सो पुमति कीजिये शुद्ध। सोरठा -माषा टीका पह कोई जिनेसर मक्ति बसि । जो चाहो शिव गैह इण को पाठ करों सदा । इति श्रीमदमट्टारक श्री तिलोकेन्द्रकीर्ति विरचिता सामायिक दीका भात्रार्थसूचिनी नाम्नी सिद्धमगमत् । गाय का उदाहरण-मलो है पाव कहता सामधि जैह को असा हे सुपार्श्वनाथ भगवन् श्राप जय जय कहता बार बार जयचंता रहो। प्रापनै म्हारौ बारंबार नमस्कार होको । ( पत्र ३८) ६८, सामायिक वनिका-जयचन्द छाबड़ा। पत्र संख्या-५ । साज-१२xkण | भाषाहिन्दी । विषग-स्तोत्र । रचना काल-X । लेखन काल-XI पूर्ण । वेष्टन ० ४०५ । . विशेष-एक प्रति और है। ६६. सिद्धिप्रियस्तोत्र-देवनन्दि । पर संख्या-3 1 साइज-11४५६ इन्च 1 भाषा-संस्कृत । विषयसोच । रचना काल-X1 लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ५! . विशेष-तीन प्रतियों और है जिसमें एक हिन्दी रीका सहित है। .
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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