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________________ [ ४४ ] मासी निश्चरन लहये 1 1 परिजन ते फल फुल म समोसरण कि महमा माल ऐसे मन चित वनपाल । धाम तिन वाणि सुविस्थान कियो, और व्याकरणा नहि देखियो । तैसे बजे कणि मोती विधियो मृतसिबलता पैगम कियो । जैसे बुधि जन वाणिमाला वरण कियो भाषा गुण माल || अंतिम — पटमाल व महान पुरिव वस्न कियो दोहा- देश का निरज में न राजान | ताके पुत्र है तो सूरजमल सुवधाम || तेजपुंज रवि हैं मलो, न्याय नीति गुणवान | दाको एस है जगत में, तथै दूसरो मान ॥ तिन्ह नगर बसाइयो नाम भरतपुर तास । सा राजा समष्टि है भला, परवि प्यारि उपवास | जिन मंदिर तह बात है, जिस महाम वाह } इन्द्र पुरि धमिराम है सोमा सुरंग निवास | साहा नगर को चौधरि विहरि दा तिनकै मंदर उपरों, श्री जिन मंदिर प्रवास ॥ श्री जिन सेवक है भलो भी जिनको दास । के बार गोत्र है भंलो, हम मया जिसदांस ॥ वाह समिषे याग कर वर्ग किमी दर निवास वासि सांगानेर को जाति व धमवाल || गिल गोत उद्योग है गहरी रामसंघ को बाल | उत्तर दिसम है न मसी, अहली प से पुनियान नर दिलो काटियो धान | हादिजगर को वाफवर संगही पदारथ जानि ॥ बार्क देसी खान को ऐ दोष लिये चानि । महन्द्रमा मोरचंद्र के पाट | कासटागा गच्छ में न धन्दाबाट निज गुरू सु विनति करि, पाप हर के काजि ॥ स्वामी तुम उपदेश बोह, तारे खान || [ संद
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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