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संग्रह ]
[१४५ सन मुसमुख बापि खिरी, सणी भात गुणवान ।। सिध क्षेत्र बंदन करो, पुरि वर्म... ....टान । तब में परस ते तुषि in ! सजन भ्राता संग ले श्राये उर्जत मिलान । जिन माईस मों पूजि करि, भली मगति वर यानि । अष्ट द्रव्य ले निरमला हरे करम वसु सानि | चनुर संग निज पाहार दे अंग प्रभावना सार ।। सर्व संग को भगति सु भयो सुजै जै कार । सम्म माता निज हेत करि, धरौ ज संगहि नाम | तातै संगहि कहत सघ नहि कियो पतेसटा धाम | संवत अठारा से भला ऊरि एकाइस जानि । जेठ सुकल पंचमि भली श्रतसागर बखाणि ।। सुवाति नवित्र है भलो व्रत हो रविवार । 4.किचंद उपदेस ते रच्यो माल विस्तार ।। हमारो मित्र है सही जाति ज पलिवाल । वह वसतु हैं हीडोगा में बने रहै मरतपुर रसाल ।। तिनसु हम मेलो भयो शुभ उदै के काल ।
उनहि का संजोग ते करि मापा षटमास ॥ इति परमाल वन संपूर्ण..विलास अपवाल यांचे तीने प्रहार बंच्या।
७३. गुटका नं० १०४ । पत्र संख्या-६४ ॥ साइज-५४४३ इस । माषा-हिन्दी । लेखन काल-४। पूर्ण । वेष्टन नं १११३ ।
विशेष-हिन्दी पर्दो का संग्रह हैं ।
लेखन
७६४. गटका+०१०५ | पत्र संख्या-१३ से ५० साज-4xxs इच। माता-हिन्दी काल-४ | अपूर्ण । वैष्टन नं० १९१३ ।
७६५. गुटका नं० १०६ । पत्र संख्या-१५ साज-१४४ इन्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-x1 पूर्ण | बेष्टन नं. १११।
विशेष-पद संग्रह है।
___E६. गुटका नं०१०७ । पत्र संख्या-1 साइन-xx च । माषा-हिन्दी | लेखन कालसं. १८०१ । पूर्ण । वेष्टन न११६ ।