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________________ १८ शताब्दी के हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान - महा पंत्र टोडरमलजी द्वारा रचित एवं लिखित हमहुबशह पहोवा के जो बहुकाधिक सम्पर्क सोच‌ले कान से मोजना हो । मामानीराम शा कावि जनतेस माना जाता था रिये मालि करते ही कुरिया की सत्ता का सद्भाव हो र सामिप वाकेनानुकीमा पनि हो । हजार कृति है से चरित्र में प्रति सिम्पालके में से सबै ताका समाधानकोधादिरूम परिणाम हो कि होतानाही सानु श्रीवारिक सम्पनी हो मानमर परमानुजम के धादिकारे से काहिक सम्प महोइमानि मत्तनैमिनिकंपनीवाईरहे। जैसे मपनी की घातक कैंडिस जातिमक्कतिकालीन हो पीएन पहले मैं नेता भीमाम् श्रीन्ामशतक मनोहरौ कमाने तो किंग करियाक ( इनकार कर केंद्रप्रकृति को नाकामा सम्पर्ककोधात कर्शन मोह। निकांशी याचार करने हो । प्रमं सम कोहकांकडे मानवि fara मोक्षमार्ग प्रकाश एवं क्षपामार की मूल प्रतियों के चित्र कपास हो मोगका Aanan इतरांश उपनिशम सार परेंस दिये कल्पान्मु वामपक माउस इस माम नि सक्का तकहितकार या स संगमन कारंहिकास र सीम हा काय ि होसीक हमा नमायते कुकर जरिवा गुरुम [ जयपुर के बीचन्द्रजी के मन्दिर के शास्त्र-भण्डार में संग्रहीत ] श्री मलसार गोमरसं की मानवकानामनपाको सामा कासरे
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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