________________
सकता है। प्रस्तुत ग्रन्थ सूची में संस्कृत भाषा के २७३, प्राकृत के १४, अपनश के १६ तथा हिन्दी के २०२ विद्वानों के ग्रन्थों का परिचय मिलता है तथा इससे भाषा सम्बन्धी इतिहास लेखन में अधिक सहायता मिल सकती है।
ग्रन्थ सूची को उपयोगी बनाने का पूरा प्रयत्न किया गया है तथा यही प्रयास रहा है कि ग्रन्थ एवं ग्रन्ध कत्तो आदि के नामों में कोई अशुद्धि न रहे किन्तु फिर भी यदि कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो विद्वान पाठक हमें सूचित करने का फष्ट करें जिससे भागे प्रकाशित होने वाले संस्करणों में उसका परिमार्जन किया जा सके। धन्यवाद समर्पण
___ सर्व प्रथम हम क्षेत्र कमेटी के सदस्यों एवं विशेषतः मन्त्री महोदय को धन्यवाद देते हैं जो प्राचीन साहित्य के उद्धार जैसे पवित्र कार्य को क्षेत्र की ओर से करवा रहे हैं तथा भविष्य में इस कार्य में और भी अधिक व्यय किया जावेगा ऐसी इमें आशा है । इसके अतिरिक्त राजस्थान के प्रमुख जैन साहित्य सेवी श्री अगरचन्दजी नाहटा ए.वं वीर सेवा मन्दिर देहली के प्रमुख विद्वान् पं० परमानन्दजी शास्त्री के हम हदय से आभारी हैं जिन्होंने सूची के अधिकांश भाग को देखकर आवश्यक सुझाव देने का कष्ट किया है तथा समय समय पर अपनी शुभ सम्मतियों से सूचित करते रहते हैं। श्रद्धय गुरुवर्य पं० चैनसुखदासजी सा० न्यायतीर्थ के प्रति भी हम कृतज्ञांजलियां अर्पित करने हैं जो हमें इस पुनीत कार्य में समय समय पर प्रेरणा देते रहते हैं और जिनकी प्रेरणा मात्र से ही जयपुर में साहित्य प्रकाशन का थोड़ा बहुत कार्य हो रहा है । बधीचन्दजी के मन्दिर के प्रबन्धक बाबू सरदारमलजी आबूजी वाले तथा ठोलियों के मन्दिर के प्रबन्धक बाबू नरेन्द्र मोहनजी इंडिया तथा पं० सनत्कुमारजी बिलाला को भी हार्दिक धन्यवाद है जिन्होंने अपने यहाँ के शास्त्र भएडारों की प्रन्थ सूची बनाने की पूरी सुविधा प्रदान की है। अन्त में हमारे नवीन सहयोगी वायू सुगनचन्दजी को भी धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकते जिन्होंने इस प्रन्थ सूची के कार्य में हमारा पूरा हाथ बदाया है।
कस्तूरचन्द कासलीवाल
अनूपचन्द जैन