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________________ ( २१ ) राजुल गीत, नेमीश्वरगीत, मोरडा, कर्महिंडोलना पञ्चभगति बेलि आदि अन्य रचनायें भी मिलती हैं। सभी रचनायें आध्यात्मिक है। कवि द्वारा लिखे हुये कितने ही पद भी हैं। जो अभी तक प्रकाश में नहीं आये हैं । ५१. हीरा कवि ये बूंदी ( राजस्थान ) के रहने वाले थे । इन्होंने संवत् १८४८ में 'नेमिनाथ व्याहलो' नामक रचना को समाप्त किया था । व्याइलों में नेमिनाथ के विवाह के अवसर पर होने वाली घटनाओं का वर्णन किया गया है। रचना साधारणतः अच्छी है तथा इस पर हाडौती भाषा का प्रभाव झलकता है । ५२. पांडे हेमराज प्राचीन हिन्दी गद्य लेखकों में हेमराज का नाम उल्लेखनीय है। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी था तथा ये पांडे रूपचंद के शिष्य थे । इन्होंने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के ग्रन्थों का हिन्दी गद्य मैं अनुवाद करके हिन्दी के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योग दिया था । इनकी अब तक १२ रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं जिनमें नयचकभाषा, प्रवचनसारभाषा, कर्मकाण्डभाषा, पञ्चास्तिकायभाषा, परमात्मप्रकाश भाषा आदि प्रमुख हैं । प्रवचनसार को इन्होंने १७०६ में तथा नयचक्रभाषा को १७२४ में समाप्त किया 'था। अभी तीन रचनायें और मिली हैं जिनके नाम दोहाशतक, जखडी तथा गीत हैं। रचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कवि का हिन्दी गद्य एवं पद्य दोनों में ही एकता अधिकार था । भाव एवं भाषा की से इनकी सभी रचनायें अच्छी है । दोहा शतक जबडी एवं हिन्दी पद अभी तक अप्रकाशित हैं । उक्त विद्वानों में से २७, ३५, ४०, ४२ तथा ४५ संख्या वाले विद्वान् जैनैतर विद्वान हैं। इनके अतिरिक्त ५, ६, २४, ३०, ३३ एवं ३६ संख्या वाले श्वेताम्बर जैन एवं शेष सभी दिगम्बर जैन विद्वान् हैं । इनमें से बहुत से विद्वानों का परिचय तो अन्यत्र भी मिलता है इसलिये उनका अधिक परिचय नहीं दिया गया। किन्तु अजयराज, अमरपाल, उराम, केशरीसिंह, गोपालदास, चंपाराम भांवसा ब्रह्मज्ञानसागर, थानसिंह, बाबा दुलीचन्द, नन्द, नाथूलाल दोशी, पद्मनाभ, पन्नालाल चौधरी, मनराम, रघुनाथ आदि कुछ ऐसे विद्वान् है जिनका परिचय हमें अन्य किली पुस्तक में देखने को नहीं मिला। इन कवियों का परिचय भी अधिक न मिलने के कारण उसे हम विस्तृत रूप से नहीं दे सके । अन्य सूची के अन्त में ४ परिशिष्ट हैं। इनमें से ग्रन्थ प्रशस्ति एवं लेखक प्रशस्ति के सम्बन्ध मैं तो हम ऊपर कह चुके हैं । प्र'धानुक्रमणिका में ग्रन्थ सूची में आये हुये अकारादि क्रम से सभी प्रन्थों के नाम दे दिये गये हैं । इससे सूची में कौनसा ग्रन्थ किस पृष्ठ पर है यह ढूंढने में सुविधा रहेगी। इस परिशिष्ट के अनुसार प्रन्थ सूची में १७८५ प्रन्थों का विवरण दिया गया है। प्रन्थ एवं प्रन्धकार परिशिष्ट को भी हमने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी भाषाओं में विभक्त कर दिया है जिससे प्रभ्थ सूची में किसी एक विद्वान के एक भाषा के कितने ग्रन्थों का उल्लेख आया है सरलता से जाना जा
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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