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________________ कवि की रचना का नाम प्रद्युम्न चरित है जो संवत् १४११ में समाप्त हुई थी। इसमें ६८९ पय है किन्तु कामा उज्जैन आदि स्थानों में प्राप्त प्रति में ६८२ से अधिक पद्य है तथा जो भाव भाषा, अलंकार आदि सभी दृष्टियों से उत्तम है। कविने प्रद्युम्न का चरित्र बड़े ही सुन्दर ढंग से अंकित किया है । रचना अभी तक अप्रकाशित है तथा शीघ्र ही प्रकाश में आने वाली है। .. ४७. सुमतिकीर्सि सुमतिकीर्ति भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में होने वाले भट्टारक ज्ञानभूषण के शिष्य थे तथा उनके साथ रह कर साहित्य रचना किया करते थे। कर्मकाण्ड की संस्कृत टीका ज्ञानभूपण तथा सुमतिकीर्ति दोनों ने मिल कर बनायी थी । भट्टारक शानभूषण ने भी जिस तरह कितने ही मन्थों की रचना की थी उसी प्रकार इन्होंने भी किसने ही रचनायें की है। त्रिलोकसार चौपई को इन्होंने संवत् १६२७ में समाप्त किया था। इसमें तीनलोकों पर चर्चा की गयी है। इस रचना के अतिरिक्त इनकी कुछ स्तुतियां अथवा पद भी मिलते हैं। ४८, स्वरूपचन्द विलाला ___पं० स्यरुपचन्द जी जयपुर निवासी थे । ये खण्डेलवाल जाति में उत्पन्न हुये थे तथा विलाला इनका गोत्र था । पठन पाठन एवं स्वाध्याय ही इनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य था। विलाला जी ने कितनी ही पूजात्रों की रचना की थी जो आज भी बड़े चाव से नित्य मन्दिरों में पढी जाती है। पूजाओं के अतिरिक्त इन्होंने मदनपराजय की भाषा टीका भी लिखी थी जो संवत् १६१८ में समाप्त हुई थी। इनकी रचनाओं के नाम मदनपराजय भाषा, चौसठऋद्धिपूजा, जिनसहस्त्रनाम पूजा तथा निर्वाणक्षेत्र पूजा आदि हैं। ४६. हरिकृष्ण पांडे ये १८ वीं शताब्दी के कवि थे। इन्होंने अपने को विनयसागर का शिष्य लिखा है। जयपुर के बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में इनके द्वारा रचित चतुर्दशी-कथा प्राप्त हुई है, जो संवत १७६६ की रचना है । कथा में ३५ पद्य है। भाषा एवं दृष्टि से रचना साधारण है । १०. हर्षकीर्ति हर्षकीर्ति हिन्दी भाषा के अच्छे विद्वान थे। इन्होंने हिन्दी में छोटी छोटी रचनायें लिखी हैं जो सभी उत्तम हैं । भाव, भाषा एवं वर्णन शैली की दृष्टि से कवि की रचनायें प्रथम श्रेणी की है। चतुर्गति बेलि को इन्होंने संवत् १६८३ में समाप्त किया था जिससे पता चलता है कि कवि १७ वी शताब्दी के थे तथा कविवर बनारसीदासजी के समकालीन थे। चतुर्गति बेलि के अतिरिक्त नेमिनाथ
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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