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(१६) ईर्षा वर्णन, बलदाऊ मिलाप वर्णन आदि दिये हुये है। नाटक की भाषा साधारणतः अच्छी है। नाटककार जैनेतर विद्वान थे।
४३. भट्टारक शुभचन्द्र भट्टारक शुभचन्द्र १६-१७ वीं शताब्दी के महान साहित्य सेवी थे 1 भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में गुरु सकलकीति के समान इन्होंने भी संस्कृत भाषा में कितने ही ग्रन्थों की रचना की थी जिनकी संख्या ४० से भी अधिक है । षटभाषाचक्रवत्ति, त्रिविविद्याधर आदि उपाधियों से भी आप विभूषित थे ।
___ संस्कृत भाषा के अन्यों के अतिरिक्त आपने हिन्दी में भी कुछ रचनायें लिखी थी उनमें से २ रक्तायें तो अभी प्रकाश में आयी है। इनमें से एक चतुर्विंशतिस्तुति तथा दूसरा तत्त्वसारदोहा है। सत्त्वसार दोहा में तत्त्ववर्णन है । इसकी भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है । इसमें ११ पय हैं।
४४. सहजकीर्ति सहजकीति सांगानेर ( जयपुर ) के रहने वाले थे । ये १७ वीं शताब्दी के कवि थे । इनकी एक रचना प्राति छत्तीसी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भएद्वार में वेंगुटके में संग्रहीत है। यह संबत १६८८ में समाप्त हुई थी। रचना में ३६ पद्य है जिसमें प्रातःकाल सबसे पहले भगवान का स्मरण करने के लिये कहा गया है । रचना साधारण है।
४५. सुखदेव हिन्दी भाषा में अर्थशास्त्र से सम्बन्धित रचनायें बहुत कम है । अभी कुछ समय पूर्व जयपुर के बधीचन्दजी के मन्दिर में सुखदेव द्वारा निर्मित वणिकप्रिया की एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध हुई है। वणिकप्रिया का मुख्य विषय व्यापार से सम्बन्धित है।
सुखदेव गोलापूरब जाति के थे । उनके पिता का नाम बिहारीदास था । रचना में ३२१ पद्य है जिनमें दोहा और चौपई प्रमुख हैं । कवि ने इसे संवत् १७१७ में लिखी थी । रचना की भाषा साधारणतः अच्छी है।
४६. सधार कवि अब तक उपलब्ध जैन हिन्दी साहित्य में १४ वीं शताब्दी में होने वाले कवियों में कवि सधारु का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इनकी यद्यपि एक ही रचना उपलब्ध हुई है लेकिन वही इनकी काव्य शक्ति को प्रकट करने में पर्याप्त है । ये अग्रवाल जाति में उत्पन्न हुये थे जो अग्रोह नगर के नाम से प्रसिद्ध हुई थी । इनके पिता का नाम शाह महाराज एवं माता का नाम गुणवती था। कवि ने इस रचना को परछ नगर में समाप्त की थी जो कानपुर झांसी रेल्वे लाइन पर है।
1. जैन सन्देश भाम २५ संख्या १२