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सुल्लित भाषा में लिखी हुई है। तथा उत्तम संवादों ये भरपूर है। नाटक में काम, क्रोध मोह आदि की पराजय करवा कर विवेक आदि गुणों की विजय करवायी गयी है ।
३६. मेघराज
मुनि मेघराज द्वारा लिखित 'संयमप्रवण गीत' एक सुन्दर रचना है। मुनिजी ने इसे संवत् १६६१ में समाप्त की थी | इसमें मुख्यतः 'राजचंद सूरि' के साधु जीवन पर प्रकाश डाला गाया है किन्तु राजचन्दसूरि के पूर्वं आचार्यों - सोमरत्नसूरि, पासचन्द्रसूरि तथा समरचन्द सूरि के भी माता पिता का नामोल्लेख, आचार्य बनने का समय एवं अन्य प्रकार से उनका वर्णन किया गया है। रचना वास्तव में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर लिखी गयी है। वर्णन शैली काफी अच्छी है तथा कहीं कहीं अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
४०. रघुनाथ
इनकी अब तक ५ रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं। रघुनाथ हिन्दी के अच्छे विद्वान् थे तथा जिनकी छन्द शास्त्र, रल एवं अलंकार प्रयोग में अच्छी गति थी । इनका गणभेद छन्द शास्त्र की रचना है। नित्यविहार श्रृंगार रस पर आश्रित है जिसमें राधा कृष्ण का वर्णन है। प्रसंगसार एवं ज्ञानसार सुभाषित, रुपदेशात्मक एवं भक्तिरसात्मक हैं। ज्ञानसार को इन्होंने संवत् १७४३ में समाप्त किया था इससे पता चलता है कि कवि १७ वीं शताब्दी में पैदा हुये थे । कवि राजस्थानी विद्वान् थे लेकिन राजस्थान के किस प्रदेश को सुशोभित करते थे इसके सम्बन्ध में परिचय देने में इनकी रचनायें मौन है। इनकी सभी रचनायें शुद्ध हिन्दी में लिखी हुई हैं। ये जनेतर विद्वान् थे ।
४१. रूपचन्द
कविवर रूपचन्द १७ वीं शताब्दी के साहित्यिकों में उल्लेखनीय कवि हैं । ये आध्यात्मिक रस के कवि थे इसीलिये इनकी अधिकांश रचनायें आध्यात्मिक रस पर ही आधारित हैं। इनकी वर्णन शैली सजीव एवं आकर्षक है। पंच मंगल, परमार्थदोहाशतक, परमार्थ गीत, गीतपरमार्थी, नेमिनाथरासो आदि कितनी ही रचनायें तो इनकी पहिले ही उपलब्ध हो चुकी हैं तथा प्रकाश में आ चुकी हूँ किन्तु अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में अध्यात्म सर्वेच्या नामक एक रचना और प्राप्त हुई है। रचना आध्यात्मिक रस से ओतप्रोत है तथा बहुत ही सुन्दर रीति से लिखी हुई है। भाषा की दृष्टि से भी रचना उत्तम है। इन रचनाओं के अतिरिक्त कवि के कितने पद भी मिलते हैं वे भी सभी अच्छे हैं ।
४२. लच्छीराम
लच्छ्रीराम संवत् १८ वीं शताब्दी के हिन्दी कवि थे । इनका एक " करुणाभरणनाटक " अभी उलब्ध हुआ है । नाटक में 8 अंक हैं जिनमें राधा अवस्था वर्णन, ब्रजवासी अवस्था वर्णन सत्यभामा