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________________ २६४ ] [ मुटके एवं संग्रह ग्रन्थ रतनचंद्र बहरागि गणि, पंटित साधु कीरति । हरिरंग गुण श्रागल उ ज्ञानादेवी रति ॥४॥ अन्तिम पाठ-दया अमर माणिक गुरु सीस, साधु कोरति लहीय जगीस | मुनि कनक सोम इम याखइ चउ विह श्री संघ की साखद ।।४।। इति श्री जात पद वेति । संवत् १६४८ वर्षे अषाढ बंदी अष्टमी । (६) चूनडी साधुकीर्ति (माउलपरि सोहामणउ, गढ मद मन्दिर वाई हो) (७) मंजारी गीत जिनचन्द्र सूरि ग्राली गारउ उदिरउ, नित खेलइ प्रालि । (5) वरामी मौत (E) शील गीत भारवदास (१०) पद (११) दानशीलतपभावना सरसति स्वामिनि वीनवरदेई सारदा महहि हो। (१३) गोरी काली बाद (१३) श्रावक अतिक्रमण सूत्र प्राक्त (१४) पार्श्वनाथ नमस्कार बमयदेव (१५) रागरागिनी भेद, संगीत मेंद - १५) नेमिनाथ स्तवन प्रारम्भ- श्री सहगुरना पाय नमी, जिणवायगी पणमेति । नय भव नेमीसर सणा संषेपह पमणेतु । सील सिरोमगिग गुण निलउ, जादव कुल सिणगार । मुणता तेह तय उचरी, पामीजर मनपार ॥॥ अन्त- इय नेमि जिग्य जगीस गुरु, परम सिव लथी बरो। हरिबंस स्वीर समुद्र ससिहर सामि सह संपह को । उदाम काम कुरंग केसरि, सिवादेयि नंदणज ।। मह देहि नोय पर कमल सेवा, सयल जण श्रावणी ॥४३॥ . (१७) वेताल पच्चीसी देतालदास
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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