SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्य ] [२६३ ६०१. गुटका नं० १००-पत्र संख्या-२८ । साइन-१.x म । भाषा-प्राकृत-हिन्दी । लेखन कालसं. १७०६ वैशाख चुदी ११ । पूर्ण । विशेष-गुणचंद्र हरि के शिष्य बाब कल्याण कीर्ति ने प्रतिलिपि को धौ । त्रिभंगी का वर्गान हैं। ६०२. गुटका नं.१०१-- पत्र संख्या-१२२ । साइज-tx+ इ मावा-हिन्दी । लेखन काल-- । अपूर्ण । विशेष लक्ष्मीदास कृत श्रीशिक चरित्र है । भाषा-हिन्दी है । फूल पधों की संख्या १६७५ है, अन्तिम के कुछ पद्य नहीं है । अंगिक चरित्र के मूलफर्ता भ शुभचन्द्र हैं । ६०३. गुटका नं० १०२-पत्र संख्या-- ० | साइज-१०४५३ इञ्च । भाषा-हिन्दी । लेखन काससं० १६.४ । पूर्ण । विषय-सूची विशेष कर्ता का नाम भाषा संघपति सह डूगर श्री जेया सासण सकल मह गुर घिर दे राउर भाव 1 कुशल करि कुशल करि कुसल सरिद गुरू । कालक सरि जय जय भदा जय जय नदा वनिता वचन विकासइरे । ऋषि बीर बीर जी वरखे विस्चीया, श्रमिक मन माहि सोइ । मबिहार गीत करि शृंगार पहिर हार तजि विकार कामनी । जइतपद बेलि कनकसोन ० का सं० १६२५, ले० का सं० १६४८ भादवा दी TE पच हैं। । पारम्भ सरसति सामणि बीननु', पूझ दे अमृत वाणि । मूलपकी खातातणा, कस्स्यूि विरद वखान ||1|| श्रावक श्रात्री मिलि सुणउ मनि धरि अति पाणंद । चिति विष वादन को भरख, सावउ कहर मुनिद ।।२।। सोलह पचीसह समद, वाचक ६या मनांस । चउमासि श्राया श्रामरक, बहुरि करि मुजगीस ।।३।।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy