SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२६५ गुटके गर्व संग्रह ग्रन्थ ] पारम्भ - सरसति सुललित वचन विलास, आपउ सेवक परह आरा । तुम्ह पसाइ हुइ वृद्धि विशाल, कविता रसके ,बउ रसाल । भहियल मालन देस विख्यात, बानी सोक बिसन नहीं बान । उजेणी नगरी सु विसाल, राज करइ विक्रम भूपाल H२|| अन्तिम-प्रगट हुई सर्व गिनि रिधि बहु बुधि नरेसर । परउ काज तुम्हि कार राज, जाम तथा दिगोसार || इंद्र दोधउ मान वली, बरदान इसी परि । ए प्रबंध तुम्ह तबउ प्रसिधि होसी जम मीतरि ।। रंराउ मुपसाउ लहि विकमाइत श्राव्या घाहि । उपजेण नगरि उछव हुय हरष करी अति विरतरिहि ३३६ ॥ राज रिधि सच सिधि मुजस त्रिस्तरइ महीतलि | जरा मरण अन्वहरण, जन्म लमा उत्तिम कुलि ।। धरम धराउ धरणा करण मुस्ख अहि निसि । रमन पिरंभा समय, तिजि माण हउ बसि ॥ निहु पदहि प्रथम अक्षर करी. जास नाम श्र प्रसिद्धि । तिणित कही कथा पंच बीसए सास पाचर विबुध ||३|| इति बनालपचीसी चउपई समाप्त । (१८) विक्रमप्रवन्ध राम विनयसम हिन्दी र का• सं. ३६४ पन है। प्रारम्भ-देव सरसति २ प्रथम पर्णवि, वीणा पुस्तक धारिंगी । चंद्र निसि सु प्रसंसि चल्ला कासमीरपुर वासिखी || देइ नाण अनाण पिल्लइ कवियानी माडली दिउ मुझ बुधि त्रिशाल । जिम विक्रम राजा तमाड़ कहाई प्रबन्ध साल | ३ मध्य भाग--विक्रमादित्य तेज धादित्य बोलइ बचन करते सत्य । बलि मागह मीनाथादेस खंभ नगरि करि वेग प्रवेश ॥२४॥ श्री जयकर्ण राय मेघर श्रीजीभि चडि साइस करे पेटी याग्धि वगि तिहां आम, राजा चाल्यु करि सम दाइ 1.- ४६ अन्तिम भाग-संवत पनरह सई त्रासीयइ, ए चरित्र निरणी हरि सीयड् । साहसीक जे होइ निसंकि, कायर कपड़ जे बलि रंकिं ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy