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गुटके गर्व संग्रह ग्रन्थ ] पारम्भ - सरसति सुललित वचन विलास, आपउ सेवक परह आरा ।
तुम्ह पसाइ हुइ वृद्धि विशाल, कविता रसके ,बउ रसाल । भहियल मालन देस विख्यात, बानी सोक बिसन नहीं बान । उजेणी नगरी सु विसाल, राज करइ विक्रम भूपाल H२||
अन्तिम-प्रगट हुई सर्व गिनि रिधि बहु बुधि नरेसर ।
परउ काज तुम्हि कार राज, जाम तथा दिगोसार || इंद्र दोधउ मान वली, बरदान इसी परि ।
ए प्रबंध तुम्ह तबउ प्रसिधि होसी जम मीतरि ।। रंराउ मुपसाउ लहि विकमाइत श्राव्या घाहि । उपजेण नगरि उछव हुय हरष करी अति विरतरिहि ३३६ ॥ राज रिधि सच सिधि मुजस त्रिस्तरइ महीतलि | जरा मरण अन्वहरण, जन्म लमा उत्तिम कुलि ।। धरम धराउ धरणा करण मुस्ख अहि निसि । रमन पिरंभा समय, तिजि माण हउ बसि ॥ निहु पदहि प्रथम अक्षर करी. जास नाम श्र प्रसिद्धि । तिणित कही कथा पंच बीसए सास पाचर विबुध ||३||
इति बनालपचीसी चउपई समाप्त । (१८) विक्रमप्रवन्ध राम
विनयसम
हिन्दी र का• सं.
३६४ पन है। प्रारम्भ-देव सरसति २ प्रथम पर्णवि, वीणा पुस्तक धारिंगी ।
चंद्र निसि सु प्रसंसि चल्ला कासमीरपुर वासिखी || देइ नाण अनाण पिल्लइ कवियानी माडली दिउ मुझ बुधि त्रिशाल । जिम विक्रम राजा तमाड़ कहाई प्रबन्ध साल |
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मध्य भाग--विक्रमादित्य तेज धादित्य बोलइ बचन करते सत्य ।
बलि मागह मीनाथादेस खंभ नगरि करि वेग प्रवेश ॥२४॥ श्री जयकर्ण राय मेघर श्रीजीभि चडि साइस करे पेटी याग्धि वगि तिहां आम, राजा चाल्यु करि सम दाइ 1.- ४६
अन्तिम भाग-संवत पनरह सई त्रासीयइ, ए चरित्र निरणी हरि सीयड् ।
साहसीक जे होइ निसंकि, कायर कपड़ जे बलि रंकिं ।