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। गुट के एवं संग्रह ग्रन्थ
श्री उबएसगळ गण वर सूरि, चरया करण गुण किरण मयूर । रखा प्रणु गुणगण भूरि, ता अनुक्रमि जंपा सिद्ध सूरि ।।६७|| तेह नइ बाचक हर्ष समुद्र तम असु उजत षीर समुद्र । तम विनये विन या वृद्धि एह, रच्यु प्रबंधि निरषि तोह । पंच हंट नामा सचिरित्र, देखी हमउ पावि विचित्र । तिणि विनोद चउपई रसाल, कीथी सुणता सुख रसाल ||४६.६॥
RE) विधाविलास चउपई
श्रासामुदर
हिन्दी ३६४ पच।
रचना काल सं० १९१६
प्रारम्भ-गीयम गयडर पाय नमी सरसति हियह धरेवि ।
विधा विलास नरवह ताउ, दरिय मणु संखेवि ॥१॥ जिभ जिम संभालिया अबधि पुण्य पवित्र चरित्र । तिम तिम परमाद इस अहनिसि विससइ चित्त ||२|| भण का कचंच सुयण जण राशिम भोग विलास ।
मन वंडित सुख संपंजा जसु हुय पुण्य प्रकाश ॥३॥ चउपई-पुण्य पसाई पाम्यउ राज, पुण्य प्रमाणि चळ्या सविकाज ।
धन धन विधा दिलासहचरी, तेहिय निसणउ अादर करी ॥४॥ मध्य माग-कालवती पुत्री ताउ पाणि ग्रहमा करत ।
तउमु तउ नरवइ सुग्णउ वाचा प्ररणहुत ॥६॥ अन्तिम पाठ-इण परि पूरठ पाली बाउ, देवलोकि बहुतउ नरराउ ।
खरतर मछि जिन वरदान सूरि, तासु सीस बहु पाणंद पूरि ॥ श्री प्राशासुदर वसु बज्झाय, मब रस कि प्रबंध सुमाव । संवत् पनरह सौल बरसेमि सच अयगिएविय सुरम्म ॥ विधा विलास नरिंद चरित, भविय लोय एह पवित्त । जे नर पड़ सुग्णद मामला, पुण्य प्रभाव मनोरथ फलाइ ॥३६४१]
इति श्री विधा दिलाम चउपई।
(२०) साठि संवत्सरी
हिन्दी सं. १६४८ से सं० १६६० का वर्णन है । विषय-ज्योतिष ।
६०४. गुटका नं० १०३–पत्र संख्या ५५ । साइज-७४५ इय । भाषा-हिन्दी । लेखन काम-x | पूर्ण विशेष -कमों की १५८ प्रकृतियों तथा चौबीस दंडकों का वर्णन है।