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[ संग्रह
र जैन कवियों के पद है। स्वनाकाल सं. १७६०
शान सुखडी
शोमचन्द्र भक्तामरस्तोत्र
मानतुगालाय कल्यायमन्दिरस्तोष बमा पचीसी
समयसुन्दर शत्रुजयोद्धार पं. मानुमेक का शिष्य नपसन्दर
७३१. गुटका नं. ४२ । पत्र संख्या-१ | साज sxr एन नं. १...1
हिन्दी , ० १७७० बैशाख पदी ६
छ । भाषा-हिन्दी । लेकम काल-x।
पूर्ण
विषय-सूची
कर्ता का नाम
माषा
हिन्दी
पद पक
पागतराय रूपचन्द रामदास रूपचन्द गंगाराम पांच्या
जखमी मालामरसोत्र भाषा
विशेष-इसमें संस्कृत की ४८ वी काव्य का ४७ में पथ में निम्न प्रकार अनुवाद है।
है जिन तुम्हारे गुष कपन पहुप माल,
भक्ति तीन माधरि के बनाई है। प्रेम की मुरुचि नाना वान सुमन थरि,
गुणगय उत्तम अनेक मुखदाई है। ई भव्य जन कंठ पारि है उछाह करि,
फुलकित अंग के श्रानंद सो माई है। ई मानतुगः कति मुकति बधू सो इत,
गगन सरित सम सोमा मुख आई है ।।
इक्का निषेध
भूधरमक्ष विनती (प्रभु पाप लागू कर' सेत्र मारी) जगतराम विषापहारस्तोत्र मापा
अचलकीर्सि
गुजराती, सिपि हिन्दी । हिन्धी रचना काकस.१५१५
मारनौल
मंद-मे पायो दुख अपारखि संसार में- थानतराय