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________________ [ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ पुनित शामल बोलिम, कहस्सू सक्लेस ॥२॥ पुनि सु सुख उपजै हो, पुन्य संपति हो ।। राजनीध लीला घी, पुण्य पाच सोई ॥३॥ पुन्य उत्तम कुल होवे, पुण्य पुरष प्रधान । पुण्य पुरो प्रादुषौ, पुण्य वुधी निधान ॥४॥ पुण्य उपरि सुणी जो कथा, मुणता अचिरज धारि । ईसराज बछराज नृप हुश्रा पुण्य पसाई ॥५॥ मध्यभागकामनी-त्रिविध तेल ताहा काटि घरे फुमर न जाणे भेद । कुमरी गयो नरीषई रे देखी धरौ विषाद ॥१॥ कामनी -- कंत भणे ताहाँ कामनी के दाहारै बैई मन छ । नस टालसी साधि परि कासी सगलो श्रो थुङ ॥७२ बदराज कदै कामनी रे, चिताम करि काय । जैद वे जिन नई चितवई रे, तेह वो सिण नै माय ७३|| अतिम पाठ नहीं है ६३७. गुटका नं. १३६--पत्र संख्या-११३ । साइज-=x६ १७ | भाषा-संस्कृत | लेखन काल-४ । अपूर्ण । निम्न लिखित पूजा पाठ संग्रह हैं--प्रयपूजा, त्रिपंचाशतक्रियायतोषाफ्न, जिमगुणसंपत्तिवतपूना (म० रनन्द्र), सारस्वतयंत्रपूजा, धर्मचक्रपूजा अपूर्ण), रनियतविधान ( देवेन्द्रकीति ) बृहत् सिद्धचक्रपूजा । ६३८. गुटका नं० १३७–पत्र संख्या-५-३६ । साइज-८४६ [ माषा-संस्कृत । लेखन काल-x। सपूर्ण विशेष-गणघरवलंय पूजा, एवं प्राचार्य केशव विरचित षोडशकारवपूजा है। ६३६, गुटका नं० १३८-पत्र संख्या-८ । साइज-xx । माषा-संरत हिन्दी। लेख्न बाल-x| अपूर्ण। विशेष-निम्न पाठों का संग्रह है। भक्तामरस्तोत्र, ( मंत्र सहित ) तथा भक्तामर भाषा हेमराज कृत । एकीभावस्तीत्र मूल पूर्व भाषा । निर्वाग भाग भाषा | तत्वार्मसूत्र, पंचमंगल रूपचन्द कृत 1 चस्त्रा संग्रह-( पाठ कों की प्रातियों का वर्मन, जीव सभास गर्गन श्रादि हिन्दी में ) नमा संस्कृतमजरी ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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