________________
स्तोत्र ]
[***
**** |
। पत्र संख्या - १ साइज - १०३४४ छ । भाषा - हिन्दी | विषयस्तो
४२४. पार्श्वनाथस्तवन
ना काल-X | लेखन काल-सं० १५ मंगसिर सुदी १ । पूर्णं । वेष्टन नं० २०१ |
४२५. पार्श्वनाथस्तोत्र
रचनाकार- लेखन कापूनं० २०१
४२६. भगवानदास के पद – भगवानदास पत्र संख्या ६५० भाषा-हिन्दी पद्मविषय-पद रचना काल-लेखक-० १८०३ पूर्ण बेटन नं० २७१ |
विशेष १४० पदका संग्रह है। विधि राग रागिनियो में कृष्ण भक्ति के पद है।
श्रीराग — हरि का नाम विसाहों रे सतगुरु चोखा बर्जिज बनाया |
गोविंद के गुन रतन पदारथ ना साथ हो पाया। अन्नपदारथ पाह के किन विरले मेग लगाया। काम क्रोध मद लोभ मोह में मूरख मूल भवाया | हरि हरि नाम बराधि के जिनि हरि ही सौ भन लाया | कर भगवान हिट रामराय तिनि जन में आनि कमाया ॥ ११२ ॥
"वशेष - प्रत्येक पद के अन्त में "कहि भगवान हित रामराय" लिखा हुआ है । ६५ पत्र के अतिरिक्त श्रन्त में ६ त्रों में विषय चार भिक्ष २ रागिनियों की सूची दी है। इसमें कुल १५३ पद तथा २०० श्लोकों के लिये लिखा है : साद साह के पटना में रूपराम नंदीश्वर के गुसाई ने प्रतिलिपि की । पदों की सूची के लेखन दिया है।
सम्बत् १८८२
स्तोत्र भी है।
पत्र संख्या - २ | साइ३-१०३४५ | भाषा-संस्कृत विषय स्त्र
I
४२७. अफ़ामर स्तोत्र – मानतुंगाचार्य | पत्र संख्या - १६ | साइज - ४४४ ६ | भाषा-संस्कृत । विषयस्तो रचनाकाल पाल X पूर्व वेष्टन नं० १४३ ।
विशेष – १२ पत्र से कल्याण मंदिर स्तोत्र है जो कि पू है। इस में २ ट पत्रों पर संस्कृत में लक्ष्मा
विशेष २ और है।
४२८. भक्तामर टीका
काल- लेखन काल-X
पत्र संख्या ४११०४३ भाषा-संस्कृत वस्ती वेन नं० २०८२ |
४२६ मकामरस्तोत्रवृत्ति-भः श्नचन्द्र सूरि संतु] | विषय - स्तोत्र नाका सं० १६६० वर सुदी
बेननं० ३४६ /
पत्र संख्या ४४ साइज - १०८ लेखन काल सं० १०२४ कार्तिक
-
। भाव-१० पूर्णा
विशेष- इन्द्रावती नगर में चन्द्रमयालय में चाचार्य कनकली के शिष्य पं० राम ने स्वार्थ परोपकारार्थं प्रतिलिपि की भी मंत्र तथा सहित है।