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तेरह काठिया
स्थान बतीसो
अध्यात्म मतली
सूक्तिमुक्तावली
बनारसीदास
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मधुमालती का
प्रथम- मरवीर चित नया वर पाउ, संकर पूत गणपत मनाऊं । चातुर हेत सहत रिझाउ, सरस मालती मनोहर गाऊं || १ || चन्द्रसेन जिहां सु नेरेसा । मानू भंदर रची मखा ॥ २ ॥ चौरासी मोहटा चोवार
लीलावती ललित ऐक देता, सुभग यामिनी ही गगन प्रवेशा बहपुर नगर जोजन चार अति विविध दीमे नरनार मातृ
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दोहा कायथ मैगमा कूल गई, नाबा त म राम भए ।
तनय चतुभुज तास के, कथा प्रकासीताम ॥ ६३॥
वधू दी दई काम प्रबंध प्रश्छल ।
कवियन सु' कर जोर करिं, कहत चतुर्भुज दास | ८६४ १ कामप्रबंधक पुनी माती दिवास ।
हिन्दी
प्रदुमनी का खाला है, करत चतुर्भुजदास ॥ ८६५ ॥ बनावरति में चंबल, रस में एक संत । कथा मध्य मधु मालती त्रुट् रति अधि बसंत ॥ ८६ ॥ लता मध्या पतंग लता, सो वन में धनसार । कथा में मधु माखती, भूषण में हार ॥ ६७ ॥
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मध्य भागवती निस मनिंदा, ठानामध समोसा में सांई ताख परंतर चवर न कोई
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ठार मांहि पुलंदर नर मम मोड़े ॥ ४४ ॥
जात मंत्र मह कन्या सुन्दर वर रूपरेख तसु नाम सौ जा देखे सुर अन्तिमबाट हम है काम अब अवतारी, इहैव कहे सोनी को न्यारी। जैसे कही मधु नृप समझायो, राजा सुनत नहीत सुख पायो ॥ रोज पाट मधुक सब दीनों, चन्द्रसेन राजा तप तीनों । राजपत्रिय बोहत होई, उनकी कथा लख ही कोई ॥ ६२ ॥
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[ गुटके एवं संग्रह प्रन्थ