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गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ]
राजनीत कीया मैं माखी, पंचाख्यान बुध ईहाँ भाषी । चरना ऐका चातरी बनायी, थोरी भोरी सबहु आई ।। ८६८ ॥ पुनि बसंत राज रस गापो, धाम ईश्वर का मद झायो । ताका ऐड बिलावसतारो, रसिकमि स्सक श्रवन सुखकारी || ८६६ ॥ रसिक होग सो रस कू चाहे, अन्याम प्रातम अबगाहे । नातुर परष होई है जोई कहे कला प समझ मोई !| ८७० । किसन देव को कवर कहावें, प्रदुमन काम अंस मधु गावें ।
पुत्र कात्र सब सुख पावै, दुख दालिद रोग नहीं प्रावै ॥ ८.१ ॥ दोहा - राजा पढे ही गज नीत, मिंग प? ताही वधू ।
कामो काम बिलास रस, ग्यानी तान सरूप ॥ ८७३ ॥ संपूरन मधु मालती, कलस भगो संपूणा । सुरता वक्ता सबन कू', मुख दायक दुःख दूर ॥ ८७४ || कैसर के पति सामजी, तीण उपगार माहाराजै । कनक वदनी कामनी, ते पानी में भाजै ॥ ८७५ ।।
॥ इति श्री मधु मालती की कथा संपूर्ण ॥ फागुग; बुदी ७ मंगलबार संवत् १८२५ का दसकत नन्दराम सेठी का ।
७५. गुटका न०७४-पत्र संख्या-३४ | साइज-७४४ इश्व | भाषा-हिन्दी लेखन काल-से. १८७३
पूर्ण।
विशेष – नन्ददास त मानपजरी है। यच संख्या-२८६ है । प्रारम्भ-तं नमामि पदम पाम गुरु कृष्ण कमन दल नैन ।
जग कारण, करुवार्णव गोकुल जाको औन ।। नाम रूप गुण मेद लहि प्रगरत सब ही वोर । ता दिन तहाँ जान कछु कहे तु अति व बोर ।।
अन्तिम पाठसुमन नाम-जुगल जुग्म जुग दय दूष उभया मिथुन विविवीप |
जुगल किशोर सदा बसई नंददास के द्वीप |८||
रस नाम-सरन्य मधु पुनि पुष्प रस कुस्म सार मकरं।
रस के जाननहार जन सुनियें है अानंद ||८८ ॥