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________________ पत्र एवं पंक्ति ( ३८०) अशुद्ध पाठ शुद्ध पाठ अनुभं ध्यान धारना करें, समता सील माहि मन धरै । इहि विधि रमि जो जान सही, महादेव मन वच क्रम कही ।।१६। यार उतमचंद यार टोडरमल ६०x२६ Ex३१ ३६४४ Exx६ १००x१८ १०९४६ बनारसीदास चाचक विनय सूरि उगरणसीय राते रचउ कारयां इठबन नेमिदशभवर्णन मानतुगाचार्य टीकाकार यानतराय वाचक विनय विजय उगपतीसह राते कारण १०१४ १०१४ १८३४२६ १८५४२२ १०७४२१ १०.४५ इतवन नेमिदश भववर्णन मानतुगाचार्य । टीकाकार ... . ... ११०४११ १५४४१,५८ १:४४२३ ११४२४ १x१४ प्रथम पंक्ति के आगे निम्न पंक्ति और पढ़ें "शिष्य ताहि भट्टारक संत, तिलोकेन्द्रकीरति मनिवत | प्राकृत (1) अपभ्रंश कवि बालक कवि रामचन्द्र 'बालक' दोह दोहा १६६१ नि कनकामर मुनि कनकामर राष विशेप RUX १.xe मनरकट बडा चादन्त बंदो के पठनार्थ ने १३७४५ १३८x११ १३६४१ १३६४२३ मरकट बड़ाचा दन्त चंदो के पठनार्थ धार्मिक कर्ता का नाम धू चरित का नाम चरित
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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