SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वंतिम-- मोन्त्र गया जिन राज प्रभु गट गिरनार भझार रे । राजल तो सुरपति हुवौ स्वामी हर्षकीर्ति मुकारौ ॥ म्हारो० ३ ॥ ॥इति मोहोसमाता ।। प्राकृत से मकि वर्णन पद - पारम्भ-जय घरहंत संत मन देव मा त्रिभुवन भूप । हिन्दी 205. गुटका नं० ११६ | पत्र संख्या-2.1साइज-८४६ इन्च | मापा-हिन्दी लेखन काल-४। पर्श । वेष्टन नं. १२१ विषय-सूची सामा कर्ता महमद पद हिन्दी प्रारम्भ-भूलो मन भमरा रै का.. . ..... ...: चंतिम भाग-महमद कहै वसत बोरीये ज्यौ ५ प्राबै साथी । लामा अापण उगाहीने लेखा साहिब हाथी । सया बनारसीदास नववारसम्झाय जिनहर्ष विशेष-अंतिम-रूप कूप देखि भरि रे मांहि पर किम ग्रंथ । दुख मारी जारी नहीं हो कहै जिनहरण प्रबंध ॥ सुन रे नारि रूप न जोत्ये रे ॥ १० ॥ इति नववाहसमाय संपूर्य । अपूर्व राजल बारहमासा पार्शनीय स्तुति हिन्दी गुजराती माबकुशल यौतम-भत्रि भवि दीगो देव सेव क ताहरौ । भिर सिर तुम्ह मी श्राश बास ५ माहरी ।। पदम सुन्दर उवझाय पसाय गुण भणे। भाष कुशल मरपूर मुख संपति घौ ॥ इति पार्थ जिन स्तुति ॥
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy