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१५. ]
संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुति रामविजय
ले० का सं० १६. चैत दो ५ अंतिम--संत्र्यो श्री जिनराज । श्राएँ अविचल राज ॥
रामविजय भगाए । सु प्रसन । धीए ।' इति श्री मंखेश्वर पार्श्वनाम जिन स्तुति । इमें लिखिता भाव कुशलन । श्री केसरि बाचन कते ॥ नंद छत्तीसी
- संस्कृत
अपूर्ण .
गार ले. का. सं. १७६३ पौष पदी २ विशेष-केवल १० से ३६ तक पद्य है। नाई केपर के पठनाय लिपि की गई पो। नमिनाप बारहमामा
(गु.) १४५८ है। विशेष-रागभरा राजीमती लिधो संजम मार ।
कहै ब्राण हर जसुमालीया मुगत मंझर १४|| वियोग शृगार का अच्छः वर्णन है। बुधराम
हिन्दी त्रित्र -- प्रारम्भ के पत्र गल गये हैं । प्रतिम-गति गरथ मत लूस्खा खाय । ............... । मुखो मत चालें सियाले । जीमर मत चालें उम्हाले ।
भिण होय अगा-हायो। कापम हो पर लेखो भूले । ए तिनु किण ही तो ॥१२० ॥ एह सुधसार तणोर विचार | पालन पाने पण संसार ।। भरी पालय रोषम युता । राज को पसार संयुता ॥२१०||
॥ इति बुथरास संपूर्ण ॥ तमास्तू की जयसाल
याणंद मुनि। विशंक-प्रारम्भः-प्रीतम सेती भीनमें प्रमदा मुण किशान ।
मोरा लाल मन मोहन एके चित तू संभाल ।। चतुर सुजाण ॥ निम-दया धरम जागी करी सेवो सदगुरु साध मारा जाय। पाणंद मुनि श्म उच्चर बग माही जस वाम मोरा लाल ॥
चतुर तमाच परिही। ॥ इति तमाखू जयमाला संपूर्ण ।।
॥ लिखत ऋषि होस।